mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
03-21-2019, 12:21 PM,
#35
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 33



अब चला मैं मेरी लाडली छोटी को मनाने.....


सुनैना बाहर आते ही अपने चिर परिचित अंदाज़ मैं सबके पास एक स्ट्रांग एंट्री की। अब मीटिंग का माहोल खिलखिला तो हंसी से गूँजने लागी । अब सब जब नार्मल हो चुके थे फिर सब के सब कल क्या बात हुए उसके बारे में जानना चाह रहे थे ।


ये जिज्ञासा भी अजीब होती है जब तक सवालों का जवाब न मिल जाय तबतक मन में बेचैनी रहती है और वही हाल अभी निरज, गुंजन, और सिमरन का था ।



मुझे ऐसा लगा कि प्रेशर में कंही सुनैना बोल न दे इसलिए मैं ही बोल पड़ा....एक्चुअली कल जब हम कॉफ़ी शॉप गए तो सुनैना जिद करने लगी उसे और घूमने जाना है पर मैंने साफ मना कर दिया तो सुनैना ने मुझे पलट कर जवाब दी की...... " मैं तेरी सगी बहन थोड़े ही हूँ जो तू मेरी जिद पूरी करेगा अभी यंहा दिया होती तो क्या तू ऐसे ही बोलता" ।

अब बताओ दिया सबसे छोटी है उसकी जिद तो ये सुनैना भी पूरी कर देती है फिर इसमें अपना पराया कहाँ से आ गया।



सटेस्फ़ी या वैरी सटिस्फी हो चुके थे सब मेरी बात सुनकर बात जयादा ओड भी नहीं थी जिस से सुनैना को शर्मिंदा होना पड़े और मेरा झूठ सुनकर दो लोग मंद मंद मुस्का भी रहे थे परिधि और सुनैना । 


खैर फिर समझाने का दौर चला सुनैना को , और मैं इधर सबको उलझा देख चला आया नीचे कार से बचे लोगों का गिफ्ट लेने ।


फिर मोम, डैड और सिमरन का गिफ्ट सिमरन के हाँथ में दे दिया और दिया का गिफ्ट उसे देने जाने लागा, इतने मैं गुंजन दीदी टोकते हुए...
"ला दिखा तो क्या लाया है दिया के लिये"



मैने बैग दिया और सब ने देखा इसपर सुनैना बोली....
"देखा न तुमलोगो ने हमारे लिए केवल फॉर्मेलिटी की है और दिया का गिफ्ट देखा
लांहगा वो भी इतना महंगा और साथ मैं मैचिंग, एअर रिंग, पर्स , नेल पोलिश और क्या क्या" 



सब लेडीज मेरी ओर देखते हुए.... "हूँ! सुनैना तेरी बात मैं पॉइंट है"


पर मेरा तो तीर इस मामले में हमेशा तैयार था....

"अच्छा ये बताओ तुम सब, की सबने शॉपिंग कर ली होगी"


सब.... हाँ

अच्छा सिमरन दी आप तो किरण के साथ शॉपिंग की होगी..... हाँ 


और गुंजन दी आप और सुनैना साथ में..... हाँ 


ये बताओ अबतक आप ने अपने ड्रेसेस भी एक दूसरे को दिखा चुकी होंगी..... हाँ 


अब यह भी बता दो कि किस-किस ने दिया की ड्रेस के बारे में पूछा "कि तू इंगेजमेंट मैं क्या पहनेवाली है"


सब चुप नहीं इसमें आप लोगों को सोचने की जरूरत नहीं क्योंकि उसको मार्किट मैं ही लेकर जाता हूँ अब यदि मैं नहीं था तो उसने फ़ोन पर ही डिमांड कर दिया।


अगर फिर भी लगता है आप सब को कि मैं ने कुछ भेद-भओ किया है तो बता दो मैं वापस कर देता हूँ इसे ।


इतना सब को फील करवाने के बाद अब थोड़े ही न कोई सवाल उठना था पर हाँ उन सबको अपनी बात का अफ़सोस ज़रूर था और हमारी परिधि मैडम वो तो आज फुल फैमिली ड्रामा एंटरटेन कर रही थी। इशारों इशारों में मुझे शाबाशी भी दे रही थी।



अब मैं चला अपनी लाड़ली के कमरे में, कमरे में दिया लेटी हुई थी शायद सो रही थी। बड़ी ही प्यारी लग रही थी।


मैन उसके सर के पास बैठ गया और प्यार से सर पर हाँथ फेरा मेरा अस्पर्श पाकर वो धीरे से आँख खोली, मुझे देखा एक नाराजगी ( बनावटी ) दिखाई और मुँह फेर कर सो गायी। मैंने प्यार से फिर उसके सर पर हाँथ फेरा....



