RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
बहुत आराम मिल रहा था , पता नहीं कित्ते देर तक वो ऐसे ही , फिर उसने दोनों जाँघों को खूब दूर दूर फैला दिया और एकदम ऊपरी हिस्से में भी अंगूठे और तरजनी से दबा दबा के,
...
टाइम का अहसास कब का खत्म हो गया था। माँ भी हलके हलके मेरा माथा दबा रही थी , सहला रही थी।
मैं एकदम से सो गयी थी , फिर भी पता नहीं शायद सपने में या सच में ,... माँ के फुसफुसाने की आवाज सुनी। वो गुलबिया से बोल रही थीं ,
अरे अइसना कच्ची कली रोज रोज नहीं मिलती अरे होंठों का इस्तेमाल करो , चूस कस के , पूरा शहद निकाल ले। "
बस मुझे गुलबिया की जीभ की नोक का अहसास हुआ , ....'वहां' नहीं बस उसके ठीक बगल में जैसे वो योनि द्वीप की परिक्रमा कर रही हो , देर तक।
नींद में भी मैं गिनगिनाती रही ,सिसकती रही ,बस लगता था कब वो अपनी जीभ सीधे वहां ले जाए।
थकान तो वहां भी थी ,लेकिन गुलबिया को कौन समझाए समझाये उसे तो बस तड़पाने में मजा मिल रहा था
और फिर अचानक ,सडप सडप , ... जैसे कोई लंगड़े आम की फांक फैला के चाटे बस वैसे ,
नीचे से ऊपर तक ,फिर ऊपर से नीचे तक ,...
सच में इस ' मालिश ' से मेरी गुलाबो की थकान भी एकदम दूर हो गयी बल्कि कुछ ही देर में वो रस बहाने लगी।
मैं अभी भी आधी से ज्यादा नींद में थी , और गुलबिया ने जो गुलाबो की थकान दूर की तो नींद और गहरी सी हो गयी।
आँखे एकदम चिपक गयी थी , देह इतनी हलकी थी की जैसे हवा में उड़ रही हूँ। बस सिर्फ गुलबिया की जीभ का अहसास मेरी गुलाबो पर हो रहां था ,
उसे मुझे झाड़ने की जल्दी नहीं थी , आराम से धीमे धीमे बस वो चाट रही थी हाँ कभी छेड़ते हुए जैसे कोई लौंडा लण्ड ठेले ,जीभ की नोक बुर में ठेल देती।
पांच मिनट ,पचास मिनट मुझे कुछ अंदाज नहीं था ,मैंने एक बार भी आँख नहीं खोली।
और फिर कुछ ऐसा हुआ जो सोलह सावन में आज तक नहीं हुआ था ,
चंदा , बसंती ,कामिनी भाभी ,चम्पा भाभी ,कितनो ने न जाने कितनी बार मेरी मखमली गुलाबो का रस चाटा था , चूसा था , लेकिन जैसा लग रहा था , वैसे आज तक कभी नहीं लगा था।
और मस्ती में चूर मैं आँख भी नहीं खोल सकती थी। पूरी देह काँप रही थी , मस्ती में चूर थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या हो रहा है। लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी।
थोड़ी खुरदुरे दार जीभ ,खूब कस `के रगड़ रगड़ कर , और रफ़्तार कितनी तेज थी , मैं ऐसी गीली हो गयी थी की बस ,
" गुलबिया , प्लीज थोड़ा सा रुक जाओ न ,क्या कर रही है , नहीं करो न , लगता है ,... ओह्ह आहह , नहीं ई ई ई ई ,... " मैं आँखे बंद किये बुदबुदा रही थी , बड़बड़ा रही थी।
लेकिन कुछ असर नहीं पड़ा।
चाटना और तेज हो गया ,उसी की संगत में मेरे मोटे मोटे चूतड़ भी ऊपर नीचे ,ऊपर नीचे,...
जब नहीं रहा गया तो मैं जोर से चीखी ,
"ओह्ह आहह ,नहीं नही रुको न , बस्स , गुलबिया ,मेरी अच्छी भौजी ,मेरी प्यारी भौजी , बस एक मिनट ,... रुक जाओ। '
किसी ने जोर से मेरे निपल खींचे और कान के पास आवाज आई , गुलबिया की। ..
मेरे कुछ समझ में नहीं आया , बजाय टांगों के बीच ,गुलबिया सर के पास ,....
" अरे मेरी बाँकी छिनार ननदो , जरा आँख खोल के देख न "
मेरी आँखे फटी रह गईं।
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