non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:40 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
फ्लैशबैक अब आगे______

गौरी अभी ये सब बता ही रही थी कि सहसा डोर बेल की आवाज़ से सबका ध्यान भंग हो गया। डोर बेल की आवाज़ से ही उन सबको ये एहसास हुआ कि समय कितना हो चुका था। वरना ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए उन्हें समय का आभास ही न हुआ था। वो सब तो गौरी के द्वारा सुनाए जा रहे अतीत के किस्सों में ही डूबे हुए थे।

"लगता है कि जगदीश भाई साहब आ गए हैं।" गौरी ने गहरी साँस लेते हुए कहा__"जा गुड़िया दरवाज़ा खोल दे।"
"जी माॅ।" निधी ने भी गहरी साँस लेकर कहा और सोफे से उठ कर मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गई।

"रात के नौ बज गए हैं।" गौरी ने सामने दीवार पर लगी घड़ी पर देखते हुए कहा___"इस कहानी के चक्कर में रात का खाना बनाना भी रह गया अभय। चलो ये कहानी अब कल बताऊॅगी। अभी खाना बना लूॅ फटाफट। जगदीश भाई साहब को दस बजे तक खाना खाकर सो जाने की आदत है।"

"ठीक है भाभी आप जाइए।" अभय ने गंभीर भाव से कहा था। वो अभी भी उन अतीत के दृष्यों में खोया हुआ लगा। उसके ऐसा कहने पर गौरी उठ कर किचेन की तरफ बढ़ गई।

तभी ड्राइंगरूम में जगदीश ओबराय दाखिल हुआ। उसके पीछे पीछे ही निधी भी आ गई। जगदीश ओबराय की नज़र अभय सिंह पर पड़ी तो उसने बगल से रखे सोफे पर बैठे विराज की तरफ देखा।

"ये मेरे अभय चाचा जी हैं अंकल।" विराज ने जगदीश का आशय समझ कर कहा___"आज सुबह करीब ग्यारह बजे के आस पास आए हैं।"
"ओह ये तो बहुत अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय के चेहरे पर खुशी के भाव नुमायां हुए, फिर उसने अभय की तरफ देखते हुए कहा___"कैसे हैं भाई साहब?"

अभय ने हल्की मुस्कान के साथ पहले उसे नमस्ते किया फिर बोला___"जी मैं ठीक हूॅ आप सुनाइये।"
"मैं तो बहुत ज्यादा ठीक हूॅ भाई साहब।" जगदीश ने हॅस कर कहा___"जब से ये बच्चे और गौरी बहन यहाॅ आए हैं तब से ज़िंदगी खुशहाल लगने लगी है। वर्ना इतने बड़े बॅगले में नौकर चाकर रहने के बाद भी अकेलापन ही महसूस होता था।"

"ऐसा क्यों कहते हैं आप?" अभय सिंह चौंका था___"इसके पहले अकेलापन क्यों महसूस होता था आपको?"
"अरे भाई अब मेरे सिवा मेरा कोई था ही नहीं तो अकेलापन महसूस तो होगा ही।" जगदीश ने कहा___"नसीब और भाग्य बहुत अजीब होते हैं। अच्छा खासा परिवार हुआ करता था मेरा। मगर फिर सब कुछ खत्म हो गया। धन दौलत तो नसीब से बहुत मिली हमें लेकिन उस दौलत को भोगने वालों को नसीब ने छीन लिया हमसे। जी जान से प्यार करने वाली बीवी थी, वो भी हमें छोंड़ कर इस फानी दुनियाॅ को अलविदा कह दिया। एक बेटा और बहू थे तो वो भी चले गए हमें छोंड़ कर। बस तब से अकेले ही थे। मगर फिर शायद भगवान को हमारे अकेलेपन पर तरस आ गया और उसने हमारे उजड़े हुए गुलशन में फिर से बहार लाने के लिए इन सबको भेज दिया। अब लगता है कि अपना भी कोई है।"

अभय सिंह जगदीश ओबराय की बातें सुन कर हैरान था। उसे याद आया कि विराज ने उससे कहा था कि ये सब अब अपना ही है। तो इसका मतलब वो सही कह रहा था। यानी मेरा भतीजा अब करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है? अभय सिंह को यकीन नहीं हो रहा था मगर हक़ीक़त तो उसके सामने ही थी इस लिए यकीन करना ही पड़ा उसे। वह सोचने लगा कि उसका बड़ा भाई यानी अजय सिंह तो अक्सर यही कहता था कि विराज किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर भला वो भी कैसे ये कल्पना कर सकता था कि विराज आज के समय में कितना बड़ा आदमी बन चुका था। वह चाहे तो चुटकियों में उसे और उसकी पूरी प्रापर्टी को खरीद सकता था।

