Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
01-19-2018, 01:31 PM,
#14
RE: Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
मैं पड़ा पड़ा सोच ही रहा था कि अब उठा जाये, पैकिंग वगैरह की जाये. तभी सासूमां कमरे में आयीं. उन्होंने शायद नहा लिया था और कपड़े बदल लिये थे. फूलों के प्रिंट वाली एक सफ़ेद साड़ी और सादा सफ़ेद ब्लाउज़ पहना हुआ था. आकर उन्होंने इधर उधर कुछ सामान ठीक ठाक किया पर मुझे लगता है कि वे आयी थीं सिर्फ़ ये देखने को कि मैं सोया हुआ हूं या जाग गया हूं.

मुझे जगा देखकर उन्होंने पहले तो आंखें चुराईं, फ़िर न जाने क्या सोच कर मेरे पास मेरे सिरहाने आकर बैठ गयीं. मेरे बालों में उंगलियां चलाते हुए बड़े प्यार से बोलीं "अनिल बेटा, आराम हुआ कि नहीं? मुझे लगता है कि हम सब ने मिल कर तुमको जरा ज्यादा ही तकलीफ़ दी है"

मैं बोला "ममीजी, अगर आप वचन दें कि ऐसी तकलीफ़ देती रहेंगी तो मैं अपना सब काम धाम छोड़ कर यहीं आकर पड़ा रहूंगा आप के कदमों में"

वे बस मुस्करायीं. उनकी मुस्कान में एक शांति का भाव था जैसे मन की सब इच्छायें तृप्त हो गयी हों. मैं सरक कर उनके करीब आया और उनकी गोद में सिर दे कर लेट गया. मैंने पूछा "और मांजी, ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई ना? याने मैंने जो दोपहर को किया? मुझे अच्छा लगता है, कभी कभी रसीले फलों को ऐसे ही चूस चूस कर खाने का जी होता है. लीना के साथ मैं कई बार करता हूं, हफ़्ते में एकाध बार तो करता ही हूं. आज तो मीनल थी मेरी मदद को, वहां अकेले में तो लीना के हाथ पैर बांध कर करता हूं, बहुत तड़पती है बेचारी पर मजा भी बहुत आता है उसको"

"मैंने पहले ही कहा है कि बड़ी भाग्यवान है मेरी बेटी. इतना तेज न सहनेवाला सुख पहले नहीं चखा मैंने कभी अनिल ... सच में पागल हो जाऊंगी लगता था. बाद में जब नींद से उठी तो बहुत आनंद सा भरा था नस नस में ... अब जल्दी जल्दी आया करो बेटे, ऐसे साल में एकाध बार आना हमें गवारा नहीं होगा" ताईजी बोलीं.

"अब आप ही आइये ताईजी हमारे यहां, सब को लेकर आइये"

"अब कैसा क्या जमता है दामादजी, वो देखती हूं. वैसे आई तो शायद अकेली ही आ जाऊंगी, वैसे भी हेमन्त और मीनल को कहां छुट्टी मिलती है. लीना को कहीं जाना हो तो आ जाऊंगी, कहूंगी कि हो आ, तेरे पति की देख रेख के लिये मैं हूं ना!" मैं उनकी ओर देख रहा था इसलिये यह कहते ही वे शर्मा सी गयीं. उनकी मेरे साथ अकेले रहने की इच्छा थी याने! मैंने भी सोचा कि यार अनिल, तेरी सास तो तेरे पर बड़ी खुश है.

"ताईजी, ये बहुत अच्छा सोचा आप ने, लीना का कुछ प्लान है अगले महने में एक हफ़्ते का, तब आप आ जाइये. बस मैं और आप रहेंगे. ना जमे तो लीना रहेगी तब भी आइये ना. आप को अष्टविनायक की यात्रा करवा दूंगा, लीना तो आयेगी नहीं, हम दोनों ही चलेंगे, आराम से चलेंगे, दो तीन दिन होटल में रहना पड़ेगा" मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा.

ताईजी फिर से नयी नवेली दुल्हन जैसी शरमा गयीं. मैं उनके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था जिसको गालों की लाली ने और सुंदर बना दिया था. अचानक मेरे दिल में आया कि शायद मुझे उनसे इश्क हो गया है, याने चुदाई वाला इश्क तो पहले से ही था, परसों से था जब लीना के मायकेवालों का असली रूप मैंने देखा था. पर अब सच में वे मुझे बड़ी प्यारी सी लगने लगी थीं. लीना को भी शायद मेरे दिल का उस समय का हाल पता चलता तो एक पल को वो डिस्टर्ब हो जाती कि कहीं उसकी मां ही उसकी सौत तो नहीं बन रही है. अब जब मैंने हंसी हंसी में उनको अष्टविनायक के टूर पर ले जाने की बात की तो मैं कल्पना करने लगा कि वे और मैं रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाते हैं और फ़िर ...? मुरादों की रातें ...? बेझिझक अकेले में उनसे जो मन आये वो करने का लाइसेंस?

