RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-14
गतान्क से आगे……………………
मैं उसके मूह पर बार बार थप्पड़ मार रही थी पर वो बिल्कुल नही रुक रहा था.
जल्दी ही मुझे संभोग के असीम आनंद ने घेर लिया और मैं मदहोश होकर सिसकिया भरने लगी. चाचा मेरी हालत समझ गया. उसने मेरे मूह से हाथ हटा लिया और रुक कर बोला, "ज़्यादा ज़ोर से अयाया ऊओ मत करना. नही तो पकड़े जाएँगे...हहेहहे."
मैं कुछ भी नही बोल पाई. शरम से मेरी आँखे बंद हो गयी.
चाचा का लिंग अब बड़े आराम से बिना किसी रुकावट के अंदर बाहर हो रहा था.
मेरी साँसे उखड़ रही थी. चाचा की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी. और फिर अचानक चाचा ने एक ऐसा तूफान मचाया जिसमे मैं उलझती चली गयी. वो बहुत ज़ोर ज़ोर से मेरी योनि को छेद रहा था. हर बार उसका लिंग और ज़्यादा गहरा जाता मालूम हो रहा था. मैने कालीन को मुट्ठि में लेने की कोशिश की. पर बात नही बनी. मैने ज़ोर से दाँत भींच लिए. मैं खुद को चिल्लाने से रोक रही थी क्योंकि एक तूफ़ानी ऑर्गॅज़म मेरे उपर छाने वाला था. और अचानक मैं झाड़ गयी. मगर चाचा की रफ़्तार कम नही हुई. वो पूरे जोश में मेरे अंदर धक्के पे धक्के लगाए जा रहा था. वो सच में मेरी योनि का कचूमर बना रहा था. कब मैं दुबारा झाड़ गयी मुझे पता ही नही चला पर चाचा की स्पीड कम नही हुई.
"बस करो अब. मैं थक गयी हूँ. रुक जाओ." मुझे बोलना ही पड़ा.
"बस थोड़ी देर और मार लेने दे मेरी रानी. बस थोड़ी देर और. क्या मैं तेरे होंटो को चूम लूँ."
"नही...." मैने चेहरा घुमा लिया
"चूम लेने दे ना इन अंगरों को क्यों चेहरा घुमा रही है." चाचा रुक कर बोला.
चाचा ने हाथ से मेरा चेहरा सीधा किया और अपने होन्ट मेरे होन्ट पर रख दिए. उसकी मूछ मेरे उपरे होन्ट से टकराई तो मैने तुरंत उसे हटा दिया.
"हटो...दुबारा मत करना ऐसा."
मगर चाचा ने फिर से मेरे होंटो पर होन्ट रख दिए और साथ ही फिर से मेरी योनि में धक्के लगाने शुरू कर दिया. योनि को मिल रहे धक्को के कारण मैं मदहोशी में डूबती चली गयी और मैं भी चाचा को चूमने लगी. अचानक चाचा एक दम रुक गया और बस मेरे होंटो को ही चूसना जारी रखा. मैं भी सहयोग देती रही.
"मज़ा आ गया यार. तू तो एक दम मस्त माल है. बड़े प्यार से चूत मरवाती है तू बस एक बार कोई डाल दे तेरी चूत में लंड."
"ऐसा कुछ नही है. तुमने धोके से किया है ये सब."
"चल जो भी है. तेरी चूत तो ले ही ली. जींदगी भर याद रखूँगा मैं तेरी ये चुदाई."
चाचा ने फिर से स्पीड पकड़ ली और मैं दाँत भींच कर फिर से झाड़ गयी. वो यू ही लगा रहा. बार बार मेरी योनि में लिंग धकेल्ता रहा.
अचानक उसकी स्पीड और ज़्यादा बढ़ गयी. मेरा शरीर काँपने लगा और साँसे उखाड़ने लगी. अचानक मुझे अपनी योनि में गरम गरम महसूस हुआ. मैं समझ गयी की चाचा झढ़ रहा है. मैने राहत की साँस ली. चाचा मेरे उपर ढेर हो गया. हम दोनो पसीने पसीने हो गये थे.
