MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:51 PM,
#81
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अब मैं बुरी तरह से उलझ कर रह गया था. एक तरफ तो प्रिया का अचानक इस तरह से, मुझे प्यार करने लगना, मुझे उसका आकर्षण लग रहा था. वही दूसरी तरफ उसकी मेरे लिए समर्पण की भावना मे, मुझे उसका भोलापन और प्यार नज़र आ रहा था.

मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, प्रिया का ये प्यार सिर्फ़ एक आकर्षण है, या फिर सच मे उसका प्यार ही है. उसके दिए हुए गिफ्ट ने मुझे, उसके बारे मे ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया था.

मैं चाह कर भी उसका गिफ्ट देखने के बाद, अपने आँसू बहने से रोक नही पाया था. मेरी आँखों से आँसू झर रहे थे और मैं उसका गिफ्ट देख रहा था.

अपना गिफ्ट देखने के बाद, मेरी आँखों से आँसू बहते देख कर, प्रिया को लगा कि, मुझे उसका गिफ्ट पसंद नही आया है. उसने अपने हाथों से मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और और पुच्छने लगी.

प्रिया बोली "ये तुम्हे क्या हुआ. तुम रो क्यो रहे हो. यदि तुम्हे मेरा गिफ्ट पसंद नही आया तो, मैं इसे वापस ले लेती हूँ. इसमे रोने की क्या बात है. मेरा इरादा तुम्हारे दिल को चोट पहुचाने का हरगिज़ नही था. लेकिन क्या करूँ, मेरी तो आदत ही हो गयी है. बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाती हूँ और सबका दिल दुखाती हूँ."

प्रिया की इस बात से मुझे एक और ज़ोर का झटका लगा. मेरे आँसू देख कर अपनी ग़लती मानने का, उसका बिल्कुल वही अंदाज था. जो कीर्ति का मेरे आँसू देख कर रहता है.

मेरे दिल ने फिर मुझसे कहा "ये कोई आकर्षण नही, ये सच मुच का प्यार है. जो इस भोली भाली लड़की को तुमसे हो गया है और यदि ऐसा है तो, इस भोली भली लड़की के दिल मे, इस समय बहुत दर्द है. जिसको ये तुमसे छुपा रही है."

मैं प्रिया के बारे मे ये सब सोच रहा था. जब प्रिया ने मुझे अपनी बात का कोई जबाब देते नही देखा. तब वो खुद ही मुझसे कहने लगी.

प्रिया बोली "तुम्हे ये गिफ्ट पसंद नही है ना. लाओ इसे मुझे वापस दे दो. मैं कल तुम्हे, तुम्हारी पसंद का गिफ्ट दिला दूँगी. इसके लिए तुम्हे इतना दुखी होने की ज़रूरत नही है."

ये कह कर वो मेरे हाथ से अपना गिफ्ट वापस लेने लगी. लेकिन तब तक मैं सोच चुका था कि, ऐसे हालत मे मुझे क्या करना चाहिए. मैने अपना हाथ दूसरी तरफ घुमा लिया और प्रिया को उसका गिफ्ट वापस नही लेने दिया. मैने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं बस ये सोच कर परेशान हूँ कि, ये गिफ्ट तो तुमने उस लड़के के लिए खरीदा था. जिसे तुम प्यार करती थी. लेकिन अब सारी सचाई तुम्हारे सामने है. फिर भला मैं इस गिफ्ट को कैसे ले सकता हूँ."

प्रिया बोली "यदि बात सिर्फ़ यही है. तब तुम इस गिफ्ट को बेहिचक ले सकते हो. क्योकि मैने ये गिफ्ट तुम्हे सिर्फ़ दोस्ती के रिश्ते से देने के लिए लिया था."

ये बोल कर वो हँसने लगी. मगर मुझे उसकी बात पर यकीन नही आया. मैने उस से कहा.

मैं बोला "नही ये सच नही है. तुम ये बात सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए कह रही हो. तुम मुझसे प्यार करती थी, इसलिए तुम मुझे ये गिफ्ट दे रही थी."

प्रिया बोली "ये बात सही है कि, मैं तुम्हे प्यार करती थी. तभी ये गिफ्ट दे रही थी. लेकिन मुझे ये गिफ्ट तुम्हे दोस्ती के रिश्ते से ही देना था. क्योकि मैं खुद तो तुम से, ये कह नही सकती थी कि, मैं तुमसे प्यार करती हूँ. जब मैं ये बात तुमसे कह नही सकती थी तो, फिर भला तुम्हे ये गिफ्ट प्यार के रिश्ते से कैसे दे सकती थी."

मैं बोला "हो सकता है कि, तुमने गिफ्ट देने के बाद, अपने प्यार का इज़हार करने की बात सोची हो. तभी तो तुम इतनी रात को मेरे पास आई थी."

प्रिया बोली "ऐसा कुछ भी नही है. ये सारे गिफ्ट कल रात को, तुम्हारे जाने के बाद से, यही रखे हुए है. मुझे तो आज शाम को पता चला कि, तुम्हारी जिंदगी मे कोई दूसरी लड़की है. याद करो जब पार्क मे, मैने तुम्हे फोन पर बात करते देखा था. तब मैं कितना गुस्सा थी और तुम्हे बात करने के लिए घर लेकर आई थी. बस तभी से मेरे मन मे तुमसे, इस बात को कहने का ख़याल आया था. उसके पहले तो मैने ऐसा कुछ करने का सोचा ही नही था."

लेकिन अभी भी मेरे मन मे ये सवाल आ रहा था कि, दो लोग एक सा ही गिफ्ट कैसे दे सकते है. मैने अपने मन की बात जाहिर ना करते हुए प्रिया से पुछा.

मैं बोला "अगर ऐसी ही बात थी तो, तुमने सिर्फ़ मोबाइल देने का ही क्यों सोचा. कोई दूसरा गिफ्ट क्यो नही दिया."

प्रिया बोली "वो इसलिए क्योकि मैं चाहती थी. जब मैं तुमसे बात करूँ. तब कोई दूसरा हमें डिस्टर्ब ना करे. अब जाहिर सी बात है कि, तुम्हारे इस नंबर पर सबके कॉल आते है. अब मान लो तुम मुझसे बात कर रहे हो. तब किसी का कॉल आ जाता है तो, तुम मुझसे कहते कि, अभी मेरा कॉल आ रहा है. तुम कॉल रखो. मैं बाद मे बात करता हूँ. लेकिन अलग से मोबाइल रहने पर तुम्हे मेरा कॉल नही काटना पड़ता."

प्रिया की ये बात सुनकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, कीर्ति ने मुझे अलग से, ये मोबाइल क्यो दिया है. वो भी यही चाहती होगी कि, जब मैं उस से बात करूँ तो, कोई हमें डिस्टर्ब ना करे. लेकिन इस बात से मेरे मन एक बात और आई कि, आख़िर दोनो ने ही एक ही कंपनी का मोबाइल क्यों दिया है. तब मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला "चलो मैं तुम्हारी इस बात को मान भी लेता हूँ. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा है कि, तुमने देने के लिए, ये ही मोबाइल क्यो चुना."

प्रिया बोली "तुम सच मे ही बुद्धू हो. अरे इस कंपनी के मोबाइल आपस मे फ्री हो जाते है. उन्हे ऑल इंडिया फ्री कराया जा सकता है. किसी दूसरी कंपनी मे ये सुविधा नही है. अब तुम तो उतनी दूर रहते हो. ऐसे मे मैं तुमसे ज़्यादा देर बात नही कर सकती थी. लेकिन इसमे हम, जितनी चाहे उतनी बात कर सकते है. अब सब कुछ समझ मे आ गया, या फिर अभी भी कुछ बाकी है."

प्रिया की इस बात से मुझे, कीर्ति के नये मोबाइल लेने का राज भी समझ मे आ गया था. शायद उसने अपना मोबाइल फ्री करा लिया था. तभी वो मेरे कॉल करने के बाद भी, मेरा कॉल काट कर खुद नये मोबाइल पर कॉल कर रही थी. मैने इस बात पर से अपना ध्यान हटाते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला "हाँ बस एक आख़िरी बात बाकी है."

प्रिया बोली "तो इसमे इतना सोचने की क्या ज़रूरत है. जो भी पुच्छना है, पुच्छ लो."

मैं बोला "क्या मेरे बारे मे, सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये लगता है कि, मुझे ये मोबाइल रखना चाहिए."

प्रिया बोली "हाँ सब कुछ जानने के बाद भी, तुम्हे ये मोबाइल रखना ही पड़ेगा और वहाँ जाने के बाद, अपनी गर्लफ्रेंड से छुप छुप कर, कम से कम 1 घंटे रोज, मुझसे बात भी करना पड़ेगी. क्योकि तुमने मुझसे हमेशा दोस्ती निभाने का वादा किया है. अब तुम्हारी आख़िरी बात भी हो गयी. अब मैं जाउ."

मैं बोला "जाने की क्या ज़रूरत है. तुम भी यही मेरे साथ सो जाओ."

प्रिया बोली "हाँ तुम्हारी ये बात सही है. मैं दरवाजा बंद कर के आती हूँ. फिर हम दोनो मिल कर आराम से सोएगे."

मुझे लगा कि वो मज़ाक कर रही है. लेकिन वो मेरे पास से उठ कर दरवाजा बंद करने जाने लगी. उसे ऐसा करते देख, मैने उस से कहा.

मई बोला "अरे नही नही, मैं तो मज़ाक कर रहा था."

प्रिया बोली "लेकिन मैं मज़ाक नही कर रही हू. मुझे सच मे तुम्हारे साथ सोना है."

ये कह कर उसने हंसते हुए दरवाजा बंद कर दिया. मैं उसे देखने के सिवा कुछ ना कर सका. फिर वो वापस मेरे पास आ कर, मेरे सामने खड़ी हो कर, मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए कहने लगी.

प्रिया बोली "चलो अब सोया जाए."

मैं बोला "यार अब मज़ाक बंद करो. रात बहुत हो गयी है. अब हमें सोना चाहिए. अब तुम अपने कमरे मे जाओ और मुझे भी सोने दो."

प्रिया बोली "हाँ अब रात ज़्यादा हो गयी है. अब हमे सोना चाहिए."

ये कहते हुए प्रिया ने, मुझे बेड की तरफ धक्का दे दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि, मेरे दोनो पैर बेड से नीचे लटकते रहे और मैं बेड पर लेट गया. मेरे लेटते ही उसने अपने दोनो हाथ, मेरे दोनो कंधों के अगल बगल रखे और वो मेरे उपर झुक कर, मेरी आँखों मे देखने लगी.

उसके इस तरह मेरी आँखों मे आँखे डालकर देखने से, मेरी धड़कने बढ़ गयी. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, अब वो आगे क्या करने वाली है. मैं उसे एक तक देखता रहा. तभी वो मेरे उपर लेट गयी और उसके सीने से मेरा सीना टकरा गया.

उसके कोमल कोमल बूब्स मेरे सीने से दब गये. उसके बूब्स के इस कोमल अहसास से, मैं खुद को बाहर निकाल पता. उसके पहले ही उसने अपने होंठ, मेरे होंठों पर रख दिए और वो मेरे होंठों को चूसने लगी. मैं उसे रोकना चाहता था. लेकिन अब उसे रोकने की ताक़त मुझमे नही थी.

मैने भी अपने दोनो हाथ उसकी पीठ पर रख दिए और किस करने मे उसका साथ देने लगा. करीब 2 मिनट तक हम एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे. फिर अचानक ही उसने किस करना बंद कर दिया और मेरी आँखों मे देखने लगी. उसकी आँखें मुझसे कुछ कहना चाह रही थी. मैं उसकी आँखों की इस बात समझने के लिए, उसकी आँखों मे देखने लगा.

लेकिन तभी उसने बारी बारी से, मेरी दोनो आँखों को चूमना सुरू कर दिया. उसे ऐसा करते देख, मैने अपनी आँखे बंद कर ली. मेरे आँखे बंद करते ही, वो पागलों की तरह, कभी मेरी आँखे चूमती तो, कभी मेरे चेहरे को चूमती रही और मैं आँखे बंद किए, अपने दोनो हाथों से उसकी पीठ सहलाता रहा.

मुझे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि, वो ये सब क्यो कर रही है. फिर भी उसका कुछ भी करना, मुझे ग़लत नही लग रहा था. वो ना जाने कितनी देर मुझे चूमती रही. फिर अचानक ही मुझे, मेरे चेहरे पर आँसुओं के गिरने का अहसास हुआ और मैने अपनी आँखे खोल दी.

अपनी आँख खोलते ही, मेरा दिल दहल गया. प्रिया का चेहरा रुआंसा था. उसकी आँखों मे आँसू भरे हुए थे. वो पागलों की तरह मुझे चूम रही थी और उसके आँसू बहे जा रहे थे. मैने उसकी ऐसी हालत देखी तो, मैने उसका चेहरा अपने हाथों मे पकड़ा और कहा "प्रिया."

उसने आँसू भरी आँखों से, मेरी आँखों मे देखा और फिर मेरे माथे को चूमते हुए बोली "आइ लव यू."

इसके बाद वो इक झटके से, मेरे उपर से उठी और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी. ये सब इतनी जल्दी हो गया कि, मैं उस से कुछ बोल भी ना सका. बस उसे जाते हुए देखता रह गया.

वो लड़की जिसे मैने हमेशा हंसते खिलखिलाते हुए देखा था. उसका ये रूप मेरे लिए बिल्कुल नया था. मैं अजीब सी कशमकश मे फसा था.

मैं उस लड़की को समझने मे भूल कर गया था. सच तो ये था कि, मैं उसे कभी समझ ही नही सका था. ना ही उसके दर्द का ठीक से अंदाज़ा लगा पाया था. लेकिन अब मुझे उसके दर्द का अहसास हो रहा था और मुझे लग रहा था कि, वो अपने कमरे मे जाकर रो रही होगी.

यही सब सोचते सोचते, मैं काफ़ी देर वैसा ही लेटा लेटा, प्रिया के बारे मे सोचता रहा. फिर उठ कर मैने दरवाजा बंद किया और सोने की . करने लगा.

लेकिन आँख बंद करते ही मेरी आँखों के सामने, प्रिया का रोता हुआ चेहरा आ रहा था. जब मुझसे नही रहा गया. तब मैने प्रिया का दिया हुआ मोबाइल ऑन किया.

उसे ऑन करते ही स्क्रीन पर लिखा आया "हेलो माइ स्वीट फ्रेंड."

जिसे देखते ही मेरा दिल और भी ज़्यादा उदास हो गया. मैने कॉंटॅक्ट लिस्ट मे देखा तो, उसमे प्रिया का नंबर सेव था. मैने उस नंबर पर कॉल लगा दिया. मैं जानता था कि वो इस समय रो रही होगी. इसलिए मैने उसके कॉल उठाते ही, उसके बोलने से पहले ही कहा.

मैं बोला "क्या यार ये तुम्हारी अच्छी आदत नही है. खुद ने पप्पी झप्पी सब कुछ ले ली, और मेरी बारी आई तो उठ कर भाग गयी."

प्रिया को शायद मेरा कॉल आने से खुशी हुई थी. इसलिए वो मेरे इतने बात करने से अपने को सभाल चुकी थी. फिर भी उसकी बातों मे भारीपन था. उसने मेरी बात के जबाब मे कहा.

प्रिया बोली "मैं तो तुम्हारे साथ सोना चाहती थी. तुम ही बोले थे कि, मैं मज़ाक कर रहा हूँ. तब क्या मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती सो जाती."

मैं बोला "मेरी बात को टालो मत. मैं सोने की बात नही कर रहा हूँ. मैं पप्पी झप्पी की बात कर रहा हूँ. मुझे मेरी पप्पी झप्पी चाहिए."

प्रिया बोली "तुम फिर शैतानी कर रहे हो. तुम्हे पप्पी झप्पी चाहिए तो, अब अपनी गर्लफ्रेंड को फोन लगाओ और उस से ले लो. मुझे सोने दो."

मैं बोला "ये ग़लत बात है. जब तुम पप्पी झप्पी ले सकती हो तो, फिर मैं क्यो नही ले सकता. अब जब तक तुम मुझे पप्पी झप्पी नही लेने देती. तब तक मैं फोन नही रखूँगा."

प्रिया बोली "तो मत रखो फोन. लेकिन अब मैं तुम्हे कोई पप्पी झप्पी नही देने वाली. समझ गये ना."

अब प्रिया का मूड मुझे कुछ ठीक होता समझ मे आया. मैने उसे बहलाते हुए कहा.

मैं बोला "याद रखना मैं तुम से इसका बदला ज़रूर लूँगा."

प्रिया बोली "अब तुम मेरा कुछ भी नही कर सकते. क्योकि अब मैं तुम्हारे पास आउगि ही नही."

मैं बोला "ये तुम भूल जाओ. मैं तुमसे इसका बदला ज़रूर लूँगा और कल ही लूँगा."

प्रिया बोली "अच्छा मैं भी तो सुनूँ कि कल तुम क्या करने वाले हो."

मैं बोला "अब ये तुम कल खुद देख लेना."

प्रिया बोली "हाँ देख लूँगी. अब तुम फोन रखो. मुझे सोना है."

मैं बोला "तुमने मेरी नींद खराब की है. मैं तुम्हे नही सोने दूँगा."

प्रिया बोली "ना लेना एक ना देना दो. मैं तो सो रही हूँ. तुम जागते रहो."

मैं बोला "तुम सोकर देखो. मैं भी देखता हूँ कि, तुम कैसे सोती हो."

प्रिया बोली "यार तुम तो ज़बरदस्ती मेरे पिछे पड़ गये. मैं भला तुमहरि बात क्यो सुनूँ."

मैं बोला "वो तो मैं पिछे पड़ूँगा ही है और तुमको मेरी बात सुनना भी पड़ेगी."

प्रिया बोली "हाँ, अब दोस्ती की है तो, निभानी भी पड़ेगी."

ये कह कर प्रिया हँसने लगी. उसे हंसते देख कर मुझे बहुत राहत मिल रही थी. मैं उसे काफ़ी देर तक ऐसे ही बातों मे उलझाए रहा और बात बात पर हँसाता रहा. फिर 4:30 बजे उसने कहा कि, अब उसे सच मे बहुत नींद आ रही है. तब मैं फोन रखने को तैयार हुआ और मैने उसे गुड नाइट कह कर फोन रख दिया.

अब मैं भी बहुत थक चुका था और मुझे नींद भी आ रही थी. ऐसे मे किसी का गिफ्ट देखने की मेरे अंदर ताक़त ही नही बची थी. मैने सारे गिफ्ट उठा कर एक किनारे रखे और फिर सोने की कोसिस करने लगा. लेकिन अभी भी मेरे दिमाग़ मे प्रिया ही घूम रही थी. मैं उसी के बारे मे सोचते सोचते ना जाने कब बहुत गहरी नींद सो गया.

सुबह मेरी नींद किसी के दरवाजा खटखटाने से खुली. कोई मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाए जा रहा था. मैने टाइम देखा तो, 6:15 बज रहे थे. मेरी नींद पूरी नही हुई थी. जिस वजह से मुझे अपनी आँख खोलने मे थोड़ी परेसानी हुई. मैने उठ कर दरवाजा खोला तो, सामने निक्की खड़ी थी.

वो इस समय नहा कर आई हुई लग रही थी. उसने ब्लू कलर का गाउन पहना हुआ था और अपने बाल सूखा रही थी. उसके बालों मे पानी बूंदे मोती की तरह चमक रही थी और वो बहुत सुंदर दिख रही थी. उसे इस रूप मे देखते ही मुझे कीर्ति की याद आ गयी. निक्की ने अपने बाल सुखाते हुए कहा.

निक्की बोली "मैं कब से दरवाजा खटखटा रही हूँ."

मैं बोला "हाँ रात को बहुत देर से सोया था, इसलिए बहुत गहरी नींद मे था."

निक्की बोली "लगता है रात को मेरे जाने के बाद भी आप लोग बहुत देर तक बातें करते रहे है."

मैं बोला "नही ऐसी कोई बात नही है. आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही प्रिया भी चली गयी थी. लेकिन वो कुछ उदास सी लग रही थी, इसलिए मैं उस से फोन पर बात करता रहा. जिसमे 4:30 बज गये और मुझे सोते सोते 5 बज गये थे."

निक्की बोली "सॉरी, आपकी नींद पूरी नही हो पाई और मैने आपको जगा दिया. मुझे लगा कि आपको हॉस्पिटल जाना है, इसलिए आपको जगा देना चाहिए."

मैं बोला "नही आपने ठीक किया. यदि आप नही जगाती तो, मैं जागता भी नही और मेहुल अकेला वहाँ परेशान होता रहता."

निक्की बोली "ठीक है आप फ्रेश हो जाइए. तब तक मैं आपके लिए चाय नाश्ता ले आती हूँ."

इतना बोल कर वो चली गयी. उसके जाने के बाद मैं भी फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने और तैयार होने मे मुझे 7 बज गये. तब तक निक्की भी चाय नाश्ता ले आई. फिर हम दोनो साथ साथ चाय नाश्ता करने लगे. मेरी निक्की से प्रिया के बारे मे बात होती रही.

अभी हम दोनो की बात चल ही रही थी कि, तभी हम दोनो दरवाजे की तरफ देख कर चौक गये.
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09-09-2020, 01:52 PM,
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दरवाजे पर मेहुल खड़ा था. मैने उसे देखा तो, मैं उठ कर खड़ा हो गया. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, वो मेरे पहुचने से पहले ही वापस क्यो आ गया है. उसे इस तरह देख कर मुझे कुछ घबराहट भी हो रही थी. मैं तुरंत अपनी जगह से उठ कर उसके पास गया और उस से पुछ्ने लगा.

मैं बोला "तू अभी इतने समय यहाँ कैसे. मैं तो आने ही वाला था. फिर तुझे आने की इतनी जल्दी क्या पड़ी थी."

मेहुल बोला "मैं कहाँ आना चाहता था. वो तो अंकल (पापा) वहाँ पहुच गये और उन्हो ने मुझसे कहा कि, वो तुम्हारे वहाँ आने तक, वहीं रुकेगे, इसलिए अब मैं घर जाकर आराम कर लूँ. अब मैं उनकी बात को कैसे काट सकता था. मुझे मजबूरी मे यहाँ आना ही पड़ा."

मैं बोला "चल जाने दे. मैं तो जा ही रहा हूँ. तू ये बता कि, तुझे वहाँ रुकने मे कोई तकलीफ़ तो नही हुई."

मेहुल बोला "मुझे क्या तकलीफ़ होना थी. मैं तो रात को 1 बजे के बाद बैठे बैठे ही सो गया था. फिर सीधे सुबह 6 बजे ही मेरी नींद खुली और 7 बजे अंकल आ गये तो, मैं यहाँ आ गया."

मैने मन मे सोचा "मैं साला यहाँ घर मे होते हुए भी रात भर जागता रहा और ये वहाँ हॉस्पिटल मे होकर रात भर आराम से सोता रहा." ये सोचते हुए मैने, मेहुल पर झुझलाते हुए कहा.

मैं बोला "तू हॉस्पिटल मे सोने के लिए रुका था, या अंकल की देख भाल करने के लिए. यदि तुझे सोना ही था तो, तू यहाँ घर मे रुक जाता. मैं हॉस्पिटल मे रह जाता."

मेहुल बोला "अबे इतना भड़क क्यों रहा है. मैं कौन सी अपनी मर्ज़ी से सो रहा था. पापा ही बोले थे कि, जब मैं सो जाउ तो, तुम भी सो जाना. मुझे यदि ज़रूरत होगी तो, मैं तुम्हे जगा लूँगा. अब क्या मैं उनकी बात भी नही मानता."

मैं बोला "वा मेरे लाल. बहुत आग्याकारी बन गया है. सीधे से कहता क्यो नही कि, तेरे से रात भर वहाँ जगा नही गया है."

मेहुल बोला "अब तुझे जो समझना है. तू समझता रह. मुझे तो अब नींद आ रही है. मैं अपने कमरे मे जाकर आराम से सोता हूँ."

मैं बोला "रात भर सोने के बाद भी, अभी तेरी नींद पूरी नही हुई है."

मेहुल बोला "अबे तुझे ताने मारने के सिवा कोई काम नही है क्या. जब देखो तब, मुझ पर बरसता ही रहता है. क्या कुर्सी मे बैठे बैठे सोने से भी कभी नींद पूरी होती है. नींद तो बिस्तर पर सोने से पूरी होती है. साला रात भर कुर्सी मे बैठे बैठे मेरी तो कमर ही दुखने लगी है. मैं तुझसे कोई बेकार की बहस करना नही चाहता. मैं तेरे से सिर्फ़ इतना बताने आया था कि, मैं हॉस्पिटल से आ गया हूँ. अब तुझे जब जाना हो, तू जा. मैं तो चला सोने."

मैं अभी उसको कुछ और बकने वाला था. लेकिन वो बिना मेरा जबाब सुने ही वापस चला गया. शायद उसे सच मे नींद आ रही थी. मेहुल के जाते ही निक्की ने मुस्कुराते हुए पुछा.

निक्की बोली "क्या आप दोनो बचपन से ही, इस तरह झगड़ते रहते है."

मैं बोला "बचपन से तो नही, मगर अब अक्सर ऐसे ही झगड़ते है."

निक्की बोली "इसकी कोई खास वजह तो होगी. तभी तो आप दोनो मे ज़्यादा बात नही होती."

मैं बोला "ऐसी कोई खास वजह नही है. बचपन मे हम दोनो कभी नही झगड़ते थे. लेकिन जब से इसने अपनी गर्लफ्रेंड के चक्कर मे. अपनी क्लास बदली है. तब से हम दोनो के बीच ऐसे ही, बात चीत होती है."

निक्की बोली "क्या आप इनके क्लास बदल लेने की वजह से नाराज़ है."

मैं बोला "नही, नाराज़ तो नही हूँ. लेकिन फिर भी ना जाने क्यो, मैं इस पर बात बात पर गुस्सा करता हूँ और ये भी चिड जाता है. जिसकी वजह से हम दोनो मे, कम ही बात होती है और यदि ज़रूरत ना हो तो, बात नही भी होती है."

निक्की बोली "इसके बाद भी आप दोनो के बीच इतना प्यार है. देख कर ताज्जुब होता है."

