MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:52 PM,
#39
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
उसे हंसता देख कर सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. तभी छोटी माँ आ गयी. उनने मेरे घुटने की शिकाई की और बोली "आज तू नीचे ही सो जा. तुझे उपर चढ़ने उतरने मे तकलीफ़ होगी."

मैं बोला "नही छोटी माँ मैं अपने कमरे मे ही सोउंगा. वैसे भी मुझे अब नीचे नही उतरना है. खाना आप उपर ही भेज देना."

मेहुल बोला "चल तुझे उपर छोड़ देता हूँ, वरना तुझे उपर चढ़ने मे परेशानी होगी."

ये कहकर मेहुल मुझे मेरे कमरे मे ले आया और फिर उसने कमरे मे आने के बाद मेरे कपड़े बदल कर मुझे नाइट सूट पहना दिया. इसके बाद बाकी के लोग भी मेरे कमरे मे आ गये.

मेहुल बोला "तू अब आराम कर, मैं चलता हूँ. पापा बाहर जा रहे है. उनके जाने की तैयारी भी तो करना है."

कीर्ति बोली "आप जाएँगे कैसे. आपके दोस्त को तो आपने वापस भेज दिया है."

मेहुल बोला "मैं पुन्नू की बाइक ले जा रहा हूँ. अभी कुछ दिन तो इसकी बाइक चलाने से भी छुट्टी है. तब तक मैं उसकी टूट फुट भी सुधारवा लुगा."

छोटी माँ बोली "थोड़ी देर रुक जा. खाना खाकर जाना."

मेहुल बोला "नही आंटी. बहुत देर हो चुकी है और खाना मुझे पापा के साथ ही खाना है."

छोटी माँ बोली "ठीक है. पर दीदी और जीजा जी को पुन्नू के साथ हुई दुर्घटना के बारे मे कुछ मत बताना और उनको मेरा नमस्ते कहना."

मेहुल बोला "नही बताउन्गा आंटी. अब मैं चलता हूँ. बाइ."

ये कह कर मेहुल चला गया और छोटी माँ किचन मे खाना बनाने चली गयी. अब मेरे कमरे मे कीर्ति और अमि निमी थी.

मैने निमी से पूछा "तेरा होमवर्क पूरा हो गया है, जो आराम से यहाँ बैठी है."

निमी बोली "आप बस आराम करो. डॉक्टर ने ज़्यादा बोलने से मना किया है."

मैं बोला "डॉक्टर ने कब मना कर दिया मुझे बोलने से."

निमी बोली "डॉक्टर ने आराम करने को तो कहा होगा ना. आराम का मतलब ही होता है कि किसी से कोई बात नही करना."

मैं बोला "अपनी नौटंकी बाद कर और जाकर अपना होमवर्क पूरा कर."

निमी बोली "मैं तो यहाँ इसलिए बैठी हू ताकि देख सकूँ की कीर्ति दीदी और अमि दीदी आपका ठीक से ख़याल रख रही है या नही."

मैं बोला "तुम लोगो को मेरा ख़याल रखने के लिए यहाँ बैठे रहने की कोई ज़रूरत नही है. मुझे जब किसी भी चीज़ की ज़रूरत होगी, मैं तुम लोगो को बुला लुगा. अब तुम लोग जाओ और अपना अपना काम करो."

मेरी बात सुनकर निमी मूह बनाकर अमि और कीर्ति के साथ अपने कमरे मे चली गयी. उनके जाने के बाद मैं आज के हादसे के बारे मे सोचने लगा और मुझे कीर्ति का मुझसे लिपट कर रोना और मेरा मूह बंद कर मुझे अपनी कसम देना याद आने लगा. ये सब पल मेरे लिए ना भुलाए जाने वाले पल बन गये थे. मैं इन्हे याद कर के मुस्कुराने लगा. तभी कीर्ति आ गयी. कीर्ति ने मुझे इस तरह अपने आप मुस्कुराते देखा तो पूछने लगी.

कीर्ति बोली "क्या हुआ. किस बात को याद कर यू मुस्कुरा रहा है."

मैं बोला " कुछ नही, आज का तेरा नया रूप देख कर मुस्कुराहट आ गयी."

कीर्ति बोली "क्यों आज ऐसा क्या देख लिया तूने."

