Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:58 AM,
#64
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की पर वो नही माने, आखिर में हारकर जयसिंह ने उनकी बात मान ली, कुछ देर तक ऐसे ही उनमे बाटे चलती रही, फिर जयसिंह और मनिका
थोड़े फ्रेश होने चले गए

कुछ देर बाद सभी ने खाना खाया और कुछ देर बातचीत में व्यस्त रहे

जयसिंह - मधु, अब मुझे नींद आ रही है, वैसे भी सफर की थोड़ी थकान है, मुझे अपना कमरा बताओ 

मधु - देखिए, कमर तो ऊपर छत पर है, मैंने पहले से सारा इंतेज़ाम वह कर दिया था, आप वहां सो जाइये, मैं यहां पिताजी की देखभाल के लिए नर्स के साथ ही रुकी हूँ, मणि तो कनिका ओर हितेश वाले कमरे में एडजस्ट हो जाएगी, या फिर मैं उसे ऊपर भेज देती हूँ ,

जयसिंह और मनिका को तो अपने कानो पर भरोसा ही नही हो रहा था कि मधु खुद उन्हें एक कमरे में रुकने के लिए बोल रही थी, उन्हें तो लग रहा था कि आज की रात तो ऐसे ही सुखी ही कट जाएगी पर मधु की इस बात ने तो जैसे उनके प्यासे मन पर सावन की बौछार कर दी हो, मनिका की चुत में तो अभी से ही टिस उठने लगी थी,पर जयसिंह या मनिका अति उत्तेजित होकर काम बिगड़ना नही चाहते थे, इसलिए जयसिंह बड़े ही शांत तरीके से बोला

जयसिंह - जैसा तुम्हे ठीक लगे मधु, वैसे एक बार मणि से भी पूछ लो

मनिका - मुझे तो कोई प्रॉब्लम नही है मम्मी, आप जहाँ कहोगे मै वहां ही सो जाऊंगी

दोनों आज की रात के हसीन सपनो में गुम थे कि तभी अचानक जैसे उन पर गाज गिर पड़ी, उनके सपने चूर चूर हो गए, कनिका जो पास ही खड़ी थी वो उछलकर बोल पड़ी

"नही मम्मी, पापा के साथ मैं सोऊंगी, दीदी नीचे सो जाएंगी" कनिका चहकते हुए बोली

कनिका की बात सुनकर जैसे जयसिंह ओर मनिका के अरमानों पर पानी फिर गया, पर मनिका ऐसे शानदार मोके को हाथ से नही जाने देना चाहती थी, इसलिए वो कनिका को लगभग डांटते हुए बोली

" पर तु तो नीचे सोती है ना हितेश के पास, तो फिर आजुपर क्यों सोना चाहती है, नही तू यही नीचे सो जा, मैं ऊपर सोऊंगी, वैसे भी मुझे यहां नीचे घुटन सी हो रही है" मनिका ने कहा

"ठीक है मणि, तुम ऊपर सो जाना, कनिका नीचे सो जाएगी" मधु ने बीच बचाव करते हुए कहा

"नही मम्मी मुझे तो पापा के साथ ही सोना है, मैं नीचे नही सोऊंगी" कनिका अब अपनी जिद पर अड़ गयीं

"चुप चाप नीचे सोजा कनिका, वरना थप्पड़ मारूंगी" मनिका ने उसे डांटते हुए कहा

अब दोनों बहनें ऊपर सोने के लिए लड़ ज़िद करने लगी पर कोई हल निकलता नही दिख रहा था, मधु भी उनकी बकबक से परेशान हो रही थी, आखिर में जयसिंह उन दोनों को चुप कराता है बोला



"एक काम करो मणि , आज आज तुम कनिका को ही ऊपर सोने दो, घर चलकर मैं तुम्हे अपने पास सुलाऊंगा, कनिका को नही" जयसिंह मनिका की आंखों में झांकता हुआ बोला, मनिका जयसिंह का मतलब अच्छे से समझ गयी, उसकी आँखे भी हल्की नशीली हो गयी थी, उसने सोचा कि आने वाली हज़ारो रातो के लिए आज की एक एक रात कुर्बान भी करनी पड़े तो कोई गम नही, ये सोचकर उसने आखिर भारी मन से हामी भर दी

इधर कनिका तो खुश होकर दोबारा जयसिंह की बाहों में लिपट गयी, पर इस बार जयसिंह को कनिका के छोटे छोटे मुलायम मम्मे अपनी छाती में धंसते हुए महसूस होने लगे, इस तरह अनायास उन छोटे छोटे अमरूदों के अहसास से जयसिंह के लंड में हल्की सी हलचल होने लगी, उसे ये अहसास बहुत भा रहा था, उसे महसूस होने लगा था कि कनिका अब बच्ची नही रही, उसकी जवानी के बीज अब फूटने लगे हैं, जयसिंह मजे से कनिका से साजिप्त हुआ था, पर मनिका को कनिका का पापा से इस तरह चिपटना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था, वो तो कनिका से गुस्सा हो रही थी, क्योंकि उसकी वजह से आज उसकी हसीन रात काली होने वाली थी

