RE: kamukta kahani अय्याशी का अंजाम
उधर बाहर गेट के पास प्रमोद यहाँ का चौकीदार और हरिया जो साफ-सफ़ाई करता है.. दोनों बातें कर रहे थे।
दोस्तो, हॉस्टल के कैम्पस में एक कमरा बना हुआ है.. जहाँ ये दोनों साथ में रहते हैं। प्रमोद रात को एक राउंड लगा कर कमरे में आ जाता है.. मगर वो बीती रात को काफ़ी लेट आया था।
हरिया- अरे प्रमोद भाई.. रात को बड़े देर से आए तुम.. भाई कहाँ रह गए थे?
प्रमोद- अरे का बताएं भाई.. जब से यहाँ आया हूँ.. साली नींद ही नहीं आती है.. कैसी सुन्दर-सुन्दर लड़कियाँ है यहाँ पर.. देख कर बहुत मज़ा आता है।
हरिया- ओये.. चुप कर ओ पगले.. कोई सुन लेगा और ये रात को तू ऐसे गैलरी में मत घूमा कर.. किसी दिन पकड़ा गया ना.. तो नौकरी तो जाएगी साथ में पिटाई भी खूब होगी..
प्रमोद- अबे हट.. कौन ससुरा हमको पकड़ेगा.. और साला मैं कौन सा किसी के साथ ज़बरदस्ती करता हूँ.. बस देख कर मज़ा ही तो लेता हूँ.. तू जानता नहीं है.. यहाँ की लड़कियों की बुर बहुत फड़फ़ड़ाती है.. साली आपस में रगड़वा कर मज़ा लेती हैं.. एक से बढ़कर एक हैं।
हरिया- हाँ मैं सब जानता हूँ.. मगर ये सब बड़े घर की छोकरियाँ हैं.. अपना कुछ नहीं हो सकता यहाँ..
प्रमोद- तेरा तो पता नहीं.. पर मेरा बहुत कुछ होगा.. तू नहीं जानता मैंने रात कितना मज़ा किया है यार..
हरिया- ओह्ह.. क्या बात करता है? किसी को पटा लिया क्या.. भाई बता ना.. कौन है वो लड़की..? और क्या किया रात को?
प्रमोद- अभी नहीं.. फिर कभी बताऊँगा अभी मुझे ऑफिस में जाना है.. ठीक है चलता हूँ।
ओके फ्रेंड्स.. यहाँ कुछ खास नहीं हुआ.. वैसे आपको कुछ सोच में जरूर डाल दिया मैंने.. कि रात को काजल के साथ कोई और था या ये प्रमोद था.. चलो इसका भी पता लग जाएगा। अभी आगे देखते हैं कि फार्म पर क्या हुआ?
दोनों भाई रात को देर तक पीते रहे थे.. तो अब तक सो रहे थे।
इधर रानी जल्दी उठ गई और नहा कर बाकी नौकरों के पास रसोई में पहुँच गई.. उसको जोरों की भूख लगी थी।
वहाँ किसी ने उससे ज़्यादा बात नहीं की और उसको नाश्ता दे दिया। वैसे रानी को भी उनसें बात नहीं करनी थी.. क्योंकि जय ने मना किया था।
वो अपने कमरे में आ गई और सोचने लगी कि रात जो हुआ.. वो सही था या नहीं..? बस इसी सोच में वो वहीं बैठी रही.. कुछ देर बाद उसको कुछ समझ आया तो वो जय के कमरे की तरफ़ गई।
जब वो अन्दर गई.. दोनों भाई आराम से एक बिस्तर पर सोए हुए थे। रानी उनके पास गई और धीरे से जय को उठाया।
रानी- बाबूजी.. उठो देखो.. कितनी देर हो गई है.. मैं क्या काम करूँ.. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.. उठो ना..
जय की आँख खुली तो उसने रानी को पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया।
जय- अरे जानेमन.. मैं तुम्हें यहाँ काम करने के लिए नहीं लाया हूँ। तुम बस हमारी सेवा करो और सुबह का वक़्त सेवा करने के लिए सबसे अच्छा होता है.. चल आ जा..
रानी- क्या बाबूजी.. आप भी ना.. चलो उठो.. मुँह-हाथ धो लो.. कुछ खाना खालो उसके बाद जितनी सेवा करवानी है.. करवा लेना..
उन दोनों की बात सुनकर विजय भी उठ गया था और रानी को देख कर मुस्कुराने लगा।
विजय- रानी सारी सेवा जय की करेगी तो मेरा क्या होगा?
