Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 01:18 PM,
#30
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-28

तभी गेट खट-खटाने की आवाज़ आई तो नाज़ी जल्दी से अपनी जगह पर बैठ गई. रेहाना एक नर्स के साथ अंदर आई नर्स के हाथ मे एक बड़ी सी ट्रे थी जिसमे शायद वो हमारे लिए खाना लाई थी. नाज़ी ने खड़ी होके नर्स से प्लेट पकड़ ली ऑर फिर नर्स ऑर रेहाना ने मिलकर मुझे बिस्तर पर बिठा दिया फिर एक कटोरे मे रेहाना मुझे खिचड़ी खिलाने लगी जो शायद नाज़ी को अच्छा नही लग रहा था इसलिए वो अजीब से मुँह बनाके कभी रेहाना को कभी मुझे घूर-घूर के देख रही थी.

नाज़ी : डॉक्टरनी जी लाइए मैं खिला देती हूँ आप रहने दीजिए.

डॉक्टर : (मुस्कुराते हुए) ठीक है ये लो. (मुझे देखते हुए) नीर आप आराम से खाना खा लो उसके बाद आपके कुछ टेस्ट करने है नर्स यही है जब आप खाना खा लो तो बता देना फिर मैं आपके कुछ टेस्ट करूँगी ठीक है.

मैं : (खाते हुए हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

उसके बाद मैने ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना खाया अब मैं काफ़ी बेहतर महसूस कर रहा था कमज़ोरी भी महसूस नही हो रही थी मैं अब बिना कोई सहारे के अपने पैरो पर खड़ा हुआ ऑर नर्स हम को एक ठंडे से कमरे मे ले गई जहाँ एक बड़ी सी मशीन थी ऑर उसके पास डॉक्टर रेहाना फाइल्स हाथ मे लिए ही खड़ी थी. उसने एक नज़र मुझे मुस्कुराकर देखा ऑर फिर मशीन पर लेटने का इशारा किया मैं चुप-चाप उस मशीन पर लेट गया.

डॉक्टर : नीर कोई लोहे की चीज़ तो नही तुम्हारे पास मेरा मतलब है कोई घड़ी चैन या अंगूठी पहनी है तुमने इस वक़्त.

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए) जी नही

डॉक्टर : अच्छा चलो अब अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट जाओ

फिर मैं आराम से वहाँ लेटा रहा ऑर एक रोशनी मेरे सिर से लेके पैर तक बार-बार गुज़रती रही कुछ ही पल मे मुझे एक टीच की आवाज़ आई ऑर उसके बाद अगली आवाज़ रेहाना की थी जो मेरे कानो से टकराई.

डॉक्टर : बस हो गया नीर अब आप उठ सकते हैं.

मैं : बस इतना ही था ऑर कुछ नही.

डॉक्टर : (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते ) उऊहहुउ... चलो अब आप बाहर जाके बैठो मैं ख़ान से बात करके अभी आती हूँ

उसके बाद मैं वहाँ से खड़ा हुआ ऑर नर्स मुझे ऑर नाज़ी को एक कमरे मे छोड़ गई जहाँ सामने पड़े सोफे पर हम दोनो बैठ गये ऑर डॉक्टर रेहाना का इंतज़ार करने लगे. कुछ देर बाद ही डॉक्टर रेहाना ऑर ख़ान दोनो एक साथ कमरे मे आए जिनके हाथ मे कुछ पेपर्स थे ऑर वो आपस मे किसी बात पर बहस कर रहे थे. कमरे मे आते ही मेरे सामने दोनो नॉर्मल हो गये ओर मुझे मुस्कुरकर देखने लगे.

ख़ान : चलिए जनाब आपको घर छोड़ आता हूँ.

मैं : बस इतना सा ही काम था.

ख़ान : हंजी बस इतना सा ही काम था बाकी आपका ऑर कुछ ज़रूरत होगी तो फिर आना पड़ेगा.

मैं : आ तो मैं जाउन्गा लेकिन मेरे खेत.

ख़ान : अर्रे उसकी फिकर तुम मत करो कुछ दिन के लिए नये आदमी रख लो ना यार.

मैं : साहब आदमी रखने की हैसियत होती तो मैं खुद काम क्यो करता

ख़ान : अर्रे तुम फिकर मत करो अब तुम मेरे साथ हो पैसे की फिकर मत करो तुमको जो भी चाहिए हो मुझे फोन कर देना तुम्हारा काम हो जाएगा.

