non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:25 PM,
#71
RE: non veg kahani एक नया संसार
"बात तो तुम्हारी ठीक है।" जगदीश हॅस पड़ा__"संभावनाओं पर कुछ नहीं होता, कानून को तो सबूत चाहिए। और सबूत कोई है नहीं। वाह....ये तो कमाल हो गया बेटे।"

"अभी तो दिमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है अंकल।" विराज ने कहा__"जबकि मैदान में खुल कर आना अभी बाॅकी है। जिस दिन आमने सामने का खेल होगा न उस दिन से अजय सिंह हर पल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, रहम की भीख माॅगेगा मुझसे और मेरी माॅ से।"

"उसके साथ यही होना चाहिए राज बेटे।" जगदीश ने कहा__"जो अपने माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके साथ इतना घिनौना कर्म किया ऐसे गंदे इंसान के साथ किसी भी कीमत पर रहम नहीं होना चाहिए।"

"उनके लिए रहम शब्द मैंने अपनी डिक्शनरी से निकाल कर फेंक दिया है अंकल।" विराज ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__"एक एक चीज़ का हिसाब लूॅगा मैं।"

"मैं तो उस कमीने शिवा को अपने हाथों से कुत्ते की तरह मारूॅगी।" सहसा निधि ने तपाक से कहा__"मुझे उसकी शकल से भी नफरत है। हाॅ नहीं तो।"

निधि के इस तकिया कलाम को सुन कर सब मुस्कुरा कर रह गए।

ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। अजय सिंह अब अपनी हालत पर काबू पा चुका था। बल्कि ये कहिये कि हर बात से काफी हद तक बेफिक्र हो चुका था। उसकी बेटी रितू द्वारा उसे पता चल चुका था कि तहखाने में बाॅकी कुछ नहीं मिला था। हलाॅकि रितू को इस बात के पता होने का सवाल ही नहीं था कि उसका बाप गैर कानूनी काम करता है। उसने तो फाॅरेंसिक रिपोर्ट को देखकर यही बताया था कि फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के द्वारा ही लगी थी। अब उसकी तहकीकात सिर्फ इसी तरफ थी कि फैक्टरी के अंदर जाकर तहखाने में टाइम बम्ब किसने लगाया था??

रितू को एक सवाल ये भी परेशान कर रहा था कि इस केस की बारीकी से जाॅच पड़ताल कराने के पीछे होम मिनिस्टर का क्या मकसद था?? उसने तो सिर्फ केस को रिओपेन करने की अप्लीकेशन बस दी थी। उसका मकसद तो सिर्फ ये पता करना था कि इस केस में पुलिस ने इस प्रकार की रिपोर्ट क्यों बनाई थी?? दूसरी बात ये थी कि उसे लगता था कि फैक्टरी में लगी आग महज कोई इत्तेफाक़ की बात नहीं थी। बल्कि उसके पिता के किसी दुश्मन द्वारा लगाई गई थी। इस लिए वह इस सबका पता करके उस ब्यक्ति द्वारा अपने पिता के हुए भारी नुकसान की भरपाई करना चाहती थी। उसे तो इस बात से भी हैरानी थी कि रातों रात इस शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेंट का तबादला क्यों कर दिया गया था??? इसके पीछे क्या सिर्फ ये वजह थी कि इस केस की पुलिस ने अपनी पूरी ईमानदारी के साथ छानबीन नहीं की, बल्कि किसी के कहने पर ऐसी रिपोर्ट तैयार की?? क्या सिर्फ यही वजह थी या फिर इसके पीछे भी कोई ऐसा कारण है जो फिलहाल अभी उसकी समझ से बाहर नज़र आ रहा है??

अजय सिंह बेफिक्र ज़रूर हो गया था किन्तु इस बात का उसे एहसास था कि एक तलवार अभी भी उसकी गर्दन पर लटकी हुई है, जो कभी भी उसका गला रेत सकती है। वह पक्के तौर पर समझ चुका था कि तहखाने से वह सब चीज़ें तहखाने में टाइम बम्ब लगाने वाले ने ही गायब की हैं। वह नहीं जानता था कि ये सब किसने किया है लेकिन इतना अवश्य जानता था कि देर सवेर उस ब्यक्ति का इस संबंध में कोई न कोई मैसेज ज़रूर आएगा। अजय सिंह उसी मैसेज के इन्तज़ार में था। दूसरी बात अपने बिजनेस को फिर से खड़ा करने के लिए वह कार्यरत भी हो गया था। फैक्टरी भले ही जल गई थी उसकी लेकिन उसके पास पैसों की कमी नहीं थी। गैर कानूनी धंधे में उसने बड़ी धन दौलत इकट्ठी कर ली थी। उसने फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए उसकी मरम्मत का काम शुरू करवा दिया था। इस समय वह रात दिन इसी में ब्यस्त रहता था। उसकी छोटी बेटी नीलम वापस मुम्बई जा चुकी थी। अजय सिंह फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए कार्यरत था, इस बात से अंजान कि उसके पीछे उसका बेटा शिवा अपने आचरण से क्या हंगामा खड़ा करने जा रहा था???

शिवा का ज्यादातर समय अपने आवारा दोस्तों के साथ मस्ती करने और गाॅव की किसी न किसी लड़की को पटा कर उनके साथ अपने अंदर की हवस मिटाने में जाता था। माॅ बाप की तरह वो भी अपने ही घर की औरतों व लड़कियों को गंदी नज़रों से देखता था और रात दिन अपनी ही माॅ बहनों तथा चाची को अपने नीचे लेटाने की सोचता रहता था।
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11-24-2019, 12:25 PM,
#72
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ऐसे ही एक दिन उसकी हरकतों की वजह से हंगामा हो गया। अपने बाप की तरह ही उसकी नीयय अपनी चाची करुणा पर बिगड़ी हुई थी। करुणा की बेटी दिव्या भी जवान हो रही थी, हलाॅकि अभी वह स्कूल में पढ़ती थी किन्तु आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस होती है, ये अपनी ऊम्र से पहले ही जवान हो जाते हैं। खेला खाया शिवा चाची की बेटी दिव्या को भी हवस भरी नज़रों से देखता था। चाची के गदराए व खूबसूरत जिस्म का वह शुरू से ही दिवाना था। किन्तु कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि वह अपने चाचा अभय के गुस्सैल स्वभाव के चलते डरता था, दूसरी बात उसकी चाची करुणा भी ऐसी वैसी औरत नहीं थी जिससे वह अपने इरादों में कामयाब हो पाता। उससे जितनी हो सकती थी उतनी कोशिश वह फिर भी किया करता था। मतलब चाची के पास उठना बैठना तथा उनके द्वारा दिये गए हर काम को खुशी खुशी करना। उनसे हॅसना बोलना, बातों के बीच यदा कदा मज़ाक भी कर लेना। करुणा ज्यादातर दिन में अकेली ही होती थी, उसके साथ उसका बारह साल का दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा शगुन रहता था। उसका पति और बेटी दिव्या सुबह स्कूल चले जाते थे, फिर शाम चार बजे के आस पास ही आते थे। सुबह दस बजे से चार बजे तक करुणा अकेली ही घर में रहती थी। हलाॅकि दिन भर वह कोई न कोई काम करती ही रहती थी ताकि उसका समय पास हो जाए।

एक दिन की बात है, उस दिन गुरूवार था। अभय व दिव्या रोज़ की तरह स्कूल गए हुए थे। शिवा की आदत थी कि वह करुणा के घर तभी जाता था जब उसका चाचा और चाचा चाची की बेटी स्कूल चले जाते थे। उसे अपनी चाची करुणा की दिनचर्या का बखूबी पता था। वह जानता था कि चाचा और दिव्या के स्कूल जाने के बाद ही करुणा नहाने जाती थी बाॅथरूम में। बाहर मेन गेट बंद रहता था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी होती थी। करुणा कुंडी नहीं लगाती क्योंकि उसे पता होता था कि शिवा आएगा। ख़ैर, रोज़ की तरह ही शिवा उस दिन भी अपने निर्धारित समय पर पहुॅचा। दरवाजे को हल्के से खोल कर वह अंदर दाखिल हो गया। अपनी चाची के नहाने के समय पर वह इसी लिए आता था कि वह किसी तरह अपनी चाची को बाथरूम में नहाते हुए देख सके। हलाॅकि ऐसा कभी हुआ नहीं था बल्कि वह हमेशा अपने मनसूबों में नाकामयाब रहा था। यानी उसकी चाची कमरे से अटैच बाथरूम में जाने से पहले अपने उस कमरे का दरवाजा बंद करके अंदर से कुंडी लगा देती थी। शिवा को अपनी चाची को नहाते देखने के लिए पहले चाची के कमरे में जाना पड़ता फिर बाथरूम में। जबकि दरवाजा ही बंद रहता था इस लिए वह कुछ कर ही नहीं सकता था। वह अपनी चाची से कह भी नहीं सकता था कि आप अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मत किया कीजिए।

मगर कहते हैं न कि होनी अटल होती है। यानी जिस वक्त जो होना होता है वो होकर ही रहता है। कहने का मतलब ये कि करुणा बाथरूम में नहाने जाने से पहले आज अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद करना भूल गई, या यूॅ कहिए कि नियति के चलते उससे ये भूल हो गई।

शिवा जब भी आता था तो सबसे पहले ये ज़रूर चेक करता था कि उसकी चाची ने दरवाजा अंदर से बंद किया है या नहीं। हलाकि वह जानता था कि चाची दरवाजा खुला रखने की ग़लती कभी नहीं करती हैं, फिर भी वह अपनी तसल्ली के लिए एक बार ज़रूर चेक करता था। आज भी उसने ऐसा ही किया, और दरजाजा जब उसकी उम्मीद के विपरीत उसके द्वारा दिए गए हल्के से दबाव में बेआवाज़ तथा बिना किसी विरोध के खुलता चला गया तो वह पहले तो हैरान हुआ मगर जल्द ही उसका मन मयूर खूशी से नाचने भी लगा। वह दबे पाॅव कमरे में दाखिल हुआ। उसकी धड़कने एकाएक बढ़ गई थीं जिसके धक धक करने की हर थाप उसे अपनी कनपटियों में बजती महसूस हो रही थी।

