RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
"उउंम्म...औच...!",रजनी अपने घुटनो & हाथो पे बिस्तर पे झुकी थी & इंदर
पीछे से उसकी गंद मे अपना लंड घुसाए धक्के लगा रहा था.उसे इस साधारण
शक्ल-सूरत वाली लड़की को चोदने मे अब बोरियत होने लगी थी मगर वो उसे कोई
शक़ नही होने देना चाहता था,इसलिए आज अपनी बोरियत भगाने के लिए & रजनी को
ये जताने के लिए की वो उसके जिस्म का दीवाना है उसने उसकी गंद मारने का
इरादा किया था.
"ओह्ह..माआ...हाइईईई...क्यू मा..नि..मा..इने..तुम..हा..आआहह...तुम..हरी
बात...आअननह....आअनन्नह....!",इंदर उसकी गंद मारते हुए उसकी चूत मे तेज़ी
से 2 उंगलिया अंदर-बाहर कर रहा था.वो जानता था की रजनी जो भी कहे उसे
बहुत मज़ा आ रहा था.
"रजनी..जानेमन.."
"ह्म्म..",रजनी को सच मे बहुत मज़ा आ रहा था.शुरू मे तेज़ दर्द हुआ था
मगर अब तो वो हवा मे उड़ रही थी.
"तुम्हारे बॉस ने शिवा को अपने बंगल के अंदर क्यो कमरा दिया हुआ है जबकि
हम बाकी लोग तो बाहर रहते हैं?"
"शिवा..ऊव्वव...उनका बहुत भरोसेमंद आदमी थाआआअ..आहह....& बॉस को लगा..की
अगर वो अंदर र..हे तो..ऊहह....अगर कभी....कोई ख़तरे वाली
बात..हूऊ..तो..वो उन..के परी..वार की हिफ़ाज़त
करेगा..आहह..आआअनन्नह....!",रजनी झाड़ रही थी & इंदर भी उसकी गंद को अपने
पानी से भर रहा था.
रजनी के थकान से निढाल हो बिस्तर पे गिर पड़ी.इंदर उसके बगल मे लेट गया &
अपने बाए हाथ से पेट के बल लेटी हाँफती रजनी की पीठ सहलाने लगा.उसने बगल
मे पड़ी अपनी पॅंट से 1 सिगरेट का पॅकेट निकाला & 1 सिगरेट सुलगा ली.शराब
जैसा सुकून तो नही मिलता था उसे इस से मगर ये रजनी से उसकी बेचैनी
च्छुपाने मे कामयाब थी....इस शिवा को तो घर से निकालना पड़ेगा..मगर
कैसे..कैसे?
वो सिगरेट के कश खींच रहा था,"क्यू पीते हो ये गंदी चीज़?",रजनी सर घुमा
के उसे देख रही थी.उसने फर्श पे सिगरेट मसल के उसे बुझाया फिर रजनी को
सीधा किया,"ठीक है नही पीता गंदी चीज़.अब अच्छी चीज़ पीता हू.",उसने उसकी
बाई छाती को मुँह मे भर लिया तो रजनी के होंठो पे मुस्कान फैल गयी & 1
बार फिर वो मदहोश होने लगी.
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"ऊन्न्ह्ह...ऊओनह...और
ज़ोर्र्र्र...आअहह..से...आइय्यी..हाआनन्न..शिवा....जान...चोदो...चोदो...मुझे...आअहह...!",देविका
की टाँगे शिवा के कंधो पे थी & उसके हाथ शिवा की जाँघो पे.शिवा का तगड़ा
लंड उसकी चूत की गहराइयो मे अंदर-बाहर हो रहा था.देविका आज रात ये कौन सी
बार झाड़ रही थी उसे याद नही था.याद था तो बस ये की शिवा 1 बार उसकी चूत
मे & 1 बार मुँह मे झड़ने के बावजूद वैसे ही जोश से उसकी चुदाई करते हुए
तीसरी बार झड़ने वाला था.
"ऊन्ह...!",देविका बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी तो शिवा ने उसकी
टाँगे अपने कंधे से उतारी और उसके उपर लेट गया.उसके बालो भरे सीने तले
देविका की चूचिया दबी तो उसे बहुत सुकून मिला.दोनो ने 1 दूसरे को बाहो मे
भर लिया & अपनी-2 कमर हिलाने लगे & बस कुच्छ ही पॅलो मे 1 बार फिर अपनी
मंज़िल पे पहुँच गये.
"उम्म..",देविका अपने प्रेमी को चूम रही थी.वो अभी भी उसकी चूत मे अपना
सिकुदा लंड धंसाए उसके उपर पड़ा था.उसने अपनी प्रेमिका के उपर से उतरना
चाहा था मगर देविका की गुज़ारिश थी की वो अभी थोड़ी देर और वैसे ही उसे
अपने तले दबाए रहे.