उसके बाद उसने मुझे अपना कार्ड दिया जो मैने जेब मे डाल लिया फिर रेहाना ने नाज़ी को मेरे लिए कुछ दवाइयाँ भी साथ दी ऑर साथ ही कुछ हिदायतें भी दी कि किस वक़्त मुझे कौनसी दवाई देनी है.

डॉक्टर : नीर वैसे तो मैने नाज़ी को सब समझा दिया है वो तुमको वक़्त पर दवा देती रहेगी फिर भी मैं हफ्ते मे एक बार या तो तुम खुद अपने चेक-अप के लिए यहाँ आ जाओ या फिर मुझे तुम्हारे गाँव आना पड़ेगा बताओ कैसे करना पसंद करोगे.

मैं : जी मैं हर हफ्ते शहर नही आ सकता बेहतर होगा आप ही आ जाए.

डॉक्टर : (मुस्कुरकर) कोई बात नही

फिर मैं ख़ान ऑर नाज़ी उसी दरवाज़े से बाहर निकल गये जहाँ से आए थे. लेकिन हैरत की बात ये थी कि सुबह जब हम यहाँ आए थे तो बाहर बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे लेकिन अब वहाँ कोई आदमी मोजूद नही था पूरा दफ़्तर खाली पड़ा था

मैं : ख़ान साहब यहाँ सुबह कुछ लोग काम कर रहे थे ना वो कहाँ गये.

ख़ान : वो यही काम करते हैं अब उनके घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए चले गये अंदर हमारा अपना सीक्रेट हेडक्वॉर्टर है. अंदर मेरी मर्ज़ी के बिना कोई नही जा सकता.

मैं : अच्छा ठीक है.

ऐसे ही बाते करते हुए हम बाहर निकल गये ऑर जीप मे बैठ गये ख़ान ड्राइवर की साथ वाली सीट पर आगे बैठा था जबकि मैं ओर नाज़ी फिर से पिछे ही बैठ गये नाज़ी वापिस मेरे साथ चिपक कर बैठी थी ऑर मेरे कंधे पर सिर रखा था पूरे रास्ते कोई खास बात नही हुई.

जब हम घर आए तो फ़िज़ा बाहर ही खड़ी थी जो शायद हमारा ही इंतज़ार कर रही थी जीप को देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा ऑर जीप के रुकते ही वो तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आई ऑर जीप के अंदर देखने लगी. फिर हम सब घर के अंदर चले गये जहाँ बाबा हॉल मे ही कुर्सी पर बैठे थे शायद वो भी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे.

बाबा : आ गये बेटा. (ख़ान की तरफ देखते हुए हाथ जोड़कर) ख़ान साहब आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे मेरा बेटा वापिस कर दिया.

ख़ान : बाबा जी आप बुजुर्ग है शर्मिंदा ना करे हाथ जोड़कर (बाबा के हाथो को पकड़ते हुए) मैने आपसे कहा ही था कि अगर ये बे-गुनाह है तो इसे कुछ नही होगा.

फ़िज़ा : ख़ान साहब आप बैठिए मैं चाय लेके आती हूँ (नाज़ी को इशारे से बुलाते हुए)

फिर मैं बाबा ओर ख़ान वही हॉल मे ही कुर्सियो पर बैठ गये ऑर ख़ान मेरे बारे मे बाबा से पुछ्ता रहा.

ख़ान : बाबा जी मुझे आपसे अकेले मे कुछ बात करनी है.

बाबा : जी ज़रूर....(मेरी तरफ देखते हुए) बेटा जाके देखो चाय का क्या हुआ.

मैं : जी बाबा (ऑर मैं उठकर रसोई मे चला गया)

ख़ान ऑर बाबा मे क्या बात हुई मुझे नही पता लेकिन रसोई मे घुसते ही फ़िज़ा फिकर्मन्दि से मेरा मुँह पकड़कर मेरे सिर की चोट देखने लगी उसको शायद आते ही नाज़ी ने सब कुछ बता दिया था इसलिए उसके चेहरे पर भी मेरे लिए फिकर सॉफ झलक रही थी.

फ़िज़ा : ये ख़ान कितना कमीना है देखो कितनी चोट लग गई.

मैं : अर्रे तुम तो ऐसे ही घबरा जाती हो कुछ नही हुआ मैं एक दम ठीक हूँ ज़रा सी खराश है ठीक हो जाएगी.

फ़िज़ा : ऑर कही तो चोट नही लगी.

मैं : (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते हुए) उऊहहुउ....