रानी थोड़ा शर्माते हुए बोली।
रानी- ऐसी बात नहीं है बाबूजी.. मैं तो आप लोगों की दासी हूँ.. आप जब कहो सेवा में हाजिर हूँ।
विजय- अच्छा अच्छा.. ठीक है.. जा रसोई में जाकर बोल दे.. हम 10 मिनट में आते हैं.. हमारा नाश्ता रेडी कर दे.. ठीक है..
रानी वहाँ से चली गई तो जय ने विजय को देखा और उसको मजाक से एक मुक्का मारा।
जय- क्या बात है मेरे विजय दि ग्रेट कच्ची कली को भोगने का मन बना लिया क्या तूने.. हा हा हा..
विजय- अब क्या बताऊँ भाई.. कल जब इसको नंगी देखा तो मेरी तो आँख चकरा गई.. साली क्या क़यामत है.. वैसे मानना पड़ेगा.. आपको एक ही रात में लौड़ा चुसवा दिया अपने इसको..
जय- अरे एकदम टाइट माल है यार.. इसका मुँह भी चूत का मज़ा देता है। अब बस बर्दाश्त नहीं होता.. नाश्ते के बाद साली को चोद ही दूँगा..
विजय- अरे ये क्या यार.. सब कुछ तुम ही कर लोगे.. तो मेरा क्या होगा..? इस नाज़ुक तितली का थोड़ा मज़ा मुझे भी लेने दो.. उसके बाद दोनों साथ मिलकर चोदेंगे साली को..
जय- हाँ तू ठीक कहता है.. साली को आगे और पीछे दोनों तरफ़ से बजा कर मज़ा लेंगे.. चल जल्दी तैयार हो ज़ा..
विजय- भाई पर यह बहुत दुबली है.. क्या दोनों का लौड़ा से लेगी.. साली कहीं मर-मरा ना जाए..
जय- अरे ऐसे कैसे मर जाएगी.. आज तक कभी सुन है कि कोई जवान चूत चुदने से मरी है.. हा हा हा हा..
विजय- जो करना है जल्दी कर लेना.. बाद में यहाँ रंगीला और बाकी सब आ जाएँगे।
जय- अरे वो अभी कहाँ आने वाले हैं.. अभी बहुत समय है उनके आने में.. तब तक तो रानी की मस्त चुदाई कर लेंगे हम.. अब सुन पहले तू रानी से मालिश करवा ले और हाँ उसको नंगा कर देना। उसके बाद में आऊँगा और बस साली को फँसा लेंगे अपने लण्डजाल में.. समझ गया ना..
विजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और अब दोनों फ्रेश होने की तैयारी में लग गए। करीब एक घंटा बाद दोनों ने नाश्ता करके अपने प्लान को अंजाम देने की मुहिम शुरू की।
विजय- उफ्फ.. भाई रात को बरसात ने पूरे जिस्म को तोड़ दिया है बदन बहुत दर्द कर रहा है..
जय- अरे ये रानी को किस लिए साथ लाए हैं.. इसके हाथ में जादू है.. तेरा सारा दर्द निकाल देगी.. जा इसको अन्दर ले जा..
रानी- हाँ बाबूजी.. चलो अभी दबा के आपका दर्द निकाल देती हूँ।
विजय और रानी कमरे में चले गए तो विजय ने कपड़े निकाल दिए.. बस अंडरवियर में आ गया। जिसे देख कर रानी शर्मा गई।
विजय- अरे क्या हुआ रानी.. ऐसे दूर क्यों खड़ी हो.. कपड़े निकाल कर ही सही मालिश होती है।
रानी- बाबूजी आप लेट जाओ.. मैं अभी कर देती हूँ.. बताओ कहाँ दर्द है?
विजय- अरे तू पास तो आ.. ऐसे वहाँ खड़ी होकर दबाएगी क्या.. रात को तो बिना कपड़ों के जय को बड़ा मज़ा दे रही थी.. अब क्या हो गया?
रानी- नहीं नहीं बाबूजी.. ऐसी बात नहीं है.. आप रात की बात ना करो.. मुझे शर्म आती है।
विजय- अरे इसमें शर्म कैसी.. यहाँ आ.. जो मज़ा जय ने दिया.. वो मैं भी दूँगा और सच कहता हूँ.. उससे ज़्यादा दूँगा.. तू मेरे पास तो आ।
रानी का चेहरा शर्म से लाल हो गया था.. वो धीरे से विजय के पास जाकर बैठ गई।
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