"देविका..",शिवा ने उसके गले पे चूमा.
"बोलो,शिवा.",डेविका उसके बालो से खेल रही थी.
"तुम्हे अब ये सारा कारोबार संभालना है & इसमे इंदर तुम्हारी मदद करेगा
लेकिन तुम उसपे आँख मूंद के भरोसा नही करना प्लीज़!"
"सॉफ-2 कहो शिवा."
"देखो,देविका मुझे सॉफ कुच्छ पता नही चल रहा मगर वो ठीक आदमी नही
है.देखो,वो बहुत अच्छा काम करेगा,तुम्हे शिकायत का कोई मौका नही देगा मगर
फिर भी तुम अपनी 1 नज़र उसपे बनाए रखना."
"ठीक है.",1 बार फिर देविका के लब शिवा के होंठ तलाशने लगे.
"नही..",शिवा ने होंठ खींच लिए,"..पहले वादा करो की तुम होशियार रहोगी."
"वादा..वादा..वादा..!",देविका ने उसका सर पकड़ के नीचे झुकाया,"खुश?"
"हां.",शिवा उसे चूमने के लिए नीचे झुका तो इस बार देविका ने रोक दिया,"क्या हुआ?"
"मैने किया अब तुम भी 1 वाद करो."
"क्या?बोलो."
"की आज के बाद तुम मुझे किसी भी रात अकेला नही छ्चोड़ोगे."
"नही छ्चोड़ूँगा मेरी जान.",वो देविका की गोरी गर्दन पे झुक के अपने
होंठो से शरारत से काटने लगा,उसका सोया लंड 1 बार फिर से सुगुबुगाने लगा
था & उसकी कमर भी हौले-2 हिलने लगी थी.देविका ने अपनी टाँगे उसकी कमर पे
लपेटी,"..ऊव्व..",शिवा की शरारातो ने गुदगुदी पैदा कर दी तो उसने भी अपने
हाथो से उसके बगल मे गुस्गुसा दिया.1 दूसरे की च्छेड़च्छाद से दोनो
प्रेमियो के दिल मे खुशी की लहर दौड़ गयी & कमरा दोनो की हँसी की शोर से
भर गया.
"..सारा कारोबार चलाने की ज़िम्मेदारी Mइसेज.देविका सहाय के उपर हो.इस
वसीयत के & सुरेन सहाय & वीरेन सहाय के बीच हुए क़ानूनी करार के मुताबिक
अब वो आधी जयदा की भी मालकिन हैं लेकिन चुकी वीरेन जी अभी ना तो बँटवारा
चाहते हैं ना ही कारोबार चलाना तो अभी सारी जयदाद की देख-रेख की
ज़िम्मेदारी भी देविका जी की ही है..",कामिनी सहाय परिवार के बंगल के हॉल
मे बैठी वीरेन,देविका & प्रसून की मौजूदगी मे वसीयत पढ़ रही थी.
"..वीरेन जी को हर महीने पहले की ही तरह वो रकम मिलती रहेगी जो उन्होने
अपने बड़े भाई सुरेन सहाय के साथ मिल के तय की है & जोकि दोनो भाइयो के
करार मे भी लिखी हुई है.जिस दिन भी वीरेन सहाय क़ानूनी तौर पे बँटवारे की
माँग करेंगे उस तारीख से लेके आनेवाले 6 महीनो के भीतर देविका जी को उनके
साथ मिलके बँटवारे की सारी करवाई पूरी करनी होगी.अब देविका जी को भी अपनी
वसीयत बनानी होगी ताकि उनकी मौत के बाद उनके बेटे प्रसून की देखभाल हो
सके & जयदाद के मामले सुलझ सकें."
"ये है वसीयत का सार जो मैने पढ़ा है.इन सारी बातो को डीटेल मे आगे लिखा
गया है.ये 3 कॉपीस हैं..",कामिनी ने 2 देविका को & 1 वीरेन को
थमायी,"..आप प्रसून की कॉपी भी अपने पास ही रखिए,देविका जी & आप दोनो यहा
दस्तख़त कर दीजिए की आपने वसीयत ले ली है & आप इसे मानते हैं."
दोनो के दस्तख़त लेने के बाद कामिनी ने अपना बॅग मुकुल को थमाया & वाहा
से जाने लगी.वीरेन & देविका उसे बाहर तक छ्चोड़ने आए & उसकी कार का
दरवाज़ा खोलते हुए वीरेन फुसफुसाया,"डार्लिंग!आज शाम घर आना.तुम्हे कुच्छ
दिखाना है."