कमरे में पहुॅचते ही उसने देखा कि बेड पर उसकी चाची के वो कपड़े रखे हैं जिन्हें उसकी चाची नहाने के बाद पहनने वाली थी। शिवा ने आगे बढ़ कर उन कपड़ों को ग़ौर से देखा। साड़ी ब्लाउज पेटीकोट व ब्रा पैन्टी सब बड़े सलीके से रखे हुए थे। शिवा की नज़र ब्रा और पैन्टी पर पड़ी। उसने बिना कुछ सोचे समझे तथा बिना एक पल गवाॅए अपना हाॅथ बढ़ा कर बेड से चाची की लाल रंग की ब्रा को उठा लिया। ब्रा अच्छी क्वालिटी की थी, उसके कप देख कर शिवा की आॅखों में अजीब सी चमक आ गई। उसने ब्रा को अच्छी तरह से उलटा पलटा कर देखा। 36D पर नज़र पड़ते ही वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर उस ब्रा को अपनी नाॅक के पास लाकर उसे सूॅघने लगा। ब्रा की सुगंध ने अपना असर दिखाया और शिवा की आॅखें एक अजीब सी खुमारी से बंद होती चली गई। उसका रोम रोम रोमाॅच से भरता चला । कुछ देर इसी तरह वह ब्रा को सूॅघता रहा फिर उसने अपनी आॅखें खोली और ब्रा से नज़र हटा कर उसने बेट पर पड़ी चाची की पैन्टी की तरफ देखा। तुरंत ही उसने पैन्टी को उठा लिया और उसे भी उलट पलट कर देखने लगा 38 साइज पर नज़र पड़ी तो एक बार फिर वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर सीघ्र ही पैन्टी के उस भाग को अपनी नाॅक के पास लाकर सूॅघने लगा जिस भाग में उसकी चाची का योनि भाग होता है। पैन्टी के योनि भाग को सूॅघते ही उसकी आॅखें पुनः बंद होती चली गई। वह अपनी नाॅक से ज़ोर ज़ोर से साॅसे खींचने लगा। तभी वह किसी आहट से बुरी तरह चौंका, उसने तुरंत अपनी आॅखें खोल कर इधर उधर देखा किन्तु कहीं कोई नहीं था, बस कानों में कमरे से अटैच बाथरूम में पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
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11-24-2019, 12:25 PM,
#73
RE: non veg kahani एक नया संसार
शिवा को सहसा ख़याल आया कि चाची तो अंदर बाॅथरूम में है। जिसे नहाते हुए देखने के लिए वह न जाने कब से तड़प रहा था। आज उसे ये सुनहरा मौका मिला है तो उसे ये मौका किसी भी कीमत पर गवाॅना नहीं चाहिए। ये सोचते ही उसने अपने हाॅथ में ली हुई ब्रा पैन्टी को बेड पर उसी तरह सलीके से रख दिया और फिर पलट कर दबे पाॅव बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ा।

बाथरूम के दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने देखा कि बाथरूम का दरवाजा बंद तो था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी थी। बल्कि हल्का सा खुला ही नज़र आ रहा था। करुणा ने शायद इस लिए बाथरूम की कुंडी अंदर से नहीं लगाई थी कि उसकी समझ में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है, इस लिए किसी के अंदर आने का कोई सवाल ही नहीं है। जबकि इधर शिवा ये देख कर हैरानी के साथ साथ खुश हो गया कि उसकी चाची ने आज हर तरफ से उसका रास्ता खुला रखा है।

शिवा ने अपने ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे दिल के साथ बाथरूम के दरबाजे में बाहर इस तरफ लगे हैण्डल को आहिस्ता से पकड़ कर दरवाजे को बाथरूम की तरफ हल्के से ढकेला। परिणामस्वरूप दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया किन्तु शिवा ने दरवाजे को ज्यादा खोलना मुनासिब न समझा बल्कि उतना ही खोला जितने में वह अंदर नहाती हुई अपनी चाची को आराम से देख सके। शिवा ने धाड़ धाड़ बजती हुई अपने दिल की धड़कनों के साथ बाथरूम के अंदर की तरफ देखा....और यहीं पर दो चीज़ें एक साथ हुईं। इधर शिवा ने अंदर नहाती हुई अपनी चाची के बेपर्दा जिस्म को देखा और उधर बाहर से कमरे में दाखिल होकर अभय ने बाथरूम में अंदर की तरफ झाॅकते अपने भतीजे शिवा को देखा। और....और.....

"शिवाऽऽऽऽऽऽऽऽ।" अभय ने शेर की तरह दहाड़ते हुए आकर शिवा को पीछे से उसके शर्ट की कालर से पकड़ कर अपनी तरफ एक झटके से खींचा, और खींचते हुए ही कमरे से बाहर बड़े से ड्राइंगरूम में ले गया। और इसके बाद शुरू हुई शिवा की लात घूॅसों से धुनाई।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई हरामखोर अपनी चाची को बाथरूम में इस तरह नहाते हुए देखने की??" अभय ने गुस्से से कहने के साथ ही शिवा को उठा कर पक्के फर्स पर पटक दिया। शिवा की दर्द भरी चीख पूरे घर में गूॅज गई।

"बोल हरामजादे बोल।" फर्स पर दर्द से कराहते शिवा के पेट में अभय ने ज़ोर से लात जमाते हुए कहा__"तेरी हिम्मत कैसे हुई ये नीच काम करने की?? बोल वर्ना यहीं पर ज़िदा दफन कर दूॅगा।"

"मु मुझे माफ आहहहह कर दीऽऽजिए चाचा जी।" लात घूॅसों के निरंतर पड़ने से कराहते हुए शिवा ने अपने हाॅथ जोड़ने का प्रयास करते हुए कहा__"मुझे माफ कर दीजिए, मुझसे ग़लती हो गई। आहहहहह माफ कर दीजिए चाचा जी...अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करूॅगा चाचा जी। आहहहहह एक बार माफ कर दीजिए आहहहह।"

"तुझे माफ कर दूॅ कुत्ते???" शिवा को कालर से पकड़ कर उठाते हुए अभय ने गुर्राते हुए कहा__"नहीं हर्गिज़ नहीं। तू माफी के लायक नहीं है। तूने जो नीच काम करने का दुस्साहस किया है उसके लिए तो तुझे जिदा मार देना चाहिए।"

इधर अभय लात घूॅसों से शिवा की कुटाई किये जा रहा था उधर करुणा की हालत भी खराब हो गई थी। दरअसल अभय जब पहली बार कमरे में आकर शिवा को बाथरूम में झाॅकते देख दहाड़ा था तभी करुणा उछल पड़ी थी। अभय के मुख से शिवा का नाम सुनते ही वह समझ गई थी कि क्या माज़रा है? उसे इस ख़याल ने ही बुरी तरह हिला कर रख दिया था कि उसकी जेठानी का लड़का शिवा जो खुद भी उसके बेटे के समान ही है वो उसे नंगी हालत में नहाते हुए बाहर से छिप कर देख रहा था। इतना ही नहीं वह अभय के द्वारा ये नीच काम करते हुए रॅगे हाथों पकड़ा भी गया था।

करुणा मारे शर्म के तथा इस हादसे से बाथरूम के फर्स में उसी तरह नंगी हालत में बैठी तथा अपने दोनो घुटनों के बीच मुॅह छुपाए बुरी तरह रोए जा रही थी। उसकी मारे शर्म और अभय के डर से हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह यहाॅ से बाहर कमरे में जाए। उसे जैसे खुद का होश ही नहीं रहा था कि वह इस वक्त किस हालत में है। उसके कानों में बाहर से आती आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थी। जिन आवाज़ों में शिवा की दर्द भरी चीखें और अभय का शेर की तरह गरजना शामिल था।

इधर अभय सिंह शिवा को लात घूॅसों से मारते मारते अधमरा कर दिया। शिवा इतनी कुटाई के बाद बेहोश हो चुका। उसके जिस्म में कई जगह नीले निशान पड़ चुके थे। आॅख नाॅक मुॅह सब फूल गए थे, तथा नाॅक व होंठ फट गए थे जहाॅ से खून बह रहा था। शिवा के बेहोश होने के बाद भी अभय सिंह का गुस्सा शान्त नहीं हुआ था। उसने शिवा को उठा कर अपने कंधे में डाला और घर से बाहर निकल गया।

घर से बाहर आकर अभय अपने बड़े भाई अजय सिंह के घर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। कछ ही देर में वह अजय सिंह के घर के अंदर ड्राइंगरूम में पहुॅच गया। ड्राइंग रूम में इस वक्त कोई नज़र न आया।

"भाभीऽऽऽऽ।" अपने कंधे पर शिवा को उसी तरह लिए हुए अभय ड्राइंग रूम में खड़े होकर पूरी शक्ति से चिल्लाया था।

उसके इस तरह चिल्लाने का असर ये हुआ कि दो पल में ही कमरे से बाहर लगभग दौड़ती हुई प्रतिमा ड्राइंगरूम में दाखिल होती नज़र आई।

"क् क्या हुआ अभय???" प्रतिमा ने आते ही अभय से पूछा__"क्या बात है तुम इस तरह चिल्लाए क्यों???"

प्रतिमा की बात सुन कर अभय सिंह ने अपने कंधे से शिवा को उतार कर सामने रखे सोफे के पास जाकर सोफे पर शिवा को लगभग पटक दिया। प्रतिमा की नज़र जैसे ही अपने बेटे की अधमरी हालत पर पड़ी तो उसके हलक से चीख निकल गई।

"ये ये क्या हो गया मेरे बेटे को?" प्रतिमा दौड़ कर शिवा के चेहरे को अपने हाॅथों में लेकर रोते हुए बोली__"किसने की मेरे बेटे की ऐसी हालत??? अभय इसे कहाॅ से लेकर आए हो तुम?? प्लीज बताओ क्या हुआ है इसे?? किसने किया ये सब??"

"मैंने की है इसकी ये दुर्दसा।" अभय ने बर्फ की मानिंद ठंडे स्वर में कहा__"और जी तो चाहता है कि इसे अभी जान से मार दूॅ।"

"अभऽऽऽय।" प्रतिमा एक झटके में खड़ी होकर चिल्लाते हुए कहा__"तुम होश में तो हो? ये क्या बोल रहे हो तुम??"
"शुकर मनाइए भाभी कि मैंने अपना होश नहीं खोया था।" अभय ने पहली बार अपनी भाभी की आॅखों में आॅखें डाल कर तथा गुर्राते हुए कहा__"वर्ना जिस बेटे को बेटा कहते हुए आपकी ज़ुबान नहीं थकती न उसे आज ज़िन्दा ही ज़मीन के अंदर दफन कर दिया होता।"

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस लहजे में बात करने की?" प्रतिमा ने चीखते हुए कहा__"तुम भूल गए हो कि तुम किससे बात कर रहे हो? अपने से बड़ों की तमीज़ भूल गए हो तुम? और.....और मेरे बेटे के बारे में ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी??"