दिया.... क्या कर रहे हो अब शांति से सोने दो न।


मैं..... छोटी देख तो क्या है?


दिया..... कुछ भी हो मैं अभी सो रही हूँ सोने दो न (नक् से आवाज़ निकालते और अपने हाँथ पैर पटकते बोली)



मैं...... पगली पहले देख ले नीन्द तो तेरी ऐशे ही गायब हो जाएगी ।


दिया...... क्या है जल्दी दिखाओ ।


अब उसने बैग खोला और अपना पूरा सामान देख कर अंदर से खुश तो बहुत थी फिर भी....


दिया..... कितने पैसे लगे बता देना पापा से दिलवा दूंगी (मुझे चिढ़ाने के लिए बोली)


(अब यंहा से मेरा नाटक शुरू)


मैं कुछ न बोले चुपचाप उसके पास से उठ कर दूसरे कमरे में आ गया । पीछे जितने दरसक थे वो भी अपनी अपनी जगह ले लिए हॉल में।


अभी कुछ समय बीते होंगे की दिया पहुँचि मेरे कमरे में....
"अब उठोगे मुझे बहुत भूख लगी है"


मैं..." तो जा ना मैं ने थोड़े ही रोका है"

आब पीछे से मेरे गले पड़ते...

"चलो न भैया प्लीज अब बहुत भूख लगी है, नाटक-नाटक मैं कंही तुम्हारी बहिन भूख से मर न जाए" 


मैने उसे मरने वाली बात पर डांटते हुए।।।।"चअल्, चल कर खाते है"


तबतक खाने पर सब लोग आ चुके थे हम भाई बहन के अलाव, पापा और मौसा जी ने भी हमें ज्वाइन कर लिया था । अबतक दोनों परिधि से मिल चुके थे और उनकी बातें भी हो गयी थी। माँ और मासी सबको खिला रही थी।



इतने लोगों के बीच मैं भी दिया मेरे हांथों से ही खाना खायी। खैर अब इंगेजमेंट को 1 दिन रह गया था इसलिए सब उसी पर चर्चा कर रहे थे ।



अब इंटरस्टिंग फैक्ट ये था की मोहित अंकल अपने हर एम्प्लोयी (मैनेजर या उस से ऊपर) के हर फंक्शन में शामिल होते थे अगर सिटी में अवेलेबल हो और यदि न हो तो आंटी और बचे अटेंड करते है।




और जब बात मोहित अंकल की चली तो इतनी बड़ी हस्ती है उनसे सब मिलने वाले है और तो और मौसा जी तो लगता है वो भी बिलकुल फैन हो। मोहित जी ऐसे मोहित जी वैस, जंहा एक तरफ अपने पापा की तारीफ सुनकर परिधि बहुत खुश नजर आ रही थी वंही मैं अब चुटकी लेते हुए....
"ना मौसा जी यदि मोहित सर इतने ही बड़ी हस्ती है तो चलो उन्हीं के पास गुंजन दीदी का रिश्ता ले कर चलते है"।




मेरा इतना बोलने से जंहा किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा पर मौसा जी के चेहरे का रंग उड़ गया। सायद उन्हें बात पसंद नहीं आई और मैं ये भांप गया....


मैं.... " सॉरी मौसा जी मैं तो वो मजाक मैं बोल गया"


मौसा जी.... "राहुल तुम अब बच्चे नहीं जो कुछ भी बोलते रहो और देख कर बोला करो कि किसके बारे में बोल रहे हो, हमारे और तुम्हारे जैसे न जाने उनके कितने नौकर होंगे मोहित जी के पै"


अब तो मेरा चेहरा भी उतर गया। दिया वो तो अभी ही कुछ बोलने को हुए तो मैंने उस से चुप रहने का इशारा किया और उसे शांत करवाया। एक और ऑडियंस थी वंहा जिसका रिएक्शन देख मैं समझ गया की इसे भी बुरा लगा है। खैर बांकी मौसा जी के समर्थन में, और सब ने बोला की मुझे ऐसी बातें नहीं करनी चहिये।



