Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:32 PM,
#53
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
उसकी नजर जब रामू काका से टकराई तो उनके चहरे में एक-एक अजीब सी, शरारत थी और एक मुश्कान भी वो झेप गई और वही खड़ी रही तब तक जब तक वो बाहर नहीं चले गये

जल्दी से चाय पीकर वो तैयार होने लगी बहुत ही सलीके से तैयार हुई थी आज वो टाइट चूड़ीदार था और कुर्ता जो की उसके शरीर के हर भाग को स्पष्ट दिखाने की कासिश कर रहा था हर उतार चढ़ाव को साफ-साफ दिखा रहा था लाल और ब्लच का कॉंबिनेशन था पर ज्यादा ब्लैक था

सिल्क टाइप का कपड़ा था और उसपर एक महीन सा चुन्नी उसके इस शरीर पर गजब ढा रहा था बालों को सिर्फ़ एक क्लुचेयर के सहारे सिर्फ़ पीछे बाँध लिया था और बाकी के खुले हुए थे जोकि उसके स्लीव्ले कुर्ते से होकर गले के कुर्ते के ऊपर पीठ तक आते थे कसे हुए कुर्ते के कारण पीछे से गजब की खूबसूरत लग रही थी आरती एक बार फिर से दर्पण में अपने को निहारने के बाद वो झटके से अपना पर्स उठाकर कमरे से बाहर निकलकर लगभग उछलती हुई सी सीढ़िया उतरने लगी थी सोनल को डाइनिंग स्पेस पर बैठे देखकर वो थोड़ा सा सकुचा गई थी और धीरे-धीरे कदम बढ़ा कर डाइनिंग टेबल पर आ गई थी
सोनल- मम्मी,आज बहुत देर तक सोई आप
आरती- वो रात नींद नहीं आई इसलिए
सोनल- हाँ… जल्दी सो जाया करो मम्मी नहीं तो सुबह के काम में फरक पड़ जाएगा हाँ…
कामया- ह्म्म्म
और झुक कर अपना खाने में जुट गये थे दोनों बातें कम और जल्दी ही दोनों खाना खतम करके बाहर की ओर हो लिए बाहर लाखा काका नजर नीचे किए दोनों का इंतजार करते मिले सोनल और आरती के बैठने के बाद झट से ड्राइविंग सीट पर जम गया (रवि में लाखा को उसकी गैर हाजिरी में शोरूम छोड़ने का काम दिया था)
सोनल- लाखा एक काम कर पहले मम्मी को फैक्टरी छोड़ देते है और जरा मुझे मार्केट की ओर ले चल थोड़ा काम है
लाखा- जी
सोनल- एक काम करते है मम्मी आपको फैक्टरी छोड़ देती हूँ पहले, फिर मुझे थोड़ा मार्केट में काम है जाते हुए आपको लेते हुई चलूँगी।
आरती- पर क्या तुम वापस आओगी
सोनल- हाँ… क्यों मम्मी।
आरती- नहीं वो में सोच रही थी कि तुम शोरुम चले जाना जब मुझे आना होगा में तुमको फोन कर दूँगी तो तुम गाड़ी भेज देना
सोनल- यह भी ठीक है मम्मी।
आरती- हम्म
और गाड़ी अपनी रफ़्तार से फैक्टरी की ओर दौड़ पड़ी फैक्टरी के बाहर पहुँचते ही वहां एक सन्नाटा सा छा गया था मेमसाहब की गाड़ी जो थी सब थोड़ी देर के लिए अटेन्शन में थे फिर दो एक आदमी दौड़ते हुए गाड़ी की ओर आए सोनल के साथ आरती भी उतरी जैसे कोई अप्सरा हो हर किसी की नजर एक बार तो आरती के हुश्न के दीदार के लिए उठे ही थे और कुछ आहे भर कर शांत भी हो गये थे

