RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे ख्याल आया उस पानी की धौरे का वो गया अब वो हुआ हैरान धौरा पूरी तरह से सूखा हुआ था मोहन को विश्वास ना हुआ
“मोहिनी ने तो कहा था की यहाँ हमेशा मीठा पानी रहेगा मैं जब जी चाहू पि लू पर यहाँ तो पानी है ही नहीं शायद मोहिनी ने ऐसे ही कह दिया होगा , पर उस दिन तो पानी था ’
अपने आप से बडबडाता मोहन आगे को बढ़ा और तभी उसे अपने कानो में पानी की आवाज सुनाई दी वो झट से घुमा और क्या देखा धौरा लबालब भरा था पानी से मोहन ने छिक के पानी पिया उसने फिर से मोहिनी को आवाज दी पर वो थी ही नहीं तो कैसे जवाब देती तो वो अपने मंजिल की और बढ़ गया
अब किसकी मजाल थी की महारानी के हुक्म को ना माने पर मोहन अपनी कला की प्रशंशा पाना चाहता था इसी आस में वो आखिर महारानी के शिविर तक जैसे उन्होंने बताया था वो पहुच गया
तभी उस पर महिला सैनिको की नजर पड़ी वो चीलाई- ओये लड़क
के वही ठहर तेरी क्या हिम्मत जो तू महारानी के शिविर के स्थान पर आया
मोहन- मुझे खुद महारानी ने बुलाया है
उनमे से एक हस्ते हुए बोली- तुझे बुलाया है महारानी ने ज्यादा झूठ मत बोल और भाग जा यहाँ से वर्ना सर धड से अलग होते हुए देर न लगेगी
अब मोहन उन्हें समझाए पर वो उसकी एक न सुने आखिर में उन्होंने मोहन को लताड़ कर भगा दिया मोहन की आस टूटी अब क्या करे वो सांझ ढल गयी पर उसने भी ठान लिया की वो महारानी से मिल के ही जायेगा थोडा अँधेरा हुआ भूख भी लगी पर आस थी हताश होकर उसने अपनी बंसी निकाली और छेड़ दी एक दर्द भरी तान मोहन की हताशा दर्द बन कर वातारण में विचरण करने लगी रानी उस समय नहा रही थी सरोवर में जैसे ही उसके कानो में वो आवाज पड़ी रानी बहने लगी उस आवाज में
बुलाया बंदी को और पुछा- ये कौन बंसी बजा रहा है जान तो वो गयी थी की वो ही चरवाहा होगा
बंदी आई- हुजुर, एक लड़का है सुबह से आया है कहता है की आपने बुलाया है पर वो ठीक नहीं लगा तो हमने उसे भगा दिया था पर वो ही थोड़ी दूर बंसी बजा रहा है आपकी शान में गुस्ताखी हुई हम अभी उसे कैद में लेते है
संयुक्ता- गुस्ताख, तुम हमारे मेहमान को कैद में लोगी इस से पहले की हमारे क्रोध की जावला में तुम जल जाओ उस चरवाहे को बा अदब हमारे पास लाया जाये और साथ ही उसके भोजन की शाही व्यवस्था की जाए उसे इज्जत केसाथ लाओ अभी रानी दहाड़ी
जैसे ही मोहन को पता चला की रानी ने उसको बुलाया वो खुश होगा राजी राजी आया उसी तालाब के पास जिसमे रानी अठखेलिया कर रही थी मोहन को देख कर रानी मुस्कुराई और बोली- सबको आदेश है की जब तक हम किसी को ना बुलाये कोई नहीं आये यहाँ पर सबसे पहले इसके लिए कुछ खाने का प्रबंध करो
कुछ ही देर में मोहन के लिए तरह तरह के पकवान आ गए जिनका ना नाम सुना उसने ना कभी खाया संयुक्ता ने उसको इशारा किया मोहन ने खाना शुरू किया जल्दी ही उसका पेट भर गया रानी ने पुछा कुछ और उसने मना किया वो मुस्कुराई
संयुक्ता अभी भी पानी में ही थी गर्दन तक पानी में डूबी बोली- क्या नाम है तुम्हारा
मोहन-जी मोहन
