kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:38 PM,
#49
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
हार कर उन्होने पूरा ध्यान ब्रा पे लगाया, लेकिन मैं अपने दोनो हाथ वही रखे थी. जहा उस फ्रंट ओपन ब्रा का हुक था. काई बार मेले मे भीड़ मे आप अपना पर्स बचाने के लिए हाथ बार वही रखते है, जहाँ पर्स होता है. जेब कतरे को शायद वैसे ना पता चले लेकिन, बार बार हाथ रख के आप खुद उसे इशारा कर देते है. मेरे साथ यही हुआ. उनका एक हाथ मेरी कमर से फिसल के मेरी पैंटी मे और अपने आप मेरे दोनो हाथ वही पहुँच गये. मुझे अब तक उनकी ' डाइवर्सनेरी टॅक्टिक्स' का अंदाज़ा हो जाना चाहिए था, लेकिन उनकी अँगुलिया अब सीधे मेरे ब्रा के हुक पे गयी और उसने भी साथ छोड़ दिया. अब तो (उनकी बनियान तो काफ़ी पहले उतर चुकी थी) सीधे उनके सीने से मेरे उभार दब रहे थे. मेरे पैरो के बीच भी उनका एक हाथ घुस गया था. जैसे कोई दुश्मन की चौकी पे एक के बाद एक कब्जा करता जाए और वहाँ के लोग नये राजा को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो वही हालत मेरी देह और सब अंगो की हो रही थी. मेरे लाख कोशिश करने पे भी मेरे सारे अंग अब शिथिल हो गये थे और नये रस नये सुख का अब वो खुल के आनंद ले रहे थे.

उनका एक हाथ जो मेरे पैरो के बीच था उसने सहलाना शुरू किया, तो जैसे मक्खन के बीच चाकू घुस जाए, मेरी मुलायम जाँघो के बीच, आगे बढ़ता.. वो इन्नर थाइस के उपर और जब तक मैं अपनी जंघे दुबारा भींचू वो.. पैंटी के उपर से ही मेरे 'वहाँ' तूफान मे पत्ते ऐसी दशा मेरी देह की हो रही थी. एक हाथ मेरी जवानी के कलशो पे और दूसरा सीधे पैंटी के उपर से. पहले तो वो थोड़ी देर दबाते सहलाते रहे, फिर उनकी चतुर उंगलिया साइड से मेरी पैंटी को हल्के सरका कर उनकी उंगलियो का 'वहाँ' वो प्रथम स्पर्श.. आज भी वह वो छुअन मुझे याद है मेरी पूरी देह उनकी हो गयी. पहले तो उनकी अँगुलिया वहाँ छूती रही,

सहलाती रही. फिर मेरी, अब तक कुँवारी, किशोर गुलाबी पंखुड़ियो को हल्के से छेड़ दिया बस मुझे लगा ढेर सारे जलतरन्ग एक साथ बज उठे हो. उनके दूसरे हाथ की उंगलियो मे मेरे यौवन कलश के शिखर थे, जिसे वो कभी दबाते,

कभी सहलाते और कभी फ्लिक कर देते. और थोड़ी ही देर मे मेरे 'प्रेम द्वार' को भिड़ के उनकी अंगुली का टिप मेरे भीतर, मेरी तो जान ही निकल गयी सुख से.

उन्होने उसे हल्के से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. कुछ देर बाद, 'वहाँ' से उनकी उंगली बाहर निकल आई.. मेरा मन कर रहा था कि मना कर दू उन्हे निकालने से. कितने अच्छा लग रहा था मुझे पर लाज के बंधन अभी तक पूरी तरह शिथिल नही हुए थे. लेकिन ये बिचोह थोड़ी ही देर का था. और अबकी जब उनकी अंगुली गई तो मेरी गुलाबी पंखुड़ियो ने कस के भींच लिया उन्हे, जैसे कोई बहुत दिनो तक बिछूड़ कर मिला हो. अब की एक अलग तरह की संवेदना थी.

उनकी अंगुली मे चिकानाई लगी थी, लेकिन अब वह और खुल के अंदर तक जा रही थी. इसका नतीजा ये हुआ कि मैं 'वहाँ' अच्छी तरह 'गीली' हो गयी. मेरे यौन रंध्र अपने आप खुल गये. एक के बाद थोड़ी देर मे वैसलीन लगी दो उंगलियाँ मेरे अंदर थी. दोनो एक साथ थोड़ी देर तक अंदर बाहर होती फिर बाहर निकल के कभी मेरी पंखुड़ियो को छेड़ती. उनका दूसरा हाथ अब पैंटी सरकाने के प्रयास मे जुटा था. मेरे योवन शिखर अब उनके प्यासे होंठो के हवाले थे. लेकिन ना चाह के भी अभी तक मेरी जंघे एक के उपर एक, कसी, उन्हे पैंटी सरकने से रोक रही थी. तभी ना जाने कैसे उनकी उंगलियो को मेरी पैंटी का हुक मिल गया, और उसके खुलते ही जैसे कोई बँधा हुआ जानवर छूटते ही भाग जाय. वह सिर्फ़ खुली नही बल्कि पूरी तरह मेरी देह से अलग होके दूर हो गयी.

और उनके हाथ को तो जैसे किसी को कारुन का खजाना मिल गया हो. उसने कस के मेरी 'चुनेमुनिया' को दबोच लिया. और जैसे अगले ही पल उन्हे अपनी ग़लती का अहसास हो गया हो, उन्होने उसे प्यार से हल्के हल्के सहलाना छेड़ना शुरू कर दिया. उनके स्पर्श का जो जादू मेरे बाकी अंगो पे पड़ा था, 'वो भी' अब उनकी हो गयी. उनकी दो अँगुलियो ने तो अंदर का रास्ता देख ही लिया, और कुछ वो 'जान पहचान', कुछ अबकी ढेर सारी उसमे लगी वैसलीन का असर और कुछ मैं खुद इतनी गीली हो रही थी.... वो तेज़ी से अंदर बाहर होने लगी. उनका दूसरा हाथ, सीधे मेरे नितंबो पे, उसे सहलाते दबोचते, उन्होने कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया. मैं भी अब कितना अपने को रोकती. मेने भी अपनी बाहो मे उन्हे भींच लिया. मेरे उरोज उनके चौड़े सीने के नीचे दबे, कुचले मसले जा रहे थे, उनके होंठ अब कस कस के मेरे होंठो गालो का रस ले रहे थे.
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