Nangi Sex Kahani दीदी मुझे प्यार करो न
01-18-2019, 01:31 PM,
#7
RE: Nangi Sex Kahani दीदी मुझे प्यार करो न
करीब आधे घंटे बाद मुझे उनका शरीर थोड़ा ढ़ीला होता अनुभव हुआ (शायद नशे का असर तभी उतरा था) पर मैंने अपने धक्के और तेज कर दिए थे। थूक से सना उनका चेहरा और पसीने से लथपथ हमारे बदन एक दुसरे से ऐसे चिपके हुए थे की अब उनके लिए मना करना असंभव था। उन्होंने किया भी नहीं, कुछ ही देर में मेरे ऊपर उनके बदन की गिरफ्त फिर सख्त होने लगी।
मैं रोमांचित हो उठा, भाभी अब नशे में नहीं थी मुझे इसका स्पष्ट बोध हो गया था। अपने मृत पति के भाई से अपने विशाल मांसल बदन को रगड़वा रही थी भाभी।

उनके दूध से भरे स्तन को मुँह में लेते हुए मैंने कहा: माँ तुम मुझे रोज दूध पिलाया करो, देखो तुम्हारा सूरज बेटा कितना कमज़ोर हो गया है, पिछले आधे घंटे से तुम्हेँ चोद रहा हूँ पर तुम बिलकुल भी थकी नहीं मेरी दुधारू गाय।भाभी कुछ बोली नहीं पर ये सुनते ही उन्हें समझ आ गया की उनके नशे के दौरान उनके और सूरज भैया के बीच के माँ-बेटे के कल्पना की चुदाई मुझे पता चल गयी थी)

मालती ने पलंग को दिवाल की तरफ से पकड़ रखा था, वरना जितने जोर से भाभी और मैं एक दुसरे के बदन को मसल रहे थे, पलंग की आवाज़ों घर से बहार जा सकती थीं। मैंने रफ़्तार और तेज कर दी, भाभी के मांसल बदन को मथते हुए मुझे अब 1 घंटा हो गया था और मैं थोड़ा थकने भी लगा था पर भाभी अभी भी पूरे जोश में थी। ये मेरे लिए अति कामुक पल था सो मैंने अपने पूरी शक्ति से भाभी के बदन को मीचने लगा। इतने तेज चुदाई से मैं पांच मिनट मैं ही हाफने लगा था और हम दोनों की मादक आवाज़ें पूरे कमरे में गूँज रही थी। भाभी को अहसास हुआ की मालती भी कमरे में है और अपना सर मालती की तरफ करके फिर मेरी तरफ देखा। (अभी तक या तो उन्होंने आँखें बंद कर रखी थी या फिर मेरे चेहरे या सीने से ढकीं)।
उनके आँखों में देखते हुए मैं उत्तेजना के चरम पे पहुंचने लगा और मैं जोर जोर से हांफ रहा था। मैं: आह.... माँ ...।
भाभी: हाँ.. मेरा बेटा. .. । भाभी की भी सांसें अब तेज हो रही थी और उन्होंने भी अपने धक्के जोर कर दिए थे। (होश में भाभी के मुँह से बेटा सुनते ही मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया, क्या कामुक औरत थी वो)

उनके आँखों में देखते हुए मैं उत्तेजना के चरम पे पहुंचने लगा और मैं जोर जोर से हांफ रहा था। मैं: आह.... माँ ...।
भाभी: हाँ.. मेरा बेटा. .. । भाभी की भी सांसें अब तेज हो रही थी और उन्होंने भी अपने धक्के जोर कर दिए थे। (होश में भाभी के मुँह से बेटा सुनते ही मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया, क्या कामुक औरत थी वो)
तभी मुझे अपने नंगे पीठ पे हाथों के फेरने की अनुभूति हुई। वो मालती थी। मालती के पीठ सहलाने से मुझे अच्छा लग रहा था। मालती: मालिक बस थोड़ी देर और, आपकी माँ गाय है तो क्या! आप भी सांड से काम नहीं हैं। फाड़ दीजिये इस रंडी के चूत को। मालती की बातों ने भाभी को भी उन्मादित कर दिया और अब हम दोनों और उत्तेजित होकर एक दुसरे को चोद रहे थे।