फिर हम कुछ देर ऐसे ही रसोई मे खड़े रहे ऑर नाज़ी दिन भर क्या-क्या हुआ वो सब फ़िज़ा को बताती रही मैं बस पास खड़ा दोनो की बाते सुनता रहा ऑर मुस्कुराता रहा तभी मुझे बाबा की आवाज़ आई तो मैं फॉरन बाहर चला गया जहाँ बाबा ऑर ख़ान बैठे थे.

बाबा : बेटा ख़ान साहब कह रहे हैं कि अब तुम आज़ाद हो लेकिन जब भी इनको तुम्हारी मदद की ज़रूरत होगी तो तुमको जाना पड़ेगा तुमको कोई ऐतराज़ तो नही है.

मैं : बाबा आप हुकुम कीजिए आप जो कहेंगे वही मेरी मर्ज़ी होगी.

बाबा : ठीक है बेटा.... देखिए ख़ान साहब मैने कहा था ना आपसे. (मुस्कुराकर)

ख़ान : जी जनाब आप सही थे. मैं सोच भी नही सकता था कि शेरा जैसा इंसान इतना बदल सकता है आज सच मे मुझे बेहद खुशी है कि ये एक नेक़ इंसान की जिंदगी गुज़ार रहा है.

अभी हम बाते ही कर रहे थे कि एक काले रंग की कार हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई. जिससे हम सब का ध्यान बाहर की तरफ गया. ये कार तो हीना की थी जिसमे मैं उसको कार चलाना सिखाता था. तभी कार के पिछे वाला गेट खुला ऑर हीना बाहर निकली मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई ऑर वो सीधा ही अंदर चली आई. उसने आते ही अदब से सबको सलाम किया फिर बाबा से दुआ ली.

हीना : बाबा देख लो आज फिर नीर नही आए मुझे गाड़ी सिखाने के लिए. (रोने जैसा मुँह बनाके)

बाबा : अर्रे बेटी वो आज कुछ काम था इसलिए शहर जाना पड़ा नीर को.

ख़ान : ये मोहतार्मा कौन है (घूरते हुए)

बाबा : ये हमारे गाव के सरपंच की बेटी हैं जिनको नीर कार चलानी सिखाता है.

ख़ान : अच्छा ये तो बहुत नेक़ बात है. बाबा जी अब मुझे भी इजाज़त दीजिए फिर कभी मुलाक़ात होगी.

बाबा : अच्छा बेटा आते रहना.(मुस्कुराकर)

फिर ख़ान ऑर बाबा बाते करते हुए दरवाज़े तक चले गये ऑर मैं हीना के पास ही बैठा रहा इतने मे नाज़ी चाय लेके आ गई ऑर हीना को देखते ही उसका पारा चढ़ गया. लेकिन फिर भी उसने हीना को सलाम किया ऑर टेबल पर चाय रख दी.

नाज़ी : आप यहाँ कैसे हीना जी.

हीना : वो आज नीर जी हवेली नही आए तो मैने सोचा मैं ही चली जाती हूँ. यहाँ आई तो पता चला कि आप लोग भी अभी शहर से आए हो.

नाज़ी : जी अभी आए हैं ऑर बहुत थके हुए हैं.

हीना : ये सिर मे क्या हुआ नीर .

मैं : कुछ नही बस छोटी सी चोट लग गई थी (मैने हीना को कुछ भी नही बताया था अपने बारे मे इसलिए ये बात भी छुपानी पड़ी)

हीना : ख्याल रखा करो ना अपना. दिखाओ कितनी चोट लगी है.

नाज़ी : उसकी कोई ज़रूरत नही है चोट लगी थी पट्टी हो चुकी है अब क्या पट्टी खोलकर दिखाएँगे.

हीना : मेरा मतलब था कि इनका ठीक से ख़याल रखा करो.

नाज़ी Sadगुस्से मे) हम ठीक से ही ख्याल रखते हैं.

हीना : हाँ वो तो मैं देख ही रही हूँ तुम कितना ख्यालो रखती हो तभी इतनी चोट लग गई है.

मैं : (दोनो को शांत करने के लिए) अर्रे तुम हर वक़्त लड़ने क्यों लग जाती हो. कुछ नही हुआ ज़रा सी खराश है बस ऑर हीना मैं अगर तुमको कल गाड़ी चलानी सिखाउ तो कोई समस्या तो नही.

हीना : जी नही कोई समस्या नही है पहले आप ठीक हो जाइए गाड़ी सीखने के लिए तो सारी उम्र पड़ी है मुझे पता होता कि आपको चोट लगी है तो मैं डॉक्टर साथ ही लेके आती. (मेरा हाथ पकड़ते हुए)

मैं : नही उसकी कोई ज़रूरत नही अब मैं एक दम ठीक हूँ (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी को शायद हीना का इस तरह मेरा हाथ पकड़ना अच्छा नही लगा था इसलिए उसने चाय का कप हीना पर गीरा दिया.