"आज आज सोजा कनिका की बच्ची, घर पर तो मैं ही पापा के साथ सोऊंगी देखना" मनिका ने कनिका की तरफ जीभ निकालते हुए कहा


उनकी इस तरह की खटपट से बाकी लोग भी हस रहे थे,कुछ देर इसी तरह हँसी मजाक करने के बाद मधु ने सब को अपने कमरों में जाकर सोने के लिए कहा

सभी ने एक दूसरे से गुडनाइट कहा, मनिका ने आखिरी बार जयसिंह की तरफ हवस भारी नज़रो से देखा और फिर भारी सांसो से गुडनाइट कह कर अपने कमरे में सोने चली गयी

अब बस जयसिंह और कनिका ही बचे थे सो वो भी अब सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे, ऊपर जाकर जयसिंह ने कमरे का दरवाजा खोला और लाइट जला ली, कमरा दिखने में ठीक ठाक था पर ज्यादा बड़ा नही था, पर बीएड अच्छा खासा बड़ा था जिस पर 2 क्या 3 आदमी भी साथ सो सकते थे, जयसिंह और कनिका कमरे के अंदर आये और फिर जयसिंह ने दरवाज़ा बन्द कर लिया, 

कनिका तो अपने पापा के साथ सोने को लेकर बड़ी खुश थी, क्योंकि जाने अनजाने उसके पापा की वजह से उसे पानी निकलने का असीम सुख उस दिन मिला था जब वो अनायास ही अपने पापा की गोद मे बैठ गयी थी और जयसिंह का लंड अपनी बेटी की चुत का सामिप्य पाकर कड़ा हो गया था, कनिका को वो अहसास बहुत भाया था, और आज भी उसके खुराफाती दिमाग ने कुछ योजना पहले से ही तैयार कर रखी थी,



जयसिंह इन सब से बेखबर सीधा बेड पर आकर बैठ गया, पर तभी अचानक कनिका सीधा आकर जयसिंह की गोद मे बैठ गयी, जयसिंह तो इस अचानक हमले से बिल्कुल डर गया , उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या करे

"अरे कनिका..... बेटी..थोड़ा.....साइड में बैठो न, मेरी गोद मे क्यों बैठ गयी" जयसिंह लगभग हकलाते हुए बोला

"क्या पापा मैं इतनी भी भारी नही हूँ" कनिका खिलखिलाते हुए बोली

"बेटी पर....." जयसिंघ को अब कनिका के जिस्म से निकलती गर्मी महसूस होने लगी थी

"ठीक है पापा, अगर मैं आपको इतनी भारी लगती हु तो ये लो मैं खड़ी हो गई, अब खुश" कनिका कहते हुए जयसिंह की गोद से खड़ी हो गयी

"बेटी वो बात नही, जरासल लम्बे सफर की थकान की वजह से बिल रहा हूँ वरना तुम बोलो तो मै तो तुम्हे हमेशा गोद में लेकर घूमता रहूं" जयसिंह ने कहा

"सच पापा, कहीं फिर मन मत कर देना गॉड में चढ़ाने के लिए" कनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कान आ गयी थी


"अरे नही नही, तुम देखना मैं तुम्हे कभी मन नही करूँगा" जयसिंह बोला

"चलो ठीक है पापा वो भी देख लेंगे, पर फिलहाल तो हम सोते है, वैसे ये बेड कितना बड़ा है ना पापा, लगता है किसी राजा महाराजा का हो" कनिका ने खुश होते हुए कहा

" हां बेटी, ये पुराने ज़माने के बेड है ना , इसलिए इतना बड़ा है" जयसिंह बोला

"पर पापा बेड पर कम्बल तो एक ही है" कनिका ने कम्बल की ओर इशारा करते हुए कहा

"अरे ये कैसे हो गया, मधु ने कहा था कि उसने कम्बल रख दी है ,फिर दूसरी कम्बल कहाँ गयी" जयसिंह सोच में पड़ गया

दरअसल मधु ने सोचा था कि जयसिंह अकेला ही ऊपर सोएगा, इसलिए उसमे एक ही कम्बल लेकर रखी थी

"मैं एक काम करता हूँ बेटी, मैं नीचे जाकर दूसरी कम्बल ले आता हूं" जयसिंह बोलते हुए दरवाज़े की तरफ जाने लगा

"रुको पापा, रहने दो, मुझे दूसरे कम्बल की कोई जरूरत नही, मैं आपकी कम्बल में ही एडजस्ट कर लुंगी" कनिका ने बेबाकी से कहा

"ककककक्याआ......." जयसिंह के कान गर्म हो गए कनिका की बात सुनकर,,, उसे तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नही हो रहा था


"हां पापा, हम एक ही कम्बल में सो जाएंगे, वैसे भी देखो न ये कम्बल कितनी बड़ी है" कनिका ने कम्बल खोलते हुए कहा

"ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बोला
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