RE: Kamukta Story बदला
तभी कामिनी की चूत मे बन रहा सारा तनाव अपनी चरम सीमा पे पहुँच गया..उसके
गले से निकलती आह को उसने अपने गुरु के कंधे मे सर च्छूपा के वाहा पे
काटते हुए दफ़्न किया & झड़ने लगी,चंद्रा साहब का लंड भी पिचकारिया
छ्चोड़ अपना गाढ़ा पानी उसकी चूत मे गिराने लगा.
"लो हो गया,मालकिन.",अंदर से मालिश वाली की आवाज़ आई तो कामिनी जल्दी से
शेल्फ से उतरी & अपना ब्रा & ड्रेस ठीक करने लगी.उसने देखा की उसकी ज़मीन
पे गिरी पॅंटी चंद्रा साहब उठा के अपनी जेब के हवाल कर रहे हैं.
"आज नही..",कामिनी ने उनसे पॅंटी छीनी & तुरंत अपनी टाँगे उसमे डाल के
उसे उपर चढ़ा लिया,फिर उन्हे जल्दी से 1 किस दी & पास पड़ी कुर्सी पे बैठ
गयी.मिसेज़.चंद्रा के आने के बाद थोड़ी देर तक उसने उनसे बात की & फिर
क्लब चली गयी.
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"अरे दवाइयाँ तो भूल ही गये..!",नाश्ते की मेज़ से उठ के दफ़्तर की ओर
बढ़ते सुरेन सहाय के कदम बीवी की आवाज़ सुनते ही रुक गये.
"लाओ..",उन्होने देविका के हाथो से दवा & पानी का ग्लास लेके दवा खा ली.
"चलिए.."
"कहा?"
"भूल गये?..आज से मैं भी दफ़्तर आने वाली हू."
"गुड मॉर्निंग,डॅडी!..गुड मॉर्निंग,मुम्मा!",सीढ़ियो से नीचे उतरते
प्रसून को देख दोनो के चेहरे पे मुस्कुराहट खिल गयी.
"गुड मॉर्निंग,बेटा!आज कितनी देर से उठा है?",देविका ने उसके बालो मे हाथ फेरा.
"सॉरी ममा!..पता ही नही चला ना..आज सूरज तो निकला ही नही!",सुरेन जी उसकी
बात सुनके हैरान हुए & देविका की ओर सवालिया नज़रो से देखा.
"बेटा,सूरज निकला है मगर बादल छाए हुए है ना..तो उनके पीछे छुप गया
है.",हंसते हुए उसने सुरेन जी को देखा तो उनकी भी हँसी छूट गयी.
"ओह्ह..तो क्या सूरज भी लूका-छीपी खेलता है ममा?"
"हां,देखो खेल तो रहा है..लेकिन जब हवा चलेगी ना तो बदल उड़ जाएँगे & फिर
वो दिखने लगेगा."
"हां..फिर पकड़ा जाएगा..फिर हम छुपेन्गे & वो हमे ढूंदेगा!",प्रसून खुशी
से ताली बजाने लगा.
"हां बेटा..अच्छा चलो अब नाश्ता करो.."
"आप नही करेंगी?"
"मैने कर लिया बेटा."
"मेरा वेट नही किया आपने.",प्रसून बच्चे की तरह रूठ गया..अब था तो वो 1
बच्चा ही.24 साल का हो गया था वो,6 फिट का कद,अच्छे ख़ान-पान & रहन-सहन
से शरीर भी काफ़ी भरा & मज़बूत हो गया था मगर दिलोदिमाग से वो कोई 7-8
बरस के बच्चे जैसा ही था.
"सॉरी बेटा मगर क्या करती आप ही देर से उठे & फिर आज ममा को डॅडी के साथ
ऑफीस भी जाना है ना."
"वाउ!..तो मैं भी चलु."
"नही,प्रसून..अभी नही..तुम तो लंचटाइम मे आते हो ना मेरा लंच
लेके.",सुरेन जी ने अपनी एकलौती औलाद को समझाया.
"..तो मैं घर मे अकेला क्या करूँगा?"
"अकेला कहा है..ये देख सभी तो हैं..",देविका ने नौकर-नौकरानियो की ओर
इशारा किया.वो सब भी प्रसून से 1 बच्चे की तरह ही पेश आते थे,"वो देख
रजनी भी आ गयी..रजनी चलो प्रसून को नाश्ता कराओ & इसे अकेला बिल्कुल मस्त
छ्चोड़ना वरना मैं आके तुम्हे बहुत डाँट लगाउन्गि!",डेविका ने प्रसून को
खुश करने के लिए रजनी से कहा.
"जी,मॅ'म..ये रहा भाय्या का नाश्ता..आज तो बाय्ल्ड एग्स हैं!",रजनी ने
टोस्ट पे मक्खन लगाके उसकी तश्तरी मे रखे.
"रजनी,सब संभाल लेना.",देविका सुरेन जी के पीछे तेज़ कदमो से दफ़्तर जा रही थी.
"डॉन'ट वरी,मॅ'म.आप बेफ़िक्र रहिए.",रजनी ने उसे भरोसा दिलाया.यू तो घर
मे कई नौकर थे मगर देविका को रजनी पे सबसे ज़्यादा भरोसा था.
35 साल की बहुत साधारण शक्ल-सूरत वाली साँवले रंग की रजनी थी भी बहुत
नेक्दिल & लगन से अपना काम करती थी.उसके मा-बाप ने उसकी शादी की बहुत
कोशिश थी मगर उन्हे कोई ऐसा लड़का नही मिला जोकि रजनी की मामूली शक्ल के
पीछे छुपे उसके गुण देख सकता,धीरे-2 रजनी ने भी शादी की आस छ्चोड़ दी थी
& पूरी तरह से सहाय परिवार की सेवा मे खुद को डूबा लिया था.
मगर इधर कुच्छ दीनो से उसकी सोई ख्वाहिशे फिर से जाग उठी थी,उसके दिल मे
फिर से अरमान मचलने लगे थे.इस सबका कारण था इंदर.सारे नौकरो को हफ्ते मे
1 छुट्टी मिलती थी-रविवार को.ज़्यादातर नौकर एस्टेट के आस-पास के गाँवो
या फिर हलदन से थे तो इस दिन अपने परिवार से मिलने चले जाते थे केवल 1
रजनी ही थी जोकि यहा की नही थी तो वो कभी भी छुट्टी नही लेती थी.
क्रमशः..............
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