12-09-2019, 12:17 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 11
समीर : अब तो ये ड्रिंक ले लीजिये हमारी दोस्ती के नाम? ये ड्रिंक नही है। और हां ये रहा मेरा कार्ड इसके पीछे मेरे पर्सनल नम्बर है। अगर दिल करे हमसे बात करने का तो कॉल करना। वैसे तुम हो बहुत खूब सूरत।
समीर चंचल से इतना बोलकर तुरंत वहां से निकल गया लेकिन चंचल वहीं खड़े खड़े समीर के बारे में सोचती रही। उसे एक और समीर से हुई ये पहली मुलाकात इंटरेस्टिंग लगी वही दूसरी और वो डर ही रही थी। ये तो खुद चंचल को भी पता नही था कि वो डर क्यों रही है। इसी डर के चलते चंचल कुछ भी समझ नहीं पा रही थी। चंचल ने समीर के दिये हुए कार्ड को फेंकने चाहा लेकिन उसी वक़्त उसके ड्राइवर का कॉल आ गया। ड्राइवर का कॉल देख कर चंचल ने तुरंत समीर का कार्ड अपने पर्स में रखा और ड्राइवर के साथ कार में बैठ कर आफिस गयी। करीब 2 घण्टे बाद चंचल आफिस से सीधे घर निकल गयी।
अब आगे.....
चंचल पूरे दिन की मीटिंग्स और आफिस वर्क से काफी थक गई थी इसलिए घर आते ही सबसे पहले तो चंचल नहाने के लिए वाशरूम चली गयी। नहाते वक्त जब शावर की बूंदे चंचल के बदन को स्पर्श करते हुए नीचे की और रेंगते हुए गिरने लगी तो उन पानी की बुंदिन से चंचल के बदन में अजीब सी हलचल होने लगी।
चंचल आंखें मूंदे अपने शरीर के हर हिस्से को बड़ी ही नज़ाक़त से सहलाते हुए नहाने लगी।
और बस देखते ही देखते सावन में आग लग गयी। एक तो चंचल और सुरेश के बीच के शारीरिक संबंध बने हुए करीब करीब 15 दिन हो चुके थे। इन 15 दिनों में चंचल को सेक्स की बहुत जरूरत महसूस हुई लेकिन वो कर भी क्या सकती थी। लेकिन आज ये चंचल के बर्दाश्त के बाहर था।
चंचल अपने बदन को सहलाते हुए सुरेश को याद कर रही थी। तकरीबन 10 मिनट बाद चंचल वाशरूम से बाहर निकली। आते ही चंचल ने एक टॉवल अपने चारों और लपेट लिया। जो चंचल के अधकच्चे आमों से लेकर उसकी मांसल जांघों तक था। चंचल के गीले बालों से पानी की बूंदे उसके कंधो पर अपना बसेरा डाल रही थी। चंचल अपने बिस्तर पर लेट कर तुरंत अपना फ़ोन निकाला और सुरेश को कॉल कर दिया।
सुरेश कॉल पर :-
सुरेश : हेलो, डार्लिंग , कैसी हो?
चंचल: बहुत परेशान...
सुरेश: क्यों? क्या हुआ? कोई बिज़नेस प्रॉब्लम?
चंचल: नहीं तुम्हारे बिज़नेस को तो में संभाल लुंगी लेकिन मुझे कौन संभालेगा?
सुरेश: क्या मतलब? तुम्हे क्या हुआ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना?
चंचल: सुरेश कम ऑन, मुझे कुछ नहीं हुआ। बस तुम्हारी याद आ रही थी।
सुरेश : वह सॉरी डार्लिंग बस कुछ दिनों की बात और है फिर तो में आ ही रहा हूँ ना।
चंचल: सुरेश..... एक्चुअली ई नीड यु नाउ!
सुरेश: क्या मतलब नाउ? मैं कैसे आ सकता हूँ अभी के अभी?
चंचल: ओह सुरेश ट्रॉय टू अंडर्सटेण्ड
सुरेश: चंचल जो भी कहना है साफ साफ कहो, तुम्हे मालूम है ना मैं अभी आफिस में हूँ। और अभी मीटिंग स्टार्ट होने वाली है।
चंचल: ओके देन लिसेन, मुझे सेक्स चाहिए।
क़रीब 2 मिनेट के सन्नाटे के बाद....
सुरेश: ओह तो मेरी इतनी याद आ रही है। लेकिन मैं कैसे ? अभी ? जान तुम तो जानती हो ना।
चंचल: सुरेश हम फ़ोन सेक्स तो कर ही सकते है ना।
सुरेश: चंचल , कैसी बात कर रही हो? मैं आफिस में हूँ।
(सुरेश को एक लड़की उसकी मीटिंग के लिए सूचित करने आती है।
चंचल: यार थोड़ी ही देर की तो बात है और फिर....
