MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:01 PM,
#47
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
प्यार तो मैं भी कीर्ति को बहुत करता था. मगर उस नज़र से नही. जिस नज़र से वो मुझे प्यार कर रही थी. कीर्ति की समझदारी का लोहा, मेरे साथ साथ सभी लोग मानते थे. लेकिन आज उसकी इस नासमझी को देख कर, मैं अपनी सोचने समझने की ताक़त खो चुका था. मेरे अंदर ना तो उसकी बात मानने की ताक़त थी, और ना ही मेरे अंदर उसकी बात को काट कर उसका दिल दुखने की ताक़त थी. मैं अपने आपको बहुत बेबस महसूस कर रहा था.

कीर्ति मेरी बाएँ (लेफ्ट) तरफ बैठी थी. उसने मुझे यूँ सोच मे खोया देख ना जाने क्या समझा कि, अपनी दोनो बाहें मेरे गले मे डाल दी और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया. उसके चेहरे पर इक अजीब सी खुशी नज़र आ रही थी. वो कुछ खोई खोई सी लगी. उसे इस तरह देख कर मैं अनमने मन से बोला.

मैं बोला "मैं ये सब नही कर सकता. मैं तुझे प्यार करता हूँ मगर उस नज़र से नही, जिस नज़र से तू मुझे प्यार करती है."

मेरा इतना कहना ही था कि कीर्ति भड़क कर उठी और घर चलने की ज़िद करने लगी. मैं भी कुछ नही बोला. मैं चुप चाप उठा और अपनी बाइक उठाने लगा. मेरे बाइक चालू करते ही वो बाइक पर बैठी और फिर हम घर के लिए निकल पड़े. बाइक पर कीर्ति मुझसे बहुत दूर हट के बैठी थी और कुछ नही बोल रही थी. बस आँसू बहाए जा रही थी.

मैं बोला "देख मेरी परेसानी समझ. जो तू बोल रही है, वो ग़लत है. हम दोनो एक दूसरे के बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड नही बन सकते. तू मेरी बात को समझती क्यों नही."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ नही समझना. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.

मैं बोला "तू ऐसा रोते रहेगी तो तेरी तबीयत खराब हो जाएगी. प्लीज़ रोना बंद कर दे."

कीर्ति बोली "मैं जियुं या मरूं, तुझे मेरी चिंता करने की ज़रूरत नही है. मुझे इस दुनिया मे प्यार करने वाला कोई नही है. मेरी किस्मत मे तो रोना ही लिखा है."

मैं बोला "ऐसा क्यों कहती है. तू नही जानती मैं तुझे कितना प्यार करता हूँ. अब मैं तुझे कैसे समझाऊ."

कीर्ति बोली "मुझे नही चाहिए तेरा प्यार. अपना प्यार अपने पास ही रख.

ये बोल कर वो फिर से रोने लगी. मैं उसे समझाने की कोसिस कर रहा था. लेकिन फिर वो ना तो कुछ बोली और ना ही अपना रोना बंद किया. कुछ देर मैने उसका ध्यान भटकने के लिए बाइक चलाते चलाते ब्रेक लगाना शुरू किया. ताकि वो मुझसे टकराए और मुझे पकड़ कर बैठ जाए. मगर उस पर इस बात का भी कोई असर नही पड़ा. वो मुझसे दूर ही बैठी रही. बस झटकों से बचने के लिए उसने एक हाथ मेरी पीठ पर लगा दिया. ताकि ब्रेक लगने पर वो मुझसे ना टकराए.

बस ऐसे ही चलते चलते हम कुछ ही देर मे पार्किंग स्टॅंड पहुच गये. वहाँ से मैने कीर्ति की स्कूटी निकाली और फिर वो बिना कुछ बोले ही अपनी आँखों मे आँसू भरे चली गयी. उसके इस तरह बिना कुछ कहे रोते हुए जाने से मुझे उदासी ने घेर लिया. मुझे रोना आ रहा था पर मैं रो नही पा रहा था. मुझे यूँ लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ छिन गया हो. कुछ देर मैं वही बुत बना खड़ा रहा और फिर उदास मन से घर आ गया.

घर आया छोटी माँ सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी. मुझे यू उदास देखकर उन्होने पूछा.

छोटी माँ बोली "तेरा चेहरा इतना क्यों उतरा हुआ सा है. तेरी तबीयत तो ठीक है."

मैं बोला "कुछ नही. बस थोड़ा सा सर मे दर्द है."

ये कहते हुए मैं सोफे पर ही उनकी गोद मे सर रख कर लेट गया. उस समय मेरे सर मे दर्द तो नही था, मगर कीर्ति के बारे मे सोच सोच कर सच मे मेरा सर फटा जा रहा था. छोटी माँ मेरा सर दबाने लगी. लेकिन आज ना तो मुझे उनकी गोद मे सर रखने से सुकून मिल रहा था, और ना ही उनके सर दबाने से कुछ आराम मिल रहा था. जब मुझे लगा कि कहीं मैं रोने ना लगूँ तो मैं छोटी माँ की गोद से उठ गया.