इस वक्त मेरे मन में दो तरह की वासनायें उमड़ रही थीं. एक खालिस औरत मर्द सेक्स वाली ... बस पटककर चोद डालूं, मसल मसल कर उनके मुलायम गोरे बदन को चबा डालूं, जहां मन चाहे वहां मुंह लगा कर उनका रस पी जाऊं ये वासना .... दुसरी ये चाहत कि उनको बाहों में भर लूं, उनके सुंदर मुखड़े को चूम लूं, उनके गुलाबी पंखुड़ी जैसे होंठों के अमरित को चखूं ...

इनमें से कौनसी वासना जीतती ये कहना मुश्किल है. पर मेरा काम आसन करने को लीना अचानक अंदर आ गयी. मैं चौंका नहीं, वैसा ही मांजी की गोद में सिर रखे पड़ा रहा. लीना भी तैयार होकर आयी थी, एक अच्छा ड्रेस पहना था. लगता था बाहर जाने की तैयारी करके आई थी. हमें उस ममतामयी पोज़ में देख कर बोली "वाह ... जमाई के लाड़ प्यार चल रहे हैं लगता है मां"

"क्यों ना करूं?" मांजी सिर ऊंचा करके बोलीं "है ही मेरा जमाई लाखों में एक. अब ये बता तू कहां चली? आज घर में ही रहेंगे, कहीं जाकर टाइम वेस्ट होगा ऐसा कह रही थी ना तू? आखिर आज रात की ट्रेन है तुम लोगों की"

"ठहरा था पर काम है जरा .... मैं और भाभी मार्केट हो कर आते हैं"

ताईजी ने लीना की ओर देखा जैसे पूछ रही हों कि ऐसा क्या लेना है मार्केट से? लीना झुंझलाकर बोली "अब मां ... भूल गयी सुबह मैं और मीनल क्या बातें कर रहे थे?"

"हां ... वो ... सच में तुम दोनों निकली हो उसके लिये? मुझे लगा था मजाक चल रहा है. ठीक है, करो जो तुम्हारे मन आये" ताईजी पलकें झपका कर बोलीं

"तू बैठ ऐसे ही और अपने जमाईसे गप्पें कर. पर अब अच्छी बच्ची जैसे रहना, कुछ और नहीं करना शैतान बच्चों जैसे" लीना आंख मार कर बोली "और ललित अपने कमरे में है, उसको डिस्टर्ब मत करना, सो रहा है" लीना जाते जाते ताईजी के गाल पर प्यार से चूंटी काट कर गयी.

मुझे लगा कि दाल में कुछ काला है. "लगता है कुछ गड़बड़ चल रहा है, लीना का दिमाग हमेशा आगे रहता है उल्टी सीधी बातों में" मैंने कमेंट किया. सोचा शायद मांजी कुछ बतायें. पर वे बस बोलीं "अब करने दो ना उनको जो करना है, मन बहलता है उनका. मैं तो पड़ती ही नहीं उन लड़कियों के बीच में"

मांजी की गोद में सिर रखे रखे अब मुझपर फिर से मस्ती छाने लगी थी. उनके बदन की हल्की सी मादक खुशबू मुझे बेचैन करने लगी थी. मैंने अपना चेहरा उनकी जांघों के बीच और दबा दिया और उस नारी सुगंध का जायजा लेने लगा. वे कुछ नहीं बोलीं, बस मेरे बालों में उंगलियां चलाती रहीं. अनजाने में मेरा एक हाथ में उनकी साड़ी पकड़कर उसको ऊपर करने की कोशिश करने लगा तो मांजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं समझ गया कि शायद अभी मूड ना हो या वे कुछ देर का आराम चाहती हों.

पर मुझे इस समय उनके प्रति जो आकर्षण लग रहा था वह बहुत तीव्र था. मैं उठ कर बैठ गया और उनको आगोश में ले लिया. "ममी ... आप मुझे पागल करके ही छोड़ेंगी लगता है, इतनी सुंदर हैं आप" कहकर फ़िर चुंबन लेते हुए साड़ी के पल्लू के ऊपर से ही मैंने उनका एक मुलायम स्तन पकड़ लिया. इस बार उन्होंने विरोध नहीं किया.

अगले आधा घंटे बस हमारे प्यार भरे चुंबन चलते रहे. बीच बीच में एकाध बातें भी करते थे पर अधिकतर बस खामोशी से तो प्रेमियों जैसी हमारी चूमा चाटी जारी थी. उस उत्तेजना में मैंने किसी तरह उनके ब्लाउज़ के बटन खोल लिये थे और अब उनके सफ़ेद ब्रा में बंधे मांसल स्तन मेरी आंखों के सामने थे. कहने में अजीब लगता है कि ब्रा में लिपटे वे उरोज मुझे इतना आकर्षित कर रहे थे क्योंकि पिछले दो दिनों में मैंने उनको पूरा नग्न भी देखा था और तरह तरह से उनके नग्न बदन का भोग भी लगाया था, याने उनके बदन का कोई भी अंग मेरे लिये नया नहीं था फ़िर भी ब्रा के कपों में कसे हुए उन आधे खुले स्तनों की सुंदरता का जो खुमार था वो उनके नग्न उरोजों में भी नहीं आया था. मैंने बार बार उनको ब्रा के ऊपर से चूमा, ब्रा के नुकीले छोर में फंसे उनके निपलों को कपड़े के ऊपर से ही चूसा, हल्के से चबाया भी.
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