Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:41 AM,
#24
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
दिव्या ने अपना ब्रहमास्त्र चला दिया था अब महाराज तो बंधे थे वचन से अब क्या करे मुकरे तो वचन की मर्यादा भंग हो और एक बंजारे से कैसे ब्याह दे अपनी पुत्री को अब महाराज फसे एक पिता तो मुकर भी जाए पर एक राजा कैसे तो आखिर उन्होंने हां कह दी की वो दिव्या का विवाह मोहन से करवाएंगे 



मोहन पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी उसने तभी महारजा के पैर पकड़ लिए और बोला- महाराज मैं किसी और को चाहता हु हमे अलग मत कीजिये आपके राज्य में तो सबको संरक्षण मिलता है तो फिर हमे क्यों जुदाई 



अब महाराज क्या कहे परकुछ तो कहना ही था – मोहन, तुम जिस से प्रेम करते हो उसे बुलाओ हम बात करते है उस से दिव्या को हमने वचन दिया है तो उसका मान रखना ही पड़ेगा तुम तो हमारी मनोस्थि समझो मोहन 



अब मोहन क्या करे आँखों में आंसू लिए हुआ वापिस 



रस्ते में मिली उसको संयुक्ता मोहन को रोते देख उसने पुछा तो मोहन से सारी बात बताई की क्या हुआ है ये सुनकर संयुक्ता तो अन्दर ही अन्दर खुश हो गयी की अगर मोहन का और दिव्या का विवाह हो जाये तो उसका तो पूरा फायदा है 



संयुक्ता- तो इसमें गलत क्या है बल्कि तुम तो किस्मत वाले हो जो दिव्या जैसी लड़की तुम्हारी पत्नी बन रही है 



मोहन- पर मैं किसी और को चाहता हु 



संयुक्त- चाहत कुछ नहीं होती मोहन , दिव्या से विवाह करते ही तुम क्या बन जाओगे तुमने सोचा नहीं शायद 



मोहन- मैं जैसा हु ठीक हु महारानी , गरीब हु तो क्या हुआ दिल सच्चा है मेरा

सब की जिंदगी में ऐसा नाटकीय मोड़ आ गया था की किसी की समझ में नहीं आ रहा था की कैसे हल किया जाये इस समस्या को खुद महाराज भी परेशान थे वो जानते थे की मोहन का दिव्या से विवाह करवाना गलत है पर उन्होंने दिव्या को वचन दे रखा था इधर संयुक्ता ये सोच कर परेशां थी की उसने भी मोहन को एक वचन दिया हुआ है 



अगर मोहन उस वचन के बदले दिव्या से आजादी मांग ले तो वो क्या करेगी उसकी हिम्मत नहीं की महाराज के आगे बोल पाए भरी सभा में पर अगर मोहन ने वचन पूरा करने को कहा तो क्या होगा , इधर मोहिनी बेताब थी मोहन से मिलने को पर केवट ने रोक रखा था उसको पर कब तक रोकता वो 



परन्तु महराज भी मोहिनी से मिलना चाहते थे तो उन्होंने मोहन को आदेश दिया की मोहिनी को लेके आये अब मोहा आया उसी कीकर के पेड़ के निचे और पुकारा- मोहिनी, मोहिनी 



जैसे ही मोहन की आवाज उसके कानो में पड़ी वो हुई बावरी एक तरफ पिता का पहरा दूजी तरफ प्रेमी की पुकार करे तो क्या करे चली जाए तो पिता की अवमामना हो और ना जाये तो प्रीत की रुसवाई हो उधर मोहन ने फिर उसको पुकारा और उसके सीने में जैसे कोई चोट सी लगी झुलसे अपनी ही आगन में 



पता नहीं कितनी बार मोहन ने पुकारा पर वो ना आई, पर मिलना बेहद जरुरी दिलबर से मुसीबत जो आन पड़ी थी मोहन पे इस वक़्त मोहिनी का ही तो सहारा था उसे पर कहा रह गयी मोहिनी हमेशा तो आ जाती थी पर फिर आज क्यों देर हुई भला, शायद कोई काम हो गया होगा हां, ऐसा ही हुआ होगा 



पर बिना मिले वो जाये तो कैसे जाये, हताश होकर बैठा मोहन दोपहर से सांझ ढलने को आई पर एक आस उसके आने की थक हार कर उसने अपनी बंसी लगे होंठो पर , और अपने दर्द को जैसे भुलाने की कोशिश करने लगा इधर मोहिनी के कानो में जो बंसी की आवाज हुई वो तडपी पैर जैसे बगावत पर उतर आये 



इधर जैसे जैसे उसकी बंसी बजे वैसे बैसे मोहिनी पर मद चढ़े और आखिर में जब चढ़ा प्रीत का रंग तो भूली लोक लाज वो अब क्या होश उसे अब क्या ख्याल उसे चल पड़ी सजनी अपने सजन से मिलने को हल्का हल्का सा अँधेरा हो रहा था तारे कोई कोई निकल आये थे मोहन अब अब चलने को ही था की किसी ने उसको पुकारा 



“मोहन ” और जैसे ही मोहन ने उसे देखा दौड़ पड़ा उसकी तरफ और भर लिया उसको अपनी बाहों में आँखों से आंसू बह चले दोनों के ही कुछ देर बाद जब दर्द कुछ कम हुआ तो मोहन ने मोहिनी को सारी बात बताई, और मोहिनी को अब आया गुस्सा 