"मुझे तमीज़ और संस्कार न बताइए भाभी।" अभय ने कठोर भाव से कहा__"बल्कि इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपके बेटे को है, इस हरामज़ादे को सिखाइए तमीज़ और संस्कार। आज इसने जो नीच हरकत की है, इसकी जगह कोई और होता तो अब तक मेरे हाॅथों जान से मार दिया गया होता। आपका और बड़े भइया का ख़याल कर लिया इस लिए इसे ज़िन्दा छोंड़ दिया है मैंने। मगर आइंदा अगर इसने मेरे घर की तरफ देखने की भी ज़ुर्रत की तो इसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

प्रतिमा को एकाएक झटका सा लगा। सारा गुस्सा सारा चीखना चिल्लाना साबुन के झाग की तरह डण्डा पड़ता चला गया। अभय की इस बात ने उसे अंदर ही अंदर बुरी तरह चौंका दिया कि उसके बेटे ने कोई नीच हरकत की है। अपने पति व बेटे की रॅग रॅग से वाकिफ प्रतिमा समझ गई कि उसके बेटे ने कोई ग़लत हरकत की है, मगर क्या??

"आख़िर ऐसा क्या किया है मेरे बेटे ने अभय??" प्रतिमा ने तनिक हल्के लहजे से कहा__"जो तुम इसे जान से मार देने की बात कर रहे हो?"

"क्या बताऊॅ आपको?" अभय ने अजीब भाव से कहा__"मुझे तो आपसे बताने में भी शर्म आती है लेकिन इस हरामज़ादे को उस नीच काम करने में ज़रा भी शर्म नहीं आई।"

"अभय प्लीज, बताओ मुझे कि क्या किया है इसने??" प्रतिमा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा था किसी आशंकावश।

"ये करुणा को उसके बाथरूम में छिप कर नहाते हुए देख रहा था।" अभय ने गुर्राते हुए कहा__"आज स्कूल में एक मास्टर की मृत्यु हो गई थी इस लिए स्कूल में सभी बच्चों की छुट्टी कर दी गई। मैं भी घर लौट आया, मगर मुझे क्या पता था कि घर आते ही मुझे इसकी गंदी करतूत देखने को मिलेगी? जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ तो मेरी नज़र बाथरूम के दरवाजे से छिप कर बाथरूम में देखते आपके इस नीच बेटे पर पड़ी। ये करुणा को नहाते हुए जाने कब से देख रहा था। इसे इस बात का भी ख़याल नहीं रहा कि करुणा इसकी चाची है जो खुद इसके माॅ के ही समान है उसे यह इस नीचता से कैसे देख सकता है??"

"सचमुच अभय।" प्रतिमा ने सारी बात सुनते ही दुखी भाव से कहा__"इसने बहुत बड़ा पाप किया है। इसे ऐसा करने की तो बात दूर बल्कि ऐसा करने की सोचना भी नहीं चाहिए था। अच्छा किया तुमने जो इसे इसकी नीचता की सज़ा दे दी। ये माफी के लायक नहीं है अभय....मगर मैं तुमसे हाॅथ जोड़ कर माफी माॅगती हूॅ इसकी तरफ से। आइंदा ये ऐसा कुछ नहीं करेगा।"
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11-24-2019, 12:25 PM,
#74
RE: non veg kahani एक नया संसार
"जिसके मन में इस तरह के नीच और बुरे विचार एक बार पैदा हो जाते हैं वो इतना जल्दी ज़हन से नहीं जाते।" अभय ने कहा__"इस लिए इससे मेरा भरोसा अब उठ चुका है, और अब अगर ये मेरे घर के आस पास भी नज़र आया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा?"

"अब ये कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेगा अभय।" प्रतिमा ने कहा__"मैं इस बात का वचन देती हूॅ तुम्हें। मैं बहुत शर्मिंदा हूॅ कि मेरे बेटे ने ऐसी नीच व घटिया हरकत की।"

"ये सब आप और बड़े भइया के लाड़ प्यार का नतीजा है भाभी।" अभय ने कहा__"आप लोगों ने हमेशा इसकी ग़लतियों पर पर्दा डाला है, वर्ना ये ऐसा न बनता। मुझे इसकी करतूतों के बारे में सब पता है, ये गाॅव की हर लड़की और औरत पर गंदी नज़र रखता है। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि इसकी गंदी नज़र अपनी ही माॅ समान चाची पर भी हैं, और क्या पता इसकी ये गंदी नज़रें परिवार की किन किन लड़कियों और औरतों पर हैं??? जिसे अपनी हवस के आगे रिश्तों का कोई ख़याल ही न हो वो परिवार की किसी भी औरत के बारे में कुछ भी सोच और कर सकता है।"

"ऐसा नहीं है अभय।" प्रतिमा की ये सोच कर अब हालत ख़राब होने लगी थी कि अभय उसके बेटे की करतूतों को जानता है और उसके बारे में अब ऐसा बोल रहा है। वो तो जानती ही थी कि उसका बेटा अपने बाप की तरह ही परिवार की हर लड़की व औरत को अपने नीचे लेटाना चाहता है। उसका बस चले तो वो अपनी माॅ को भी अपने नीचे लेटाने में एक पल भी जाया न करे। आज उसी बेटे की करतूतों से सारा बना बनाया खेल बिगड़ गया था। अभय के सामने ये सब हो गया इस लिए हालातों को सम्हालने की गरज़ से उसने कहा__"मेरा बेटा इतना नीच और गिरा हुआ नहीं है कि वो परिवार की औरतों के बारे में ऐसा सोचे। मैं मानती हूॅ कि उसने ग़लती की है, और इस उमर में ऐसा हो जाता है, लेकिन ये सच है कि उसे अपनी माॅ समान चाची को ऐसे छिप कर नहाते हुए नहीं देखना चाहिए था। मैं समझाऊॅगी उसे कि ऐसा सोचना भी पाप है। तुम प्लीज ये सब बातें अजय से मत कहना वो इस सबके लिए इसे माफ नहीं करेंगे, बल्कि इसे मार मार कर घर से निकाल देंगे।"

"आप अब भी इसे बचाने के बारे में सोच रही हैं?" अभय ने एकाएक आवेशयुक्त लहजे से कहा__"इसकी ऐसी नीच हरकतों को बड़े भइया से छुपाने की बात कर रही हैं आप? नहीं भाभी नहीं...इसने जो किया है उसका पता बड़े भइया को भी चलना चाहिए। उन्हें भी तो पता चले कि उनका सपूत कितने बड़े बड़े काम करता है, ताकि उनका सिर गर्व से उठ जाए।"

प्रतिमा उससे क्या कहती??? उससे क्या कहती कि जिन बातों को वह अपने बड़े भाई से बताने की बात कर रहा है, उन सब बातों का उसके भाई को पहले से ही सब पता है। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस सबका असली कर्ता धर्ता ही वही है। मगर प्रतिमा ये सब अभय से कह नहीं सकती थी बल्कि उसने तो प्रत्यक्ष में बस यही कहा__"मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ती हूॅ अभय, प्लीज इस सबके बारे में तुम अजय से कुछ मत कहना। वो इसे घर से निकाल देंगे। मैं मानती हूॅ कि इसने जो किया है वो माफी के काबिल नहीं है लेकिन प्लीज अभय इसे इसकी पहली और आख़िरी ग़लती समझ कर माफ़ कर दो, और इस सबको भूल जाओ। मैं तुमसे वादा करती हूॅ कि अब से ये तुम्हारे घर की तरफ कभी देखेगा भी नहीं।"

अभय गुस्से से भरी आॅखों से प्रतिमा की तरफ देखता रहा। कुछ बोला नहीं उसने जबकि उसके इस प्रकार गुस्से से देखने पर प्रतिमा ने कहा__"अभय, शान्त हो जाओ प्लीज। तुम चाहो तो इसके कुकर्म की मुझे जो चाहे सज़ा दे दो। इसने तुम्हारी पत्नी व अपनी चाची को जिस नीचता से छिप कर नहाते हुए देखा है उसके लिए तुम जो चाहे मुझे सज़ा दे दो। तुम्हारी हर सज़ा को मैं बिना कुछ बोले स्वीकार कर लूॅगी। मगर इस सबको भूल कर इसे माफ कर दो प्लीज।"

"भगवान जानता है कि मैंने कभी अपने परिवार के बारे में ग़लत नहीं सोचा, बल्कि हमेशा सबको अपना मान कर उन्हें यथोचित सम्मान दिया है।" अभय कह रहा था__"विजय भइया की मौत तथा माॅ बाबू जी के कोमा में चले जाने के बाद इस हवेली में रहने वालों की सोच को न जाने क्या हो गया है?? मुझे नहीं पता कि गौरी भाभी, तथा उनके बच्चों ने ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें उसकी कीमत इस हवेली से तथा सबसे रिश्ता तोड़ कर चुकानी पड़ी। मुझे यकीन नहीं होता कि विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी कोई ग़लत कदम उठाया रहा होगा। बल्कि वो तो ऐसे थे कि उन्हें अगर देवी देवता की तरह पूजा भी जाता तो ग़लत न होता। विजय भइया की मौत के बाद ऐसा क्या हो गया था कि गौरी भाभी को उनके बच्चों सहित इस हवेली से बाहर हमारे खेत में बने मकान के सिर्फ एक ही कमरे में रह कर अपना जीवन यापन करना पड़ा। बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती बल्कि सोचने वाली बात ये भी है उन लोगों ने इस सबके बाद भी ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें खेत के उस कमरे को भी छोंड़ कर जाना पड़ा??? जहाॅ तक मुझे पता है विराज आया था अपनी माॅ और बहन से मिलने। सुबह शिवा के साथ उसकी मार पीट हुई थी। शायद यही वजह रही होगी कि वो लोग इस डर से वहाॅ से भी पलायन कर गए कि शिवा के साथ मार पीट करने से अजय भइया उन पर गुस्सा करेंगे। मैं सोचता था कि विराज ने शिवा के साथ मार पीट क्यों की थी?? मगर अब समझ गया हूॅ कि शिवा को मार मार कर अधमरा कर देने की वजह इसकी ही कोई नीच हरकत रही होगी। इस नीच की गंदी नज़र गौरी भाभी या निधि बिटिया पर भी रही होगी। गौरी भाभी ने अपने बेटे को इसकी इन नीच हरकतों के बारे में बताया होगा और कहा होगा कि बेटा हमें यहाॅ से ले चल। यकीनन यही सब बातें हुई रही होंगी।"