भोजन के पश्चात मैं परिधि को उसके घर छोड़ने चला गया पुरे रस्ते शांत थी कुछ न बोलि, बस मैं ही बोलता रहा और परिधि हान, हुण, न मैं बोलती रही ।



परिधि अपने कमरे में चली गयी और मैं आंटी से जाकर मिला और कल परिधि को इंगेजमेंट में ले जाने की परमिशन भी ले ली।


घर पहुंच, घर पहुँच कर आराम किया थोड़ी देर फिर यूँ ही कभी इसे से दो बातें तो कभी उस से । देख के शांति मिल रही थी कि दिया ने मौसा जी की बात को ज्यादा दिल से नहीं लिया और वो भी इंगेजमेंट मैं क्या क्या धमाल करना है उसके बड़े मैं सोच रही थी।


मूड तो मेरा भी ऑफ था मौसा जी की बातों से क्योंकि बहुत रूडली बोले।


लेकिन इन सब बातों को दरकिनार कर अब मुझे भी कल की तैयारियां करनी थी इसलिए मैंने परिधि को करीब 5: 30 pm पर फ़ोन लगाया ।


परिधि.... हाँ बोलिये सर ,


मैं.... जल्दी तैयार होकर मुझे पिक करने आओ ।


परिधि.... ओके , न कोई सवाल, की क्यों और कान्हा चलना है।


अभी 15 मिन हुए होंगे की परिधि का कॉल आया । मैं भी यंहा तैयार बैठा था इसलिए कॉल आते ही बहार चला गया, परिधि ने घर से कुछ दूर पर कार पार्क की थी।


मैने परिधि को ड्राइविंग सीट से उठकर बगल में बैठ ने को कहा वो बिना कोई सवाल किये चुपचाप बैठ गायी।



दोनो शांत और कार लगी कॉफ़ी शॉप पर।
आंडार टेबल पर बैठते हुए...

"क्या है परिधि प्लीज अब कुछ बोलो न ऐसे नाराज क्यों होती हो"



परिधि.... मैं क्यों नाराज होने लगी ।


फिर हमारा वाद-विवाद यूँ ही चलता रहा । कुछ देर बाद परिधि भी नार्मल हो गयी और फिर उसकी शरारतें शुरू हो चुकी थी। पर वो जो भी करती मुझे बहुत प्यारा लागता ।


पर अब मुझ से न रहा गया तो मैं बोल ही दिया.....
"आज कल देख रहा हूँ की तुम बहुत जल्दी नाराज हो जाती हो"



परिधि...... तुमहे कोई कुछ बोलता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता और न चाहते हुए भी गुस्से आ जाता है।


मैं..... और वो क्यों?


परिधि....इस क्योँ पर सरमा गयी और बोली हर बात का जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझती ।


खैर माहौल खुशनुमा हो चला था । और अब मैं परिधि को कल का प्लान बताने लागा । अब हमारी कल की पूरी प्लानिंग हो चुकी थी बस एक बात के.... 


परिधि अब चलो किसी बुटीक में.....क्योँ। ....चलो तो ।

फिर हम चल दिए बुटीक सेंटर पहुँच कर मैंने उसे अपने लिए एक मैरून कलर की एक लंहगा ले लो।


परिधि.... मैं क्यों लूँ मुझे समझ में नहीं आ रहा ।


मैं.... वो ऐसा है बीबी जी कि, जब मेरी सं आप के नाम थी तो आपने मुझे अपने पसंद के कपड़े दिए, और कल मेरी बारी है इसलिए अब चुपचाप ले लो।


परिधि.... ओके सर ।


फाइनली मेरी तयारी भी पूरी हुई । परिधि को घर ड्रॉप किया और 5pm को पिक अप का बोल कर चला गया। 


घर आया तो सब अपनी अपनी तैयारियों में लगे थे, मुझे देख दिया मेरे पास आ गयी और हम दोनों आपस मैं यु ही बातें करते रहे ।


लोग बहुत ही उत्साहित थे कल के लिये। हम सब खाना खा कर सोने चले गै। रूम में आकर मेरी थोड़ी ऋषभ से बात हुए, जल्दी आने को बोल रहा था । फिर कुछ देर परिधि से बात हुए कल के बारे में और फिर आई नींद और सो गया।


और अब हुई सुबह....


कहानी जारी रहेगी....
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