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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
विशाल का पिताजी उसे बताते है के उसने १३ जुलाई के दिन घर पर पूजा करवाने का फैसला किया है. विशाल के सफलता पूर्वक पढ़ाई पूरी करने और ऊँची नौकरी पर लाग्ने के लिये. १३ जुलाई को संडे का दिन था और उस दिन उसे ऑफिस से छुट्टी थी और कल जनि १२ जुलाई को वो ऑफिस से वैसे छुट्टी ले लेंगे. अब बिच में सिर्फ एक कल का दिन बाकि था. उन्हें पूरी तैयारी करनी थी. विशाल का बाप उससे तैयारी में मदद करने को कहता है तोह विशाल उन्हें अस्वाशन देता है के वो सारा काम करेंगा. अंजलि खाना बनाते हूए अपने पति से पूजा और उसके लिए क्या क्या तयारी करनी थी, पुछने लग्ग जाती है. विशाल को वहां कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था वो उठ कर अपने कमरे में चला जाता है. सहसा उसका मूड बहुत खऱाब हो जाता है. अभी परसो को पूजा थी, कल्ल का सारा दिन तैयारी में जाने वाला था और परसो का भी. मतलब वो अपनी माँ के साथ कुछ भी समय नहीं बिता पायेगा.
विशाल के उखाडे मूड की और उसकी माँ का ध्यान जाता है जब्ब वो खाने की मज़े पर सर झुकाए चुपचाप खाना खा रहा था. अंजलि के पुछने पर उसने सर दर्द का बहाना बना दिया. खाने के बाद भी उसके माँ बाप पूजा को लेकर बातों में लगे रहे. विशाल अपने कमरे में आ जाता है. वो टीवी लगाकर अपनी माँ का वेट करने लगता है. मगर अंजलि आ ही नहीं रही थी. पहले वो खाने के आधे घंटे बाद तक्क आ जाती थी. अब तोह एक घंटे से ऊपर हो चुका था. विशाल से इंतज़ार नहीं हो रहा था. होते होते ग्यारह वजने को हो गये. विशाल को लगा के शायद अब वो नहीं आएगी. वो इतनी देर से जागने के कारन ऊँघने लगा था के तभी दरवाजे पर दस्तक हुयी. विशाल की आँखों से नींद एक पल में ही उड़ गयी.
अंजलि दूध का गिलास पकडे कमरे में दाखिल होती है. विशाल बेड पर उठ कर बैठ जाता है. अंजलि उसे दूध का ग्लास देकर बेड के किनारे पर बैठती है तोह विशाल दूध का गिलास साथ में पड़े टेबल पर रखता है और अपनी माँ की और बढ़ता है. वो एक हाथ उसकी पीठ और दूसरा उसकी जांघो के निचे रखकर उसे बेड के ऊपर अपने पास खींच लेता है. अंजलि हंसने लगती है.
"उऊंणठ.....छोड़ न क्या कर रहा है. ........" अंजलि की खिलखिलाती हँसी से पूरे कमरे का माहोल एकदम से बदल जाता है.
"अब आना था माँ.........कब से वेट कर रहा हुण......." विशाल रुष्ट स्वर में कहता है.वो और अंजलि दोनों एक दूसरे की तरफ मुंह किये बेड की पुष्ट से टेक लागए बैठे थे.
"क्या करति, में और तुम्हारे पापा ने मिलकर सभी रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं और उन्हें फ़ोन किया. फिर उनके दोस्तों को और ऑफिस में उनके साथ काम करने वालो को भी इनवाइट किया. और फिर क्या क्या सामान चाहिए उसकी लिस्ट बनायी. इसिलिये इतना समय लग गया" अंजलि बेटे का गाल सहलाती उसे कहती है.
"मा क्या इतनी जल्दी थी पापा को पूजा करवाने की.......अभी कुछ दिन वेट कर लेते......" विशाल अपनी माँ के पास सरकाता उसके और करीब होता है.
"मैं जानती हुन तुम्हे अच्छा नहीं लग रहा........मगर बेटा हमारी दिली खवाहिश थी.......देखो भगवान ने हमारी सुनि है......तुमारी पढ़ाई भी पूरी हो गयी और तुम्हे कितनी अच्छी नौकरी भी मिल गई.......इसीलिये तेरे पापा ने पण्डितजी से सलाह की थी तोह उन्होनो परसो का दिन शुभ बताय था.......और फिर कल का ही तोह दिन है बेटा. परसो सुबह सुबह पूजा हो जायेगी और दोपहर तक सभी मेहमान खाना खा कर चले जाएंगे......बस दो दिन की बात है........" अंजलि भी बेटे के पास सरक जाती है. अब दोनों माँ बेटे के जिसम ऊपर से जुड़े हुए थे.
"उम्म्म माँ अभी तीन दिन ही तोह हुए थे मुझे आये हुये......कूछ दिन वेट कर लेते..." विशाल अपनी बाहें अपनी माँ के गिर्द कस्ते हुआ बोलता है.
"जरूर कर लेते.....बल्की तुजसे पूछ कर करते.......मगर पंडित जी ने दिन ही परसो का बताया......इसीलिये मजबूरी है बेटा....." अंजलि भी अपनी बाहें बेटे की कमर पर लपेट कर आगे को हो जाती है. अब विशाल को अपने सीने पर वही प्यारा सा, कोमल सा, मुलायम सा दवाब महसूस होने लगा था जिसके लिए वो तरसा हुआ था.
"जैसे आप और पापा ठीक समजो....... मैं आप लोगों की पूरी हेल्प करूँगा माँ........." विशाल अपनी माँ के गाल से अपना गाल सटाता हुआ कहता है. "मुझे पूजा से कोई एतराज नहीं बस में अभी आपके साथ कुछ दिन यूँ ही घर के एकांत में बिताना चाहता था" विशाल अपनी नाक से अपनी माँ का गाल सहलता कहता है.
"हूँह्......अभी इतने सालों बाद माँ से मिला है न......इसीलिये इतना प्यार आ रहा है......देखना दस् दिन बीतेंगे तोह माँ को छोड़ अपनी गर्लफ्रेंड के पास भागेगा" अंजलि बेटे के अलिंगन में सुखद आनंद महसूस करती कहती है.