मालती लगातार अत्यंत उन्मादित करने वाली बातें कर रही थी। बस पांच मिनट ही हुए थे मालती के बोलते हुए की हम दोनों जोर से हाँफते हुए झड़ गए। मैं थक कर भाभी के पसीने से भींगे बदन पर पसर गया। वो भी मेरी तरह तेज सांसें ले रही थीं। मालती ने फैन फुल स्पीड पे कर दिया और हैंड फैन भी चलने लगी। तब साढ़े दस बज गए थे, भाभी के बदन को भेदने में ढाई घंटे लगा था मुझे। पर इस समय मुझे जिस सुख की अनुभूति हो रही थी वो अकल्पनीय थी। 3 - 4 मिनट में हम थोड़े नार्मल होने लगे।
मैं मन ही मन अपने भैया और भाभी के घरवालों का शुक्रिया अदा कर रहा था जिनकी वजह से मुझे भाभी जैसी औरत जीवन भर के लिए मिली थी। मैं तो बस अब हर दिन इनके बदन को नोचने वाला था। ऐसी ही सोच में खोया हुआ था मैं कि मालती ने मुझे पानी ला कर दिया। फिर मुझे दूसरा गिलास देते हुए बोली ये आपकी माँ के लिए है। (मालती अभी भी मूड में ही थी)। पानी का गिलास लेते हुए मैं भाभी के बदन से ढाई घंटे बाद उतरा। भाभी ने तुरंत अपने एक हाथ से अपने दोनों स्तनों को ढका और दुसरे हाथ अपने चूत पे रख के अपने दोनों जाँघों को जोर से सटा लिया था। मैंने अपना एक हाथ उनके पीठ के नीचे रखते हुए उनके सर को थोड़ा ऊपर उठाया और दुसरे हाथ से उन्हें गिलास से पानी पीने लगा।
पानी पीने के बाद भाभी ने मेरी तरफ करवट ले ली। अभी भी उन्होंने अपने हाथ से अपने विशाल छाती को छुपाया हुआ था और अपने एक दोनों पैरों को बिस्तर पे ऐसा रखा था की उनके नितम्ब पूरे खुले ऊपर थे। ऐसे में उनकी चूत नहीं दिख रही थी। भाभी के नंगे बदन और उसे छुपाने की उनकी व्यर्थ कोशिश ने मुझे फिर उत्तेजित करना शुरू कर दिया था। उनके 48 " के गुदाज नितम्बों को देख-कर मैं फिर उनसे चिपकने लगा। मेरा तना लंड उनके कूहलों को स्पर्श कर रहा था ठीक वहीँ उनकी नज़र भी थी। वो थोड़ी असहज हुई और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली और वैसे ही लेटी रहीं।
मैंने भाभी को पूरा पेट के बेल लिटा दिया। फिर मैं उनके पीठ पे चढ़ गया और अपने लंड को उनकी सुडौल चौड़ी गांड पे रख-कर धीरे धीरे खुद को और उन्हें हिलाने लगा। उनकी गर्दन, कान और गालों पे पीछे से मैंने चुम्बनों की बारिश कर दी। धीरे धीरे थकावट दूर होने लगी और कामनोन्माद फिर से हावी होने लगा। मालती फिर बिस्तर पे आ गयी और मेरे पीठ और चूतड़ों की धीरे धीरे सहलाते हुए मुझे उन्मादित करते हुए बोली।
मालती: मालिक क्या औरत मिली है आपको। इतने भड़काऊ बदन की औरत आपके भैया को कहाँ से मिली।
मैं: नहीं मालती, ये गदराई माल तो शुरू से थी पर इतनी भड़काऊ नहीं थी तब। भैया ने इस मांस की खूब गुथाई की है तब जाके ये ऐसी भारी-भरकम हुई है मेरी माँ।
(मैं धीरे धीरे भाभी के पूरे बदन को अपने नीचे समाने की कोशिश कर रहा था। नितम्बों की ऊंचाई की वजह से मेरे पैर बिस्तर पे नहीं आ रहे थे और मेरे जांघ भाभी के जाँघों से मुश्किल से सट-टे थे। मालती ने मेरे पैरों को थोड़ा नीचे किया ताकि मुझे भाभी के गुदाज जाँघों का स्पर्श मिले। आप सोच सकते हैं भाभी के पिछवाड़े की बनावट कैसी होगी!)