मैं बोला "ये कोई ताज्जुब करने की बात नही है. जिनके बीच प्यार होता है. उन्ही के बीच झगड़ा भी होता है. ऐसा ही कुछ हम दोनो के बीच भी है. हम भले ही एक दूसरे से हफ्तों बात ना करे या महीनो मिले ना. लेकिन हमारे बीच का प्यार कभी नही घटता है. हमारे घर वाले भी कभी हमारे बीच कोई भेद भाव नही करते. यही वजह थी कि, अंकल ने अपनी बीमारी की बात, मेहुल से पहले मुझे बताई थी."

निक्की बोली "यदि ऐसा है तो, फिर आपको उस दिन मेरी बात का इतना बुरा क्यो लगा."

निक्की की ये बात सुनते ही मेरा उसके उपर फिर दिमाग़ खराब हो गया. मैने गुस्से मे वहाँ से उठते हुए कहा.

मैं बोला "सॉरी, मुझे हॉस्पिटल के लिए जाने मे देर हो रही है. अब मैं निकलता हूँ."

ये कह कर मैं निक्की का जबाब सुने बिना ही वहाँ से निकल आया. शायद निक्की समझ चुकी थी कि, मैं अभी भी उस से उस बात के उपर से नाराज़ हूँ. मैने इसकी कोई परवाह नही की और मैं सीधे हॉस्पिटल आ गया. हॉस्पिटल आकर मैं उपर अंकल के पास गया.

पापा अंकल के पास ही बैठे थे. उन्हो ने देखा कि अब मैं आ चुका हूँ तो, उन्हो ने अंकल से कल आने का बताया और फिर वो बिना मुझसे बात किए चले गये. वैसे भी मेरी पापा से कम ही बात होती थी और हम दोनो एक दूसरे को ज़रा भी पसंद नही करते थे. लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए बाप बेटा का रिश्ता निभा रहे थे.

मगर आज मुझे पापा का इस समय आना कुछ समझ मे नही आया. वैसे तो वो जब से यहाँ आए थे. तब से रोज ही अंकल से मिलने आ रहे थे. फिर भी आज उनका इतनी सुबह सुबह आना मुझे कुछ अजीब सा लगा.

मगर बाद मे मैने सोचा कि, आज शायद उन्हे कोई काम होगा. इसलिए वो अंकल से सुबह जल्दी मिल कर चले गये है. ये सोच कर मैने पापा के जल्दी आने की बात को अनदेखा कर दिया और अंकल से उनकी तबीयत के बारे मे पुच्छने लगा.

अंकल से ये ही सब बातें करते करते 10 बज गये. मैं कुछ देर के लिए नीचे जाने की सोच ही रहा था. तभी दादा जी आ गये. उन्हो ने बताया कि, वो राज के साथ आए है. मेरी उन से एक दो बातें हुई और फिर मैं नीचे आ गया.

नीचे राज अकेला बैठा था. मैने उसे देखते ही उस से कहा.

मैं बोला "तुम्हे इतनी जल्दी आने की क्या ज़रूरत थी. आराम से खाना वाना खा कर आना चाहिए था."

राज बोला "मेरी तो खाना देर से खाने की आदत है. वैसे भी वो और मेहुल बारी बारी से खाना खाने जाते है. मेहुल 12 बजे खाना खाने जाता है और 2 बजे वापस आता है. उसके बाद मैं 2 बजे जाता हूँ और और 5 बजे आता हूँ."

मैं बोला "ठीक है. हम भी ऐसा ही कर लेगे. मगर मुझे लगता है कि, अब यहाँ दो लोगों के रुकने की ज़रूरत नही है. तुम बेकार मे ही परेशान हो रहे हो."

राज बोला "मुझे तो यहाँ रुकने मे कोई परेशान नही है. लेकिन लगता है कि, तुम्हे मेरा यहा रुकना पसंद नही है.

मैं बोला "ऐसी बात नही है. मैं सिर्फ़ इस वजह से कह रहा था कि, तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान हो रहा होगा."

राज बोला "मेरी पढ़ाई का कोई नुकसान नही हो रहा है. मैं यदि कॉलेज भी जा रहा होता तो, वहाँ भी सिर्फ़ मस्ती ही करता और यहाँ भी रुका हूँ तो, सिर्फ़ मस्ती ही कर रहा हूँ. वैसे भी यहाँ एक से बाद कर एक लड़कियाँ और नर्स है. मैं और मेहुल तो दिन भर बस इसी नज़ारे का मज़ा लेते रहते है. आज तुम भी यहाँ रुके हो तो, तुम भी इसका मज़ा ले लो."

मैं बोला "मुझे ये सब पसंद ही नही है. मैं तो अकेले मे ही मस्त रहता हूँ. हाँ कभी कोई अच्छी लड़की दिख गयी तो, उसे देख ज़रूर लेता हूँ."

राज बोला "तुम्हारी बात मेरे समझ मे नही आई. एक तरफ कह रहे हो कि, इन सब बातों से दूर रहते हो और दूसरी तरफ कह रहे हो कि, कोई अच्छी लड़की दिखी तो उसे देख लेते हो. फिर हम लोगों और तुम मे फरक क्या है."

मैं बोला "बहुत फरक है. तुम लोग हर आती जाती लड़की को देखते रहते हो और मैं सिर्फ़ अच्छी लड़कियों को देखता हूँ."

राज बोला "यार तुम्हारी ये बात ग़लत है. लड़कियाँ तो सभी अच्छी और सुंदर होती है. किसी का रंग काला भी हो तो, उस से क्या फरक पड़ता है. उनकी सुंदरता तो उनके उभरे हुए बूब्स और नितंबो मे होती है."

मैं बोला "बस यही तो फरक है. मैं ये सब नही देखता. मुझे जिस लड़की के हाव भाव और उसका चाल चलन अच्छा लगता है. मैं उसे देखता हूँ."

काफ़ी देर हम लोगों मे इसी तरह की बात चीत चलती रही. फिर 11 बजे मैं उपर अंकल के पास चला गया. मेरे जाने के बाद दादा जी घर जाने का बोल कर वहाँ से उठ गये और नीचे आ गये. उनके जाने के बाद अंकल मुझसे कहने लगे.

अंकल बोले "बेटा राज और उसके परिवार वालों ने हमारी बहुत मदद की है. यदि ये ना होते तो, हमें यहाँ बहुत परेशानी उठानी पड़ती."

मैं बोला "हाँ अंकल, आप सही बोल रहे है. सच मे राज और उसके परिवार के सभी लोग बहुत अच्छे है. सब हमारा बहुत ख़याल रखते है. लेकिन मैने राज के पापा को कभी आपके पास आते नही देखा."

अंकल बोले "नही बेटा, वो भी शाम के समय एक बार मुझसे मिलने ज़रूर आते है. वो ज़्यादा बात चीत नही करते. लेकिन फिर भी उनका व्यवहार उनके घर के बाकी लोगों की तरह ही है. शायद उन्हे किसी के साथ ज़्यादा बातें करना पसंद ही ना हो."

मैं बोला "हाँ अंकल, शायद आप ठीक ही बोल रहे है. मैने भी उन्हे कम ही बात करते देखा है और वो वेवजह की कोई बात नही करते."

मेरी अंकल से राज और राज के परिवार को लेकर बहुत देर तक बातें होती रही. फिर 12 बजे राज उपर आ गया. उसने मुझे खाना खाने घर जाने को कहा तो, मैने अंकल को बताया और फिर मैं घर के आने के लिए वहाँ से निकल गया.

मैं 12:30 बजे घर पहुचा तो खाने की तैयारी चल रही थी. मैं भी मूह हाथ धोकर खाने के लिए आ गया. मुझे खाने पर दादा जी, निक्की और मेहुल ही दिखाई दिए. रिया और प्रिया वहाँ नज़र नही आई. तब मैने दादा जी से पुछा.

मैं बोला "दादू, रिया और प्रिया दिखाई नही दे रही. क्या वो कहीं गयी है."

दादा जी बोले "वो दोनो घर मे नही है. रिया तुम्हारे पापा के साथ गयी है और प्रिया अपनी सहेली के घर गयी है."

मैं बोला "रिया पापा के साथ कहाँ गयी है."

दादा जी बोले "ये तो पता नही है. मगर कल उसकी हॉस्पिटल मे तुम्हारे पापा से किसी बात को लेकर बात चल रही थी. तभी उसने मुझसे आज उनके साथ जाने की इजाज़त माँगी थी. मैने उस से पुछा भी था कि, तुम कहाँ जा रही हो. लेकिन उस ने ये कह कर बताने से इनकार कर दिया था कि, जब उसका काम हो जाएगा. तब वो खुद ही बता देगी. इसके बाद आज सुबह जब मैं हॉस्पिटल के लिए निकल रहा था. तभी तुम्हारे पापा आए थे और वो उनके साथ चली गयी. उसने बताया भी था कि, उसे आने मे देर होगी और वो खाना बाहर ही खा लेगी."

ये कह कर दादा जी तो चुप हो गये. लेकिन उनकी इस बात ने मेरे अंदर एक तूफान मचा दिया. मुझे पापा के सुबह सुबह जल्दी, हॉस्पिटल आने की वजह समझ मे आ चुकी थी. उन का रिया के साथ जाने का प्रोग्राम पहले से ही तय था. इसलिए उन्हो ने हॉस्पिटल मे अपनी हाज़िरी पहले ही लगा दी थी.

मैं अपनी इसी सोच मे खोया हुआ था. तभी दादा जी ने कहा.

दादा जी बोले "क्या सोचने लगे बेटा. खाना खाओ."

मैं बोला "कुछ नही दादू. लेकिन ये प्रिया को तो, अब तक आ जाना चाहिए था."

दादा जी बोले "लगता है तुमको उन दोनो की कमी अखर रही है. अरे प्रिया भी बोल कर गयी है कि, उसे आने मे देर हो जाएगी. अब तुम ये सब बेकार की बातें छोड़ो और खाना खाओ."

दादा जी की बात सुन कर मैं खाना खाने लगा. लेकिन मेरा दिमाग़ सिर्फ़ पापा के उपर उलझा हुआ था. पापा का रिया के साथ होना मुझे पसंद नही आ रहा था. इस बात ने मेरे अंदर हज़ारों सवाल उठा दिए थे. आख़िर रिया पापा के साथ क्यो गयी है. भला उसे ऐसा क्या काम आ गया. जिसके लिए उसने पापा को चुना.

यही सब सोचते सोचते मैने अपना खाना ख़तम किया और अपने रूम मे आकर लेट गया. मैं अब शांति से कीर्ति से बात करना चाहता था. क्योकि मेरी सुबह से, उस से बात नही हो पाई थी. जबकि मैने उस से सुबह उठते ही बात करने का वादा किया था.

मेरे सुबह उठते ही कॉल ना करने की वजह से, शायद वो नाराज़ हो गयी थी. इसी वजह से उसका अभी तक कोई कॉल नही आया था. मैने इसलिए मैने बिना कोई देर किए हुए, कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरे कॉल लगते ही कीर्ति का कॉल दूसरे मोबाइल पर आने लगा.

मेरे कॉल उठाते ही कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे कॉल करने का अब टाइम मिल रहा है. अभी भी क्यो कॉल किया. सीधे रात को सोते समय ही कॉल करना था."

मैं बोला "यार तू समझती क्यो नही है. मुझे सच मे ही कॉल करने का समय नही मिल सका. सारे समय कोई ना कोई मेरे पास बना ही रहता है. अब मैं तुम्हे कॉल करता भी तो, कैसे करता."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ नही सुनना. तुम्हारे पास सिर्फ़ मुझसे बात करने का समय नही है. बाकी सब से बात करने का समय है."

अब मैं उसे कैसे समझाता की, मैं इधर किन किन परेशानियों मे उलझा हुआ हूँ. मैने उस से सीधे से एक बात कही.

मैं बोला "देख तू अपना लड़ना झगड़ना रात मे कर लेना. अभी मेरे पास सच मे टाइम नही है. मुझे तुझसे बहुत सी ज़रूरी बातें करना है. लेकिन मेरी तुझसे बात ही नही हो पा रही है. मगर आज रात को मैं तुझसे सारी बातें करूगा. इसलिए तुझे यदि अभी सोना हो तो, तू सो लेना. लेकिन रात को तुझे जागना पड़ेगा."

मेरी इस बात का कीर्ति पर असर पड़ा और वो अपनी बात को भूल कर, मुझसे कहने लगी.

कीर्ति बोली "क्या बात करना है. क्या अभी नही कर सकते."

मैं बोला "अभी मुझे 2 बजे फिर हॉस्पिटल वापस पहुचना है. अब 1:30 बज चुका है. तू ही सोच ऐसे मे कैसे बात हो सकती है. मैं तुझे इसी वजह से कॉल नही लगा पाया. क्योकि मैं तुझसे आराम से बात करना चाहता था. लेकिन अब लगता है कि, रात से पहले ऐसा नही हो पाएगा."

कीर्ति बोली "कोई बात नही जान. तुम इसकी ज़रा भी चिंता मत करो. मुझे तुमसे कोई शिकायत नही है. वो तो मैं तुम पर ऐसे ही गुस्सा कर रही थी."

मैं बोला "तेरा गुस्सा करना ग़लत नही है. मगर क्या करूँ. मैं इधर आकर बहुत बुरी तरह से उलझ गया हूँ. अब जब तक तुझसे सारी बात नही हो जाती. तब तक मुझे शांति नही मिलेगी."

कीर्ति बोली "जान रात को हम बात करेगे ना. तब तुम आराम से अपने दिल की हर बात कर लेना. लेकिन अभी अपना चेहरा मत उतारो. ऐसे तुम ज़रा भी अच्छे नही लगते."

मैं बोला "ठीक है. तू साथ है तो, मुझे भी किसी बात की कोई चिंता नही है. बस तू ऐसे ही मेरा साथ देती रहना."

कीर्ति बोली "मरते दम तक मैं तुम्हारा साथ देती रहूगी. अब तुम खुशी खुशी हॉस्पिटल जाओ. मैं रात को तुम्हारे कॉल का इंतजार करूगी."

मैं बोला "ओके, अब तू कॉल रख सकती है. मुऊऊऊहह."

कीर्ति बोली "जान तुम बहुत समझदार होते जा रहे हो. फोन रखवाना था तो, बिना माँगे ही क़िस्सी दे दी. हा.. हा.. हा.. मुऊऊउऊहह."

इसके बाद उसने कॉल रख दिया और मैं हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा. मैं तैयार होकर हॉस्पिटल के लिए निकलने ही वाला था. तभी मेहुल और निक्की मेरे कमरे मे आ गये. उनको एक साथ आया देख कर मुझे ज़रा भी अजीब नही लगा. मैं जानता था कि, वो दोनो क्या बात करने मेरे पास आए है.
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लेकिन मैं इस समय पापा की हरकतों को लेकर परेशान था. ऐसे मे मैं उनकी बात मे उलझ कर अपना दिमाग़ और ज़्यादा खराब करना नही चाहता था. इसलिए उनके कुछ कहने से पहले ही मैने उन से सीधे कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. क्या मुझसे कोई काम है."

मेहुल बोला "हमें तुझसे ज़रूरी बात करना है."

मैं बोला "मुझे मालूम है तुझे क्या बात करनी है. लेकिन अभी मेरा हॉस्पिटल जाने का टाइम हो चुका है."

मेहुल बोला "तेरे थोड़ी देर से हॉस्पिटल पहुचने से कोई फरक नही पड़ेगा."

मैं बोला "ये मैं भी जानता हूँ. लेकिन राज को वहाँ वेट करवाना मुझे पसंद नही है. हम बाद मे भी बात कर सकते है."

मेहुल बोला "ठीक है, तू जा मैं रात को जल्दी आ जाउन्गा."

मैं बोला "तू अभी दिन मे जाग रहा है. तुझे रात को हॉस्पिटल मे नींद आएगी. यदि तू कहे तो, मैं रात को हॉस्पिटल मे रुक जाता हूँ. तू अभी दिन मे रुक जा."

मेहुल बोला "नही यार, मुझे रात को रुकने मे कोई परेशानी नही है. मैं अभी 3 बजे सो जाउन्गा और 7 बजे उठ जाउन्गा. मेरी नींद तो वैसे भी पूरी हो चुकी है. इतना और सो लेने के बाद, मुझे रात को
बिल्कुल नींद नही आएगी."

मैं बोला "ये तो अच्छी बात है. यदि तुझे सुबह की मेरी बात बुरी लगी हो तो, उसके लिए सॉरी."

मेहुल बोला "अबे ये कैसी बात कर रहा है. मैने आज तक तेरी किस बात का बुरा माना है. जो तेरी इस सड़ी सी बात का बुरा मानूँगा."

मैं बोला "मैं जानता हूँ कि, तुझे मेरी बात का बुरा नही लगा होगा. लेकिन मेरी बात का मतलब, तू समझ भी नही रहा था. मैं चाहता था कि, जब तक अंकल पूरी तरह से ठीक नही हो जाते. तब तक हम से कोई एक, उन पर हमेशा नज़र रखा रहे. मुझे ये भी मालूम है कि, डॉक्टर ने कहा है कि, अब वो पूरी तरह से ठीक है. मगर यदि हम अपनी तरफ से, कुछ दिन और सावधानी रख ले तो, इसमे क्या बुराई है. हो सकता है कि, मेरा ऐसा सोचना ग़लत हो. लेकिन जो मेरे दिल मे था. वो मैने तुझे बता दिया."

मेरी बात सुन कर मेहुल थोड़ा भावुक हो गया और उसने मुझे गले से लगा लिया और कहने लगा.

मेहुल बोला "भाई तू कभी ग़लत सोच ही नही सकता. लेकिन मेरा यकीन कर. कल मैं सोना नही चाहता था. मगर जब पापा सो गये तो, मैं भी ऐसे ही आँख बंद करके लेट गया. फिर पता ही नही चला कि मुझे कब नींद आ गयी. मगर अब से ऐसा नही होगा. हम दोनो मिलकर उनका पूरा ख़याल रखेगे. अब तुझे मुझसे कोई शिकायत नही होगी."

मैं बोला "चल जो हुआ. उसे भूल जा. तुझे मेरी बात समझ मे आ गयी. इतना ही बहुत है. अब 2 बजने वाले है और राज मेरा वहाँ वेट कर रहा होगा. इसलिए उसे ज़्यादा वेट करना ठीक नही है. मैं निकलता हूँ. तुझे रात को जितने समय भी आना हो, आ जाना. तुझे जल्दी आने की चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. मैं वहाँ हूँ."

ये कहते हुए मैने प्रिया वाला मोबाइल भी अपने साथ रख लिया. क्योकि मैं प्रिया से बात करके, पार्टी मे जाने से लेकर कल मेरे मिलने तक की सारी बातें जानना चाहता था. मोबाइल रखने के बाद मैं मेहुल और निक्की को बाइ बोल कर कमरे से बाहर निकल आया.

मैं अभी घर से बाहर निकला ही था कि, तभी मुझे प्रिया टॅक्सी से उतरते दिखी. वो इस समय ब्लॅक स्कर्ट और वाइट टॉप पहने थी. जो हमेशा की तरह ही छोटे ही थे. मैने अपने मन मे सोचा कि "ये लड़की कभी नही सुधर सकती."

प्रिया टॅक्सी से अपना समान उतार रही थी. शायद वो अपनी सहेली के साथ कुछ खरीदारी करके लौटी थी. मैं टॅक्सी के पास गया और टॅक्सी वाले से हॉस्पिटल चलने के बारे मे पुछा तो, उसने हाँ कहा. फिर मेरी प्रिया से एक दो बातें हुई और फिर मैं उसे बाइ करके हॉस्पिटल के लिए निकल गया.

मैं बिल्कुल सही समय पर हॉस्पिटल पहुच गया था. वहाँ पहुचते ही मैने राज को घर भेज दिया. फिर मैं 1 घंटे तक अंकल के पास ही बैठा रहा. उसके बाद 3 बजे मैं नीचे आया.

नीचे आकर मैने प्रिया को कॉल लगाया और उस से बातों बातों मे पार्टी से लेकर कल तक की सारी बातें पता करता रहा.

प्रिया को मुझसे बात करके अच्छा लग रहा था. उसके मन मे एक पल के लिए भी, इन बातों को लेकर ये सोच नही आई कि, मैं ये सब बातें उस से क्यों मालूम कर रहा हूँ. वो मुझे सब बातें बताती चली गयी. जब मैने उस से सारी बातें पता कर ली. तब मैने उस से बाद मे बात करने का कह कर फोन रख दिया और मैं वापस अंकल के पास आ गया.

उसके बाद 5 बजे राज आ गया. राज के आने के बाद हम दोनो बारी बारी से उपर नीचे होते रहे. जब मैं 9 बजे नीचे आया. तब मैं घर फोन लगा कर अमि, निमी, छोटी माँ और आंटी से बात करने लगा. मेरी उनसे बात चल ही रही थी. तभी 9:30 बजे मेहुल भी आ गया. उसने भी सब से बात की और फिर 10 बजे वो उपर चला गया.

उसके उपर जाने के बाद राज नीचे आया और फिर हम दोनो घर वापस आ गये. घर आकर हम सब ने एक साथ खाना खाया. जिसमे 11 बज गये. फिर सब एक दूसरे को गुड नाइट बोल कर अपने अपने कमरे मे चले गये.

आज मुझे बहुत थकान हो रही थी और रात को नींद पूरी ना होने की वजह से आँखे भी नींद से भरी हुई थी. लेकिन मुझे आज कीर्ति से बात भी करना था. इसलिए मैं बिस्तर पर लेट कर, कीर्ति के कॉल आने का वेट करने लगा. लेकिन थकान और नींद पूरी ना होने की वजह से, पता ही नही चला कि कब मेरी नींद लग गयी.

ना जाने मैं कितनी देर तक सोता रहा और फिर अचानक ही मेरी नींद खुल गयी. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी झपकी लग गयी हो. क्योकि अभी भी मेरी आँखों मे नींद भरी हुई थी. मैने अल्साते हुए टाइम देखा. लेकिन टाइम देखते ही, एक पल मे मेरी सारी नींद भाग गयी.

अभी रात के 2 बजे का टाइम हुआ था. टाइम देखने के बाद ही मैने नया वाला मोबाइल उठा कर देखा. मुझे लग रहा था कि, उसमे कीर्ति के बहुत से कॉल आए होंगे. लेकिन उसे देखते ही मुझे निराशा हुई. क्योकि उसमे कीर्ति के सिर्फ़ 2 कॉल थे और दोनो 12 बजे के पहले के थे.

मैने सोचा शायद उसने दूसरे मोबाइल पर कॉल किए होगे. ये सोच कर मैं दूसरे मोबाइल को देखने लगा. लेकिन उसमे भी कीर्ति का सिर्फ़ एक कॉल 12 बजे का था. उसके तीनो ही कॉल 12 बजे के आस पास के थे. जिस से सॉफ पता चल रहा था कि, शायद इसके बाद वो सो गयी थी.

मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि, यदि मेरी नींद लग गयी थी तो, उसे कम से कम कॉल करके मुझे जगाने की कोशिस तो करना चाहिए थी. उसके इस बर्ताव से ना जाने क्यो मुझे बहुत दुख हो रहा था.

कीर्ति के मुझे जगाने के लिए कोशिस ना करने से मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे उसे मुझसे बात करने के लिए, कोई बेचैनी नही थी. इस बात को सोचते ही मेरा दिल बैठ गया और मैं उदास हो गया. अब मेरी कीर्ति को कॉल करने की हिम्मत भी जबाब दे गयी.

फिर भी मैं उसे इस बात का अहसास तो, कराना चाहता था कि, मैं उस से बात करने के लिए रात को जागता रहा. इसलिए मैने मोबाइल पर एक छोटा सा मेसेज टाइप किया "सॉरी जान, मेरी नींद लग गयी थी." और उसे सेंड कर दिया.

लेकिन मेसेज सेंड करने के दूसरे ही पल मेरी सारी उदासी गायब हो गयी और मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा. क्योकि मेरे मेसेज भेजने के बाद ही कीर्ति का कॉल आने लगा. मगर अब मैं उस पर झूठा गुस्सा दिखाना चाहता था. इसलिए मैने कॉल नही उठाया.

उसने दो तीन बार कॉल किया पर मैं खामोशी से कॉल आते देखता रहा. जब मैने कॉल नही उठाया तब कीर्ति ने मुझे मेसेज किया.

कीर्ति का मेसेज
"तुमको पा कर अब खोना नही चाहती.
इतना खुश हो कर अब रोना नही चाहती.
ये हाल है मेरा तुम्हारे इंतजार मे.
नींद है आँखों मे पर सोना नही चाहती."

मैने मेसेज पढ़ा तो, मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी. लेकिन मैने उसके इस मेसेज का कोई जबाब नही दिया. क्योकि मैं उस से बात करना चाहता था और उसके कॉल का आने का इंतजार कर रहा था. उसके कॉल का मुझे ज़्यादा इंतजार नही करना पड़ा. उसने मेसेज करने के कुछ देर बाद ही कॉल लगा दिया.

मैने खुशी खुशी उसका कॉल उठाया और झूठा गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला "क्यो कॉल लगा रही है. मैने तुझसे बात करने के लिए मेसेज नही किया था. मैने सिर्फ़ ये बताने के लिए मेसेज किया था कि, मेरी नींद लग गयी थी और अभी मैं इतने समय नींद से जागा हूँ."

अपना झूठा गुस्सा दिखाने के बाद, मैं कीर्ति के जबाब का इंतजार करने लगा. मैने सोचा था कि, कीर्ति मुझे गुस्सा होते देख कर मुझे मनाने की कोसिस कारगी. लेकिन यहा तो उल्टे लेने के देने पड़ गये. वो मुझे मनाने की जगह खुद ही गुस्सा करते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली "मैने भी तुमसे बात करने के लिए कॉल नही किया. तुम्हारा मेसेज आया था तो, ये बताने के लिए कॉल किया था कि, मैं अभी जाग रही हूँ."

मैं बोला "अब तूने बता दिया ना. अब तू फोन रख."

कीर्ति बोली "आए तुम ये मुझसे किस तरह से बात कर रहे हो. मैं तुम्हे कोई कुत्ति उत्ती समझ मे आ रही हूँ कि, जो तुम्हारे मन मे आया, बके जा रहे हो."

उसकी ये बात सुन कर तो मेरा सर ही घूम गया. मुझे लगा कि उसका पारा बहुत ज़्यादा गरम है. अब ज़्यादा मज़ाक करना बहुत महगा पड़ सकता है. इसलिए मैने अपनी कही बात को समझाते हुए कहा.

मैं बोला "मैं ऐसा कुछ नही समझ रहा हूँ. मेरे कहने का मतलब था कि, तूने अपनी बात बता दी और मैने सुन भी ली. अब तू फोन रख सकती है."

