गतान्क से आगे. कामिनी ने किताबो का बंड्ल हाथो मे उठाया & चंद्रा साहब के ड्रॉयिंग रूम मे दाखिल हुई.दोपहर का वक़्त था,लग रहा था सब सो रहे हैं.अभी 2 दिन पहले ही वो उनसे मिली थी & आज यहा आने का उसका इरादा नही था मगर ये कुच्छ क़ानूनी किताबे थी जो चंद्रा साहब ढूंड रहे थे.इत्तेफ़ाक़ से ये आज कामिनी को कही मिल गयी तो उसने सोचा की खुद ही उन्हे दे आए तो पंचमहल क्लब जाने से पहले वो यहा आ गयी.
कोई नौकर भी नज़र नही आ रहा था,उसने दरवाज़े पे दस्तक दी,"अरे,कामिनी..अचानक!",दस्तक सुन कर आए चंद्रा साहब की बान्छे उसे देखते ही खिल गयी.
"आप ही की कितबे देने आई हू.",चंद्रा साहब ने उसके हाथ से बंड्ल लिया & उसे खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया.
"आंटी कहा हैं?...ऊफ्फ..छ्चोड़िए ना....!",वो कामिनी को बाहो मे भर के दीवानो की तरह चूमे जा रहे थे.
"अंदर मालिश वाली से मालिश करवा रही है.",कामिनी ने आज घुटनो तक की काले-सफेद प्रिंट वाली ड्रेस पहनी थी.ड्रेस उसकी छातियो के नीचे तक कसी हुई थी फिर बिल्कुल ढीली.इसी का फाय्दा उठा ते हुए चंद्रा साहब ने उसकी ड्रेस मे नीचे से हाथ घुसा के उसकी भारी गंद की फांको को दबोच लिया था.
"उन्होने ड्रेस को कमर तक उठा दिया,"हूँ..आज काली पॅंटी पहनी है तुमने.ब्रा भी काला ही है क्या?",उनकी ऐसी बेशर्म बात सुनके कामिनी के चेहरे का रंग हया से सुर्ख हो गया.
"अभी आंटी से आपकी शिकायत करती हू..",उसने उन्हे परे धकेला & अंदर जाने लगी.
"क्या कहोगी?"
"कहूँगी की जवान लड़कियो से उनके ब्रा का रंग पुछ्ते हैं..आपको ज़रा काबू मे रखें..हाआ...!",चंद्रा साहब ने उसे पीछे से पकड़ लिया था & उसकी गर्दन चूमने लगे थे.
"चलो कमरे मे चलते हैं..आधा घंटा लगेगा अभी उसे मालिश मे.",चंद्रा साहब ने ड्रेस के उपर से ही उसकी चूचिया दबाई.
"..ऊवन्न्नह...नही..",कामिनी उनकी पकड़ से निकल भागी & घर के अंदर चली गयी.1 कमरे से होके उस कमरे का रास्ता था जिसमे मिसेज़.चंद्रा मालिश करवा रही थी,नमस्ते आंटी.",कामिनी ने कमरे के दरवाज़े पे जाके कहा.
"अरे कामिनी.कैसे आना हुआ?"
"सर को कुच्छ किताबे देने आई थी."
"अच्छा तो उनसे बाते करो लेकिन मेरे आने के पहले जाना मत..क्या करू?इधर जोड़ो मे बहुत दर्द था इसलिए ये मालिश भी ज़रूरी है."
"हां-2 आंटी,आप मालिश करवाईए मैं बैठती हू."
तब तक चंद्रा साहब वाहा आ गये & उसे बाहो मे भर के वाहा से ले जाने लगे मगर कामिनी मानी नही,"चलो दूसरे कमरे मे चलते हैं.",उन्होने उसे चूमा.
"नही..यही रहिए..",वो फुसफुसाई.दूसरे कमरे मे उनकी बीवी थी & यहा ये खेल खेलने मे उसे फिर से वही मज़ा आने वाला था जो डर & रोमांच के एहसास से पैदा होता था.उसने अपने गुरु के गले मे बाहे डाल दी & उनके होठ चूमने लगी.चंद्रा साहब के हाथ 1 बार फिर उसकी गंद पे चले गये थे.जिस कमरे मे मिसेज़.चंद्रा थी & जिस कमरे मे ये दोनो 1 दूसरे को चूम रहे थे उनके बीचे की दीवार से लगा 1 शेल्फ था.