सुरेश: (चंचल की बात काट ते हुए) सॉरी चंचल आई हैव टू गो। और तुम ना ठंडे पानी से नहाओ वरना परेशान होती रहोगी। इन 15 दिनों में बहुत बदमाश बाते तुम्हारे दिमाग मे आने लगी है।
सुरेश चंचल पर हंसते हुए फ़ोन काट देता है और चंचल सुरेश सुरेश करते रह जाती है। बड़े बुझे मन से चंचल अपने बिस्तर पर कपड़े बदल कर लेट जाती है लेकिन आज उसका शरीर उसके बस में नहीं था। चंचल की चूत किसी भट्टी की तरह टप रही थी। चंचल इस वक़्त अपने पति के साथ के लिए तड़प रही थी और उसका पति उसकी परवाह किये बिना उस पर हंसते हुए फ़ोन काट देता है। चंचल ऐसे विचारों से घिर कर सुरेश पर गुस्सा कर रही थी।
सारी रात चंचल बिस्तर पर इधर उधर करवटें बदलती रही। नींद तो जैसे कोशों दूर थी। शरीर की गर्मी में तड़पते हुये चंचल को कब सुबह हो गयी उसे पता तक नही चला। कमरे में लगी एयर कंडिशनर तक चंचल के शरीर के ताप को कम न कर सके।
सुबह चंचल उठी तो जल्दी जल्दी तैयार होने लगी। तैयार होते हुए चंचल बार बार सुरेश की बेरुखी को कोस रही थी।
चंचल हालांकि सुरेश से बहुत प्यार करती है लेकिन फिलहाल वो उन हालतों से गुज़र रही है जिन में उसके लिए कुछ सोच पाना तक मुमकिन नहीं हो पा रहा। चंचल तैयार होने जे साथ ही जब आफिस के लिए जाने लगी ठीक उसी वक़्त नौकरानी लता भी घर मे आ जाती है। चंचल एक बार सरिता के रूम की तरफ जाने लगती है लेकिन फिर कुछ सोच कर वापस घर के बाहर निकलती है।
चंचल का ड्राइवर चंचल का ही इंतजार कर रहा था। चंचल के आटे ही उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और चंचल के बैठते ही गाड़ी आफिस की और दौड़ा दी। चंचल गाड़ी की विंडो से बाहर की और देखते हुए कुछ सोच रही थी।
चंचल अपनी सोच में कुछ इस तरह से उलझ गयी कि उसे पता तक नही चला कि वो कब आफिस पहुंच गई। करीब दो मिनेट तक चंचल का ड्राइव चंचल के उतरने का वैट करता रहा लेकिन जब चंचल गाड़ी से नहीं उतरी तो मजबूरन उसे चंचल को पुकार कर उसके ख्यालों से बाहर लाना पड़ा। चंचल जैसे ही ख्यालों से बाहर आती है तुरंत खुद को मानसिक तौर पर आफिस के काम काज के लिए तैयार करती है और आफिस में चल देती है। आफिस में करीब 2-3 मीटिंग पुराने टेंडेरेर और एम्प्लोयी के साथ थी जिन्हें पूरा करने के बाद चंचल कुछ सोचने लगती है।
चंचल कुछ देर सोच कर मुस्कुराकर के सुरेश के पास कॉल लगाती है। करीब 2 बार पूरा फ़ोन करने के बाद भी सुरेश की तरफ से कोई जवाब नही मिलता जिस से चंचल और झुंझला जाती है। चंचल का सर दुखने लगता है। चंचल तुरन्त अपने पर्स से सर दर्द की दवा ढूंढने लगती है। लेकिन दवा की जगह चंचल के हाथ मे समीर का विजिटिंग कार्ड आ जाता है।
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12-09-2019, 12:18 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
चंचल: वो क्या है ना अब वो अनजान शक़्स हमे दोस्त नज़र आता है।
समीर: नो वे, अब मुझे उसकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल: (चोंकते हुए) व्हाट? पर क्यों? मैंने क्या गलत किया?
