RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
माँ बेटा दोनों होश में आते है. अंजलि तूरुंत बेटे के लंड की तरफ बढ़ते हाथ को पीछे खींच लेती है और विशाल भी माँ के निप्पल से जल्दी से मुंह हटाता है और उसकी कच्छी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लेता है. विशाल हतप्रभ सा अपनी माँ की और देखता है.
"डेड अभी तक जाग रहे हैं?"
"वो सोये ही कब थे?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते हुए कहती है. उत्तेजना के तूफ़ान का असर अभी भी दोनों पर था.
"क्या मतलब?" विशाल समज नहीं पाता. अंजलि कुछ पलों के लिए चुप्प हो जाती है. फिर वो धीरे से अपने पेट पर से विशाल का हाथ हटाती है जो कुछ पल पहले उसकी कच्छी के अंदर घुस चुका था. अंजलि उठ कर बैठ जाती है. विशाल भी उठकर माँ के सामने बैठ जाता है.
"तुम्हारे पिताजी का दिल नहीं भरा था. आज वो कुछ ज्यादा ही एक्ससिटेड थे. तुम्हारी क़ामयाबी और लोगों की तारीफ से उन्हें बहुत जोश चढ़ गया है. इसिलिये कहने लगे के वो एक बार और......फिर से...... मैंने मना किया मगर वो कहाँ मानाने वाले थे........मुझे कहने लगे के जलद से जलद तुम्हे दूध देकर निचे चलि आउ......" अंजलि विशाल का गाल सहलाती बड़े ही प्यार भरी नज़र से उसे देखति है. "मगर मैंने उन्हें कह दिया था के में अपने बेटे से खूब बातें करुँगी........वो इसीलिए निचे शोर कर रहे है. लगता है बहुत बेताब हो रहे है......." अंजलि धीरे से फीकी हँसी होंठो पर लिए बेटे को समजाति है.
"और मैं?..........डैड को दो दो बार और मुझे?......." विशाल के चेहरे से मायूसी झलकने लगी थी.
"मैं उनकी पत्नी हु.......मुझ पर उनका हक़्क़ है......में उन्हें इंकार नहीं कर सकती." अंजलि बेटे का हाथ अपने हाथों में लेकर सहलाती है जैसे उसे दिलासा दे रही हो.
"और मैं?.......में कुछ भी नहीं?........" विशाल रुआँसा सा होने लगा.
"तु तोह सब कुछ है मेरे लाल...........मैने तुझे रोका था?........आज तक हर खवाहिश पूरी की है न.......आगे भी करूंग़ी.....बस आज की रात है...........कल से तेरे पिताजी काम पर जाने लगेंगे.......फिर में पूरा दिन तेरे पास रहूंग़ी..........तु अपने दिल की हर हसरत पूरी कर लेना" अंजलि की आँखों में ममता का, प्यार का वास्ता था और साथ ही साथ बेटे के लिए अस्वासन भी था के वो उसकी हर मनोकामना पूरी करेगि.
विशाल ने बड़े भारी मन से धीरे से सर हिलाया. अंजलि गाउन को गाँठ लगाती उठ खड़ी हुयी और विशाल भी साथ में उठ जाता है. दोनों बेड से निचे उतरते है.
"अब यूँ देवदास की तरह मुंह न लटकाओ. और हा......एक बात तोह में भूल ही गयी थी...कल १४ जुलाई है, तुम्हारा वो नग्न दिवस भी कल है........." अंजलि धीरे से पहले की तरह शरारती सी मुस्कान से कहती है.
"यह अचानक न्यूड़ डे बिच में कहाँ से आ गया......" विशाल तोह न्यूड डे के बारे में लगभग भूल ही चुका था. बहरहाल माँ के याद दिलाने पर उसे याद भी आया. उसके चेहरे पर भी हलकी सी मुस्कराहट आ गयी. माँ के साथ इस अनोखे रिश्ते की शुरुवात आखिर इसी न्यूड डे के कारन ही तोह हुयी थी.
"कहा से आ गया........लगता है तुम भूल रहे हो.....चलो में याद दिला देती हु की अपने इसी नग्नता दिवस को मानाने के लिए तुम एक हफ्ता लेट आना चाहते थे....याद आया बरखुरदार..." अंजलि के होंठो की शरारती हँसी और भी गहरी हो गयी थी.
"हूँह्.........लकिन अब में कोनसा उसे मनाने वाला हु" विशाल मायुस स्वर में कहता है.
"क्यों तेरी क्या एक ही गर्लफ्रेंड थी............और भी तो कोई होगी जो तेरे साथ न्यूड डे मनाना चाहेगी?" अंजलि बेटे को आँख मारकर छेड़ती है.
"पहली बात तोह कोई है नहि, एक थी वो शादी करके चलि गयी और अगर दूसरी कोई होती भी तोह काया चार साल बाद मेरे बुलाने पर आ जाएगी?" विशाल ठण्डी आह भरता है. माँ जाने वाली है यह जानकर उसके अंदर कोई उमंग ही बाकि नहीं बचि थी.
"हूममममम...........चलो तोह फिर इस साल ऐसे ही गुज़ारा कर लेना.......वैसे अगर तुम्हे लगता है के में कबाब में हड्डी बन्ने वाली हु तो मेरी तरफ से खुली छुट्टी है........मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है........चाहो तोह यह हड्डी कल कहीं घुमने के लिए चलि जाएगी........." अंजलि मुस्कराती फिर से बेटे को आँख मारकर कहती है.
"तुम्हेँ कहीं जाने की जरूरत नहीं है माँ.......... अभी यह साल तोह न्यूड डे का कोई चांस नहीं है........." विशाल अपनी माँ के हाथ चूमता है. मगर तभी अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंध जाता है;
"मा कबाब में हड्डी बनने की बजाय तुम्ही कबाब क्यों नहीं बन जाती!"
"क्या मतलब?" अंजलि को जैसे बेटे की बात समज में नहीं आई थी या फिर वो नासमझी का दिखावा कर रही थी.
"मतलब तुम समझ चुकी हो माँ......लकिन अगर मेरे मुंह से सुनना चाहती हो तोह.........तुम खुद मेरे साथ न्यूड डे क्यों नहीं मना लेति" विशाल ने अब बॉल माँ के पाले में दाल दी थी
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