गतान्क से आगे... "अच्छा भैया अब चलता हू.तुम मेरा यहा का कॉटेज सॉफ करवा देना,पंचमहल वाले बंगले की चाभी तुमने दे ही दी है....उसे मैं सॉफ करवा दूँगा.",वीरेन शाम को अपने भाई-भाभी से विदा ले रहा था.
"ठीक है,भाई.वैसे कल मुझे पंचमहल आना है."
"कोई काम है क्या?",दोनो भाई वीरेन की टॅक्सी की ओर बढ़ रहे थे.
"हां,वो हमारे वकील थे ना मिश्रा जी वो तो रहे नही.."
"ओह्ह.."
"हां,बस कुछ ही दिन पहले देहांत हुआ.उनके एषिस्टेंट्स मे वो बात नही है.इधर 1 नये वकील का बहुत नाम सुना है उसी से मिलना है कल."
"अच्छा,कौन है वो?",वीरेन टॅक्सी की पिच्छली सीट पे बैठा तो ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी.
"उम्म....अब छ्चोड़ो ना...",इंदर रजनी की चूचिया चूसे जा रहा था,"..हाई राम!..",रजनी ने उसे परे धकेला & लगभग कूदते हुए बिस्तर से उतरी,"..तुम्हारे चक्कर मे देखो तो कितनी देर हो गयी....प्रसून भाय्या के शाम के नाश्ते का वक़्त हो गया & वो मेरा इंतेज़ार करते होंगे.",उसने जल्दी से अपनी पॅंटी को उपर चढ़ाया.
"ये प्रसून सचमुच 1 बच्चे की तरह ही है?"
"हां."
"और तुम्हारे सर की तबीयत कैसी है आजकल?"
"ठीक है."
"अच्छा.",रजनी ने अपनी सलवार पहन ली थी & अब कुर्ते को गले मे डाल रही थी.इंदर उसके पास आया & उसकी पीठ पे लगे ज़िप को उपर कर दिया.रजनी ने उसके चेहरे को चूम लिया,"मैं फोन करूँगी."
"नही.."
"क्यू?",रजनी के माथे पे शिकन पड़ गयी.
"मैं करूँगा.तुम्हे पैसे बर्बाद करने की कोई ज़रूरत नही.",रजनी ने उसे अपने गले से लगा लिया,"आइ लव यू,इंदर...आइ लव यू.",उसकी आवाज़ से उसकी चाहत की शिद्दत सॉफ झलक रही थी.इंदर के चेहरे पे 1 मुस्कान फैल गयी-कुटिल मुस्कान....आख़िर चिड़िया पूरी तरह से जाल मे फँस गयी थी & उसका काम थोड़ा और आसान हो गया था.
रजनी के जाते ही उसने सिगरेट सुलगाई & नंगा ही बिस्तर पे अढ़लेटा सा बैठ गया.सुरेन सहाय के पीछे वो पिच्छले 5 महीने से लगा हुआ था.जब वो पहली बार जब बीमार पड़ा था तभी उसने हॉस्पिटल से उसकी पूरी मेडिकल रिपोर्ट & उसे दी गयी दवाओ का नुस्ख़ा निकलवा लिया था.इस काम मे उसे कितने पापद बेलने पड़े थे ये वही जानता था.अगर उस वक़्त ये चिड़िया उसके पास होती तब उसे वो मशक्कत नही करनी पड़ती.
वो रजनी के अलावा सुरेन सहाय के और भी घरेलू नौकरो पे नज़र रखे था मगर इत्तेफ़ाक़ से रजनी का मोबाइल रेस्टोरेंट मे च्छुटा & उसे उसके करीब आने का मौका मिल गया.रजनी उसे एस्टेट के बारे मे कुच्छ ना कुच्छ बताती रहती थी मगर आज से पहले उसने कोई काम की बात नही की थी.उसका मक़सद था एस्टेट मे घुसना....बस 1 बार वो वाहा घुस जाए फिर तो....उसने सिगरेट बुझा के अश्-ट्रे मे डाल दी.
अगर ऐसा हो गया तो उसे नक़ाब पहन के बंगंग्लो की दीवार फंड के चोरो की तरह अंदर घुसने की ज़रूरत नही रहेगी,फिर तो वो दवा की डिबिया क्यू बदलेगा सीधा सुरेन सहाय को दोज़ख़् का रास्ता दिखाएगा.बस ऐसा हो जाए.....फिर तो सुरेन सहाय तुम्हे तुम्हारे किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी.......सब्र...सब्र रखो इंदर.....उसने अलमारी खोली & अपना हीपफलास्क निकाला & 2 घूँट भरे.शराब ने उसके बेचैन हो रहे मन को शांत किया & वो ठंडे दिमाग़ से आगे के बारे मे सोचने लगा.
सुरेन सहाय बस थोड़ी ही देर मे रोज़ की तरह अपनी सवेरे की चाइ पीने लॉन मे आने वाले थे.जब से उन्होने नये मॅनेजर की तलाश शुरू की थी तब से रोज़ सवेरे चाइ के साथ वो मॅनेजर की पोस्ट के लिए भेजी गयी अर्ज़िया भी पढ़ते थे.रजनी का काम तो घर मे रहता था मगर इधर रोज़ सवेरे चाइ के साथ अर्ज़ियो की फाइल को उनके सामने रखने की ज़िम्मेदारी भी उसी की थी.