Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन
03-08-2019, 03:07 PM,
RE: Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली मा�...
मैं: एक रास्ता है नाज़िया….एक रास्ता है…

नाज़िया ने चोंक कर मेरी तरफ देखा…”क्या…..” नाज़िया ने मुझसे अलग होते हुए कहा…. “ नज़ीबा का निकाह मुझसे करवा दो….फिर तो दुनिया वालो के मूह को ताला लग जाएगा…” 

नाज़िया: समीर……(नाज़िया ने मुझे पर चिल्लाते हुए कहा….) ये तुम क्या कह रहे हो… तुमने ये सोच भी कैसे लिया…..

मैं: इसके सिवाय और कोई रास्ता नही है नाज़िया…. देखो दुनिया वालो का मूह भी बंद हो जाएगा..और तुम हमेशा मेरे करीब भी रहोगी….

नाज़िया: नही समीर ये ग़लत है….ऐसा तुमने सोच भी कैसे लिया….

मैं: आख़िर इसमे हर्ज ही क्या है….क्या तुम मुझसे प्यार नही करती….

नाज़िया: नही समीर ऐसा करके मैं अपनी बेटी को धोखा नही देना चाहती… ऐसा तो कोई भी माँ अपनी बेटी के साथ करने के बारे मे सोच भी नही सकती….अगर नज़ीबा को पता चला तो सोचो मेरे क्या इमेज रह जाएगी उसके सामने…मैं तो उसके सामने सर उठाने के लायक भी नही रहूंगी…

मैं: और अगर नज़ीबा खुद इस बात को आक्सेप्ट कर ले तो,

नाज़िया: तुम पागल तो नही हो गये समीर…..जो मूह मे आ रहा है बके जा रहे हो..

मैं: नही मे पागल नही हूँ नाज़िया….तुम….

नाज़िया: बस समीर अब मैं और कुछ नही सुनना चाहती…तुम हो ही क्या….तुम्हारी हैसियत ही क्या है….तुम्हारे अब्बू के बिना….जो तुम नज़ीबा से निकाह करने के बारे मे सोच रहे हो…आज अगर तुम्हारे अब्बू तुम्हे घर से बाहर निकाल दें तो तुम्हारे पास रहने की छत भी नही है…..और ना ही कोई आमदनी का ज़रिया कि, तुम दो वक़्त के रोटी खा सको….देखो समीर कल मैं इस्लामाबाद जा रही हूँ… अम्मी की तबीयत बहुत खराब है….ये सब भूल कर अपनी स्टडी पर ध्यान दो…आज से हमारे रास्ते अलग-2 होते है…

इतने मे बाहर डोर बेल बजी….मैने बाहर जाकर गेट खोला तो देखा अब्बू घर आ चुके थे….उसके बाद कोई और बात नही हुई….मैं बहुत परेशान हो चुका था…और उदास भी….अगले दिन नाज़िया इस्लामाबाद चली गयी…वो 10 बाद वापिस आई….नाज़िया के भाई अपनी अम्मी को साथ यही ले आए थे….अब नाज़िया की अम्मी नीलम के घर पर रह रही थी…क्योंकि नाज़िया की अम्मी की तबीयत ठीक नही हो रही थी….और उसकी अम्मी थी भी काफ़ी उमर्दराज…वो 75 से ऊपेर की हो चुकी थी….नाज़िया ने अब्बू से बात करके कुछ वक़्त माँगा लिया था….कि वो अभी दूसरी शादी का जिकर ना करे… उनकी अम्मी शायद ये सदमा बर्दास्त ना कर पाए….इसलिए अब्बू ने भी दूसरी शादी करने का फ़ैसला कुछ अरसे के लिए छोड़ दिया था….

