Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:38 AM,
#27
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
उधर जयसिंह को अब पूरा विश्वास हो चुका था की उनकी हरमजदगी का भान मनिका को नहीं हुआ था और वे आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे. वे लोग ब्रेक-फ़ास्ट करने के बाद कैब से कॉलेज पहुँचे, वहाँ काफी भीड़-भाड़ थी, जयसिंह ने गेट पर शीशा नीचे कर एम.बी.ए. इंटरव्यूज़ का वेन्यु (जगह) पता किया था और अन्दर पहुँच ड्राईवर को पार्किंग में वेट करने का बोल मनिका के साथ मेन-बिल्डिंग की तरफ चल दिए.

बिल्डिंग में बने कॉलेज के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक से उन्होंने इंटरव्यू के लिए निर्धारित ऑफिस का पता किया और उनके बताए रास्ते के मुताबिक मैनेजमेंट ब्लॉक में जा पहुँचे, वहाँ बहुत से लड़के-लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ आए हुए अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे. जयसिंह और मनिका भी एक तरफ बने वेटिंग एरिया में बैठ गए और मनिका का नाम बुलाए जाने की प्रतीक्षा करने लगे.

'पापा आई एम् सो नर्वस..!' मनिका ने जयसिंह से अपना भय व्यक्त किया.

'अरे व्हाए? तुम्हें तो सब आता है. ऐसा मत सोचो बिल्कुल भी, तुम्हारा सेलेक्शन पक्का होगा, मुझे पूरा यकीन है अपनी...गर्लफ्रेंड पर...’ जयसिंह ने मुस्कुरा कर उसकी हिम्मत बँधाई. वे मनिका को अपनी बेटी कहते-कहते रुक गए थे.

'ओह पापा. हाहाहा...आप भी ना!' मनिका ने भी उनकी बात पर हँसते हुए उलाहना दिया और बोली 'आई क्नॉ की मेरी प्रिपरेशन अच्छी है बट कल से माइंड थोड़ा डाइवर्ट (ध्यान-भंग) हो रखा है...’ यह कहते हुए मनिका के मन में एक बार फिर जयसिंह के लिंग की आकृतियां बनने लगीं और उसकी नजर जयसिंह की पैंट की ज़िप पर चली गईं थी.

'कोई बात नहीं तुम टेंशन मत लो, जो होगा अच्छे के लिए ही होगा.' जयसिंह ने पास बैठी मनिका के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा. मनिका भी थोड़ा मुस्का दी पर कुछ नहीं बोली 'पापा को क्या पता की मैंने इनका डिक देख लिया...गॉड फिर से वही गंदे ख्याल...’ उसके मन में उठा और वह भीतर ही भीतर शर्मसार हो गई. अब जयसिंह का हाथ उसके कँधे पर उसे एक तपिश सी देता हुआ महसूस हो रहा था.

कुछ वक्त बाद इंटरव्यू के लिए मनिका का नंबर भी आ गया. जयसिंह ने उसे मुस्का कर गुड-लक कहा और मनिका धड़कते दिल से अपना पहला इंटरव्यू देने के लिए चल दी. जयसिंह वहीं बैठे उसका इंतज़ार करने लगे.

'ह्म्म्म माइंड तो डाइवर्ट हुआ हरामज़ादी का चलो...बस अब माइंड डाइवर्ट ही रहना चाहिए...हाहाहा... क्या गांड है यार...' उन्होंने इंटरव्यू रूम में घुसती हुई मनिका को देखते हुए सोचा था.

मनिका का इंटरव्यू करीब २५ मिनट तक चला. अंदर पहुँच कर उसने देखा कि इंटरव्यू के लिए तीन जनों का पैनल बैठा था. उसके अभिवादन करने के बाद उसे बैठने को कहा गया और फिर एक-एक कर के तीनों इंटरव्यूअर उससे सवाल करने लगे. पहले सवाल पर मनिका एक क्षण के लिए तो सकपका गई थी लेकिन फिर उसके दीमाग ने धीरे-धीरे एक बार फिर सही दिशा में काम करना चालू कर दिया और जवाब उसकी जुबान पर आने लगे. हर सवाल के बाद उसका आत्मविश्वास लौटता जा रहा था.

जब मनिका इंटरव्यू देकर बाहर आई तो जयसिंह को जस के तस बैठे हुए पाया, उससे नज़र मिलते ही जयसिंह उठ खड़े हुए और उसकी तरफ आने लगे, उनके चेहरे पर एक सवालिया भाव था.

'कैसा हुआ?' जयसिंह ने करीब आ कर पूछा.

