non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:16 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"सबसे पहली बात तो तुम मुझे जासूस महोदय कहना बंद करो।" राणे ने कहा___"मेरा नाम हरीश राणे है। अतः मुझे राणे कह कर संबोधित कर सकते हो। दूसरी बात तुम बेवजह ही ये शक कर रहे हो कि यहाॅ से चूटते ही मैं ऐसा वैसा कुछ कर दूॅगा। मेरा यकीन करो यंग मैन, मुझे रियलाइज हो चुका है कि मैं जो कुछ भी अब तक मंत्री के लिए कर रहा था वो उचित नहीं था। मुझे पता है कि मंत्री और उसके सभी साथी जुर्म व अपराध करने वाले महान पापी हैं। इस लिए अब मैं उनके लिए कोई काम नहीं करूॅगा। बल्कि यहाॅ से छूटने के बाद मैं वापस अपने शहर लौट जाऊॅगा।"

"हो सकता है कि आपकी बातें सच ही हों मिस्टर राणे।" मैने कहा___"मगर चूॅकि आप एक जासूस हैं अतः आप भी समझ सकते हैं कि मौजूदा हालात मैं हम आपको छोंड़ देने का जोखिम नहीं उठा सकते। इस लिए आप इसके लिए हमे माफ़ करें और यहीं रहें।"

मेरी बात सुन कर राणे बेबस भाव से मुझे देखता रह गया। फिर एकाएक ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला___"सही कहते हो भाई। मैं समझ सकता हूॅ कि ऐसे हालात में तुम मुझे यकीनन छोंड़ देने का जोखिम नहीं उठा सकते। ख़ैर कोई बात नहीं, जैसा तुम्हें अच्छा लगे करो। और हाॅ मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ लक इसके लिए।"

राणे की ये बात सुन कर हम सब मुस्कुराए और फिर केशव जी के इशारे पर एक आदमी ने पुनः राणे के मुख में टेप चिपका दिया। उसके बाद सभी आदमियों को कुछ ज़रूरी हिदायतें दे कर हम सब वहाॅ से बाहर की तरफ चल पड़े।
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उधर अजय सिंह जब हवेली पहुॅचा तो शाम के चार बज चुके थे। अजय सिंह को प्रतिमा ड्राइंग रूम में ही बैठी मिली थी। उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वो अपने पति के लिए कितनी चिंतित व परेशान थी। उसने अपनी वकील दोस्त अनीता ब्यास से फोन पर बात की थी। अनीता के पूछने पर उसने संक्षेप में कुछ बातें बताई थी उसे। उसकी उस दोस्त ने उसे आश्वस्त किया था कि वो चिंता न करे, वो उसके पति को छुड़ाने की पूरी कोशिश करेगी। उसने प्रतिमा से कहा था कि वो शाम को उससे मिलने भी आएगी।

इधर अजय सिंह जैसे ही ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ तथा प्रतिमा के बगल वाले सोफे पर बैठा वैसे ही कहीं खोई हुई प्रतिमा का ध्यान अजय सिंह की तरफ गया। उसे पहले तो यकीन नहीं हुआ किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर पहले हैरानी के भाव उभरे उसके बाद तुरंत ही खुशी के भावों ने उसका मुरझाया हुआ चेहरा ताज़े खिले गुलाब की मानिन्द खिला दिया।

"ओह अजय तुम आ गए।" खुशी से फूली न समाती हुई प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा था किन्तु तुरंत ही उसके चेहरे पर हैरानी व उलझन के भाव भी उभर आए, बोली___"मगर तुम वहाॅ से आ कैसे गए अजय? तुम्हें तो पुलिस का वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया था न? फिर तुम पुलिस से छूट कर आ कैसे गए? क्या पुलिस ने तुम्हें यूॅ ही छोंड़ दिया या फिर तुमने कुछ ऐसा वैसा किया है?"