"जो कभी नहीं होगा माँ.....कभी नही......." विशाल अपनी माँ का गाल चूम लेता है. "वैसे भी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है"
"झुठ....सफेद झुठ.........में नहीं मानति.......ऐसे भला हो सकता है के आदमी अमेरिका जैसे मुल्क में रहे और उसकी कोई गर्ल फ्रेंड न हो." अंजलि मुस्कराती कहती है.
"भला में क्यों झूठ बोलूंगा....सूबह बोला था क्या............" विशाल अब अंजलि के गाल पर जगह जगह छोटे छोटे चुम्बन अंकित करता जा रहा था.
"यकीन नहीं होता...........तोः तुमने चार साल में गर्लफ्रेंड भी नहीं बनायी......."
"नही बनायीं माँ....." विशाल भूखो की तरह अपनी माँ के गाल चूमता जा रहा था.
"अच्छा तोह फिर तेरा दिल कैसे लगता था.........." अंजलि की आवाज़ बिलकुल कम् हो जाती है और बेटे के कान में वो लगभग फुसफुसाते हुए पूछती है. "मेरा मतलब बिना मौज मस्ती के कैसे तुमने चार साल काट दिये" विशाल अपनी माँ के सवाल का मतलब अच्छी तेरह से समझता था. इसिलिय उसके गालो पर शर्म की लाली आ गायी.
"अब माँ मौज मस्ती करने के लिए गर्ल फ्रेंड का होना जरूरी थोड़े ही है......." विशाल भी अपनी माँ के कान में फुसफुसाता है.
"हुमंमंम...........यह तोह मतलब तुमने खूब मौज मस्ती की है चाहे गर्ल फ्रेंड नहीं बनायी........" अंजलि ज़ोरों से हंस पड़ती है. विशाल और भी शर्मा जाता है.
"लेकिन वो जो तेरी यहाँ गर्ल फ्रेंड थी.......वो जिसके गाल पर तिल था...... उसका क्या हुआ......उससे मिला?" कुछ लम्हो की चुप्पी के बाद अंजलि फिरसे पूछती है. मगर उसका सवाल सुनते ही विशाल चोंक जाता है.
"तुम्हेँ कैसे मालूम माँ? कहीं तुम मेरी जासूसी तोह नहीं करती थी?" अंजलि विशाल की पीठ पर मुक्का मारती है.
"मैं तुम्हारी जासूसी क्यों करती भला.........तुमहारे कपड़ों में उसके खत होते थे जब में उनको धोने के लिए लेने आती थी. एक दो बार फोटो भी देखा था मैन........तुझे खुद नहीं मालूम था अपनी गर्लफ्रेंड के खत और फोटो छुपा कर रखने चहिये.................."
"सच में मुझे कभी मालूम ही नहीं चला के तुम जानती हो"
"लेकिन अब तोह मालूम चल गया ना..........अब बता उससे मिला....." अंजलि जानने को उत्सुक थी.
"नही माँ.....उसकी शादी हो गई....वो अब मुंबई में रहती है" विशाल कुछ गम्भीर होते बोला.
"तुने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की?" विशाल अपनी माँ की उत्सुक्ता पर मुस्करा उठता है.
"नही माँ.......क्या फायदा होता.....जब वो शादीशुदा है और उपरसे अमेरिका जाने के बाद मैंने उसे कभी कॉल तक्क नहीं किया था......मुझे नहीं लगता था के वो मुझसे बात करेगि......."
"ओहहह....मगर तुझे शायद एक बार बात कर लेनि चाहिए थी........खेर तुझे ज्यादा दुःख तोह नहीं है?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते बोली.
"उम्म नहीं माँ........तुम्हे बताया तो मैंने उसे कभी कॉल नहीं किया था....हालाँकि उसने शुरुरात में मुझे इ-मेल भेजे थे लेकिन जब्ब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तोह उसने भी लिखना बंद कर दिया......" विशाल बीते समय को याद करता कहता है.
बहुत गहरी दोस्ती थी उससे?" अंजलि की उत्सुक्ता अभी भी मिटी नहीं थी.
"हान माँ........सोचा था यहाँ आकर उससे मिलूँगा और अगर उसे मंजूर होगा तोह पुराणी दोस्ती को फिरसे जिन्दा करने की कोशिश करुन्गा.......इसीलिये उसके लिए गिफ्ट भी लाया था मगर अब तोह बात ही ख़तम हो गयी"
"गिफ्ट....सच में...क्या लाये थे?......" अंजलि मुस्कराती पूछती है.
"अब छोडो भी माँ......जाने दो न......" विशाल शर्मा जाता है और बात टालने की कोशिश करता है.
"या तू बताना नहीं चाहता.......और शर्मा भी रहा है....जरूर गिफ्ट कुछ खास होगा......दुसरी किसम का........हुँह?" अंजलि हँसति हुए कहती है तोह विशाल और शर्मा जाता है.
"क्या है, बता ना?.........कहिं अंदर पहनाने के लिये......." अंजलि की बात सुन विशाल अपना चेहरा उसके कंधे पर रख देता है.
"अब छोडो भी माँ........तुम भी ना......" अंजलि खूब हँसति है. फिर अपने होंठ धीरे से विशाल के कान के पास लेजाकर कहती है.
"मुझे नहीं दिखायेंगा......." विशल एक पल के लिए नज़र उठकर अपनी माँ के चेहरे को देखता है जो मुसकरा रहा था और फिर वो कार्नर से अपना सूटकेस उठाता है जो वो अमेरिका से लाया था. उसमे से एक गिफ्ट पैक निकल कर अपनी माँ को देता है. अंजलि उसे पकड़ खोलने लगती है. अन्दर से लइकी की एक ब्लैक कलर की ब्रा और पेंटी निकलती है. अंजलि उन्हें हाथों में थाम देखति है. विशाल बेड के किनारे खड़ा उसे देखता शर्मा रहा था. देखने और चुने से मालूम चलता था के वो कितने महंगी होगी.
