RE: Mastram Story चमकता सितारा
ऑडिशन रूम के बाहर बहुत से चेहरे थे। सब की आँखों में उम्मीद और कई आँखों में तो जैसे इतना कॉन्फिडेंस था कि यहाँ वहीं चुने जाने वाले हैं और एक तरफ मैं बेहद घबराया सा कि पता नहीं वो सब.. मेरे साथ क्या करेंगे। मैं पिछले चार दिनों से एक ही कपड़े में था.. सो वो भी अब गंदे दिखने लगे थे। मैं वाशरूम में गया और अपने काले पैंट में जहाँ-जहाँ गंदगी के कोमलन थे.. उन्हें पानी से साफ़ किया.. पर ये क्या.. पानी से भीग कर मेरी पैंट पर जो कोमलन आए थे.. उससे तो लोग कुछ और ही समझ बैठते।
खैर.. मैं अब बाहर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया। अन्दर से जो लोग बाहर आ रहे थे.. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि मानो वो सबके सब चुन लिए गए हों। तो फिर हमें क्यूँ बिठाया हुआ था उन्होंने.. जाने को कह देते हमें.. कम से कम मेरी जान तो छूटती।
एक तो कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था। सब एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे.. मानो ये कोई कुश्ती का अखाड़ा हो।
मेरी इससे और भी बेचैनी बढ़ रही थी। बैठे-बैठे शाम हो चुकी थी, अब आखिर में हम दो लोग बचे थे। अन्दर से हम दोनों को एक साथ ही बुला लिया गया। शायद उन्हें भी अब जाने की जल्दी थी। पहले उस दूसरे लड़के को बीच में बुलाया, स्टेज पर वो गया था और टाँगे मेरी कांप रही थीं।
वो लड़का- सर मैं आज तक की अपनी सबसे बेहतरीन एक्ट आपको दिखाना चाहता हूँ।
पैनल (जजों का पैनल जिसमे मशहूर फिल्म निर्देशक थे)- दिखाएँ आप।
जंग से लौटे हुए एक घायल सैनिक की उसकी माँ से बात वहाँ उसने दिखाई और हाँ उसके चेहरे के भाव बिल्कुल किसी ट्रेंड एक्टर की तरह ही थे।
‘माँ मैं लौट आया माँ… देख तेरे कालजे के टुकड़े का दुश्मनों की गोलियाँ भी कुछ न बिगाड़ पाईं।
उसका एक्ट ख़त्म हुआ और पैनल ने खड़े हो कर उसका अभिवादन किया और मुझे हंसी आ गई।
वैसे मैं अक्सर कॉमेडी शो देखा करता था.. जो वहाँ वो अपना एक्ट दिखा रहा था और मैं अपने मन ही मन इमेजिन करने लगा था कि वहाँ वो नहीं बल्कि मेरे पसंदीदा कॉमेडी कलाकार ये एक्ट दिखा रहा है।
तभी मेरी नज़र पैनल पर गई। उस कमरे में सबके सब मुझे घूरे जा रहें थे। पैनल में से एक ने मुझसे पूछा- आपको क्या हुआ जनाब? यह एक्ट देखकर हंसी आ रही थी।
मैं- मैं एक्टिंग के बारे में एक बात जानता हूँ.. यहाँ वही सबसे बेहतर है.. जो हर रंग में ढल जाए। कोई भी ये ना कह सके कि कोई एक ख़ास एक्ट ही सबसे बेहतरीन है.. बल्कि उसके हर एक्ट को देख यह महसूस हो कि ये इससे बेहतर कोई भी नहीं कर सकता है।
खैर.. मैंने बात को तो संभाल लिया। पर अब मुझे इतना तो पता था कि अब मैंने लाल कपड़े पहन कर खुद ही सांड को न्योता दे दिया है।
पैनल- जनाब आप आ जाएँ। आज हम सब आपसे एक्टिंग की बारीकी सीखना चाहते हैं।
मैं मन ही मन में- बेटा आज तो बिना वेसिलीन के ही अन्दर जाने वाला है।
मैं- जैसा आप कहें सर।
पैनल- एक्टिंग में सबसे मुश्किल होता है एक साथ कई भावनाओं को कुछ ही पलों में जी लेना। मैं तुम्हें कहूँगा ख़ुशी.. एक… दो… तीन और आप मुझे ख़ुशी के एक्सप्रेशन दिखाओगे। जैसे-जैसे मैं शब्द कहता जाऊँगा आपके चेहरे के भाव वैसे वैसे बदलने चाहिए।
(मन ही मन में)