'अच्छा हुआ पापा...मतलब आई थिंक सो...पहले मैं थोड़ा नर्वस थी बट फिर आई गॉट कॉन्फिडेंट...' मनिका हल्की सी मुस्काई थी 'मे-बी मेरा हो जाएगा...ओह पापा मुझे फिर से डर लग रहा है अब..' उसने आगे कहा.

'कितनी देर में आएगा रिजल्ट?' जयसिंह ने पूछा.

'बस १०-१५ मिनट्स में ही, आई गैस अपना नंबर सबसे लास्ट में ही आया है...'

'ह्म्म्म...कोई बात नहीं घबराओ मत...' जयसिंह ने उसे फिर से ढांढस बँधाया.

कुछ देर बाद ही मनिका के कहे मुताबिक रिजल्ट डिक्लेअर हो गया. ऑफिस से एक इंटरव्यूअर बाहर आया था और उसने बाहर लगे सॉफ़्ट-बोर्ड पर एक कागज पिन कर दिया था जिसपर सेलेक्ट हुए लोगों के नाम थे. काँपते कदमों से मनिका अपना रिजल्ट देखने के लिए बढ़ी, बोर्ड के चारों तरफ जमघट लग गया था. कुछ पल बाद मनिका को कागज सही से दिखा, पर नर्वसनेस में एक पल के लिए उसे कुछ नज़र नहीं आया, फिर उसने अपने-आप को सँभालते हुए गौर से देखा तो पाया कि ऊपर से चौथे नंबर पर लिखा था 'मनिका सिंह'.

मनिका ख़ुशी से झूम उठी.

'पापाआआआ...आई गॉट सेलेक्टेड..!' उसने पीछे मुड़ते हुए जयसिंह को आवाज़ दी और खिलखिलाते हुए उनकी तरफ बढ़ी.

जयसिंह ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी बाँहें खोल दीं व मनिका आ कर उनके आगोश में समा गई, उन्होंने मनिका को अपनी छाती पर भींच लिया था. मनिका का वक्ष अब उनकी छाती से लगा हुआ था और उनके हाथ उसकी पीठ और कमर पर कसे हुए थे. मनिका के जवान होने के बाद ये पहली बार थी जब उन्होंने उसे इस तरह गले लगाया था. उनके बदन में जैसै करन्ट दौड़ने लगा और उन्होंने अपनी बाँहें और ज्यादा कस लीं थी.

उधर कुछ एक क्षण के उन्माद के बाद मनिका को भी एक पुरुष के जिस्म की संरचना और ताकत का एहसास होने लगा, जयसिंह की छाती उसके स्तनों का मर्दन कर रही थी, उसका बदन उनकी बाजूओं में इस तरह जकड़ा हुआ था कि वह चाहकर भी उनसे अलग नहीं हो पा रही थी.

'पापा...!' जयसिंह की कसती चली जा रही पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए मनिका ने कहा.

'मैंने कहा था ना तुम सेलेक्ट हो जाओगी...' जयसिंह भी मनिका का प्रतिरोध भाँप गए थे और उन्होंने उसे अपनी गिरफ्त से थोड़ा आजाद करते हुए कहा.

'हाँ पापा...ओह गॉड. आई एम् सो हैप्पी!' मनिका ने कहा.

रिजल्ट वाले नोटिस में सेलेक्ट हुए कैंडिडेट्स को एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में जा कर एडमिशन फॉर्म भरने के निर्देश दिए गए थे, सो जयसिंह और मनिका एक बार फिर से वहाँ गए और कॉलेज का फॉर्म और प्रॉस्पेक्टस ख़रीदा. वहाँ एक और खुशखबरी जयसिंह का इंतज़ार कर रही थी, कॉलेज की फीस अगले तीन दिनों में जमा कराने पर ही पहली कट-ऑफ लिस्ट में सेलेक्ट हुए लोगों का एडमिशन कन्फर्म हो सकता था वरना फिर कॉलेज से दूसरी लिस्ट जारी की जाती और क्रमवार अगले कैंडिडेट्स को मौका दिया जाता. जयसिंह ने बाहर आते ही पहला फोन अपने घर पर किया था और मनिका के सेलेक्ट हो जाने की खबर सुनाई थी और कहा था कि उनकी वापसी में एक-दो दिन और लगने वाले थे, उनकी बीवी मधु ने इस पर कोई खासी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दी थी (क्योंकि अभी भी अपनी बेटी के बर्ताव व उससे हुई अनबन की गाँठ उसके मन में थी). उधर एडमिशन हो जाने की ख़ुशी के मारे मनिका भी अपने पिता के लिंग-दर्शन को भूल गई थी और वहाँ एक-दो दिन और बिताने के ख्याल ने उसे और ज्यादा उत्साहित कर दिया था.

जयसिंह ने मनिका से कहा कि वे अगले दिन आ कर उसके एडमिशन की फॉर्मलिटीज़ पूरी कर जाएँगे, मनिका को भला क्या एतराज़ हो सकता था, और वे दोनों वापिस अपने हॉटेल लौट आए.