"ओ गॉड.......सच में बहुत बढ़िया पेअर है.......बहुत मेहंगा होगा............मुझे नहीं लगता हमारे शहर में ऐसे ब्रांड का मिलता भी होगा" अंजलि उस ब्रा और पेंटी को देखते हुए कहती है. विशाल अपनी माँ को गौर से देखता उसकी बात सुनता है. अपनी माँ को यूँ अपने सामने ब्रा और पेंटी को मसल मसल कर देखने हद्द से ज्यादा कामोत्तेजित करने वाला था अचानक विशाल के दिमाग में एक ख्याल आता है.
"मा अगर तुम्हे पसंद हैं तोह तुम रख लो" विशाल धीरे से सकुचाता सा कहता है. उसकी माँ को वो गिफ्ट कितना पसंद था वो तो उसके चेहरे से देखने से पता चल जाता था.
"मैं....... नहीं नही.......तुम्हरी गर्ल फ्रेंड का गिफ्ट भला में कैसे रख लु....."
"गर्लफ्रैंड को गोली मारो माँ........तुम बस इसे रख लो........" विशाल आगे बढ़कर ब्रा पेंटी को वापस गिफ्ट पैक में डालता है. "अब यह गिफ्ट तुम्हारा है" अंजलि मुस्करा पड़ती है और विशाल के हाथों से वो गिफ्ट ले लेती है.
"यह बेटा....थैंकयू .......मैने इतना महंगा सेट आज तक्क कभी ख़रीदा नही" अंजलि शरमाती सी कहती है.
"मा में तोह शर्म के मारे तुम्हे ऐसा गिफ्ट देणे की सोच नहीं सकता था के तुम मेरे बारे में क्या सोचोगी वर्ना यह तोह कुछ भी नहि.......तुम मेरे साथ अमेरिका चलोगी तोह तुम्हे खुद शॉपिंग करवाने लेकर जाऊंगा." अंजलि आगे बढ़कर बेटे के गले लग्ग जाती है. विशाल उसे अपनी बाँहों में कस्स लेता है. अंजलि को अपनी जांघो पर कुछ चुभ रहा था, जब विशाल ने उसे अपनी बाँहों में कस्स लिया तोह तोह वो जो कुछ चुभ रहा था ज़ोर ज़ोर से ठोकर मारने लगा. मगर अंजलि ने उसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया. उधऱ विशाल को आज अपने सीने पर अपनी माँ के तीखे नुकिले निप्पलों की चुभन कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी. वो अंजलि को और भी कस कर अपनी बाँहों में भींच लेता है. अंजलि को अपनी चुत में गिलेपन का एहसास होने लगा था.
"मैं चलति हु........तेरे पापा इंतज़ार करते होगे........रात बहुत हो गयी है अब तू भी सो जा.....कल सुबह जल्दी उठना पढेंगा" अंजलि बेटे के गाल चूमती उससे अलग होती है. विशाल का पायजामा आगे से फुला होता है. विशाल झुक कर अपनी माँ के गाल पर लम्बा सा चुम्बन अंकित करता है.
"गुड नाईट मोम" विशाल अपनी माँ के हाथ थाम उसे कहता है.
"गुड नाईट बेटा" कहकर अंजलि धीमे से मुड़ती है और कमरे से बाहर आ जाती है. अपने कमरे की और जाते हुए उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी और उसके पूरे जिस्म में सनसनाहट फ़ैली हुयी थी . वो बेटे के गिफ्ट को कस्स कर अपने सीने से लगा लेती है.
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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
नाशते के टेबल से उस दिन विशाल की जो भागम भाग सुरु होती है तोह वो रात तक्क नहीं ख़तम होती. नाश्ता करने के बाद विशाल को उसका पिता घर की तैयारी, सजावट और जो भी सामान ख़रीदना था उसके बारे में समजाता है. विशाल ने अपने पिता को बाहर जाने से मना कर दिया और बाजार से जो भी सामान लाना था या फिर कहीं और जाना था, उस सब की जिम्मेदारी विशाल ने अपने सर पर ले ली. अपने पिता को यूँ चारों तरफ भागते देख वो शर्मिंदा हो गया था और उसने खुद को इस बात के लिए कोसा था के उसके रहते उसके बाप को इतनी मेहनत अकेले करनी पढ़ रही थी.
इसके बाद विशाल के बाजार के चक्कर सुरु होते है. कभी कुछ लेने का तोह कभी कुछ लेने का. सामान पूरा ही नहीं हो रहा था. दोपहर को घर पर मेहमान आने सुरु हो गए थे. उनके कुछ खास रिश्तेदार एक दिन पहले ही पहुँच चुके थे जिनमे से मुख्य तौर पर उसकी दो मौसियां और उनके बच्चे थे. शाम तक घर पूरा भर चुका था. किसी तरह शाम तक सारा सामान आ चुका था. विशाल को सुबह से दो मिनट भी फ्री समय नहीं मिला था के वो अपनी माँ के साथ बिता सकता. उसकी माँ हर वक़त किसी न किसी काम में बिजी होती थी. पहले तोह उसका पिता ही अंजलि से कुछ न कुछ सलाह कर रहा होता था. और फिर मेहमानो के आने के बाद वो उनकी खातिरदारी में जुत गयी. विशाल ने बहुत कोशिश की मगर वो अपनी माँ को अकेले में नहीं मिल सका. वो अपनी दोनों बहनो से मिल कर सभी मेहमानो के लिए खाना बना रही थी. कुछ पडोस की औरतें भी आई थी हेल्प करने के लिये. कुल मिलाकर पूरे घर में काम इस तरह चल रहा था जैसे जंग की तयारी हो रही हो. एक दिन में इतना कुछ करना बेहद्द कठिन साबित हो रहा था. शुकर था उसकी मौसियों के बेटों ने उसकी खूब सहयता की थी और वो काम ख़तम कर सके थे.