मैं बोला "मेरे लिए तो सभी कुछ नया था. तेरा बाइक चलना. मुझे बाइक मे बैठा कर लाना और बात बात पर अपनी कसम देना."

कीर्ति बोली "वो सब तो घबराहट मे हो रहा था. तेरी वैसी हालत मुझसे देखी नही जा रही थी और तू था कि बस अपनी अपनी कहे जा रहा था. इसलिए तुझसे अपनी बात मनवाने के लिए मुझे अपनी कसम देना पड़ गयी."

मैं बोला "और वो मेरे बिना मर जाने वाली बात."

कीर्ति बात को पलटते हुए बोली "तूने रिया को 7 बजे के बाद मेहुल के घर आने को बोला था. हो सकता है तेरी बाइक देख कर वो मेहुल के घर पहुच जाए. इसलिए तू कॉल करके उसे बता दे कि आज तू वहाँ नही आ रहा है."

मैं बोला "मेरा मूड नही है. तू ही उसे कॉल करके बोल दे."

मेरी बात मानकर कीर्ति ने रिया को कॉल लगाकर सारी बात बता दी, और उसे बता दिया कि अभी पुन्नू की हालत ऐसी नही है कि वो बाइक चला कर कहीं जा सके, इसलिए आज वो मेहुल के घर नही जा सकेगा मगर कल यदि उसकी तबीयत सही हो जाती है तो शायद वो दिन के टाइम मेहुल के घर आएगा. ये सब बता कर कीर्ति ने कॉल रख दिया.

मैने कहा "तूने ये क्यों कहा कि कल मैं दिन को मेहुल के घर जा सकता हूँ. तुझे तो मालूम है कि मैं अभी बाइक नही चला सकता."

कीर्ति बोली "तो इसमे कौन सी बड़ी बात है. कल तक तू इतना तो ठीक हो ही जाएगा कि चल सके."

मैं बोला "तो क्या मैं पैदल मेहुल के घर जाउन्गा."

कीर्ति बोली "क्यों क्या घर मे 2-2 फोर वीलर्स है वो कब काम मे आएगी. क्या उन से नही जा सकता."

मैं बोला "नही उन से नही जा सकता. यदि उन से गया तो पापा को आक्सिडेंट की सारी बात पता चल जाएगी और मैं नही चाहता कि उन्हे इस बारे मे कुछ पता चले."

कीर्ति बोली "देख कल तेरा मेहुल के घर जाना ज़रूरी है. तू या तो टेक्शी मे चला जा या फिर मैं मौसी की स्कूटी मे तुझे लेकर चल चलूगी."

मैने कहा "ठीक है, तुझे जो ठीक लगे तू कर. लेकिन अभी मुझे चाय की तलब लगी हुई है. अभी तू मुझे गरमा गरम चाय पिला दे."

ये सुनकर कीर्ति चाय लेने चली गयी और मैं फिर कीर्ति के ख़यालों मे खो गया. मैं नही जानता कि ये मेरे साथ क्यों हो रहा था पर अब मैं कीर्ति के सिवा किसी और के बारे मे सोच ही नही पा रहा था. मेरा दिल कर रहा था कि कीर्ति मेरे पास बैठी रहे और मैं उस से बात करता रहूं. कुछ देर बाद कीर्ति चाय लेकर आ गयी.

उसने मुझे चाय दी और मेरे पास बैठ गयी. मैने चाय पीते हुए उस से पूछा.

मैं बोला "तूने बताया नही कि तू मेरे बिना क्यों मर जाएगी."

कीर्ति बोली "तू भी कौन सी फालतू की बात लेकर बैठ गया. छोड़ ना इस बात को, कोई और बात करते है."

मैं बोला "नही मुझे तो यही बात करनी है. बता ना तूने ऐसा क्यों कहा था."

कीर्ति बोली "तो सुन, तू मुझे सबसे प्यारा है. मैं चाहे तुझसे लडू या नाराज़ रहूं फिर भी तेरे बिना रहने की मैं सोच भी नही सकती और तुझे कुछ हो गया तो मैं सच मे ही नही जी पाउन्गी."

मैं बोला "मुझे तो आज मालूम पड़ा कि तू मुझे कितना प्यार करती है. यदि ऐसा है तो तू मुझसे इतना लड़ती क्यों है."