कीर्ति बोली "मैं क्यो फोन रखूं. तुमने मुझे नौकर वौकर समझ के रखा है क्या. जब तुम्हारी मर्ज़ी हो मैं फोन लगाऊ और जब तुम्हारी मर्ज़ी हो मैं फोन रख दूं. मैं कोई फोन वोन नही रखने वाली. यदि तुम्हे परेशानी है तो, तुम फोन रखो."

मैं बोला "फोन तूने लगाया है. मैं क्यो फोन रखूं. तू फोन रख."

कीर्ति बोली "मैं किसी भी हालत मे फोन नही रखुगी. फोन तो तुमको ही रखना पड़ेगा."

अब भला मैं कैसे फोन रख सकता था. मुझे तो उस से बात करना था. लेकिन अपना झूठा गुस्सा दिखा कर मैं खुद फस गया था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "तो फिर पकड़ी रहो फोन. क्योकि मैं भी फोन नही रखुगा."

कीर्ति बोली "ओके, मत रखो. मैं भी नही रखुगी."

इसके बाद हम दोनो ही चुप हो गये. लेकिन उसके फोन ना रखने से, मैं ये तो समझ गया था कि, वो भी मेरी तरह झूठा गुस्सा दिखा रही है. लेकिन शायद वो भी मेरी तरह यही चाहती थी कि, मैं उसे मनाऊ. मगर ना तो मैं उस से कुछ कह रहा था और ना वो कुछ कह रही थी. बस हम दोनो फोन पकड़ कर चुप चाप बैठे रहे.

कुछ देर तक तो मैं मोबाइल पकड़ कर ऐसे ही चुप बैठा रहा. लेकिन जब कीर्ति की तरफ से, बात करने की कोई पहल नही हुई. तब मैने अपना दूसरा मोबाइल उठाया और कीर्ति के पुराने मेसेज पढ़ने लगा. मगर कीर्ति को शायद इस बात का अहसास हो गया था कि, मैं कुछ कर रहा हूँ.

क्योकि उसकी तरफ से भी कुछ करने की आवाज़ आने लगी. मैने ध्यान से सुना तो ऐसा लगा. जैसे वो किसी किताब के पन्ने पलट रही हो. मैने सोचा कि, वो कोई किताब पढ़ रही है. लेकिन कुछ ही पल बाद उसके पन्ने पलटने की आवाज़ तेज हो गयी.

तब मुझे समझ मे आया कि, वो किताब नही पढ़ रही. बल्कि मोबाइल के सामने किताब को रख कर उसके पन्ने पलट कर, मुझे परेशान कर रही है. उसकी इस हरकत पर मुझे फिर हँसी आ गयी. लेकिन मैं चुप ही रहा.

मगर अचानक ही पन्ने पलटने की आवाज़ तेज हो गयी और मुझे उनकी खरखराहट से परेशानी होने लगी. तब मैने गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला "ये तू मोबाइल मे खर खर क्यो कर रही है. मुझे परेशानी हो रही है."

कीर्ति बोली "मैं किताब पढ़ रही हूँ. यदि तुम्हे परेशानी हो रही है. तो तुम मोबाइल एक किनारे रख दो."

मैं बोला "ठीक है."

ये कह कर मैने मोबाइल को पलटा कर कान मे लगा लिया. ताकि उसे लगे कि मैने मोबाइल नीचे रख दिया. वो थोड़ी देर तो किताब के पन्ने पलटती रही. लेकिन जब उसे लगा कि, मैने सच मे मोबाइल नीचे रख दिया है. तब उसने ना जाने क्या सोचा और कॉल काट दिया.

मुझे लगा कि शायद वो गुस्सा हो गयी है. लेकिन दूसरे ही पल फिर से उसका कॉल आ गया. मैने कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला "अब क्या है. कॉल काट कर क्यो लगा रही हो."

कीर्ति बोली "मैने कॉल नही काटा. कॉल खुद कट गया था."

मैं बोला "यदि कॉल कट गया था, तो तुझे कॉल वापस लगाने की क्या ज़रूरत थी."

कीर्ति बोली "मेरी मर्ज़ी."

मैं बोला "देख मुझे बेकार मे परेशान करना बंद कर दे."

कीर्ति बोली "मैं तुम्हे परेशान कर रही हूँ, या तुम मुझे परेशान कर रहे हो."

मैं बोला "मैने तुझे क्या परेशान किया."

कीर्ति बोली "एक तो मैं तुमसे बात करने के लिए इतनी रात तक जागती रही. उपर से तुमने कॉल उठाते ही मुझ पर गुस्सा करना शुरू कर दिया."

मैं बोला "मैं गुस्सा क्यों ना करूँ. जब मैने तुझसे कहा था कि, मुझे तुझसे रात को बात करना है. तब तूने मुझे कॉल क्यो नही लगाया."

कीर्ति बोली "ज़रा अपने मोबाइल मे देखो. मैने तुम्हे कॉल लगाया है कि नही लगाया."

मैं बोला "मुझे कुछ देखने की ज़रूरत नही है. मैं सब देख चुका हूँ. तूने मुझे सिर्फ़ 3 कॉल लगाए है और तीनो के तीनो कॉल 12 बजे के पहले के है. यदि तू जाग रही थी. तो फिर तूने मुझे
उसके बाद जगाने की कोशिस क्यो नही की थी."

मेरी इस बात का जबाब कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से दिया. उसने मुझे समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "मुझे लगा कि तुम्हे थकान की वजह से नींद आ गयी है. इसलिए मैने सोचा कि तुम्हे थोड़ा सो लेने दूं. फिर 3 बजे जगा दुगी. लेकिन तुम उसके पहले ही जाग गये."

उसकी ये बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी और मैने उस से कहा.

मैं बोला "यदि तुझे मेरा इतना ही ख्याल है तो, फिर अभी वो बकवास की बात क्यो कर रही थी."

कीर्ति बोली "कौन सी बात."

मैं बोला "वही कुत्ति उठी, नौकर वौकर समझने वाली बात. मैने तुझे ऐसा कब समझा."

कीर्ति बोली "वो मैं सच मे थोड़ी ही बोल रही थी. वो तो मैं तुमको परेशान करने के लिए बोल रही थी."

मैं बोला "मैं तेरे उपर गुस्सा कर रहा था और तू मुझे मनाने की जगह मुझे और गुस्सा दिला रही थी."

कीर्ति बोली "मैं समझ गयी थी कि, तुम मेरे उपर झूठा गुस्सा दिखा रहे हो. इसलिए मैं भी तुम पर झूठा गुस्सा करने लगी."

उसकी बात सुन कर मुझे हँसी भी आई और उस पर बहुत प्यार भी आया. मैने उस से कहा.

मैं बोला "अच्छा ये बता, तू इतनी देर से जाग रही है. इतनी देर तक तू जाग कर क्या करती रही."

कीर्ति बोली "कुछ नही बस डाइयरी लिख रही थी."

मैं बोला "तू डाइयरी लिखती है और मुझे कभी बताया भी नही."

कीर्ति बोली "ये भी कोई बताने की बात है. ये तो मेरी फालतू की आदत है. जो भी उल्टा सीधा मन मे आता है. लिख देती हूँ."

मैं बोला "अभी क्या लिखा. मुझे भी पढ़ के सुना."

कीर्ति बोली "छोड़ो ना. जब यहाँ आना तो, खुद पढ़ लेना."

मैं बोला "क्या तुझे अभी पढ़ कर सुनाने मे कुछ परेशानी है."

कीर्ति बोली "परेशानी नही है मगर तुम सुनकर हँसोगे."

मैं बोला "चल मैं नही हँसुंगा. अब तो पढ़ कर सुना."

कीर्ति बोली "ठीक है, सुनाती हूँ मगर हँसना मत."

मैं बोला "ओके, अब सुना."

कीर्ति डाइयरी पढ़ने लगी
"लफ़्ज़ों की चाँदनी भी
फीकी फीकी लगती है.
आज शाम की पलक भी
भीगी भीगी लगती है.
एक तेरे ना होने के कारण
मेरे इस पागल मन को.
ये सारी की सारी दुनिया भी
सूनी सूनी लगती है."

इतना सुना कर वो चुप हो गयी. लेकिन उसकी इन लाइन को सुन कर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, उसको इस समय मेरी कमी कितनी अखर रही है. मैने उसका दिल बहलाने के लिए कहा.

मैं बोला "मुझे तो पता ही नही था कि, तू इतना अच्छा लिखती है. भला इतना अच्छा सुनने के बाद कोई क्यो हँसेगा. चल अब आगे सुना."

कीर्ति बोली "अब आगे क्या. ये तो यही ख़तम हो गया."

मैं बोला "ये तो मुझे भी मालूम है. मेरा मतलब है कि, अब जो तूने आगे लिखा है. वो सुना."

कीर्ति बोली "अब रहने दो ना. मुझे अच्छा नही लग रहा है."

मैं बोला "लेकिन मुझे अच्छा लग रहा है. तू आगे सुना."

कीर्ति बोली "ठीक है सुनाती हूँ. लेकिन ये आख़िरी है. इसके बाद तुम और सुनने की ज़िद नही करोगे."

मैं बोला "ओके बाबा. मैं इसके बाद कोई ज़िद नही करूगा. अब तू सुना."

कीर्ति फिर पढ़ने लगी.
"किस्मत के सितारों पर,
ज़माने के इशारों पर,
उदासी के किनारों पर,
कभी वीरान शहरों पर,
कभी सुनसान राहों पर,
कभी हैरान आँखों मैं,
कभी बेजान लम्हों मैं,
तुम्हारी याद चुपके से,
जब करवट बदलती है,
ये पलकें भीग जाती हैं,
दो आँसू टूट गिरते हैं,
मैं पलकों को झुकाती हूँ,
बाहर से मुस्कुराती हूँ,
सिर्फ़ इतना ही बोल पाती हूँ,
मुझे तुम कितना सताते हो,
मुझे तुम याद आते हो,
मुझे तुम याद आते हो."

इस कविता की आख़िरी कुछ पंक्तियाँ पढ़ते पढ़ते, कीर्ति की आवाज़ भर्रा गयी थी. शायद उसकी आँखों मे आँसू आ गये थे. मैं ये बात इस लिए इतने यकीन से कह सकता हूँ, क्योकि उन्हे सुनते सुनते खुद मेरी आँखों मे नमी छा गयी थी.

मुझे उन पंक्तियों मे उसका वो उदास चेहरा नज़र आ रहा था. जो चेहरा अब तक वो मुझसे भी छुपाये रखी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसने इन थोड़ी सी पंक्तियों मे, अपने दिल का सारा दर्द निचोड़ कर रख दिया हो. उसके उस दर्द को महसूस कर, मैं अपने आँसुओं को निकलने से ना रोक सका.

कीर्ति की कविता ने अंजाने मे, मेरे अंदर की उस तड़प को हवा दे दी थी. जो उस से जुदा होने के बाद, अब तक किसी चिंगारी की तरह मेरे अंदर दबी हुई थी. मेरे अंदर जुदाई की एक ऐसी आग जल उठी थी. जिसका धुआँ आँसू बन कर मेरी आँखों से निकल रहा था.

मैं कीर्ति का नाम पुकारना चाहता था. मगर मेरे आँसुओं ने मेरे होंठों को सील दिया था. मेरी आँखें आँसुओं की बरसात किए जा रहे थी, और मेरे होंठ उन्हे पीते जा रहे थे. मुझे बस कीर्ति का उदास चेहरा दिखाई दे रहा था. जो बार बार मुझसे कह रहा था. "मुझे तुम कितना सताते हो. मुझे तुम याद आते हो, मुझे तुम याद आते हो."

मैं उस समय अपने आपको बहुत बेबस महसूस कर रहा था. अजीब सा हाल हो गया था मेरा. लेकिन जो हाल मेरा यहाँ था. शायद वही हाल, वहाँ पर कीर्ति का भी था. वो भी खामोशी से अपने आँसू रोकने की कोशिस कर रही थी. हम दोनो ही एक दूसरे से अपना दर्द छुपाने मे लगे थे.

लेकिन अचानक ही मुझे ऐसा लगा. जैसे कीर्ति उठ कर कहीं जा रही है. मेरी ये सोच मुझे तब सही लगी. जब मुझे दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. मैने भर्राई हुई आवाज़ मे उस से कहा.

मैं बोला "जान, क्या हुआ. तुम कहाँ जा रही हो."

लेकिन उसकी कोई आवाज़ नही आई. शायद वो मोबाइल कान मे नही लगाई थी. मैने फिर कहा.

मैं बोला "हेलो हेलो जान. तुम कहाँ हो. मेरी बात का जबाब क्यो नही दे रही."

लेकिन तभी मुझे कोई दूसरा दरवाजा भी खुलने की आवाज़ आई. मुझे कुछ समझ मे नही आया कि, ये इतनी रात को उठ कर कहाँ जा रही है. मैं बस हेलो हेलो कर रहा था. मगर उसकी तरफ से कोई जबाब नही आ रहा था.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कीर्ति जैसी समझदार लड़की से किसी ग़लत हरकत की उम्मीद ही नही की जा सकती थी. लेकिन फिर भी अब मैं सहमा हुआ सा था. जब मैने देखा कि, वो मेरी किसी बात का जबाब नही दे रही है. अब मेरे पास उसे मेसेज करके अपनी बात कहने के सिवा कोई और रास्ता नही बचा था. सोचा.

मैं अभी उसे मेसेज करने की सोच ही रहा था. तभी मुझे उसके सिसकने की आवाज़ सुनाई दी. शायद यही वजह थी कि, वो मेरे या अपने कमरे मे चली गयी थी. मगर अभी भी वो मेरी बात नही सुन रही थी.

आख़िर मे मैने उसे एक मेसेज करने का फ़ैसला किया और उसे मेसेज टाइप कर के भेजा. "जान प्लीज़ मुझसे बात करो. तुम्हे मेरी कसम."

मेरे इस मेसज का असर ये हुआ कि, अब मुझे उसकी सिसकियाँ साफ साफ सुनाई देने लगी. शायद उसने मोबाइल, अपने कान मे लगा लिया था. मुझे ये बात समझ मे आते ही मैने उस से कहा.

मैं बोला "जान, तुम अभी तो इतनी अच्छी भली मुझसे बात कर रही थी. फिर तुम्हे अचानक ये क्या हो गया. क्या तुम्हे मेरी कोई बात बुरी लगी है."

लेकिन उसने मेरी बात का कोई जबाब नही दिया और मुझे एक ज़ोर से तडाक की आवाज़ सुनाई दी. जिसे सुनते ही मैं काँप गया. शायद उसने गुस्से मे किसी चीज़ को फेका था.

उसकी इस हरकत से साफ समझ मे आ रहा था कि, वो अभी अपने कमरे मे है और बहुत ज़्यादा गुस्से मे है. लेकिन उसके इस गुस्से का कारण मैं नही जानता था. मैने उसे शांत करने की गरज से फिर कहा.

मैं बोला "जान प्लीज़, तुम्हे मेरी कसम. अपना गुस्सा शांत करो. तुम्हे जो भी बात परेशान कर रही है. तुम मुझे बताओ. मैं तुम्हारी हर परेशानी दूर करूगा."

मगर मेरी बात सुनकर, उसकी सिसकियाँ रोने मे बदल गयी. मैने कुछ बोलने के लिए मूह खोला ही था कि, तभी फिर से मुझे किसी चीज़ के टूटने की आवाज़ आई. मेरी बात मेरे मूह मे ही रुक कर रह गयी.

वो शायद अपने आपको शांत करने की कोसिस कर रही थी. मगर खुद को शांत ना होते देख, गुस्से मे कमरे मे रखे समान को फेके जा रही थी.

उसका दर्द अब मैं समझ चुका था. वो मेरी जुदाई को सह नही पा रही थी. उसके इस दर्द को समझते ही मेरी आँखे, फिर आँसुओं मे भीग गयी और मैने पहली बार, उसे अपने दिल से कुछ लिख कर भेजा.
"तेरी बेरूख़ी से बिखर जाता हूँ मैं.
तेरी खामोशी से डर जाता हूँ मैं.
जब गिरते है तेरी आँखों से आँसू.
ना जाने कितनी मौत मर जाता हूँ मैं."

"जान प्लीज़ अपने आपको सम्भालो.
मैं तुम्हे ऐसे टूटते नही देख सकता."

मेरे मेसेज को पढ़ कर, शायद कीर्ति को भी मेरी हालत का अहसास हो गया था. लेकिन आज वो चाह कर भी, खुद को संभाल नही पा रही थी. उसने बड़ी मुस्किल से काँपती हुई आवाज़ मे, रोते हुए, मुझसे सिर्फ़ इतना कहा.

कीर्ति बोली "प्लीज़ तुम वापस आ जाओ."

मैं बोला "मैं आ जाउन्गा जान."

लेकिन मेरी बात सुन कर भी उसका रोना कम नही हुआ. उसने रोते हुए फिर अपनी बात को दोहराया.

कीर्ति बोली "नही तुम अभी वापस आओ. मैं तुम्हारे बिना नही रह पा रही हूँ."

मैं बोला "ठीक है जान. मैं अभी आता हूँ. लेकिन जब तक तुम अपने आपको संभालॉगी नही. मैं यहाँ से कैसे निकल सकता हूँ."

मगर उस पर मेरी किसी बात का कोई असर नही हो रहा था. वो किसी छोटे बच्चे की तरह रोते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली "नही, मुझे कुछ नही सुनना. कुछ नही समझना. तुम अभी वहाँ से निकलो."

मैं उसकी ऐसी हालत को सह नही पा रहा था. मेरे पास इस समय उसकी बात मानने के सिवा कोई रास्ता नही था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "ठीक है जान, मैं तुम्हे कुछ नही सम्झाउन्गा. तुम चाहती हो तो, मैं अभी यहाँ से निकलता हूँ. बस एक मिनट रूको ज़रा मैं टॅक्सी बुला लूँ."

मेरी बात सुनकर भी उसका रोना बंद नही हुआ था. हाँ थोड़ा सा कम ज़रूर हो गया था. मैने अपना दूसरा मोबाइल उठाया और अजय को कॉल लगा दिया. उसने कॉल उठाने मे, ज़्यादा टाइम नही लगाया और कॉल उठाते ही कहा.

अजय बोला "हेलो, इतनी रात को कैसे याद किया. क्या अभी हॉस्पिटल मे हो."

मैं बोला "नही यार, मैं घर मे हूँ. लेकिन मुझे तुमसे एक ज़रूरी काम आ गया है. क्या तुम आज रात भी टॅक्सी चला रहे हो."

अजय बोला "हाँ, मेरी टॅक्सी अभी हॉस्पिटल के बाहर ही खड़ी है. तुम बोलो, तुम्हे इतनी रात को क्या काम आ गया."

मैं बोला "मुझे अभी के अभी, एरपोर्ट जाना है. क्या तुम मुझे वहाँ तक छोड़ने के लिए आ सकते हो."

अजय बोला "ये भी कोई पुछ्ने की बात है. मैं अभी तुम्हे लेने निकलता हूँ. लेकिन ये अचानक तुम कहाँ जा रहे हो."

मैं बोला "अभी कुछ मत पुछो. तुम जितनी जल्दी हो सके यहाँ आ जाओ. मैं तुम्हे मिल कर सब बताता हूँ."

अजय बोला "ठीक है, तुम तैयार रहो. मैं 10 मिनट मे पहुचता हूँ."

मैं बोला "ओके, मैं तुम्हे बाहर ही मिल जाउन्गा."

ये कह कर मैने फोन रख दिया. मैं अजय से बात करने मे ज़रूर लगा था. लेकिन मेरा पूरा ध्यान कीर्ति की तरफ ही था. मेरी बात सुनते सुनते, कीर्ति का रोना, अब पूरी तरह से बंद हो चुका था. बस अब उसके थोड़े बहुत सिसकने की आवाज़ आ रही थी.

मैने उस से कुछ भी नही कहा और फिर दूसरा कॉल लगाने लगा. जब उसे समझ मे नही आया कि, अब मैं क्या कर रहा हूँ. तब उसने कहा.

कीर्ति बोली "अब बैठे क्यो हो. टॅक्सी आ रही है. जल्दी से तैयार हो जाओ."

मैं बोला "एक कॉल लगा लूँ. फिर तैयार होता हूँ."

कीर्ति बोली "अब किसे कॉल लगा रहे हो."

मैं बोला "निक्की को कॉल लगा रहा हूँ. शायद वो गहरी नींद मे है. इसलिए कॉल उठा नही रही है."

कीर्ति बोली "उसको क्यो कॉल लगा रहे हो."

मैं बोला "अरे मैं घर से बाहर जाउन्गा तो, कोई दरवाजा बंद करने वाला भी तो, होना चाहिए. अभी यहाँ बाकी सब लोग तो, गहरी नींद मे होगे. एक वही है, जो अभी जाग सकती है."

अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, निक्की ने कॉल उठा लिया. मैने उसके कॉल उठाते ही कहा.

मैं बोला "सॉरी आपको इतनी रात को नींद से जगाया. लेकिन मुझे अचानक काम से बाहर जाना पड़ रहा है. क्या आप आकर दरवाजा बंद कर सकती है."

निक्की बोली "आप 5 मिनट वेट करिए. मैं अभी आती हूँ."

उसके फोन रखने के बाद मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "लो मेरे यहाँ से निकलने का सारा इंतज़ाम हो गया है. अब तू फोन रख. हम लोग सुबह मिलते है."

कीर्ति बोली "नही मैं तुम्हारे प्लेन मे बैठने तक, फोन नही रखुगी."

मैं बोला "लेकिन तू फोन चालू रख के क्या करेगी. अभी निक्की आ जाएगी और फिर अजय आ जाएगा. उनके लोगों के सामने, मैं तुझ से बात नही कर पाउन्गा."

कीर्ति बोली "मैं बात करने को नही बोल रही. तुम बस फोन चालू रखे रहो. मैं तुम लोगों की बात सुनती रहूगी."

उसकी ये बात सुन कर, मैने उस से कुछ और बोलने के लिए अपना मूह खोला. मगर फिर उसके बिगड़े मूड का ख़याल आते ही, मैने अपनी बात को बदलते हुए उस से कहा.

मैं बोला "ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी. मैं फोन चालू रखता हूँ. लेकिन मैं तुझसे बात नही कर पाउन्गा. अब मैं तैयार होने जा रहा हूँ."

कीर्ति बोली "ठीक है."

उसके इतना कहने के बाद मैं तैयार होने लगा. मैं ये सब ऐसे किए जा रहा था. जैसे कि ये सब कोई छोटी सी बात हो. मगर मेरे लिए सच भी यही था. मेरे लिए उसकी खुशी से बढ़कर कुछ नही था और मैं किसी भी हालत मे उसे खुश देखना चाहता था.

यही वजह थी कि, मैं बिना कोई बहस किए. वैसा करने को तैयार हो गया. जैसा कीर्ति चाहती थी. मेरे लिए उसके आँसुओं को देखने से कही ज़्यादा आसान ये सब करना था.

मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ और तभी निक्की भी आ गयी. निक्की ने दरवाजा खटखटाया तो, मैने कीर्ति वाला मोबाइल अपने जेब मे रखते हुए दरवाजा खोला.

निक्की इस समय ब्लॅक नाइट सूट मे थी और शायद घहरी नींद से जागने की वजह से, अपने चेहरे को धोकर आई थी. उसने मुझे तैयार खड़ा देख कर कहा.

निक्की बोली "आप इतनी रात को कहाँ जा रहे है."

मैं बोला "मुझे ज़रूरी काम आ गया है. इसलिए मैं अभी घर जा रहा हूँ."

निक्की बोली "लेकिन इतनी अचानक क्यो. घर मे सब ठीक तो है."

मैं बोला "घर मे सब ठीक है. लेकिन किसी से मेरा मिलना बहुत ज़रूरी है. इसलिए जा रहा हूँ."

मेरी बात सुनकर निक्की ने हंसते हुए कहा.

निक्की बोली "आप बुरा ना माने तो, एक बात बोलूं."

मैं बोला "आपको जो भी बोलना है. आप बोल सकती है. मैं आपकी किसी बात का बुरा नही मानूँगा."

निक्की बोली "आप को ऐसा नही लगता कि, ये कुछ ज़्यादा हो रहा है. मैं मानती हूँ कि, आप दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते है. लेकिन अभी आप जो करने जा रहे है. उसे सिर्फ़ एक पागलपन ही कहा जा सकता है."

मैं बोला "प्यार मे कुछ भी ज़्यादा नही होता है. फिर जिस प्यार मे पागलपन ना हो. वो प्यार ही क्या. वो तो सोच समझ कर किया गया सौदा ही कहलाएगा."

निक्की बोली "ओके आप जीते और मैं हारी. लेकिन ये तो बता जाइए कि, यदि कोई मुझसे आपके बारे मे कुछ पुछेगा तो, मैं उस से क्या कहुगी."

मैं बोला "आपको किसी से कुछ कहने की ज़रूरत ही नही पड़ेगी. मैं खुद ही सबको फोन करके बता दूँगा. यदि फिर भी आप से कोई कुछ पुछे तो, आप बस इतना बोल दीजिएगा कि, मैं बाहर जा रहा था, इसलिए मैने आपको दरवाजा बंद करने के लिए बुलाया था."

निक्की बोली "ठीक है. लेकिन आप चले जाएगे तो, मेहुल अकेला परेशान नही हो जाएगा."

मैं बोला "मैं रात तक वापस आ जाउन्गा. यदि हो सके तो, आप आज बस ये सब संभाल लीजिए."

निक्की बोली "आप बेफिकर होकर जाइए. मैं आपके समय पर हॉस्पिटल पहुच जाउन्गी. मैं मेहुल या अंकल को आपकी कमी नही अखरने दुगी."

मैं बोला "थॅंक, और हो सके तो, अपना मोबाइल अपने पास ही रखिएगा. हो सकता है कि, मुझे आपसे कोई ज़रूरी बात करना पड़ जाए."

निक्की बोली "मेरा मोबाइल मेरे पास ही रहेगा. आप जब चाहे तब कॉल लगा सकते है. लेकिन एक बात बताइए, क्या आपको इतनी समय यहाँ से जाने के लिए टॅक्सी और वहाँ पहुचने पर कोई फ्लाइट मिल जाएगी."

मैं बोला "फ्लाइट का तो मुझे पता नही है. हाँ मगर वहाँ तक पहुचने के लिए टॅक्सी ज़रूर मिल जाएगी. "

मेरी बात सुनकर निक्की मुझे हैरत भरी नज़र से देखने लगी और फिर पुच्छने लगी.

निक्की बोली "इतनी रात को आपको घर बैठे टॅक्सी कहाँ से मिल जाएगी."

