Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
07-15-2017, 12:47 PM,
#2
RE: Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं कविता दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी. ड्राइंग रूम में बैठे हुए रसोई में जहॉ वो खाना बनाती थी वो सब ड्राइंग रूम में रखे अल्मीराह में लगे आईने (mirror) में स्पष्ट दिखाई पड़ता था. कई बार दीदी पसीना पोछने के लिए लिए अपने पेटीकोट का इस्तेमाल करती थी. पेटीकोट के निचले भाग को ऊपर उठा कर चेहरे का पसीने के पोछते हुए मैंने कई बार मैंने आईने में देखा. पेटीकोट के निचले भाग को उठा कर जब वो थोड़ा तिरछा हो कर पसीना पोछती थी तो उनकी गोरी, बेदाग, मोटी जांघे दिख जाती थी.

एक दिन गर्मी बहुत ज्यादा थी और दीदी सफ़ेद रंग का पेटिकोट और लाल रंग का ब्लाउज पहन कर खाना बना रही थी उस दिन मैं रसोई में फ़्रिज से पानी लेने दो-तीन बार गया. रसोई में दीदी को बहुत पसीना आ रहा था. उसके चेहरे और पेट पर पसीना साफ़ दिख रहा था. पसीने के कारण सफ़ेद रंग का पेटीकोट उनके चुत्तरो से चिपक गया था. ब्लाउज भी काफी भींग गया था और उसकी चुचियों से चिपक गया था. ध्यान से देखने पर मुझे ऐसा लगा जैसे उनकी चुचियों के निप्पल भी ब्लाउज के ऊपर से दिख रहे थे. शायद दीदी ने गर्मी के कारण ब्रा नहीं पहना था. मैं फ्रीज से पानी निकाल कर पी रहा था तभी वो निचे झुक कर कुछ करने लगी, उनके चुत्तर मेरी आँखों के सामने पूरी तरह से उभर कर आ गए. पसीने से भीगा पेटीकोट पूरी तरह से चिपक गया था और दोनों चुत्तर दिखने लगे थे. नीले रंग की पैंटी और उसके किनारे साफ़ नज़र आ रहे थे. पेटीकोट का कपड़ा भींग कर उनकी गांड की दरार में फस जाता अगर उन्होंने पैंटी नहीं पहनी होती. मैं एक दम से घबरा गया और भाग कर जल्दी से रसोई से निकल गया.

शुक्रवार की रातो को मैं आमतौर पर बहुत देर से सोता था. क्योंकि अगले दिन शनिवार और रविवार मेरे ऑफिस में छुट्टी होती थी. ऐसे ही एक शनिवार के दिन मेरे जीवन में एक नया मोर आया. शुक्रवार की रात थी और दीदी हमेशा की तरह 11 बजे रात को सोने चली गई थी. मैं देर रात तक केबल पर फिल्म देखता रहा. अगले दिन शनिवार को मेरी नींद बहुत देर से खुली . छुट्टी के दिनों में दीदी मुझे जगाती नहीं थी. क्योंकि घर में सभी जानते थे की मुझे देर तक सोना पसंद था. उस दिन ऐसा ही हुआ था. मैंने जब घड़ी देखी तो उस समय दिन के 10 बज रहे थे . मैं घबरा कर जल्दी से उठा. अपने चारो तरफ देखते ही मुझे अहसास हो गया की दीदी बहुत पहले उठ चुकी है क्यों की, पुरे घर की सफाई हो चुकी थी . मुझे अपने देर से उठने की आदत पर शर्मिन्दगी हुई. जल्दी से ब्रश किया और चाय के लिए रसोई में जा कर खुद से चाय बना लिया और पेपर पढ़ते हुए चाय पिने लगा. बिना चाय पिए मुझे सुबह में बाथरूम जाने में प्रॉब्लम होती थी. दीदी शायद घर में नहीं थी, पड़ोस में किसी के पास गई थी. चाय ख़तम कर के मैं लैट्रीन चला गया.