विशाल को सिर्फ काम ही नहीं उससे बजाय मेहमानो की पूछताछ परेशान कर रही थी. हर कोई उससे अमेरिका को लेकर, उसकी पढ़ई और उसकी नौकरी को लेकर उससे पूछ रहा था. विशाल सब को बताते बताते थक्क चुका था. शाम को खाने के बाद घर को सजाने का काम सुरु हुआ. पूरा घर एक नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया था. उसके बाद लाइट लगायी गयी. सारा काम ख़तम होते होते आधी रात हो चुकी थी. अभी सुबह को फूलों वाले ने आना था. टेंट वाले ने आना था. उसके पिता का ज्यादा समय घर के काम काज की तयारी का जायजा लेते हुए गुज़रा था. शाम को पंडित जी आ गए और फिर उसके माँ बाप घंटे भर के लिए उसके साथ बिजी हो गए.
अंजलि दिन भर अपने बेटे को देखति रही थी. किस तरह वो सुबह से बाजार के चक्कर पर चक्कर काट रहा था, किस तरह उसने पूरे घर को सजाया था. उसे तोह खाने के लिए भी अंजलि को कहना पड़ा था, वार्ना उसने तोह नाश्ते के बाद से कुछ भी नहीं खाया था. अंजलि देख रही थी किस तरह सभी लोग उससे बार बार अमेरिका के सफर को लेकर पूछ रहे थे और वो किस तरह खीज रहा था हालांकि वो सारा दिन मुस्कराता रहा था मगर अंजलि उसके दिल को पढ़ सकती थी. उसे अच्चा नहीं लग रहा था इस तरह लोगों का उसके बेटे को इस तरह परेशान करना या फिर उसका इस तरह दौड भाग करना. मगर वो भी विवश थी. वो दिल को समझा रही थी के बस दो दिन की ही बात थी उसके बाद वो किसी को भी विशाल को परेशान नहीं करने देणे वाली थी. आज वो सारा दिन अपनी माँ को देखता रहा था. अंजलि जानती थी वो उसे अकेले में मिलना चाहता है मगर अब उस घर में एकांत सम्भव नहीं था. वो अच्छी तरह से जानती थी के उसका बेटा उसे अपनी बाँहों में भरने के लिए तडफ रहा है मगर इतने लोगों के होते यह हद्द से ज्यादा खतरनाक था और ऊपर से विशाल खुद को कण्ट्रोल भी नहीं कर पाता था.
असल में अंजलि खुद बेटे की बाँहों में समाने के लिए बेताब हो रही थी. वो भी उस आनंद को फिर से महसूस करना चाहती थी जब्ब उसका बेटा उसे अपने सीने से लगा कर इतने ज़ोर से भींचता था के ऐसा लगा था जैसे वो अपनी माँ के जिस्म में समां जाना चाहता हो. मगर .......दोनो माँ बेटे की इस जबरदस्त इच्छा के बावजूद अभी दोनों को सबर करना पड़ रहा था. रात का खाना खाते खाते दस् से ऊपर का समय हो चुका था. सब काम निपट चुका था. अब बस सभी लोग आपस में बातें कर रहे थे. विशाल के पिता सभी के सोने के लिए इंतज़ाम कर रहे थे.
रात के साढ़े गयारह बज चुके थे. ज्यादातर लोग सो चुके थे. थका मादा विशाल अभी भी ड्राइंग रूम में बैठा अंजलि की और देख रहा था जो अपनी बहनो से बातों में लगी थी. विशाल को दिन भर की मेहनत में एक पल भी आराम करने के लिए फुर्सत नहीं मिली थी और ऊपर से पिछली रात भी वो बहुत लेट सोया था. उसकी ऑंखे नींद से भरी हुयी थी मगर वो एक अखिरी कोशिश में था के शायद उसे अपनी माँ से अकेले में मिलने का कोई मौका मिल जाए.विशल के कमरे में उसके मौसी के बच्चे बातें कर रहे थे और इसलिये वो ऊपर नहीं जाना चाहता था. अखिरकार जब बारह बजने के करीब समय हो गया और विशाल को कोई मौका न मिला तोह वो हताश, निराश होकर सीढ़िया चढ़ कर ऊपर अपने कमरे में जाने लगा. नींद से उसकी ऑंखे बोझिल थी. सिढ़ियों के अखिरी स्टेप पर वो मुढ़कर निचे देखता है तोह उसकी नज़र सीधी अपनी माँ की नज़र से टकराती है जो उसे ऊपर आते देख रही थी.
अचानक अंजलि का चेहरा हल्का सा हिलता है और उसकी ऑंखे एक इशारा करती है. इशारा करने के बाद वो फिरसे अपनी बहनो से बात करने लग जाती है. अब विशाल अपनी माँ के इशारे को पूरी तरह से समझ नहीं पाया था. इतना जरूर था के उसकी माँ ने उसे कुछ कहा था मगर क्या कहा था वो यह नहीं जानता था. अब उसे ऊपर अपने कमरे में जाना चाहिए या फिर निचे ड्रॉइंग रूम में रुकना चहिये. वो नहीं जानता था. आखिर उसने ऊपर जाने का फैसला किया मगर वो कुछ देर तक्क जाग कर अपनी माँ का इंतज़ार करने वाला था.
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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
अगली सुबह विशाल अभी भी गहरी नींद में था जब किसी ने उसका कन्धा पकड़ कर उसे ज़ोर ज़ोर से हिलाया. विशाल इतनी गहरी नींद में था के उसे कुछ पल लग गए अपनी ऑंखे खोलने के लिये. थकन और नींद की गहरायी से उसके दिमाग में धुंद सी छायी हुयी थी. अखिरकार उसकी आँखों से धुंध का वो कोहरा छटने लगता है. मगर आज की सुबह निराशा भरी थी. आज उसकी माँ नहीं बल्कि उसके पिता उसे जगा रहे थे.
.उठो बेटा, बहुत समय हो गया है. थोड़ा काम बाकि है और पूजा सुरु होने में सिर्फ दो घंटे बचे है..
