non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:54 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।

उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।

उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।

कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।

"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"

"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।

"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।

इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"

नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।

नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।

"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"

".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"

"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
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