non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:17 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"राज बिलकुल सही कह रहा है आदित्य।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेकर कहा___"मैं अपने डैड को बहुत अच्छी तरह से जानती हूॅ। वो इस परिस्थिति में भी कोई ऐसा जुगाड़ कर ही लेंगे कि हम उनके पास इस तरह से उनका तिया पाॅचा करने न पहुॅच सकें।"

"तुम्हारे हिसाब से वो ऐसा क्या जुगाड़ कर सकता है अब?" आदित्य ने पूछा___"जबकि मौजूदा हालात साफ शब्दों में बता रहे हैं कि वो अब कुछ भी करने की पोजीशन में नहीं रह गया है।"

"इस बारे में मैं कुछ कह नहीं सकती।" रितू दीदी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"किन्तु उनके संबंध कई ऐसे लोगों से रहे हैं अथवा ये कहूॅ कि हैं जो ऊॅचे दर्ज़े के अपराधी हैं। अतः संभव है कि डैड अपने ऐसे ही किन्हीं अपराधी दोस्तों से मौजूदा हालात में मदद की गुहार लगाएॅ।"

"चलो ये मान लिया कि तुम्हारे डैड के ऐसे लोगों से संबंध हैं और वो उन लोगों से इस समय मदद माॅग सकते हैं।" आदित्य ने कहा___"किन्तु यहाॅ पर मैं एक सलाह देना चाहता हूॅ, और वो सलाह ये है कि तुम्हारे डैड को उस आधार पर भी तो बड़ी आसानी से भीगी बिल्ली बना कर अपने पास बुलाया जा सकता है जो आधार इस वक्त राज के पास मौजूद है, यानी कि अजय सिंह का ग़ैर कानूनी सामान। उस सामान के आधार पर अजय सिंह यकीनन भीगी बिल्ली बन कर हमारे पास खुद ही आ जाएगा।"

"ऐसा नहीं हो सकता आदी।" मैने कहा___"क्योंकि अब तक ये बात मेरे ताऊ को भी ताई के समझाने पर समझ आ ही गई होगी कि मैं उन्हें उनके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई क्षति नहीं पहुॅचाना चाहता बल्कि अपने बलबूते पर ही अपने व अपने परिवार के साथ हुए हर अत्याचार का बदला लेना चाहता हूॅ। अगर मुझे उस सामान के आधार पर ही अपने ताऊ का क्रियाकर्म करना होता तो मैं ये काम बहुत पहले ही कर चुका होता। इस लिए इस बात पर सोचने का कोई मतलब ही नहीं है दोस्त।"

"मैं तुम्हारी बातों से पूर्णतया सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"किन्तु उन्हें ये भी तो पता होगा न कि अगर तुम अपने बलबूते पर अपने ताऊ का कोई भी बाल बाॅका न कर पाए तो फिर तुम्हारे पास अंतिम चारा वो ग़ैर कानूनी सामान ही तो होगा। यानी कि तुम उस सामान के आधार पर ही आख़िरी चारे के रूप में अपने ताऊ का काम तमाम करोगे। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अगर तुम उसी ग़ैर कानूनी सामान की धमकी देकर अपने ताऊ को भीगी बिल्ली बना कर अपने पास आने पर मजबूर करोगे तो वो यही समझेंगे कि शायद तुम्हारे पास अब यही एक चारा रह गया था जिसके तहत तुमने अजय सिंह के उस ग़ैर कानूनी सामान का सहारा लिया है और उसे अपने पास इस तरह बुला रहे हो।"

"मनोविज्ञान की दृष्टि से तुम्हारा ये सोच कर कहना यकीनन सही है।" मैने कहा___"किन्तु मत भूलो कि उस तरफ बड़ी माॅ हैं जो खुद दिमाग़ के मामले में हम सबसे बीस ही हैं। कहने का मतलब ये कि सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद वो इसी नतीजे पर पहुॅचेंगी कि इतना कुछ होने के बाद तो हमारा पक्ष पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गया है, तो फिर अचानक ये गैर कानूनी सामान को आधार बना कर अजय सिंह को हम क्यों अपने पास बुला रहे हैं?"