कीर्ति बोली "लड़ना झगड़ना भी तो प्यार की ही एक निशानी है. अब तू आराम कर मैं जाती हूँ."

मैं बोला "बैठ ना. कहाँ जा रही है."

कीर्ति बोली "डॉक्टर. ने जो दवा लिखी है वो दवा लेने जा रही हूँ. जब तक मैं दवा लेकर आती हू तब तक तू आराम कर ले. फिर आकर तुझ से बात करूगी."

मैं बोला "अकेली मत जा. अमि निमी को भी अपने साथ ले जा."

कीर्ति बोली "ठीक है."

ये बोल कर कीर्ति चली गयी और मैं लेटे लेटे कीर्ति के बारे मे सोचने लगा. आज वो सच मे ही मुझे ना जाने क्यों बदली बदली सी लग रही थी. मैं उसके बारे मे ही सोचते सोचते ना जाने कब सो गया. ना जाने कितनी देर मैं सोता रहा. शायद ये दवाओ का ही असर था कि मैं इतनी गहरी नींद सोया था कि मुझे कुछ होश ही नही था. मेरी नींद खुली अमि के जगाने से.

अमि बोली "भैया उठो ना. खाना नही खाना क्या.?"

मैने कसमसाते हुए बिना आँख खोले ही कहा "सोने दे ना, क्यों परेशान कर रही है."

अमि बोली "भैया 10 बज गये है. सब आपके जागने का इंतजार कर रहे है."

उसकी बात सुनकर मैने आँख खोली और टाइम देखा तो सच मे 10 बज गये थे. सब मेरे कमरे मे ही थे.

मैने कहा "छोटी माँ आप लोग खाना खा लेते ना. मैं जब नींद से उठता तो खाना खा लेता."

छोटी माँ बोली "ये बात मुझे नही. अपनी बहनो को समझा. दोनो मे से कोई तैयार ही नही थी खाना खाने को, और उनका साथ ये कीर्ति भी दे रही थी. फिर भला मैं अकेले कैसे खाना खा लेती."

मैने कहा "ठीक है. अब तो सब खाना खा लो."

अमि बोली "नही भैया. आज हम सब यही खाना खाएगे."

मैने निमी की तरफ देखा और बोला "तू इतनी चुप क्यों है. कुछ बोलती क्यों नही."

निमी बोली "आप लोग तो बात ही कर रहे है. मुझे बहुत भूक लगी है. हम खाना कब खाएगे."

उसकी बात सुन कर सबको हँसी आ गयी और फिर कीर्ति ने सबको खाना लगा कर दिया और सबने खाना खाया. खाना खाने के बाद कीर्ति ने मुझे दवा दी और छोटी माँ ने मेरे घुटने की सिकाई की. 11 बजे छोटी माँ अमि निमी को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. कीर्ति भी अपने कमरे मे गयी और फिर नाइट सूट पहन कर वापस आ गयी.

मैने पूछा "तू कब आई थी दवा लेकर. मुझे जगाया क्यों नही."

कीर्ति बोली "मैं तो थोड़ी ही देर मे आ गयी थी मगर तू सो रहा था, तो सोचा कि तुझे सोने ही दूं."

मैने कहा "अब खड़ी ही रहेगी या फिर बैठेगी भी."

कीर्ति आकर बेड के दूसरी तरफ पैर फैला कर बैठ गयी मगर कुछ बोल नही रही थी.

मैने कहा "तू चुप क्यों है. कुछ बोलती क्यों नही."

कीर्ति बोली "आज पापा का फोन आया था. वो घर वापस बुला रहे है. परसो से मेरे स्कूल खुलने है इसलिए वो कल वापस आने को बोल रहे थे. "

मैं बोला "तो इसमे परेशन होने की क्या बात है. जब तेरी फिर छुट्टी पड़े तो तू फिर रहने आ जाना."

कीर्ति बोली "पर मैं तुझे ऐसी हालत मे छोड़ कर कैसे जा सकती हूँ."

मैं बोला "अरे मुझे क्या हुआ है. एक दो दिन मे तो मैं बिल्कुल ठीक हो जाउन्गा."

कीर्ति मेरे गले लग गयी और रोने लगी.

मैं बोला " क्या हुआ तुझे, रो क्यों रही है."

