RE: Mastram Story चमकता सितारा
थोड़ी देर बाद हमारी मंजिल आ गई थी।
मुंबई..
लोग इसे सपनों का शहर कहते हैं। कहते हैं.. यहाँ हर रोज़ किसी ना किसी के सपने पूरे होते ही हैं। शायद कभी यहाँ हमारा नंबर भी आ जाए।
अब मैं उन सब का पीए था.. तो सामान उठाना पड़ा। मेरा खुद का तो सामान था नहीं.. सो उनके सामान को बोगी से बाहर निकाला।
दो कुली आ गए और वो हमारा सामान टैक्सी तक ले जाने लगे।
बाकी सब कुली के साथ-साथ चलने लगी और मैं आस-पास की भीड़ में जैसे खो सा गया।
आज मेरा दिल बड़े जोर से धड़क रहा था.. घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था।
आँखें रुआंसी हुई जा रही थीं.. आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की..
आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा.. इतने बड़े शहर में..?
कैसी होगी मेरी माँ..? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को एफआईआर भी करवा ही दिया होगा।
ऐसे ही कितने ही सवाल मुझे घेरने लग गए थे।
तभी मैंने कोमल की आवाज़ सुनी- ओये जल्दी आ। यहीं रुकने का इरादा है क्या?
मैं फिर भागता हुआ टैक्सी तक पहुँचा और फिर हम चल दिए अपने फ्लैट की तरफ।
मुंबई शहर…
जैसा सुना था और जैसा फिल्मों में देखा था.. लगभग वैसा ही था ये शहर..
हर तरफ बस भागते हुए लोग। इस भागती भीड़ को देख ऐसा लगता था कि मानो अगर कोई एक इंसान रुक गया.. तो बाकी या तो उसके साथ ही गिर जायेंगे या फिर उसे रौंदते हुए आगे निकल जायेंगे।
जिंदगी में भी तो ऐसा ही होता है। हर इंसान किसी न किसी रेस का हिस्सा होता है और इस रेस में जीतने का बस एक ही मंत्र है.. अपनी आँखें मंजिल में टिकाओ और उसकी ओर भागते चले जाओ। फिर चाहे रास्ते में कोई भी आए रुको मत..
हाँ.. एक बात मुझे अच्छी लगी, यहाँ की रातें भी जीवन के रंगों से भरी होती हैं। मैं मुंबई के नजारों में ही खो सा गया था.. हल्की झपकी आ गई मुझे.. आँख खुली तो हम अपने अपार्टमेंट के बाहर थे। सोसाइटी थी.. चार धाम सोसाइटी.. और इलाका था बांद्रा पश्चिम, 7 फ्लोर का अपार्टमेंट था और हमारा फ्लैट 6 वें फ्लोर पर था।
आस-पास के घरों में पार्क की गई मंहगी गाड़ियों को देख कर मैं अंदाजा लगा सकता था कि यहाँ की मिट्टी की कीमत सोने से ज्यादा कैसे है।
मैंने कुछ सामान उठाया और बाकी ट्राली बैग को सब अपने हाथों में ले फ्लैट पर आ गए।
वहाँ लगभग सारी सुख-सुविधाएँ पहले से ही थीं। सब अपना-अपना सामान रखने लग गईं। दो बेडरूम का फ्लैट था, एक कमरे में कोमल और दूसरे में ललिता और पायल ने अपना सामान रख दिया। जब घर का काम पूरा हुआ तो सब हॉल में लगे सोफे पर बैठ गए।
ललिता ने मेरी ओर देखते हुए कहा- तुम यहीं सोफे पर सोओगे?
मैं- हाँ.. आज मैं यहीं सो जाऊँगा। कल मैं हॉल में गद्दे के लिए जगह बना लूँगा..
कोमल- ह्म्म्म.. यही ठीक रहेगा। मैं पहले कुछ खाने का आर्डर दे देती हूँ.. फिर हम विजय के लिए ऑनलाइन शॉपिंग कर लेंगे और हाँ.. घर के कुछ नियम कायदे भी बनाने होंगे।
सब ने उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाई.. और फिर खाने का आर्डर और मेरे लिए शॉपिंग कर ली गई। खाना खाते हुए हमने कुछ नियम बनाए.. जिसमें सुबह के ब्रेकफास्ट बनाने की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी गई।
रात में पायल और ललिता सोने चली गईं और कोमल अपने लैपटॉप पर अपना काम निबटाने लगी। मुझे भी अब नींद आ रही थी.. पर एक तो सोफे पर सोना और जगह भी नई.. सो किसी तरह रात काटी मैंने।
सुबह नाश्ते के बाद कोमल ने मुझे एक लिस्ट दी.. इस लिस्ट में कुछ नाम और पते लिखे थे।
कोमल- इस लिस्ट में जो नाम दिए गए हैं.. तुम्हें उनसे मिलना है और ये हैं फाइलों की कॉपी.. जिस नाम के सामने हम तीनों में से जिसका भी नाम लिखा है.. उसे ही देना वो फाइल..