"अरे तो उनके नतीजों से हमें क्या लेना देना भाई?" आदित्य ने कहा___"वो सारे हालातों पर ग़ौर करके क्या नतीजा निकालती हैं इससे हमें क्या फर्क़ पड़ता है? हमें तो अपने काम से मतलब है, फिर चाहे वो जैसे भी हो।"

"और मेरे सिद्धान्तों व उसूलों का क्या?" मैने आदित्य की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा___"हम सच्चाई व धर्म की राह पर चल रहे हैं दोस्त। हम भले ही अब तक धोखे से या किसी चाल से यहाॅ तक पहुॅचे हैं किन्तु प्यार व जंग में ये जायज था। मगर यहाॅ पर एक नियम अथवा एक सिद्धान्त तो मैंने उन्हें जता ही दिया था कि मैं अजय सिंह के खिलाफ उसके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई ऐक्शन नहीं लूॅगा, बल्कि सब कुछ अपने बलबूते पर ही करूॅगा। इस बात को मैं अब तक निभाता भी आया हूॅ और आगे भी इसे निभाना चाहता हूॅ। ये मेरे जिगर व मेरी मर्दानगी का सबूत भी होगा भाई कि मैने अपने बलबूते पर ही सब कुछ किया। इसके विपरीत अगर मैने जंग के आख़िर में ये क़दम उठाया तो फिर मेरी साख़ का क्या औचित्य रह जाएगा? मेरा ताऊ इस बात को भले ही न समझ पाए मगर मुझे यकीन है कि मेरी इस मनोभावना को बड़ी माॅ ज़रूर समझेंगी, और मैं चाहता भी हूॅ कि उनके मन में मेरे कैरेक्टर का ये मैसेज जाए। दूसरी बात, हमे ऐसा करने की ज़रूरत भी क्या है दोस्त? आप दोनो के रहते तो मैं सारी दुनिया को फतह कर सकता हूॅ।"

"एक सच्चा इंसान तथा एक सच्चा वीर ऐसा ही होना चाहिए।" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों देखते हुए कहा___"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरे भाई। मेरा दिल करता है कि तेरे लिए अपनी अंतिम साॅस तक निसार कर दूॅ।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" मैने सहसा भावुकतावश उनकी तरफ देखते हुए कहा___"अभी तो हम सबको एक साथ बहुत सारी खुशियाॅ बाॅटनी हैं। इस सबके बाद हम एक नये संसार का शुभारम्भ करेंगे। उस नये संसार में बेपनाह प्यार और बेपनाह खुशियाॅ होंगी।"

"और मुझे अपनी उन खुशियों से किनारा कर दोगे क्या तुम लोग?" आदित्य मुस्कुराते हुए बोल पड़ा___"ऐसा सोचना भी मत राज। वरना देख लेना तुम्हारे घर के बाहर धरना देकर बैठ जाऊॅगा।"

"ऐसा मत करना दोस्त।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"गाॅव के लोग धरने के रूप में एक ही आदमी को बैठा देखेंगे तो उसे कुछ और ही समझ लेंगे।"
"ओ हैलो।" आदित्य ने ऑखें दिखाई___"क्या मतलब है तुम्हारा? क्या समझ लेंगे गाॅव के लोग___भिखारी?? चल कोई बात नहीं यार। तुम्हारे लिए ये भी बन जाऊॅगा।"

"तुम्हें बाहर धरने पर बैठने की ज़रूरत नहीं है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"रक्षाबंधन आने वाला है। इतने वर्षों में पहली बार मैं राज को राखी बाधूॅगी। राज की तरह तुम भी मेरे भाई ही हो। मैं और भी बहुत खुश हो जाऊॅगी कि तुम्हारे जैसा एक नेक दिल इंसान मेरा भाई बन जाएगा।"

"कितनी सुंदर बात कही है तुमने।" आदित्य सहसा किसी गहरे ख़यालों में खोता नज़र आया___"तुम्हारे ही जैसी एक बहन थी मेरी___प्रतीक्षा। मेरी लाडली थी वो, हर साल रक्षाबंधन के दिन मेरी कलाई पर एक साथ ढेर सारी राखियाॅ बाॅध देती थी। फिर कहती कि सभी राखियों का वो अलग अलग पैसा लेगी मुझसे।" कहने के साथ ही आदित्य की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोला___"मगर चार साल पहले अपने प्यार में धोखा खाने की वजह से उसने खुदखुशी की कोशिश की। दो मंजिला मकान की छत से कूद गई वो। हास्पिटल में इलाज चला मगर डाक्टर ने बताया कि वो कोमा में जा चुकी है। आज चार साल हो गए। आज भी वो लाश बनी पड़ी है। जिस लड़के ने उसे धोखा दिया था उसे ऐसी सज़ा दी थी मैने कि वो किसी भी लड़की से संबंध बनाने का सोच ही नहीं सकता अब।"