विशाल .जी पिताजी. बोलकर उठ खडा होता है और बाथरूम में चला जाता है. अभी भी उसकी ऑंखे नींद से भरी हुयी थी. उसे यूँ लग रहा था जैसे वो अभी अभी सोया था. ऊपर से आज उसकी माँ उसे जगाने नहीं आई थी. वो आती तो........लकिन अगर आज अगर अंजलि आती भी तोह कोई फायदा नहीं था. वो अपनी माँ से प्यार नहीं कर सकता था. बेड पर उसके कजन लेते हुए थे. शायद इसीलिए उसकी माँ भी नहीं आई थी.
विशाल जब हाथ मुंह धोकर निचे जाता है तोह हैरान रह जाता है. पूरे ऑंगन में टेंट लग चुक्का था. पंडित जी आ चुके थे और पूजा की व्यवस्था कर रहे थे. घर में अभी से मेहमानो का ताँता लगना सुरु हो गया था. विशाल को देखते ही अंजलि उसे किचन की और लेकर जाती है. विशाल को कुछ उम्मीद बाँधती है जो किचन में घुसते ही टूट जाती है. किचन पहले से ही फुल था. अंजलि अपनी छोटी बहिन को विशाल को नाश्ता देणे के लिए कहती है और मुस्करा कर विशाल को देखकर बाहर चलि जाती है. विशाल भी मौके की नज़ाक़त को समज जल्द से नाश्ता कर अपने पिता के साथ बचे हुए काम में मदद करने लग जाता है.
आठ बज चुके थे. मेहमान पण्डाल में बैठ चुके थे. अंजलि और उसका पति भी निचे आ चुके थे मगर विशाल अभी तक्क नहीं आया था. वो शायद अभी भी तय्यार हो रहा था. पंडित के कहने पर अंजलि बेटे को लेने उसके कमरे की और जाती है. कमरे में घुसते ही वो विशाल को आईने के सामने बालों में कँघी करते हुए देखति है. वो लगभग तय्यार हो चुक्का था.
.चलो भी विशाल. सभी तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं. अंजलि बेट के करीब जाते कहती है.
विशाल बालों में कँघी करते हुए पीछे को घुमता है तो वो वहीँ का वहीँ रुक जाता है. वो बस एकटक अपनी माँ को घूरता रहता है. अंजलि उसके इस तरह घूरने से शर्मा जाती है.
.क्या घूर रहे हो. जल्दी चलो सब बुला रहे हैं. मगर विशाल ने तोह जैसे अपनी माँ की बात ही नहीं सुनि थी. नीले रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में अंजलि बला की खूबसूरत लग रही थी मगर जितनी वो खूबसूरत लग रही थी उससे कहीं ज्यादा सेक्सी लग रही थी. विशाल के लंड में तनाव आने लगता है.
विशाल अपनी माँ के पास जाता है. वो उसके मम्मे की तरफ हाथ बढाता है. अंजलि की सांस गहराने लगती है. वो विशाल से किसी ऐसे ही हरकत की उम्मीद कर रही थी और हक़ीक़त में सुबह से वो भी कुछ बेक़रार थी. विशाल साड़ी के पल्लु को पकडता है और उसे उसके सीने पर आच्छे से फैला देता है.
.माँ इन पर किसी की नज़र न पड़ने देना. ऊऊफफफफफ अगर इन पर किसी की नज़र पड़ गयी तोह वो अपने दिल का चैन खो बैठेगा.. विशाल अपनी माँ के मम्मे को घूरते हुए कहता है जो पल्लू के निचे से हलके से झाँक रहे थे.
.विशाल, तू भी ना.....पागल कहीं का. अंजलि के गाल लाल सुर्ख हो गए थे. आज पहली बार उसके बेटे ने सीधे सीधे उसके मस्त यौवन की तारीफ की थी. अंजलि के निप्पल कड़क हो चुके द, चुत में नमी आने लगी थी.
.सच में आज तोह.....बस क़यामत लग रही हो... विशाल अपनी माँ की कमर पर अपने हाथ रखता कहता है. .इस साड़ी में कितनी जाँच रही हो........दील कर रहा है बस तुम्हे देखता ही रहूं......बस देखता ही रहू. विशाल साड़ी के ऊपर से अपनी माँ के नग्न पेट् पर हाथ फेरता कहता है.
अंजलि धीरे से आगे बढ़ती है और अपने बेटे के कान के पास अपने होंठ ले जाकर धीरे से फुसफुसाती है.
.तुमने सिर्फ साड़ी देखि है....तुम्हे यह नहीं पता इसके निचे मैंने क्या पहना है.
.क्या?. विशाल एकदम से पूछ उठता है. वो चेहरा पीछे करके अपनी माँ की आँखों में देखता है.
.तुम्हारा गिफ्ट. अंजलि बड़ी ही मादक आवाज़ में आँखों में काम की ख़ुमारी लिए बेटे से कहती है.
.सच में माँ?. विशाल खुस होते कहता है तो अंजलि हाँ में सर हिला देती है.
.कैसा है.....केसा है माँ.तुम्हे कैसा लगा?. विशाल अपनी माँ के सीने की और फिर नज़र निचे करके उसकी जांघो के जोड़ को देखते हुए पूछता है. वो कल्पना कर रहा था की उसकी माँ के मम्मे और चुत पर वो ब्लैक ब्रा पेन्टी कैसी लग रही होगी. अंजलि बेटे के सवाल पर एक पल के लिए चुप्प रहति है फिर अपने लाल होंठो से सिसकने के अंदाज़ में कहती है:
.हाय...पूच मत... इतना कोमल और मुलायम स्पर्श है के में तुझे बता नहीं सकती. .....
.तुमने पहले लइकै का सेट कभी नहीं पहना?.
पहना है मगर इतना बढ़िया नहीं था...उउउफ्फ्फ्फ़ सच में बहुत ही मज़ेदार एहसास है इसका....बहुत महंगा होगा ना. अंजलि विशाल की आँखों में देखते कहती है.
.ओह माँ कीमत को छोड़ो.यह तोह कुछ भी नहीं है.मैं तुम्हे इससे कई गुणा बढ़िया सेट लेकर दूंगा. विशाल उत्साहित होते कहता है.
.नही, बेटा तुम्हे अपनी मेहनत की कमाई यूँ बरबाद नहीं करनी चाहिए. अंजलि कहती तो है मगर बेटे की बात सुन उसका दिल खुश हो गया था.