कीर्ति रोते हुए बोली "नही तू जब तक ठीक नही हो जाता, मैं तुझे छोड़ कर कही नही जाउन्गी."

मैं बोला "ठीक है बाबा मत जाना. मैं कल मौसा जी से बात कर लूँगा. अब रोना बंद कर."

मेरी बात सुनकर कीर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और कहने लगी "ये बात पहले नही कह सकते थे. क्या मुझे रुलाना ज़रूरी था."

मैं बोला "मुझे क्या पता था कि तू इतनी सी बात पर ही रोने लगेगी."

कीर्ति बोली "अच्छा अब ज़्यादा बात मत बना और चुप चाप सो जा."

मैं बोला "अभी तो मैं सोकर उठा हूँ अब मुझे नींद कहाँ आएगी."

कीर्ति बोली "तुम लेटो तो सही. मैं तुम्हे सुला दुगी."

कीर्ति की बात सुन कर मैं लेट गया. वो मेरे सिरहाने पर बैठ कर बड़े प्यार से मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फेरने लगी. उसके ऐसा करने से मुझे एक अजीब सी शांति का अनुभव होने लगा. मैं उस से कुछ कहने ही वाला था कि उसने अपनी उंगलिया मेरे होंठो पर रख कर मुझे चुप करा दिया. फिर अपने हाथों से मेरी आँखों को बंद कर, वो फिर से मेरे बालों मे उंगलिया फेरने लगी. उसकी कोमल उंगलियों के अहसास मे क़ैद होकर, पता ही नही चला कि मैं कब गहरी नींद की आगोश मे खो गया.

मैं गहरी नींद मे था तभी मुझे मेरे घुटनो पर सिकाई का अहसास हुआ और मैने आँख खोल कर देखा तो कीर्ति बड़े ही हल्के हाथो से मेरे घुटने की सिकाई कर रही थी. मैने फिर आँख बंद कर ली और चुप चाप लेता रहा. वो कब से सिकाई कर रही थी ये तो मुझे नींद मे होने की वजह से नही मालूम था, मगर उसने करीब 10 मिनिट ऑर मेरे घुटने की सिकाई की और फिर लाइट बंद कर वापस मेरे पास आकर बैठ गयी. कुछ देर मुझे कोई हलचल समझ मे नही आई फिर मुझे अपने माथे पर कीर्ति के नरम होंठो का अहसास हुआ. उसने मेरे माथे पर हल्का सा किस किया और मुझे धीरे से गुड नाइट बोला. फिर उसने मेरे सीने पर अपना सर रखा और अपनी एक बाँह से मुझे जाकड़ कर सो गयी.

अपने सीने पर उसका सर रखा होने के अहसास से, मुझे एक नये सुख का अहसास हुआ और मैं अपने आपको ना रोक सका. मैने अपनी आँख खोली और उसका चेहरा देखने लगा. उसके चेहरे की मासूमियत देख कर मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा. कीर्ति अभी सोई नही थी. जैसे ही उसे अपने सर पर मेरे हाथ फेरने का अहसास हुआ. उसने बिना आँख खोले ही कहा.

कीर्ति बोली "कब नींद खुली."

मैं बोला "अभी अभी."

उसने अपने हाथो को मेरी आँखो पर रख कर बंद किया और बोली "अब आँख मत खोलना और चुप चाप सो जाओ."

मैं बोला "अब नींद नही आ रही."

कीर्ति कुछ नही बोली. उसने अपने हाथो से मेरे मूह को बंद किया और फिर मेरे बालों मे उंगलियाँ फेरने लगी. मुझे दवाइयों का असर तो था ही और उपर से कीर्ति की जादुई उंगलियों के स्पर्श से मैं फिर गहरी नींद मे सो गया. सुबह देर तक मैं सोता रहा.

छोटी माँ के जगाने से मेरी नींद खुली. उन्हो ने मुझे जगाया और पूछा "अब तेरा दर्द कैसा है."

मैं बोला "अब तो काफ़ी कम है."

छोटी माँ बोली "अपने घुटने को मोड़ कर देख ज़रा."

मैने घुटने को मोड़ कर देखा मगर वो सिर्फ़ थोडा सा मुड़ा और फिर मुझे दर्द होने लगा.

छोटी माँ बोली "रहने दे. इसे ठीक होने मे अभी समय लगेगा. तू अभी फ्रेश होने जाएगा."