"हूँ..",कामिनी हल्के से मुस्कुराइ & कार मे बैठ गयी.
"मैं भी चलता हू.बीच-2 मे आता रहूँगा.",देविका की ओर देखे बिना उसने उस
से ये बात कही,"बाइ!प्रसून.",उसने अपने भतीजे को देख के मुस्कुराते हुए
हाथ हिलाया & उसने भी वैसे ही हंसते हुए उसका जवाब दिया.
"तुमसे 1 बात कहनी थी.",देविका उसके कार के दरवाज़े के पास खड़ी थी.
"क्या?",वीरेन चाभी इग्निशन मे लगा रहा था.
"आज मैं प्रसून के लिए 1 लड़की देखने जा रही हू.शाम लाल जी के जान-पहचान
का कोई परिवार है पंचमहल मे."
"तुम उसकी शादी कराओगि ही?",वीरेन ने इस बार अपनी भाभी की नज़रो से नज़रे मिलाई.
"हां & उसका चाचा होने के नाते तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है."
"हूँ..जो करना सोच-समझ के करना,प्रसून की मासूमियत का ख़याल रख के कोई
फ़ैसला लेना."
"तुम बेफ़िक्र रहो.आख़िर मैं उसकी मा हू.",वीरेन ने देविका को पल भर के
लिए बड़ी गहरी निगाहो से देखा & अपनी कार वाहा से निकाल दी.जब से देविका
बहू बन कर इस घर मे आई थी तब से लेके आजतक देवर-भाभी मे इतनी लंबी बातचीत
बस गिने-चुने मौको पे हुई थी.
1 गहरी सांस लेके देविका वापस बंगल मे चली गयी,"रजनी."
"येस,मॅ'म."
"देखो,मैं ज़रा काम से पंचमहल जा रही हू.पीछे अपने भाय्या का ख़याल
रखना.",उसने प्यार से अपने बेटे के बालो मे हाथ फेरा..इसका चाचा इसे
मासूम समझता है..आज उसे इस मासूम की थोड़ी मासूमियत भी दूर करनी थी बस
भगवान करे वो लड़की अच्छी हो!
"उम्म..मम्मी!मैं भी चलूँगा आपके साथ..",प्रसून मचल उठा.
"आज नही बेटा.बस आज का काम हो जाए फिर तुम भी चलना."
थोड़ी देर तक प्रसून ज़िद करता रहा & देविका उसे मनाती रही & जब वो मान
गया तो वो भी अपनी कार से ड्राइवर के साथ निकल गयी.
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"ये है संजय वेर्मा,मॅ'म.",शाम लाल जी देविका का परिचय लड़की के बड़े भाई
से करवा रहे थे.
"नमस्ते.",थोड़ी देर बाद बातचीत असल मुद्दे पे आ गयी.देविका को संजय 1
पड़ा-लिखा & बहुत शरीफ इंसान लगा.बाते भी वो काफ़ी नापी-तुली कर रहा था.
"..आपको तो अंकल ने सब बताया ही होगा.पिता जी की मौत के बाद से बस हम
दोनो भाई-बेहन ही हैं.पिताजी ने हम दोनो की पढ़ाई पे हुमेशा से ज़ोर दिया
था & उसी की बदौलत हम अपने पैरो पे खड़े हैं.हुमारे पास बेशुमार दौलत तो
नही पर उनके सिखाए हुए अच्छे विचार हैं.",शाम लाल जी ने पहले ही देविका
को इस परिवार के बारे मे सब कुच्छ बता दिया था & यहा तो देविका बस लड़की
से मिलने के मक़सद से आई थी.
"मुझे भी अपने बेटे के लिए बस 1 अच्छी सी बीवी चाहिए,संजय जी.दौलत का
क्या है!..इंसान अगर मेहनती हो & ईमानदार भी तो दौलत तो उसके पास रहेगी
ही.आप बस मुझे 1 बार रोमा से मिलवा दीजिए."
"ज़रूर.",संजय उठके अपनी बेहन को बुलाने चला गया.
"शाम लाल जी ,मैं उस से अकेले मे बात करना चाहती हू."
"ठीक है,मॅ'म."
तभी अंदर के दरवाज़े का परदा हटा & हल्के नीले रंग की सारी पहने 1 सुंदर
लड़की कमरे मे आई.देविका को देख वो लड़की मुस्कुराइ & हाथ जोड़ के नमस्ते
किया.