अपने कमरे में आ कर मनिका ने एडमिशन-फॉर्म निकाला और उसे भरने बैठ गई. दोपहर के खाने का वक़्त भी हो चुका था और जयसिंह भी उसके पास ही बैठे मेन्यू देख रहे थे. आज जयसिंह ने अपनी मर्जी से ही खाना ऑर्डर कर दिया था क्यूँकि मनिका का पूरा ध्यान अपने फॉर्म में लगा हुआ था. जयसिंह के ऑर्डर कर के हटने की कुछ देर बाद मनिका ने भी फॉर्म पूरा भर लिया,

'ऑल डन पापा...' मनिका ने फॉर्म में लिखी सभी डिटेल्स को एक बार फिर चेक करते हुए कहा.

'हम्म चलो एक काम तो पूरा हुआ...अब तो खुश हो तुम?' जयसिंह ने पास बैठी मनिका को अपने पास खीँचते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका भी बिना प्रतिरोध के उनसे सटते हुए बोली.

'और बताओ फिर...दिल्ली भी देख ली, शॉपिंग भी हो गई और एडमिशन भी हो गया अब क्या करने का इरादा है?' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए सवाल किया.

'हाहाहाहा...बस पापा इतना बहुत है...अब आप जल्दी-जल्दी डेल्ही आते रहना.' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाँ भई अब मेरी गर्लफ्रेंड यहाँ है तो आना ही पड़ेगा.' जयसिंह ने शरारत से कहा.

'हाहा…क्या बोलते रहते हो पापा.' मनिका बोली.

'वैसे कॉलेज में लड़के काफ़ी हैं...' जयसिंह की बात में कुछ अंदेशा था.

'तो..?' मनिका भी उनके कहने का मतलब समझ गई थी पर उसने अनजान बनते हुए पूछा.

'तो क्या? कल को कोई पसंद आ गया तुम्हें तो ये पुराना बॉयफ्रेंड थोड़े ही याद रहेगा...’ जयसिंह ने झूठी उदासी दिखाते हुए कहा.

'हेहेहे...पापा कुछ भी...' मनिका ने उनकी बात को मजाक में ही लिया था 'और वैसे भी मुझे कोई बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए...' उसने कहा.

'हाहाहा...' जयसिंह ने भी दाँत दिखा दिए 'वैसे क्यों नहीं चाहिए तुम्हें बॉयफ्रेंड?' उन्होंने पूछा.

'अरे भई नहीं चाहिए तो नहीं चाहिए...क्या करना है बॉयफ्रेंड-वोयफ़्रेंड का...' मनिका अपने पिता से ऐसी बातें करने में झिझक रही थी.

'वैसे बॉयफ्रेंड तो होना ही चाहिए जो ख्याल रखे तुम्हारा...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे.

'अच्छा? तो आप बना लो...हीही.' मनिका ने कहा और अपने ही मजाक पर हँसी.

'तो मुझे तो गर्लफ्रेंड बनानी होगी ना..?' जयसिंह मुस्काए.

'हाँ तो बना लो न जा के...' मनिका भी अब उनके कहे को मजाक समझ बोली.

'हाहाहा...हाँ तो इसीलिए तो तुम्हारा एडमिशन यहाँ करवाया है, कोई सुंदर सी सहेली बना कर मुझसे दोस्ती करवा देना...' जयसिंह ने हँसते हुए उसे आँख मारी.

'हाआआ...! पापा कितने ख़राब निकले आप...बड़े आए, बूढ़े हो गए हो और अरमान तो देखो. मम्मी से बोलूंगी ना तो गर्लफ्रेंड का भूत एक मिनट में उतार जाएगा...हाहाहा.' मनिका ने उन्हें झूठ-मूठ धमकाया.

'इतना भी बूढ़ा नहीं हूँ...तुम्हें क्या पता? बस अपनी मम्मी के नाम से डराती हो मुझे...’ जयसिंह भी पीछे नहीं हटे थे.

'रहने दो आप...हाहाहा...मेरी फ्रेंड आपसे कितनी छोटी होगी पता है..? कुछ तो शरम करो...’ मनिका ने उन्हें उलाहना दिया.

'तो क्या हुआ...होगी तो लड़की ही ना और हम भी तो मर्द हैं...' जयसिंह ने उसे चिढ़ाया.

'हाहाहा...जाओ-जाओ रहन दो आप...' मनिका ने उनका मखौल उड़ाते हुए कहा.

'हंस लो हंस लो तुम भी कोई बात नहीं...लेकिन एक असली मर्द लड़की का जितना ख्याल रख सकता है उतना तुम्हारे ये नए-नवेले बॉयफ्रेंड कभी नहीं रख सकते...' जयसिंह ने मनिका की हंसी का जवाब देते हुए कहा.