अभय सिंह क्या क्या बोले जा रहा था ये सब अब प्रतिमा के सिर के ऊपर से जाने लगा था। उसके पैरों तले से ज़मीन कब की निकल चुकी थी। दिलो दिमाग़ में भयंकर विस्फोट हो रहे थे। दिल की धड़कनें रुक रुक कर इस तरह चल रही थीं जैसे उसे ज़िंदा रखने के लिए उस पर कोई एहसान कर रही हों। आॅखों के सामने अॅधेरा छाने लगा था। ज़हन में एक ही ख़याल कत्थक कर रहा था कि 'सब कुछ खत्म'।
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11-24-2019, 12:26 PM,
#75
RE: non veg kahani एक नया संसार
"आज इसने ये सब करके मुझे इस सबके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है भाभी।" अभय सिंह नाॅनस्टाप कहे जा रहा था__"और अब मैं खुद पता करूॅगा कि सच्चाई क्या है? मैं गौरी भाभी और उनके बच्चों को खोजूॅगा, और उनसे पूॅछूॅगा कि उन्होंने ऐसा क्या किया था कि उन लोगों को अपने ही घर से सब कुछ छोंड़ कर जाना पड़ा?? अब से मेरे पास सिर्फ यही एक काम होगा भाभी, मैं हर कीमत पर इस सच्चाई का पता लगाऊॅगा।"

इतना कह कर अभय सिंह वहाॅ से चला गया अपने घर की तरफ, इस बात से अंजान कि घर में कौन सी आफत उसका इन्तज़ार कर रही है?? जबकि उसकी इन बातों से प्रतिमा को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और असहाय अवस्था में धम्म से सोफे पर लगभग गिर सी पड़ी।

इधर करुणा अब अपने कपड़े वगैरा पहन चुकी थी। तथा बेड पर गुमसुम सी बैठी थी। उसके पास ही उसकी बेटी दिव्या बैठी थी। दिव्या उमर में छोटी भले ही थी किन्तु हमेशा शान्त रहने वाली ये लड़की सब बातों को समझती थी। उसे अपने बड़े पापा व बड़ी माॅ का ये बेटा शिवा कभी पसंद नहीं आया था। वह इतनी नासमझ नहीं थी कि शिवा की हरकतों तथा उसकी आॅखों में गिजबिजाते हवस के कीड़ों को पहचान न पाती। उसने हज़ारों बार अपनी आॅखों से देखा था कि शिवा हमेशा उसकी माॅ और खुद उसे भी कभी कभी गंदी नज़र से देखता था। वह उसकी हवस से भरी नज़रों को हमेशा अपने सीने पर मौजूद छोटे छोटे उभारों पर महसूस करती थी। किन्तु डर व संकोच की वजह से वह कभी इस सबके बारे में अपनी माॅ से नहीं बताती थी।

अभय और दिव्या दोनो साथ ही स्कूल से घर आए थे। और आते ही जो हंगामा हुआ था उस सबको दिव्या ने अपनी डरी सहमी आॅखों से देखा था। वह समझ गई थी कि उसका बाप शिवा को किस बात पर इतनी बुरी तरह मार रहा था। उसने चुपके से अपनी माॅ के कमरे में जा कर बाथरूम में देखा था। बाथरूम में उसकी माॅ नग्न अवस्था में फर्स पर अपने दोनो घुटनों के बीच मुह छुपाए बैठी रो रही थी। अपनी माॅ को नग्न अवस्था में बैठे इस तरह रोते देख वह हैरान रह गई थी। पहली बार अपनी ही माॅ को नंगी हालत में देखा था उसने। जबकि खुद के जिस्म को अपने सामने भी देखने का कभी उसे ख़याल ही नहीं आया था।

डरी सहमी हालत में वह कुछ देर अपनी माॅ को देखती रही फिर हिम्मत करके वह पलटी और बेड से अपनी माॅ के सारे कपड़े उठा कर उसने बाथरूम के बाहर से ही करुणा की तरफ उछाल दिया। अपने नंगे बदन पर अचानक कपड़ों के पड़ने से करुणा बुरी तरह हड़बड़ा गई। उसकी नज़र पहले खुद के ऊपर गिरे हुए कपड़ों पर पड़ी फिर बाथरूम के गेट पर डरी सहमी खड़ी अपनी बेटी पर। दिव्या पर नज़र पड़ते ही वह चौंकी। एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने हड़बड़ाकर अपने नंगे बदन को छिपाने के लिए उन कपड़ों से अपने बदन के गुप्तांगों को ढॅका। जबकि बाथरूम के गेट पर खड़ी दिव्या सीघ्र ही अपनी नज़रें अपनी माॅ पर से हटा कर वापस पलट गई। बाहर शिवा की धुनाई और उसकी दर्द में डूबी हुई चीखें चालू थी। कुछ देर बाद करुणा अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर निकली और बेड पर बैठी अपनी बेटी दिव्या को देख कर उसके जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महसूस होती चली गई। चेहरे पर लाज और शर्म की लाली फैल गई और उसका सिर झुक गया। अपनी ही बेटी से नज़र मिलाने की हिम्मत न हुई उसमें।

"मम्मी।" दिव्या बेड से उठकर तथा दौड़ते हुए आकर अपनी माॅ से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगे थे। करुणा को समझ न आया कि वह अपने सीने से लिपटी तथा आॅसू बहाती बेटी से क्या कहे?? उसके दिलो दिमाग़ में अंधड़ सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद अभय शिवा को लेकर जा चुका था।

करुणा कुछ पल बुत बनी खड़ी रही फिर जाने क्या सोच कर उसने अपने सीने से दिव्या को अलग करके कहा__"जाओ अपने कमरे में और अपनी इस स्कूली ड्रेस को चेंज कर लो।"

दिव्या ने अजीब भाव से अपनी माॅ के चेहरे की तरफ देखा, और फिर पलट कर कमरे से बाहर निकल गई। इधर दिव्या के जाते ही करुणा के चेहरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे उसने किसी बात का बहुत बड़ा फैंसला कर लिया हो।

अभय गुस्से में तथा भभकते हुए अजय सिंह के घर से बाहर आकर अपने घर की तरफ जाने लगा। अभी वह अपने घर की बाउंड्री पार ही किया था कि उसे उसकी बेटी दिव्या भागते हुए घर से बाहर उसकी तरफ ही आती दिखी। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। अभय को देख कर वह उससे रोते हुए लिपट गई, फिर तुरंत ही अपने पिता से अलग हुई।

"पापा वो म मम्मी...मम्मी ने।" दिव्या रोये जा रही थी। उसके मुख से कुछ निकल ही नहीं रहा था।
"क्या हुआ बेटी...क्या कह रही है तू?" अभय अंजानी आशंका से घबरा गया।
"पापा, वो मम्मी कमरे का दरवाजा ही नहीं खोल रही हैं।" दिव्या ने रोते हुए कहा__"मैने बहुत बार मम्मी को पुकारा लेकिन मम्मी न तो दरवाजा खोल रही हैं और ना ही कुछ बोल रही हैं। पापा मम्मी ने कहीं कुछ कर तो नहीं लिया? आप उन्हें बचा लीजिए जल्दी से।"

"क्याऽऽऽ???" अभय बुरी तरह चौंका, और साथ ही दौड़ पड़ा घर के अंदर की तरफ। उसके पीछे दिव्या भी रोते हुए दौड़ पड़ी थी।

अभय जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ कर ही उस कमरे के पास पहुॅचा था जिस कमरे के अंदर करुणा थी।

"करुणाऽऽऽ दरवाजा खोलो।" अभय ने चीखते हुए कहा__"ये क्या बेवकूफी है??? दरवाजा खोलो जल्दी। करुणाऽऽऽ।"

अभय के चिल्लाने का कोई असर न हुआ। वह कुछ देर इसी तरह करुणा को पुकारता रहा। मगर ना तो दरवाजा खुला और ना ही अंदर से करुणा ने कुछ कहा। अभय को किसी अनिष्ट की आशंका हुई। उसने दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करने लगा।

"करुणा, प्लीज दरवाजा खोलो।" अभय दरवाजे को तोड़ने के साथ साथ कहता भी जा रहा था__"ये तुम क्या पागलपन कर रही हो? अगर तुम ये समझती हो कि इस सबमें तुम्हारा कोई दोस है तो तुम ग़लत समझ रही हो करुणा। तुम मेरी करुणा हो, मुझे तुम पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है। तुम कभी ग़लत नहीं हो सकती। मैं जानता हूॅ कि उस हरामज़ादे ने ही तुम्हें ग़लत इरादे से देखने की कोशिश की है। तुम तो उसे अपना बेटा ही मानती हो करुणा। तुम कहीं भी ग़लत नहीं हो, प्लीज ऐसा वैसा कुछ मत करना।"
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11-24-2019, 12:26 PM,
#76
RE: non veg kahani एक नया संसार
अभय पूरी शक्ति से कमरे के दरवाजे को तोड़ने के लिए धक्के मार रहा था। पास में ही उसकी बेटी दिव्या भी खड़ी थी, जो सिसक सिसक कर रोये जा रही थी। अंदर ही किसी कमरे में शगुन के रोने की भी आवाज़ आ रही थी। लेकिन उसके रोने की तरफ किसी का ध्यान नहीं था।

"तुम मुझे सुन रही हो न करुणा?" अभय अधीर भाव से कह रहा था__"तुम्हें मेरी कसम है, तुम कोई भी ग़लत क़दम नहीं उठाओगी। तुम मेरी जान हो करुणा, तुम्हारे बिना जीने की मैं सोच भी नहीं सकता। तुम्हें ये सब करने की या सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम मेरी नज़र में उसी तरह गंगा की तरह पवित्र हो करुणा। प्लीज ऐसा वैसा कुछ मत करना, वर्ना तुम्हारी कसम सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं।"

बड़ी मुश्किल से और भीषण प्रहार के बाद आख़िर दरवाजा टूट ही गया। कमरे के अंदर की तरफ टूट कर गिरा था दरवाजा। अभय ने एक भी पल नहीं गॅवाया। बिजली की सी तेज़ी से वह कमरे के अंदर दाखिल हुआ। और.......

