RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
निधि ने मचलते हुए अजय को अपने बांहो में भर लिया और उसके कानों के पास आकर हल्के से एक फूक मार दी,अजय गुदगुदी से हस पड़ा,और जोरो से निधि को अपने ऊपर भीच लिया,दोनो की नजरें मिली और एक दूसरे के होठो को मिला कर दोनो ने अपने दिल मे बसे प्यार का इजहार किया,..
उस कोमल नरम होठो की नाज़ुकता ने अजय को निधि को अपनी ओर और भी जोर से खिंचने को मजबूर कर दिया,दोनो जिस्म ऐसे मिले जैसे सदियों से प्यासे हो ,एक दूजे से इंच भर भी दूर रहना अब उनको गवारा नही था,निधि अपने होठो को अजय के अंदर धसाय जा रही थी और अजय उसके जीभ को खीचकर अपने जीभ से सहला रहा था…
स्कर्ट तो बस नाम की पहनी थी,अंदर से उसके जिस्म की एक एक करवट का पता अजय को अपने हाथों पर हो रहा था,उसने भी अपने को निर्वस्त्र किया और अपनी सबसे प्यारी बहन की जवानी को भीगने को तैयार हो गया,उस नाजुक सी अप्सरा के कसावो को छूता हुआ वो अपने लिंग को उसकी गीली योनि के पंखुड़ियों पर रगड़ने लगा,निधि ने भी अपने भाई के प्यार को अपनाने के लिए अपने कूल्हों को उचकाए पर लिंग था इतना बड़ा और योनि तो अभी अभी ही खुली थी,खून के भराव से फूली हुई उसकी योनि ने अपने सीमित जगह के कारण उसके लिंग को ठुकरा दिया,पर अजय ने अपने हाथों के सहारे फिर से उस कठोर से लोहे को इसके योनि की पंखुड़ियों के बीच लेजाकर उसे सहलाता हुआ उस छेद तक पहुचा जिसे लोग जन्नत का द्वार कहते है….
निधि की भगशिश्न(claitoris) रगड़ खाने से वो भी उसी नशे में थी जिसमे अजय था वो भी लगातार अपने कूल्हों को अपने भाई के कूल्हों पर रगड़ रही थी,प्यार की इस बेताबी ने आखिरकार अपना अंजाम ढूंढ ही लिया उस जन्नत की छेद में अजय ने अपने लोहे जैसे सरिये को हल्के से प्रवेश कराया,...
दोनो ने प्यार की एक चीत्कार लगाई और एक दूसरे के हो जाने के अहसास में डूब गए,जैसे जैसे अजय का लिंग निधि की गहराइयों में जा रहा था निधि अपने भाई के लिए असीम प्यार का अनुभव कर रही थी वो अपने को पूरी तरह से अजय को समर्पित कर रही थी तन से भी और मन से भी….
पूरी तरह अंदर जाकर अजय रुका और अपने बहन के गद्देदार नितंबो के मुलायमता को मसलता हुआ उसे अपनी ओर खींचा, दोनो कि नजरें फिर से मिली इस बार दोनो की आंखे आधी बंद थी,शायद दोनो ही एक दूजे को पूर्णतः नही देख पा रहे थे पर दोनो ही उस प्यार का ,उस एक होने के अहसास को बखूबी महसूस कर रहे थे ,दोनो इस मिलन पर खुद को भूलकर दूसरे के हो चले थे….
दोनो फिर से अपने होठो को एक दूजे के होठो की गहराई में धकेल दीया…
निधि ने अपने कमर को हल्के से हिलाया पर इस हिलाने से मिलने वाले सुख को वो सम्हाल ना पाई और अजय से जोरो से लिपट गई… ईस सुख की भी अजीब सी फितरत है इसे भी सहना पड़ता है और उसके लिए अपने प्यार के सहारे की जरूरत पड़ती है…
वो रगड़ इतनी उतेजक थी कि निधि के अंग अंग में एक सिहरन सी दौड़ पड़ी,वो फिर से मछली की तरह फड़फड़ाने लगी,अजय ने उसे अपने मजबूत बाजुओ में कस लिया,ये वही बाजू थे जिनमें वो दुश्मनों को कसकर मार डालता था आज वही अपनी नाजुक सी बहन को कसे था और वाह रे प्यार उसकी नाजुक कोमल सी बहन उसके बाजुओ में कसकर मर जाना चाहती थी,...
