RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
गुलबिया ने सब कुछ साफ कर दिया ,
" चल अब मैं हूँ तो फिर तोहार और रॉकी के मन क कुल पियास बुझा दूंगी , घबड़ा मत। दर्द बहुत होगा लेकिन सीधे से नहीं तो जबरदस्ती ,"
मेरी निगाह आंगन के बंद दरवाजे पे और उस पे लटके मोटे ताले पर पर चिपकी थी। लेकिन तबतक गुलबिया ने मुझसे कहा ,
" सुन अरे रॉकी के मोटे लंड से चुदवाना है न , तो पहले जरा उसको खिला पिला दे ,ताकत हो जायेगी तो रात भर इसी आँगन में तुझे रगड़ रगड़ के चोदेगा ,ले खिला दे उसको ,"
और तसला मेरी ओर सरकाया।
लेकिन मां अभी भी मेरी कच्ची अमिया का रस ले रही थी और मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी। उन्होंने गुलबिया को बोल दिया ,
" अरे आज तू ही खिला पिला के तैयार कर रॉकी को ,तेरी भी तो ननद है , तेरी भी तो जिम्मेदारी है। अभी तू खिला दे ,कल से ये रॉकी को देगी रोज देगी ,बिना नागा और कोई बीच में आयेगा तो मैं हूँ न। "
गुलबिया ने तसला रॉकी के सामने कर दिया और बोतल खोलते हुए माँ से पूछा ,
"थोड़ा इस कच्ची अमिया को भी चखा दूँ?
माँ ने बोतल उस के हाथ से छीन ली और एकदम मना कर दिया , " अभी उसकी ये सब पीने की उम्र है क्या ,चल मुझे दे। "
फिर आँख मार के मुझसे बोलीं ," आज तो तुझे भूखा पियासा रखूंगी ,तूने मुझे बहुत दिन पियासा रखा है। "
फिर मुस्करा के बोलीं
" घबड़ा मत मिलेगा तुझे भी लेकिन हम दोनों के देह से ,खाने पीने का सब कुछ ,... "
और जैसे अपनी बात को समझाते हुए उन्होंने बोतल से एक बड़ी सी घूँट भरी और मुझे एक बार फिर बाँहों में भींच लिया।
उनके होंठ मेरे होंठ से चिपक गए , फिर तो जीतनी दारु उनके पेट में गयी होगी उससे ज्यादा मेरे पेट में ,...
उनकी जीभ मेरे मुंह में तबतक घुसी रही ,जबतक मैंने सब घोंट न लीं।
बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी और वो गटक रही थी।
" अरे तानी इसके यार को भी पिला दो न ,जोश में रहेगा तो और हचक हचक के , ... "
माँ ने गुलबिया को समझाया ,और गुलबिया ने घल घल एक तिहाई बोतल रॉकी के तसले में खाली कर दी।
"सही बोल रही हैं ,जितने लंड वाले है सब एकर यार है। "
गुलबिया हंस के बोली और फिर बोतल उसके मुंह में थी ,...
लेकिन एक बार फिर उसके मुंह से वो मेरे मुंह में ,
थोड़ी देर में जितनी देसी गुलबिया और माँ ने गटकी थी ,उसके बराबर मेरे पेट में चली गयी थी।
मस्ती से हालत खराब थी मेरी। और रॉकी की भी ,अब उसका औजार पूरा तन गया था।
मेरी निगाह बस रॉकी के मोटे तगड़े लंड पे अटकी थी , बस मन कर रहा था की ,....
शायद दारू का नशा चढ़ गया था या फिर बस ,...
माँ एक बार फिर मेरे कच्ची अमियों का स्वाद लेने में जुट गयी थीं। बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी। एक घूँट लेकर वो मुझे उकसाते बोली ,
" अरे एतना मस्त खड़ा हो , तानी सोहरावा ,पकड़ के मुठियावा , बहुत मजा आयी। "
और जब तक मैं कुछ बोलती ,उसने मेरे कोमल कोमल हाथों को पकड़ के जबरदस्ती रॉकी के , ...
रॉकी तसले में खा रहा था , गुलबिया ने फिर थोड़ी और दारू उसके तसले में डाल दी। फिर सीधे बोतल अबकी मेरे मुंह में लगा दी।
गुलबिया का हाथ कब का मेरे हाथ से दूर हो गया था ,लेकिन मैं प्यार से हलके हलके सोहरा रही थी , फिर मुठियाने लगी। उसके शिष्न का कड़ा कड़ा स्पर्श मेरी गदौरियों में बहुत अच्छा लग रहा था। और मेरा ये मुठियाना , दबाना रॉकी को भी अच्छा लग रहा था ,लंड ख़ुशी से और फूलने लगा।
तबतक माँ ने मुंह मेरी देह से हटाया और मुझे देखने लगीं ,शर्मा के ,जैसे मेरी चोरी पकड़ी गयी हो ,मैंने अपना हाथ झट से हटा लिया।
लेकिन देख तो उन्होंने लिया ही था। बस वो मुस्कराने लगी ,लेकिन उनकी निगाहें कुछ और ढूंढ रही थी ,बोतल।
पर वो तो खाली हो चुकी थी। कुछ गुलबिया ने पी ,कुछ उसने रॉकी के तसले में ढाल दी और बाकी मैं गटक गयी थी।
"ला रही हूँ अभी " उनकी बात समझती गुलबिया बोली ,और रॉकी के खाली तसले ,खाली बोतल को ले के अंदर चली गयी।
माँ ने मेरी देह के बोतल पर ही ध्यान लगाया और बोलीं भी ,तेरी देह में तो १०० बोतल से भी ज्यादा नशा है ,पता नहीं कैसे ई जवानी शहर में बचा के अब तक राखी हो।
और अबकी हम दोनों एक दूसरे गूथ गए। उनके हाथ होंठ सब कुछ ,वो चूस रही थीं ,चाट रही थीं ,कचकचा के काट रहीं थी ,एकदम नो होल्ड्स बार्ड,
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