"न नहींऽऽऽऽ।" अभय के हलक से चीख निकल गई। कमरे में पहुॅचते ही उसने देखा कि करुणा कमरे की छत पर लगे पंखे के नीचे रस्सी के सहारे झूल रही थी। रस्सी का फंदा उसके गले में था तथा रस्सी का दूसरा सिरा कमरे की छत पर बीचो बीच लगे लोहे के कुंडे में फॅसा था। नीचे फर्स पर एक स्टूल लुढ़का हुआ पड़ा था।

स्पष्ट था कि करुणा ने आत्म हत्या करने के लिए ही ये सब किया था। वह इस घटना के बाद खुद को ही इस सबका दोसी मानती थी। वो समझती थी कि अब वह किसी को मुॅह दिखाने के काबिल नहीं रही है। वह समझती थी कि इस सबके बाद उसके पति उसे ग़लत समझेंगे। शायद इसी वजह से उसने ये क़दम उठाया था।

अभय बुरी तरह उसके पैरों से लिपटा रोये जा रहा था, उसकी बेटी दिव्या का भी वही हाल था। अचानक अभय को जाने क्या सूझा कि उसने तुरंत ही बेड को खींचा और करुणा के पैरों के नीचे उसी लुढ़के पड़े स्टूल को रखा। जिससे करुणा के गले में फॅसा रस्सी का फंदा टाइट न हो। अभय खुद बेड पर चढ़ गया और करुणा के गले से रस्सी के फंदे को छुड़ाने लगा।

कुछ ही पल में करुणा के गले से रस्सी का फंदा निकल गया। करुणा के गले में फंदा फॅसा हुआ था जिसकी वजह से करुणा की आॅखें व जीभ बाहर आ गई थी। अभय ने करुणा को अपने दोनो हाथों से सम्हाल कर उसी बेड पर आहिस्ता से लिटाया, और करुणा की नब्ज चेक करने लगा। अभय ये महसूस करते ही खुश हो गया कि करुणा की नब्ज अभी चल रही है। मतलब उसने करुणा को सही समय पर सही सलामत बचा लिया था। अगर थोड़ी देर और हो जाती तो शायद भगवान भी करुणा को मौत से बचा नहीं पाते। अभय ने खुश हो कर करुणा को खुद से चिपका लिया। दिव्या भी दौड़ कर अपनी माॅ से लिपट गई।

करुणा अभी बेहोशी की अवस्था में थी। अभय के कहने पर दिव्या ने तुरंत ही एक ग्लास में पानी लाकर अभय को दिया। अभय उस पानी से हल्के हल्के छीटे डालकर करुणा को होश में लाने की कोशिश करने लगा। कुछ ही देर में करुणा को होश आ गया। उसने गहरी गहरी साॅसे लेते हुए अपनी आॅखें खोली। सबसे पहले नज़र अपने पति पर ही पड़ी उसकी। वस्तुस्थित का ख़याल आते ही उसका चेहरा बिगड़ने लगा। आॅखों से आॅसू बहने लगे।

"मुझे क्यों बचाया अभय आपने?" फिर उसने उठकर रोते हुए कहा__"मुझे मर जाने दिया होता न। इस सबसे मुक्ति तो मिल जाती मुझे।"
"तुमने ये सब करने से पहले क्या एक बार भी नहीं सोचा था करुणा कि तुम्हारे बाद मेरा और हमारे बच्चों का क्या होता?" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"तुमने क्या सोच कर ये सब किया करुणा? क्या तुम ये समझती थी कि इस सबकी वजह से मैं तुम पर किसी प्रकार का शक या तुम पर कोई लांछन लगाऊॅगा?? नहीं करुणा नहीं..हमारा प्यार इतना कमज़ोर नहीं है जो इतनी सी बात पर तुम्हें मुझसे जुदा कर देगा। मुझे तो हर हाल में तुम पर यकीन है करुणा लेकिन शायद तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं रहा। तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था, अगर होता तो इतना बड़ा फैसला नहीं करती तुम।"

"मुझे माफ कर दीजिए अभय।" करुणा ने रोते हुए कहा__"मैं जानती हूॅ कि आपको मुझ पर हर तरह से भरोसा है। मगर हालात ऐसे बन गए थे कि मुझे यही लग रहा था कि इस सबकी वजह से मैं अब कहीं भी किसी को मुह दिखाने के काबिल नहीं रही। इसी लिए मैं इस सबको सहन नहीं कर पाई और खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया था।"

"आज अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो।" अभय ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__"मैं उस हरामज़ादे को ज़िंदा नहीं छोंड़ता जिसकी वजह से ये सब हुआ।"
"मुझे नहीं पता था अभय कि वो कमीना मुझे इस नज़र से देखता है।" करुणा ने कहा__"अगर पता होता तो कभी उसे इस घर में घुसने ही नहीं देती।"

"पापा, शिवा भइया बहुत गंदे हैं।" सहसा इस बीच दिव्या ने भी हिम्मत करके कहा__"वो अक्सर अकेले में मुझे गंदी नज़र से देखते हैं।"
"क्याऽऽ???" अभय बुरी तरह उछल पड़ा, फिर गुर्राते हुए बोला__"उस हरामखोर की ये हिम्मत थी की वो मेरी बेटी को भी गंदी नज़र से देखता था?? नहीं छोंड़ूॅगा उस नीच और घटिया इंसान को, अभी उसे जान से मार दूॅगा मैं।"

अभय ये सब कह कर बेड से उठने ही लगा था कि करुणा ने हड़बड़ा कर तुरंत ही अभय का हाॅथ पकड़ लिया, फिर बोली__"नहीं अभय, आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। जो कुछ हुआ उससे ये तो पता चल ही गया है कि वो कैसा लड़का है। इस लिए अब उससे कोई मतलब नहीं रखेंगे हम, और ना ही उसे इस घर में आने देंगे।"

"करुणा उस नीच की हिम्मत तो देखो,वो हमारी इस नन्हीं सी बच्ची के बारे में भी ऐसी नीयत रखता है।" अभय ने मारे गुस्से के उफनते हुए कहा__"उसने एक बार भी नहीं सोचा होगा कि वो ये सब क्या सोचता है और करने का इरादा रखता है? नहीं करुणा, ऐसे नीच और गिरी हुई सोच वाले लड़के को एक पल भी जीवित रखना पाप है। मुझे भइया भाभी की कोई परवाह नहीं है, मैं उसे किसी भी कीमत पर अब ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा।"

"नहीं अभय, प्लीज रुक जाइए। आपको मेरी कसम।" करुणा ने भारी स्वर में कहा__"सबसे पहले हमें उसके माता पिता से इस बारे में बात करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि उनका बेटा कैसी सोच रखता है अपने ही घर की माॅ बहनों के लिए। जल्दबाज़ी में उठाया हुआ क़दम अच्छा नहीं होता अभय। खुद को शान्त कीजिए"

"मैं भाभी से बोल आया हूॅ कि आज के बाद अगर उनके इस नीच बेटे ने मेरे घर की तरफ देखा भी तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।" अभय ने कहा।
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11-24-2019, 12:26 PM,
#77
RE: non veg kahani एक नया संसार
"ये आपने अच्छा किया।" करुणा ने कहा__"दीदी ज़रूर इस संबंध में बड़े भइया से बात करेंगी।"
"हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है करुणा।" अभय ने एकाएक अधीर होकर कहा__"आज मुझे एहसास हो रहा है कि क्यों मेरी देवी समान गौरी भाभी हम सबको छोंड़ कर इस हवेली से अलग खेतों में बने उस मकान पर रहती थी? सिर्फ इसी हरामज़ादे की वजह से करुणा। उस रात विराज आया था मुम्बई से, और सुबह उसने ही शिवा को मार मार कर अधमरा किया था। तब हमने सोचा था कि उसने बेवजह ही किसी खुंदक में शिवा को मारा था। जबकि अब मुझे सब बातों की समझ आई है कि क्यों विराज ने शिवा को मारा था?"

"क्या मतलब है आपका?" करुणा चौंकी।
"इसी नीच की वजह से करुणा।" अभय ने आवेश में कहा__"ये तो समझ ही गई हो तुम कि शिवा अपने ही घर की माॅ बहनों के बारे में ऐसी नीयत रखता है। उसने उसी नीयत से गौरी भाभी और हमारी फूल सी बच्ची निधि पर भी यही सब किया रहा होगा। इसी वजह से ये सब हुआ है।"

"लेकिन अगर ऐसी बात थी तो।" करुणा ने सोचने वाले भाव से कहा__"गौरी दीदी को इस बारे में बड़ी दीदी और बड़े भइया को बताना चाहिए था। अगर वो ये सब उनसे बताती तो वो अपने बेटे पर लगाम लगाती। लेकिन वो तो हवेली ही छोंड़ कर खेतों वाले मकान में गुड़िया के साथ रहने लगी थी। क्या सिर्फ इतनी सी बात की वजह से??"

"वजह तो हमें यही बताया था भइया भाभी ने कि गौरी भाभी ने प्रतिमा भाभी के कमरे से उनके जेवर चुराए थे।" अभय ने कहा__"और इतना ही नहीं बल्कि बड़े भइया को अपने रूप जाल में फसाने की कोशिश भी की थी। इस लिए बड़े भइया ने उन लोगों को हवेली से निकाल दिया था।"

"हाॅ तो ग़लत क्या था अभय?" करुणा ने अजीब भाव से कहा__"गौरी दीदी ने तो सच में बड़े भइया के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी। इस सबका सबूत भी दिखाया था प्रतिमा दीदी ने हम लोगों को। उन फोटोग्राफ्स में साफ साफ दिखता था कि कैसे गौरी दीदी ने बड़े भइया को उनके ही कमरे में अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था।"

"क्या ये स्वाभाविक बात लगती है करुणा कि बड़े भइया गौरी भाभी के साथ उस स्थित में हों और दूसरा कोई उस स्थिति में उनकी फोटो खींचे?" अभय ने सोचने वाले भाव से कहा__"जबकि उस स्थिति में होना तो ये चाहिए था कि अगर गौरी भाभी ने बड़े भइया को ग़लत नीयत से जकड़ा हुआ था तो इस सबका बड़े भइया विरोध करते, और गौरी भाभी को इस सबके लिए डाॅटते। दूसरी बात उन लोगों की उस वक्त की फोटो बनाने वाला कौन था?? अगर फोटो खींचने वाली प्रतिमा भाभी थी तो उन्हें फोटो खींचने की बजाय इस सबको रोंकना था। आखिर फोटो खींचने के पीछे उनका क्या उद्देश्य था? क्या सिर्फ ये कि हम सब उन फोटोज़ को देख कर ये यकीन कर सकें कि गौरी भाभी सच में बड़े भइया के साथ ये सब करने की नीयत रखती हैं या ये सब करती भी हैं???"