मालती: आपके भैया ने इस गाय को इतना दुधारू बनाया पर सारा दूध अब आप पियोगे इसका। उनके सालों की मेहनत से तैयार किया बदन आपको मुफ्त में मिला है। ये भड़काऊ सुडौल बदन अब आपकी निजी जागीर है। पर आपकी जिम्मेवारी है की ये गाय और भी गदराये। 48 '' के इसके स्तन 50 " के हों, और चूतड़ बढ़ के 52 " के।
(भाभी अभी तक किसी निर्जीव की तरह पड़ी हुई थीं पर मालती की बातों ने उन्हें भी उत्तेजित करना शुरू कर दिया था और वो भी अपने नितम्ब धीरे धीरे हिलाने लगी। ये बड़ा उत्तेजित करने वाला पल था मेरे लिए। उनके पिछवाड़े हिलाने से मेरे लंड में तेजी से कसाव आने लगा)
मालती समझ रही थी की भाभी उसकी बातों से लगातार उत्तेजित हो रही थीं। पर पता नहीं उसे क्या आनंद आ रहा था हमें उन्मादित करके।
मालती: मालिक अपनी माँ का बदन ऐसा कर दो की ये घर के बाहर न निकल पाए। बदन देख के ही सब इसे रंडी समझे। ये बस आपके चुदाई के लिए जिए।
मैं: तू ठीक कह रही है मालती। सूरज भैया ने मुझे अपनी माँ के बदन की बड़ी जिम्मेवारी दी है।
जब भी मैं भाभी को माँ कह के सम्बोधित करता, मैं महसूस करता की भाभी अपनी रफ़्तार बढ़ा देती थी। उन्हें माँ-बेटे के अनाचार रिश्ते के कल्पना मात्र से ही बड़ी उत्तेजना मिलती थी)
मालती: भैया पर अपनी भाभी माँ से आप शादी मत करना। ऐसे ही इसे अपनी रखैल बना कर रखना। ये जीवन भर अपने बेटे के साथ आपकी बीवी की तरह रहेगी पर रिश्ता आप दोनों का भैया-भाभी का ही रहेगा। अपनी विधवा भाभी माँ के बदन को जब चाहे भोगते रहना।
मालती के ऐसा कहने से भाभी को नहीं लगा की मेरी और उसकी कोई साठ-गाठ हुई हो, क्यूंकि अन्यथा उसे पता होता की हम दोनों शादी-शुदा थे। वैसे मालती की ये बात मुझे बहुत उत्तेजित कर गयी। अगर मैंने शादी नहीं की होती तो फिर मैं सच में भाभी से शादी नहीं करता और उन्हें भाभी रहते हुए ही अपनी बीवी की तरह ही उनसे अपनी बिस्तर गरम करवाता। पर ऐसी भड़काऊ बदन वाली औरत से शादी करना भी बहुत उत्तेजित करने वाला अनुभव था। ऐसी गदराई औरत जब आपके नाम का मंगल सूत्र डाले अपने गले में तो वो अनुभूति भी बेहद उन्मादित करती है आपको। हालाँकि भाभी ने अभी तक न तो सिन्दूर किया था और न ही मंगल सूत्र डालती थी, मैंने भी कभी जिद नहीं की इस बात के लिए।)
मैं: तू ठीक कहती है मालती। मैं अपनी विधवा भाभी माँ को अपनी बीवी नहीं रखैल बनाऊंगा। पहले तो इस गाय को गाभिन करूँगा और ये मेरे बछड़े को जन्म देगी। फिर मैं, सोनू और वो बछड़ा तीनो हमारी गाय का दूध पिया करेंगे।
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