समीर: यु हर्ट माय इगो। इसलिए अब मुझे आपकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल मुस्कुराते हुए) तो अब हमारा दोस्त हमसे क्या चाहता है।
समीर: मेडम चंचल मैंने कहा ना मुझे किसी से दोस्ती नही करनी। और जो मैं चाहता हूं वो आप नही कर सकती सो लीव इट। चलिए ये बताईये चाय लेंगी आप या कॉफी , ठंडा वगैरा।
चंचल: अपने दोस्त को मनाने के लिए जो करना पड़ा वो करूँगी।
समीर: क्यों ज़िद कर रही हो तुम चंचल ये तुम्हारे बस की बात नहीं है। एक तो तुम अमीर परिवार से हो, ऊपर से बिज़नेस वुमन हो।
चंचल: मैं अपनी दोस्ती के लिए कुछ भी कर सकती हूं।
समीर: सोच लो फिर मुकर मत जाना।
चंचल: सोच लिया जब इतनी दूर आयी हूँ तो दोस्ती तो लेकर ही जाउंगी।
समीर: एक बार और सोचलो।
चंचल: अरे बाबा सोच बोलो क्या करना है।
समीर: तुम्हे मेरी ग़ुलाम बनना है। आई वांट यू एज़ माय स्लेव।
चंचल समीर की मुह से निकली बात को सुनकर चोंक जाती है और वही की वही खड़ी रह जाती है। चंचल के मोह से बोल नही फुट रहे थे।
समीर: क्या हुआ? अब नही करनी दोस्ती। अब जाओ अपना बिज़नेस संभालो।
समीर वापस अपने सोफे की तरफ जाने लगता है तभी पीछे से चंचल बोलती है।
चंचल: मुझे मंज़ूर है।
समीर: आर यू स्योर?
चंचल: यस
समीर: देखलो एक बार मेरी स्लेव बनने के बाद तुम्हारे लिए सबसे ज़रूरी सिर्फ में रहूंगा कोई और नहीं।
चंचल: (कुछ देर सोचते हुए) मुझे मंज़ूर है।
समीर सोफे के पास पड़े एक डिब्बे से हाथ पर बांधने वाला बेंड निकालता है और उसे चंचल के हाथ पर पहना देता है।
समीर: ये तुम्हारा मेरी स्लेव होने का प्रूफ है । वादा करो तुम इसे कभी नहीं उतारोगी।
चंचल: ठीक है नहीं उतारूंगी, लेकिन ये मेरे लिए बहुत चीप नही है।
समीर: वो तो वक़्त बताएगा। अभी तुम आफिस जाओ। जब तुम्हारे मालिक को तुम्हारी ज़रूरत होगी तुम्हे कॉल कर दूंगा। और हां आज के बाद तुम्हे हर काम के लिए मुझसे परमिशन लेनी होगी। खाना खाना हो या नहाना धोना हो, कपड़े बदलने से लेकर क्या पहनना है यहां तक भी।
चंचल: व्हाट?
समीर: चंचल का हाथ पकड़ कर उसे दरवाजे के बाहर धकेल देता है । अब जाओ और आज पहली गलती थी इसलिए माफ किया। अगली बार पनिशमेंट दूंगा। और सुनो अगर मेरे कहे अनुसार नही किया तो तुम मेरी स्लाव नहीं मैं तेरा मालिक नहीं। उस दिन के बाद से तुम मुझसे कोई बात नहीं करोगी।
चंचल कुछ बोलना चाहती लेकिन समीर ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया। चंचल काफी कोशिश करती है समीर से बात करने की लेकिन समीर चंचल से कोई बात नही करता। चंचल बन्द दरवाजे से अपने ऑफिस की और चली जाती है।
करीब 2 से ढाई घंटे तक चंचल ये विचार करती रहती है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। क्या समीर की स्लेव बनना?? मैंने ऐसा कैसे कर दिया? और क्यों? ओह शिट अब क्या करूँ। चंचल का एक मन तो समीर के प्रपोजल को स्वीकार कर चुका था लेकिन एक मन उसे अभी भी रोक रहा था। चंचल थक हार कर अपने घर की और निकलने लगती है कि तभी चंचल के पास एक पार्सल लेकर कोई लड़की आती है और चंचल को देकर वापस चली जाए है पार्सल पर समीर का नाम लिखा हुआ था और साथ ही एक चिट्ठी भी थी।
चंचल जल्दी से पार्सल को हाथ मे लेकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है और घर निकल जाती है। रात का खाना सबके साथ खा कर चंचल अपने कमरे में जाति है। बार बार चंचल की नज़र उस पार्सल पर जाती है जो कि समीर ने चंचल के लिए भेजा था। चंचल डरे हुए मन से उस पार्सल को उठती है और उसपर लगी चिट्टी को पढ़ने लगती है।
चिट्ठी:-
चंचल तुमने मेरी स्लेव होने का जो निर्णय किया है , में देखना चाहता हूं कि तुम उसके लायक भी हो या नहीं। इसलिए तुम्हे ये पार्सल भेज रहा हूँ । अगर काल तुम ऑफिस में ये कपड़े पहन कर आओगी तो में समझूँगा तुम पूरी तरह से मेरी स्लेव बनने के लायक हो और अगर नहीं पहना तो इस बात को यहीं खत्म कर दूंगा। ना में तुम्हे जानता हूँ और ना ही तुम मुझे।
