non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:20 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।
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