Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
08-19-2018, 03:09 PM,
#35
RE: Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
“माँ आपके दोनो बेटे बहुत स्मार्ट दिखते है. अर्जुन भैया एक बहुत बड़ी कंपनी मे चीफ सिविल इंजिनियर है और करण भैया एक बहुत बड़े डॉक्टर...और आपकी यह बेटी वकालत पढ़ रही है...” काजल ने बताया.

“मैं यहाँ इस कालकोठरी मे भगवान से यही मनाती थी कि मेरे बेटो का भविष्य उज्ज्वल बना देना...” रत्ना के बोलते ही काल कोठरी का गेट खुला और त्रिकाल का एक आदमी अंदर आया है.

“चल मालिक की सेवा करने का समय हो गया है...” उसने रत्ना को घसीट ते हुए कहा. काजल बस देखती ही रह गयी, आख़िर वो कर भी क्या सकती थी.

थोड़ी देर बाद बगल की कोठारी से उसकी माँ की दर्द भरी चीखे काजल को सुनाई देने लगी. वह बस अपने मन मे यही सोच रही थी कब उसके दोनो भाई आए और उसे और उसकी माँ को त्रिकाल के चंगुल से छुड़ा ले जाए.

इधर घने जंगल मे भूके प्यासे कारण और अर्जुन भटकते रहते है. पूरा दिन गुजर गया था पर अभी तक उन्हे जंगल से बाहर निकलने का रास्ता नही मिला. इधर उधर चलते रहने के बाद उन्हे कुछ आदमी उनकी ओर आते दिखाई दिए.

“चल इनसे मदद माँगते है....” करण बोला और अर्जुन का हाथ पकड़ कर आदमियो की तरफ चल दिया.

“पर करण कही यह त्रिकाल के आदमी तो नही....???” 

“नही यह त्रिकाल के आदमी नही हो सकते....तुमने सुना नही कि वो हमे टीवी रिपोर्टर समझ रहे थे....इसलिए अभी वो वापस हम पर हमला नही करेंगे...”

अर्जुन को लगा कि करण की बात मे दम है इसलिए वो करण के साथ साथ चलने लगा.

“काका आप लोग कौन है....” करण ने उन आदमियो मे से एक से पूछा.

“अरे बिटवा...हम सब तो इहा के लकड़हारे है...देखत नाही हो हमारे पास जंगल की कटी लकड़िया है....पर एई बताओ...तुम दोनो एई बख़त इस घने जंगल मा क्या कर रहे हो...” उस अधेड़ उमर के आदमी ने कहा.

“वो दरअसल काका....हम लोग जंगल मे घूमने आए थे पर यहा भटक गये है और वापस शहर जाना चाहते है...” करण बोला.

“बिटवा....तुम लोगो का एई बख़त यहा घूमना ठीक नाही है...तुमका पता है एई जंगल माँ एक बहुत ही दुष्ट तंत्रिकवा रहत है...उ अगर तुम लोगो का देख लीही तो समझ लो तुम दोनो की मौत पक्की है....” 

“काका हम यहाँ से जल्द से जल्द निकल जाना चाहते है.....” करण बोला.

फिर उस आदमी ने करण और अर्जुन को जंगल से बाहर जाने का रास्ता बता दिया. रात हो चली थी और दोनो पास के एक कस्बे मे पहुच चुके थे. दो दिनो से भूके दोनो पास के एक ढाबे मे चले गये और खाना खाने बैठ गये.

“करण अब हम यहाँ से आगे क्या करे....” अर्जुन ने रोटिया तोड़ते हुए कहा.

“यह तो मुझे भी समझ मे नही आ रहा है....” करण खाने का कौर खाते हुए बोला.

“क्यू ना हम दोबारा जंगल मे जाने का प्रयास करे....”

“पर अर्जुन अब तो हमारे पास सलमा के फोन का जीपीस सिग्नल भी नही है तो हम वहाँ पर कैसे जा सकते है....”

“ह्म्‍म्म....बात तो सही है...पर अगर हम कुछ दिनो तक लगातार ढूँढते रहे तो ज़रूर त्रिकाल की गुफा ढूंड लेंगे..”

“नही ऐसा करना ठीक नही होगा...क्यूकी अगर हम त्रिकाल की गुफा तक पहुच भी गये तो उसके काले जादू से जीत नही पाएँगे...”

“तो फिर हम करे क्या....बस हाथ पर हाथ धरे अपनी बहन की इज़्ज़त लूट ते देखे....” अर्जुन खीजते हुए बोला.

करण कुछ देर चुप रहा. उसका डॉक्टोरी दिमाग़ तेज़ी से चल रहा था जब उसे एक ख़याल आया. “क्यू ना हम दोबारा आचार्य सत्य प्रकाश के पास चलते है....उन्होने पिच्छली बार हमारी मदद की थी तो इस बार भी ज़रूर करेंगे..” करण कुछ सोचते हुए बोला.

“हाँ यह ठीक रहेगा...” अर्जुन ने जवाब दिया.

रात भर वही ढाबे के बाहर बिताकर दोनो अगली सुबह अपने गाड़ी से मुंबई रवाना हो गये.

“करण...काजल की कमी बहुत खल रही है...अगर हमारी फूल सी बहन को कुछ भी हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा...” अर्जुन का गला भर आया था.

“तू फिकर मत कर मेरे भाई....काजल भी हमारी तरह एक राजपूत खून है...वो इतनी जल्दी हिम्मत नही हारेगी....और मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही कुछ ना कुछ रास्ता ज़रूर ढूँढ निकालेंगे...”

एक दूसरे की हिम्मत बढ़ाते दोनो अपने घर मुंबई पहुच गये. आचार्य सत्य प्रकाश का पता लगाने पर उन्हे पता चला कि वो पास के शहेर मे यज्ञ कराने गये है और दो दिन बाद ही लौटेंगे.

“चल भाई अब इन दो दिनो मे आराम कर ले क्यूकी हम जिस सफ़र पर निकलने वाले है उसपर अब आराम नही मिलेगा..” करण बोला.

“पर भाई हमारी बहन वहाँ मुसीबत मे है तो हम यहा कैसे आराम कर सकते है...” 

“अर्जुन तू खुले दिमाग़ से सोच...अभी हमारे पास कोई और रास्ता नही है...जब तक आचार्य वापस नही आते है तब तक हम कुछ नही कर सकते....और तू फिकर करना छोड़ दे क्यूकी अगली अमावस्या तक त्रिकाल काजल को हाथ भी नही लगाएगा...” करण ने अर्जुन को समझाया.

अब सब कुछ भगवान पर छोड़ कर दोनो अपने अपने घर चले गये. अर्जुन को लगा कि सलमा के अम्मी अब्बू को सब कुछ सच सच बता दे, पर उसकी ऐसा करने की हिम्मत ही नही हुई, और अगर हिम्मत होती भी तो सलमा के अम्मी अब्बू यह तांत्रिक के काले जादू पर कभी विश्वास नही करते. अपने दिल पर यह बड़ा सा बोझ लेकर अर्जुन अपने घर चला गया.

इतने दिनो से करण का क्लिनिक भी बंद था, पर उसे इसकी फिकर नही थी. करण की नज़रें तो किसी और को ही ढूँढ रही थी. शाम तक वो तय्यार हो कर गाड़ी से अपनी मंज़िल तक पहुच गया.
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