"आप कहना क्या चाहते हैं अभय??" करुणा ना समझने वाले भाव से बोली।
"आज के इस हादसे से मेरे सोचने का नज़रिया बदल गया है करुणा।" अभय ने गंभीर लहजे में कहा__"हम सब जानते थे कि विजय भइया और गौरी भाभी किसी देवी देवता से कम नहीं थे। उन्होंने भूल से भी किसी के साथ कभी भी कुछ ग़लत नहीं किया था। वो पढ़ाई लिखाई में भले ही ज़ीरो थे, लेकिन जब से उन्होने खेती बाड़ी का काम सम्हाला था तब से हमारे घर के हालात हज़ार गुना बेहतर हो गए थे। यहाॅ तक कि उनकी मेहनत और लगन से किसी भी चीज़ की कभी कोई कमी न रही थी। उनकी ही मेहनत और रुपये पैसे से इतनी बड़ी हवेली बनी और उनके ही पैसों से बड़े भइया ने अपने कारोबार की बुनियाद रखी थी। माॅ बाबूजी विजय भइया और गौरी भाभी को सबसे ज्यादा मानते थे। विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी भी मुझे किसी बात के लिए कुछ नहीं कहा, बल्कि विजय भइया ने तो उस समय के हिसाब से मुझे एक बुलेट मोटर साइकिल खरीद कर दी थी। पूरे गाॅव में किसी के पास बुलेट नहीं थी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने ही पैसों से बाबूजी के लिए एक शानदार कार खरीदी थी ताकि बाबूजी बड़े शान से उसमें सवारी करें। घर का बड़ा बेटा होने का जो फर्ज़ अजय भइया को निभाना चाहिये था वो फर्ज़ विजय भइया निभा रहे थे वो भी अपनी पूरी निष्ठा के साथ। मुझे याद है करुणा कि अजय भइया और प्रतिमा भाभी कभी भी विजय भइया और गौरी भाभी से ठीक से बात नहीं करते थे। बल्कि उनके हर काम में कोई न कोई नुक्स निकालते ही रहते थे। फिर समय गुज़रा और एक रात विजय भइया को किसी ज़हरीले सर्प ने काट लिया और वो इस दुनिया से चल बसे। उनके इस दुनिया से जाते ही हम सबकी खुशियों पर ग्रहण सा लग गया करुणा। माॅ बाबूजी को उनकी मौत से गहरा सदमा लगा था। हम सब उनके सदमे की वजह से परेशान हो गए थे। बड़े भइया और भाभी ने ही उन्हें सम्हाला था। एक दिन माॅ बाबूजी उसी कार से शहर जा रहे थे तो रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया और वो दोनो उस एक्सीडेंट की वजह से कोमा में चले गए। समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था हम सबके साथ?"

"इन सब बातों को सोचने का क्या मतलब है अभय?" करुणा ने कहा__"जो होना था वो तो हो ही गया। इसमें कोई क्या कर सकता था भला?"

"मैं ये सब कभी नहीं भूला करुणा।" अभय ने कहा__"मैं कभी किसी से कुछ कहता नहीं मगर मेरे अंदर हमेशा ये सब गूॅजता रहता है। आज के इस हादसे ने मेरी आॅखें खोल दी है करुणा। इस हादसे ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है मुझे कि ये जो कुछ भी हुआ वो सब क्या सच था या फिर किसी झूॅठ को छुपाने के लिए उस पर इन सब बातों को गढ़ कर पर्दा डाला गया था? ये तो सच है करुणा कि माॅ बाप का खून और उनके अच्छे संस्कारों की वजह से ही कोई औलाद सही रास्तों पर चलते हुए भविश्य में अपने अच्छे काम और नाम की वजह से अपने माॅ बाप और कुल का नाम रोशन करते हैं। शिवा को देख कर अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं है कि उसकी परवरिश और उसके खून में कितनी गंदगी है। दुनियाॅ में बहुत से ऐसे माॅ बाप हैं जिनके एक ही बेटा होता है मगर वो अपने एक ही बेटों को क्या ऐसे संस्कार देते हैं जिसकी वजह से वो अपने ही घर की माॅ बहनो पर बुरी नीयत रखे?? नहीं करुणा नहीं....कम से कम मेरी जानकारी में तो ऐसे माॅ बाप और ऐसे बेटे नहीं हैं। ज़रूर इनमें ही कहीं न कहीं कोई ख़राबी है। मैने फैंसला कर लिया है कि मैं खुद सारी सच्चाई का पता लगाऊॅगा।"

"सच्चाई???" करुणा चौंकी__"कैसी सच्चाई अभय?"
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11-24-2019, 12:26 PM,
#78
RE: non veg kahani एक नया संसार
"वहीं सच्चाई करुणा।" अभय ने मजबूत लहजे में कहा__"जो हमसे छुपाई गई और उसके बदले कुछ और ही हमें दिखाया गया। उस समय मैंने इस सबका पता करने की कोशिश इस लिए नहीं की थी क्यों जो कुछ मुझे सबूत के साथ दिखाया गया था उससे मैं अत्यधिक क्रोध और गुस्से में था। उस सूरत में मैं उन लोगों की शकल तक नहीं देखना चाहता था। मगर अब नहीं, अब मैं पता लगाऊॅगा इस सबका। मैं मुम्बई जाऊगा करुणा...और गौरी भाभी तथा उनके दोनो बच्चों को ढूढूॅगा। उनसे ही सच्चाई का पता चलेगा। मैने अपने गुस्से और नाराज़गी की वजह से इतने साल बर्बाद कर दिये। कभी सोचा तक नहीं कि एक बार गौरी भाभी से भी पूछ लेना चाहिए कि उन पर जो आरोप लगाया गया था वो सच भी था या झूॅठ? काश! मैंने ये सब उनसे पूछा होता। अरे कानून भी हर मुजरिम को अपनी सफाई में कुछ कहने का अवसर देता है, जबकि मैंने तो पूॅछा तक नहीं था। मान लो कि अगर गौरी भाभी पर लगाए गए सारे आरोप सिरे से ही ग़लत हों तो सोचो क्या होगा करुणा? मैं अपनी ही नज़रों में गिर जाऊॅगा। कितना बड़ा पापी कहलाऊॅगा कि अपनी देवी समान भाभी पर लगे झूॅठे आरोपों को सच मान कर उनके बारे में क्या क्या सोच लिया था मैंने?? मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी करुणा....मैं तो शर्म से ही मर जाऊॅगा।"

"खुद को सम्हालिए अभय।" करुणा की आॅखें छलक पड़ी थी__"यकीनन हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है। मगर अब जो हो गया उसे लौटाया भी तो नहीं जा सकता न? ईश्वर जानता है कि इस सबके बाद भी हमने कभी उनका बुरा नहीं चाहा है। हमें जो कुछ बताया गया था उससे हमें दुख ज़रूर पहुॅचा मगर इसके बावजूद हमने कभी उनके बारे में बुरा नहीं चाहा। आज आपने अगर इस सबका पता लगाने का फैसला कर ही लिया है तो ये अच्छी बात है अभय। सच्चाई का पता तो चलना ही चाहिए।"

"तुम चिन्ता मत करो करुणा।" अभय ने कहा__"मैंने अब इस बात को जानने का फैसला कर लिया है कि इस सबके पीछे की सच्चाई क्या है। मैं कल ही स्कूल में लम्बी छुट्टी की अर्ज़ी दे दूॅगा। अब मेरे पास सिर्फ यही काम रहेगा..किसी भी हाल में सच्चाई का पता लगाना।"

"आप हर सच्चाई का ज़रूर पता लगाइये अभय।" करुणा ने कहा__"लेकिन इस बात का भी ध्यान दीजिए कि वो लोग भी शान्त नहीं बैठेंगे जिन्होंने गौरी दीदी पर ये सब आरोप लगाये थे। संभव है कि अपनी पोल खुल जाने के डर से वो कोई भी कठोर कदम उठा लें। इस लिए उन लोगों से सतर्क और सावधान रहिएगा।"

"चिन्ता मत करो करुणा।" अभय ने कठोर भाव से कहा__"मुझे पता है कि अपने रास्ते पर आने वाली रुकावट से कैसे निपटना है।"
"फिर भी सावधान रहिएगा।" करुणा ने कहा__"क्योंकि इस सबसे ये तो समझ आ ही गया है कि वो लोग किसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं।"

"कुछ भी करने वालों को मैं देख लूॅगा करुणा।" अभय ने कहा__"मेरे मुम्बई जाने के बाद तुम यहाॅ सबकी देख भाल अच्छे से करना। दिव्या तब तक स्कूल नहीं जाएगी जब तक मैं मुम्बई से लौट नहीं आता।"

"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम सब ही मुम्बई चलें?" करुणा ने कहा__"कौन जाने आपके जाने के बाद यहाॅ कैसे हालात बन जाएॅ? उस स्थिति में मैं अकेली औरत भला किसी का कैसे मुकाबला करूॅगी??"

