Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
01-19-2019, 07:21 PM,
#5
RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
इसी कशमकश में मैं उठके जैसे ही वापिस मुड़ा मैं चौंक उठा...साँस रुक सी गयी काँप गया हाथ...बाजी मेरे सामने थी और वो जाग चुकी थी वो अज़ीब निगाहो से मेरी ओर देख रही थी...वो घुर्रा रही थी उसकी दबी आवाज़ सुनाई दे रही थी कितना हिंसक चेहरा बन गया था उसका पूरा बदन सफेद वो आख़िर जिंदी कैसे हुई?....वो फर्श टपके खून पे ज़बान फैरने लगी और उस टपकते खून के साथ मेरे पास हाथो के बल आने लगी "ब..आज़्ज़ई बाज़्ज़ििई बाजीज़िी आप ज़िंदा हो आप वापिस आ गयी बाजी".......मैं पागलो की तरह चिल्ला पड़ा और उसके चेहरे को हाथो में लेके सहलाने लगा ना जाने कितनी खुशी के आँसू बहाए ना जाने कैसे शुक्रिया अदा करे? उसने मुस्कुरा कर देखा "देखा भाई मैं आ गयी तुम्हारे पास तुमने मुझे बुलाया पता है मैं कितना बेचैन थी मेरी रूह हरपल तुम्हारे साथ थी".....मैने उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसे बच्चो की तरह दबा लिया मानो जैसे उससे अलग ना हो पाउन्गा "नही बाजी अब तुम कहीं नही जाओगी? तुम मेरे पास रहोगी बोलो बाजी बोलो"......बाजी की आँखे सुर्ख लाल थी और अचानक उनके दाँत बाहर आने लगे

और अचानक उन्होने सख्ती से मेरा हाथ पकड़ा और मेरे कटे खून बहते ज़ख़्मो को चूसने लगी..."बा..आज़्ज़िई क..क्या कर्र रही हो? बाजिी"........बाजी ने मेरा हाथ नही छोड़ा बस मेरे खून को चुस्ती रही....मैं समझ चुका था कि बाजी अब इंसान नही थी...तो क्या वो मुझे भी? मैं खुशी खुशी मौत को स्वीकार करने के लिए तय्यार था...लेकिन उसने जल्द ही मुझे अपने से दूर धकेल दिया और अपने मुँह पे लगे खून को पोन्छा "नहिी मैं ये क्या कर रही हूँ? ये मैं अपने भाई को".......बाजी को सोच की कशमकश में घिरा देख मैं उठा और उन्हें सहारे से खड़ा किया 

मैं : बाजी आपको कैसा महसूस हो रहा है?"

बाजी : ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं अंधेरे में रहूं ये खामोशियाँ ये सन्नाटा मुझे बेहद पसंद है मुझे अपने भाई के साथ ही रहना है अपने आसिफ़ के साथ (बाजी की आँखें सुर्ख लाल थी आँखो के कन्चे एकदम लाल उसका चेहरा कोई देखे तो ख़ौफ़ से डर जाए लेकिन मेरी बेहन मेरे पास लौट आई थी कुछ देर बोलते बोलते वो बेहोश हो गयी)

और फिर मैने उन्हें उठाया और बाहों में लिए बिस्तर पे लिटा दिया और खुद भी उनके बगल में लेट गया....वो मेरी आगोश में आ गयी..और मुझसे खुद को लिपटा लिया उसके बाद मुझे हल्की नींद आई थी और मैं सो भी गया था...

मैने एक बात नोटीस कर ली थी कि बाजी के बदलते बर्ताव में बहुत कुछ अज़ीब था जब दूसरे दिन उठा तो वो ना बिस्तर पे थी और उन्हें जब ढूँढा तो वो मेरे बने आल्मिराह के अंधेरो में छुपी हुई थी उसने कहा उसे धूप पसंद नही.....जब बादल आसमान पे घिरते थे तो वो काफ़ी राहत महसूस करती थी वरना आमतौर पे मैं उसे घर के सबसे ख़ुफ़िया कमरे में रखने लगा....जहाँ रोशनी ना आए....बाजी को मोमबति और लॅंप की रोशनी ही पसंद थी....वो बाहर नही निकलती थी...लेकिन हर रात उसे भूक लगती थी और वो पागलो की तरह फ्रिज से कच्चा माँस निकालके उसे खाती थी...उसे जिस चीज़ की तलब थी वो खून जो उसे हरपल मेरी ओर खींचती थी मैने खुद एक बार अपने कंधे पे हल्का सा चाकू दबाया और जो खून बहा उसे पाने की हसरत में बाजी मुझपे टूट पड़ी और मेरे खून को चूसने लगी...पागलो की तरह दाँत गढ़ाने लगी लेकिन उनकी मुहब्बत उन्हें मुझे यूँ मार देना नही चाहती थी उन्हें जब अहसास होता तो वो अपनी आधे ही प्यास में मुझसे दूर हो जाती और पछताती कि ये मैने क्या किया उनके साथ? धीरे धीरे मेरा सबसे मिलना जुलना बंद हो गया सिर्फ़ सबको यही समझ आता कि मैं एक वीरान घर में रहता हू और मेरे साथ कोई नही रहता जबकि ऐसा नही था....हम दोनो घर में बंद रहते थे और जब मैं रात को आता तो बाजी मुझसे लिपट जाती मैं उनके लिए किसी तरह बकरे या मुर्गे का खून ले आता था मैं अपने घर में एक जानवर को पाल रहा था....धीरे धीरे मैं भी इसका आदि होने लगा बाहर नॉर्मल लाइफ जीता एक इंसान की तरह और घर में आके अपनी ही बेहन की तरह एक दरिन्दा बन जाता माँस के टुकड़ो पे नमक लगाके उसे खाता

और बाजी से लिपटके रात में उन्हें खूब प्यार करता एक रात बाजी ने आँखे खोली और मुझे सोता हुआ पाया...उनकी हिंसक भारी लाल निगाहें जल उठी और उनके दो नुकीले दाँत मुस्कान से बाहर आ गये...और उन्होने मुस्कुरा कर कब बिस्तर से उठके मुझसे खुद को अलग किया और कब निकल गयी पता ना चला...अचानक मैने खिड़की से किसी के कूदने की आवाज़ सुनी और मेरी नींद खुल गयी आँख खुलते ही बाजी सामने ना दिखी मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठा और चारो ओर कमरे की तरफ घरो में बाजी को खोजने लगा "बाजिी दीदी".......बाजी वहाँ नही थी मानो जैसे कहीं गायब हो गयी थी 

मैं बाहर की ओर भागा....खिड़की खुली हुई थी जो हवा से कभी बंद हो रही थी कभी खुल रही थी तेज़ हवा चल रही थी और मैं फ़ौरन कूद पड़ा दौड़ता हुआ जंगलों की तरफ भागा "बाजिी बाजीीइई बाजीी".......मैं चिल्लाता रहा चारो ओर के उड़ते चम्गादडो को उड़ते हुए देख सकता था इस घने जंगल में ना जाने कहाँ बाजी गायब थी.....मैं बाजी खोजते हुए जंगल के भीतर आ गया....और जब सामने देखा तो ठिठक गया बाजी अपने हाथो पे लगे खून को चाट रही थी पागलो की तरह उनके पूरे कपड़े और मुँह खून से तरबतर था ताज़ा खून वो भी किसी और का नही एक मरे हुए हिरण का...जिसका शिकार यक़ीनन बाजी ने कुछ देर पहले ही किया था
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