वक़्त ऐसे ही कट रहा है…2 मंथ ऐसे बीत गये….मेरे फाइनल एग्ज़ॅम हो चुके थे. और मैं रिज़ल्ट का वेट कर रहा था…फिर रिज़ल्ट भी आ गया….और मैं पास हो गया,….उससे कुछ दिन बाद नाज़िया की अम्मी चल बसी…उनकी मौत हो गयी…नाज़िया और नज़ीबा दोनो बेहद उदास थी….इस दौरान जो एक अच्छी खबर आई वो ये थी कि सबीना की वजह से मुझे बॅंक में वो जॉब मिल गयी थी…जिसका वादा सबीना ने मुझसे किया था…नाज़िया की अम्मी के मौत के बाद अब्बू ने दुनिया दारी रखने के लिए 2 मंथ और वेट करने का फैंसला किया….इस दौरान मेरी ट्रनिंग शुरू हो चुकी थी…. नज़ीबा भी 10थ के एग्ज़ॅम मे पास हो गयी थी….

पर उसने कॉलेज जाय्न नही किया था….क्योंकि नाज़िया को अभी खुद को मालूम नही था कि, वो इसी सिटी मे अपने पुराने घर पर रहेगी या फिर इस्लामबाद मे…फिर वो यहाँ रहेगी वही कॉलेज मे नज़ीबा का ऐडमशन करवाना था….नाज़िया ने इस्लामबाद मे ट्रान्स्फर करवाने के लिए अप्लिकेशन दे रखी थी….नाज़िया की अम्मी की मौत के एक महीने बाद नाज़िया और अब्बू ने डाइवोर्स ले लिया था….पर ये बात अभी बाहर वालो से जाहिर नही की थी…फिर एक दिन नाज़िया की अप्लिकेशन मंज़ूर हो गयी और नाज़िया का ट्रान्स्फर इस्लामाबाद की बजाय….लाहोर मे हो गया….नाज़िया की अम्मी अपनी सारी ज़मीज़ जायदाद नज़ीबा के नाम कर गयी थी….

नाज़िया ने इस्लामाबाद वाला और हमारा सिटी वाला अपना घर बेच के लाहोर मे एक दो मंज़िला घर खरीद लिया था..और बाकी के पैसे नज़ीबा के नाम जमा करवा दिए थे…और नज़ीबा का वही अड्मिसन करवा दिया था….अब्बू ने जब मेरी सामने अपना दूसरा निकाह करने की ख्वाहिश रखी तो, मैने उनसे कहा कि, मुझे कोई ऐतराज़ तो नही है….पर मैं अब कुछ वक़्त के लिए अकेला रहना चाहता हूँ….आप निकाह कर लें मुझे कोई प्राब्लम नही है…

मेरी ट्रंनिंग भी पूरी हो चुकी थी….मैने भी सबीना से कह कर अपनी ट्रान्स्फर लाहोर मे करवा ली थी….फिर आख़िरकार वो दिन आ ही गया….जब मैं घर से पहली बार अपने दम पर बाहर जा रहा था….अपनी जिंदगी की नयी शुरुआत करने…मुझे नही पता था कि, जिस रास्ते पर मैं चल पड़ा हूँ….वो रास्ता मुझे मेरी मंज़िल तक ले भी जाएगा या नही….उस दिन मैने सुबह-2 अपना समान दो बड़े बॅग्स मे पॅक किया और अब्बू से इज़ाज़त लेकर घर से निकला तो, देखा कि, फ़ैज़ बाहर कार लेकर खड़ा था… फ़ैज़ मुझसे गले मिला और उसने मेरे हाथो से बॅग पकड़ कर कार मे रखे….और फिर मैं फ़ैज़ के साथ कार मे बैठ कर सिटी तक आया….

फ़ैज़ भी मेरे ऐसे जाने से काफ़ी दुखी था….और साथ ही खुश भी था कि, आख़िर मैं अपने पैरो पर खड़ा हो गया हूँ….बस स्टॅंड पर पहुँच कर मैने इस्लामाबाद के लिए बस पकड़ी…उस दिन मैं शाम को इस्लामाबाद पहुँचा…उस वक़्त मेरे पास वहाँ रहने के लिए कोई अरेंज्मेंट नही था….मेरे पास सिर्फ़ पहले मंथ की सॅलरी थी… पहली रात मैने होटेल मे रूम लेकर गुज़ारी….और अगली सुबह मैं जब तैयार होकर होटेल बॅंक के लिए निकला तो, आप इसे मेरी किस्मेत ही समझिए कि, अभी मैं बॅंक के एंट्री पॉइंट पर पहुँचा ही था कि, मेरा आमना सामना नाज़िया से हुआ…मुझे देखते ही उसका रंग एक दम से उड़ गया….