मैं बोला "मेरा एक दोस्त है. वो रात को ही टॅक्सी चलाता है. मैने उसे बुलाया है. अब तक तो वो शायद घर के बाहर आकर खड़ा भी हो गया होगा."

निक्की बोली "जब आपने टॅक्सी का इंतेजाम कर लिया है तो, मुझे उम्मीद है कि, आप फ्लाइट का भी कुछ ना कुछ कर ही लेगे."

मैं बोला "अब ये तो वहाँ पहुचने पर ही पता चलेगा. लेकिन अब मुझे निकलना होगा. मेरा दोस्त बाहर खड़ा मेरा इंतजार कर रहा होगा."

निक्की बोली "चलिए मैं आपको दरवाजे तक तो, छोड़ ही आती हूँ."

ये कहते हुए वो मेरे साथ दरवाजे तक आई. उसे सच मे घर के सामने टॅक्सी खड़ी दिखाई दी तो, वो मुस्कुराने लगी. लेकिन जैसे ही उसकी नज़र अजय पर पड़ी. वो चौुक्ते हुए कहने लगी.

निक्की बोली "ये आपके दोस्त है. आपकी इनसे दोस्ती कब हो गयी."

मैं बोला "हाँ ये ही मेरे दोस्त है. लेकिन आप इन्हे कैसे जानती है."

मेरी बात सुन कर निक्की हंसते हुए कहने लगी.

निक्की बोली "मैं इनके बारे मे इतना कुछ जानती हूँ. जितना कुछ आप भी नही जानते होगे. मैं ये सब कैसे जानती हूँ. ये बहुत लंबी बात है और अभी आपके पास, इतनी लंबी बात सुनने का समय नही है. मगर अब मैं इनको आपके साथ देख कर, यकीन के साथ कह सकती हूँ कि, यदि आपने जाने का इरादा नही बदला तो, आपकी फ्लाइट का इंतेजाम भी हो जाएगा."

मैं बोला "थॅंक्स, अब आप दरवाजा बंद कर लीजिए. मैं निकलता हूँ."

निक्की बोली "ओके, जब वहाँ पहुच कर, उनसे मिलिएगा तो, मेरी तरफ से उनको हेलो बोल दीजिएगा."

मैं बोला "ठीक है, बोल दूँगा, बाइ."

निक्की बोली "बाइ."

फिर निक्की ने दरवाजा बंद कर लिया और मैं अजय के पास आ गया. अजय मुझे देखते ही वापस टॅक्सी मे बैठ गया और फिर मेरे बैठे ही उसने टॅक्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा.

अजय बोला "अचानक घर क्यों जा रहे हो. घर मे सब ठीक तो है ना."

मैं बोला "हाँ घर मे सब ठीक है. बस मेरा यहाँ मन नही लग रहा है. इसलिए सोचा कि घर होकर आ जाउ."

अजय बोला "यार हम से तो कुछ मत छुपाओ. कल से तुम्हारा मूड कुछ सही नही चल रहा है. ज़रूर कुछ गड़बड़ हुआ है."

मैं बोला "नही, कुछ भी गड़बड़ नही हुआ है. बात सिर्फ़ ये है कि, आज उसकी बहुत याद आ रही है. उसको देखे बिना रहा नही जा रहा है. इसलिए सोचा कि उसे एक बार देख कर आ जाउ."

मेरी बात सुनते ही अजय का चेहरा खुशी से खिल उठा और उसने कहा.

अजय बोला "ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई. मैं तो कल से ये सोच सोच कर पागल हुआ जा रहा था कि, पता नही तुम्हारी लव स्टोरी मे ऐसा कौन सा मोड़ आ गया है. जिसकी वजह से तुम्हे कल वो सब करना पड़ा था."

मैं बोला "कल भी ऐसी कोई बात नही थी. बस मुझे थोड़ी सी ग़लत फ़हमी हो गयी थी. जिस वजह से मैं वो सब कर गया था."

अजय बोला "चलो अच्छा है. ग़लत फ़हमी समय रहते ही दूर हो गयी. लेकिन तुम्हे ग़लत फ़हमी हुई क्यो थी."

मैं बोला "उसको खो देने के डर ने मेरे दिल दिमाग़ का चलना ही बंद कर दिया था."

अजय बोला "यदि ऐसा है तो, ये तुम्हारी सबसे बड़ी खराबी है. जब तुम उसे इतना प्यार करते हो तो, तुम्हे उस पर उतना विस्वास भी करना चाहिए. क्योकि ग़लत फ़हमी तभी होती है. जब विस्वास कमजोर पड़ता है."

मैं बोला "हाँ तुम ठीक कह रहे हो. मैं भी इस बात को मानता हूँ. लेकिन उस समय उसको खो देने के ख़याल ने मुझे इतना कमजोर कर दिया था कि, मैं कुछ भी सोचने और समझने के लायक ही नही था."

अजय बोला "ये बात तो तुम्हारी सही है. जब कोई अपना प्यार खोने लगता है. तब वो जीते जी मरने के बराबर हो जाता है. तुम मानो या ना मानो मगर ये सच है कि, मुझे ये जानकर बेहद खूही हुई है कि, तुम्हारा प्यार तुम्हारे पास है."

मैं बोला "तुम भी तो किसी से प्यार करते हो. उसका क्या हुआ. क्या उसका प्यार तुमने खो दिया."

अजय बोला "ये बहुत लंबी कहानी है. किसी दिन दोनो जब फ़ुर्सत मे बैठेगे. तब ज़रूर सुनाउन्गा. अभी तो तुम खुशी खुशी अपने प्यार से मिल कर आओ."

मैं बोला "वो तो ठीक है यार. मगर क्या मुझे अभी के अभी किसी फ्लाइट की टिकेट मिल जाएगी.”

अजय बोला “तुम टिकेट की चिंता मत करो. पहले ये फ्लाइट शेड्यूल देख कर ये तय कर लो कि, किस फ्लाइट से तुम्हे जाना है. टिकेट का तो, कुछ ना कुछ इंतेजाम हो ही जाएगा.”

ये कहते हुए अजय ने उसकी टॅक्सी मे रखा एक फ्लाइट शेड्यूल मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैं शेड्यूल देखने लगा.

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एरलाइन्स नेम - फ्लाइट नंबर - डिपचयर टाइम - अराइवल टाइम - टाइम
__________________________________________________________
जेटार ------------ 9डब्ल्यू619 -------- 06:05 ---------- 08:35 -------- 2ह 30म
__________________________________________________________
एर-इंडिया --------- आई675 --------- 06:10 ---------- 08:50 -------- 2ह 40म
__________________________________________________________
जेटायर ------------ 9डब्ल्यू201 -------- 06:35 ---------- 09:20 -------- 2ह 45म
__________________________________________________________
जेटायर ------------ 9डब्ल्यू615 -------- 07:15 ---------- 09:45 -------- 2ह 30म
__________________________________________________________
इंडिगो ----------- 6ए319 --------- 07:45 ---------- 10:30 -------- 2ह 45म
__________________________________________________________
स्पीसेजेट --------- ज़्ग873 --------- 08:15 ---------- 11:00 -------- 2ह 45म
__________________________________________________________
इंडिगो ----------- 6ए321 --------- 09:40 ---------- 12:20 -------- 2ह 40म
__________________________________________________________

मैने फ्लाइट शेड्यूल देखा और फिर अजय से कहा.

मैं बोला “ये दो घंटे बाद 6:05 बजे की फ्लाइट ठीक रहेगी. इस से मे 8:35 बजे वहाँ पहुच जाउन्गा.”

अजय बोला “ठीक है मैं इसकी कोशिस करता हूँ. तुम वहाँ से वापस कब तक लोटोगे.”

मैं बोला “मैं बस आज कुछ देर के लिए ही वहाँ जा रहा हूँ. शाम की किसी फ्लाइट से आज ही वापस आ जाउन्गा.”

अजय बोला “तो फिर वापस आने की भी फ्लाइट देख लो. दोनो की टिकेट एक साथ ही निकाल लेते है. इस से तुमको वहाँ टिकेट के लिए परेशान नही होना पड़ेगा.”

अजय की ये बात मुझे भी सही लगी. मैने फ्लाइट शेड्यूल मे, वापसी की फ्लाइट देखने लगा.

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एरलाइन्स नेम - फ्लाइट न, - डेपतुरे टाइम - अराइवल टाइम - टाइम
_________________________________________________________
जेटायर ----------- 9डब्ल्यू624 ------- 16:00 ----------- 18:45 ------- 2ह 45म
_________________________________________________________
एर-इंडिया -------- आई775 -------- 16:45 ----------- 19:30 ------- 2ह 45म
_________________________________________________________
इंडिगो ---------- 6ए322 -------- 17:25 ----------- 20:00 ------- 2ह 30म
_________________________________________________________
स्पीसेजेट -------- ज़्ग874 -------- 18:00 ----------- 20:45 ------- 2ह 45म
_________________________________________________________
जेटायर ---------- 9डब्ल्यू616 -------- 18:00 ----------- 21:00 ------- 3ह 00म
_________________________________________________________
एर-इंडिया ------- आई673 --------- 19:55 ----------- 22:35 ------- 2ह 40म
_________________________________________________________
इंडिगो --------- 6ए321 --------- 20:40 ----------- 23:25 ------- 2ह 45म
_________________________________________________________
जेटायर ---------- 9डब्ल्यू628 -------- 21:05 ----------- 00:10 ------- 3ह 05म
_________________________________________________________

मैने फ्लाइट शेड्यूल मे वापसी की फ्लाइट देखी और फिर अजय से कहा.

मैं बोला “ये शाम को 4:00 बजे वाली फ्लाइट ठीक रहेगी. इस से मैं शाम को 6:45 पर यहाँ पहुच जाउन्गा.”

अजय बोला “ठीक है. मैं इन दोनो की टिकेट करवाने की कोशिश करता हूँ.”

अभी हमारी बात चल ही रही थी कि, तभी मेरा मोबाइल बज उठा. जिसे सुन कर मेरे साथ साथ अजय भी चौक गया. क्योकि इतनी समय किसी का फोन आने की मुझे कोई उम्मीद नही थी. अजय के भी चौकने की वजह शायद यही थी. मैं कॉल नही उठा रहा था तो, अजय ने कहा.

अजय बोला “अरे देख तो लो किसका फोन है. अब कोई इतनी समय कॉल कर रहा है तो, कोई ज़रूरी कॉल ही होगी.”

मैने अपना मोबाइल निकल कर देखा तो, कीर्ति का कॉल आ रहा था. मैने सोचा कि शायद दूसरा मोबाइल बंद हो गया होगा. इसलिए वो इसमे कॉल कर रही है. मैने जब अपने जेब मे मोबाइल देखा तो, वो अभी भी चालू था.

अब मैं अजय के सामने वो मोबाइल निकाल कर उसे ये जताना नही चाहता था कि, इतनी देर से जो सब बातें चल रही थी. उन्हे दूसरे मोबाइल पर कीर्ति सुन रही थी. इसलिए मैने वो मोबाइल नही निकाला मगर मुझे कीर्ति के कॉल करने का मतलब समझ मे नही आ रहा था.

मैने उसे मना भी किया था कि, मैं अजय के सामने उस से बात नही करूगा. फिर भी वो कॉल लगा रही थी. उसका ऐसा करना मुझे अच्छा नही लगा और मैने उसका मोबाइल ऐसे ही बजने दिया.

बजते बजते मोबाइल अपने आप बंद हो गया. लेकिन उसके बंद होते ही उसने दोबारा कॉल लगाना शुरू कर दिया. उसकी इस हरकत से मुझे और भी ज़्यादा चिड छूटने लगी और मैने उसके कॉल को बजने दिया.
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09-09-2020, 01:53 PM,
#85
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
75
कीर्ति का कॉल आ रहा था और मैं अजय के मेरे साथ होने की वजह से, उसके कॉल को देख कर भी अनदेखा कर रहा था. फिर अचानक से कीर्ति का कॉल आना बंद हो गया. मैं समझ गया कि, अब वो मुझे मेसेज करेगी.

मैं कीर्ति के मेसेज आने का इंतजार करने लगा. लेकिन जब अजय ने देखा कि, इतने कॉल आने के बाद भी मैने कॉल नही उठाया. तब उस ने मुझसे कहा.

अजय बोला “यार इतना तो मैं समझ सकता हूँ कि, ये किसकी कॉल आ रही थी. तुम्हे उस से एक बार, बात कर लेना चाहिए था. यदि तुमको मेरे सामने बात करने मे परेसानी है. तो मैं गाड़ी रोक देता हूँ. तुम किनारे जाकर, उस से बात कर लो.”

मैं बोला “ऐसी कोई बात नही है. मैं सिर्फ़ इसलिए बात नही कर रहा था कि, मैं अब उस से आमने सामने बात करना चाहता हूँ. वैसे भी अब मुझे, उसके पास पहुचने मे, ज़्यादा समय तो लगना नही है.”

अजय बोला “तुम्हारी फ्लाइट तो 6 बजे की है और अभी तो सिर्फ़ 4 बजे है. ऐसे मे यदि तुम उस से बात करके उसे बता दोगे कि, तुम आ रहे हो. तब उसे भी शांति मिल जाएगी. मैं गाड़ी रोकता हूँ. तुम उस से बात कर लो.”

मैं कीर्ति से अजय के सामने बात करना नही चाहता था. लेकिन अजय की इस बात के बाद, मेरे पास अजय के सामने, कीर्ति से बात करने के सिवा, कोई रास्ता नही बचा था. मैने अजय से कहा.

मैं बोला “तुम्हे गाड़ी रोकने की कोई ज़रूरत नही है. यदि अब उसका कॉल आएगा तो, मैं उस से ज़रूर बात कर लूँगा.”

अजय बोला "गुड, ये हुई ना कोई बात. हम लोग पहले मेरे घर चल रहे है. वहाँ चल कर मैं अपने कपड़े और ये गाड़ी बदल लूँगा. फिर हम एरपोर्ट चलेगे."

मैं बोला "ओके, जैसा तुम्हे ठीक लगे."

मेरी अजय से इतनी बात हुई. हमारी सारी बातें तो, कीर्ति सुन ही रही थी. शायद यही वजह थी कि, उसने मेसेज ना करके फिर से कॉल लगा दिया. इस बार मैने उसका कॉल उठाया और अंजान बनते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ. तुम अभी तक जाग क्यो रही हो. मैने तुमसे कहा तो था कि, मैं सुबह तक वहाँ पहुच जाउन्गा. फिर तुम्हे सो जाना चाहिए था.”

कीर्ति बोली “झूठे, अपने दोस्त के सामने कितने भोले बन रहे हो. उसे नही पता कि, मैं बहुत देर से तुम लोगों की सारी बात सुन रही हूँ. यदि तुम्हारी ये पोल खुल जाए तो, वो भी कहेगा कि ये लड़का तो बिल्कुल जलेबी की तरह सीधा निकला. हा हा हा..."

ये बोल कर वो खिल खिला कर हँसने लगी. उसे इस तरह से हंसते देख कर मुझे बहुत शांति मिली. मेरे चेहरे पर भी अब मुस्कुराहट आ गयी थी. मैने थोड़ी देर पहले उस के, कॉल आने से चिड जाने की बात को भूल कर, उस से बड़े प्यार से कहा.

मैं बोला “ये फालतू की बात छोड़ और ये बता कि, तू अभी तक सोई क्यो नही. क्या तुझे सुबह मुझसे मिलना नही है.”

कीर्ति बोली "इसीलिए तो नही सो रही हूँ. मैं अब तुमसे मिलने के बाद ही सोउंगी."

मैं बोला "ये ठीक बात नही है. तुझे मेरे वहाँ आने तक, थोड़ा आराम कर लेना चाहिए. मुझे अभी वहाँ पहुचने मे बहुत समय लगेगा. ऐसे मे तू क्यो अपनी नींद खराब कर रही है."

मगर अब कीर्ति मुझे वहाँ आता देख कर बहुत खुश लग रही थी. अब उसका मूड बहुत अच्छा था और वो मस्ती करते हुए मेरी बात के जबाब मे गाना गाने लगी..

कीर्ति बोली
"हूओ नींद चुराई मेरी,
किसने ओ सनम,
तू ने, तू ने.
हां चैन चुराया मेरा
किसने ओ सनम,
तू ने, तू ने.
हूओ दिल मे मेरे,
रहने वाला, कौन है,
तू है, तू है."

मुझे उसका गाना गाने का अंदाज ऐसा लग रहा था. जैसे वो नाच नाच कर गाना गा रही हो. उसकी इस हरकत पर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने उसे बीच मे ही रोकते हुए कहा.

मैं बोला "चल अब अपना मूह बंद कर और ये बता तूने अभी कॉल क्यो किया."

कीर्ति बोली “ओये जान, तुम पागल हो गये हो क्या. मैं यदि अपना मूह बंद रखुगी तो, फिर बताउन्गी कैसे.”

मैं बोला “तू फिर शुरू हो गयी. तुझे यदि ऐसे ही बकवास करना है तो, मैं कॉल रखता हूँ."

कीर्ति बोली “अरे सॉरी सॉरी जान. प्लीज़ कॉल मत रखना. मुझे तुमसे सच मे बहुत ज़रूरी बात करना है.”

मैं बोला “नही रख रहा हूँ. अब तू बोल तुझे क्या बात करनी है.”

कीर्ति बोली "बताती हूँ, मगर पहले तुम बोलो कि, तुम मेरी बात सुन कर, मुझ पर गुस्सा नही करोगे."

मैं बोला "ओके मैं गुस्सा नही करूगा. अब बोल तुझे क्या बोलना है."

कीर्ति बोली "जान मैं तुमसे 2 बात कहना चाहती हूँ. पहली तो ये कि, तुम यहाँ से वापस लौटने की टिकेट, 4 बजे की जगह 5 बजे के बाद की करवा लो."

मैं बोला "ऐसा क्यो."

कीर्ति बोली "ऐसा करने से मुझे, तुम्हारे साथ थोड़ा ज़्यादा रहने को मिल जाएगा."

मैं बोला “लेकिन तू जानती है. मुझे यहाँ जल्दी वापस लौटना है."

कीर्ति बोली "ऐसा करने से भी तुम्हारे वहाँ लौटने मे कोई ज़्यादा फ़र्क नही पड़ेगा. लेकिन मेरे लिए, ये एक घंटा बहुत मायने रखता है. प्लीज़ जान मेरी खातिर ऐसा कर लो ना."

मैं बोला "ठीक है, कर लेता हूँ. अब तू अपनी दूसरी बात बोल."

कीर्ति बोली "दूसरी बात ये है कि, तुम अपने यहाँ आने की बात किसी को मत बताओ. यदि तुम सबको बता कर यहाँ आओगे तो, सब के मन मे बहुत से सवाल पैदा हो जाएगे. मैं चाहती हूँ कि, तुम यहाँ सिर्फ़ मुझसे मिलकर वापस चले जाओ."

मैं बोला "तू इतनी स्वार्थी कब से हो गयी है. तुझे बस अपनी ही पड़ी है. क्या बाकी सबका मुझसे मिलने का मन नही कर रहा होगा."

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मेरे कहने का ये मतलब हरगिज़ नही था. मैं तो ये बात इसलिए कह रही थी कि, ऐसे समय मे तुम्हारा वहाँ से, बिना किसी वजह के यहाँ वापस आना. सबके मन मे शक़ पैदा कर देगा."

मैं बोला "तेरा कहना ठीक है. लेकिन मुझे यहाँ से दिन भर गायब रहने की वजह भी तो, कुछ बताना पड़ेगी. मैं बिना कुछ बोले तो, यहाँ से गायब नही हो सकता."

कीर्ति बोली "इसमे कोई बड़ी बात नही है. जैसे तुम अपने जनम दिन वाले दिन, दिन भर गायब रहे थे और अपने दोस्त के साथ मुंबई घूमने का बहाना बनाए थे. वैसा ही कुछ बहाना, आज के लिए भी बना देना."

मैं बोला "लेकिन तब ये बात मेरे और अजय के सिवा, किसी को नही मालूम थी. मगर आज तो मैं निक्की से बोल कर आया हूँ कि, मैं कहाँ जा रहा हूँ. क्या ऐसे मे कोई बहाना बनाना ठीक रहेगा."

कीर्ति बोली "तुम पहले अपने दोस्त के साथ मिलकर, ये सोच लो कि, सब से क्या बोलना है. फिर फोन करके ये बात निक्की को बता देना. मुझे नही लगता कि, निक्की ये बात किसी को बताएगी."

मैं बोला "ठीक है, मैं देखता हूँ कि, मैं क्या कर सकता हूँ. अब तू फोन रख और सो जा."

कीर्ति बोली "नही जान, जब तक तुम प्लेन मे नही बैठ जाते. तब तक मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ. तुम्हारे प्लेन मे बैठते ही, मैं 2 घंटे सो लुगी."

मैं बोला "जैसी तेरी मर्ज़ी. तुझे यदि इसी मे खुशी मिल रही है तो, अब मैं तुझे नही रोकुगा. लेकिन अब तू फोन रख और मुझे ज़रा सोचने दे."

कीर्ति बोली "ओके जान, मैं ये फोन रखती हूँ. लेकिन दूसरे फोन पर, मैं तुम्हारे साथ बनी हुई हूँ."

मैं बोला "ओके."

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. उसके फोन रखने के बाद ही, अजय का घर आ गया. जिस वजह से, इस बात को लेकर हमारे बीच कोई बात ना हो सकी. अजय के घर पहुचने पर, अजय ने कपड़े और गाड़ी बदली. फिर हम एरपोर्ट के लिए निकल पड़े. मुझे खामोश देख कर अजय ने कहा.

अजय बोला "किस बात को लेकर इतना सोच मे डूबे हुए हो. मुझे बताओ, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ."

मैं बोला "यार वो बोल रही है कि, मैं अपने घर वापस जाने की बात किसी को ना बताऊ. इस से सब के मन मे कयि सवाल पैदा हो जाएगे. इसलिए मैं दिन भर गायब रहने के लिए, कोई दूसरा बहाना बना दूं."

अजय बोला "बात तो उसकी बिल्कुल सही है. अचानक तुम्हारे इस तरह घर वापस लौटने को लेकर, सच मे बहुत सी बातें पैदा हो जाएगी. इस सबसे बचने का रास्ता तो यही है कि, तुम कोई ऐसा बहाना बना दो. जिस से सबको यही लगे कि, तुम मुंबई मे ही कहीं हो."

मैं बोला "ऐसा कोई बहाना बना पाना मुमकिन सा नही लग रहा है. क्योकि यहाँ मैं किसी को जानता नही हूँ. ऐसे मे मेरा सुबह से लेकर रत तक गायब रहना और भी सबको परेसानी मे डाल देगा."

अजय बोला "मुझे एक रास्ता समझ मे आ रहा है. लेकिन पता नही कि, वो काम भी करेगा या नही."

मैं बोला "कौन सा रास्ता."

अजय बोला "तुम डॉक्टर. अमन को जानते हो."

मैं बोला "हाँ, निक्की ने मेरा उन से परिचय करवाया था."

अजय बोला "कहीं तुम उसी निक्की की बात तो नही कर रहे. जो उस समय तुम्हारे साथ थी. जब तुम पहली बार मेरी टॅक्सी मे बैठे थे."

मैं बोला "हाँ मैं उसी निक्की की बात कर रहा हूँ."

अजय बोला "तब तो तुम बिल्कुल बेफिकर हो जाओ. निक्की से मेरी बात करवाओ."

मैं बोला "तुम निक्की को जानते हो."

अजय बोला "क्या निक्की ने कभी तुम्हे बताया नही कि, वो मुझे जानती है."

मैं बोला "उसने मुझसे आज ही कहा कि, वो तुम्हे बहुत अच्छे से जानती है."

अजय बोला "जैसे वो मुझे जानती है. वैसे ही मैं भी उसे जानता हूँ. लेकिन अभी इन सब बातों का समय नही है. तुम मेरी उस से बात करवाओ. मैं सब कुछ ठीक कर देता हूँ."

मैं बोला "लेकिन इतने समय उस से बात करना ठीक नही होगा. मैने उसे एक बार पहले ही, गहरी नींद से जगा दिया था. यदि हम कुछ देर रुक कर बात करे तो, अच्छा रहेगा."

अजय बोला "तुम इस बात की चिंता मत करो. तुम बस उसे फोन लगा कर मुझे दे दो."

मैने आख़िर मे निक्की को कॉल लगाकर मोबाइल अजय को दे दिया. कुछ देर बाद अजय की निक्की से बात होने लगी. अजय को निक्की बहुत अच्छी तरह से जानती थी. ये बात तो वो पहले ही मुझसे कह चुकी थी और फिर दोनो को बात करते देख कर मुझे भी इस बात पर पूरा यकीन हो गया.

दोनो मे बहुत अच्छे से बात चल रही थी. अजय निक्की से कह रहा था.

अजय बोला "देखो बाकी सब मैं संभाल लुगा. तुम बस उतना करो, जितना मैं तुमसे कह रहा हूँ. आज जब कोई तुमसे पुन्नू के बारे मे पुछे, तब तुम्हे सब से यही कहना है कि, पुन्नू को सुबह सुबह डॉक्टर. अमन का फोन आया था और उनकी पुन्नू से कोई बात हुई थी. जिसके बाद पुन्नू को लेने डॉक्टर. अमन की गाड़ी आई थी और पुन्नू सुबह सुबह ही डॉक्टर. अमन से मिलने निकल गया था. यही बात तुम हॉस्पिटल मे पुन्नू के दोस्त से कह देना."

निक्की बोली "...................." "लेकिन दोपहर को तो वहाँ राज और बाकी के लोग आ जाएगे. वो नही पूछेंगे कि, पुन्नू अभी तक क्यो नही आया."

अजय बोला "उसके पहले पुन्नू का दोस्त खुद तुमको बताए कि, डॉक्टर. अमन ने पुन्नू को कुछ ज़रूरी दवाइयाँ लेकर अपने किसी दोस्त के पास भेजा है. पुन्नू देर रात तक वापस लौट पाएगा."

निक्की बोली "..................." "लेकिन ये बात उसको कौन बताएगा."