"मैने कुछ भी ऐसा वैसा नहीं किया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा___"बल्कि मुझे मंत्री जी ने पुलिस से ज़मानत पर छुड़ाया है। मगर...।"
"मगर क्या अजय??" प्रतिमा के माॅथे पर बल पड़ा।

"यही कि मंत्री का तो नाम ही है कि उसने मुझे पुलिस से छुड़ाया है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"सच तो ये कि पुलिस मुझे खुद ही छोंड़ देना चाहती थी।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" प्रतिमा हैरान___"भला पुलिस तुम्हें क्यों छोंड़ना चाहेगी? और....और ऐसा भला तुम कैसे कह सकते हो?"
"बेवकूफी भरे सवाल मत करो प्रतिमा।" अजय सिंह ने नाराज़गी के साथ कहा___"साधारण मामला होता तो सोचा भी जा सकता था कि पुलिस ने मामूली बात पर पकड़ा और फिर छोंड़ भी दिया। किन्तु ये मामला साधारण नहीं था। मैने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर उसके सामने ही नीलम को गोली मारी थी। इस लिए इस अपराध के लिए तो मुझे लम्बे से नप जाना चाहिए था। मुझ पर साफ साफ अटेम्प्ट टू मर्डर का केस लगता। तुम अच्छी तरह जानती हो कि इस केस के तहत मेरा कानून से छूटना उस सूरत में तो नामुमकिन ही था जबकि उस संगीन अपराध का चश्मदीद गवाह खुद एसीपी ही था। इतने बड़े अपराध के बावजूद वो मंत्री मुझे बड़ी आसानी से छुड़ा लाया। वो साला समझता होगा कि ये सब उसके रुतबे तथा दबदबे का कमाल है जबकि ऐसा है नहीं। बल्कि सच्चाई यही है कि पुलिस खुद चाहती थी कि मैं सहजता से छूट जाऊॅ। इसका मतलब ये भी हुआ कि उस संगीन अपराध के लिए एसीपी ने मुझ पर कोई केस ही नहीं बनाया है।"

"बात तो तुम्हारी यकीनन सौ पर्शेन्ट सही है।" प्रतिमा के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"किन्तु सवाल ये है कि पुलिस ऐसा क्यों चाहेगी कि तुम उसकी गिरफ्त से आसानी से छूट जाओ? दूसरी बात, अगर पुलिस को तुम्हें इस तरह सहजता से छोंड़ ही देना था तो उस वक्त उसने तुम्हें गिरफ्तार ही क्यों किया था?"

"कमाल है।" अजय सिंह ने हैरानी से प्रतिमा की तरफ देखा, फिर बोला___"ये सब तुम पूछ रही हो प्रतिमा? जबकि तुम तो छोटी सी छोटी बात को पकड़ कर उलझी हुई बातों को सुलझाने में माहिर हो।"

"हाॅ मगर।" प्रतिमा ने कहा___"तब जब मन में तुम्हारे प्रति ऐसी चिंता नहीं होती। हलाॅकि सोच तो मैं अभी भी सकती हूॅ। किन्तु तुम खुद ही बता दो तो क्या बुराई है?"

"ये तो साबित हो चुका है कि।" अजय सिंह ने कहा___"विराज मुझसे कानूनी रूप से कोई बदला नहीं लेना चाहता। क्योंकि अगर उसे इस तरीके से लेना ही होता तो वो ये काम पहले ही कर लेता। यानी कि मेरे खिलाफ उसके पास जो सामान है उसे वो पुलिस को सौंप देता और बता देता कि ये सब उसके ताऊ यानी कि मेरा है। बस खेल खत्म। किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। मतलब साफ है कि वो जो कुछ भी करेगा अपने तरीके से तथा अपने बलबूते पर करेगा। नीलम व सोनम को यहाॅ से ले जाने वाला वाक्या जब सामने आया तो उसे बखूबी पता था कि हम उसके मंसूबों को नाकाम करने की जी तोड़ कोशिश करेंगे। ये सोच कर उसने भी अपने पक्ष को मजबूत किया। रितू ने उसे सुझाव दिया होगा कि अगर इसके बावजूद उसका पलड़ा कमज़ोर पड़ता है तो उस सूरत में वो पुलिस का सहारा लेगी। पुलिस फोर्स के आ जाने से सारा मामला ही उलट जाएगा और फिर वो बड़ी आसानी से नीलम व सोनम को अपने साथ ले जाएॅगे और कोई कुछ कर भी नहीं पाता। ऐसा हुआ भी। किन्तु उसे ये उम्मीद नहीं थी कि इस सबके बीच नीलम को मेरे द्वारा गोली भी मार दी जाएगी। उनका मकसद तो इतना ही था कि पुलिस के आने के आने के बाद जब मैं और मेरे आदमी कुछ नहीं कर पाएॅगे तो वो बड़े आराम से नीलम व सोनम को ले जाएॅगे और मेरे माॅथे पर एक और हार व नाकामी की मुहर लगा जाएॅगे। किन्तु नीलम को गोली लगने से मामला थोड़ा बिगड़ गया। उसे लगा कि सबके साथ मुझे गिरफ्तार तो होना ही था और फिर बाद मुझे छोंड़ ही दिया जाना था, किन्तु नीलम को गोली मार देने से केस बन जाने वाली बात हो गई थी। केस बन जाने की सूरत में मेरा पुलिस से छूटना मुश्किल हो जाता। जो कि विराज हर्गिज़ भी नहीं चाहता था। तब उसने रितू से कहा होगा कि वो कुछ ऐसा करे कि मुझ पर कोई केस ही न बने। उस सूरत में फिर जब कोई मुझे ज़मानत पर छुड़ाने आएगा तो मैं आसानी से छूट जाऊॅगा। विराज के इस सुझाव को या यूॅ कहो कि उसकी इस इच्छा को रितू ने तुरंत मान लिया होगा और फिर उसने ऐसा ही कोई इंतजाम कर दिया होगा। जिसका नतीजा ये निकला कि बाद में मंत्री मुझे बड़ी आसानी से छुड़ाने में कामयाब हो गया। दैट्स आल।"

