RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
“चिंता ना करे महाराज , मैं अपने वचन में मोहन को नहीं मांगूंगी क्योंकि उसको क्या मांगना जो पहले से ही आपका है ”
मोहनी की ये बात सुनकर दिव्या को गुस्सा आया पर महाराज के सामने उसने रोका खुद को
महाराज- पुत्री, अब क्या किया जाये
मोहिनी- मैं और मोहन एक दुसरे के प्रेम करते है
दिव्या- मैं भी मोहन से प्रेम करती हु
मोहिनी- पर मोहन तुमसे प्रेम नहीं करता राजकुमारी दरअसल मोहन तुम्हारा प्रेम नहीं बल्कि तुम्हारी जिद है
उफ्फ्फ ये क्या कह दिया मोहिनी ने भरी सभा में में जैसे तमाचा ही मार दिया हो उसने दिव्या को पर उसकी बात एक दम सही थी स्वयं महाराज भी समझते थे पर वचन दे रखा था दिव्या को पर साथ ही वो ये भी जान गए थे की कही ना कही
उनकी प्रतिस्ठा भी गयी काम से, तो उन्होंने मोहिनी से कहा- पुत्री अगर तुम मोहन का त्याग करती हो तो हम तुम्हे मुह माँगा देंगे
मोहिनी- प्राणों से कहते हो की श्वास का त्याग कर दो
अब क्या किया जाए, कैसे सुलझाये इस मामले को दो प्रेमियों को अलग कर दे तो भी उचित नहीं और दिव्या को दिया वचन , महाराज ने कुछ सोच कर कहा
एक काम हो सकता है अगर मोहन दोनों लडकियों से विवाह कर ले तो
मोहन- परन्तु मुझे मंजूर नहीं मैंने कभी उस नजर से देखा नहीं राजकुमारी को
संयुक्ता- नहीं देखा तो क्या हुआ विवाह के बाद अब ठीक हो जायगा
मोहन- महारानी, अगर महाराज का यही आदेश है तो अवश्य पालन करूँगा पर प्रेम की रुसवाई हो जाएगी और फिर हम में से कौन कुछ रह पायेगा कोई भी नहीं मैं तो धुल बराबर हु राजकुमारी का स्थान बहुत ऊँचा मैं तो एक सामान्य सा जिसकी कोई कहानी नहीं आपके सामने
महारानी जी की कृपा से मैं यहाँ आ पाया ,इस रिश्ते का कोई जोड़ नहीं महाराज कोई नहीं
दिव्या- मोहन तुम एक बार मेरी तरफ देखो तो सही , तुम्हे मेरे साथ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी बस एक बार हां तो कहो
मोहन- आप अब भी नहीं समझी राजकुमारी,
इतनी देर से इस कहानी को सुनते हुए संगीता का दिमाग ख़राब होने लगा था वो बोली- महाराज आप इस मामले को इतना टूल दे रहे है, जब हमारी पुत्री मोहन से विवाह करना चाहती है तो करवाइए और इस मोहिनी को भगाइए यहाँ से या फिर कारावास में डाल दीजिये
मोहिनी- कोशिश करके देख लो महारानी मोहन से मुझे कौन जुदा करता है मैं भी देखती ही
उफ्फ्फ क्या दुस्साहस मोहिनी का महारानी को चुनोती दे रही है संगीता चिल्लाई- सैनिको पकड़ लो इस लड़की को अभी के अभी
सैनिक मोहिनी की तरफ बढे ही थे की मोहिनी ने घुर कर देखा उन्हें और अगले ही पल दोनों के शारीर नीले पड़ गए जैसे कितने ही सर्पो का दंश लगा हो उनको
मोहिनी- ख़बरदार, जो किसी ने भी कुछ उल्टा-सीधा करने की कोशिश की वर्ना मैं अपनी मर्यादा भूल जाउंगी
महराज चंद्रभान खुद चकित बोले- तुम कोई साधारण कन्या नहीं हो अपना परिचय दो पुत्री
मोहिनी- मैं मोहिनी हु, नागराज केवट की पुत्री
मोहिनी एक नागकन्या है दरबार में सबकी आँखे हैरत से फटी रह गयी हर कोई चकित एक नागकन्या और एक मनुष्य का प्रेम और नागकन्या कोई साधारण भी नहीं स्वयं नागराज की पुत्री जिसे वरदान प्राप्त जो आखेट करती है महादेव के गले में
महाराज ने अपने हाथ जोड़े और कहा- ये पूजनीय हमसे अपमान हुआ माफ़ कीजिये
मोहिनी- आप पिता सामान है महाराज आपके राज में हमको संरक्षण मिला
संगीता ने भी हाथ जोड़े
अब बोले पुरोहित जी- परन्तु ये कैसे संभव् है किवंदिती कैसे सच हो सकती है और अगर सच है भी तो एक नागकन्या और मनुष्य के बीच कैसा प्रेम ये तो नियामो के विपरीत है
मोहिनी- प्रेम कहा किसी नियम में बंधा है
महाराज- परन्तु पुत्री ये उचित भी तो नहीं इसके परिणाम को सोचा है तुमने
मोहिनी- महाराज मैंने वचन दिया है मोहन को और सबसे बड़ी बात की प्रेम किया है मैंने और मेरा प्रेम सच्चा है तो हर परीक्षा को उतीर्ण कर ही लेगा तो घबराना क्या और सोचना क्या
महाराज जान गए थे की मामला अबबेहद उलझा हुआ है मोहिनी को साधारण नहीं और अगर उसका सच में ही प्रेम है तो फिर बात गम्बीर है
और तभी जैसे की वहा पर तूफ़ान आ गया ऐसा लगा की जैसे आसमान ही टूट कर गिर गया हो ऐसी भयंकर गर्जना की लगे कान के परदे ही फट जाएगी जैसे आंधी ने धक लिया हो राजदरबार को और जब सबकी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो जो द्रश्य उन्हें दिखा आँखों ने विश्वास करने से मना कर दिया
पर मोहन मुस्कुराया वो जानता था की आगे क्या होना है सामने नरसिंह खड़ा था दरबार में जितने भी लोग थे आँखे फाड़े देखे उसी को कुछ कोतुहल से कुछ डर से पर ऐसा शेर पहले देखा भी तो नहीं किसी ने
|