मोहिनी- तुम चिंता मत करो मोहन सब ठीक होगा 



मोहन- महाराज तुमसे मिलना चाहते है 



मोहिनी- मैं अवश्य ही मिलूंगी पर उस से पहले मुझे तुमसे एक बहुत ही जरुरी बात करनी है 
मोहन- कहो मोहिनी 



मोहिनी- मोहन मैं नहीं जानती की ये बात सुनके तुम कैसा व्यवहार करोगे पर तुम्हे ये बात बताना बहुत जरुरी है 
मोहन- मैं सुन रहा हु


मोहिनी- मोहन, तुम्हारी मोहिनी कोई इंसान नहीं बल्कि एक बल्कि एक नागकन्या है ,


अब मोहन घबराया पर जब उसने मोहिनी को देखा तो वो संयंत हो गया और बोला- मोहिनी, मैंने बस तुमसे प्रेम किया है एक सपना देखा है तुम्हारे साथ घर बसाने का तुम नागिन हो या देवी मुझे कोई फरक नहीं पड़ता जब तुमसे प्रेम किया तो भी तुम्हे चाहा था आगे भी चाहता रहूँगा 



मोहिनी मुस्कुरा पड़ी , बोली- मोहन, मैं नाग्श्री केवट की पुत्री हु जो स्वय महादेव के गले की शोभा बढ़ाते है 
अब मोहन क्या कहता उसने मोहिनी का हाथ पकड़ा और बोला- वादा करो की हर समय मेरा साथ दोगी जब प्रीत जोड़ी है तो निभाओगी 



मोहिनी की आँख में आंसू आ गए एक इंसान जो उसकी सच्चाई जानके भी उस से इतना निछ्शल प्रेम करता है उस स्वयम से ग्लानी सी होने लगी थी पर वो तो फैसला कर ही चुकी थी की वो प्रेम की परीक्षा देगी और उसका प्रेम सच्चा है तो कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकलेगा 



मोहिनी-मोहन मैं कल महल में आउंगी , जरुर आउंगी तुम मेरा इंतज़ार करना 



मोहन से विदा लेके वो पलती ही थी की उसने सामने केवट को खड़े पाया तो उसकी नजरे झुक गयी 



केवट- विरला ही है ये मनुष्य जो जानते हुए भी की तुम एक नाग कन्या हो फिर भी इतना प्रेम करता है , मैं तुम्हारे प्रेम का विरोध नहीं करता पुत्री पर इसके जो परिणाम है वो तो तुम भी जानती हो फिर क्यों 
मोहिनी- मोहन के लिए 



अब केवट क्या कहता बस अपने मन को समझा लिया पुत्री ने अपनी भाग को खुद चुन लिया था बस देखना है की परीक्षा में कितना टिक पाता है दोनों का प्रेम 



रात सबकी ही आँखों आँखों में कटी, महल में अजीब सी ख़ामोशी थी सबको इतंजार था तो बस मोहिनी के आने का और वो आई वैसे ही अपनी बेफिक्री में चलते हुए जैसे ही महाराज ने उसको देखा लगा की जैसे आसमान ही फट जायेगा आज तो , उनके राजधर्म की अग्नि परीक्षा तो आज होनी थी क्योंकि मोहिनी को देखते ही वो जान गए थे की अब मामला संगीन होगा 



क्योंकि दिव्या की तरह एक वचन उन्होंने मोहिनी को भी दिया हुआ था अब महाराज चंद्रभान के इस तरफ कुआ था तो दूसरी तरफ खाई अब राजा फास गया बीच में मोहन को तो वाचा की दुहाई दे दी थी पर मोहनी से क्या बहाना बनायेगा और क्या जवाब देगा वो जब वो अपने वचन में मोहन को मांगेगी 



एक तरफ दिव्या खड़ी दूसरी तरफ मोहिनी बीच में मोहन सबकी डोर उलझी थी आपस में पर अब क्या हो क्या नहीं ये देखने वाली बात थी 



महाराज- पुत्री जैसा की मोहन ने तुम्हे बता दिया ही होगा की किस विषय में हमने तुम्हे यहाँ बुलवाया है 
मोहिनी- जी महराज 




महाराज- तो तुम क्या क्या कहोगी 
मोहिनी- महाराज मियन और मोहन एक दुसरे से प्रेम करते है प्रीत की डोर बाँधी हैहम दोनों एक दुसरे के हो चुके है 
महाराज- पुत्री हम जानते है परन्तु दिव्या भी मोहन से प्रेम करती है और जैसा की तुम भी जानती हो की हम दोनों और से फसे हुए है जो दिव्या ने हमे बाध्य किया है अपने वाचन ने मोहन को माँगा है हम जानते है की ये गलत है पर अगर एक राजा वचन से गया तो फिर कैसा राजा दूसरी तरफ तुम भी अपने वचन में मोहन को ही मांगोगी हमे भान है परन्तु पुत्री हम तुम्हारे पिता जैसे है और अब तुम ही इस पिता को कोई राह दिखाओ 



मोहिनी- चिंता न करे, मैं आपसे वचन में मोहन को नहीं मांगूगी
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