"मैं तुम सबको मुम्बई नहीं ले जा सकता क्योंकि मुम्बई में तुम लोगों को लिए मैं कहाॅ कहाॅ भटकूॅगा? अंजान शहर में अपना कहीं कोई ठिकाना भी तो होना चाहिए।" अभय ने कहा__"इस लिए तुम ऐसा करो कि कुछ दिन के लिए दिव्या और शगुन को लेकर अपने मायके चली जाओ। वहाॅ तुम सब सुरक्षित रहोगे, और मैं भी तुम लोगों के लिए निश्चिंत रहूॅगा।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा।" करुणा ने कहा__"आप मेरे भाई को फोन कर दीजिए वो आ जाएगा और हम लोगों को अपने साथ ले जाएगा।"
"ठीक है।" अभय ने कहा__"मैं बात करता हूॅ तुम्हारे भाई से, तब तक तुम ज़रा चाय तो बना कर पिला दो मुझे।"
"जी अभी लाई।" करुणा ने बेड से उठते हुए कहा।
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11-24-2019, 12:26 PM,
#79
RE: non veg kahani एक नया संसार
जैसा कि अभय ने निर्णय ले लिया था इस लिए उसने ससुराल में अपने साले युवराज सिंह को फोन कर दिया था और उसे जल्द से जल्द यहाॅ से करुणा के साथ दिव्या तथा शगुन को ले जाने के लिए कह दिया था। अभय के साले युवराज ने अचानक इस तरह यहाॅ आने और फिर अपने साथ उसकी बहन व भांजा भांजी को घर ले जाने का कारण पूॅछा तो अभय ने कुछ नहीं बताया। बस यही कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा है।

अभय ने करुणा तथा दिव्या से भी कह दिया था कि इस बात की चर्चा वो लोग अपने मायके तथा ननिहाल में किसी से नहीं करेंगी। अभय की ससुराल हल्दीपुर से ज्यादा दूर नहीं थी। बल्कि एक घंटे की दूरी पर थी। इस लिए उसके साले को आने में ज़्यादा देर नहीं हुई।

करुणा ने अपने पति अभय के लिए शाम का खाना बना कर रख दिया था जिसे वह गरम करके शाम को खा लेगा और खुद भारी मन से अपने बच्चों को लेकर अपने भाई के साथ अपने मायके मणिपुर चली गई थी। अभय ने उसे बता दिया था कि वह अगले दिन सुबह ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेगा। अभय ने अपनी पत्नी और बच्चों को अपने साले के साथ बेहद ही गुप्त रूप से भेजा था। किसी को भनक तक न लगने दी थी कि उसकी पत्नी और बच्चे किसके साथ कब कहाॅ गए हैं?

करुणा ने अभय से कहा था कि वह आज रात यहाॅ हवेली में न रहे बल्कि अपने किसी दोस्त या मित्र के यहाॅ रात रुक जाए और सुबह वहीं से मुम्बई के लिए रवाना हो जाएं। करुणा ये सब किसी अंजानी आशंका की वजह से कह रही थी जबकि उसकी इस सलाह पर अभय ने आवेश में कहा था__"मैं किसी से बाल बराबर भी नहीं डरता करुणा। मैंने किसी के साथ कोई ग़लत काम नहीं किया है, इस लिए किसी से डरने का सवाल ही नहीं है। रही बात बड़े भइया की तो उन्हें भी देख लूॅगा। मैं भी तो देखूॅ कि कितने बड़े तीसमारखाॅ हैं वो???" करुणा अभय की इस बात पर कुछ न बोल सकी थी।

उधर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह को फोन करके आज हुई इस घटना के बारे में सब कुछ बता दिया था। जिसे सुन कर अजय सिंह के पैरों तले से ज़मीन निकल गई थी। उसे अपने बेटे पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से ये सब हुआ था वर्ना अभय ये सब कभी न सोचता कि उससे क्या कुछ छुपाया गया था??

अजय सिंह अपने बेटे के इस कार्य पर गुस्सा तो बहुत हुआ था किन्तु वह ये भी जानता था कि अब गुस्सा करने का कोई मतलब नहीं है। यानी जो होना था वो तो हो ही चुका था। अब तो उसे ये करना था कि इससे आगे कोई बात बढ़े ही न और ना ही उस पर कोई बात आए।

अजय सिंह अपनी फैक्टरी को फिर से चालू करने की कोशिशों में लगा हुआ था इस लिए वह ज्यादातर हवेली से बाहर ही रहता था। किन्तु आज हुई इस घटना की जानकारी जब उसकी पत्नी द्वारा फोन के माध्यम से उसे मिली तो वह शहर से हवेली आने के लिए कह दिया था प्रतिमा से। उसने ये भी हिदायत दी थी कि आज की घटना के बारे में उसकी बेटी रितू को पता न चले। जबकि अपने बेटे शिवा को कुछ दिन के लिए शहर में बने मकान पर रहने के लिए कह दिया था। ऐसा इस लिए था क्योंकि शिवा की बुरी हालत देखकर कोई भी ढेरों सवाल पूॅछने लगता। जबकि रितू तो अब पुलिस वाली थी, हर बात पर शक करना उसका पेशा था। दूसरी बात वह अपने भाई की आवारा गर्दी करने वाली इस असलियत से अंजान भी नहीं थी। इस लिए वह कई तरह के सवाल पूछने लगती सबसे। अजय सिंह ने प्रतिमा से ये भी कह दिया था कि वह हवेली में रहने वाले नौकर व नौकरानियों को भी इस बात की ठोस शब्दों में हिदायत दे दे कि वो लोग आज हुई इस घटना के बारे में एक लफ्ज़ भी रितू से न कहें या उनके द्वारा किसी तरह रितू के कानों तक ये बात न पहुॅचे।

अजय सिंह शाम को हवेली पहुॅचा था। हवेली में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। ऐसा लगता था जैसे इतनी बड़ी हवेली में किसी जीव का कहीं कोई वजूद ही न हो। अजय सिंह समझ सकता था कि हवेली में ये सन्नाटा क्यों फैला हुआ है। उसकी बेटी रितू किसी केस के सिलसिले में बाहर ही थी, यानी अभी तक वह हवेली नहीं लौटी थी पुलिस थाने से। जबकि शिवा अजय सिंह के पालतू कुछ आदमियों के साथ शहर वाले मकान में कुछ दिन रहने के लिए चला गया था।

अजय सिंह खामोशी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में पहुॅचते ही अजय सिंह ने देखा कि उसकी बीवी प्रतिमा बेड पर पड़ी है। बेड पर पड़ी प्रतिमा एकटक व निरंतर कमरे की छत पर झूल रहे पंखे को घूरे जा रही थी। बल्कि अगर ये कहें तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि वह पंखे को भी नहीं घूर रही थी वह तो बस शून्य में ही देखे जा रही थी। उसका मन कहीं और ही भटका हुआ नज़र आ रहा था। कदाचित् यही वजह थी कि उसे कमरे में अजय सिंह के दाखिल होने का ज़रा भी एहसास न हुआ था।

अजय सिंह ने गौर से अपनी बीवी की तरफ देखा फिर उसने अपने जिस्म पर मौजूद कोट को उतार कर उसे दीवार पर लगे एक हैंगर पर लटका दिया। इसके बाद वह बेड की तरफ बढ़ा। प्रतिमा अभी भी कहीं खोई हुई शून्य में घूरे जा रही थी।

"ऐसे किन ख़यालों में गुम हो प्रतिमा?" अजय सिंह ने उसे देखते हुए कहा__"जिसकी वजह से तुम्हें ये भी एहसास नहीं हो रहा कि मैं कब से इस कमरे में आया हुआ हूॅ?"

"सब कुछ खत्म हो गया अजय।" प्रतिमा उसी मुद्रा में तथा अजीब से भाव के साथ बिना अजय की तरफ देखे ही बोली__"सब कुछ खत्म हो गया। कुछ भी शेष नहीं बचा। हमने गुज़रे हुए कल में जो कुछ भी अपने हित के लिए किया था वो सब अब बेपर्दा हो चुका है। कैसी अजीब सी स्थित हो गई है हमारी। मैं और तुम ज़िंदा तो हैं मगर ऐसा लगता है जैसे हमारी एक एक साॅस हमारे मरे हुए होने की गवाही दे रही है। हम ऐसे जी रहे हैं अजय जैसे हर साॅस हमने किसी से उधार ली हुई है। आज आलम ये है कि हम अपने ही बच्चों के बीच डर डर कर जीवन का एक एक पल गुज़ार रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं अजय कि हमने जो कुछ भी अपने सुख सुविधा के लिए अपनों के साथ किया है उसी का प्रतिफल आज हमें इस रूप में मिल रहा है?"

"ये तुम क्या कह रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह पहले तो चौंका था फिर अजीब भाव से प्रतिमा की तरफ देखते हुए कहा__"यकीन नहीं होता यार। अरे इतनी सी बात पर तुम इतना हताश व विचलित हो गई??? नहीं डियर, तुम इतनी निराशावादी बातें नहीं कर सकती। तुमने तो गुज़रे हुए कल में मेरे कहने पर ऐसे ऐसे कठिन व हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया है जिसे करने के लिए कोई साधारण औरत सोच भी न सके।"

"मैं भी तो एक इंसान हूॅ, एक औरत ही हूॅ अजय।" प्रतिमा ने बेड से उठ कर तथा गंभीर होकर कहा__"भले ही गुज़रे हुए कल में मैंने तुम्हारे कहने पर या हमारे हित के लिए हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया हो मगर मुझे इस बात का भी एहसास है कि वह सब जो मैने किया था वो निहायत ही ग़लत था। ये एक सच्चाई है अजय कि इंसान जो कुछ भी कर्म करता है उसके बारे में वो इंसान भी भली भाॅति जान रहा होता है कि वह किस प्रकार का कर्म कर रहा है? इंसान जान रहा होता है कि वह ग़लत कर्म कर रहा है इसके बावजूद वह रुकता नहीं है बल्कि ग़लत कर्म को करता ही चला जाता है। कदाचित् इस लिए कि उसमें ही उसका हित होता है। जब इंसान सिर्फ अपने ही हित के लिए ज़ोर देता है तब वह ये नहीं देखता कि अपने हित में उसने किस किस की खुशियों की या किस किस के जीवन की बलि चढ़ा दी है?"

"ये आज तुम्हें क्या हो गया है प्रतिमा?" अजय सिंह हैरान परेशान होकर बोला__"कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो तुम?"

"सच्चाई किसी भी तरह की हो अजय उसे सुन कर ऐसा ही लगता है सबको।" प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"क्या ये सच नहीं है कि हमने सिर्फ अपने स्वार्थ व हित के लिए अपने ही रिश्तों के साथ अहित किया है? ये बात तुम भी भली भाॅति जानते और समझते हो अजय। हाॅ ये अलग बात है कि तुम इस सब को स्वीकार न करो।"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है प्रतिमा।" अजय ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा__"और मत भूलो इसके पहले तुमने भी इन सब बातों के बारे में नहीं सोचा था। आज ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम किसी के साथ सही ग़लत और हित अहित की बातें करने लगी? "

"आज हालात बदल गए हैं अजय।" प्रतिमा ने कहा__"पहले हम दूसरों के साथ अहित कर रहे थे इस लिए कुछ भी नहीं सोच रहे थे। मगर आज जब हमारे साथ अहित होने लगा है तब हमें इन सबका एहसास होना स्वाभाविक ही है। ये इंसानी फितरत है अजय, जब तक कोई बात खुद पर नहीं आती तब तक हमें किसी बात का एहसास ही नहीं होता।"

"ये सब बेकार की बातें हैं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"आज की घटना से तुम ज़रा विचलित हो गई हो। जबकि इस सबसे इतना परेशान या दुखी होने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"तुम्हें आज के समय की वस्तुस्थित का एहसास ही नहीं है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"अगर होता तो समझते कि हालात किस कदर बिगड़ गए हैं। ज़रा सोचो अजय...जो अभय आज तक हमारी ही कही बातों पर आॅख बंद करके यकीन करता आया था वही आज हमारी हर बात पर शक करने लगा है। इतना ही नहीं उसने तो हर सच्चाई का पता लगाने के लिए कदम भी उठाने की बात कर रहा था। अगर उसने ऐसा किया और इस सबसे उसे सारी सच्चाई का पता चल गया तो सोचो क्या होगा अजय?"