.अरे माँ तुम्हारा बेटा अब लाखों में कमाता है...वैसे भी इन्हे कीमती होना ही चाहिए क्योंके जिस ख़ज़ाने को यह ढंकते हैं वो बहुत ही बेशकीमती है. विशाल अपनी माँ के सीने की और देखते हुए कहता है. उसके ब्लाउज में से अंजलि के कड़क निप्पलों का हल्का सा अभास हो रहा था जिसे छुपाने में साड़ी का पल्लू भी क़ामयाब नहीं हो रहा था.
.धत्त... . अंजलि शरमाति, मुस्कराती नज़र निचे कर लेती है.
.मुझे बहुत ख़ुशी है तुम्हे मेरा गिफ्ट पसंद आया. विशाल अपनी माँ के कान की लौ को अपने होंठो में ले लेता है.
.पसंद ही नहीं बहुत पसंद आया....बस थोड़ा सा टाइट है. अंजलि धीरे से बेटे के गाल को सहलती है.
.टाइट.... विशाल का लंड झटका खता है. .टाइट तोह होना ही था माँ...जिसके लिए लाया था उससे तुम्हारा साइज ड़ेढ़ गुणा है..... विशाल की जीव्हा कान की लौ को कुरेदती है.
.उमंमेंहहहह.बेशरम.......भला माँ से कोई ऐसे भी कहता है. अंजलि के गाल सुर्ख लाल हो चुके थे. आँखों में भी लाली उतार आई थी.
.कहता है अगर माँ तुम्हारे जैसी पटाखा हो तोह.
.मैं मारूंगी विशाल........ अंजलि हँसते हुए कहती है तोह विशाल भी हंस पढता है.
.तुम्हे परेशानी तोह नहीं हो रही..मेरा मतलब कहीं ज्यादा टाइट तोह नहीं है.
.नहीं....इतनी भी टाइट नहीं है.....बल्के अच्चा ही लग्ग रहा है.... अंजलि फिर से शरमाती, सकुचाती सी कहती है. विशाल एक पल के लिए अपनी माँ की आँखों में देखता है, अंजलि जैसे उसकी आँखों से उसके भावो को पढ़ लेती है.
.माँ में बस इन्हे एक बार....
.नहीं अभी नहीं....... अंजलि विशाल की बात बिच में ही काट देती है जैसे उसे मालूम था के विशाल क्या कहना चाहता है. .समय बिलकुल भी नहीं है.....वो लोग तुम्हारा राह देख रहे हैं.......आज का दिन सब्र रखो........कल में तुम्हे नहीं रोकूंगी.
.वादा करती हो?. विशाल अपनी माँ को धीरे से अपने अलिंगन में ले लेता है.
.हाँ.....पक्क वादा........अब चलो.....वरणा तुम्हारे पिता यहाँ आ जायेगे.
.कल तुम मुझे प्यार करने से नहीं रोकेगी?.
.नहीं रोकूंगी......जितना तुम्हारा दिल में आये प्यार कर लेना!. अंजलि को अपनी चुत पर बेटे के कठोर लंड की रगड़ महसूस हो रही थी.
.जितना मेरा दिल करे..जैसे मेरा दिल करे......मैं तुम्हे प्यार करूँगा...और तुम मुझे रोकोगी नहीं?.
.नहीं रोकूंगी....कर लेना दिल खोल कर माँ को प्यार. अंजलि बेटे की कमर पर बाहे लपेटती कहती है.
.अगर मेरा दिल करेगा तोह में तुम्हे धीरे धीरे सहला सहला कर प्यार से प्यार करूँगा. विशाल लंड को माँ की चुत पर दबाता है.
.कर लेना. अंजलि रुंधे गले से कहती है.
.अगर मेरा दिल करेगा तोह कस्स कस्स कर प्यार करूँगा. विशाल कमर को हिलाकर लंड को चुत के ऊपर निचे रगडने लगता है.
.हाय.कर लेना....... अंजलि सिसकती है.
.अगर मेरा दिल करेगा तोह तुम्हे मसल मसल कर प्यार करूँगा. विशाल के हाथ अपनी माँ के नितम्ब को थाम उसे खींच माँ की चुत को अपने लंड पर दबाता है.
.कर लेना.कर लेना..जेसा तेरे दिल में आये कर लेना......अंजलि कहते हुए विशाल की छाती पर हाथ रखती है और फिर उसे हलके से हटाती है. विशाल का दिल तोह नहीं कर रहा था मगर वो मौके की नज़ाक़त समज पीछे हट जाता है.
.अब निचे चलो जल्दी से. अंजलि अपनी साड़ी और बालों को ठीक करती है और निचे की और चल पड़ती है. विशाल भी अपनी माँ के पीछे पीछे चल पढता है. उसकी नज़र साड़ी के अंदर से मटकते हुए अपनी माँ के गोल मटोल नितम्बो पर तिकी हुयी थी.
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03-20-2019, 12:13 PM,
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RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
जब विशाल और अंजलि निचे पहुंचे त सभी बस उन्ही का इंतज़ार कर रहे थे. आंगन का बड़ा सा पण्डाल पूरा भरा हुआ था. बैठते ही विशाल ने एक बार अपने माँ बाप की और देखा तो अंजलि उसकी और देखकर बहुत ही ममतामयी अंदाज़ में मुसकरा दी और उसके बाद उसने अपना पूरा धयान पूजा में लगा दिया. विशाल पूजा के दौरन मूढ़ मूढ़ कर अपनी माँ की और देखता रहा मगर अंजलि ने पूजा के पूरे समय में अपने बेटे की और नहीं देख. उसका सम्पूरन ध्यान पूजा की और ही था.