चंचल चिट्ठी को पढ़ कर पार्सल को खोलती है तो चोंक जाती है। पार्सल में मॉडर्न कपड़े थे। जो कि अभी तक चंचल पहन कर आफिस में नहीं गयी थी। न ही उसके घर मे ये सब जायज थे। चंचल विचार करती है कि वो ये सब नहीं करेगी। अपने मन को पक्का कर के मन ही मन कहती है वो सिर्फ सुरेश की ग़ुलाम है और किसी की नही।
चंचल सुरेश को कॉल करती है करीब 3 कॉल काटने के बाद सुरेश चंचल की कॉल रात को 1 बजे अटेंड करता है।
सुरेश: क्या यार चंचल कितना परेशान करने लगी हो तुम। जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नही आ रहा कि मैं बिजी हूँ।
चंचल: प्लीज सुरेश ऐसे मत बात करो। तुम जानते हो न मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूं। तुम्हे बहुत याद करती हूँ।
सुरेश: तो क्या करूँ काम धाम छोड़ कर चढ़ जाऊं तुम पर। अगर इतनी ही आग है तू किसी और को चढ़ा लो। मुझे काम के वक़्त परेशान करना भगवान के लिए बंद करो।
चंचल: सुरेश बकवास बैंड करो। मैं तुम्हारी बीवी हूँ। और तुम किस बात का गुस्सा मुझ पर उतार रहे हो। क्या एक बीवी अपने पति को कॉल भी नही कर सकती।
सुरेश: ( अपनी गलती का एहसास करते हुए) देखो चंचल...
चंचल: बस बहुत हुआ मिस्टर सुरेश, में आपकी पत्नी हूँ कोई ग़ुलाम नहीं।
सुरेश: चंचल... सुनो तो।
चंचल गुस्से में फ़ोन काट देती है और बिस्तर पर उल्टी लेट कर रोने लगती है। सुरेश के एक एक शब्द चंचल के सीने को छल्ली कर रहे थे। रोते रोते कब सुबह हो गयी चंचल को भी पता नहीं चला। चंचल ने जब अपना मोबाइल देखा तो उसमें सुरेश की तकरीबन 10 से 12 मिस्ड कॉल थी। चंचल गुस्से में फ़ोन को बिस्तर पर पटक कर बाथरूम में नहाने चली जाती है।
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12-09-2019, 12:19 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
सेक्स टॉयज, बी. ड़ी. एस. ऍम. के ट्रैप्स रखे थे।
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रस्सी से लेकर हथकड़ी और कपड़ों से लेकर के जूतों तक।
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वहीं दूसरी और कुछ बोतल भी थी। इन बोतलों में रखे पानी से ऐसे धुंआ निकल रहा था जैसे लैब कर कोई केमिकल हों। पास मैं कुछ हुक्के , अलग अलग रंग की मोमबत्तियां, तेल, इंजेक्शन्स, गद्दे, कैमरा और कैमरा स्टैंड, और भी बहुत कुछ जो लिखने बैठूंगा तो अगले तीन चार पन्ने उन्हें लिखने में ही भर जाएंगे।
चंचल के लिए ऐसा दृश्य पहली बार वास्तविकता में सामने आया था। किसी फिल्म में उसने कभी देखा हो तो मैं कह नही सकता। लेकिन वास्तविकता में किसी इंसान कर पास ये सब सामन उसने अपने जीवन भर पहली बार देखा था। उस सामान को देखते ही चंचल का दिल घबरा जाता है । चंचल अचानक से समीर की और देखती है।
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समीर: डरो मत ! मैं जानता हूँ मेरी स्लेव इस सब से आसानी से गुजर सकती है। इसलिए इनमे से तुम्हारे काम का कुछ नहीं। ये तो मेरी उन स्लेव के लिए है जो तुम्हारी तरह मेरी अपनी नहीं है। अच्छा एक काम करो। बाहर एक सूटकेस है सोफे के पीछे उसे लेकर घर चली जाना। आज के बाद तुम वही पहनोगी जो मैं कहुंगा और वही खाओगी जिसके लिए तुम्हे मेरी इजाज़त होगी। अगर उसके अलावा कुछ किया तो ध्यान रखना तुम्हे उसकी पनिशमेंट मिलेगी। और पनिशमेंट ऐसी होगी जिसके बारे में तुम कभी सोच भी नहीं सकती।
चंचल एक टक समीर को देखती रह जाती है। लेकिन समीर बस मुस्कुराता हुआ चंचल को देखता रहता है। चंचल धीरे धीरे उस कमरे से बाहर निकल जाती है और समीर का बताया हुआ सूटकेस उठा कर घर निकल जाती है।
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