अजय बोला "ये बात पुन्नू खुद अपने दोस्त से अभी फोन करके बता देगा कि, डॉक्टर. अमन को हमारे शहर मे अपने दोस्त किसी दोस्त के पास कुछ ज़रूरी दवाइयाँ भेजना है. इसलिए वो मुझे फ्लाइट से वहाँ भेज रहे है. मैं शाम तक वापस आ जाउन्गा. मैने निक्की को बता दिया है कि, मैं डॉक्टर अमन के पास जा रहा हूँ और वो हॉस्पिटल मेरे समय पर तुम्हारे पास आ जाए. उस समय मुझे नही मालूम था कि, डॉक्टर अमन मुझे किस लिए बुला रहे है. लेकिन जब उन्हो ने मुझे ये काम बताया तो, मैं उन्हे मना भी नही कर पाया. मेरी अभी 6 बजे की फ्लाइट है और वहाँ से शाम की वापसी की फ्लाइट है. अब निक्की शायद फिर से सो गयी होगी. जिस वजह से मैने उसको फोन लगा कर ये सब बताना ठीक नही समझा. इसलिए जब वो तेरे पास आए. तब तू उसे ये सब कुछ बता देना. वैसे मैने उस से ये तो बोल दिया था कि, पता नही डॉक्टर. अमन के पास से मुझे वापस आने मे कितना समय लगे. इसलिए तुम हॉस्पिटल मे रुके रहना."

निक्की बोली "...................." "ये तो बहुत कमाल का तरीका है. सिर्फ़ थोडा सा झूठ और पूरी सच्चाई. आपका दिमाग़ तो कमाल का है."

अजय बोला "दिमाग़ का छोड़ो और बस जैसा मैने कहा है. तुम वैसा कर लेना. मैं अमन को भी सारी बात बता दूँगा."

इसके बाद अजय ने कॉल रख दिया और मुझसे मेहुल को कॉल करने को कहा. मैने मेहुल को कॉल लगाया तो, वो पहले इतने समय मेरा कॉल आया देख कर चौक गया. फिर मैने अजय के कहे अनुसार उस को सारी बात बताता चला गया.

जिसको सुनने के बाद मेहुल ने कहा कि "ये तूने ठीक किया. डॉक्टर. अमन ने हमारी बहुत मदद की है. निक्की आएगी तो, मैं उसे सारी बात बता दूँगा. दिन मे तो यहाँ सभी लोग आते जाते रहते है. दोपहर तक राज भी यहाँ आ जाएगा. अब पापा की तबीयत भी बिल्कुल ठीक है. ऐसे मे तू यहाँ की चिंता मत कर और बेफिकर होकर जा."

मैं बोला "ठीक है. तू आज दिन का बस वहाँ का देखे रहना. मैं आज रात हॉस्पिटल मे रुक जाउन्गा."

मेहुल बोला "तुझे रात को हॉस्पिटल मे रुकने की कोई ज़रूरत नही है. जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने दे. वैसे भी तू दिन भर के सफ़र से थका हुआ रहेगा. ऐसे मे तुझे आराम की भी ज़रूरत है."

मैं बोला "आबे मुझे किसी आराम की ज़रूरत नही है. मैं सब संभाल लूँगा."

मेहुल बोला "मुझे मालूम है कि, तू सब संभाल लेगा. लेकिन तू मुझे बेवकूफ़ समझना बंद कर दे. मैं जानता हूँ कि, तू ये बात क्यों कह रहा है. तुझे ये लग रहा है कि, कहीं तेरे ना रहने पर मैं पापा को हॉस्पिटल मे छोड़ कर आराम से सोता ना रहूं. इसलिए तू चाहता है कि, मैं दिन मे थोड़ा बहुत आराम कर के पापा के पास रहूं और तू रात को आकर रह लेगा. मगर इस सब की कोई ज़रूरत ही नही है."

मैं बोला "तू सच मे बहुत समझदार हो गया है. लेकिन इस सब की ज़रूरत क्यो नही है."

मेहुल बोला "क्योकि पापा अब बिल्कुल ठीक है और तूने खुद दिन मे यहाँ रह कर देखा है. क्या तुझे ऐसा कभी लगा है कि, राज या निक्की हम लोगों से कम पापा का ख़याल रखते है. फिर भी मैं तेरी बात को नही काटुगा और जब राज दोपहर को खाना खाने घर आएगा. तब 2 बजे से 5 बजे तक मैं हॉस्पिटल मे रुक जाउन्गा. उसके बाद 2-3 घंटे घर आकर आराम कर लूँगा. इस से मुझे रात को रुकने मे कोई परेसानी नही होगी."

मैं बोला "ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी."

इसके बाद मैने कॉल रख दिया. फिर मेरी अजय ने डॉक्टर. अमन को कॉल करके सारी बात बताई और उसे कुछ समझाया. जिसको करने को डॉक्टर. अमन भी तैयार हो गया. उसके बाद मेरी थोड़ी बहुत इसी बारे मे अजय से बात होती रही.

बातों बातों मे हम लोग एरपोर्ट पहुच गये. वहाँ पहुच कर अजय ने मेरी टिकेट का भी इंतेजाम करवा दिया. मैने वापसी की टिकेट शाम को 4 बजे की जगह 6 बजे वाली करवा ली थी. इस सब के चलते कीर्ति मोबाइल पर मेरे साथ बराबर बनी रही.

अजय ने मुझे टिकेट पकड़ाए और फिर हम लोग कॉफी पीने चले गये. मैने कॉफी पीते हुए अजय से पूछा.

मैं बोला "अज्जि यदि बुरा ना मानो तो, एक बात पुछु."

अजय बोला "दोस्तों की बात का मैं कभी बुरा नही मानता. तुम जो चाहे वो पुछ सकते हो."

मैं बोला "अज्जि रह रह कर एक बात मेरे मन मे आ रही है कि, हमारी दोस्ती को अभी ज़्यादा समय भी नही हुआ. तुम मेरे बारे मे ज़्यादा कुछ जानते भी नही हो. फिर भी तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया है. क्या ये सब करने की कोई खास वजह है या फिर ये सब ऐसे ही किया है."

अजय बोला "दोस्ती नयी या पुरानी नही होती. मैने तुमको दोस्त माना है तो, तुम्हारे लिए कुछ भी करना मेरा फर्ज़ बनता है. हाँ लेकिन तुमसे दोस्ती करने के पिछे ज़रूर खास वजह है."

मैं बोला "क्या."

अजय बोला "मैने पहली बार तुम्हे तब देखा था. जब तुम निक्की के सामने अपनी फ्रेंड के साथ मेरी टॅक्सी मे बैठे थे. वैसे तो मेरी टॅक्सी मे लड़के लड़कियाँ बैठे क्या कर रहे है. मैं कभी इस बात पर ध्यान ही नही देता. लेकिन निक्की को मैं जानता था. इस वजह से मेरी तुम दोनो मे खास दिलचस्पी थी और मैं ना चाहते हुए भी अपना ध्यान तुम लोगों पर से ना हटा सका.

तुम्हारे साथ जब रिया मस्ती कर रही थी. तब मुझे ये देख कर ताज्जुब हो रहा था कि, ये लड़का किस मिट्टी का बना हुआ है. जो एक लड़की इसको खुला आमंत्रण दे रही है और ये पोंगा पंडित बना बैठा हुआ. फिर मेरी तुमसे बात हुई तो, पता चला कि, तुम किसी से प्यार करते हो. मुझे ये देख कर अच्छा लगा कि, तुम अपने प्यार के प्रति पूरी तरह से ईमानदार हो.

मैं भी तुम्हारी तरह इस शहर मे नया ही हूँ. मेरे यहाँ सिर्फ़ 2 दोस्त ही है और गिने चुने लोग ही मुझे जानते है. जिसकी वजह से मैने तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था और इसी वजह से मैं शराब पीने के लिए उस दिन अपने घर ले गया था. क्योकि मैं नही चाहता था कि, तुम्हारे साथ कुछ ग़लत हो. लेकिन मुझे उस समय ये बात बहुत परेशान कर रही थी कि, तुम्हारे जैसे सच्चे लड़के के साथ, कोई लड़की धोका कैसे कर सकती.

लेकिन आज जब अचानक तुम्हारे मूह से, उस लड़की से मिलने जाने की बात सुनी तो, मुझे बेहद खुशी हुई. मैं भी चाहता था कि, तुम हर हाल मे अपने प्यार से जाकर मिलो. इसलिए मुझसे तुम्हारे लिए, जो कुछ भी करते बना, मैने वो किया."

मैं बोला "अज्जि लेकिन मेरा सवाल वही का वही है. तुम्हारे ये सब करने की वजह क्या है."

अजय बोला "इस सब की वजह ये है कि, मैं भी तुम्हारी तरह, किसी से बेहद प्यार करता हूँ. मगर मुझे मेरा प्यार नही मिल रहा है. अब जिस प्यार करने वाले के नसीब मे किसी का प्यार ना हो. उसे सिर्फ़ दो बातों से ही शांति मिलती है. या तो वो दो प्यार करने वालों को जुदा कर दे. या फिर दो प्यार करने वालों को मिला दे. लेकिन मैं प्यार के दर्द को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ. इसलिए मैने दो प्यार करने वालों को मिलने की कोसिस की है."

मैं बोला "मुझे तुम्हारे बारे मे जानने की बहुत इच्छा हो रही है. समझ मे नही आ रहा है कि, तुम इस तरह की दोहरी जिंदगी क्यो जी रहे हो."

अजय बोला "किसी दिन तुम्हे फ़ुर्सत मे सब कुछ बताउन्गा. अभी तो तुम खुशी खुशी अपने प्यार से मिल कर आओ."

हम लोग ऐसे ही बहुत देर तक बात करते रहे. फिर मेरी फ्लाइट की घोषणा हो गयी और मैं अजय से गले मिल कर फ्लाइट की तरफ चल पड़ा. मैने अपना मोबाइल निकाल कर कीर्ति से कहा.

मैं बोला "जान, लो अब मैं फ्लाइट मे बैठने जा रहा हूँ. अब तो तुम सो जाओ."

कीर्ति बोली "लेकिन यदि मैं सो गयी तो, फिर मैं स्कूल नही जा पाउन्गी और फिर मैं तुमसे दिन भर किस बहाने से मिलने निकल सकुगी."

मैं बोला "तुम इसकी चिंता मत करो. अजय ने जो बहाना बनाया है. वही हमारे काम आएगा. हम डॉक्टर. अमन के दोस्त को साथ साथ दवाइयाँ देने चलेगे. तुम बेफिकर होकर सो जाओ. मैं सीधे ही घर ही आ जाउन्गा."

कीरी बोली "ओके अब मैं तुम्हारी बात नही काटुगी. मैं सो जाती हूँ. मुऊऊऊहह."

मैं बोला "मुउउहह."

इसके बाद कीर्ति ने कॉल काट दिया और मैं फ्लाइट मे बैठ गया. आज मुझे एक अजीब ही खुशी का अनुभव हो रहा था. यूँ लग रहा था, जैसे की मैं सालों बाद कीर्ति से मिलने जा रहा हूँ. इस बात को लेकर मेरे मन मे हज़ारों विचारों ने उड़ान भरना सुरू कर दिया था तो, उधर प्लेन भी अब उपर आसमान मे उड़ान भर चुका था.

दोनो की उड़ाने तब तक चलनी थी. जब तक कि उनकी मंज़िल ना आ जाए. मैं कीर्ति के ख़यालों मे खोया हुआ. बस उस पल का इंतजार कर रहा था. जब प्लेन मेरे शहर की धरती पर अपनी ये उड़ान को ख़तम करे. जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था. मेरी कीर्ति को देखने की बेसब्री बढ़ती जा रही थी.

मुझे तो ये प्लेन का सफ़र भी बहुत लंबा लग रहा था. मैं बार बार समय देख रहा था कि, अब मुझे पहुँचने मे कितना समय बाकी है. ऐसे ही करते करते मेरा सफ़र ख़तम हो गया और 8:35 बजे प्लेन ने अपनी उड़ान रोक दी. वो मेरे शहर की धरती पर उतर चुका था.

कुछ देर बाद मैं भी प्लेन से बाहर आ गया. अपने शहर की धरती पर मेरे कदम पड़ते ही मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा. सबसे मिल सकने की खुशी मेरे चेहरे पर झलकने लगी थी. मैं इसी खुशी के साथ जल्दी जल्दी एरपोर्ट से बाहर आने लगा.

बाहर आते समय मैं यही सोच रहा था कि, मुझे घर मे अचानक देख कर, सब किस तरह से चौक जाएगे. ये सब सोच सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए, बाहर आ रहा था. लेकिन मैं नही जनता था कि, अब चौकने की बारी मेरी है.

मैं अभी बाहर निकलने ही वाला था कि, तभी मुझे अपने कानो मे, एक आवाज़ सुनाई दी. जिसे सुनकर मैं चौके बिना ना रह सका. मुझे अपने कानो पर विस्वास नही हो रहा था.

मैने पलट कर उस तरफ देखा, जहाँ से आवाज़ आई थी. मगर अब जो नज़ारा मेरी आँखों के सामने था. उसे देख कर मुझे अपनी आँखों पर भी विस्वास नही हो रहा था.

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09-09-2020, 01:53 PM,
#86
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैने पलट कर उस तरफ देखा, जहाँ से आवाज़ आई थी. मगर अब जो नज़ारा मेरी आँखों के सामने था. उसे देख कर मुझे अपनी आँखों पर भी विस्वास नही हो रहा था.

मेरे सामने निमी के साथ छोटी माँ और अमि खड़ी थी. मुझे देख कर अमि और निमी हाथ हिला रही थी. छोटी माँ के चेहरे पर भी मुस्कुराहट खिली हुई थी. मैं उनको देख कर उनकी तरफ बढ़ गया.

लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, ये सब कैसे हो गया है. क्या इन लोगों को मेरे आने की बात कीर्ति ने बता दी है. यदि उसने इन्हे बताया है तो, वो खुद इनके साथ क्यो नही आई.

मैं ये सब सोचते हुए, उन के पास पहुच गया. मैने छोटी माँ के पैर छुये तो, उनकी आँखों मे आँसू आ गये. उन्हो ने मुझे अपने गले से लगा लिया.

उनके गले से लगते ही मेरी आँखों मे भी नमी छा गयी थी. लेकिन मैने अपनी आँखों की नमी को उनके गले लगे लगे, अपने हाथों से साफ किया और उन से कहा.

मैं बोला “ये क्या छोटी माँ, जाते समय तो आप ज़रा भी नही रोई थी. अब जब मैं वापस आया हूँ तो, आप रो रही है.”

छोटी माँ बोली “पागल, ये तो खुशी के आँसू है. आज तुम्हे 8 दिन बाद देख रही हूँ ना. इसलिए खुशी से आँख भर आई.”

ये कह कर वो अपने आँसुओं को पोन्छ्ने लगी. मैं उनके गले से अलग हुआ और फिर अमि निमी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला “तुम दोनो कैसी हो. फोन पर तो बहुत बक बक कर रही थी. अब कुछ बोल क्यो नही रही.”

अमि बोली “आप तो आते ही मम्मी से मिलने लगे. हमारी तरफ तो देख ही नही रहे थे. फिर हम क्या बोलते.”

मैने अमि की बात सुनी तो, उसके पास ही घुटने मोड़ कर बैठ गया और फिर अमि निमी के गालों को चूमते हुए दोनो को अपने गले लगा लिया. दोनो मेरे से ऐसे चिपक गयी. जैसे वो मुझे छोड़ेगी तो मैं वापस चला जाउन्गा.

मैं थोड़ी देर दोनो को अपने सीने से लगाए रहा. फिर उन्हे अपने से अलग कर, उन के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए, छोटी माँ से पुछा.

मैं बोला “छोटी माँ, आप लोग यहाँ कैसे.? आपको किसने बताया कि मैं आ रहा हूँ.”

छोटी माँ बोली “सुबह दीदी ने मेहुल को कॉल किया था. उसी से पता चला कि, तू किसी काम से यहाँ वापस आ रहा है.”

मैं बोला “मैं तो सीधे घर ही आने वाला था. फिर आप लोगों को यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी.”

छोटी माँ बोली “क्यों, क्या तुझे हमारा यहा आना अच्छा नही लगा.”

मैं बोला “ऐसी बात नही छोटी माँ. मैं तो सिर्फ़ इसलिए बोल रहा था. क्योकि आप लोगों को बेकार मे ही परेसानी हुई होगी.”

छोटी माँ बोली “ इसमे परेसानी की क्या बात है. हम घर मे बैठे तेरे आने का इंतजार तो, कर ही रहे थे. फिर हम ने सोचा कि, घर मे बैठे बैठे तेरा इंतजार करने से अच्छा है कि, हम खुद तुझे लेने यहाँ आ जाए.”

मैं बोला “चलो अच्छा है. आप लोगों को देखने के लिए, मुझे घर तक पहुचने का इंतजार नही करना पड़ा. लेकिन कीर्ति दिखाई नही दे रही. क्या वो आप लोगों के साथ नही आई.”

छोटी माँ बोली “हम लोग तो घर से 7:45 बजे के निकले है. जब हम घर से निकले थे. तब वो सो रही थी. शायद रात को देर तक जागती रही होगी. जिसकी वजह से इन लोगों के जगाने पर भी, उसकी नींद नही खुली.”

मैं जानता था कि कीर्ति 6 बजे सोई थी. लेकिन मैं ये भी अच्छे से जानता था कि, उसकी नींद ऐसी नही है कि, किसी के जगाने पर भी ना खुले. मगर कभी कभी ऐसा भी हो सकता है. बस यही सोचते हुए मैने इस बात को अनदेखा कर दिया.

लेकिन जब मेरी नज़र अमि निमी पर पड़ी तो, मैने देखा कि वो इस बात को लेकर आपस मे कुछ ख़ुसर फुसर कर रही है. मुझे लगा कि, कही इन लोगों ने कोई शरारत तो नही कर दी.

कहीं ऐसा तो नही कि, इन दोनो ने उसे जगाया ही ना हो. ये बात दिमाग़ मे आते ही मैने छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “छोटी माँ अभी मेरी कीर्ति से बात हुई थी. वो कह रही थी कि, उसे कोई जगाने आया ही नही. वरना वो भी सब के साथ यहा आ गयी होती.”

मेरा इतना कहना था कि, निमी तपाक से बोल पड़ी.

निमी बोली “भैया इसमे मेरी ग़लती नही है. अमि दीदी ने ही कहा था कि, दीदी देर रात तक जागी होगी. इसलिए वो अभी तक सो रही है. नही तो वो सबसे पहले सो कर उठ जाती है. ऐसा करो उन्हे अभी सोने दो. जब भैया घर आएगे तो हम उन्हे सर्प्राइज़ देगे.”

निमी के मूह से सारा इल्ज़ाम अपने सर पर आते देख, अमि भी अब चुप ना रह सकी. उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.

अमि बोली “भैया ये झूठ बोल रही है. मैने ऐसा कुछ भी नही कहा था. मैं तो मम्मी के कहने पर दीदी को जगाने ही गयी थी. लेकिन इसने ही बीच मे रोक दिया और ये सब आइडिया इसी का था.”

अमि निमी की इस हरकत पर मुझे हँसी आ गयी. छोटी माँ उन्हे डाँटने को हुई तो, मैने उन्हे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “जाने दो छोटी माँ. घर चल कर तो सब से मिल ही लूँगा. आप ये बताइए इन दोनो ने आपको परेशान तो नही किया.”

मेरी बात के जबाब मे छोटी माँ कुछ बोल पाती. उस से पहले ही अमि बोल पड़ी.

अमि बोली “भैया हम ने मम्मी को ज़रा भी परेशान नही किया है. लेकिन पापा मुंबई जाने से पहले, मम्मी से बहुत लड़े थे. मम्मी बहुत रो रही थी.”

मैं समझ गया कि, अमि किस बात का जिकर कर रही है. मैं कुछ बोलने ही वाला था. तभी छोटी मा ने अमि को डाँटते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तू चुप कर अमि, कही भी कुछ भी बोलने लगती है.”

मैं बोला “क्या हुआ छोटी माँ. आपका पापा से किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था.”

छोटी माँ बोली “तुम भी इसकी बेकार की बातों मे आ गये. जैसा ये कह रही है. ऐसा कुछ भी नही हुआ.”

अमि बोली “नही भैया, मैं झूठ नही बोल रही हूँ. पापा ने मम्मी को मारा भी था. इसी वजह से निमी की तबीयत भी खराब हुई थी. आप चाहे तो निमी से पुच्छ लीजिए.”

मैं कुछ निमी से पुछ पता, उस से पहले ही निमी ने अमि की बात का समर्थन करते हुए कहा.

निमी बोली “हाँ भैया, दीदी ठीक कह रही है. पापा ने मम्मी को मारा भी था और गंदी गंदी गाली भी दे रहे थे.”

उन दोनो की बात सुन कर मेरा बहुत ज़्यादा दिमाग़ खराब हो गया था. कीर्ति मुझे इस बारे मे पहले ही बता चुकी थी. लेकिन उसने इतना कुछ नही बताया था.

मैं अभी छोटी माँ से और कुछ पूछने वाला था. लेकिन छोटी माँ ने उस के पहले ही उन दोनो को डाँटते हुए, मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “तुम दोनो को दिखाई नही देता. वो थका हुआ सफ़र से आया है. अभी उसने घर मे कदम भी नही रखा और तुम लोग, अपनी शिकायत का पिटारा खोल कर बैठ गयी. तुम इन दोनो की बेकार की बातों मे मत पडो और घर चलो. घर की बातें घर मे करना ही अच्छा लगता है.”

मैं बोला “लेकिन छोटी माँ, इतना सब कुछ हो गया और आपने मुझे बताया भी नही.”

छोटी माँ बोली “देख तुझे मेरी कसम है. तू अभी इस बारे मे कोई बात नही करेगा. अभी घर मे दीदी तेरा इंतजार कर रही है. तू उन्हे वहाँ की खोज खबर दे दे और जिस काम से आया है, वो काम निपटा कर खुशी खुशी वापस जा. फिर जब तू वहाँ से वापस आएगा तो, मैं तुझे सब कुछ बताउन्गी.”

मैं बोला “ठीक है छोटी माँ. अभी आपने कसम दी है तो, मैं आप से कुछ नही पुच्छ रहा हूँ. लेकिन मुंबई से वापस लौटने पर मेरा पहला सवाल यही रहेगा. तब मैं किसी कसम को नही मानूँगा.”

छोटी माँ बोली “क्या तुझे मेरे उपर विस्वास नही है. जो तू ऐसी बात कर रहा है.”

मैं बोला “बात विस्वास की नही है छोटी माँ. बात मेरी माँ के सम्मान की है और मेरी माँ की तरफ कोई हाथ बढ़ेगा तो, मैं उस हाथ को उखाड़ कर फेक दूँगा.”

मेरी बात सुन कर छोटी माँ ने प्यार से मेरे गाल पर एक चपत लगाई और कहने लगी.

छोटी माँ बोली “तू बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है. चल, अब घर भी चलेगा या सारी बातें यही खड़ा खड़ा करता रहेगा.”

मैं कुछ कह पाता, उस से पहले ही छोटी माँ मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे बाहर लाने लगी. मैं अपनी दोनो बहनो का हाथ थामे बाहर आ गया.

बाहर आकर हम गाड़ी मे बैठे और घर के लिए निकल पड़े. रास्ते भर अमि निमी की नोक झोक चलती रही और फिर 9:15 बजे हम घर पहुच गये.

घर पहुचते ही मेरा सामना आंटी से हुआ. मैने उनके पैर छुये तो, उनकी आँखों मे आँसू आ गये और उन्हो ने मुझे गले से लगा लिया. मैने आंटी को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “आंटी आप रो क्यो रही है. आप को तो खुश होना चाहिए कि, सब कुछ अच्छा अच्छा हो गया है. बस कुछ दिनो की बात है. फिर अंकल घर आ जाएगे.”

आंटी अपने आँसुओं को पोछ्ते हुए कहने लगी.

आंटी बोली “पगले, ये तो खुशी के आँसू है. ये बता वहाँ सब कैसा चल रहा है. तुम लोगों को वहाँ कोई परेशानी तो नही है.”

मैं बोला “आंटी वहाँ सब ठीक चल रहा है. हमें वहाँ किसी भी तरह की कोई परेशानी नही है. राज और रिया के घर मे हमें, बिल्कुल घर जैसी सुविधा मिल रही है. अंकल भी अब ठीक है. वो चलने फिरने लगे हैं और थोड़ी बहुत बात भी कर रहे है. शायद अगले हफ्ते तक हम लोग वापस भी आ जाएगे.”

मेरी बात से आंटी को बहुत शुकून पहुचा और वो प्यार से मेरे सर पर, हाथ फेर कर कहने लगी.

आंटी बोली “तू जा और जाकर, नहा धोकर आ. तब तक मैं तेरे लिए गरमा गरम आलू के पराठे बनाती हूँ.”

मैं बोला “ठीक है आंटी.”

ये कह कर मैं उपर जाने को हुआ तो, अमि निमी भी मेरे पिछे आने लगी. मैं समझ गया कि, अब ये मेरा पीछा नही छोड़ेगी. मैने उन से अपना पीछा छुड़वाने के लिए कहा.

मैं बोला “तुम लोग मेरे पिछे पिछे क्यो आ रही हो. क्या तुम्हे कोई काम नही है.”

अमि बोली “नही हमें कोई काम नही है. हम आपके कमरे मे चल कर बैठेगे.”

मैं बोला “यदि तुम्हे कोई काम नही है तो, तुम लोग मेरा एक काम कर दो.”

अमि बोली “बोलिए क्या काम करना है.”

मई बोला “देखो मुझे अभी किसी काम से बाहर जाना है और मेरी बाइक पर पिच्छले 8 दिन से किसी ने हाथ तक नही लगाया है. ऐसे मे वो बहुत गंदी हो गयी होगी. यदि तुम दोनो चाहो तो, मेरा ये काम कर सकती हो.”

मेरी बात सुनते ही दोनो बहुत खुश हो गयी और मुझे आगे की बात कहने का मौका दिए बिना ही बाइक सॉफ करने चली गयी. उनके जाने के बाद मैं उपर की तरफ चल दिया.

कीर्ति का अभी तक ना दिखाई देना. ये साबित कर रहा था कि, वो अभी तक सो रही है. मैं अब उसे जगा कर सर्प्राइज़ देना चाहता था. मैं खुशी खुशी अमि निमी के कमरे की तरफ चल पड़ा.

लेकिन वो वहाँ पर नही थी. मैं समझ गया कि, वो अपने कमरे मे ही सो रही होगी. मैं उसके कमरे के पास पहुचा और धीरे से उसके कमरे का दरवाजा खोला.

वो इस समय ब्लॅक नाइट सूट मे थी. उसकी पीठ मेरी तरफ थी. मैं धीरे धीरे उसके बेड के पास पहुचा और उसके चेहरे के सामने जाकर बैठ गया. वो बड़ी गहरी नींद मे थी और नींद मे बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी.