पूजा दो घंटे से भी पहले ख़तम हो गयी थी मगर विशाल के लिए वो समय किसी यातना से कम् नहीं था. उसकी बस एक ही तम्मना थी, उस समय उसके दिल की बस एक ही खवाहिश थी के वो अपनी माँ के साथ एकांत में समय बिता सके और उन दोनों के बिच ख़लल ड़ालने वाला कोई भी न हो. इसी लिए वो बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था के पूजा और उसके बाद पार्टी का सारा झंझट जलद से जलद ख़तम हो जाए. समय अपनी चाल से चल रहा था मगर उसके लिए तो जैसे घडी की सुईया रुक गयी थी. एक एक पल उसे एक एक बरस के जैसा प्रतीत हो रहा था. उसे पंडित पर बेहद्द गुस्सा आ रहा था. जैसे वो पंडित जानबूझकर बेकार में पूजा को लम्बा खींच रहा था, शायद उस पंडित को ठीक से पूजा करनी ही नहीं आती थी. वो पंडित नहीं उस समय विशाल का सबसे बड़ा दुष्मन था.
आखिरकार भगवन ने विशाल की सुन ली और पूजा ख़तम हो गयी. पूजा उपरांत प्रसाद बांटा गया. उसके बाद का दौर विशाल के लिए और भी तकलीफ़देह था. सभी मेहमान तोहफे दे रहे थे और विशाल के माता पिता को बधाई दे रहे थे. उसके माता पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था खास कर विशाल के पिता का. उनसे तोह ख़ुशी जैसे सम्भाले नहीं जा रही थी. वो एक एक कर सभी मेहमानों से खास कर अपने दफ्तर के साथियों और अपने सीनियर्स से विशाल को मिलवा रहे थे. विशाल को यह सभ कुछ हास्यासपद सा लग रहा था. उसके पीता उसे किसी ट्राफी की तरह अपनी जीत की एक निशानी की तरह सब के सामने पेश कर रहे थे. विशाल को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था मगर अपने पिता को इस कदर खुश देखकर उसने कोई अप्पत्ति नहीं जतायी.
बारह बजे के करीब खाना लगाया गया और सब मेहमान खाना खाने लगे. खाना ख़तम होते ही एक एक कर सभी लोग जाने लगे. संडे का दिन होने के कारन हर किसी को जल्दी थी. अंत में जब्ब परिवार के खास रिश्तेदार ही बचे थे जिनके साथ मिलकर विशाल और उसके माता पिता ने खाना खाया. अब विशाल को एक नयी चिंता सता रही थी. कहीं उनके रिश्तोरों में से कोई वहां रुक न जाये खास कर उसकी मौसी के लड़के. मगर ऐसा कुछ न हुआ. जलद ही सब लोग जा चुके थे. संडे का दिन था और सब लोगों को कहीं न कहीं जाना था. टेंट हटाया जा रहा था और विशाल के पिता एक एक करके सभी से लेनदेन कर रहे थे. दो बजे के करीब घर पहले की तरह पूरा खली हो चुका था. सब कुछ पहले की तरह था सिवाय इसके के जगह जगह सामान विखरा पड़ा था, खुर्ची फर्नीचर इधर उधर खिसकाया गया था और स्टोर रूम से रात को मेहमानों के लिए निकाला गया सामान पड़ा था. खास कर घर के ऑंगन में जहां पूजा और खाने का प्रबन्ध था बहुत कचरा रह गया था.
विशाल के पिता ने सलाह दी के पहले आराम किया जाये क्योंके सभी बहुत थके हुए थे और सभी की ऑंखे नींद से बोझिल थी, उसके बाद आगे की सोची जाएगी. सभ सहमत थे. विशाल ऊपर अपने कमरे में आ गया और आते ही बेड पर ढेर हो गया. वो बुरी तरह से थका हुआ था. बदन दर्द कर रहा था. मगर अब वो बेहद्द खुश था. वो अपने अंदर एक अजीब सी शान्ति महसूस कर रहा था. उसकी बेचैनी अब दूर हो चुकी थी. उसे उम्मीद थी के शायद उसकी माँ उसे मिलने के लिए आएगी. लेकिन अगर वो नहीं भी आती तो वो रात का इंतज़ार कर सकता था. रात को तोह वो जरूर आने वाली थी. जिस बात का उसे डर था के कोई रिश्तेदार कोई दोस्त कहीं उनके घर रुक न जाये वो डर अब दूर हो चुका था. वो दरवाजे की तरफ देखता है और कल्पना करता है जैसे अभी वो दरवाजा खुलेगा और उसकी माँ अंदर आएगी, मुस्कराती हुयी और वो उसे बाँहों में भर लेग, दिल खोलकर उसे प्यार करेंगा. अब उनके बिच आने वाला कोई नहीं था. उस एहसास की कल्पना में विशाल अपनी ऑंखे बंद कर लेता है.