आदित्य की ये बातें सुन कर मैं और रितू दीदी भी सीरियस हो गए। रितू दीदी उठ कर आदित्य के पास गई और उसे अपने से छुपका लिया। मैं खुद भी आदित्य की दूसरी तरफ बैठ कर उसके कंधे को थपथपा रहा था।

"दुखी मत हो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"प्रतीक्षा जल्द ही ठीक हो जाएगी। चलो अब शान्त हो जाओ। देखो ये ईश्वर का विधान ही तो था कि मैं तुम्हारी बहन के रूप में तुम्हें मिली और चार साल से सूनी पड़ी तुम्हारी कलाई में राखी भी बाधूॅगी।"

"भगवान का बहुत बहुत शुक्रिया।" आदित्य ने रितू दीदी से अलग होते हुए ऊपर की तरफ सिर करके कहा___"जो उसने मुझे बहन के रूप में मेरी प्रतीक्षा को मेरे पास भेज दिया। मैं तुमसे यही कहूॅगा रितू कि तुम भी प्रतीक्षा की तरह मेरी कलाई पर ढेर सारी राखियाॅ बाॅधना।"

"जैसी तुम्हारी इच्छा।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"तुम दोनो बैठो मैं ज़रा काकी(बिंदिया) को चाय बनाने के लिए कहने जा रही हूॅ।"
"ठीक है।" आदित्य ने कहा। उसके बाद रितू दीदी उठ कर अंदर की तरफ चली गईं। जबकि मैं और आदित्य वहीं बैठे रहे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मुम्बई में।
जगदीश ओबराय बॅगले के बाहर लान में एक तरफ हरी हरी विदेशी घाॅस के बीचो बीच रखी कुर्सी पर बैठा शाम का अखबार पढ़ रहा था। इस वक्त वह यहाॅ पर अकेला ही था। उसके सामने की बाॅकी सभी कुर्सियाॅ खाली थी। तभी मेन गेट से अंदर आती हुई एक कार की आवाज़ से उसका ध्यान मेन गेट की तरफ गया।

मेन गेट से अंदर दाखिल हुई कार चलते हुए सीधा पोर्च में जाकर रुकी। कार के रुकते ही पैसेंजर सीट की तरफ का गेट खुला और अभय सिंह अपने पैर पोर्च के फर्श पर रखते हुए बाहर निकला। बाहर आते ही उसने लान में एक तरफ कुर्सी में बैठे जगदीश ओबराय की तरफ देखा। जगदीश ओबराय को देखते ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई और वह उस तरफ ही बढ़ता चला गया।

"कहो भाई क्या कहा डाक्टर ने?" अभय के कुर्सी पर बैठते ही जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा___"वैसे तुम्हारे चेहरे की चमक देख कर ज़ाहिर हो रहा है कि रिपोर्ट पाॅजिटिव ही है।"

"बिलकुल सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने खुशी से कहा___"रिपोर्ट एकदम सही है। बस कुछ ही दिनों में सब कुछ सही हो जाएगा और ये सब आपकी वजह से ही संभव हो सका है। इसके लिए मैं आपका हमेशा आभारी रहूॅगा।"

"अरे इसमें मेरा आभारी रहने की क्या बात है भई?" जगदीश ओबराय ने कहा___"सब कुछ करने वाला तो ऊपरवाला है। हम तो बस माध्यम ही होते हैं।"
"ऊपरवाले को भी तो कुछ करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता ही पड़ती है भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा____"ये उसी का नतीजा है कि आप इस सबके लिए माध्यम बने और ये सब हुआ वरना अब तक जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तो हम में से कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था।"