मुझे भी समझ मे नही आया कि, मैं कैसे रिएक्ट कारू….इससे पहले कि मैं कुछ बोलता तो, नाज़िया ने बड़ी ही सख़्त अंदाज़ में मुझसे कहा…”समीर अब तुम यहाँ क्या लेने आए हो…प्लीज़ चले जाओ यहाँ से…मैं तुम्हे भूल चुकी हूँ..प्लीज़ ऐसे मेरे सामने आकर मुझे मेरा बीता हुआ कल याद ना दिलाओ….” और फिर वो बिना कुछ बोले अंदर चली गयी….उसके जाने के बाद मैं अंदर गया और सीधा ब्रांच मॅनेजर को रिपोर्ट किया…और अपना जाय्निंग लेटर दिया….

उसके ब्रांच मॅनेजर ने मुझे सारे स्टाफ से मिलवाया…जिसमे नाज़िया भी शामिल थी.. और जब उसे ये बात पता चली कि, मुझे बॅंक मे जॉब मिल गयी है….तो, नाज़िया के फेस एक्सप्रेशन चेंज हो गये….मुझे नही पता कि वो खुश थी…या फिर शॉक्ड हो गयी थी….मैं अपने काम मे बिज़ी हो गया….इस दौरान दोपहर तक कोई ख़ास बात ना हुई….दोपहर तक बाकी के सारे स्टाफ से अच्छी तरह इंट्रो भी हो गयी थी…. लंच टाइम मे जब लोग खाना खाने लगे तो, सभी लोगो ने मुझसे खाने के लिए पूछा. पर मैने उन्हे थॅंक्स कह कर मना कर दिया….

नाज़िया बाकी स्टाफ के साथ लंच करते हुए बड़े गोरे से मेरी तरफ देख रही थी…. मुझे अच्छी तरह याद है कि उसने लंच भी ठीक से नही किया था….लंच के बाद सभी स्टाफ के लोग बाहर चाइ पीने के लिए चले गये….मैं अपने डेस्क पर बैठा हुआ था…. कि नाज़िया मेरे पास आई….”कोंग्रथस समीर….” नाज़िया ने मेरे पास आकर चेर पर बैठते हुए कहा….

मैं: थॅंक्स….

नाज़िया: खाना क्यों नही लाए साथ…

मैं: मैने सुबह नाश्ता ज़्यादा कर लिया था….इसलिए अब खाना खाने का मूड नही है

नाज़िया: कहाँ रुके हो….

मैं: फिलहाल तो होटेल मे रूम लिया है….मैं कल शाम को ही यहाँ पहुँचा था…

नाज़िया: ये तो प्राब्लम है…कोई रेंट पर घर या पोर्षन देख लो….

मैं: हां देख लूँगा…तुम्हे मेरे लिए परेशान होने की ज़रूरत नही है….

मैने दूसरी तरफ फेस कर लिया….नाज़िया कुछ देर वहाँ खामोश बैठी रही और फिर उठ कर चली गयी….शाम को मैने बॅंक के स्टाफ के सारे लोगो से कह दिया कि, मुझे कोई रूम या कोई पूरा पोर्षन रेंट पर दिलवा दें…. इसी तरह 3-4 दिन गुजर गये…पर मुझे ना तो कही घर रेंट पर मिल रहा था और ना ही सिंगल रूम मिल रहा था….होटेल मे रहना बहुत महँगा पड़ रहा था….5 दिन जब बॅंक बंद होने के बाद मैं बॅंक से बाहर निकला तो, मुझे बॅंक की पीयान फराह ने मुझे आवाज़ दी…. फराह की आगे 40 साल के करीब थी….उसके शोहार की मौत कई साल पहले हो चुकी थी….उसके 1 बेटा और 2 बेटियाँ थी……दोनो बेटियों का निकाह हो चुका था….