हीना : (दर्द से कराहते हुए) ससस्स आयईयीई....

नाज़ी : ओह्ह माफ़ करना कप हाथ से फिसल गया

मैं : हीना ज़्यादा तो नही लगी (हीना के घुटने से सलवार पकड़कर झाड़ते हुए)

हीना : कोई बात नही मैं ठीक हूँ (फीकी मुस्कान के साथ)

मैं : नाज़ी ये क्या किया तुमने

नाज़ी : मैं जान-बूझकर नही किया माफ़ कर दो.

हीना : कोई बात नही.... बाथरूम कहाँ है

मैं : नाज़ी इनको बाथरूम ले जाओ ऑर सॉफ करो अच्छे से.

नाज़ी : (गुस्से से मुझे देखते हुए हीना को अंदर लेके चली गई) इस तरफ आओ

तभी बाबा भी ख़ान को रुखसत करके अंदर आ गये.

बाबा : ये हीना बेटी कहाँ गई अभी तो यही थी.

मैं : कुछ नही बाबा वो ज़रा नाज़ी के हाथ से कप फिसल गया था इसलिए हीना पर चाय गिर गई बस वही धुल्वाने लेके गई है.

बाबा : अच्छा... ये नाज़ी भी ना इसको ख्याल रखना चाहिए घर आए मेहमान पर कोई चाय गिराता है भला.

मैं : कोई बात नही बाबा उसने जान-बूझकर तो गिराई नही ऑर फिर ग़लती तो किसी से भी हो सकती है.

कुछ देर बाद हीना ऑर नाज़ी बाहर आ गई ऑर मैं हीना को देखकर हँसे बिना नही रह सका क्योंकि उसने मेरे कपड़े पहने थे जो उसको काफ़ी बड़े थे. हीना को देखकर बाबा भी हँसने लगे ऑर हीना खुद भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी. नाज़ी गुस्से से लाल हुई पड़ी थी ऑर वो बिना कुछ बोले ही अंदर चली गई.

बाबा : अर्रे बेटी ये नीर के कपड़े क्यो पहन लिए.

हीना : बाबा वो मेरे कपड़े खराब हो गये थे तो धोने से मेरी सारी सलवार गीली हो गई थी ऑर मुझे अंदर इनके ही कपड़े नज़र आए तो मैने वही पहन लिए.

बाबा : कोई बात नही.

हीना : अच्छा बाबा मैं अब चलती हूँ (मुस्कुराते हुए)

बाबा : अच्छा बेटा....माफ़ करना वो नाज़ी मे थोड़ा बच्पना है इसलिए उसने तुम्हारे कपड़े खराब कर दिए.

हीना : कोई बात नही बाबा इसी बहाने मुझे नीर के कपड़े पहने का मोक़ा मिल गया (हँसते हुए) ऐसा लग रहा है अब्बू के कपड़े पहने हो बहुत ढीले ऑर बड़े है.

मैं : अर्रे कोई बात नही घर तक तो जाना है वैसे भी तुमने कौनसा पैदल जाना है बाहर कार मे ही तो जाना है फिकर मत करो कोई नही देखेगा. (मुस्कुराते हुए)

हीना : कैसे जाउ... आज तो लगता है पैदल ही जाना पड़ेगा.

मैं : (हैरानी से) क्यो बाहर कार है ना

हीना : सिर्फ़ कार ही है ड्राइवर नही है मुझे लगा आप आज भी कार चलानी सिख़ाओगे इसलिए ड्राइवर को मैने तब ही भेज दिया था.

बाबा : अर्रे कोई बात नही बेटी नीर तुमको गाड़ी मे घर छोड़ आएगा फिर तो ठीक है ना.

हीना : हाँ ये ठीक रहेगा. (मुस्कुराते हुए) चलो नीर फिर चलते हैं (कार की चाबी मेरी ओर बढ़ाते हुए)

मैं : (कार की चाबी पकड़कर) हाँ चलो... (मुस्कुराते हुए) बाबा मैं ज़रा हीना को घर तक छोड़कर अभी आता हूँ.

बाबा : अब बेटा जब जा ही रहे हो तो गाड़ी चलानी भी सीखा देना इसी बहाने ये भी खुश होके जाएगी.

हीना : अर्रे वाह ये तो ऑर भी अच्छा है चलो आज मैं भी नीर बनके ही गाड़ी चलाउन्गी. (हँसते हुए)

मैं : ठीक है पहले चलो तो सही.
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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