Indian Sex Story वक़्त के हाथों मजबूर
09-01-2018, 12:39 PM,
RE: Indian Sex Story वक़्त के हाथों मजबूर
वक़्त के हाथों मजबूर--38



बिहारी- क्यों झटका लगा ना. मैं जानता था कि तुझे बिल्कुल यकीन नहीं होगा. पर जो तेरे सामने हैं वही सच हैं चाहे तू मान या मत मान.


राधिका के मूह से एक ही शब्द निकल पाया और वो था............................विजय!!!!!


विजय- कैसी हो मेरी जान तुझे यहाँ पर देखकर मुझे आज कितनी खुशी हो रही हैं इसका मैं तुझे बयान नहीं कर सकता. कहते हैं ना अगर किसी चीज़ के पीछे जी जान से लग जाओ तो दुनिया की कोई भी ताक़त उससे उसको पाने से नहीं रोक सकती. और देख आज ना जाने कितने महीनों के बाद आज हमने तुझे हासिल कर ही लिया.


राधिका- धोका.............धोका किया हैं तुम लोगों ने मेरे साथ. आख़िर मैं पूछती हूँ तुम लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया. किस गुनाह की सज़ा मुझे दे रहे हो तुम सब. आख़िर मेरा कसूर क्या हैं...


विजय- कसूर तेरा नहीं बल्कि तेरी ये खूबसूरती का हैं जो तू हमे पहली ही नज़र में भा गयी. कसूर तेरा नहीं बल्कि उस कमिने राहुल का हैं जिसकी तू अब बीवी बनने वाली हैं. कसूर उस राहुल का हैं जिसकी वजह से आज मेरी ये हालत हुई हैं. आज उस कमिने राहुल की वजह से मेरा आज सब कुछ बर्बाद हो गया. और जिस इंसान की वजह से मैं बर्बाद हुआ हूँ उसे मैं कैसे आबाद होता हुआ देख सकता हूँ. मैं जानता हूँ कि उस कमिने की जान तेरे में बसी हैं. और तुझे कोई तकलीफ़ होगी तो उसे दर्द होगा. और मैं उसे वो जख्म दूँगा कि साला ना कभी चैन से जी पाएगा और ना ही मर पाएगा. और जब तक जीयेगा तड़प्ता ही रहेगा.


राधिका के चेहरे का रंग फीका पड़ गया था विजय की ऐसी बातो को सुनकर- क्या.............क्या करोगे तुम मेरे राहुल के साथ...


विजय- चिंता मत कर वक़्त आने दे सब पता चल जाएगा.


राधिका- आख़िर तुम्हारी दुश्मनी क्या हैं राहुल से. क्यों तुम उसके पीठ पीछे ये सब कर रहे हो. शक तो मुझे तुम पर बहुत पहले से था कि राहुल पर जितने हमले हुए हैं उन सब के पीछे तुम्हारा ही हाथ है. मगर अब यकीन हो गया. तुम सच में दोस्त के नाम पर एक गाली हो.


विजय हंसते हुए- चल सबसे पहले तो तेरे मन में उठ रहे सारे सवालों का जवाब दे देता हूँ. तुझे बता दूँगा तो मेरा भी मन थोड़ा हल्का हो जाएगा. जानना चाहती हैं ना कि आख़िर मैं तेरे आशिक़ को क्यों मारना चाहता हूँ और उससे मेरी दुश्मनी की वजह क्या हैं तो सुन..................................