मैने धीरे से उसके बालों पर हाथ फेरा. लेकिन उसे कोई फरक नही पड़ा. मेरा मन उसके गालों को चूमने का किया और मैने अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया.

मैने अपने होंठ उसके गालों पर रख दिए. मैं थोड़ी देर उसके गालों को बड़े प्यार से चूमता रहा और उसके बालों पर हाथ फेरता रहा. फिर जैसे ही मैं पिछे हटा. वो हो गया, जो मैने सोचा भी नही था.

मेरे गालों पर कीर्ति के हाथ का एक जोरदार तमाचा पड़ा और पूरा कमरा उस तमाचे की गूँज से गूँज उठा. मुझे कुछ समझ नही आया कि, अचानक ये क्या और क्यो हो गया. मैं एक-टक कीर्ति को देखता रह गया.
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मेरा एक हाथ मेरे गाल पर था और मैं अभी भी उसके बेड के पास उसी तरह से बैठा हुआ था. जबकि कीर्ति की नींद खुल चुकी थी और वो मुझे गुस्से से घूर रही थी.

मुझे समझ आ गया था कि, कीर्ति को मेरा किस करना पसंद नही आया था. मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ और कीर्ति से कहा.

मैं बोला “सॉरी, मुझसे ग़लती हो गयी. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मैं नही जानता था कि, तुझे मेरा किस करना इतना बुरा लगेगा.”

अपनी बात पूरी करने के बाद, मैं उदास मन से, उसके पास से जाने को हुआ. तभी कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया. वो उठ कर बैठ चुकी थी. मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं नहाने जा रहा हूँ. तू भी तैयार हो जा. नीचे नाश्ते पर सब हमारा इंतजार कर रहे है..

कीर्ति बोली “मुझसे नाराज़ हो क्या.”

मैं बोला “नही तो, मैं भला तुझसे क्यो नाराज़ रहने लगा.”

कीर्ति बोली “क्योकि मैने अभी तुम्हे थप्पड़ जो मारा है.”

मैं बोला “मैने ग़लती की तो, तूने मुझे थप्पड़ मारा. फिर इसमे नाराज़ होने की क्या बात है.”

कीर्ति बोली “तुम्हारा सोचना सही है. ये थप्पड़ मैने तुम्हे तुम्हारी ग़लती के लिए ही मारा है. लेकिन जिस ग़लती की तुम बात कर रहे हो. यदि उस ग़लती की वजह से मुझे थप्पड़ मारना होता तो, ये थप्पड़ मैं तुम्हे तभी मार चुकी होती. जब तुमने मुझे किस करना सुरू किया था. क्योकि तुम्हारे बालों मे हाथ फेरते ही मैं जाग चुकी थी.”

कीर्ति की ये बात सुन कर मेरे चेहरे की उदासी हट गयी थी. मैने ये सोच कर राहत की साँस ली की, उसे मेरा किस करना बुरा नही लगा था. उसके थप्पड़ मारने की वजह कुछ और ही थी.

मैं पलट कर उसके पास आया और फिर वापस उसके सामने उसी तरह से बैठ गया. मैने उसके दोनो हाथो को अपने हाथों मे लिया और पुछा.

मैं बोला “फिर तूने मुझे इतनी ज़ोर से थप्पड़, मेरी किस ग़लती के लिए मारा है.”

कीर्ति बोली “उस ग़लती के लिए, जो तुमने अपने जनम दिन मे, मुंबई मे की थी.”

मैं बोला “वो शराब पीने वाली हरकत.”

कीर्ति बोली “नही, वो मरने जाने वाली हरकत.”

मैं बोला “वो तो पुरानी बात हो गयी थी. फिर उसके लिए अभी थप्पड़ मारने की क्या ज़रूरत थी.”

कीर्ति बोली “तुम्हारे लिए ये बात पुरानी हो गयी होगी. लेकिन मेरे लिए ये बात पुरानी नही हुई है. मुझे रह रह कर ये बात परेशान कर रही है की, यदि उस समय तुम्हे कुछ हो गया होता तो, मेरा क्या होता. इस सब के लिए, मैं अपने आपको अभी तक माफ़ नही कर पाई हूँ.”

मैं बोला “सॉरी, लेकिन इसमे तेरी भी तो ग़लती है. फिर ये सज़ा सिर्फ़ मुझे क्यो मिली.”

कीर्ति बोली “मैं अपनी सज़ा, अपने आपको दे चुकी हूँ.”

ये कहते हुए उसने अपनी बाईं (लेफ्ट) हथेली मेरे सामने कर दी. जिसमे ब्लेड से काटे जाने के निशान अब भी ताज़ा थे. उसकी हथेली के जख्म देखते ही, मेरा दिल दहल गया.

मेरी आँखें आँसुओं से भर गयी और अंजाने मे ही मेरा हाथ कीर्ति पर उठ गया. मेरा थप्पड़ पड़ने के बाद भी, वो मुस्कुरा रही थी. मैं कभी उसके चेहरे को देखता तो, कभी उसको देखता.

लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी और मेरे दिल मे एक अजीब सा दर्द था. मैं बेहताशा उसके हाथों को चूमने लगा और उस से कहा.

मैं बोला “मैं तुझे बहुत दुख देता हूँ ना.”

कीर्ति भी मेरे पास ही नीचे आकर बैठ गयी और मेरे हाथो को चूमते हुए कहने लगी.

कीर्ति बोली “मुझे तुम्हारा दिया हर दर्द कबुल है. मैं तुम्हारा हर दर्द हंसते हंसते सह सकती हूँ. लेकिन यदि तुम्हे कोई आँच भी आए तो, मैं सह नही पाती हूँ. मुझे माफ़ कर दो. मैने वेवजह तुम पर हाथ उठाया. मगर मैं क्या करती. मैं उस बात को भुला नही पा रही थी. जिसकी वजह से मेरा सब कुछ लूट जाने वाला था.”

मैं बोला “सॉरी, अब आगे से ऐसा कुछ नही होगा.”

कीर्ति बोली “तुम हमेशा ऐसा ही कहते हो. लेकिन बार बार वही करते हो. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”

मैं बोला “लेकिन तूने भी तो वही किया है. जिस से मुझे तकलीफ़ होती है.”

कीर्ति बोली “मैने जो किया सिर्फ़ अपने आपको सज़ा देने के लिए किया है. यदि तुम मेरी जान को नुकसान पहुचाओगे तो, मैं तुम्हारी जान को भी नुकसान पहुचाउन्गी. मैं तुमसे ये पहले ही बोल चुकी हूँ.”

मैं बोला “ठीक है आज के बाद से हम दोनो ही एक दूसरे की जान को नुकसान नही पहुचाएगे.”

कीर्ति बोली “ऐसे नही, तुम मेरी कसम खाकर बोलो कि, तुम चाहे मेरे बारे मे कुछ भी सुन लो. लेकिन तब तक कोई ऐसा कदम नही उठाओगे. जब तक ये साबित ना हो जाए कि, तुमने जो सुना है वो सही है.”

कीर्ति की इस बात पर मैने उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “यानि की साबित होने के बाद मैं कुछ भी कर सकता हूँ.”

कीर्ति बोली “ज़्यादा मज़ाक मत करो. भगवान भी चाहेगा. तब भी मैं तुम्हे छोड़ कर नही जा सकती. मौत भी मुझे तुमसे दूर नही कर सकती. अब तुम सीधे से मेरी कसम खाते हो या फिर मैं कुछ और करूँ.”

मैं बोला “ख़ाता हूँ बाबा. मैं तेरी कसम खाकर बोलता हूँ कि, अब चाहे कैसी भी बात क्यो ना हो. मैं कभी बिना सोचे समझे और सच्चाई का पता किए बिना ऐसा कोई भी कदम नही उठाउंगा. जिसके उठाने से तुझे तकलीफ़ हो.”

कीर्ति बोली “ये हुई ना कोई बात. अब मैं सच मे बहुत खुश हूँ.”

मैं बोला “तू भी तो कसम खा. तू भी तो आए दिन ये हाथ काट कर मुझे तकलीफ़ देती रहती है.”

कीर्ति बोली “ओके मैं भी कसम खाती हूँ कि, जब तक तुम मेरी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाओगे. तब तक मैं भी तुम्हारी जान को कोई तकलीफ़ नही पहुचाउन्गी.”

मैं बोला “ये तूने कैसी कसम खाई है. मेरे तो कुछ समझ मे ही नही आया.”

कीर्ति बोली “अब ज़्यादा समझने की कोसिस मत करो. कही ऐसा ना हो कि, तुम यहाँ बैठे समझते रह जाओ और अमि निमी आ धम्के.”

मैं बोला “अरे हाँ, ये तो मैं भूल ही गया. मैं उन दोनो को बाइक सॉफ करने का काम देकर आया हूँ. अब तक तो वो बाइक सॉफ कर भी चुकी होगी. तू ऐसा कर जल्दी से तैयार हो जा. फिर हम बाहर कहीं चल कर बात करते है.”

कीर्ति बोली “ठीक है. मैं तुम्हे तैयार होकर नीचे ही मिलती हूँ. तुम जल्दी से तैयार होकर नीचे ही आ जाना. लेकिन किसी पर ये जाहिर मत करना कि, तुम मुझसे मिल चुके हो.”

मैं बोला “ओके लेकिन तुम तैयार होने मे ज़्यादा टाइम मत लगाना.”

कीर्ति बोली “टाइम मुझे नही लगेगा. टाइम तुम्हे लगेगा, क्योकि अमि निमी अपना काम ख़तम करके सीधे तुम्हारे कमरे मे ही धावा बोलेगी.”

मैं बोला “बात तेरी सही है. वो आएँ उस से पहले ही मुझे तैयार हो जाना चाहिए. मैं चलता हूँ.”

ये कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. अब 10 बज चुका था. मैं सीधे फ्रेश होने चला गया. मैं नहा कर बाहर आया. तब तक अमि निमी बाइक सॉफ कर के, मेरे कमरे मे आ चुकी थी.

कीर्ति की बात सही ही निकली थी. अमि निमी ने आते ही मेरे उपर, एक के बाद एक सवालों की बौछार करना सुरू कर दिया. जिस वजह से मुझे तैयार होने मे ज़्यादा समय लग गया.

तैयार होने के बाद 10:45 बजे मई अमि निमी के साथ नीचे आ गया. नीचे छोटी माँ और आंटी के साथ कीर्ति भी, नाश्ते पर मेरा इंतजार कर रहे थी.

मैने नाश्ता करते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “आज तुम बहुत देर तक सोती रही. क्या आज तुम्हारे स्कूल की छुट्टी है.”

कीर्ति बोली “छुट्टी नही है. आज मुझे एक प्रॉजेक्ट के सिलसिले मे, मेरी सहेली तुलिका से मिलना है.”

मैं बोला “क्या तुम्हारी ये कोई नयी सहेली है. मैने तो इसके बारे मे पहले कभी नही सुना. तुम्हे इस से मिलने कहाँ जाना है.”

कीर्ति बोली “नही ये भी मेरी पुरानी सहेली है. बस कभी इसका हमारे घर आना जाना नही है. जिस वजह से अभी उस से कोई नही मिला है. वो एमजी रोड के आस पास कहीं रहती है. उसने कहा है कि, मैं वहाँ पहुच कर उसे कॉल कर लूँ.”

मैं बोला “अरे मुझे भी तो वही एमजी रोड तक जाना है. तुम कहो तो मैं तुम्हे वहाँ छोड़ देता हूँ.”

कीर्ति बोली “नो थॅंक्स, मैं चली जाउन्गी. क्योकि तुम्हे वहाँ काम से जाना है और मुझे वहाँ से वापस लौटने मे शाम हो सकती है. तुम तो अपना काम करके वापस आ जाओगे. लेकिन फिर मुझे आने मे परेशानी हो जाएगी.”

मैं बोला “ये बात तो तुम्हारी ठीक है. लेकिन यदि तुम वहाँ से 4 बजे तक फ्री होती हो तो मैं वापसी मे भी तुम्हे लेते हुए आ सकता हूँ. क्योकि मुझे शायद अपना काम निपटाते निपटाते 4 बज जाएगा.”

कीर्ति बोली “यदि तुम 4 बजे मुझे वहाँ से वापस लेकर आ सकते हो. तब मुझे तुम्हारे साथ चलने मे कोई परेसानी नही है.”

मैं बोला “ठीक है तो, फिर तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. क्योकि मैं तो अभी यहाँ से निकलुगा.”

कीर्ति बोली “मैं तैयार हूँ. बस मुझे कपड़े बदलना है. तुम जब तक अपना नाश्ता ख़तम करोगे. तब तक मैं तैयार भी होकर आ जाउन्गी.”

ये कहते हुए कीर्ति उठ कर चली गयी. 10 मिनट बाद वो ब्लू जींस और वाइट टॉप पहने मेरे सामने खड़ी थी. मेरा नाश्ता करना हो चुका था.

मैने छोटी माँ और आंटी से शाम तक वापस लौटने का जताया. फिर मैं और कीर्ति बाहर आ गये. मैं अपनी बाइक निकालने लगा. तभी अमि और निमी हमारे पास आई और अमि कहने लगी.

अमि बोली “भैया ये ग़लत बात है.”

मैं बोला “क्यों, क्या हुआ.”

अमि बोली “आप अभी तो आए है और आते ही काम से जा रहे है. फिर शाम को आएगे तो, आते ही जाने की तैयारी करने लगेगे. हम लोगों को तो आपके साथ बिताने के लिए समय ही नही मिला.”

मैं बोला “अरे मैं यहाँ काम से वापस आया हूँ. यदि मुझे काम नही होता तो, मैं यहाँ आता ही क्यो. अब तू ही बता मैं जिस काम से यहाँ आया हूँ. उसे नही करूगा तो, फिर मेरे यहाँ आने का क्या मतलब हुआ.”

अमि बोली “लेकिन भैया, हमें आपका इस तरह से आना ज़रा भी अच्छा नही लग रहा है.”

मैं बोला “अच्छा तू ही बता कि, अब मैं क्या करूँ. तू कहेगी तो, मैं अपना काम नही करता, या फिर तुम दोनो को भी अपने साथ ले चलता हूँ.”

मेरी इस बात पर निमी जो अब तक मेरी और अमि की बात सुन रही थी. उसने कहा.

निमी बोली “भैया आप अपना काम कर लो. हम आपके साथ वहाँ जाकर क्या करेगे. आप ऐसा करना कि लौटते समय हम लोगों के लिए चॉक्लेट लेते आना. हम उसी से काम चला लेगे.”

उसकी बात सुनते ही अमि ने कहा.

अमि बोली “चटोरी कहीं की, जब देखो खाने की ही पड़ी रहती है. मैं यहाँ भैया के साथ टाइम बिताने की बात कर रही हूँ और तुझे चॉक्लेट खाने की पड़ी है.”

कीर्ति अभी तक चुप चाप सब बातें सुन रही थी. उसने देखा कि अमि का मूड कुछ ज़्यादा ही खराब हो गया है. तब उसने समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे इसमे इतना दुखी होने की क्या बात है. तुझे तो खुश होना चाहिए कि, चाहे काम के बहाने से ही सही, लेकिन तुझे अपने भैया से मिलने का मौका तो मिल गया. तुझे इनके साथ समय ही बिताना है तो, तू भी इनके साथ चली जा.”

लेकिन अमि पर उसकी इस बात का कोई असर नही पड़ा. उसका मासूम सा चेहरा उदास हो गया. उसका इस तरह से उदास होना, मुझसे भी नही देखा गया. मैने उस से कहा.

मैं बोला “तू इस तरह अपना चेहरा मत उतार और तू भी मेरे साथ चल. इस तरह मेरा काम भी हो जाएगा और तुझे मेरे साथ बिताने के लिए समय भी मिल जाएगा.”

अमि बोली “क्या सच मे मैं आप के साथ चल सकती हूँ.”

मैं बोला “हाँ, तू सच मे मेरे साथ चल सकती है. अब देर मत कर और जाकर जल्दी से तैयार हो जा.”

मेरी बात सुनकर अमि के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वो खुशी खुशी तैयार होने चली गयी. सारी बात पलटते देख, निमी ने भी अपना पाला बदलते हुए कहा.

निमी बोली “ये नही हो सकता.”

मैं बोला “क्या नही हो सकता.”

निमी बोली “मैं तो आपका साथ दे रही थी और आप मुझे ही छोड़ कर जा रहे है.”

मैं बोला “क्या तुझे चलने के लिए अलग से जताना होगा. तुझे चलना है तो, तू भी जाकर तैयार हो जा.”

मेरी बात सुनते ही निमी भी भागते हुए अंदर चली गयी. अब कीर्ति मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. मैं उसकी इस मुस्कुराहट का मतलब समझता था. मैने धीरे से उस से कहा.

मैं बोला “मैं क्या करता. मुझसे अमि का उतरा हुआ चेहरा नही देखा गया.”

कीर्ति बोली “वो तो मैं पहले से ही जानती थी कि, ऐसा ही कुछ होगा. लेकिन अब मेरे मिलने का क्या होगा.”

मैं बोला “अब मैं क्या बोलू. तू ही कोई ऐसा रास्ता निकाल. जिससे दोनो का दिल भी ना टूटे और हमारा काम भी हो जाए.”

कीर्ति बोली “ठीक है, अब तुम चुप रहना. बाकी मैं संभाल लुगी.”

मैं बोला “ओके.”

इसके बाद हम दोनो, अमि निमी के तैयार होकर लौटने का वेट करने लगे. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, कीर्ति के दिमाग़ मे इस वक्त क्या चल रहा है और वो अमि निमी के तैयार होकर आने पर, क्या करने वाली है.

मैने अपनी दोनो बहनों को तैयार होने तो भेज दिया था. लेकिन अब इस बात कर डर भी लग रहा था कि, उनके तैयार होकर आने पर, कीर्ति उन को साथ ले चलने से मना ना कर दे. यदि कीर्ति ऐसा कुछ करती है तो, अमि निमी के साथ साथ मेरे दिल को भी बहुत चोट पहुचना तय था.

क्योकि यदि कीर्ति मेरी जान थी तो, अमि निमी मुझे जान से प्यारी थी. मेरे लिए अमि निमी और कीर्ति मे से, किसी एक का साथ छोड़ पाना या किसी एक का साथ दे पाना बहुत मुस्किल था. मैं एक अजीब सी कशमकश मे घिर गया था.

फिर वो पल भी आ गया. जब मेरी इस बेचेनी का अंत होना था. अमि निमी दोनो तैयार होकर हमारे सामने आकर खड़ी हो गयी. दोनो मुस्कुरा कर मुझे देख रही थी. मगर कीर्ति के चुप करा देने की वजह से, मैं उन से कुछ नही बोला.

मैं नही जानता था कि, अब क्या होने वाला है. लेकिन एक अजीब सा डर मुझे सताए जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि, जैसे अभी का अभी, मेरा सब कुछ ख़तम होने वाला है. मेरी बेचेनी हद से ज़्यादा बढ़ गयी थी.
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09-09-2020, 01:55 PM,
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अमि निमी दोनो मेरे सामने खड़ी खिलखिला रही थी. अमि ने रेड टॉप और ब्लॅक स्कर्ट पहना हुआ था और निमी वाइट फ्रॉक मे थी. उस समय दोनो किसी परी की तरह ही सुंदर लग रही थी.

मैने हसरत भरी नज़र से कीर्ति की तरफ देखा. कीर्ति भी उन को देख कर मुस्कुरा रही थी. उसने दोनो से मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम दोनो तो ऐसे तैयार होकर आ गयी. जैसे तुम किसी पार्टी मे जा रही हो. अरे हम लोग काम से जा रहे है. ऐसे मे तुम्हारे ये कपड़े पहने का क्या मतलब है.”

अमि बोली “दीदी हमारे लिए भैया के साथ जाना, किसी पार्टी मे जाने से कम नही है. अब आप टाइम बर्बाद मत करो और जल्दी से अपनी स्कूटी निकालो.”

कीर्ति बोली “मैं अपनी स्कूटी क्यों निकालु. क्या तुम लोग अपने भैया के साथ नही जा रही हो.”

अमि बोली “हम तो भैया के साथ जा रहे है. लेकिन आप भी तो हमारे साथ चल रही है. अब भैया की बाइक मे तो, 4 लोग नही आएगे. ऐसे मे आपको अपनी स्कूटी तो निकालना ही पड़ेगी.”

कीर्ति बोली “मुझे स्कूटी निकालने की कोई ज़रूरत नही है. पहले तुम लोग जाकर अपने भैया के साथ घूम आओ. तब तक मैं वेट करती हूँ. जब तुम लोग वापस आ जाओगी. तब मैं चली जाउन्गी.”

अमि बोली “पर हम घूमने कहाँ जा रहे है. भैया तो अपना काम करेगे और हम उनके साथ रहेगे.”

कीर्ति बोली “नही तुम लोग अभी घूमने जा रही हो. तुम लोग 1 घंटे मन भर के अपने भैया के साथ जहाँ भी घूमना चाहो. वहाँ घूम कर आ जाओ. लेकिन सिर्फ़ एक घंटे, क्योकि तुम्हारे भैया को अपना काम भी करना है.”

अमि बोली “लेकिन दीदी, भैया के पास घूमने का टाइम कहाँ है.”

कीर्ति बोली “टाइम रहता नही है. निकाला जाता है. अब तुम लोग बातों मे टाइम खराब मत करो और घूमने जाओ. लेकिन ध्यान रखना की, तुम्हे 1 घंटे के अंदर वापस आना है. नही तो तुम्हारे भैया का काम नही हो पाएगा.”

अमि बोली “दीदी आप चिंता ना करे. अभी 11:15 बजा है. हम लोग 12:15 बजे तक वापस आ जाएगे.”

अमि की बात सुन कर कीर्ति ने हंसते हुए, मेरी तरफ देखा. मैं उस से कुछ बोलना चाहता था. लेकिन तभी उस ने मुझे, चुप चाप उनके साथ जाने का इशारा किया.

उसका इशारा पाकर मैने अमि निमी को बाइक मे बैठने को कहा. अमि निमी ने बाइक मे बैठते हुए, कीर्ति को बाइ कहा और फिर हम लोग घूमने के लिए निकल पड़े.

मैं अमि निमी के साथ एक पार्क मे गया. वहाँ पर वो लोग बहुत से झूले झूलती रही और मैं उन्हे हंसते खिलखिलते देखता रहा. ऐसे मे समय का पता ही नही चला कि कब समय बीत गया.

मैने टाइम देखा तो 12:15 बज गया था. मैने अमि निमी से वापस चलने को कहा तो, उन्हो ने भी रुकने की, कोई ज़िद नही की. रास्ते से मैने अमि निमी को चॉक्लेट और आइस क्रीम दिलाई. उसके बाद हम सीधे घर आ गये. हमे घर आते आते 12:30 बज गया था.

कीर्ति हमे घर के बाहर ही इंतजार करते मिली. वो बड़ी बेचेनी से हमारे वापस आने का रास्ता देख रही थी. अमि निमी तो समझ चुकी थी कि, उन्हे आने मे देर हो गयी है. इसलिए वो बाइक से उतरते ही, कीर्ति से कहने लगी.

अमि बोली “सॉरी दीदी, रास्ते मे हम ये चॉक्लेट और आइस क्रीम लेने लगे थे. जिस वजह से हमे आने मे थोड़ी देर हो गयी.”

कीर्ति बोली “नही, तुम लोगों ने आने मे ज़्यादा देर नही की है. सिर्फ़ 15 मिनट ही तो ज़्यादा हुए है. अब तुम लोग अंदर जाओ. नही तो मुझे जाने मे देर ज़रूर हो जाएगी.”

कीर्ति का अच्छा मूड देख कर अमि निमी हँसी खुशी, घर के अंदर जाने लगी और मैं उन्हे अंदर जाते देखता रहा. उनके अंदर चले जाने के बाद कीर्ति ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “अब अपनी बहनों को घूमना हो गया हो तो, थोड़ा सा वक्त मुझे भी दे दो.”

मैं उसकी इस बात से सकपका गया. मैने जल्दी से अपनी बाइक स्टार्ट की, और कीर्ति के बाइक मे बैठते ही, बाइक आगे बढ़ा दी. कीर्ति आज मुझसे बहुत दूर हट कर बैठी हुई थी.

मैं उस से पास बैठने के लिए बोलना चाह रहा था. लेकिन मुझे उसका मूड कुछ ठीक सा नही लग रहा था. मुझे लगा शायद वो अमि निमी के मेरे साथ जाने को लेकर कुछ नाराज़ है. इसलिए मेरी उस से कुछ बोलने की हिम्मत ही नही हो रही थी.

हम दोनो आपस मे कोई बात भी नही कर रहे थे. जब काफ़ी देर तक हम ऐसे ही खामोश रहे. तब मैने खुद ही बात करने की पहल करते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “हमे कहाँ चलना है. कुछ बताएगी, या यू ही सड़क पर बाइक घुमाता रहूं.”

कीर्ति बोली “मुझे क्या मालूम. तुम जहाँ चलना चाहो, वहाँ ले चलो. अभी तो हमारे पास 3-4 घंटे है.”

उसकी इस बात से मुझे बात करने की थोड़ी हिम्मत मिली. मैने उस से पुछा.

मैं बोला “क्या तू मुझसे नाराज़ है.”

कीर्ति बोली “नही तो, तुम्हे ऐसा क्यो लग रहा है.”

मैं बोला “तू इतना चुप चुप बैठी है. इसलिए मुझे लगा कि, शायद तू किसी बात पर मुझसे नाराज़ है.”

कीर्ति बोली “चुप तो इसलिए बैठी हूँ, क्योकि समझ मे नही आ रहा कि, क्या बात करूँ.”

मैं बोला “क्या तुंझे अमि निमी का, मेरे साथ जाना पसंद नही आया.”

कीर्ति बोली “ऐसी कोई बात नही है. उनका भी तो तुम पर हक़ बनता है. मैं तुम्हे उनसे दूर क्यो करना चाहुगी.”

मैं बोला “तब तो तू सच मे, इसी बात को लेकर नाराज़ है. नही तो तू इस तरह से बात नही करती.”

कीर्ति बोली “नही, मैं सच मे किसी बात से नाराज़ नही हूँ.”

मैं बोला “नही कोई तो बात ज़रूर है. वरना तू इस तरह चुप रहने वालों मे से नही है.”

कीर्ति बोली “कुछ नही. बस ऐसे ही.”

मैं बोला “बता ना, क्या बात है. अचानक ऐसी क्या बात हो गयी. जिसने तुझे इतना परेशान कर दिया.”