"पर इसमें भी सबसे बड़ा योगदान गौरी बहन का है अभय भाई।" जगदीश ओबराय ने कहा___"उसने करुणा बहन से कुरेद कुरेद कर तथा ज़बरदस्ती पूछा था और तब करुणा ने बताया कि तुममें समस्या क्या है? गौरी बहन ने वो बात बहाने से ही सही किन्तु मुझसे कही। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तुम में ये समस्या हो सकती है। तुम भी अपने बिना मतलब के स्वाभिमान व शर्म के चलते इस बारे में किसी से कहना नहीं चाहते थे। बेकार की सोच और बेकार के सिद्धान्त लिए बैठे थे। तुम्हें अपनी पत्नी की इच्छाओं का खुशियों का कोई ख़याल ही नहीं था। ख़ैर, जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। अब खुशी की बात ये है कि तुम फिजिकली अब कुछ ही दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाओगे और तुम्हारे पति पत्नी के रिश्तों के बीच फिर से खुशियाॅ भी आ जाएॅगी।"

"सचमुच गौरी भाभी को सबका ख़याल रहता है।" अभय सिंह ने मुग्ध भाव से कहा___"वो यकीनन देवी हैं भाई साहब। कभी कभी सोचा करता हूॅ कि इतने अच्छे लोगों के साथ ईश्वर ऐसा अन्याय कैसे कर देता है? भला क्या बिगाड़ा था किसी का उन्होंने?"

"एक नये अध्याय को शुरू करने के लिए पुराने ख़राब हो चुके अध्याय को खत्म करना ही पड़ता है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"हम आम इंसान ईश्वर के क्रिया कलाप को समझ नहीं पाते हैं जबकि सबसे ज्यादा उसे ही पता होता है कि हमारे लिए क्या अच्छा हो सकता है? ईश्वर ने मेरे साथ क्या कुछ नहीं कर दिया है। आज से पहले अरब पति होते हुए भी मैं इतनी बड़ी सल्तनत में अकेला था किन्तु आज मेरे पास गौरी जैसी बहन है और विराज व निधी जैसे मेरे बच्चे हैं। उनके साथ साथ तुम सब भी मिल गए। इन सभी रिश्तों में मुझे प्यार व सम्मान हद से ज्यादा मिल रहा है। अब इससे ज्यादा क्या चाहिए मुझे? इस दुनियाॅ में हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएॅगे? सब कुछ यहीं रह जाएगा, असली दौलत व असली सुख तो इन्हीं में है। आज ईश्वर के इस न्याय से मैं बहुत खुश हूॅ।"

"सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा___"काश हर इंसान आप जैसी सोच वाला हो जाए तो ये संसार कितना खूबसूरत हो जाए। एक मेरे बड़े भाई साहब हैं जिन्होंने अपने मतलब के लिए हर रिश्ते की बलि चढ़ा दी तथा अपनों के साथ इतना बड़ा अत्याचार कर डाला। क्या उन्हें ये बात नहीं पता होगी कि उन्होंने जिन चीज़ों के लिए ये सब किया वो चीज़ें मरने के बाद उनके साथ नहीं जाएॅगी। बल्कि उनके इस कर्म से उनके मरने के बाद भी लोग उन्हें बुरा भला ही कहेंगे।"

"इस संसार में हर तरह के इंसानों का होना ज़रूरी है अभय।" जगदीश ने कहा___"ईश्वर हर तरह के प्राणियों की रचना करता है, फिर उन्हीं के द्वारा खेल भी रचाता है और उस खेल का आनंद भी लेता है। उसने हम इंसानो के लिए नियम बनाए और उन नियमों पर चलने के लिए उसने समय समय पर हमें किसी न किसी माध्यम से रास्ता भी बताया। ख़ैर ये प्रसंग तो बहुत बड़ा है भई, इसे समझना और इस पर अमल करना बहुत कठिन है। तुम बताओ क्या कहा डाक्टर ने?"

"बाॅकी का तो आपको पता ही है।" अभय सिंह ने कहा___"उस दिन की रिपोर्ट के अनुसार इलाज शुरू हो चुका था। आज उसने टेस्ट लिया तो रिजल्ट बेहतर निकला। उसने बताया कि बहुत जल्द पहले जैसी बात हो जाएगी।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"तुम भी ज़रा संजम और संयम का ख़याल रखना और दवा दारू समय समय पर करते रहना। ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:17 PM

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