कुछ देर यू ही पड़ा रहा चाचा. फिर उसने धीरे से मेरी योनि से अपना लिंग निकाल लिया और अपने कपड़े उठा कर चुपचाप टाय्लेट की तरफ बढ़ गया. मैने भी तुरंत अपने सारे कपड़े पहन लिए. संभोग की खुमारी की जगह अब मुझ पर शरम और ग्लानि हावी हो रहे थे. मेरी आँखे टपक गयी और मैं घुटनो में सर छुपा कर सुबकने लगी.
चाचा कपड़े पहन कर टाय्लेट से बाहर आया और मेरे सर पर हाथ रख कर बोला, "क्या हुआ ऐसे क्यों बैठी हो."
"दूर हटो मुझसे देहाती" मैं ज़ोर से चिल्लाई.
"रस्सी जल गयी पर बल नही गये. तेरी चूत फाड़ दी है मैने. सीलवानी हो तो मेरे कमरे में आ जाना." चाचा बोल कर वहाँ से चला गया.
मैं अपने में गुम्सुम वहाँ बैठी रही. मेरा सब कुछ लूट चुका था. मैं कुछ सोफे पर ही अंधेरे में बैठी रही. मैं बहुत थकि थकि महसूस कर रही थी. हो भी क्यों ना जालिम ने मेरी जान निकाल दी थी. आँसू थे कि टपके ही जा रहे थे. मगर रोने से क्या हो सकता था. जो होना था वो तो हो ही चुका था. मैं धीरे से सोफे से उठी तो मेरी टांगे काँप रही थी. खड़े होने पर मेरे योनि द्वार से चाचा का वीर्य रिस्ता हुआ मेरी जाँघो तक आ गया और मेरी पॅंटीस और सलवार को गीला कर दिया. मैं बेडरूम में आई चुपचाप और गगन के बाजू में आकर लेट गयी. क्योंकि पॅंटीस और सलवार थोड़ी गीली हो गयी थी इसलिए मैने उन्हे बदलने का फ़ैसला किया. मगर गगन गहरी नींद सोया था. मैं दूसरे कपड़े निकालने के लिए आल्मिरा खोलती तो वो उठ जाता.
तभी मुझे ध्यान आया कि मैने शाम को अपनी नाइटी निकाली थी आल्मिरा से. उसमे माइनर सी सीलाई करनी थी. वो एक जगह से मामूली उधाड़ गयी थी. मैने अपने कपड़े निकाल कर वो पहन ली और वापिस बिस्तर पर लेट गयी.
बिस्तर पर पड़े पड़े बहुत देर तक मैं चाचा को कोस्ती रही. कब मुझे नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला.
सुबह मेरी आँख तब खुली जब मुझे अपने उपर भार महसूस हुआ. मेरी नाइटी मेरे नितंबो से उपर उठी हुई थी और मेरे नितंबो की दरार में कुछ फँसा हुआ था. मैं नींद की खुमारी में थी. एक तो देर से सीई थी उपर से पूरा शरीर टूटा हुआ था. मुझमे उठने की और आँख खोलने की हिम्मत नही थी. खोल ही नही पा रही थी आँखे. नशा ही कुछ ऐसा था नींद का.
मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कोई सपना देख रही हूँ. अचानक दो हाथो ने मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को एक दूसरे से दूर कर कर दिया. फिर मुझे अपने पीछले छिद्र पर गीला गीला महसूस हुआ. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. ये सपना है या हक़ीक़त मुझे कुछ समझ नही आ रहा था.
जब मेरे पीछले छिद्र पर मोटी सी चीज़ रख दी गयी तो मेरी नींद टूट गयी.
"गगन हट जाओ. तुम तो यहाँ कभी नही डालते आज क्या हो गया तुम्हे. अभी मुझे नींद आ रही है. ये सब करना ही है तो बाद में कर लेना. अभी नही प्लीज़."
मगर मेरी बात का कोई असर नही हुआ. मेरे छिद्र पर लिंग टिका रहा. मैने हाथ पीछे करके लिंग को पकड़ लिया, ताकि उसे अपने होल के उपर हटा सकूँ.
तुरंत मुझे 1000 वॉल्ट का करेंट लगा. मेरे हाथ में बहुत मोटा लिंग था. बिल्कुल चाचा के लिंग जैसा.
"ओह नो देहाती तू यहाँ क्या कर रहा है. गगन....गगन." मैने ज़ोर ज़ोर से गगन को आवाज़ दी.