बात तब की हैं जब मैं 8 साल का था. उस समय राहुल भी मेरी ही उमर का था. उसके पिताजी और मेरे पिताजी एक अच्छे दोस्त थे. रोज़ रोज़ आना जाना उठना बैठना सब होता था. ऐसे ही दिन अच्छे से बीत रहे थे. राहुल के पापा एक सर्जिन थे. वो अक्सर ट्रीटमेंट के लिए मनाली से बाहर जाया करते थे. और जब भी जाते वो अपनी पत्नी को साथ लेकर जाते और राहुल को हमारे घर छोड़ जाते. क्यों कि वो अभी पड़ाई कर रहा था जिसके वजह से बार बार जाने आने से उसकी पड़ाई डिस्टर्ब होती थी. ऐसे ही एक रोज़ वो दोनो अपनी कार में बैठकर एक एमर्जेन्सी ऑपरेशन के लिए निकल पड़े तभी तेज़ी से उनके सामने से एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया. वो इसी पहले की कुछ समझ पाते ट्रक बुरी तरह से उनके कार से टकरा चुकी थी. आक्सिडेंट इतना ज़बरदस्त था कि राहुल के मम्मी पापा की ऑन दा स्पॉट डेत हो गयी थी. और वो ट्रक ड्राइवर भी उस आक्सिडेंट में मारा गया था.


जब ये खबर मेरे पापा और मम्मी को पता लगी तो उनको बहुत बड़ा झटका लगा. उन्हें फिर राहुल की चिंता सताने लगी. वो नहीं समझ पा रहे थे कि राहुल को इस बारे में कैसे बतायें. फिर एक दिन मेरे पिताजी ने हिम्मत कर के ये बात राहुल को बता दी. राहुल का तो रो रो कर बुरा हाल था. ना वो खाना ख़ाता था और ना ही स्कूल जाता था. बस दिन रात रोता रहता था. इसकी सदमे की वजह से उसकी तबीयात बिगड़ने लगी. तभी डॉक्टर ने राहुल को सदमे से बाहर निकालने की बात कही. मेरे पिताजी ने उसे अपने बेटे का दर्जा दे दिया. उस दिन के बाद से वो हमारे साथ हमारे ही घर पर रहने लगा.


राहुल बचपन से ही सीधा साधा लड़का था. वो ज़्यादा ना बेवजह किसी से बात करता और ना ही किसी से ज़्यादा दोस्ती रखता. राहुल धीरे धीरे पढ़ाई पर कॉन्सेंट्रेट करने लगा और समय के साथ साथ मेरे पिताजी और मम्मी की चाहत उसके प्रति बढ़ती गयी. मेरा शुरू से ही पढ़ाई में मन नही लगता था और धीरे धीरे मेरे कुछ आवारा लड़कों से मेरी दोस्ती हो गयी. मेरा एक छोटा भाई भी था उसका नाम कुणाल था. वो मुझ से दो साल छोटा था. वक़्त बीतता गया और मैं धीरे धीरे नशे का अडिक्ट हो गया. वहीं मेरा छोटा भाई भी मुझसे दो कदम आगे निकल गया. वो तो यहाँ तक ड्रग्स भी छुप छुप के लेने लगा था और कभी कभी घर से पैसे भी चुराता था.


ये सब करते हुए एक दिन राहुल ने देख लिया था और जाकर मेरे पापा को सारी बातें बता दी. बस फिर क्या था हम दोनो की खूब पिटाई हुई. मगर ड्रग्स का लत इतनी आसानी से कहाँ छूटती है. मेरा भाई धीरे धीरे ग़लत काम में अडिक्ट हो गया. वहीं दूसरी तरफ राहुल दिन ब दिन स्कूल और सारी चीज़ों में टॉप करता रहा. जिसके वजह से मेरे मा बाप की नज़र में वो सबका लाड़ला बन गया और उसके वजह से हमारे प्रति चाहत मेरे मा बाप की कम होने लगी. यही सब देखकर मुझे अब राहुल से जलन होने लगी थी. मगर मैं उसके खिलाफ जा भी तो नहीं सकता था. अगर वो कोई ग़लत काम करता तभी तो मैं उसकी कमी निकालता. मैं भी बस मौके की तलाश में रहता मगर कभी सफल नहीं हो पाया.


राहुल को हमारे घर रहते करीब 10 साल हो चुके थे. और इधेर कुणाल ड्रग्स का सप्लाइयर बन गया था. और मैं भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था. अपने भाई की वजह से मैं भी धीरे धीरे ड्रग्स लेने लगा था. और या यू कह लो कि मैं भी ड्रग्स का अडिक्ट हो चुका था. फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी.
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