"ओह तो ये बात है।" प्रतिमा ने कहा___"वैसे कमाल की बात है कि आज तुम्हारा दिमाग़ भी काफी शार्प साबित हुआ जो इतनी बारीकी से ये सब सोचा और इस सबका जूस निकाल कर भी रख दिया। मगर....।"

"अब क्या हुआ??" अजय सिंह बोल पड़ा।
"तुमने नीलम को जान से मारने की कोशिश क्यों की अजय?" प्रतिमा ने सहसा गंभीर होकर कहा___"उसने तो हमारे साथ ऐसा वैसा कुछ भी नहीं किया था। उस वक्त भी उसने तुमसे उस लहजे में सिर्फ इसी लिए बात की क्योंकि तुमने उससे बात ही ऐसे गंदे तरीके से की थी। तुम खुद सोचो अजय कि तुमने जीत के अहंकार तथा आवेश में आकर कितना ग़लत ब्यौहार किया था। सबके सामने तुम्हें अपनी ही बेटी से उस तरीके से बात नहीं करनी चाहिए थी। क्योंकि इसका असर हमारे ही आदमियों पर पड़ेगा। वो सोचेंगे कि जो इंसान सबके सामने अपनी ही बेटी के साथ ऐसी अश्लीलता और ऐसी कूरता कर सकता है वो वास्तव में कितना घटिया होगा। हाॅ अजय, इससे हमारी ही इमेज ख़राब होती है। कोई भी सभ्य लड़की ये बर्दाश्त नहीं कर पाएगी कि सबके सामने उसका ही बाप उससे ऐसी अश्लीलता से बात करके उसे जलील व शर्मसार करे।"

"यकीनन सच कह रही हो तुम।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा___"बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मगर उस वक्त हालात ही ऐसे बन गए थे कि मैं आपे से बाहर हो गया था। एक तो मैं उस हरामज़ादे की बातों से तथा उसे देख कर पागल हुआ जा रहा था जिसने अब तक मुझे शिकस्त ही दी थी। साला ऐसे ऐसे डाॅयलाग बोल रहा था कि मेरे अंदर उन डायलाग को सुनकर उन्हें सहने की शक्ति ही नहीं बची थी। मुझे लग रहा था कि उस हराम के पिल्ले को कैसे भी करके खत्म कर दूॅ और ऐसा होता भी अगर वहाॅ पुलिस फोर्स न आ गई होती तो। मैं अंदर ही अंदर एक और हार व नाकामी से पागल व ब्यथित हुआ जा रहा था ऊपर से मेरी दोनो बेटियों ने सामने आकर जो कुछ कहा उसने मेरे गुस्से को और भी बढ़ा दिया था। रही सही कसर नीलम ने सबके सामने मुझे थप्पड़ मार कर पूरी कर दी थी। बस उसके बाद मैंने अपना आपा खो दिया और वो सब कर बैठा। तुम खुद अंदाज़ा लगा सकती हो प्रतिमा कि उस वक्त मैं किस मानसिक हालत में रहा होऊॅगा?"