"नमस्ते,आओ बैठो बेटा.",उसके बैठते ही शाम लाल जी बहाने से संजय को वाहा
से ले गये.देविका उस लड़की से उसकी पढ़ाई & नौकरी के बारे मे पुछ्ति
रही.लड़की का रंग बहुत गोरा तो नही था मगर वो साँवली भी नही थी.उसका
चेहरा बहुत ही दिलकश था & पहली नज़र मे जो भी देखता उसे वो निहायत शरीफ &
पढ़ने-लिखने वाली लड़की लगती.
"रोमा,तुमने शाम लाल जी से कहा की प्रसून जैसे इंसान की बीवी बनके तुम्हे
बहुत खुशी होगी..मैं जान सकती हू क्यू?मेरा बेटा मंदबुद्धि है,ये जानते
हुए भी तुम आख़िर इस शादी के लिए क्यू तैय्यार हो?"
"हां,मैने ऐसा ही कहा था..",रोमा मुस्कुराइ,"..& कल अंकल को मैने जान बुझ
के इस बात को नही समझाया.मैं सीधा आपको ये बताना चाहती थी.देखिए,सब लोग
बस प्रसून जी की कमी देखते हैं.क्या कभी किसी ने ये सोचा है की वो इंसान
जिसे वो मंदबुद्धि समझ रहे हैं उसका दिल कितना सॉफ है."
"ये तुम्हे कैसे पता?तुम तो उस से मिली भी नही कभी.",देविका के माथे पे
शिकन पड़ गयी थी.
"मिली तो नही मगर इतना पता है की वो 1 छ्होटे बच्चे जैसे हैं.ये बात तो
सभी को मालूम है,अब आप ही बताइए क्या 1 छ्होटा बच्चा हम सो कॉल्ड मेच्यूर
यानी समझदार लोगो जैसा दुनिया के दाँव-पेंच समझ सकता है.नही ना!..इसका
मतलब की उनका दिल भी निश्च्छाल है & ऐसे इंसान की बीवी बनना तो बड़ी
किस्मत की बात है."
"तुम्हे उसकी दौलत का 1 पैसा भी नही मिलेगा,रोमा तो क्या फिर भी तुम उस
से शादी करोगी?"
"जी हां.इतना कमाने की ताक़त है मुझमे की ज़रूरत पड़ने पे मैं अपना &
अपने पति का गुज़ारा आराम से चला लू."
"अच्छा,अगर मैं तुमसे शादी के पहले 1 प्री-नप्षियल अग्रीमेंट पे दस्तख़त
करने कहु जिसमे ये लिखा होगा की प्रसून की मौत होने पे तुम्हे बस 1 तय की
हुई रकम मिलेगी & बाकी की जयदाद ट्रस्ट को दान कर दी जाएगी तो?"
"तो क्या?..मैं दस्तख़त कर दूँगी लेकिन मैं ये शादी तभी करूँगी जब आपको
मुझपे & मेरी ईमानदारी पे पूरा यकीन हो.",रोमा को ये बात थोड़ी बुरी लगी
थी की कोई उसकी ईमानदारी पे शक़ कर रहा है.
"अच्छा रोमा,मैं भी 1 औरत हू & अच्छी तरह समझती हू की इस धन-दौलत के
अलावा भी हुमारी 1 ज़रूरत होती है.उसके बारे मे कुच्छ सोचा है तुमने?"
"क्या प्रसून जी मे कोई कमी है?"
"नही."
"फिर उस बारे मे आप फ़िक्र मत करिए.मैं अपने पति के साथ हर खुशी का एहसास
कर लूँगी.इतना भरोसा है मुझे अपनेआप पर.",रोमा ने सर झुका लिया था & उसके
गाल सुर्ख हो गये थे.आख़िर अपनी होने वाली सास से ये बात करना की उसका &
उसके पति का सेक्स का रिश्ता कैसा होगा कोई मौसम के बारे मे बात करने
जैसा तो नही था!
"उठ बेटा..",देविका ने उसके कंधे पकड़ के उसे खड़ा कर दिया,"..मुझे मेरी
बहू मिल गयी है.मेरे सवाल बुरे लगे होंगे ना तुझे?",उसने उसका चेहरा पकड़
के उसे प्यार से देखा,"..मगर मैं मजबूर हू रोमा,अपने बेटे के लिए ये सब
करना पड़ा मुझे.देखो,मैने तुम्हे आज से अपनी बहू मान लिया है & तुम्हे 1
बेटी की तरह रखूँगी.वो अग्रीमेंट पे तुम्हे दस्तख़त तो करने पड़ेंगे मगर
वो कुच्छ क़ानूनी कार्यवाईयो को पूरा करने की गरज से.ये मत समझना की मुझे
तुमपे भरोसा नही रहेगा.",उसने उसके भाई & शाम लाल जी को अंदर बुलाया &
अपने पर्स से निकाल उसने उसे पकड़ाए,"..ये लो."
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