मैने कहा मैं अपने कमरे मे जाकर आराम कर रहा हूँ. उन्होने खाना के लिए कहा तो मैने मना कर दिया. मैं अपने कमरे मे आकर लेट गया मगर आज मेरा कमरा ही मुझे काटने को दौड़ने लगा. मेरे कमरे की हर चीज़ मे मुझे कीर्ति ही नज़र आ रही थी. मुझे उधर भी चैन नही मिल रहा था.

मैं उठ कर अमि निमी के कमरे मे चला गया. दोनो कुछ खेल रही थी. मैने कहा मुझे मेरे कमरे मे नींद नही आ रही है. मैं तुम्हारे कमरे मे सो जाता हूँ. तुम लोग मेरे कमरे मे जाकर खेलो. मेरा उतरा हुआ चेहरा देख कर उन्हो ने कोई सवाल नही किया और चुप चाप उठ कर मेरे कमरे मे चली गयी. उनके कमरे मे आकर लेटने के बाद मुझे ना जाने कब नींद आ गयी. मुझे किसी ने जगाया भी नही. मैं शाम को 7 बजे तक सोता रहा.

शाम को जब मेरी नींद खुली तो मुझे कुछ राहत महसूस हुई. मगर कीर्ति की याद मुझे अभी भी घेरे रही. रात को मुझसे खाना भी नही खाया गया. अब मैं अपने ही कमरे मे लेटा 11 बजने और कीर्ति के फोन आने का इंतजार करने लगा.

जैसे जैसे रात होती जा रही थी. मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. फिर रात के 11 भी बज गये और 11:30 भी बज गये मगर कीर्ति का फोन नही आया. कीर्ति का फोन ना आने से मुझे एक अजीब सी उलझन महसूस हो रही थी. मैं उसे फोन करना तो चाहता था मगर फोन लगाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था.

लेकिन अब मुझसे कीर्ति से बात किए बिना नही रहा जा रहा था. कीर्ति के फोन आने का रास्ता देखते देखते 12 बज गये थे. अब मुझे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि कीर्ति फोन नही करेगी. आख़िर मे मैने उसे फोन करने का फ़ैसला किया और उसे कॉल लगा दिया. रिंग तो जा रही थी मगर कीर्ति ने फोन नही उठाया. मैं उसे एक के बाद एक फोन लगाए जा रहा था लेकिन उसने फोन नही उठाया. जब मैने देखा कि 1:30 बज गया है तो मैने फोन लगाना बंद कर दिया.

अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा आ रहा था क्योंकि ऐसा तो था नही कि वो इतनी जल्दी सो गयी हो. कम से कम एक बार तो मेरा फोन उठा सकती थी. अब कुछ भी हो जाए मैं उसे फोन नही लगाउन्गा. यही सब सोचते सोचते मुझे नींद नही आई और सुबह के 6 बज गये. तब तक मेरा गुस्सा भी शांत हो चुका था.

मैने सोचा अब कीर्ति भी उठ गयी होगी और शायद उसका गुस्सा भी कम हो गया हो. यही सोच कर मैने उसे फोन लगा दिया मगर अभी भी उसने फोन नही उठाया. मैने 8-10 बार कॉल किया लेकिन जब फोन नही उठा तो मैने सोचा कि अब उस से आमने सामने बात करना ही ठीक रहेगा.

ये सोच कर मैं उठ गया और फ्रेश होकर स्कूल के लिए तैयार हो गया. नाश्ता करने के बाद मैं स्कूल निकल गया. स्कूल पहुच कर मैने अपनी छुट्टी का आवेदन दिया और फिर लंच टाइम मे स्कूल से निकल आया.

लंच के बाद मैं कीर्ति के स्कूल चला गया और उसकी छुट्टी होने का इंतजार करने लगा. 1 बजे कीर्ति का स्कूल छूटा. मैं उसे देखता रहा मगर वो नज़र नही आई. तभी मेरी नज़र नितिका पर पड़ी. मैने नितिका को रोका.

मैं बोला "कीर्ति कहाँ है. क्या आज स्कूल नही आई."

नितिका बोली "वो तो कल से स्कूल नही आ रही."

मैं बोला "क्यों क्या हो गया उसको."

नितिका बोली "मुझे नही मालूम."

मैं बोला "क्यों.? क्या तुमने उसे फोन करके पता नही किया."

नितिका बोली "उसका परसों फोन आया था कि वो कल स्कूल नही आएगी और उसने मुझे घर फोन लगाने से भी मना किया था. इसलिए मैने पता नही किया."

मैं समझ गया कि नितिका की हमारे घूमने जाने के पहले ही कीर्ति से बात हुई थी. उसके बाद उसकी कीर्ति से कोई बात नही हुई. इसलिए मुझे अब उस से ऑर कोई बात करना बेकार लगा. मैने उस से कहा कि ठीक है मैं कीर्ति से फोन पर बात कर लूँगा. इतना कह कर मैं वापस घर आ गया.