"चलो ये सुन कर अच्छा लगा कि तुम्हें नीलम को गोली मारने वाली बात पर अपनी ग़लती का एहसास हुआ।" प्रतिमा ने कहा___"किन्तु क्या तुम्हारे मन में ये विचार भी उठा है कि तुम्हें एक बार नीलम का हाल चाल जान लेना चाहिए? कुछ भी हो आख़िर वो है तो हमारी बेटी ही।"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह का चेहरा एकाएक कठोर हो गया, बोला___"मेरे लिए मेरी दोनो बेटियाॅ अब मर चुकी हैं। इस दुनियाॅ में अब तुम्हारे और हमारे बेटे के अलावा मेरा कोई नहीं है। एक बात और आज के बाद तुम मुझसे उन दोनो के बारे में कोई भी बात नहीं करोगी। ये मेरी पहली और आख़िरी वार्निंग है।"

"मर्द कभी नहीं समझ सकता एक औरत की पीड़ा को।" प्रतिमा ने सहसा भारी स्वर में कहा___"मगर मुझे तुमसे उम्मीद थी अजय कि तुम मेरी पीड़ा को समझोगे।"

"कहना क्या चाहती हो तुम?" अजय सिंह ने अजीब भाव से प्रतिमा की तरफ देखा।
"तुम जानते हो अजय कि मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूॅ जितना पहले करती थी।" प्रतिमा ने कहा___"और मैं जाने कितनी बार तुम्हें अपने बेपनाह प्यार का सबूत भी दे चुकी हूॅ। तुम्हारे सिर्फ एक इशारे पर मैं पराए मर्द के नीचे खुशी खुशी लेट गई। कभी इसके लिए तुमसे शिकायत नहीं की और ना ही तुमसे नाराज़ हुई। तुम्हारी हर खुशी में मैने अपनी खुशी देखी। तुम्हारी तरह सबके लिए कठोर भी बन गई। मगर मैं एक औरत के साथ साथ एक माॅ भी हूॅ अजय। औलाद चाहे जैसी भी हो वो अपनी माॅ के लिए सबसे सुंदर व सबसे अनमोल होती है। मुझे अब तक इतनी ज्यादा तकलीफ़ नहीं हुई थी किन्तु इस हादसे से हुई है। मैं मानती हूॅ कि मेरी दोनो बेटियों ने हमारे खिलाफ जा कर ग़लत किया है मगर जब ये सोचती हूॅ कि उन दोनो ने ऐसा क्यों किया तब इस क्यों के जवाब को सोच कर ही दिल दहल जाता है। आख़िर अपने सामने तो इस सच्चाई को हमें भी मानना ही पड़ेगा न कि हमने अपनी ही बेटियों के साथ तथा बाॅकी सबके साथ ग़लत सोचा और ग़लत किया भी।"

"इन सब बातों को कहने का क्या मतलब है?" अजय सिंह ने कहा___"और....और आज अचानक ये बातें ही क्यों? नहीं प्रतिमा, अब इन सब बातों को सोचने का कोई मतलब नहीं है और सोचना भी नहीं। क्योंकि अब बात बहुत आगे निकल चुकी है। अब तो इसका फैसला दो पक्षों में से किसी एक पक्ष के खत्म हो जाने पर ही होगा। उसके पहले तो कुछ हो ही नहीं सकता। इसके पहले तो ये था कि मैंने ये सब अपने बीवी बच्चों के लिए किया किन्तु अब ये भी है कि जिन चीज़ों की ख्वाहिश थी उसे हर हाल में पूरा करना है। अगर मेरे द्वारा वो सब बरबाद हुए हैं तो उनके द्वारा मेरा भी तो बहुत कुछ नुकसान हुआ। इस लिए अब ऐसी बातें अपने ज़हन में मत लाओ। ख़ैर छोंड़ो, मुझे भी ज़रा फ्रेश होना है। एक बात और, चिंता की कोई बात नहीं है। विराज भले ही मुझे शिकस्त देकर चला गया है मगर बहुत जल्द उसका भी किस्सा खत्म होने वाला है। क्योंकि मंत्री ने उसके पीछे जासूस लगाया हुआ है। वो जासूस बहुत जल्द उसके ठिकाने का पता मंत्री जी को देगा उसके बाद मंत्री विराज के ठिकाने पर धावा बोल देगा। उस साले विराज के साथ साथ तुम्हारी दोनो बेटियों का भी खेल खत्म हो जाएगा।"

ये सब कहने के बाद अजय सिंह उठा और अंदर कमरे की तरफ बढ़ गया। जबकि उसकी बातें सुनने के बाद प्रतिमा पहले तो हैरान हुई फिर सामान्य हो कर बैठी रही। चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते रहे।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:16 PM

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