‘और हंस ले बेटा.. यही पास में ही हंसी आनी थी तुझे.. अब भुगतना तो पड़ेगा ही। पर आज मैं एक कोशिश तो कर ही सकता हूँ न.. क्या होगा.. ज्यादा से ज्यादा.. मुझे गालियाँ देंगे और निकाल देंगे.. यही न। ठीक है.. पर अब मैं पीछे नहीं हटूंगा।’
मैं स्टेज पर आ चुका था। मेरी आँखें अब बंद थीं और बस अब मैं शब्द सुनने को तैयार था।
पैनल- रोमांस.. एक… दो… तीन…
मैं इस शब्द के साथ ही फ्लैशबैक में चला गया। जब मैं डॉली को अपनी बांहों में भर उसके साथ वॉल डांस किया करता था। मेरी आँखें बंद थीं और ऐसा लग रहा था.. मानो डॉली मेरी बांहों में हो और हमारा सबसे पसंदीदा गाना बज रहा हो
‘हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते.. तेरे बिना क्या वजूद मेरा।’
उसके हर कदम से मैं अपने कदम मिला रहा था और मेरी नज़र डॉली से हट ही नहीं रही थी। मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया।
डर.. एक.. दो.. तीन..
मैं अब अपने जीवन के उस वक़्त में पहुँच गया.. जब डॉली से मिले मुझे पंद्रह दिन बीत चुके थे और किसी रिश्तेदार से भी उसकी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। जब डॉली की कामवाली छत पर आई थी और मैं उसकी नज़रों से बचता हुआ नीचे डॉली के कमरे तक पहुँचा था। मैं.. डॉली को टिश्यू पेपर पर अपना नाम लिख कर दे चुका था और उम्मीद कर रहा था कि कामवाली के नीचे मुझे देखने से पहले डॉली दरवाज़ा खोल दे।
मस्ती.. एक.. दो.. तीन…
मैं अपने घर में था और हम सब परिवार वाले ‘झुम्मा.. चुम्मा.. दे दे..’ वाले गाने पर डांस कर रहे थे। हम सब बहुत ही अजीब-अजीब सी शक्लें बना रहे थे और हम सब बहुत खुश थे।
उदास.. एक.. दो.. तीन..
जब डॉली ने अपना फैसला मुझे बताया था कि वो अब किसी और के साथ शादी करेगी। मैं तो वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा था जैसे.. किसी ने जैसे एक ही पल में मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया हो..
गुस्सा.. एक.. दो.. तीन..
इस बार मैं उन पलों में पहुँच गया.. जब मैं पंद्रह दिनों बाद डॉली के कमरे में छुपते-छुपाते पहुँचा था। रो-रो कर उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं। उसे इतना मारा था कि अभी तक उसके चेहरे पर हाथों के कोमलन थे। उसके चेहरे को देख मैं इतने गुस्से में भर गया कि जोर से अपना हाथ जमीन पर दे मारा।
हंसी.. एक.. दो.. तीन..
इस बार उन पलों को जी रहा था.. जब डॉली मुझे गुदगुदी लगा रही थी और मैं हंसते-हंसते पागल हुआ जा रहा था। मैं हाथ जोड़ कर उससे मुझे छोड़ने की मिन्नत कर रहा था..
दर्द.. एक..
इस शब्द के साथ ही ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे जख्मों को कुरेद दिया हो। मैं अपने घुटनों पर आ गया।
दो..
अब मैं उस वक़्त में था.. जब मैं डॉली का व्हाट्सऐप मैसेज सुन रहा था।
तीन..
मेरी आँखें भर आईं, ऐसा लगा जैसे इस सीने में किसी ने गर्म खंजर उतार दिया हो।
‘मत जाओ मुझे छोड़ के… प्लीज मत जाओ..!’
कहता हुआ मैं ज़मीन पर गिर पड़ा। मेरे आंसुओं की बूंद.. अब सैलाब बन उमड़ पड़ी थी। मेरे सीने में दबा हर दर्द अब बाहर आ चुका था।
तभी तालियों और सीटियों की आवाज़ ने मुझे जैसे नींद से जगाया हो। उस पैनल के हर सदस्य की आँखें भरी हुई थीं।
तभी एक निर्देशक चल कर मेरे पास आए।
|