RE: Kamukta Story बदला
"शुक्रिया,कामिनी जी.ये आपने बहुत अच्छा काम किया.",सुरेन जी ने दोबारा
हाथ जोड़े & बाहर चले गये.कामिनी ने आँखो के कोने से देखा की वीरेन को
उसे ये बात कुच्छ अच्छी नही लगी..आख़िर वो प्रसून की बात पे ऐसे संजीदा &
थोड़ा टेन्स सा क्यू हो जाता था?
"अच्छा,मैं भी चलता हू,कामिनी जी.",वीरेन ने अपने चेहरे के भाव बदल लिए
थे & अब वही दिलकश मुस्कान उसके होंठो पे खेल रही थी,"आपने कुच्छ सोचा
मेरी गुज़ारिश के बारे मे?"
"हां वीरेन जी,मैने सोचा.आप कैसे पेंटर हैं अब इसके बारे मे कुच्छ कहना
तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर होगा..",तारीफ सुन वीरेन ने हंसते हुए
नज़रे झुका ली,1 बड़े विनम्रा इंसान की तरह.कामिनी बहुत गौर से उसे देख
रही थी,"..लेकिन..",वीरेन के चेहरे से हँसी गायब हो गयी,"..लेकिन मैं
आपकी बात नही मान सकती.प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए."
"नही कामिनी जी,इसमे माफी की क्या बात है?..इतना ज़रूर कहूँगा की आपकी
तस्वीर ना बना पाने का मलाल मुझे उम्र भर रहेगा."
"मैं आपको तकलीफ़ नही पहुचाना चाहती मगर प्लीज़ वीरेन जी मैं ये नही अकर
सकती.",कामिनी को पता था की ये कलाकार लोग बड़े संवेदनशील होते
हैं,दिमाग़ से ज़्यादा दिल का इस्तेमाल करते हैं & वीरेन भी इस इनकार को
ना जाने कैसे ले.
"प्लीज़,कामिनी अब आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं.आपकी बात का ज़रा भी बुरा
नही माना मैने,मेरा यकीन कीजिए & अपने दिल से ऐसी सारी बातें निकाल
दीजिए..ओके!बाइ.",1 बार फिर वही दिलकश मुस्कान बिखेरता वीरेन भी वाहा से
चला गया & कामिनी 1 बार फिर से सोच मे पड़ गयी....ये इंसान नाराज़ नही
हुआ थोड़ा सा निराश ज़रूर हुआ था मगर उसे कोई गुस्सा नही आया था.(ये
कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )...अब तो
उसकी आगे की हर्कतो से ही पता चल सकता था की उसके दिल मे असल मे क्या
था-क्या वो सच मे उसकी खूबसूरती का कायल होके उसकी तस्वीर बनाना चाहता था
या फिर उसका शक़ कि वो अपने भाई की वकील के करीब आना चाहता था सही था.
कामिनी थोड़ी देर खड़ी सोचती रही & फिर अपनी कुर्सी पे बैठ अपना काम करने लगी.
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"नमस्ते!नमस्ते!शाम लाल जी,आइए बैठिए.",सुरेन जी ने बड़ी गर्मजोशी से
अपने पुराने मॅनेजर का इस्तेक़्बल किया. (दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा
के ब्लॉग कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)
"नमस्ते,सुरेन जी..नमस्ते मॅ'म.कैसे हैं आपलोग & अपना प्रसून कहा है?मैं
उसके लिए ये तोहफा लाया था.",शाम लाल जी की उम्र 60 बरस की थी & उनके सर
के सारे बॉल उड़ चुके थे बस पीछे की ओर थोड़े से बाकी थे.उम्र के साथ
उनका पेट भी कुच्छ निकल आया था.वो उम्र मे सुरेन जी से बड़े थे मगर फिर
भी वो उन्हे हमेशा ऐसे इज़्ज़त देते थे जोकि 1 मालिक को अपने मुलाज़िम से
मिलनी चाहिए थी.
"इसकी क्या ज़रूरत थी,शाम लाल जी!",देविका ने उन्हे 1 शरबत का ग्लास
बढ़ाया.उनके बैठते ही रजनी वाहा शरबत के ग्लास & नाश्ते की तश्तरिया लेके
आ गयी थी.उसने भी शाम लाल जी को नमस्ते किया.
"जीती रहो,रजनी.कैसी हो?",उन्होने 1 घूँट भरा.रजनी ने उनकी बात का जवाब
दिया & उनका & उनके परिवार की खैर पुच्छ वाहा से चली गयी.
"ह्म्म..",थोड़ी देर तक तीनो इधर-उधर की बाते करते रहे उसके बाद सुरेन जी
ने असल मुद्दे की बात छेड़ी जो थी प्रसून की शादी,"..आप दोनो ने वकील से
बात करके क़ानूनी तौर पे तो प्रसून के हितो की हिफ़ाज़त कर ली है मगर फिर
भी..",उन्होने अपनी ठुड्डी खुज़ाई.
"मगर क्या शाम लाल जी?",देविका की आवाज़ मे चिंता सॉफ झलक रही थी.
"देखिए मॅ'म,आप 1 औरत के नाते इस बात को ज़्यादा अच्छी तरह से समझेंगी.1
लड़की अपने पति से केवल ना अपने भविष्या की सुरक्षा,आराम की ज़िंदगी की
उम्मीद रखती है बल्कि उसकी कुच्छ और भी आरज़ुएँ होती हैं..कुच्छ अरमान
होते हैं (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)जोकि केवल 1 पति ही पूरा कर सकता है.",पति-पत्नी शाम लाल जी का इशारा
समझ गये थे.यही तो उनकी खूबी थी कोई भी बात बड़ी नफ़ासत के साथ बहुत
सोच-विचार के कहते थे.
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