मैं बोला "हाँ."

ये सुनकर छोटी माँ ने मेरे कपड़े उतार दिए अब मैं सिर्फ़ शॉर्ट्स मे था. वो मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले गयी. फिर मैने उन्हे जाने को कहा तो उन्होने दरवाजा अंदर से बंद करने को मना किया और खुद दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया. छोटी माँ बहुत कम ही उपर आती थी मगर कल से उन्हे मेरी वजह से बार बार उपर आना पड़ रहा था.

मुझे घुटने के ना मुड़ने की वजह से थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी फिर भी मैं धीरे धीरे फ्रेश हो ही गया. फ्रेश होने के बाद मैने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा कीर्ति ने खोला. कीर्ति मुझे सहारा देकर बेड तक ले गयी और फिर उसने कपड़े पहन ने मे भी मेरी मदद की. तब तक छोटी माँ नाश्ता लेकर आ गयी.

मैने पुछा "अमि निमी स्कूल चली गयी."

छोटी माँ बोली "हाँ चली गयी मगर बड़ी मुश्किल से गयी है. आज तो निमी के साथ साथ अमि भी स्कूल नही जाना चाहती थी. फिर कीर्ति ने उनको समझा कर स्कूल भेजा है."

कीर्ति बोली "अब नाश्ता कर लो, तुम्हे नाश्ते के बाद दवा भी खाना है."

मैं चुप चाप नाश्ता करने लगा और छोटी माँ मेरे घुटने की सिकाई करने लगी.

छोटी माँ बोली "तेरे पापा आ गये है."

मैं बोला "आपने उन्हे मेरी तबीयत के बारे मे कुछ बताया तो नही."

छोटी माँ बोली "अभी तो नही बताया क्योंकि वह सुबह जल्दी ही ऑफीस निकल गये मगर शाम को तो बताना ही पड़ेगा."

मैं बोला "नही, उनको कुछ मत बताना. वैसे भी मैं 1-2 दिन मे ठीक हो जाउन्गा और उन्हे कुछ मालूम भी नही पड़ेगा."

छोटी माँ बोली "ठीक है नही बताउन्गी पर यदि मैं उनके सामने उपर आउगि तो उन्हे शक़ तो हो ही जाएगा कि मैं बार बार उपर क्यों जा रही हूँ."

मैं बोला "आपको उनके सामने उपर आने की ज़रूरत नही है. वैसे भी कीर्ति और अमि निमी तो है मेरा ख़याल रखने के लिए. आप बस मौसा जी से बोल कर कीर्ति को एक दो दिन के लिए ऑर रोक लीजिए."

छोटी माँ बोली "ठीक है मैं जीजा जी से बात कर लुगी और उनसे बोल दुगी कि कीर्ति कुछ दिन यही से स्कूल चली जाएगी."

मैं बोला "हाँ ये ठीक रहेगा. हो सके तो कमल से कहकर कीर्ति का बॅग यूनिफॉर्म और स्कूटी मॅंगा लीजिए."

छोटी माँ बोली "मैं बॅग और यूनिफॉर्म मॅंगा लेती हूँ. स्कूटी तो ये मेरी भी ले जा सकती है."

मैं बोला "ठीक है. तो आप मौसा जी से अभी बात कर लीजिए पर उन्हे भी मेरे आक्सिडेंट की बात मत बताना, नही तो उनसे बात पापा तक पहुच जाएगी."

छोटी माँ बोली "ठीक है नही बताउन्गी. अब मैं नीचे जाती हूँ. मुझे बहुत काम है."

ये कह कर छोटी माँ नीचे चली गयी और नाश्ते के बाद कीर्ति ने मुझे दवा खिलाई और फिर अपने कमरे मे चली गयी. कुछ देर बाद वो तैयार होकर आई. वो ब्लू टी-शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहने थी.

मैने कहा तुझे इस जीन्स और टी-शर्ट के अलावा कोई और ड्रेस नही मिलती पहन ने के लिए."

कीर्ति बोली "मुझे इसके अलावा कोई और ड्रेस पसंद नही आती. मैं इसी मे अपने आपको कंफर्ट महसूस करती हूँ."

मैं बोला "ठीक है जो तुझे अच्छा लगे तू पहन, पर तू इतना बन ठन के कहाँ जा रही है."

