kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:47 PM,
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--30

गतान्क से आगे…………………………………..

फोन की घंटी से मेरी नींद खुली. तब मुझ याद आया कि मेने इन्हे कहा था कि भाभी को फोन बुक कर देंगे. मैं उसी तरह उठी. भाभी तो अपनी स्टाइल मे चालू हो गयी, लेकिन मेने उन्हे रोकते हुए अपना काम बताया. कल संजय और सोनू चौथी ले के आने वाले थे, मेने उनसे कहा कि कुछ मेरा 'समान', उन दोनो के साथ भिज दीजिएगा.

उन्होने ये बताया कि रीमा भी मुझसे मिलने की ज़िद कर रही थी तो वो भी कल संजय और सोनू के साथ आएगी. उनसे बात ख़तम कर के मैं कबार्ड के उस दूसरे सीक्रेट खाने की ओर बढ़ी, जिसके खोलने का कोड मेरी बर्थ डेट के साथ मेरी फिगर थी. उसमे जो वीडियो कैसेट हम देख रहे थे वैसे ही दर्जन भर से भी ज़्यादा वो तो मैं समझ गयी कि क्या है लेकिन साथ मे 10*12 आडियो कैसेट भी थे. उन्हे मेने उठाया तो सारे के सारे जेवनार गीत, गारी गीत, लड़की वालो की ओर से गाली मैं समझ गयी तो ये बात है, ये भी जनाब की पसंद है. मेने एक कैसेट निकाला किसी तारो बानो का था और हेडफोन मे लगा के सुनना शुरू किया ये ऐसे वैसे लोक गीत नही थे, एक दम चमेली भाभी और दुलारी के स्टॅंडर्ड के. एक से एक शुद्ध गालिया लेकिन मेरा तो काम बन गया था रात के गाने के लिए. 5*6 गाने मेने सुने फिर उसे रख के कबार्ड बंद कर दिया.

मेने घड़ी की ओर देखा साढ़े पाँच बाज चुके थे. इसका मतलब कि एक घंटे से उपर मैं सो गयी. वो अभी भी सो रहे थे. तभी दरवाजे पे ख़त खाट हुई. झट से कपड़े पहन के मैनें दरवाजा खोला. जेठानी जी थी. मेने उनसे कहा कि अंदर आ जाए लेकिन वो बोली कि नही नीचे कुछ लोग आए है. वो सिर्फ़ बोलने आई थी कि मैं थोड़ी देर मे जब नीचे आउ तो उनके पास किचेन मे आ जाउ. ये कह के वो नीचे चली गयी, और मैं तैयार होने शीशे के सामने गयी तो मेरा सिंदूर काजल सबऔर बिंदी तो दिख ही नही रही थी. गाल और होंठो पे सिर्फ़ उनके काटने और चूसने के निशान नही थे बल्कि निचला होंठ तो हल्का सा सूज भी गया था. उससे ज़्यादा बदतर हालत मेरे उरोजो की थी. लेकिन मेने आज उन्हे ढँकने छिपाने की कोई कोशिश नही की. सिर्फ़ माँग मे भर के सिंदूर लगाया, जो थोड़ा बाहर भी था, काजल कुछ ठीक कर के नई बिंदी माथे पे लगाई, और नीचे चल दी. रास्ते मे सीढ़ियो पे रजनी मिली बोली, भैया को बुलाने जा रही हू. मुझे देख के लग रहा था कि अपने सैया से चुदवा के आ रही है लेकिन अब न तो मुझे उसकी लाज थी और न परवाह.

बरांडे मे मेरी सास कुछ औरतो के साथ बैठी थी. मेने पहले सासू जी के फिर सबके पैर छुए. सास जी ने मुझे अपने पास खींच के बैठा लिया और मेरे माथे की ओर देख के बोली, लग रही हो सुहागन. एक औरत ने बोला, अरे सिर्फ़ माँग से ही नही पूरी देह से. सासू जी ने मुझे अपने पास खींच लिया और बोली हे नज़र मत लगाओ मेरी बहू को.साफ साफ लग रहा था कि दिन मे मेरी ननदो ने जो कुछ भी किया और बाद मे जो हुआ, उसका पता सबको लग गया है. तब तक वो सीढ़ियो से उतरे, और उनेको देखते ही उनकी भाभियो ने चिढ़ा चिढ़ा के उनकी दूरगत बना दी, माथे पे काजल और सिंदूर और पूरे गाल पे जगह जगह गाढ़े लिपस्टिक के निशान और मैं भी अपनी मुस्कान रोक नहीपाई, जब मेने उनके टी शर्त पे अपनी बिंदी देखी. तब तक गुड्डी ने आ के बोला कि किचेन मे मेरी जेठानी मुझे बुला रही है. मैं सास जी से बोल के चल दी.