ये लैट्रीन पहले सेपरेट नहीं था. मतलब बाथरूम के साथ ही मिला हुआ था और एक ही दरवाजा था. इसके कारण बहुत असुविधा होती थी. क्योंकि एक आदमी के घुसने से ही लैट्रीन और बाथरूम दोनों इंगेज हो जाते थे. अगर घर में ज्यादा सदस्य न हो तब तो कोई प्रॉब्लम नहीं होती थी, मगर गेस्ट्स के आ जाने पर समस्या खड़ी हो जाती थी. लैट्रीन बाथरूम सेपरेट रहने पर दो आदमी एक साथ दो काम कर सकते थे. इसलिए लैट्रीन और बाथरूम दोनों को सेपरेट कर दिया गया. इसके लिए बाथरूम के बीच में लकड़ी के पट्टो की सहायता से एक दिवार बना दी गई. ईट की दीवार बनाने में एक तो खर्च बहुत आता दूसरा वो ज्यादा जगह भी लेता, लकड़ी की दीवार इस बाथरूम के लिए एक दम सही थी. लैट्रीन के लिए एक अलग दरवाजा बना दिया गया.

दस मिनट बाद जब मैंने फ्लश कर लिया और बाहर निकलने वाला ही था की तभी मुझे लगा की कोई बाथरूम का दरवाजा खोल कर अन्दर घुसा है . पता नहीं क्यों मगर मेरे पैर जहाँ थे वही रुक गए. कौन हो सकता है, ये बात ज्यादा सोचने की नहीं थी. मैं थोड़ी देर तक वही दरवाजा बंद होने की आहट का इन्तेज़ार करता रहा. दीदी शायद कोई गीत गुनगुना रही थी. लैट्रीन में उसकी आवाज़ स्पष्ट आ रही थी.

बहुत आराम से उठ कर लकड़ी के पट्टो पर कान लगा कर ध्यान से सुन ने लगा. केवल चुड़ियो के खन-खनाने और गुन-गुनाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. फिर नल के खुलने पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी. मेरे अन्दर के शैतान ने मुझे एक आवाज़ दी, लकड़ी के पट्टो को ध्यान से देख. मैंने अपने अन्दर के शैतान की आवाज़ को अनसुना करने की कोशिश की, मगर शैतान हावी हो गया था. दीदी जैसी एक खूबसूरत औरत लकड़ी के पट्टो के उस पार नहाने जा रही थी. मेरा गला सुख गया और मेरे पैर कांपने लगे. अचानक ही पजामा एकदम से आगे की ओर उभर गया. दिमाग का काम अब लण्ड कर रहा था. मेरी आँखें लकड़ी के पट्टो के बीच ऊपर से निचे की तरफ घुमने लगी और अचानक मेरी मन की मुराद जैसे पूरी हो गई. लकड़ी के दो पट्टो के बीच थोड़ा सा गैप रह गया था. सबसे पहले तो मैंने धीरे से हाथ बढा का बाथरूम स्विच ऑफ किया फिर लकड़ी के पट्टो के गैप पर अपनी ऑंखें जमा दी.

दीदी की पीठ लकड़ी की दिवार की तरफ थी. वो सफ़ेद पेटिको़ट और काले ब्लाउज में नल के सामने खड़ी थी. नल खोल कर अपने कंधो पर रखे तौलिये को अपना एक हाथ बढा कर नल की बगल वाली खूंटी पर टांग दिया. फिर अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपने खुले रेशमी बालो को समेट कर जुड़ा बना दिया. बाथरूम के कोने में बने रैक से एक क्रीम की बोतल उठा कर उसमे से क्रीम निकाल-निकाल कर अपने चेहरे के आगे हाथ घुमाने लगी. पीछे से मुझे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था मगर ऐसा लग रहा था की वो क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर ही लगा रही है. लकड़ी के पट्टो के गैप से मुझे उनके सर से चुत्तरों के थोड़ा निचे तक का भाग दिखाई पड़ रहा था. क्रीम लगाने के बाद अपने पेटिको़ट को घुटनों के पास से पकर कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर थोड़ा तिरछा हो कर निचे बैठ गई. इस समय मुझे केवल उनका पीठ और सर नज़र आ रहा थे. पर अचानक से सिटी जैसी आवाज़ जो की औरतो के पेशाब करने की एक विशिष्ट पहचान है वो सुनाई दी. दीदी इस समय शायद वही बाथरूम के कोने में पेशाब कर रही थी. मेरे बदन में सिहरन दौर गई. मैं कुछ देख तो सकता नहीं था मगर मेरे दिमाग ने बहुत सारी कल्पनाये कर डाली. पेशाब करने की आवाज़ सुन कर कुंवारे लण्ड ने झटका खाया. मगर अफ़सोस कुछ देख नहीं सकता था.
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