कीर्ति बोली "मैं नही हम जा रहे है. तू भूल गया कि हमें आज मेहुल के घर जाना है."

मैं बोला "हाँ यार मैं तो भूल ही गया था, मगर अभी तो 9:30 ही बजा है. हम इतनी जल्दी जाकर क्या करेंगे."

कीर्ति बोली "जल्दी नही हम आराम से चलेगे. मैं तो पहले से इसलिए तैयार हो गयी हूँ, ताकि बाद मे तैयार होने मे समय बर्बाद ना हो, और हम लोग अमि निमी के आने से पहले निकल चलें."

मैं बोला "अमि निमी के आने से पहले निकलने की कोई खास वजह है."

कीर्ति बोली "वजह तो खास ही है. क्योंकि दोनो बड़ी मुश्किल से स्कूल गयी है और यदि वो आ गयी तो हो सकता है कि तुझे घर से निकलने ही ना दे, इसलिए हमें उनके आने से पहले ही निकलना होगा."

अब मैने कुछ नही बोला और चुप चाप बेड पर लेट गया. कीर्ति भी मेरे पास ही बैठ गयी और रिया से मिलने के बारे मे पूछने लगी, मगर आज ना जाने क्यों मुझे कीर्ति का रिया को लेकर बात करना अच्छा नही लगा. या यूँ कह लो कि मैं रिया के बारे मे कोई बात ही करना नही चाहता था. मैं बेमन से कीर्ति की बातों का जबाब देता रहा पर सच तो ये था कि अब मुझे रिया मे कोई खास रूचि नही रह गयी थी. ये शायद कीर्ति के साथ का ही असर था, जिसने मेरे दिल से रिया का साथ पाने का ख़याल निकाल दिया था पर कीर्ति को शायद इस बात का अहसास नही था. तभी तो वह रिया की बातें हंस हंस कर किए जा रही थी. मगर जब मुझसे नही रहा गया तो मैं खीजते हुए बोला.

मैं बोला "तुझे रिया के सिवा कुछ दिखाई नही देता. यदि उसे इतनी ही पड़ी थी तो वो खुद मुझसे मिलने क्यों नही आ गयी. मुझे रिया के बारे मे कोई बात नही करनी."

मेरा अचानक से ये बदला हुआ रूप देख कर कीर्ति कुछ देर के लिए भौकक्की रह गयी मगर फिर हंसते हुए बोली.

कीर्ति बोली "मैं तो तेरा मूड फ्रेश करने के लिए रिया की बात कर रही थी. अगर तुझे अच्छा नही लगता तो नही करूगी."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. रिया की अपनी लाइफ है और मेरी अपनी लाइफ है. मैं नही चाहता कि हम इस बारे मे कोई ज़्यादा बात करे. वो अपनी लाइफ मे खुश रहे और हम अपनी लाइफ मे खुश रहे."

कीर्ति बोली "ओके यार, अब ऐसी कोई बात नही करूगी पर तू अपना मूड मत खराब कर."

इसके बाद हम मेहुल के घर जाने की बात करने लगे. इसमे काफ़ी सारा समय बीत गया और फिर 11 बजे छोटी माँ खाना लेकर आई. फिर मैने और कीर्ति ने थोड़ा बहुत खाना खाया और छोटी माँ ने मेरे घुटने की सिकाई की और फिर मैने उन से मेहुल के घर जाने की बात की तो उन ने मना नही किया. कीर्ति ने मेहुल के घर चलने की बात पूछी तो मैने कहा चलो. फिर वो और छोटी माँ मुझे सहारा देकर नीचे ले आई. छोटी माँ ने पूछा तुझसे चलते तो बन रहा है ना. तो मैने कहा हाँ, अब मुझसे थोड़ा बहुत चलते बन रहा है. उन्हो ने कहा ठीक है ज़रा तू चल कर बता. मैं धीरे धीरे चल कर स्कूटी तक पहुचा. कीर्ति ने मुझे स्कूटी पर बिठाया और फिर आराम आराम से स्कूटी चलाने लगी. करीब आधा घंटे बाद हम मेहुल के घर पहुचे. कीर्ति ने मुझे स्कूटी से सहारा देकर उतारा और फिर मेहुल के घर की डोरबेल बजाई.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 12:52 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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