कीर्ति बोली “बात तो कुछ भी नही है, और बहुत कुछ भी है. अमि निमी मुझे कितना प्यार करती है. मगर कल जब वो बड़ी हो जाएगी और उन्हे हमारे रिश्ते का पता चलेगा. क्या तब भी वो मुझे इतना ही प्यार कर सकेगी.”

मैं बोला “बस इतनी सी बात ने तुझे परेशान कर दिया. मैं बाकी सब का तो नही जानता. मगर अमि निमी के बारे मे, इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि, वो हमारे बारे मे जानने के बाद भी हमें उतना ही प्यार करेगी. जितना की अभी करती है.”

कीर्ति बोली “यदि ऐसा ना हुआ, तब क्या करोगे.”

मैं बोला “तब हम दोनो, ये शहर छोड़ कर चले जाएगे और कहीं दूर जाकर अपनी नयी दुनिया बसाएगे.”

कीर्ति बोली “यही तो मेरी परेशानी की वजह है. मैं तुम्हे किसी से दूर करना नही चाहती और यदि मान लो ऐसा हो भी गया तो, क्या तब तुम अमि निमी के बिना रह सकोगे.”

मैं बोला “मुझे नही, ये फ़ैसला तो, आगे जाकर अमि निमी को करना है. क्या वो मेरी खुशी के साथ खुश रहना पसंद करेगी, या मेरे बिना रहना पसंद करेगी.”

कीर्ति बोली “तुम्हे क्या लगता है. वो क्या पसंद करेगी.”

मैं बोला “मैं तुझे पहले ही बता चुका हूँ कि, अमि निमी हमारे बारे मे जानने के बाद भी हमें उतना ही प्यार करेगी. जितना अभी करती है. ये हो सकता है कि, वो हमारे रिश्ते से कुछ देर के लिए नाराज़ हो जाए. मगर हमें छोड़ने का फ़ैसला वो कभी नही कर सकती. क्या तुझे मेरी बात पर विस्वास नही है.”

कीर्ति बोली “नही ऐसी बात नही है. मेरे मन में भी यही बात थी. मैं सिर्फ़ तुमसे सुनना चाहती थी.”

मैं बोला “ऐसा क्यो.”

कीर्ति बोली “मैं नही चाहती कि, मेरी वजह से तुम्हे इतनी प्यारी बहनों को खोना पड़े.”

मैं बोला “वो तो मैं देख चुका हूँ. तेरी जगह यदि कोई और होता तो, अमि निमी को मेरे साथ भेजने की बात तो दूर थी. वो मुझसे इस बात को लेकर नाराज़ ही हो गया होता.”

कीर्ति बोली “इसमे नाराज़ होने की बात ही नही थी. जितना प्यार तुम उनसे करते हो. उतना प्यार मुझे भी उनसे है. जैसे तुम्हे उनका उतरा हुआ चेहरा नही देख सकते. वैसे ही मैं भी उनका उतरा हुआ चेहरा नही देख सकती.”

मैं बोला “एक बात पुच्छू.”

कीर्ति बोली “पुछो.”

मैं बोला “यदि तुम्हे अमि निमी और मुझमे से किसी एक को चुनना पड़े तो, तुम किसे चुनोगी.”

कीर्ति बोली “ये फ़ैसला करना बहुत मुश्किल है. लेकिन फिर भी यदि ऐसा कभी हुआ तो, मैं अमि निमी को चुनूँगी.”

मैं बोला “वो क्यो. क्या तुझे, मुझसे ज़्यादा अमि निमी से प्यार है.”

कीर्ति बोली “प्यार तो मैं अपने परिवार के हर एक सदस्य से बहुत करती हूँ. लेकिन मेरे लिए तुम सब से उपर हो.”

मैं बोला “फिर तू मुझे छोड़ कर अमि निमी को क्यो चुनेगी.”

कीर्ति बोली “क्योकि मैं जानती हूँ कि, भले ही तुम मुझे अपनी जान मानते हो, पर अमि निमी तुम्हे अपनी जान से ज़्यादा प्यारी है. ऐसे मे यदि मैं उनको चुनुगी. तब भी मैं एक तरह से तुम्हे ही चुनुगी.”

मैं बोला “तू इतनी बड़ी बड़ी बातें इतनी आसानी से कैसे सोच लेती है.”

कीर्ति बोली “”इसमे सोचना क्या है. ये मेरी वो भावनाएँ है. जो मेरे दिल मे तुम सब के लिए है. भला भावनाओं को जाहिर करने के लिए किसी को सोचने की ज़रूरत क्यो पड़ेगी.”

मैं बोला “एक बात और बोलूं.”

कीरी बोली “बोलो.”

मैं बोला “यार घर तो अब बहुत पिछे निकल गया है. अब तो तुम पास आकर बैठ जाओ. मुझसे तुमसे इतनी दूर नही रहा जा रहा है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मेरी पीठ पर एक मुक्का मारा और बिल्कुल मेरे से सट कर बैठ गयी. उसने अपना सर मेरी पीठ पर टिका दिया और मुझसे कहने लगी.

कीर्ति बोली “तुम मुंबई जाकर बहुत बोलने लग गये हो.”

मैं बोला “अब इसमे मुंबई की बात कहाँ से आ गयी. मैं तुमसे इतने दिन बाद मिल रहा हूँ और तुम हो कि, मेरे पास ही नही आ रही थी. तुम्हारा मन तो ज़रा भी मेरे पास आने का नही किया.”

कीर्ति बोली “अच्छा, मेरा मन तुम्हारे पास आने का नही है तो, फिर तुम्हे मुंबई से यहाँ किसने बुलाया.”

मैं बोला “अरे ये बात तो मैं पुच्छना भूल ही गया. तू ये बता, तुझे अचानक ऐसा क्या हो गया था. जो तूने मुझे यहाँ बुला लिया.”

कीर्ति बोली “क्यो, क्या मेरे पास दिल नही है. क्या मुझे तकलीफ़ नही होती. क्या मेरा मन तुम्हे देखने का नही करता.”

मैं बोला “वो तो ठीक है. लेकिन सिर्फ़ कुछ दिन की ही तो बात थी. मैं कोई घूमने तो वहाँ गया नही हूँ. ये तो तू भी अच्छे से जानती है.”

कीर्ति बोली “मैं सब जानती हूँ. लेकिन तुमने ही मेरी सोई हुई भावनाओं को जगा दिया था. फिर मैं अपने आप पर काबू नही रख सकी.”

मैं बोला “क्यो, मैने ऐसा क्या कर दिया था.”

कीर्ति बोली “तुमने ही मुझसे मेरी डाइयरी पढ़ने की ज़िद की थी. उसमे डाइयरी मे, मैं अपने दिल की, सारी अच्छी बुरी बातें लिखती हूँ. जब मैं उसे पढ़ रही थी. तब मुझे तुम्हारा दूर रहना बहुत ज़्यादा अखर रहा था. मुझसे तुम्हारी जुदाई सहन कर पाना मुश्किल हो गया और जब मेरी तुम्हारे बिना जान निकलने लगी. तब मैने तुम्हे वापस आने को कह दिया.”

मैं बोला “लेकिन तूने अपने कमरे मे इतनी तोड़ फोड़ क्यो की.”

कीर्ति बोली “सॉरी.”

मैं बोला “चल ठीक है. अब दोबारा ऐसा मत करना. मुझे तो तुझसे ताक़त मिलती है और तू ही यदि ऐसे कमजोर पड़ जाएगी तो, मेरा क्या हाल होगा.”

कीर्ति बोली “ये तो पुछो सॉरी किस लिए बोल रही हूँ.”

मैं बोला “इसमे पुच्छना क्या है. तूने अपने कमरे मे जो तोड़ फोड़ की थी. उसके लिए सॉरी बोल रही है.”

कीर्ति बोली “नही, मैने अपने कमरे मे कोई तोड़ फोड़ नही की थी.”

मैं बोला “तो फिर.?”

कीर्ति बोली “वो सारी तोड़ फोड़ मैने तुम्हारे कमरे मे की थी. इसलिए सॉरी बोल रही हूँ”

मैं बोला “लेकिन मुझे तो वहाँ कुछ भी ऐसा नज़र नही आया.”

कीर्ति बोली “सारा बिखरा हुआ समान, मैने सोने से पहले सॉफ कर दिया था और टूटा हुआ समान अलग कर दिया था. अभी तुम अपने कमरे मे रुके ही कहाँ हो. जब तुम अपने कमरे मे रुकोगे, तब तुम्हे पता चलेगा कि, क्या क्या समान वहाँ से गायब है.”

मैं बोला “लेकिन इसमे मेरे कमरे का क्या कसूर था. जो तूने वहाँ तोड़ फोड़ कर डाली.”

कीर्ति बोली “मुझे बहुत रोना आ रहा था. मैने सोचा तुम्हारे कमरे मे जाउन्गी तो, मुझे कुछ आराम मिलेगा. मगर वहाँ जाते ही मुझे और भी ज़्यादा तुम्हारी कमी अखरने लगी. फिर मुझे जिस जिस चीज़ को देख कर, तुम्हारी ज़्यादा कमी अखरी. मैं हर उस चीज़ को उठा कर फेकने लगी.”

मैं बोला “वाह जान तुम्हारा गुस्सा तो, बहुत निराला है. अच्छा है मैं वहाँ नही था. वरना पता नही तुम मेरा क्या हाल करती.”

कीर्ति बोली “तुम रहते तो, मुझे गुस्सा आता ही क्यों. गुस्सा तो इसी बात का था कि, तुम मेरे पास नही हो.”

अभी कीर्ति अपनी बात बता ही रही थी. तभी हम लोग लवर’स पॉइंट पहुच गये. मेरे बाइक के रुकते ही कीर्ति का बात करना भी बंद हो गया.

वो बाइक से उतर कर अपने बाल सही करने लगी. बाइक मे बैठे होने की वजह से हवा से उसके बाल बिखर गये थे. मैने बाइक खड़ी की और कीर्ति को बाल सँवारते देखने लगा.
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09-09-2020, 01:56 PM,
#89
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उस समय उसके बाल, उसके चेहरे पर आ गये थे. जिस से उसका चेहरा बहुत सुंदर दिखने लगा था. मैने उसे देखा तो देखता रह गया. कुछ पल के लिए तो, कीर्ति का चेहरा देख कर मेरी धड़कने ही थम गयी.

उसने अपने बाकी के बाल भी खोले और फिर सारे बालों को एक साथ समेट कर बाँध लिया. उस समय उसका ध्यान मेरी तरफ नही था. जब उस ने अपने बाल बाँध लिए, तब उस ने मेरी तरफ देखा.

उसने मुझे अपनी तरफ, इतनी गौर से देखते पाया तो, उसने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “इतने गौर से क्या देख रहे हो. क्या पहले कभी मुझे देखा नही है.”

मैं बोला “देखा तो है, मगर जो नज़ारा आज मैने देखा है. वो इसके पहले कभी नही देखा.”

कीर्ति बोली “क्यो, आज ऐसा क्या देख लिया. जो इस से पहले नही देखा था.”

मैं बोला “तेरे चेहरे पर बालों का बिखरना.”

कीर्ति बोली “इस मे कौन सी नयी बात है. हर लड़की के बाल, उस के चेहरे पर बिखरते ही है.”

मैं बोला “हर लड़की का तो, मैं नही जानता. लेकिन तेरे बिखरे हुए बालों मे, तू बहुत ज़्यादा सुंदर दिख रही थी. ऐसे मे तुझे देख कर मेरी धड़कने ही थम गयी थी.”

कीर्ति बोली “अच्छा जी, तो क्या ऐसे मे, मैं सुंदर नही दिखती हूँ.”

कीर्ति के ये बात बोलने का अंदाज कुछ ऐसा था कि, मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरे कानो मे शहद घुल गया हो. मैने चहकते हुए, कीर्ति से कहा.

मैं बोला “हाए मैं मर जावा. ऐसी अदा पर कौन ना मार मिटे. एक बार फिर से बोलो ना.”

कीर्ति बोली “क्या.”

मैं बोला “वही जो अभी बोला था.”

कीर्ति बोली “यही कि, क्या ऐसे मे मैं सुंदर नही दिखती.”

मैं बोला “नही, जो उसके पहले बोला था.”

कीर्ति बोली “क्या बोला था.”

मैं बोला “वही, अच्छा जी.”

कीर्ति बोली “जाओ मैं नही बोलती. तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो.”

मैं बोला “नही जान, मैं तुम्हारा मज़ाक नही उड़ा रहा. प्लीज़ एक बार बोलो ना.”

कीर्ति बोली “क्यो बोलू. मैं नही बोलुगी.”

मैं बोला “तुम्हे मेरी कसम. प्लीज़ बोलो ना जान.”

कीर्ति बोली “अच्छा जी. अब खुश.”

मैं बोला “जान, मैं तो ये सुनकर सच मे पागल हो जाउन्गा. प्लीज़ एक बार फिर बोलो.”

कीर्ति बोली “अब नाटक बंद करो. मुझे गुस्सा आ रहा है. अब जल्दी से उपर चलो.”

मैं बोला “नही, जब तक तुम एक बार फिर नही बोलोगि. मैं यहा से हिलुगा भी नही.”

कीर्ति बोली “अच्छा जी, अब चलो भी.”

मैं बोला “हाँ अब चलो.”

फिर हम दोनो उपर पहाड़ियों पर जाने लगे. चलते चलते कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “जान एक बात पुच्छू.”

मैं बोला “हाँ पुछो.”

कीर्ति बोली “निक्की और प्रिया मे कौन ज़्यादा सुंदर है.”

मैं बोला “निक्की ज़्यादा सुंदर है. लेकिन प्रिया भी कोई कम सुंदर नही है. वो रिया से ज़्यादा सुंदर दिखती है. लेकिन अचानक तुझे ये सवाल पुच्छने की कैसे सूझी.?”

कीर्ति बोली “कुछ नही, बस ऐसे ही पूछ लिया.”

मैं बोला “कहीं तुझे ये तो नही लग रहा है कि, मैं कहीं प्रिया से सच मे तो, प्यार नही करने लगा.”

कीर्ति बोली “नही मुझे ऐसा कुछ नही लग रहा है. मुझे मेरी जान पर पूरा विस्वास है. मगर ना जाने क्यो मुझे, उस दिन तुम्हारा प्रिया वाली बात करना बहुत अजीब लगा था.”

मैं बोला “उसमे कुछ भी अजीब नही था. मैने तुझसे जो भी कहा था. वो सब सच था, सिवाय इसके कि, मैं प्रिया से प्यार करने लगा हूँ.”

मेरे ये बोलते ही कीर्ति मेरी तरफ देखने लगी. मैने उसका एक हाथ अपने हाथो मे पकड़ा और फिर आगे बढ़ते हुए, उसको उस दिन की सारी घटना बताने लगा. ये ही बात करते करते हम उपर पहुच गये.

उपर पहुच कर हम एक चट्टान पर बैठ गये. जब मेरी बात पूरी हुई तो, मैने कीर्ति के हाथों को चूमते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे उस दिन खुद ये सब करना बुरा लग रहा था. लेकिन मेरे लिए, तेरे प्यार की सच्चाई प्रिया के सामने लाना ज़रूरी था. मैं उसे बस ये दिखाना चाहता था कि, तेरा प्यार, मेरे और प्रिया के प्यार से बहुत उपर है. निक्की भी उस समय इस सब मे मेरी मदद कर रही थी. जिस वजह से मैने उसे भी कुछ करने से नही रोका. मगर आज मैं तुझसे इस सब के लिए माफी माँगता हू. शायद मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.”

कीर्ति बोली “नही जान, तुम्हे माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है. तुमने जो भी किया, वो सिर्फ़ मुझे उँचा दिखाने के लिए किया है. मगर मेरी समझ मे ये बात नही आ रही है कि, क्या प्रिया और निक्की दोनो हमारी सचाई को जान गये है.”

मैं बोला “नही, प्रिया सिर्फ़ इतना जानती है कि, मैं किसी लड़की से प्यार करता हूँ. लेकिन वो ये नही जानती कि, वो लड़की कौन है. मगर निक्की सब कुछ जानती है. उसे ये भी मालूम है कि, वो लड़की तुम हो.”

कीर्ति बोली “निक्की को ये सब कैसे मालूम पड़ा.”

कीर्ति की इस बात पर मैं उसे, हॉस्पिटल मे उसके कॉल आने से लेकर, निक्की से साथ हुई हर एक घटना के बारे मे बताने लगा. वो बड़े गौर से मेरी बात को सुन रही थी.

जब मैने उसे निक्की और मेहुल के बीच हुई बातों के बारे मे बताया. तब उसने मुझे टोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “ये तो निक्की ने सच मे बहुत ग़लत काम किया है. लेकिन उसको अपने और शिल्पा के बारे मे बताने की, तुम्हे ज़रूरत क्या थी.”

मैं बोला “जब वो मेरे और तुम्हारे रिश्ते के राज को जान चुकी थी तो, मुझे लगा कि वो मेरा सबसे बड़ा राज तो जानती ही है. ऐसे मे उसके ये सब जान लेने से मुझे कोई फरक नही पड़ेगा. यही सोच कर मैने उसे अपने और शिल्पा के बारे मे भी बता दिया था.”

कीर्ति बोली “क्या मेहुल से फिर तुम्हारी इस बारे मे बात हुई.”

मैं बोला “नही, मैं उसको अभी टालता जा रहा हूँ. मैने सोचा पहले तुझसे सलाह कर लूँ. फिर उस से कोई बात करूँ.”

कीर्ति बोली “ये तुमने बिल्कुल ठीक किया. अब ये बताओ निक्की से इस बारे मे आगे, तुम्हारी क्या बात हुई.”

मैं बोला “मैने इस बारे मे अभी तक कोई बात नही की है. उस दिन यदि उसने तुम्हारी कसम नही दी होती तो, शायद आज मेरी उस से बात भी नही हो रही होती. अभी भी जब वो मेरे सामने आती है. मुझे उस पर बहुत गुस्सा आता है.”

कीर्ति बोली “मुझे नही लगता कि, इस बात को बताने के पिछे निक्की का कोई ग़लत मकसद होगा. शायद वो ये सब करके तुम्हारी कोई मदद करना ही चाहती हो.”

मैं बोला “तुम किस मदद की बात कर रही हो. जो बात आज तक मैने किसी को पता नही चलने दी. उसने वो बात सिर्फ़ कुछ ही घंटो मे मेहुल को बता दी. उस ने ये सब कर के मेरे साथ विस्वाशघात किया है.”

कीर्ति बोली “तुम्हारा ये सोचना ग़लत नही है. मगर तुम एक बात क्यो भूल रहे हो. यदि उसे तुम्हारे साथ धोका ही करना होता तो, उस ने मेहुल को हम दोनो के रिश्ते की बात बताई होती. लेकिन उस ने ये बात मेहुल तो क्या, हमेशा उसके साथ रहने वाली प्रिया और रिया से भी छुपा कर रखी है. फिर उसने प्रिया को समझाने मे और अभी जब तुम यहाँ आए हो तब भी तुम्हारी मदद की है. ऐसा तो सिर्फ़ एक सच्चा दोस्त ही कर सकता है.”

कीर्ति की बात मेरे दिमाग़ मे बैठ गयी. मैने उस से पुछा.

मैं बोला “तुम्हे क्या लगता है. निक्की ने ऐसा क्यो किया हो सकता है.”

कीर्ति बोली “अब ये तो वो ही बेहतर बता सकती है. लेकिन जहाँ तक मेरा अंदाज है कि, शायद किसी वजह से, वो मेहुल को ये बताना चाहती हो कि, तुमने मेहुल के लिए कितनी बड़ी कुर्बानी दी है.”

मैं बोला “तेरी ये बात सही भी हो सकती है. वो सच मे हम लोगो की सबसे ज़्यादा मदद कर रही है. लेकिन फिर भी उसे देखते ही मुझे गुस्सा आ जाता है.”

कीर्ति बोली “वो इसलिए कि तुम अब तक उसकी इस ग़लती को भुला नही पा रहे हो. मगर तुम इस बात को सोच कर क्यो नही देखते कि, यदि इस बात मे उसकी ग़लती होती तो, वो उस दिन तुमको मानने के लिए हॉस्पिटल मे नही रुकी होती. वो भी सबके साथ घर चली गयी होती. तुमने तो उस से ये तक जानने की कोशिस नही की होगी, कि उस ने बाकी सब को हॉस्पिटल मे रुकने की क्या वजह बताई है.”

मैं बोला “तेरी ये बात बिल्कुल सही है. ना तो मैने उस से ये सब जानने की कोशिस की थी और ना ही तेरे बोलने से पहले ये बात मेरे दिमाग़ मे आई थी. तुझे क्या लगता है. क्या मुझे उस से इस बारे मे बात करना चाहिए.”

कीर्ति बोली “हाँ तुम्हे उस से भी बात करना चाहिए और मेहुल से भी बात करना चाहिए. नही तो मेहुल को ये लगेगा कि, तुम अभी भी शिल्पा से प्यार करते हो और वो अपने आपको इस सब के लिए दोषी मानेगा.”

मैं बोला “लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा कि, मैं मेहुल से इस बारे मे क्या बोलूं. निक्की तो उसे सब कुछ बता चुकी है. अब मैं इस बात को झुठला भी तो नही सकता.”

कीर्ति बोली “तुम्हे ये बात झुठलाने की ज़रूरत भी नही है. जो भी सच है. वो ही बोल दो और आख़िरी मे उसके सामने एक सवाल रख दो कि, यदि तुम्हारी जगह वो खुद होता तो वो क्या करता.”

मैं बोला “लेकिन ये भी तो हो सकता है कि, मेरे ये कहने से उसके और शिल्पा के बीच मे दूरी बढ़ जाए.”

कीर्ति बोली “मेरे पास इसका भी इलाज है. तुम उसके सामने ये बात रख देना कि अब तुम किसी और लड़की से प्यार करते हो. तुम्हारे इतना बोल देने से उसके मन का सारा बोझ उतर जाएगा.”

मैं बोला “ऐसे मे तो, मैं एक और समस्या मे घिर जाउन्गा. वो कहेगा कि, उसे उस लड़की से मिलवाओ. तब मैं वो लड़की कहाँ से लाउन्गा. जो उसके सामने इस बात को माने कि मैं उस से प्यार करता हूँ.”

कीर्ति बोली “ऐसी एक लड़की मेरी नज़र मे है. जो सिर्फ़ इस बात को ही नही मानेगी बल्कि ये भी मान लेगी कि, वो भी तुमसे प्यार करती है.”

मैं बोला “कहीं तुम नितिका की बात तो नही कर रही हो.”

कीर्ति बोली “खबरदार जो दोबारा नितिका का नाम बीच मे लाए. वो पहले ही तुम्हारे पीछे पागल है. मैं तुम्हारे गले से घंटी उतरना चाह रही हूँ और तुम मेरे ही गले मे घंटी बाँधने जा रहे हो.”

मैं बोला “सॉरी, मुझे कोई और समझ मे नही आया तो, मैं उसका नाम ले गया. तुम बताओ तुम्हारी नज़र मे ऐसी कौन सी लड़की है. जो खुशी खुशी ये सब करने को तैयार हो जाएगी.”

कीर्ति बोली “मेरी एक सहेली अंकिता है. वो मेरे साथ कोचिंग क्लासस मे पढ़ती है और सबसे बड़ी बात ये है कि वो मेरे स्कूल की भी नही है. इसलिए उसे कोई नही जानता है. उसे भी एक झूठे बाय्फ्रेंड की तलाश है.”

मैं बोला “मैं समझा नही.”

कीर्ति बोली “उसको उसके बाय्फ्रेंड ने, किसी दूसरी लड़की के लिए छोड़ दिया है. अब वो इस लफडे मे पड़ना नही चाहती है और अपने उस बाय्फ्रेंड को जलाना भी चाहती है. इसलिए वो कोई झूठा बाय्फ्रेंड बनाना चाहती है. उसने ऐसे किसी लड़के बारे मे मुझसे पुछा था. तब मैने उसकी मदद करने की नियत से, तुम्हारा नाम उसके सामने ले दिया और बता दिया था कि, तुम बाहर गये हो. तुम्हारे आते ही मैं उसको तुमसे मिलवा दुगी.”

मैं बोला “कहीं ऐसा ना हो कि, वो ही मेरे गले पड़ जाए.”

कीर्ति बोली “उसके गले पड़ने का कोई चान्स नही है.”

मैं बोला “वो क्यो भला.”

कीर्ति बोली “क्योकि मैने उसे बताया है कि, तुम मेरे बाय्फ्रेंड हो.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गये. मैने उस से कहा.

मैं बोला “तुझे ये सब उस से कहने की क्या ज़रूरत थी.”

कीर्ति बोली “मैं क्या करती. वो मेरे सामने रोज रोज अपने बाय्फ्रेंड की तारीफ किया करती थी. मैं भी उसको बताना चाहती थी कि, मेरा भी कोई बाय्फ्रेंड है और वो मुझसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता है. एक दिन जब मुझसे नही रहा गया तो, मैने उसे ये बात बोल ही दी.”

मैं बोला “तूने ये नही सोचा कि, अगर उसे बाद मे पता चल गया कि, हम दोनो भाई बहन है. तब क्या होगा.”

कीर्ति बोली “अब जो भी होगा, देखा जाएगा. मुझे उस समय जो भी ठीक लगा मैने किया. वैसे भी मैं अपने आज को जी भर कर जीना चाहती हूँ. जितनी खुशी मुझे इस बात को बताने मे मिली है. उतनी खुशी मुझे कभी किसी बात मे नही मिली. मैं अपनी ये खुशी उस कल के लिए नही खोना चाहती थी. जिसमे पता ही नही क्या होने वाला है. इसलिए मैं कल के डर से आज की खुशियों को खोना नही चाहती.”

कीर्ति की इन बातों को सुन कर मेरा दिल भी उसकी बात को मानने को मजबूर हो गया. मैने उस की बात को रखते हुए कहा.

मैं बोला “चल अब जो हुआ, अच्छा हुआ. अब ये बता आगे क्या करना है.”

कीर्ति बोली “हम घर वापस लौटते समय, अंकिता से मिलते हुए चलेगे. अब तुम निक्की से अपनी नाराज़गी को ख़तम कर दो और उसे अपनी सफाई देने का मौका दो.”

मैं बोला “ठीक है, ऐसा ही होगा.”

कीर्ति बोली “जान, मैने भी अभी तुम्हे एक बात अभी नही बताई है.”

मैं बोला “कौन सी बात.”

कीर्ति बोली “पहले तुम बोलो कि, तुम अभी उस बात को लेकर ज़रा भी गुस्सा नही करोगे.”

