RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
“भाई आज आने में बड़ी देर हुई तुम्हे ” चकोर भाई के सीने से लगे हुए बोली
चकोर के मोटे मोटे चुचे मोहन के सीने में घुसने लगे वो बहन की छातियो को महसूस करने लगा तभी चकोर उस से दूर हो गयी और बोली- भाई जल्दी आओ तुम्हे कुछ दिखाती हु
मोहन उसके पीछे चल पड़ा अपनी मस्ती में मस्त चकोर अपने भाई के आगे आगे इठलाते हुए चल रही थी और मोहन चाहकर भी अपनी नजर उसके मदमस्त नितम्बो से हटा नहीं पा रहा था इस ग्लानी के साथ की वो उसकी बहन है पर ये योवन की खुमारी उसके सोचने समझने की योग्यता को कम रही थी चकोर एक 21 साल की यौवन से भरी हुई लड़की थी रंग सांवला कटीले नैन नक्श बड़ी बड़ी आँखे बड़ी बड़ी छातिया पतली कमर और थोड़े से चौड़े नितम्ब
जल्दी ही वो चलते चलते रुक गयी ये एक छोटी सी बागवानी थी जिसे चकोर ने लगाया था
“भाई देखो फूल आने शुरू हो गए है ”
“हाँ, जीजी ”
ऐसा नहीं था की मोहन क अपनी बहन से स्नेह नहीं था पर उसके दिमाग में इस समय बस रानी साहिबा की कही बाते चल रही थी तीन दिन बाद उसे वहा जाना था चकोर पूरी बगीची में घूम घूम कर मोहन को बाते बता रही थी और तभी उसका पाँव गीली मिटटी में फिसला पर मोहन ने उसको अपनी मजबूत बाँहों में थाम लिया उसकी छातिया फिर से मोहन के कठोर सीने से टकराई और मोहन के हाथ चकोर के नितम्बो पर कस गए चकोर के होंठो से एक आह निकली और आज पहली बार उसे अपने भाई की जगह किसी पर पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ
शरमाते हुए वो मोहन की बाहों से निकली फिर दोनों भाई बहनों में कोई बात नहीं हुई वैसे भी आज मोहन मोहन नहीं था उसके दिमाग में बस रानी संयुक्ता का सुंदर चेहरा घूम रहा था ऐसी सुंदर स्त्री उसने कभी नहीं देखि थी पर आईएनएस अब बातो में वो उस लड़की को भूल गया था जिसने उसे पानी पिलाया था रात हो गयी थी वो पेड़ न निचे आराम कर रहा था तभी चकोर आई
“भाई मेरे साथ जरा कुवे पर चल मुझे नहाना है ”
“पर जीजी मैं आपके साथ क्या करूँगा ”
“पानी खीच देना और फिर वैसे भी अँधेरा ज्यादा है तू चल ”
मोहन और चकोर कुवे पर पहुचे जो डेरे से थोड़ी दूर था , मोहन ने चकोर के लिए पानी खीचा और पास में ही बैठ गया ठंडी हवा चल रही थी रात को अक्सर मोसम ठंडा हो जाता था चारो तरफ चाँद की रौशनी छिटकी पड़ी थी चकोर ने नहाना शुरू किया उसने अपनी चोली उतारी और घागरे को ऊपर खीच लिया वो अपनी मस्ती में नहा रही थी काफी देर हुई मोहन बोला- और कितनी देर जीजी
“बस हो गया ”
ये सुनते ही मोहन चकोर की तरफ पलता और तभी चकोर के हाथ से घागरे की डोर छुट गयी घागरा उसके पैरो में आ गिरा और साथ ही मोहन ने अपने जीवन में पहली बार किसी को नंगी देख दिया उसकी आँखे जैसे चकोर के बदन पर ही जम गयी उसके उन्नत जिस्म का पूरा अवलोकन कर लिया लाज के मारे चकोर शरमाई और जल्दी से घागरे को ऊपर किया मोहन ने अपना मुह फेर लिया फिर पुरे रस्ते दोनों ने कोई बात नहीं की
रात को दोनों भाई बहन की आँखों में नींद नहीं थी चकोर उस स्पर्श के बारे में सोच रही थी जब उसके भाई ने उसके नितम्ब को कस के दबाया था और फिर उसको कुवे पर निर्वस्त्र देख लिया था जबकि मोहन खोया था संयुक्ता की सुन्दरता में वो सोचने लगा की रानी साहिबा जैसे कोई गुलाब का टुकड़ा हो कितनी गुलाबी गोरी रंगत थी उनकी और सबसे बड़ी बात उन्होंने उसकी कला को पसंद किया था जिस बंसी के पीछे उसके पिता ने खूब मारा था उसको एक रानी ने उसी कला को पहचाना था उसी कला के पर्दशन हेतु उसे बुलाया था
इधर चकोर अपने भाई के बारे में सोचते हुए धीरे धीरे अपने उभारो से खेलने लगी थी उनमे एक कडापन आने लगा था उसकी टांगो के बीच गीलापन बढ़ने लगा था क्या वो उत्तेजित हो रही थी वो भी अपने ही भाई के बारे में सोच कर चकोर को थोडा गुस्सा भी आने लगा था पर उसके जिस्म में जो अहसास हो रहा था वो उसको अच्छा भी लग रहा था एक अजीब सा सुख मिल रहा था उसे जब वो अपने भाई के बारे में सोच रही थी रात आँखों आँखों में कट गयी दोनों की
इधर सुबह मोहन के पिता किसी काम से डेरे से बाहर चले गए तो मोहन को यहाँ ही रह जाना पड़ा अब उसका मन लगे ना डेरे में क्योंकि यहाँ वो बस खुद को कैदी ही समझता था उसका पिता चाहता था को वो उनकी तरह एक काबिल सपेरा बने पर उसका मन तो बस अपनी बंसी की तान में लगता था अब कैसे वो ये बात घरवालो को समझाए खैर खाना खाने के बाद मोहन ने पानी पिया तो उसे उस लड़की की याद आई नजरे बचा कर वो डेरे से बहार निकला और ठीक उसी जगह पहुच गया वो ही समय था उसने इधर उधर तलाश की पर वो लड़की ना दिखी
दिखती भी कैसे अब चरवाहों का तो यही काम कभी इधर चले गए कभी उधर चले गए पता नहीं क्यों मोहन को लग रहा था की वो उसे जरुर मिलेगी पर हाथ निराशा ही लगी तो थक कर वो उसी कीकर के निचे बैठ गया और बंसी बजाने लगा यही बंसी तो उसका एक मात्र खिलौना थी , करीब घंटा भर हुआ अब मोहन चला वापिस पर तभी उसने सोचा एक नजर फिर से देख लू और तभी उसे वही लड़की उधर ही दिखी
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