"गगन सैर करने गया है मेरी जान. चल थोड़ी मस्ती करते हैं."
"कुत्ते, सुवर...हट जा तुरंत नही तो अंजाम बुरा होगा."
"जैसे तूने कल रात चूत दी प्यार से. ये गान्ड भी दे दे. मैं धन्य हो जाउन्गा.
इतनी खूबसूरत गान्ड मैने आज तक नही देखी. बहुत सुडौल और मांसल है तेरी गान्ड. मगर इतनी मोटी भी नही है कि तूल तुली लगे. सबसे बड़ी बात ये है कि इस पर एक भी दाग या धब्बा नही है. अक्सर गान्ड के छेद के पास का हिस्सा काला होता है मगर तेरे छेद के साथ ऐसा नही है. सोने की तरह चमकता है तेरे छेद के पास का हिस्सा."
मुझे इतनी तारीफ़ अच्छी तो लग रही थी मगर शरम भी आ रही थी की ये क्या बोल रहा है. लेकिन मैं दुबारा उसके जाल में नही फसना चाहती थी.
"हट जा सुवर मेरे उपर से. दफ़ा हो जा अपने गाओं."
"इस सुवर को ये अनमोल गान्ड भी मार लेने दे. तेरी गान्ड का गुलाबी छेद मेरे लंड को बुला रहा है."
मैं ज़ोर से छटपताई और चाचा को अपने उपर से हटा कर बिस्तर पर बैठ गयी.
अपनी नाइटी भी मैने टाँगो तक वापिस खींच ली थी.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में आने की."
"देख तेरी चूत तो ले ही चुका हूँ. बस ये गान्ड भी दे दे. तू भी चाहती है इसे अपनी गान्ड में बस झीजक रही है." चाचा ने अपने लिंग के मोटे सुपाडे पर हाथ फिराते हुए कहा.
"कुत्ते के मूह हड्डी का लग गयी आदत खराब हो गयी. तुमने ज़बरदस्ती की मेरे साथ रात को. मैं तुम्हे जैल में डलवा सकती हूँ. एक मिनिट के अंदर यहाँ से नही गये तो तुरंत पोलीस को फोन घुमा दूँगी."
चाचा मेरी ये बात सुन कर घबरा सा गया और बिस्तर से उठ कर नीचे खड़ा हो गया. अपना लिंग भी उसने अंदर डाल लिया. अचानक उसने अपने कुर्ते की जेब से एक सोने का हार निकाला और मेरे उपर फेंक कर बोला, "ये ले मेरी रखैल की बाक्सिश."
बोल कर वो तुरंत बाहर जाने को मूड गया.
"कुत्ते मैं तेरी रखैल नही हूँ. ज़ुबान पर लगाम रख."
चाचा के जाने के बाद मैने सोने के हार को उठा कर देखा. देखने से ही
बहुत कीमती लगता था. इतना कीमती हार मैने आज तक नही पहना था. मगर मैं वो हार नही रख सकती थी. मैं बिस्तर से उठी और गुस्से में चाचा के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गयी. वो अपना बेड तैयार कर रहा था. मैने हार उसके उपर फेंका और बोली, "तू ही रख ये सोने का हार. मुझे इसकी कोई ज़रूरत नही है.
मेरा पति मुझे खूब देता है."
"पर तू मेरी रखैल है. कुछ तो तुझे देना ही होगा ना हहहे." वो मुझे जान बुझ कर नीचा दिखा रहा था.
"तुझे कुत्ते की मौत देंगे भगवान." मैने तिलमिला कर कहा और अपने बेडरूम में वापिस आ गयी.
10 बजे तक सर दर्द का बहाना करके मैं अपने कमरे में ही पड़ी रही. नाश्ता भी नही बनाया. गगन ने मुझसे कहा कि जाते जाते चाचा से तो मिल लो. मैं बोल दिया कि मैं मिल चुकी हूँ उनसे जब तुम सैर पर गये थे.
गगन चाचा को रेलवे स्टेशन छोड़ आया. मैने सुकून की साँस ली. बिन बुलाया मेहमान जा चुका था.
तो दोस्तो ये कहानी यही ख़तम हुई फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
"दा एंड"
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