फराह दिखने मे कुछ ख़ास ना थी…..फराह की आवाज़ सुन कर जब मैं रुका तो, वो मेरे पास आई और फिर कुछ देर सोचने के बाद बोली…”आपको रूम मिला या नही…”

मैं: नही अभी तक नही मिला तुम्हारी नज़र मे कोई है तो बताओ…

फराह: जी है तो सही….पर….

मैं: पर क्या….

फराह: जी वो रूम तो मेरे घर पर है…..पर….

मैं: क्या अगर आपके घर मे रूम खाली है तो, आपने मुझे पहले क्यों नही बताया….

फराह: जी वो दरअसल मुझे बात करने मे झिझक हो रही थी….

मैं: कैसी झिझक….

फराह: दरअसल मेरा घर ज़्यादा बड़ा नही है….और मुझे पता नही कि आपको पसंद आएगा या नही….शायद वो आपके रहने लायक जगह हो ही ना….

मैं: इसमे कॉन सी झिझकने वाली बात है….मैं एक बार देख लेता हूँ…अगर पसंद आ गया तो, फिर वहाँ शिफ्ट हो जाउन्गा….वैसे भी कितने दिन होटेल मे रहूँगा…

फराह: तो कब देखोगे....

मैं: आज ही दिखा दो…नही तो मुझे होटेल के रूम का कल का रेंट भी देना पड़ेगा.

फराह: जी दुरस्त है….आप चलिए मेरे साथ….

मैं वहाँ से फराह के साथ उसके घर आ गया….उसका घर बड़े ही अजीब से मोहल्ले मे था….ऐसा लग रहा था…..जैसे मैं किसी ग़रीबो की बस्ती मे आ गया हूँ…खैर थोड़ी देर बाद फराह एक घर के सामने रुकी…और गेट को खटखटाया तो थोड़ी देर बाद एक औरत ने गेट खोला….जैसे ही हम दोनो अंदर दाखिल हुए, तो फराह ने उस औरत की तरफ देखते हुए कहा….”जी ये मेरी देवरानी है….यारा….” उस औरत ने मुझे हल्की सी स्माइल के साथ देखा और सलाम किया…मैने वही खड़े-2 एक ही पल मे पूरे घर का जायज़ा ले लिया….

घर मे पीछे की तरफ दो रूम थे …और साथ किचन और बरामदा था….आगे गेट के पास एक तरफ बाथरूम और टाय्लेट था…और दूसरी तरफ एक छोटा सा रूम था,…” आइए आप पहले रूम देख लें….” फराह ने मेरी तरफ देखते हुए कहा…और फिर मुझे गेट वाले रूम के अंदर ले गयी….”यारा तुम चाइ बना कर ले आओ….” फराह ने रूम के अंदर जाते हुए कहा…..रूम की हालत काफ़ी खराब थी….मुझे नही पता था कि, मैं यहाँ रह भी पाउन्गा या नही…मैं अभी दिल मे यही सोच रहा था कि, मैं यहा पर कैसे रहूँगा…….पर शायद फराह ने मेरी सोच को पढ़ लिया था…

फराह: मुझे पता है कि, ये रूम आपके रहने के लायक नही है….पर जब तक आपको कोई और रूम नही मिल जाता…आप यहाँ रह सकते हो….अगर आप चाहो तो,……

मैने भी दिल ही दिल मे सोचा….कि फराह ठीक कह रही है….उस महँगे होटेल मे रोज के 600 रुपये देकर रहने से बेहतर तो यही रहना ठीक है…जब कोई ढंग का पोर्षन या रूम मिल जाएगा….तब यहाँ से शिफ्ट कर जाउन्गा….फराह उसके बाद मुझे अपने रूम मे ले गयी….और मुझे चेर पर बैठने के लिए कहा….मैं चेर पर बैठ गया… फराह किचन मे चली गयी…पता नही क्यों पर मुझे वहाँ बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था…खैर चाइ पीकर मैने वहाँ से इज़ाज़त ली और वहाँ से होटेल मे आ गया….अभी मैं कुछ डिसाइड नही कर पा रहा था कि क्या करूँ…
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