"ये सब भगवान की अजब लीला ही है भाई साहब।" फिर अभय सिंह ने गहरी साँस लेकर कहा___"वो जो कुछ भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। किस इंसान कब कहाॅ और किस चीज़ की ज़रूरत होती है वो उसे उस जगह पहुॅचा ही देता है। हम नासमझ होते हैं जो ये समझ बैठते हैं कि भगवान ने हमें दिया ही क्या है?"

हाँ ये बात तो है।" जगदीश ने कहा___"और सच पूछो तो भगवान की इस लीला से मैं खुश हूॅ भाई साहब। पहले ज़रूर उससे शिकायतें थी कि उसने मेरा सब कुछ छीन लिया मगर आज कोई शिकायत नहीं है। ये सब मुझे अपना समझते हैं। मुझे वैसे ही चाहते हैं जैसे कोई सगा अपनों को चाहता है। यूॅ तो इस दुनियाॅ में अपने भी अपनों के लिए नहीं होते। मगर कोई अजनबी भी ऐसा मिल जाता है जो अपनों से कम नहीं होता। चार दिन का जीवन है, इसे सबके साथ खुशी खुशी जी लो तो आत्मा तृप्त हो जाती है। क्या लेकर हम इस दुनियाॅ में थे और क्या लेकर जाएॅगे? ये धन दौलत तो सब यहीं रह जाएगी मगर हमारे कर्म ज़रूर हमारे साथ जाएॅगे।"

"आप ठीक कहते हैं भाई साहब।" अभय ने कहा___"आप तो वैसे भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं वरना कौन ऐसा है जो किसी ग़ैर को अपना सब कुछ दे दे?"
"अगर मैने अपना सब कुछ विराज बेटे को दे दिया है तो उससे मुझे मिला भी तो बहुत कुछ है भाई साहब।" जगदीश ने कहा___"मुझे वो मिला है जिसके लिए मैं वर्षों से तड़प रहा था। मैं किसी अपने के लिए तड़प रहा था, तथा अपनों के बीच रह कर जो खुशी मिलती है मैं उसके लिए तरस रहा था। आज मेरे पास ये सब खुशियाॅ है भाई साहब और ये सब मुझे किसी रिश्वत के चलते नहीं मिला है। बल्कि मेरे नसीब से मिला है। मैं तो विराज को बहुत पहले से अपनी सारी प्रापर्टी का वारिस बनाना चाहता था मगर ये ही मना कर रहा था। एक अच्छे व खुद्दार इंसान का बेटा जो था। किसी की ऐसी मेहरबानी को कबूल कैसे कर सकता था ये? मगर मैं चाहता था कि विराज ही मेरा वारिस बने। क्योंकि इसके चेहरे पर ही मुझे अपने बेटे की झलक दिखती थी। अगर ये मेरी बात नहीं मानता तो मैं इसके सामने अपनी झोली फैला कर भीख भी माॅग लेता भाई साहब।"

अभय सिंह जगदीश की ये सब बातें सुन कर चकित रह गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियाॅ कोई इंसान ऐसा भी हो सकता है। ख़ैर इन दोनों के बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। कुछ समय बाद ही गौरी ने सबको खाने का कहा। सब डायनिंग हाल में आ गए और कुर्सियों में बैठ गए। गौरी ने सबको खाना सर्व किया। सबके खाने के बाद गौरी ने भी खाना खाया और फिर सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चल दिये। रास्ते में चलते समय विराज से गौरी ने पूछा___"तेरा काॅलेज कब से शुरू हो रहा है??"

"कल से माॅ।" विराज ने कहा___"कल सुबह मुझे थोड़ा जल्दी उठा दीजिएगा। ऐसा न हो कि पहले दिन ही मैं लेट हो जाऊॅ।"
"चल ठीक है।" गौरी ने कहा___"मैं तुझे भोर के समय पर ही उठा दूॅगी। अब जा आराम से सो जाना।"

गौरी के कहने पर विराज अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उधर गौरी भी पलट कर अपने कमरे की तरफ चली गई।
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