जेठानियो के चेहरे पे मुस्कान थी और ननदो के चेहरे एक दम बुझे बुझे.

मुझे लगा कि अब उन्हे मान लेना चाहिए कि उनके भैया, अब पूरी तरह मेरे सैया है.

किचेन मे मेरी जेठानी अकेली थी. गुड्डी मुझे किचेन मे छोड़ के चली गई. उन्होने मुस्करा कर बोला,

"मैं चाय बने रही हू पियोगी,"

"अरे नेकी और पूछ पूछ बहुत कस के चायस लग रही है दीदी." हंस के मेने कहा.

"आज तुमसे कुछ खास बात बतानी है, तुम्हारे 'उनके' बारे मे और तुम्हारी ननदो के बारे मे." चाय चढ़ाती हुई वो बोली.

कौन सी बात है क्या है जो वो बताने जा रही है मैं सोच मे पड़ गयी.

बेड रूम के बाद दुल्हन किचन पे ही कब्जा करती है. और एक बात और, बेड रूम के बाद अगर औरतो को कही प्राइवसी मिलती है तो वो किचन ही है और इसलिए कितनी कॉन्स्पिरेसी, प्लॅनिंग या 'बिचिंग' (सास बहू या कोई भी सीरियल देख लीजिए), गप्पे या जिसे हम लोग 'पंचायत' कहते है, यही होती है.

तो किचन मे जब जेठानी जी ने चाय चढ़ाते हुए ये कहा कि मुझे 'उनके' और मेरी ननदो के बारे मे कुछ बताने वाली है तो मैं चौंक गयी. मुझे लगा कि कही इनके और मेरी किसी ननद के बीच कोई 'चक्कर वक्कर' कौन हो सकती है वो कही अंजलि तो नही चिपकी रहती है हरदम या.. कुछ और. उनकी चुप्पी और जी को हलकान किए हुए थी.

"बोलिए ने दीदी क्या बताने वाली थी इनके और" मेने परेशान हो के पूछा.

"मैं सोच रही थी कहाँ से और कैसे शुरू करू, जब मैं शादी के बाद यहाँ आई या जो मेने सुना और देखा है चलो कही से भी शुरू करते है." चाय की पत्ती डालते वो बोली. बात उन्होने आगे बढ़ाई, "तुमको तो मालूम ही है वो कितने पढ़ाई मे तेज है.

बचपन से ही बहुत पढ़ाकू है. वहाँ तक तो कोई बात नही, लेकिन इनकी बहनो ने खास कर जो मझली ननद जी है उन्होने इनको एक दम बच्चा बना के रखा. इसको ये नही अच्छा लगता, वो नही अच्छा लगता और उसके साथ हर दम प्रेशर मे.. अगर किसी इम्तहान मे किसी से भी एक नंबर भी कम आ जाए तो एक दम चिढ़ा कर, ऐसे व्यंग बोल कर वो काफ़ी कुछ बस अपने मे, अपनी दुनिया मे. तो जो मैं शादी के बाद आई तो मुझे लगता था अकेला देवर है मज़ाक करेगा, चिढ़ाएगा, लेकिन वो तो इतने शर्मीले और अपनी दुनिया मे खोए. तो फिर मेने ही पहल की, खूब चिढ़ाया, मज़ाक,

हँसी और फिर कुछ दिनो मे हम लोग दोस्त हो गये. लेकिन तब भी अगर हम लोग हँसते रहते और ननद जी आ जाती तो वो एक दम चुप हो जाते. उस पर भी वो कोई ना कोई ताने,

व्यंग बान. फिर उमर के साथ बच्चा बड़ा होता है, उसके शरीर की मन की ज़रूरते बदलती है, इसको स्वीकार करना चाहिए, लेकिन वो एक दम उसे बच्चे की तरह और वो भी उसी के तरह एकदम"

"बबुआ सिंड्रोम बबुआ की तरह जैसे कोई इमेज हो और दूसरा अपने को उसी इमेज मे कन्फर्म करने की कोशिश करे, एक तरह का पिगमैनलिया एफेक्ट" मैं बोली..