घर आकर मैने कीर्ति को कॉल लगाया. कॉल लगाते ही मुझे ऐसा लगा, जैसे किसी ने मेरे दिल की धड़कने ही रोक दी हो. कीर्ति का मोबाइल बंद बता रहा था. अब मेरे पास बस एक ही काम बचा था. हर 5-10 मिनिट बाद कीर्ति को कॉल लगाना मगर हर बार मुझे निराशा ही हाथ लग रही थी.

मुझे मुंबई जाने की अपनी तैयारी भी पूरी करनी थी मगर मेरा किसी बात मे कोई मन ही नही लग रहा था. मेहुल ने भी एक दो बार मेरी चलने की तैयारी के बारे मे पूछा पर मैने उससे कह दिया कि मेरी चलने की सारी तैयारियाँ हो चुकी है. जबकि हक़ीकत मे तो मुझे कुछ भी कर पाने का टाइम ही नही मिल रहा था.

दो दिन से मेरा सारा दिल और दिमाग़ सिर्फ़ एक ही चीज़ मे लगा था. वो है कीर्ति से कैसे भी बात करना. मैं उसका मोबाइल बंद रहने के बाद भी उसे कॉल लगाए जा रहा था. यही सब करते करते पता ही नही चला कि, कब दिन बीत गया और कब रात हो गयी. लेकिन हर बार उसका मोबाइल बंद ही आ रहा था. रात के 10:30 बज चुके थे और उसका मोबाइल अभी भी बंद बता रहा था. इस से मैं पूरी तरह निराश हो गया था. अब जबकि पूरा दिन और आधी रात तक उसका मोबाइल चालू नही हुआ तो, फिर मुझे उसका मोबाइल चालू होने की कोई उम्मीद भी नही लग रही थी.

लेकिन मैं ग़लत था. मैने टाइम देखा रात के 11 बज चुके थे. मैने बेमन से कीर्ति को कॉल लगाया. कॉल लगते ही मुझे अपने कानो पर विस्वास ही नही हुआ क्योंकि उसका मोबाइल चालू था. मैं कॉल लगाता रहा पर उसने कॉल नही उठाया. मगर अब मैं जानता था कि ये 11 बजे के बाद सिर्फ़ मेरे लिए चालू हुआ है. ये देख कर मेरे चेहरे पर पूरे दो दिन बाद रौनक नज़र आई थी.

कल रात भर जागने की वजह से अब मुझे नींद भी आ रही थी फिर भी मैं खुद को सोने से रोके हुए उसे कॉल लगाए जा रहा था. रात को 1 बजे तक कॉल लगाने के बाद फिर ना जाने कब मेरी नींद लग गयी. फिर सुबह ठीक 6 बजे मेरी नींद खुली तो मैने फिर कीर्ति को कॉल लगाना शुरू कर दिया.

आज मुझे स्कूल तो जाना नही था, इसलिए मैं आराम से उठना चाहता था, मगर जब देखा कि 7 बजे कीर्ति का मोबाइल बंद हो गया तो, मैने सोचा कि हो ना हो ये स्कूल जाने की वजह से 7 बजे बंद किया है. ये सोच कर मैं उठ गया और फ्रेश होने चला गया.

तैयार होने के बाद मैने नाश्ता किया और मेहुल के घर चला गया. मेहुल से कल शाम को चलने की तैयारी की सारी बात करने के बाद 12:30 बजे मैं कीर्ति के स्कूल के लिए निकल गया. लेकिन वहाँ पहुच कर मुझे निराशा ही हाथ लगी. नितिका स्कूल से अकेले ही बाहर निकलती नज़र आई. मैं समझ गया कि आज भी कीर्ति स्कूल नही आई है. ये देखते ही मेरे चेहरे की सारी रौनक गायब हो गयी और मैं दुखी मन से घर वापस आ गया.

पर ये सब कुछ सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए ही था. घर आते ही छोटी माँ ने कहा कि तेरी मौसी का फोन आया था. वो तुझसे मुंबई जाने के पहले मिलना चाहती है. ये सुनते ही मेरे चेहरे की सारी रौनक वापस आ गयी. मैं उल्टे पैर ही वापस मौसी के घर के लिए निकलने लगा. छोटी माँ ने मुझे खाने के लिए रोकने की कोसिस की तो मैने कहा मुझे भूक नही है. मैने अपनी बाइक उठाई और मौसी के घर के लिए निकल पड़ा.

आज से पहले मुझे मौसी के घर जाने की बात से, कभी इतनी खुशी महसूस नही हुई थी. जितनी खुशी आज महसूस हो रही थी. मैं जल्द से जल्द मौसी के घर पहुच जाना चाहता था. जाते जाते मैं मन ही मन ये भी सोच रहा था कि मुझे कीर्ति से बात करने के लिए कैसे समय निकालना है.

लेकिन मेरे दिमाग़ मे ये बात बिल्कुल भी नही थी कि, मुझे कीर्ति को कैसे समझाना है. मैं ये भूल ही चुका था कि कीर्ति मुझसे किस बात पर नाराज़ है और उसकी नाराज़गी किस बात से ख़तम होगी. ये सब बिना सोचे बिना समझे. मैं बस कीर्ति से बात करने के चक्कर मे मौसी के घर पहुच गया. मैने डोरबेल बजाई और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:01 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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