'हाहाहा पापा बस भई मान लिया...और मेरे कोई नए-नवेले बॉयफ्रेंड है भी नहीं...हीहीही.' मनिका फिर भी हंसती रही.

थोड़ी देर में उनका लंच आ गया और वे दोनों खाना खाने लगे. आज एक बार फिर वही वेटर खाना दे गया था जिसने मनिका को एक बार अर्ध-नंग आवस्था में देख लिया था. पर आज जयसिंह वहीँ बैठे थे सो उसने कोई उद्दंडता नहीं दिखाई थी. खाना खाने के बाद जयसिंह बेड पर लेट सुस्ताने लगे और मनिका टी.वी. देखने लगी.

मनिका ने टेलीविजन में एम्. टी.वी. चैनल चला रखा था जिसमे बॉलीवुड के लेटेस्ट अपडेट्स आ रहे थे. कुछ देर देखते रहने के बाद मनिका का ध्यान टी.वी पर से हट गया. वह जो प्रोग्राम देख रही थी उसमे बॉलीवुड के स्टार्स की लव-लाइफ इत्यादि के बारे में भी कयास लगाए गए थे और मनिका ने रियलाईज़ किया कि ज्यादातर हीरो अधेड़ उम्र के थे और उनका नाम नई आई हीरोइनों के साथ जोड़ा जा रहा था. यह बात तो उसे पहले से भी पता थी कि अक्सर ४०-४५ पार के हीरो अपने से आधी उम्र की हिरोइन्स को डेट करते हैं लेकिन उसने इस बारे में कभी गहराई से नहीं सोचा था, 'बॉलीवुड में ऐसा ही चलता है' यह एक सामान्य सोच थी. पर अब उसे एहसास हुआ कि इस बात से उसके पिता के उस दावे को भी पुष्टि मिल रही थी के मर्द लड़कियों का ख्याल रखने में माहिर होते हैं, 'क्या सच में..?’ मनिका ने मन ही मन सोचा.

'पापा जो कह रहे थे क्या सच में वैसा ही है? पहले कभी सोचा ही नहीं बट ये हिरोइन्स को हमेशा बूढ़े-बूढ़े हीरो ही क्यों पसंद आते हैं..? पैसा होता है क्यूंकि उनके पास...पर पैसा तो वो भी कमाती ही हैं और नए हीरो भी तो कम पैसेवाले नहीं होते...?’ मनिका सोचती जा रही थी 'और बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी तो कैसे रोज नई गर्लफ्रेंड घुमा रहे होते हैं...बात सिर्फ पैसे की तो नहीं हो सकती...ह्म्म्म. हाथ तो पापा का भी कितना खुल्ला है, खर्चा करते रुकते ही नहीं...पर उनकी तो कोई गर्लफ्रेंड नहीं है...' और फिर उसे अपनी सहेलियों की ठिठोली याद आई 'मणि तुम्हारे डैड तो हमारे बॉयफ्रेंडज़ से भी ज्यादा ख्याल रखते हैं तुम्हारा..!'

'ओह पागल लड़कियां हैं मेरी फ्रेंड्स भी.' मनिका सोचते हुए उठी व टी.वी. ऑफ कर और बिस्तर की तरफ चल दी. अब वह भी जा कर बेड के सिरहाने से टेक लगा कर बैठ गई और अपने सोते हुए पिता की तरफ देखा. 'पर पापा के साथ जब भी होती हूँ अक्सर लोग मुझे उनकी गर्लफ्रेंड ही मान बैठते हैं...बाड़मेर में तो फिर भी लोग हमें जानते हैं बट यहाँ तो कोई सोचता ही नहीं की हम बाप-बेटी हैं...कैसे लोग हैं पता नहीं..? पर हम दोनों भी तो एक-दूसरे से कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हो गए हैं...तो क्या हुआ..? सो लोग तो उल्टा सोचेंगे ही न! आज भी पापा ने कैसे मुझे हग (गले लगाना) किया था सब के सामने...उह...कितने पावरफुल हैं पापा...मेरी तो जान ही निकाल देते अगर कुछ देर और नहीं छोड़ा होता तो...’ मनिका जयसिंह की बलिष्ठ पकड़ को याद कर मचल उठी और उसके बदन में एक अजीब सी कशिश दौड़ गई थी. अब उसकी नज़र जयसिंह की पैंट के अगले हिस्से पर चली गई 'पापा का डि...ओह शिट फिर से नहीं...’ मनिका ने अपने आप को संभाला, लेकिन वह विचार जो उसके मन में कौंध गया था उससे छुटकारा पाना इतना आसान भी नहीं था.
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