मैं बोला “नही करूगा. अब बता.”

कीर्ति बोली “उस दिन मैने तुम्हे ये बताया था कि, मौसा जी ने मुझे उनके साथ, ना भेजने की बात पर मौसी जी से झगड़ा किया था. लेकिन मैने ये नही बताया था कि, उन ने मौसी जी के उपर हाथ भी उठाया था.”

मैं बोला “ये बात तो मुझे, सुबह यहाँ आते ही, अमि निमी से पता चल गयी है. मगर तुझे ये बात मुझे, उसी दिन बता देना चाहिए थी.”

कीर्ति बोली “कैसे बताती जान, मौसी जी ने तुम्हारे वापस आने तक, तुम्हे इस बारे मे बताने को मना किया था. वो नही चाहती थी कि, उनकी वजह से, तुम्हारे और मौसा जी के बीच मे कोई झगड़ा बढ़े.”

मैं बोला “झगड़ा तो अब बढ़ना ही है. लेकिन उनकी ये गिरी हुई हरकतें, वहाँ भी चालू है. अब वो वहाँ पर शायद, रिया को अपने जाल मे फसाना चाहते है.”

कीर्ति बोली “ये क्या बोल रहे हो जान, वहाँ मौसा जी ने ऐसा क्या कर दिया.”

कीर्ति की इस बात पर मैं उसे पापा के रिया लोगों के साथ, मुंबई घूमने से लाकर डिन्नर और फिर रिया के साथ किसी काम से जाने की बात को बताता चला गया. जिसे सुन ने के बाद कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली “जान हो सकता है की, तुम्हारा सोचना ग़लत हो. उनके मन मे ऐसा कुछ भी ना हो.”

मैं बोला “अब मैं उनको और उनकी हरकतों को अच्छे से समझ चुका हूँ और मैं जितना उनको समझा हूँ. उस से तो मुझे यही लग रहा है कि, वो रिया को अपने साँचे मे ढालना चाहते है.”

कीर्ति बोली “यदि ऐसा है भी, तब भी रिया इतनी सीधी तो नही है कि, मौसा जी के इरादों को ना समझ सके.”

मैं बोला “तेरी ये बात सही है. लेकिन मुझे पापा की ये हरकत पसंद नही आ रही है. रिया के घर वाले हमारे उपर इतना विस्वास करते है. कहीं पापा की ये हरकत हम लोगों को उनकी नज़रों मे गिरा ना दे.”

कीर्ति बोली “मुझे नही लगता कि, मौसा जी ऐसा कुछ करेगे. उन्हे भी अपनी इज़्ज़त की चिंता होगी. वो जो कुछ भी करेगे, बहुत सोच समझ कर करेगे. यदि वो रिया के साथ कोई हरकत करते भी है तो, उसमे रिया की भी सहमति ज़रूर रहेगी. इसलिए इस बात को लेकर, तुम्हे ज़रा भी शर्मिंदा होने की ज़रूरत नही है.”

मैं बोला “तेरी ये बात भी सही है. फिर भी मुझे ये सब, ठीक नही लग रहा है. मैं उनकी इस हरकत को रोकना चाहता हूँ.”

कीर्ति बोली “यदि तुम ऐसा ही करना चाहते हो जान, तो मेरे पास इस सब को रोकने का एक रास्ता है. जिस से तुम उनकी इस हरकत को रोक सकते हो. लेकिन शायद तुम ऐसा ना कर सको.”

मैं बोला “तू बोल तो सही. मैं देखता हूँ कि, मैं ऐसा कर सकता हू, या नही कर सकता.”

कीर्ति बोली “जान ये तो हम जानते है कि, वहाँ पर रिया प्रिया और निक्की ये 3 लड़कियाँ है. जिन पर मौसा जी की बुरी नज़र हो सकती है. अब जहाँ तक मैं समझती हूँ कि, प्रिया और निक्की से तुम जो कुछ भी बोलोगे. वो लोग बिना सवाल किए मान लेगी. अब सिर्फ़ रिया बचती है. जिसके उपर मौसा जी की नज़र है. तब तुम ऐसा करो कि, उसको मौसा जी की नियत से सावधान कर दो. शायद वो तुम्हारी बात को समझ सके.”

मैं बोला “क्या मेरा पापा के खिलाफ ये सब बोलना ठीक रहेगा. इस से मेरी इज़्ज़त पर फरक नही पड़ेगा.”

कीर्ति बोली “जान ये सब मत सोचो. इस सब को सोचने से कोई फ़ायदा नही है. क्योकि यदि मौसा जी वो सब करते है. जो तुम सोच रहे हो. तब भी तो तुम्हारी इज़्ज़त पर फरक पड़ना ही है. जबकि ऐसा करके तो तुम उन लोगों को आने वाले ख़तरे से आगाह कर रहे हो. वो लोग यदि तुम्हे अपने घर की तरह ही मान रहे है. तब तुम भी उन्हे, अपना समझ कर ये बात बता रहे हो.”

मैं बोला “क्या मुझे तीनो को ये बात बोलना होगी या सिर्फ़ रिया को बोलना है.”

कीर्ति बोली “तुम रिया को सारी सच्चाई बता दो. हाँ निक्की और प्रिया को चाहो तो, किसी और तरीके से मौसा जी से दूर रहने के लिए बोल दो. लेकिन तुमको ये बात तीनो से ही बोलना पड़ेगी. क्योकि हो सकता है कि, वो मौसा जी को रिया के पास अपनी दाल ग़लती ना दिखे तो, वो निक्की या प्रिया को दाना डालने लगे.”

मैं बोला “तेरा कहना ठीक है. अब मुझे उस आदमी का कोई भरोसा नही है. क्या पता कब कौन सी गिरी हुई हरकत कर जाए. मैं रिया प्रिया और निक्की तीनो को ही सावधान कर दूँगा. इसके बाद उनकी मर्ज़ी. वो जो ठीक समझे करे.”

कीर्ति बोली “जानणन्न्.”

मैं बोला “हाँ, बोल ना क्या बोलना है.”

कीर्ति बोली “तुम्हारी ये सारी बातें अब हो चुकी है या अभी भी कोई बात बाकी है.”

मैं बोला “क्यो, क्या तुझे वापस चलना है.”

कीर्ति बोली “नही मुझे वापस नही जाना है. लेकिन यदि हम ये ही सब बातें करते रहेगे तो, फिर अपनी बातें कब करेगे.”

मैं बोला “तू बोल तो सही रही है. मगर अभी एक सबसे ज़रूरी बात बाकी रह गयी है.”

कीर्ति बोली “तो फिर जल्दी से उसे भी बोल डालो और इन बातों को ख़तम करो.”

मैं बोला “मुझे समझ मे नही आ रहा कि, वो बात तुझसे किस तरह बोलूं. पता नही उसको सुन कर तू क्या मतलब निकाले.”

कीर्ति बोली “जान तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारी किसी बात का, कोई ग़लत मतलब नही निकालुगी. अब तुम बेफिकर होकर अपनी बात कहो.”

मैं बोला “ठीक है, तो सुन. ये बात राज और रिया के घर से जुड़ी है. उनके दादा जी एक दिन मेरे पास आकर मुझसे बातों बातों मे बोले की, पिच्छले कुछ समय से मेरी बहू की तबीयत ठीक नही रहती है. मुझे उसके इलाज के लिए तुम्हारी मदद की ज़रूरत है. उनकी इस बात पर मैने उन से कहा कि, आपको मुझे क्या मदद चाहिए, आप मुझे बताइए. मैं आंटी के इलाज के लिए आपकी हर मदद करूगा. तब उन ने मुझसे आंटी के साथ सेक्स करने को कहा.”

मेरा इतना बोलना था कि, कीर्ति गुस्से से लाल हो गयी और दादा जी को उल्टा सीधा बोलने लगी.

कीर्ति बोली “क्या वो बूढ़ा सठिया गया है. तुमसे ऐसी बात करते हुए, उसे क्या अपनी उमर का भी ख़याल नही आया. जो इतनी गिरी हुई बात तुमसे बिना किसी शरम के कह गया. लानत है ऐसे ससुर पर, जो अपनी बहू को किसी और के साथ सेक्स करवाना चाहता है. वो भी उस औरत के, बेटे की उमर के लड़के के साथ. ऐसे बुड्ढे को तो मर जाना चाहिए. थू,”

मेरी पूरी बात सुने बिना ही, कीर्ति को यूँ भड़कते देख, मैने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

मैं बोला “तुझे इतना भड़कने की ज़रूरत नही है. पहले मेरी पूरी बात तो सुन.”

लेकिन कीर्ति पर तो गुस्से का भूत सवार हो चुका था. उसने मुझे मेरी बात पूरी बोलने ही नही दी, और उल्टे मुझ पर ही आग बाबूला होकर अपनी भडास निकालने लगी.

कीर्ति बोली “तुम्हारे बदन मे इतनी ही आग लगी है तो, मैं कोई मर नही गयी हूँ. मैं अभी उस आग को बुझाने के लिए जिंदा बैठी हूँ. लेकिन यदि तुमने किसी और के साथ सेक्स करने के बारे मे सोचा भी तो, मैं तुम्हारा खून पी जाउन्गी. कान खोल कर सुन लो. यदि दोबारा ऐसी बात तुम्हारे मूह से निकली तो, मुझसे बुरा कोई और नही होगा.”

कीर्ति का ये रूप देख कर और उसकी बातें सुन कर तो, मेरे होश ही उड़ गये थे. मुझे इस बात का तो पहले से अंदाज़ा था की, कीर्ति इस बात को सुन कर गुस्सा कर सकती है और दादा जी को भला बुरा भी बोल सकती है.

लेकिन इस बात का अंदाज़ा नही था कि, वो इतना ज़्यादा गुस्से मे आ जाएगी कि, मुझे भी उल्टा सीधा बकने लगेगी. ये सब देख और सुन कर तो मेरी बोलती ही बंद हो गयी थी और मैं इस बात को, अभी इस वक्त करने के लिए, अपने आपको मन ही मन कोस रहा था.

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09-09-2020, 01:56 PM,
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वो मेरी इस हालत से अंजान थी. उस समय के मन मे, जो कुछ भी आ रहा था. वो मुझे बके जा रही थी. मैं इस सब के लिए अपने आपको, दोष देने के सिवा कुछ नही कर पा रहा था.

थोड़ी देर बाद जब वो, बोलते बोलते चुप हो गयी. तब मुझे लगा कि, उसका गुस्सा शांत हो गया है. मैने झल्लाते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “यदि तेरा बकना हो गया हो तो, अब मैं कुछ बोलूं.”

लेकिन मेरा ऐसा सोचना, मेरी भूल थी. क्योकि मेरी बात सुनते ही, वो गुस्से मे खड़ी हो गयी और फिर उसने मुझे जो जबाब दिया. उसे सुनकर तो मेरा दिल किया कि, मैं अपना सर ही पीट लूँ. उसने गुस्से मे भड़कते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हाँ हाँ, बोलो बोलो. अब तो मेरी बात तुमको बकना ही लगेगी. जल्दी से वो दुखड़ा भी सुना दो. जिस से पिघल कर, तुम उस बुड्ढे की बहू के साथ सेक्स करना चाहते हो. लेकिन मैं तुम्हारी तरह इतनी भोली नही हूँ. जो उस बुड्ढे के बहकावे मे आ जाउन्गी.”

कीर्ति की ये बात सुन कर, मैने अपने मान मे कहा “हे भगवान आज इस लड़की को क्या हो गया है. अभी तो ये इतने अच्छे से मेरी हर बात सुन रही थी. अब तो ये मेरी एक बात भी सुनने को तैयार नही है.”

मेरे इस सवाल का जबाब मेरे मन ने दिया और कहा “बेटा अपनी ख़ैरियत चाहता है तो, अब कुछ मत बोल. शायद तेरे चुप रहने से उसका गुस्सा कम हो जाए.”

मुझे मेरे मन की बात सही लगी. इस समय कीर्ति से कुछ भी कहना, खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना ही था. मेरे लिए बेहतर यही था कि, मैं चुप ही रहूं. मैं सर झुका कर चुप चाप उसकी बातें सुनने लगा.

लेकिन कुछ देर बाद मेरा चुप रहना भी उसको पसंद नही आया. मेरी खामोशी से तिलमिलाकर वो कहने लगी.

कीर्ति बोली “अब चुप क्यो बैठे हो. क्या अब इस बात पर परदा डालने के लिए, कोई नया बहाना ढूँढ रहे हो, या फिर मेरे चोरी छुपे ये सब करने का सोच रहे हो.”

कीर्ति का ये इल्ज़ाम सुनते ही, मेरा सर तनाव से फटने लगा. मेरे लिए उसका ये इल्जन सहना असहनीय हो गया था. तब मुझे अपनी खामोशी को तोड़ना ही पड़ा. मैने अपनी खामोशी को तोड़ते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है कि, मैं तुझसे कुछ छुपाउन्गा या तेरी चोरी से कुछ करूगा. क्या इतनी सी बात सुनकर ही तेरा मुझ पर से विस्वास उठ गया है. यदि ऐसा है तो, अब मैं तुझसे कुछ नही बोलुगा. लेकिन मेरी एक बात कान खोल कर सुन ले. मैं तुझे अपनी हर बात बता कर खो देना पसंद करूगा. मगर तुझसे कुछ छुपा कर तुझे पाना मुझे मंजूर नही है. यदि मुझे तुझसे कुछ छुपाना ही होता तो, फिर ये जानते हुए भी कि, तू इस बात को सुन कर गुस्सा हो जाएगी. ये बात तेरे सामने कही ही ना होती.”

मेरी इस बात का कीर्ति पर बहुत गहरा असर पड़ा और उसका गुस्सा शांत हो गया. उसने नरम पड़ते हुए, मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “तो फिर जब मैं पूछ रही हूँ, तो तुम बोलते क्यो नही हो. बताओ मुझे उस बुड्ढे ने तुम से, ये सब करने की क्या वजह बताई है.”

मैं बोला “मैं वही तो, तुझे बताना चाहता हूँ. लेकिन तू तो मुझे कुछ बोलने का मौका ही नही दे रही है. मैने दादा जी की ये बात सुनते ही, उन्हे इस काम मे मदद करने से मना कर दिया था. मैने उनके सामने साफ कह दिया था कि, मेरी एक गर्लफ्रेंड है और वो मुझ पर बहुत प्यार और विस्वास करती है. मैं उसके प्यार विस्वास के साथ धोका नही कर सकता”

कीर्ति बोली “जब तुमने उन्हे ऐसा करने से साफ मना कर दिया. तब तुम्हे ये बात मुझसे करने की क्या ज़रूरत थी. क्या तुम ये सोचते हो कि मैं तुम्हे उनकी मदद करने के लिए हाँ कह दुगी.”

मैं बोला “मैने ऐसा कुछ भी नही सोचता. मेरे इस बात को तुमसे करने की दो वजह है. पहली वजह तो ये है कि, मैं नही चाहता था कि, मेरी जिंदगी से जुड़े किसी भी पहलू से तू अंजान रहे और दूसरी वजह ये थी कि, दादा जी ने मुझसे कहा था कि, मैं अपनी गर्लफ्रेंड से पुच्छ कर देख लूँ. शायद वो उनकी मदद करने के लिए मुझे हाँ कह दे. लेकिन मैने उन से साफ कह दिया था कि, वो कभी मुझे इस बात के लिए हाँ नही कहेगी. फिर भी उनकी बात रखने के लिए मैं, उनसे ज़रूर बात कर के देखुगा.”

कीर्ति बोली “क्या तुमने इस सब की वजह पता की है.”

मैं बोला “हाँ, जब मैने दादा जी से कह दिया कि, मैं तुमसे बात करके उन्हे बताउन्गा. उसके बाद एक दो बार उन्हो ने मुझसे पुछा की, मेरी तुमसे बात हुई या नही हुई है. तब मैने उन से कहा कि, अभी मेरी उस से बात नही हो पाई है. लेकिन क्या आप मुझे खुल कर बता सकते है कि, आंटी को ऐसी क्या बीमारी है. जिसकी वजह से आपने इतना बड़ा कदम उठाने की सोची है.”

तब उन्हो ने मुझे बताया कि “कुछ दिन पहले बहू के सर और कमर मे बहुत दर्द हो रहा था. मैं उसे डॉक्टर के पास ले गया. लेडी डॉक्टर ने बहू से उस की सेक्षुयल लाइफ के बारे मे पुछा तो बहू ने बताया कि, वो पिच्छले 16 साल से सेक्स संबंधों से वंचित है. तब डॉक्टर ने बहू से कहा कि महिलाओं के 32 से 38 साल की उमर मे ऐसा होता है कि, वो बहुत ज़्यादा करना पसंद करती है और आपको ऐसा मौका बिल्कुल भी नही मिला है. आपके अंदर हिस्टरीया के सुरुआती लक्षण पाए गये है. आपके लिए 15 दिन मे एक बार सेक्स करना ज़रूरी है. नही तो ये बीमारी भयंकर रूप ले सकती है.”

“हिस्टीरिया से पीड़ित महिलाएँ किसी अर्ध-विक्षिप्त इंसान की तरह होती है. वो कभी तो एक दम शांत होती है और कभी एक दम से क्रोध मे आ जाती है. सेक्स संबंधी कोई भी बात सुनते ही उनकी अवस्था बिगड़ने लगती है और दौरे पड़ने पर वो किसी को शारीरिक रूप से नुकसान भी पहुँचा सकती है. महिलाओं में ये बीमारी बहुत आम है. लेकिन इसे हल्के में नही लेना चाहिए. आप मेरी इस बात का खास कर ध्यान रखें कि आपको 15 दिन में एक बार संभोग ज़रूर करना है.
बस बहू की इसी बीमारी के इलाज के लिए मैने तुम से ये मदद माँगी है.”

मेरी इन बातों को कीर्ति बड़ी ध्यान से सुन रही थी. अब उसके चेहरे पर गुस्सा भी नही झलक रहा था. वो वापस मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर मुझ से पूछने लगी.

कीर्ति बोली “तो इस मे तुम्हारी मदद माँगने की क्या ज़रूरत थी. अभी उनके पति तो ठीक ठाक है.”

मैं बोला “मैने भी उन से यही सवाल किया था. उन्हो ने उसका मुझे कुछ जबाब नही दिया. तब मैने उन से कहा कि दादू, आप अपनी कोई भी बात मुझे बेहिचक बता सकते है. आप यकीन रखिए कि आपकी हर बात आपके और हम दोनो के बीच मे ही रहेगी.”

कीर्ति बोली “हम दोनो कौन.”

मैं बोला “तू और मैं.”

कीर्ति बोली “क्या उन्हे ये बात मुझे बताने मे कोई परेसानी नही हुई.”

मैं बोला “उन को मैने इस बात का विस्वास दिला दिया था कि, मेरी गर्लफ्रेंड उनकी किसी बात को, किसी दूसरे से नही कहेगी.”

कीर्ति बोली “क्या उन्हो ने वजह बताई.”

मैं बोला “हाँ उन्हो ने वजह बताई. उनका कहना था की, अंकल सेक्स करने के लायक नही है. वो उनका इलाज करवा कर भी देख चुके है. लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ. यही वजह थी कि, बहू इतने साल तक बिना सेक्स किए रही है.”

मेरी बात सुन कर कीर्ति किसी सोच मे पड़ गयी. मैं समझ रहा था कि, वो क्या सोच रही है. लेकिन फिर भी मैं चुप होकर उसके बोलने का इंतजार करने लगा. उसने कुछ देर सोचने के बाद कहा.

कीर्ति बोली “यदि अंकल सेक्स के लायक नही है. तब राज, रिया और प्रिया किस की संतान है.”

मैं बोला “वो तीनो दादा जी की संतान है. ये बात खुद दादा जी ने मुझे बताई है.”

मेरी बात सुन कर कीर्ति दंग रह गयी. शायद वो समझ नही पा रही थी कि, ये सब कैसे हो सकता है. उसने पुछा.

कीर्ति बोली “लेकिन ये कैसे हो सकता है. ये तो अनाचार है.”

मैं बोला “इंसान की मजबूरी उस से कुछ भी करा देती है. ये बात सिर्फ़ दादा जी और आंटी के अलावा अब मैं और तुम ही जानते है कि, राज रिया और प्रिया अपने दादा की संतान है.”

कीर्ति बोली “क्यो अंकल भी तो जानते होगे. क्या अंकल अपनी कमी को नही जानते है.”

मैं बोला “नही, वो नही जानते. उन्हे अपनी कमी के बारे मे मालूम है. लेकिन उनकी नज़र मे राज रिया और प्रिया उनकी ही संतान है.”

कीर्ति बोली “ऐसा कैसे हो सकता है. या तो अंकल जान कर भी अंजान बन रहे है. या फिर उनके साथ कोई धोका किया गया है.”

मैं बोला “तेरा कहना ठीक है. अंकल के साथ धोका ही हुआ है. इसलिए वो उन तीनो को अपनी ही संतान मानते है.”

कीर्ति बोली “ज़रा खुल कर बताओ ना क्या बात है. मेरा तो इस बात को सोच सोच कर सर फटा जा रहा है.”

मैं बोला “जिस बात को सोच कर ही तेरा सर फटा जा रहा है. वो बात जिन पर बीती है. उन पर क्या गुज़री होगी. ये भी ज़रा सोच कर देख.”

कीर्ति बोली “मैं वही समझने की कोसिस कर रही हूँ. तुम बात को ज़्यादा मत घूमाओ और मुझे पूरी बात बताओ. क्या हुआ और कैसे हुआ.”

मैं बोला “ठीक है, मुझे ये बात दादा जी ने बताई है. मैं ये बात तुझे उन्ही की ज़ुबानी बताता हूँ.”

ये कह कर मैं कीर्ति को दादा जी की बताई बात, उन्ही की ज़ुबानी बताने लगा.

दादा जी बोले “बात तब की है जब हम लोग रायपुर मे रहा करते थे. मेरे बड़े बेटे आकाश और बहू पद्‍मिनी की नयी नयी शादी हुई थी. मेरा बेटा आकाश सुरू से ही बहुत सीधा साधा था. उसे शायद सेक्स की भी उतनी जानकारी नही थी. उसकी शादी के 1 साल तक सब कुछ अच्छा चलता रहा. दोनो पति पत्नी दुनिया की नज़र मे खुश दिखाई देते थे. लेकिन असल जिंदगी मे ऐसा नही था.”

“एक तरफ मैं अपने खानदान के पहले वारिस के आने का, बेसब्री से इंतजार कर रहा था. तो दूसरी तरफ मेरे बेटे और बहू की जिंदगी, मेरे इस इंतजार को लेकर बेहद ही तनाव के दौर से गुजर रही थी.”

“ये बात मुझे तब पता चली. जब मैं एक दिन अचानक उनके कमरे के सामने से गुजरा और मैने दोनो के बीच किसी बात को लेकर चल रही नोक झोक को सुना. उस समय पद्‍मिनी ने आकाश से कह रही थी कि, आपके अंदर सेक्स करने की क़ाबलियत ही नही है. जब आप बीज ही नही बो सकते है. फिर आप मुझसे अपने खानदान का वारिस पाने की उम्मीद ही कैसे कर सकते है. मेरे अंदर कोई कमी नही है. यदि कोई कमी है तो, वो आपके अंदर है.”

“मेरे लिए ये बात किसी सदमे से कम नही थी. लेकिन उस समय मैने इस बात को पति पत्नी की आपसी कलह समझ कर अनसुना कर दिया. मुझे लगा कि पद्‍मिनी ने ये बात गुस्से मे कर दी है. क्योकि उस समय पद्‍मिनी की उमर 18 की और आकाश की 21 साल थी. ऐसे मे उनसे ज़्यादा समझदारी की उम्मीद नही की जा सकती थी.”

“ये बात आई गयी हो गयी. इस बात को 6 महीने गुजर चुके थे. अब मेरे छोटे बेटे प्रकाश का जॉब दूसरे शहर मे लग चुका था. वो वहाँ अपने जॉब पर जा चुका था. उस के जाने के दूसरे दिन मुझे फिर आकाश और पद्‍मिनी का झगड़ा सुनाई देता है. ना चाहते हुए भी मुझे उन दोनो के झगड़े मे बीच मे बोलना पड़ता है.”

“मैं दोनो को डॉक्टर से मिलने की सलाह देता हूँ और दूसरे दिन अपनी मुंबई वाली कंपनी का काम देखने मुंबई आ जाता हूँ. उसके दो दिन बाद जब मैं वापस अपने घर लौटता हूँ. तब मुझे पता चलता है कि, डॉक्टर की रिपोर्ट ने पद्‍मिनी की बात को सही ठहराया है. पद्‍मिनी सही है और कमी आकाश मे ही है.”

“इस बात को सुन कर जहाँ मुझे गहरा आघात लगा था. वही एक बाप का दिल इस बात को मानने को तैयार नही था की, उसके बेटे मे कोई कमी हो सकती है. मैं दोनो से कहता हूँ कि, हम मुंबई के डॉक्टर को चल कर दिखाएगे और यदि आकाश मे कोई कमी है भी तो हम वही रुक कर आकाश का इलाज कराएगे.”

“मेरी इस बात से दोनो सहमत हो जाते है. अगले दिन मैं आकाश और पद्‍मिनी को लेकर अपने मुंबई वाले घर मे आ जाता हू. यहाँ पर घर मैने इसी वजह से बनवाया था कि, जब कभी मैं अपने परिवार के साथ आउ तो, यहाँ रह सकूँ. यहाँ आने के बाद मैने एक अच्छे डॉक्टर को आकाश को दिखाया. लेकिन उसने भी वही जबाब दिया. जो जबाब हमारे रायपुर वाले डॉक्टर का था.”

“उसका जबाब सुनकर आकाश टूट सा गया. उसी रात उसने खुद्कुसि करने की कोसिस भी की थी. लेकिन पद्‍मिनी के देख लेने की वजह से हम ने उसे बचा लिया था. लेकिन उसकी इस हरकत से मुझे और पद्‍मिनी दोनो को, बहुत गहरा झटका लगा था. मगर एक बाप होने के नाते मैने अपने आपको संभाला और आकाश से कहा कि, वो चिंता ना करे. कुछ दिन बाद यहा विदेश से कुछ डॉक्टर आ रहे है. मुझे उम्मीद है कि, वो ज़रूर उसे ठीक कर देगे.”

“ये बात मैने सिर्फ़ आकाश का दिल रखने और उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए कही थी. लेकिन बाद मे मुझे पता चला कि, सच मे कुछ डॉक्टर विदेश से आने वाले है. मैने उन से मिलने का मन बना लिया.”
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