फिर उसने मुझे कुछ पैसे दे दिए।
मैं अब सोसाइटी से बाहर आ चुका था। आज तक मैंने शायद ही कभी घर पर कोई काम किया था। सो थोड़ा अजीब सा लग रहा था.. पर इतना पता था कि इंसान अपने अनुभवों से ही सीखता है… सो मैं भी सीख ही जाऊँगा।
लिस्ट में कुल मिला कर बाईस लोगों के नाम थे और लगभग पता यहीं आस-पास का ही था।
पायल ने अपना एक फ़ोन मुझे दिया था.. जिसमें मैं गूगल मैप पर रास्ते ढूंढ सकता था।
पहला पता था ‘यशराज फिल्म्स’ का। अँधेरी पश्चिम का पता था और वहाँ मुझे तीनों की फाइल देनी थीं, मैंने टैक्सी ली और वहाँ चला गया।
पहली बार मैं फ़िल्मी दुनिया के लोगों से मिलने वाला था, मेरे अन्दर अजीब सा उत्साह था। ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी फेवरेट हीरोइन ने मुझे डेट पर बुलाया हो।
मैं अब यशराज स्टूडियो के ऑफिस में पहुँच चुका था, बड़ा सा नारंगी दरवाजा और एक बड़ी सी बिल्डिंग.. ठीक वैसा ही जैसा कि मैंने सोचा था।
मैं दरवाज़े के पास पहुँचा, गेट कीपर से कहा- भैया जी मुझे चेतन सर से मिलना है और ये फाइलें देनी हैं।
गेट कीपर ने कहा- आज एक फिल्म की ऑडिशन हो रही है.. बाद में आना.. आज बस ऑडिशन देने आए लोगों को ही अन्दर आने की इज़ाज़त है।
मैं अब सोच में पड़ गया.. काम की शुरुआत ही नाकामयाबी से हुई.. तब तो हो चुका.. मुझसे काम और अगर आज मैंने फाइल सभी को नहीं दी तो पता नहीं.. कोमल मुझे रहने भी दे वहाँ या नहीं।
मुझे किसी भी तरह फाइल अन्दर पहुँचानी थी तो फिर से मैं गेट के पास गया और कहा- भैया.. मुझे भी ऑडिशन देना है, फॉर्म कहाँ भरूं?
गेट कीपर-फॉर्म भरा जा चुका है बस अब ऑडिशन शुरू होने ही वाला है।
मैंने जेब से दो हज़ार निकाले और उसकी हाथों में पकड़ाता हुआ बोला- कैसे भी फॉर्म भरवा दो। अब आप लोग ही हमारी मदद नहीं करेंगे तो और कौन करेगा।
वो थोड़ी देर सोच कर अन्दर गया और लगभग पांच मिनट बाद आया- यह लो फॉर्म जल्दी से भर कर दे दो।
अपनी कोई तस्वीर तो थी नहीं.. तो मैंने तस्वीर वाली जगह पर गोंद से कोमलन बनाया.. जिससे सबको लगे कि मैंने तस्वीर तो चिपकाई थी.. पर फॉर्म पहुँचाने वाले से ही खो गई और फॉर्म भर कर उसे मैंने मोड़ कर दे दिया।
गेट कीपर ने मुझसे एँट्री करवाई और अन्दर जाने को कहा। पहली जंग तो जीत चुका था मैं।
अब अन्दर जाकर उस चेतन नाम के आदमी को ढूँढना था। मुझे गेट पर एक लड़की खड़ी दिखाई दी। उसके पास यशराज की आईडी थी, मैं उसके पास गया- मैडम चेतन सर से मिलना था, वो कहाँ मिलेंगे?
उसने जवाब दिया- वो अन्दर ऑडिशन रूम में हैं.. और तुम यहाँ ऑडिशन देने आए हो न..? तो बाहर क्या कर रहे हो। अन्दर ऑडिशन शुरू हो चुका है।
अब मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, मैं भला ऑडिशन क्या दूँगा, मुझे तो एक्टिंग का ‘ए’ भी नहीं आता, आज तो बड़ी बेइज्जती होने वाली है मेरी। मन तो कर रहा था कि यहीं से भाग जाऊँ.. पर मैं अन्दर था और दरवाज़ा लॉक हो चुका था।
मन ही मन मैंने कहा- हे श्री श्री अमिताभ बच्चन जी.. आज मुझे एक्टिंग का आशीर्वाद दे दो, बस मेरी इज्जत रह जाए आज।
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