इसबार कमर अजय ने हिलाई थी एक एक वॉर दोनो की गहराइयों से निकलते प्यार की पैदाइश थी और दोनो को एक सुखद अहसास से भर देती थी,दोनो फिर एक दूजे के बाहों में जकड़ लेते,एक दूसरे में मिट जाने की तमन्ना ही ऐसे होती है,वो इतने जोरो से एक दूसरे को कसते जैसे सामने वाले में समान चाहते हो…
हल्के हल्के ही सही पर धक्के बढ़ने लगे ,कभी एक जोरदार से धक्का दिया जाता और पूरे कमरे में निधि की मादक चीख सी गूंज जाती,सुख की अभिव्यक्ति जब हो ही नही पाए तो या तो चीख बन जाती है या आंसू ...आज दोनो ही निधि कें पास थे,वो सिसकियां लेती तो कभी चीखती आंखों में आंसू की बूंदे भी शोभा बड़ा रही थी ,वही हाल अजय का भी था,जिसके नाम से लोग काँपते थे वो आज खुद के मजे को काबू में नही कर पा रहा था होठो से सिसकियां निकल रही थी
“आह आह आह आह” बस “हा हा हा “ “नही हिहिहिहि “
ये शब्द कमरे में गूंज रहे थे,और दो नंगे जिस्म अपनी मस्ती में दुनिया को भूले हुए बस गुथे हुए प्यार का खेल खेल रहे थे…
आखिर जब अजय ने अपने प्यार की धार निधि के अंदर छोड़ी तो उसका गीलापन गाढ़ापन और गर्मी ने निधि को टूटने पर मजबूर कर दिया वो भी अजय को कसकर पकड़े हुए झरने लगी,दोनो ही रस एक साथ मिलकर निधि और अजय के उस जोड़ से बाहर को टपकने लगे ….
पर होश कहा था ,ये प्यार का कारवां था,जो चल निकला था तो आसानी से थमता नही...दोनो अब भी एक दूजे को खुद में समाए हुए थे और इस आनन्द से आनंदित हो रहे थे…
अब थोड़ा आते है रेणुका और बनवारी की कहानी पर,
बनवारी गांव का एक सीधा साधा से लेकिन मजबूत लड़का था,अपने खेतो में वो बैलो की तरह मेहनत करता,अपनी सौतेली मा के तानो को नजरअंदाज कर अपने काम को मन लगा कर करने वाले बनवारी की ऐसे तो कोई भी बुरी आदत नही थी सिवाय की वो प्यार में था…...किसके?????
बात उसकी शादी से दो साल पहले की है जब वो एक दिन अपने पिता किशोरीलाल और मा के साथ बाजार में कुछ समान लेने अपने गांव से ठाकुरो के गांव आया था,भारी भारी थैलो को बड़ी मुश्किल से सम्हालता हुआ बनवारी दोनो के पीछे चल रहा था की गांव के स्कूल की छुट्टी हुई और उसे स्कूल की ड्रेश में एक अप्सरा दिखी….उसके बदन और चहरे को देख बनवारी जैसे बूत बना वही खड़ा हो गया..लेकिन जैसे ही उसकी मा की नजर उस पर पड़ी उसके गालो में एक जोरदार चाटे की रसीद दे दी…
“कलमुहे हमारी जान लेगा क्या ,ठाकुर की बहन को ऐसे गुर रहा है”
उसने फुसफुसाते हुए कहा,बनवारी को जैसे कोई भी दर्द नही समझ आ रहा था वो तो बस उसके रूप यौवन में खोया था,लेकिन किशोरीलाल ने उसे झकझोर कर वहां से ले गया पर बनवारी के मन में वो प्रतिमा छप गयी और वो उसे पाने को बिल्कुल उतेजित सा हो गया,वो जब भी समय मिलता स्कूल पहुच जाता और बस दूर से ही उस हसीन से चहरे को घूरता रहता,धीरे धीरे उसे ये भी पता चल गया की जिसे वो पाना चाहता है उसका नाम निधि है और वो ठाकुर अजय की बहन है,जिनके नाम से सभी काँपते थे वो नाम उसेमें कोई भी दहसत पैदा नही कर पाते,लेकिन एक दिन उसकी इन हरकतों का पता किशोरीलाल को चला और उसने अपने बेटे को बैठा कर ठाकुरो की असली ताकत के बारे में बतलाया,तब से धीरे धीरे ही सही बनवारी को मजबूरन निधि को अपने दिल से निकलना पड़ा,लेकिन किसी को ना दिल में बसना अपने बस में होता है ना ही निकलना……..दिल के किसी कोने से एक टिस सी बनवारी को हमेशा ही सताती थी की काश वो उस हसीन ख्वाब को पा सकता ,उसे भी ये यकीन हो गया था की ये ख्वाब ही है लेकिन ख्वाब का अपना ही मजा होता है,
