non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:18 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
देखते ही देखते कुछ ही देर में सबको अलग अलग पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध दिया गया। रस्सियों में जकड़ी गौरी बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। उसकी नज़र जैसे ही रस्सियों में बॅधे अपने बेटे विराज पर पड़ी वैसे ही वह बुरी तरह तड़प कर रोने लगी थी। विराज के साथ साथ रितू नीलम सोनम आदित्य आदि को रस्सियों में बॅधे थे, किन्तु इस वक्त ये सब अचेत अवस्था में थे।

"तो आख़िर तुम सब लोग यहाॅ पर मरने के लिए आ ही गए।" अजय सिंह उन सबके बीच ज़मीन पर चहल क़दमी करते हुए कठोर भाव से बोला___"वैसे क्या समझते थे तुम सब लोग कि मेरे क़हर से बचे रहोगे? हाहाहाहा ऐसा कभी नहीं हो सकता। जब तक मेरे द्वारा तुम सबको सज़ा नहीं मिल जाती तब तक तुम लोग किसी भी चीज़ से मुक्त नहीं हो सकते थे।"

"मेरे बेटे को कुछ मत करना।" सहसा गौरी ने रोते हुए कहा____"मैं आपके सामने हाॅथ जोड़ती हूॅ। भगवान के लिए उसे छोंड़ दो। उसके किये की सज़ा मुझे दे लो मगर मेरे बेटे को कुछ मत करना।"

"हाय! मेरी बुलबुल ये क्या हालत बना ली है तुमने?" अजय सिंह गौरी के क़रीब आते हुए चहका___"यकीन मानो तुम्हारी ये हालत देख कर मेरे दिल को बहुत दुख हो रहा है। अरे तुम तो मेरी जाने बहार हो डियर। कभी मेरे दिल के बारे में भी सोचा होता तो समझ में आता तुम्हें कि कोई किस क़दर चाहता है तुम्हें? मगर तुमने तो कभी मेरे बारे में सोचना तक गवारा न किया। आख़िर क्या कमी थी मुझमें? तुम्हारे उस अनपढ़ गवार पति से तो लाख गुना अच्छा था मैं। उससे कहीं ज्यादा अच्छी हैंसियत भी है मेरी। वो तो खेतों पर दिन रात काम करने वाला महज एक मजदूर था जबकि मैं तो यहाॅ का सम्पन्न राजा था। तुमको दुनियाॅ हर ऐशो आराम व सुख देता। मगर तुमको तो उस मजदूर से ही प्रेम था।"

"कोई भी इंसान धन दौलत से राजा नहीं बन जाता नीच इंसान।" गौरी का लहजा एकाएक कठोर हो उठा___"राजा बनने के लिए दूसरों के प्रति अपनी खुशियों का तथा अपने हर सुखों का त्याग करना पड़ता है। तुझमें तो सिर्फ एक ही खूबी है बेग़ैरत इंसान और वो है हर रिश्तों की मान मर्यादा का हनन करना। तेरे जैसे कुकर्मी के लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा ही हो सकती है।"

"उफ्फ।" अजय सिंह ने बुरा सा मुह बनाया___"मेरे प्रति इतनी घटिया बात कैसे सोच सकती हो तुम? अरे तुम कहती तो मैं तुम्हारे लिए खुद को पूरी तरह बदल भी देता मेरी जान। मैं वो सब बनने को तैयार हो जाता जो तुम मुझे बनने को कहती। मगर तुमने तो मुझसे इस बारे में कभी कुछ कहा ही नहीं। इसमे भला मेरा क्या कसूर है गौरी? मैं तो बस अपने दिल के हाॅथों मजबूर था और वही करता चला गया जो मेरा दिल कहता रहा था। मगर कोई बात नहीं डियर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम कहोगी तो मैं अब भी वैसा ही बन जाऊॅगा जैसा तुम कहोगी। ये समझ लो कि तुम्हारी स्वीकृति से सब कुछ एक पल में बदल जाएगा। कहने का मतलब ये कि तुम अगर अब भी मेरी हो जाओ तो ये सब लोग मेरे क़हर से बच जाएॅगे।"

"तू अपने और अपने इस सपोले के बारे में सोच हरामज़ादे।" होश में आते ही मेरी आवाज़ वातावरण में गूॅज उठी___"तू अगर ये समझता है कि तूने हम सबको रस्सियों में इस तरह बाॅध कर बहुत बड़ा तीर मार लिया है तो इस खुशफहमी में मत रह तू। दुनियाॅ की कोई भी ताकत तुझको मेरे हाॅथों मरने से बचा नहीं सकती।"

"तू अब कुछ नहीं कर सकता भतीजे।" अजय सिंह ने विराज की तरफ देखते हुए कहा___"तेरा सारा उछलना कूदना समाप्त हो चुका है। अब तक तुझे जो कुछ भी करना था वो सब कर लिया है तूने। अब तो मेरी बारी है और यकीन मान मैं अपनी बारी में अब कोई कसर नहीं छोंड़ूॅगा कुछ भी करने में। ख़ैर, अभी तो तुझे ये भी पता नहीं है कि मेरे एक ही झटके में तू और ये सब मेरी कैद में कैसे आ गए? तुझे पूछना चाहिए भतीजे कि मुझे तेरे ठिकाने का कैसे पता चला? और फिर कैसे तुम सब यहाॅ पहुॅच गए?"