“तो मोहन सुनाओ कोई तान जिस से मैं बहक जाऊ मेरे मन को कुछ देर के लिए ही सही एक सुकून सा मिले उस दिन जो तुम बजा रहे थे वो ही बजाओ ऐसे लगता है की जैसे तुम्हारी तान सीधे मेरे दिल में उतरती है ”
मोहन वही तालाब किनारे बैठ गया और उसने छेड़ दी ऐसी मधुर तान की जैसे कान्हा जी के बाद अगर कोई बंसी बजता था तो बस मोहन और कोई नहीं इधर जैसे जैसे मोहन का संगीत अपने श्रेष्ठ की और जा रहा था संयुक्ता की प्यास जागने लगी थी पानी की शीतलता में भी उसका बदन किसी बुखार के रोगी की तरह तपने लगा था जिस्म की प्यास फिर से उसके बदन को झुलसाने लगी थी ऐसा नहीं था की वो कोई चरित्रहीन औरत थी
पर जब से उसने मोहन को देखा था वो अपने आप में नहीं थी
पता नहीं मोहन म ऐसी कौन सी कशिश थी जिसने महारानी संयुक्ता को आकर्षित कर लिया था , रानी को भी अपनी चूत की प्यास में कई दिनों से तड़प रही थी उसने धीरे से अपने निचले होंठ को दांत से काटा और मोहन को आवाज लगाई
“पानी में आ जाओ ”
“जी मैं ” वो थोडा सा सकुचाया
“सुना नहीं हमने क्या कहा ”
अब किसकी मजाल जो राज्य की महारानी को ना करे मोहन ने अपने कपडे उतारे और पानी में आने लगा और जैसे ही संयुक्ता की नजर मोहन के लंड पर पड़ी उसकी आँखों में एक चमक आ गयी
पानी के अन्दर ही रानी ने अपने चोची को भीचा और एक आह भरी अँधेरा होने लगा था ये कैसी कसक थी कैसी प्यास थी तो रानी ने इस काम के लिए मोहन को यहाँ बुलाया था ये जिस्म की प्यास एक महारानी का दिल एक बंजारे पर आ गया था वैसे तो रानी- महारानियो के इस पारकर के शौक होते थे पर क्या एक रानी इस स्तर पर आ गयी थी की उसने एक बंजारे को चुना था चलता हुआ मोहन रानी के बिलकुल सामने ही खडा था इस समय संयुक्ता मोहन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई
और अगले ही पल उसने मोहन के लंड को पानी में पकड लिया मोहन थोडा सा घबराया पर रानी ने उसको आँखे दिखाई अब रानी का क्या पता कब नाराज हो जाये सर धड से अलग करवा दे मोहन चुप हो गया पानी में भी संयुक्ता ने लंड की गर्माहट को मेह्सूस कर लिया था वो बोली- कभी किसी औरत के करीब गए हो कभी किया है
मोहन- नहीं मालकिन
रानी- तो कोरे हो चलो आज तुम्हे स्वर्ग की सैर का अनुभव करवा ही देती हु देखो मोहन मैं जैसा करती हु करने देना वर्ना तुम जानते हो
मोहन से हाँ में सर हिलाया , संयुक्ता ने धीरे धीरे उसके लंड को सहलाना शुरू किया मोहन के लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था तो जल्दी ही वो उत्त्जेजित होने लगा जैसे जैसे उसके लंड में तनाव आ रहा था रानी के होंठो पर कुतिली मुस्कान आ रही थी वो जन गयी थी की लंड में बहुत दम है आज वो जी भर के तरपत होंगी मोहन के लंड की मोटाई उसकी कलाई के करीब ही थी रानी अब तेज तेज हाथ चलाने लगी थी उसके लंड पर
“मोहन हमारी छातियो को चुसो ”
वो दोनों अब थोडा सा बाहर को आये पानी अब उसकी कमर था मोहन ने जैसे ही अपने हाथ रानी की चूचियो पर रखे वो तड़प गयी
“आह,थोडा सा जोर से दबाओ ”
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