kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:45 PM,
#90
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
नहाने तो एक बहाना था. उन्होने अपने दोनो हाथो मे साबुन ले के मेरे चुचियो पे कस कस के मलना शुरू कर दिया. मैं क्यो चूकती, मेने भी नोज़ल शावर से सीधे उनके 'वहाँ'. 'उसे' भी सिर्फ़ खड़े होने का बहाना चाहिए था. मिनेट भर मे फनफनाता वो खड़ा हो गया. पहली बार मैं इस तरह से खुल के उसे देख रही थी. रात मे आधे टाइम तो वो मेरे अंदर ही या तो घुसा रहता था या घुसने की जुगाड़ मे रहता था. खूब मोटा. जब मेने भी उनकी तरह से अपने साबुन लगी मुट्ठी मे उसे पकड़ने की कोशिश की तो वो इतने मोटा था, मुट्ठी मे आया नही. बीयर कॅन ऐसा. वो मुझे चिढ़ाती हुई नजरो से देख रहे थे. खिज के मेने उसे दोनो हाथो से पकड़ लिया और आगे पीछे करने लगी. वो मेरे हाथो के बीच पहली बार आके खुशी से और फूल गया. मेने जब कस के खींचा तो उपर का चमड़ा हट गया. पहली बार मेने उनका सूपड़ा देखा, खूब फूला, गुस्से मे लाल , मोटा सा तमतमाया. वो बोले मोटाई तो देख ली, अब लंबाई भी नाप लो. पूरे बलिश्त भर का था. शरमा के मेने बात बदली,

"इतना लंबा है तभी मेरी हालत खराब हो गयी"उन्होने हंस के अपने हाथ से पकड़ के दिखाते हुए कहा,

"जी नही. कल मेने सिर्फ़ इतना डाला था (सूपदे से थोड़ा नीचे) और आज तुम जो चीख रही थी तो अभी भी मेने सिर्फ़ इतना डाला था,

इसका मतलब अभी भी एक तिहाई के करीब बचा था. कितना क्ंट्रोल और मेरा ख्याल है इन्हे मेरा. मेने पैंतरा बदला,

"हे तो ये बाकी का किसके लिए बचा रखा था, क्या मेरी ननद के लिए. "मेरे अंदर भाभी की आत्मा प्रवेश कर गयी थी. मेने उनके लंड को कस के दोनो हाथो के बीच भींच के बोला, खबरदार अगर एक इंच भी, इंच क्या सूत भी बाहर रहा. ये सारे का सारा मेरा है. अब मैं चाहे चीखू, चिल्लौं, चाहे मेरा खून निकले, चाहे मैं बेहोश हो जाउ, लेकिन ये मुझे पूरा चाहिए. एकदम जड़ तक. "

"तो चलो नेक काम मे देरी क्यो. अभी लो पूरा का पूरा"मुझे पकड़ने की कोशिश करते हुए वो बोले.

"ना बाबा ना अभी वेरी ननदे आती होंगी पर अगली बार हाँ"फिसल के मैं निकल गयी और तौलिए से अपनी देह सॉफ करती हुई बोली.

जब तक वो बाहर आए मैं तैयार हो रही थी. मैं पेटी कोट ब्रा मे थी. तय कर रही थी कौन सा ब्लाउस पहनु. उन्होने एक लो लो काट ब्लाउस की ओर इशारा किया. मैं उनका इरादा समझ गयी पर मैं कौन होती थी पति की बात टालने वाली. दुल्हन को तो तैयार होने मे पूरा सिंगार करना होता था, मेकप के बाद गहने भी.

खास तौर से चूड़िया रोज मैं पहनती थी, रोज रात मे आधी चटक जाती थी. मेरे ननदे सारी मज़ाक बनाती, इसलिए ध्यान दे के मैं फिर से रात के बराबर चूड़िया पहनती जिससे किसी को शक ना हो. शक की बात थी तो मेने गाल पे जो निशान थे सब पे नो मार्क लगाए, लेकिन जब मेने गले के नीचे निगाह डाली, तो मेरे उरोजो पे इतने कस कस के इन्होने और उपर से इनकी बात मान के मेने इतना लो काट ब्लाउस भी पहन लिया था.

क्रमशः………………………

शादी सुहागरात और हनीमून--25
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