अजय सिंह की इस बात पर सन्नाटा सा छा गया। ये सच था कि विराज एण्ड पार्टी को होश आते ही सबसे पहले उनके मन में यही सवाल उभरा था कि वो अचानक यहाॅ कैसे आ पहुॅचे हैं? एक के बाद एक सब कोई होश में आ चुका था। खुद को इस तरह रस्सियों में बॅधे देख वो सब बुरी तरह चौंके थे तथा बुरी तरह छटपटाने लगे थे। किन्तु जब यहाॅ के दृष्य व माहौल पर सबकी नज़र पड़ी तो जैसे सबके पैरों तले से ज़मीन ही गायब हो गई थी। विराज और रितू ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि मुम्बई से बाॅकी सब लोग भी यहाॅ आ चुके हैं और वो सब भी उनकी तरह रस्सियों से बॅधे हुए हैं।

"हाहाहाहाहा क्यों भतीजे ज़बान को लकवा क्यों मार गया तुम्हारे?" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसा___"पूछ न कि ये सब कैसे हुआ? खुद को बड़ा तीसमारखां समझ रहा था न तू? अब पूछ कि ये सब कैसे हो गया? एक ही झटके में तू भी यहाॅ आ गया और मुम्बई में रह रहे तेरे ये सब चाहने वाले भी यहाॅ आ गए। होश में आने के बाद तुझे सबसे पहले यही पूछना चाहिए था।"

"तुम बताने के लिए इतना ही मरे जा रहे हो तो खुद ही बता दो।" आदित्य ने कहा____"वैसे मुझे पूरा यकीन है कि इसमें भी तेरे जैसे कूढ़मगज का अपना कोई दखल नहीं होगा।"

"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता बेटा।" अजय सिंह ने कहा___"जंग में सेना का सारा ही योगदान होता है किन्तु जंग की जीत का सारा श्रेय राजा को ही जाता है। ख़ैर, अगर मेरा भतीजा ये जान जाए कि ये सब कैसे हुआ है तो यकीनन उसे दिल का दौरा पड़ जाएगा।"

"क्या मतलब??" मैं चकरा सा गया।
"छोटे को रस्सियों से मुक्त कर दो सहाय।" अजय सिंह ने अभिजीत सहाय की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे लगता है कि ये खुद ही बताए तो ज्यादा बेहतर होगा।"

अजय सिंह की इस बात से हर कोई भौचक्का रह गया। सचमुच सबके पैरों के तले से ज़मीन खिसक गई किन्तु अभी भी बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई थी। उधर अजय सिंह के कहने पर अभिजीत सहाय ने एक आदमी को इशारा किया तो उसने जा कर अभय सिंह को रस्सियों से मुक्त कर दिया। रस्सी से छूटते ही अभय सिंह मुस्कुराया और फिर अपने कपड़ों को झाड़ता हुआ अजय सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया।

अभय सिंह के होठों पर इस वक्त बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी। मैं ही क्या हम सब भी उसे इस तरह देख कर चकित थे। जबकि अभय सिंह कुछ देर हम सबकी तरफ उसी रहस्यमय मुस्कान के साथ देखता रहा।

"माफ़ करना राज।" अभय सिंह ने मेरी तरफ देखने के बाद माॅ की तरफ देखा___"आप भी मुझे माफ़ कीजिएगा भाभी जी। मगर मैं क्या करता? इस दुनियाॅ में हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही तो सोचता है।"

"अ..भय तुम।" गौरी के होठ बुरी तरह थरथरा कर रह गए, बोली___"तुमने ये सब किया है??"
"करने वाले तो बड़े भइया ही हैं भाभी।" अभय सिंह ने मुस्कुरा कर कहा___"मैने तो सिर्फ इन्हें फोन पर राज के ठिकाने के बारे में बताया था। आप सब समझ सकते हैं कि राज के ठिकाने का पता चल जाने के बाद बड़े भइया के लिए ये सब कर लेना कितना आसान रहा होगा।"

"नहींऽऽऽ।" गौरी के कुछ बोलने से पहले ही करुणा बुरी तरह रोते हुए चीख पड़ी____"आप ऐसा नहीं कर सकते। आप ऐसे नीच इंसान का साथ कैसे दे सकते हैं जिसके बेटे ने खुद आपकी पत्नी व बेटी के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी? नहीं नहीं, आप इस नीच आदमी की तरह नहीं हो सकते। भगवान के लिए कह दीजिए कि ये सब आपने नहीं किया।"

हम सब अभय सिंह की इस बात से हक्के बक्के थे। मुख से कोई बोल ही नहीं फूट रहा था। अभय सिंह का इस तरह पलटी मारना हम सबके लिए यकीनन अविश्वसनीय था। किन्तु सच्चाई तो अब सबके सामने ही थी। उसे कैसे कोई नकार सकता था?

"वाह अभय।" गौरी ने हताश भाव से कहा___"क्या खूब बेटे होने का फर्ज़ निभाया है तुमने। कल तक तो बड़ा कह रहे थे कि तुमने हमेशा मुझे अपनी माॅ की तरह समझा है। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि एक झटके में तुम फरिश्ता से राक्षस बन गए? आख़िर मैंने या मेरे बच्चों ने ऐसा क्या बुरा कर दिया था तुम्हारा कि तुमने हम सबको इस आदमी के सामने ला कर इस तरह खड़ा कर दिया?"
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