"एक दम सही, तुमने ठीक समझा, लेकिन उसके बड़े नेगेटिव असर भी होते है जो उपर से पता नही चलते," चाय प्याले मे छानति वो बोली. कयि बार वो पढ़ता रहता लेकिन मन कही और, मैं मज़ाक मे ही कहती भी, कि अरे जो सोचना हो सोच लो, फिर पढ़ो, थोड़ा घूम आओ बाहर मिलो जुलो, और एक दिन तो बहुत ही वो मझली ननद जी ने उसके तकिये के नीचे से कोई जासूसी किताब निकली, कोई कर्नल रंजीत है उनकी, किताब के कवर पे बिकिनी पहने एक लड़की बनी थी और इसी से उनका माथा ठनक गया था,

मुझे अभी तक उसका नाम याद है 'नाइट इन लंडन' तो वो किताब ननद जी ने उस तरह रख दी कि ऑफीस से जब लोग आए तो नज़र उस पे पड़े और उन की लाने मैं उस के कमरे मे गयी तो उन की हालत खराब बेचारे घबडाये. मुझे बहुत गुस्सा आया मैं चुपके से गयी और वो किताब मेने हटा दी."

चाय मे मुझे बिस्कट डिप करते हुए देख जेठानी जी खुश होके बोली अरे तुम भी और उन्होने भी चाय मे बिस्कुट डाल दिया. फिर उन्होने बात आगे जारी रखी,

"कुछ दिन बाद जब मझली ननद जी की शादी हो गयी, तो जैसे बंद कमरे मे कोई खिड़की रोशन दान खोल दे, ताजी हवा का झोंका आने लगे और फिर उन्होने बाकी चीज़ो मे भी खुल के इंटरेस्ट लेना शुरू कर दिया, हम लोग हँसते मज़ाक करते,

पिक्चर देखते इसका पढ़ाई पे भी और अच्छा असर ही पड़ा, क्यो कि अब जो वो काम करते थे, ध्यान बँटता नही था. जब मझली ननद जी ससुराल से आई लौट के" हंस के जेठानी जी ने और चाय डाली और बोली, "मेने देखा कि इनके पाजामे पे दाग लगा है.

मैं समझ गयी थी कि अब देवर जी जवान हो गये है लेकिन फिर मेने सोचा कि कही ननद जी इसे देख ले और इसी के लिए उन्हे तो मेने झट से उसे ले जा के खुद धुल दिया तुम सोच नही सकती थी कि ये कितने शर्मीले रहे होंगे, रवि जो है ना उससे भी ज़्यादा पहली होली मे तो मैं तो पहले सोच रही थी कि अकेला देवर है लेकिन मेने ही पहल की और खूब जम के रगड़ा, लेकिन उस दिन से मुझसे तो झिझक ख़तम हो गयी."

हम दोनो की चाय ख़तम हो गयी थी.

"लेकिन तुम्हारे साथ आज जो उन लोगो ने किया ना 'रसोई छूने' के नाम पे, मुझे बहुत बुरा लगा. और तेरे साथ क्या किया तो अपने भाई के साथ ही ना" वो फिर बोली.

"छोड़िए ना जाने दीजिए लेकिन आख़िर शर्त तो मेने ही जीती, उन्होने आख़िर सब कुछ"

"मालूम है मुझे तुम मुझे दीदी कहा करो." हंस के वो बोली, फिर कहने लगी, "अरे तेरी शादी मे भी तो इन लोगो का बस चलता तो कितने भान भच्चर करने वाली थी "लेकिन फिर चुप हो गयी.

"बताइए ना दीदी" उत्सुकता वस मेने पूछा,

"अरे जाने दो छोड़" मेरी कूरीोसिटी जगा के वो चुप हो गयी थी.

"बताइए ना दीदी आप कैसी दीदी है जो छोटी बहन से छुपा रही है."

"नही छुपाने की कोई बात नही है लेकिन..सच बताऊ उस की किस्मत बड़ी अच्छी है अच्छा छोड़ ये बता चाय और बनाऊ, पिएगी."
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