करवट लेकर विशाल अपनी ऑंखे खोलता है. उसकी आँखों में नींद भरी हुयी थी सर भारी था. वो कुछ लम्हे ऑंखे बंद रखने के बाद फिर से ऑंखे खोलता है तोह उसकी निगाह सामने दिवार पर टंगे वाल क्लॉक पर जाती है तो उसे एहसास होता है वो पिछले तीन घंटे से सो रहा था. मगर अभी भी नींद उस पर भरी थी. वो फिर से ऑंखे बंद ही करने वाला था के तभी उसे अपने पिता की आवाज़ सुनायी देती है. आवाज़ से लग रहा था के वो बाहर ऑंगन में किसी से बात कर रहे थे.विशाल कुछ पलों के लिए लेटा रहा मगर अंत-ताह वो उठ खड़ा हुआ और खिड़की के पास गया. निचे ऑंगन में उसकी माँ और उसके पिता सफायी में व्यस्त थे. विशाल को थोड़ी शर्मिंदगी सी महसूस होती है. वो बाथरूम में जाकर अपना मुंह धोता है और फिर निचे चला जाता है. उसके पिता उसे देखकर कहते हैं के उसे आराम करना चाहिए था मगर विशाल अपने बाप की बात अनसुनी कर देता है. सफाई में हाथ बटाते हुए विशाल का पूरा धयान अपनी माँ की और ही था जो खुद बार बार उसकी और देख रही थी. अंजलि की मुस्कराहट बेटे को ढाढस बढ़ा रही थी जैसे वो उसे कह रही हो के अब उनके बिच आने वाला कोई नहीं था के अब वो अपने बेटे को खूब प्यार करेगि. विशाल का धयान अपनी माँ के चेहर, उसके उभरे सीने पर जाता और जब भी वो झुकति तो विशाल की ऑंखे अपनी माँ के गोल उभरे नितम्बो पर चिपक जाती. एक बार जब अंजलि का पति उसके सामने था और उसका धयान अपनी बीवी पर नहीं था तो अंजलि झुक गयी, मगर इस बार उसके झुकने का अंदाज़ कुछ बदला सा था. अंजलि पूरी तरह झुक गयी थी और उसके हाथ अपने पांव से कुछ ही फसले पर थे, उसके नितम्ब हवा में कुछ ज्यादा ही ऊँचे और उभरे हुए थे. विशाल को वो पोजीशन बहुत पसंद थी. अंजलि ने अपनी पति की और देखकर फिर पीछे अपने बेटे पर निगाह डाली जो मुंह बाएं उसके नितम्बो को घूर रहा था. अंजलि के चेहरे पर शरारती सी मुस्कान फैल जाती है. वो वहां घोड़ी बनी जैसे अपने बेटे को आमन्त्रित कर रही थी और विशाल का दिल कर रहा था के वो उसी समय जाकर अपनी माँ को पीछे से पकड़ ले और.......... उसके बाद वो शरारती माँ जानबूझकर अपने बेटे के सामने कभी अपना सिना उभारती तोह कभी अपने नितम्ब. अपनी माँ की हरकते देख विशाल का बुरा हाल हो रहा था. उसकी पेण्ट उसके जिपर के स्थान पर फुलती जा रही थी और उसे अपने पिता की नज़रों से बचने के लिए वो बार बार अपने लंड को एडजस्ट कर रहा था.
सात बजे तक ऑंगन की सफायी का काम निपट चुका था. आँगन अब पहले की तरह साफ़ था. अब अंदर की सफायी बाकि बचि थी. अन्दर सारा सामान अस्त व्यस्त था. सारा फर्नीचर इधर उधर हो गया था. विशाल का पिता चाहता था के वो आज ही सारा काम निपटा दे मगर अंजलि ने अपने पति को मना कर दिया. उसने कहा के अगले दिन वो और विशाल मिल कर अंदर की सफायी कर लेगी. उनके पास ढेरों वक्त होगा. विशाल का पिता बेटे को और तकलीफ नहीं देना चाहता था मगर विशाल ने अपने पिता को अस्वासन दिया की वो अपनी माँ के साथ मिलकर अगले दिन घर को अंदर से पूरी तरह साफ़ कर डेगा. विशाल का पिता मान जाता है. इसके बाद खाने की तयारी होती है. अंजलि दोपहर के बचे खाने को गरम करने लगती है और दोनों बाप बेटा अपने कमरों में नहाने चले जाते है.
नहाते हुए विशाल जब बदन पर साबून लगाते हुए अपने लंड को साबून लगता है तोह वो अपने लंड को सहलाने लगता है. उसे कुछ देर पहले ऑंगन में सफायी के दोरान अपनी माँ की हरकतें याद आती है तो कुछ ही पलों में उसका लौडा पत्थर की तरह सखत होकर झटके मारने लगा. अपनी माँ के मम्मे और उभरे हुए कुल्हे याद आते ही उसका लंड बेकाबू होकर उसके हाथों से छूटने लगा. उसे याद आता है किस तरह उसकी माँ घोड़ी बनी उसे उकसा रही थी. "बहुत शौक है न उसे घोड़ी बनने का" में बनाऊंगा उसे घोडी”. विशाल का दिल तों नहीं कर रहा था मगर उसने बड़ी मुश्किल से अपने मन को समझाते हुए अपने लंड से हाथ हटा लिये. 'बस थोड़ा सा इंतज़ार और, बस थोड़ा सा इंतज़ार और वो अपने मन को समझाता है.
नहाने के बाद तीनो कुछ देर टेबल पर बातें करते है. विशाल का पिता अब कुछ शांत पड़ चुका था. वो बेटे का आभार प्रगट करता है के उसके बिना इतने कम समय में इतना इन्तेज़ाम करना लगभग नामुमकिन था. वो जनता था के विशाल को इतनी जल्दी पूजा अच्छी नहीं लगी थी मगर अब वो अपने बेटे को अस्वाशन देता है के वो उसके आराम में कोई बाधा नहीं डालेगा और अपनी छुट्टीयों का वो दिल खोल कर आनंद ले सकता है. विशाल भी अपने पिता को आस्वश्त करता है के उनकी ख़ुशी में ही उसकी ख़ुशी है. इसके बाद विशाल अपने कमरे में लौट आता है जबके उसका बाप टीवी देखने लगता है और उसकी माँ बर्तन साफ़ करने लगती है.
कमरे में आकर विशाल अपने कपडे उतार सिर्फ अंडरवियर में बेड पर लेट जाता है. छत को घुरते हुए वो अचानक हंस पढता है. अखिरकार वो पल आ ही गया था जिसके लिए वो इतना तडफ रहा था. अब किसी भी पल वो आ सकती थी. और फिर ओर....फिर ओर.......आज वो दिल खोलकर उसे प्यार करेंगा.......और अब वो उसे रोक भी नहीं सकती.....उसने वादा किया था....और वो खुद भी......वो खुद भी तो चाहती होगी......उसका भी दिल जरूर मचल रहा होगा..........कीस तरह ऑंगन में वो मुझे छेड रही थी.....एक बार आ जाये फिर बताता हू उसे....." विशाल मुस्कराता खुद से बातें कर रहा था. मगर इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती चलि गयी. इंतज़ार करते करते एक घंटे से ऊपर हो गया था. विशाल का दिल डुबने लगा के शायद वो आएगी ही नही. जब उसकी उम्मीद टुटने लगी तभी दरवाजे का हैंडल धीरे से घुमा और फिर
दरवाजा खुला.
हाथ में दूध का गिलास थामे अंजलि १००० वाट के बल्ब की तरह मुस्कान बिखेरती अंदर दाखिल होती है.
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