सोनल के साथ आरती भी आगे बढ़ी और इधर उधर देखती हुई अपने आफिस की ओर बड़ी थी पीछे-पीछे बहुत से लोग सोनल को ओर उसे कुछ समझाते हुए आगे पीछे बने हुए थे थोड़ी देर बाद ही सोनल अपने काम से निकल गये और आरती अकेली रह गई आज पहला दिन ऐसा था जब आरती अपने आप फैक्टरी के काम को अकेला देखने के लिए रुकी थी नहीं तो हमेशा ही रवि या फिर सोनल उसके साथ ही होते थे


आफिस में हर कोई आरती मेडम के आस-पास होने की कोशिश कर रहा था हर कोई अपने आवाज में सहद घोल कर और आखों में और चेहरे में एक मदमस्त मुश्कान लिए आरती मेडम को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहा था आरती यह बात अच्छे से जानती थी कि क्यों आज लोग उसके आस-पास और इतनी सारी बातें उससे शेयर कर रहे है कोई कुछ बताने की कोशिस कर रहा था तो कोई कुछ हर कोई अपनी इंपार्टेन्स उसके सामने साबित करने की कोशिश
कर रहा था थोड़ी देर में ही आरती को जो जानना था वो जान चुकी और एक-एक करके सारे लोग उसके केबिन से विदा हो गये अब वो अकेली रह गई थी थोड़ी देर में ही आफिस में सन्नाटा सा छा गया था बाहर चहल पहल थोड़ी सी रुक गई थी वो थोड़ा सा सचेत हुई कि क्या बात है पर जब घड़ी में नजर गई तो लंच टाइम था शायद इसलिए सबकुछ शांत था वो भी चहल कदमी करती हुई अपने केबिन से निकली और आफिस को देखती हुई बाहर की ओर चल दी दौड़ता हुआ उसका चपरासी उसके पीछे आया
चपरासी- मेडम
आरती- हाँ…
चपरासी- जी कुछ
आरती- नहीं नहीं आप जाइए हम थोड़ा सा काम देखकर आते है
चपरसी- जी और चपरासी हाथ बाँधे हुए अपनी नजर नीचे किए हुए पीछे हट गया आरती अपने आफिस से निकलते ही उसने एक नजर पूरी बिल्डिंग में घुमाई हर कही कोई ना कोई काम कर रहा था कुछ लोग खाना खा रहे थे आरती को देखकर थोड़ा सा चौके जरूर पर आरती के हाथ ऊपर कर करने से वो सहज हो गये और अपने काम में लगे रहे घूमते हुए आरती थोड़ा बाहर की ओर निकली और सामने का काम देखते हुए थोड़ा और बाहर वो देखना चाहती थी कि फैक्टरी सामने से कैसा देखता है सो वो थोड़ा और आगे बढ़ कर सामने से उसे देखती रही वो उसके
बारे में भी थोड़ा बहुत जानने की कोशिस करना चाहती थी आगे बढ़ते हुए साइड की ओर देखती जा रही थी छोटे छोटे झुग्गी टाइप बने हुए थे साइट पर काम करने वाले वर्कर वही रहते थे कुछ गंदे से बच्चे वही रेत और मिट्टी में खेल रहे थे शायद माँ बाप दोनों काम पर थे इसलिए उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था थोड़ा आगे चलने पर वो थोड़ा सा ठिठकी उसे कुछ याद आया वो थोड़ा सा रुकी और एक बार अपने चारो ओर देखती रही उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई हथेलिया आपस में जुड़ गई थी और कदम भारी से हो चले थे उसपर किसी की नजर नहीं थी सब अपने काम में व्यस्त थे एक बार फिर उसके कदम आगे की ओर बढ़े और पास में खेल रहे कुछ बच्चो को उसने हँसकर देखा एक छोटी सी लड़की उसके जबाब में मुस्कुराई
आरती- यहां रहती हो
वो लडकी- (मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला दिया )
आरती- और कौन रहता है यहां
वो लड़की- (कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराती रही )
आरती- अच्छा वो भोला कहाँ रहता है (आरती का गला सुख गया था पूछने में )
झट से पूछकर वो एक बार पीछे घूमकर देखने लगी शायद उसे डर था कि किसी ने उसकी आवाज तो नहीं सुनी हो।
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