जब उसकी शादी रेणुका से तय हुई तो उसे जितनी खुसी अपने शादी की नही थी उससे ज्यादा खुशी उसे उस घर में रहने का हो रहा था ,वो सोचता था की चलो इसी बहाने ही सही निधि के रोज दर्शन तो हो जाएंगे...लेकिन रेणुका से उसकी शादी ने उसके मन को ऐसे ही बदल दिया जैसा की रेणुका के मन को बदल दिया,दोनो ही एक दूजे से मिलकर एक दूजे के प्यार में पड़ गए,
जहा रेणुका को बनवारी की सादगी और उसका इतना खयाल रखना भा गया वही बनवारी को रेणुका की खूबसूरती और प्यार ने मोह लिया ,दोनो ही एक दूजे के हो चुके थे,और एक दिन इसी प्यार के आगोश में आकर बनवारी ने रेणुका को अपने दिल की हर वो बात बता दी जो उसके दिल में निधि के लिए हुआ करता था,अपने पति की मासूमियत और सच्चाई से प्रभावित रेणुका भी उसे अपने और विजय के रिस्ते के बारे में बोल गयी ,दोनो ही एक दूजे के प्यार में ही रहना चाहते थे और ये उस प्यार के ही कारण था की दोनो ही एक दूजे के अतीत को भूलकर एक नई जिंदगी जीने की राह में चल पड़े………
जब रेणुका और बनवारी आकर ठाकुरो की हवेली में रहने लगे तब रेणुका को बस यही डर था की विजय उसे कुछ करने को ना कहे लेकिन वक़्त भी अजीब करवट ले रहा था और विजय रेणुका को लगभग भूल ही चुका था,इतने दिनों में विजय ने कभी भी रेणुका से संबंध बनाने की कोशिस नही की थी और रेणुका जानती की अगर विजय ने ये कोशिस की तो शायद वो उसे इनकार भी नही कर पाएगी….अपने पति को वो बहुत ही प्यार करती थी पर विजय उसकी आग को बढ़ाने और फिर अच्छे से बुझाने वाला शख्स था उसे मना करना रेणुका के लिए आसान तो बिल्कुल भी नही था…….
जो भी हो वक़्त बीत रहा था और एक दिनविजय और रेणुका का सामना हो ही गया...दोनो की आंखे मिली और रेणुका ने हँसकर उसका अभिवादन किया,
“कैसी हो तुम “
“अच्छी हु आप कैसे हो ठाकुर साहब “
“देख तो रही थी तेरे बिना तो मेरी राते ही सुनी हो गयी….”
रेणुका को एक करेंट सा लगा,वो अपनी आंखे नीची कर खड़ी रही ,
शायद विजय उसकी ये खामोशी समझ चुका था,
“ऐसे क्यो सर नीची कर ली,तू अब शादी शुदा है और मैं किसी भी बात के लिए तुझे जोर नही डालूंगा,शायद तू ये बात जानती है ,ऐसे तेरा पति कैसा है…”
विजय की बातो से रेणुका को थोड़ी सी राहत मिली और उसने अपना सर उठाकर उसे देखा और हल्के से मुस्कुराया
“अच्छे है ,.......बहुत अच्छे है’”
“ओहो ऐसे बहुत अच्छे है ,तुझे अच्छे से चोदता है की नही ,सचमे मुझसे भी अच्छा चोदता है “
रेणुका के लिए ये बहुत ही बडा प्रश्न था शायद बनवारी के प्यार ने उसे बदल दिया था नही तो ऐसी बातें तो विजय के साथ उसके रोज का काम था,
“क्या हुआ फिर से सर नीचे अरे यार आशिक नही दोस्त तो समझ सकती है ,ऐसे भी मैंने तुझे कहा ना की तुझसे कोई भी जबरदस्ती नही करूँगा..अब हस भी दे मेरी जान “
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