"कुछ नहीं होगा प्रतिमा।" अजय ने बड़ी सहजता से कहा__"तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो। तुम्हें मैंने बताया नहीं है...हमारी सारी ज़मीन और ज़ायदाद अब सिर्फ हमारे ही बच्चों के नाम पर हैं। ये हवेली भी मैंने तुम्हारे नाम पर करवा दी है। मैं जब चाहूॅ तब अभय को इस हवेली और सारी ज़मीनों से बेदखल कर सकता हूॅ। यूॅ समझो कि वो सिर्फ मेरे रहमो करम पर इस हवेली पर है। मुम्बई में किसी होटल या ढाबे पर अपनी माॅ बहन के साथ कप प्लेट धोने वाले उस हरामज़ादे विराज का तो पत्ता ही साफ है। इस लिए कानूनन कोई कुछ भी नहीं कर सकता मेरा। अभय को अगर सच्चाई का पता चल भी गया तो क्या कर लेगा हमारा??"

प्रतिमा अवाक् सी देखती रह गई अजय की तरफ। उसे कुछ कहने के लिए तुरंत कुछ सूझा ही नहीं। जबकि.....

"मैने कहा था न कि तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए प्रतिमा के खूबसूरत चेहरे को सहला कर कहा__"तुमने तो खुद मेरे साथ कानून की एल एल बी की है। इस लिए जानती हो कि कानूनन कोई कुछ नहीं कर सकता। मैंने सारी ज़मीनें हमारे बच्चों के नाम कर दी हैं। और अगर कोई बात होगी भी तो इनमें से किसी के पास इतनी क्षमता ही नहीं है कि ये लोग ज़मीन ज़ायदाद को पाने के लिए मेरे साथ कोई मुकदमा वगैरह कर सकें। और अगर इन लोगों ने मुकदमा चलाने की कोशिश भी की तो सारी ज़िन्दगी इनसे कोर्ट कचहरी का चक्कर लगवाऊॅगा। इतने में ही इन सबका मूत निकल जाएगा।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर पहली बार राहत के भाव उभरे थे, किन्तु फिर तुरंत ही असहज होकर बोली__"लेकिन हम अपनी बेटियों को इस सबके लिए कैसे कन्विंस करेंगे? नीलम का तो भरोसा है कि वो हमसे कोई सवाल जवाब नहीं करेगी, लेकिन रितू का कुछ कह नहीं सकते। वो शुरू से ही तेज़ तर्रार रही हैं और न्यायप्रिय भी। अब तो वह पुलिस वाली भी बन गई है इस लिए इस सबका पता चलते ही वह कहीं हम पर ही न कोई केस ठोंक दे।"

"हद करती हो यार।" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसते हुए बोला__"अपनी ही बेटी से इतना डरने लगी हो तुम।"
"ज्यादा शेखी न बघारो तुम।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"आज भले ही इतना हॅस रहे हो तुम, मगर थोड़े दिन पहले तुम्हारी भी जान हलक में अटकी पड़ी थी जब रितू ने फैक्टरी वाला केस रिओपेन किया था।"

"यार सच कह रही हो तुम।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"यकीनन उस समय मेरी हालत की वाट लगी हुई थी। कितनी अजीब बात थी कि मेरी ही बेटी मेरी ही*****मारने पर तुली हुई थी। भला उस बेचारी को क्या पता था कि उसके द्वारा इस प्रकार से मेरी*****मारने से मुझे कितनी तक़लीफ हो रही थी।"

"अब आए न लाइन पर।" प्रतिमा खिलखिला कर हॅसते हुए बोली__"बड़ा उड़ने लगे थे अभी तो।"
"यार मेरा तो के एल पी डी भी हो गया।" अजय सिंह ने उदास भाव से कहा__"मेरे बेटे ने ही सारा काम खराब कर दिया वर्ना करुणा की आगे पीछे से लेने का चान्स बन ही जाना था। अब तो ये असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर हो गया है।"

"असंभव क्यों नहीं??" प्रतिमा चौंकी।
"असंभव इस लिए नहीं क्यों कि मैं चाहूॅ तो अभी भी उसको आगे पीछे से ठोंक सकता हूॅ।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन ये सब अब प्यार या उसकी रज़ामंदी से नहीं हो सकेगा बल्कि इसके लिए मुझे बल का प्रयोग करना पड़ेगा।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा हैरान।
"साली को उठवा लूॅगा किसी दिन।" अजय सिंह सहसा कठोर भाव से बोला__"और शहर में अपने नये वाले फार्महाउस पर रखूॅगा उसे। वहीं रात दिन उसकी आगे पीछे से लूॅगा। इतना ही नहीं अपने आदमियों को भी मज़ा करने का कह दूॅगा। मेरे आदमी उसकी आगे पीछे से बजा बजा कर उसकी***** का ****** बना देंगे।"

"ऐसा सोचना भी मत।" प्रतिमा ने आॅखें फैलाकर कहा__"वर्ना अभय तुम्हें कच्चा चबा जाएगा।"
"अभय की माॅ की ***** साले की।" अजय ने कहा__"उसने अगर ज्यादा उछल कूद करने की कोशिश की तो उसका भी वही अंजाम होगा जो विजय का हुआ था, लेकिन ज़रा अलग तरीके से।"

"उसकी छोंड़ो अजय।" प्रतिमा ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा__"हमारी बेटी रितू के बारे में सोचो। उसे इस झमेले के लिए कैसे मनाएंगे?"

"उसकी भी फिक्र मत करो डियर।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा__"तुम तो जानती हो कि मुझे अपने रास्तों पर किसी तरह के काॅटें पसंद नहीं हैं। हम दोनो उसे इस सबके लिए पहले प्यार से समझाएंगे, अगर उसे हमारी बातें समझ आ गईं तो ठीक है वर्ना मजबूरन उसके साथ भी हमें बल का प्रयोग करना ही पड़ेगा।"
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11-24-2019, 12:26 PM,
#80
RE: non veg kahani एक नया संसार
"न नहीं अजय नहीं।" प्रतिमा ने सहसा घबरा कर कहा__"तुम उसके लिए ऐसा कैसे कह सकते हो? वह हमारी अपनी बेटी है। हर ब्यक्ति की अपनी एक फितरत होती है, रितू की फितरत हम जैसी नहीं है तो इसमें उसकी क्या ग़लती है? इंसान का स्वभाव जन्म से ही बनने लगता है, और फिर हर इंसान का अपना एक प्रारब्ध भी तो होता है। सब एक जैसी सोच विचार के नहीं हो सकते अजय, ये प्रकृति के नियमों के खिलाफ है।"

"मुझे पता है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"मैं जानता हूॅ कि हमारी बेटी उनमें से है जिनकी रॅगों में सच्चाई और ईमानदारी का खून दौड़ता है। लेकिन हमारे साथ मामला ज़रा जुदा है, यानी हमारी बेटी का ये सच्चाई और ईमानदारी वाला खून भविस्य में हमारे लिए बड़ी मुसीबत भी खड़ी कर सकता है।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा अजय।" प्रतिमा ने मजबूती से कहा__"मैं अपनी बेटी को अपने तरीके से समझाऊॅगी। वो ज़रूर मेरी बात को समझेगी और मानेगी भी।"

"अच्छी बात है।" अजय ने कहा__"तुम उसे अपने तरीके से ज़रूर समझा देना। क्योंकि तुम्हारे बाद अगर मुझे समझाना पड़ा उसे तो हो सकता है मेरा समझाना तुम्हें पसंद न आए।"

"मैं ज़रूर समझाऊॅगी अजय।" प्रतिमा के जिस्म में ठण्डी सी सिहरन दौड़ती चली गई थी, फिर बोली__"लेकिन अब अभय के बारे में भी तो सोचो। उसने साफ शब्दों में कहा है कि वह इस सच्चाई का पता लगाएगा कि गौरी और उसके बच्चों के साथ वास्तव में हुआ क्या था? इस लिए वह इस सबका पता लगाने के लिए मुम्बई में विराज तथा विराज की माॅ बहन के पास जाने का बोल रहा था। अगर उसे सारी बातों का पता चल गया तो क्या होगा अजय??"

"उसे जाने दो मेरी जान।" अजय ने अजीब से लहजे में कहा__"उसे सारी सच्चाई का पता लग भी जाएगा तो अब कोई कुछ भी नहीं कर सकेगा। जिस चीज़ के लिए हमने ये सब किया था वो तो हमें हासिल हो ही चुका है। इस लिए जाने दो जिसे जहाॅ जाना हो। विराज के साथ साथ उसकी माॅ बहन को तो मेरे आदमी भी ढूॅढ़ रहे हैं। अच्छा है कि अभय भी उन्हें तलाश करेगा वहाॅ मुम्बई में। साला इतनी बड़ी मुम्बई में कहाॅ ढूॅढेगा उन कप प्लेट धोने वालों को?"

"इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।" प्रतिमा ने कहा__"संभव है किसी संयोग के चलते अभय उन लोगों को ढूॅढ़ ही ले।"
"अगर ऐसा है तो मैं अपने कुछ आदमियों को अभय के पीछे लगा देता हूॅ।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा__"यदि अभय उन लोगों को ढूॅढने में कामयाब हो जाएगा तो मेरे आदमी तुरंत ही इस बात की मुझे सूचना दे देंगे।"

"हाॅ ये बिलकुल ठीक रहेगा अजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा__"उस सूरत में तुम अपने आदमियों को आदेश दे देना कि वो इन सबको किसी भी तरह यहाॅ हमारे पास ले आएं। उसके बाद हम अपने तरीके से उन सबका कल्याण करेंगे।"

"ऐसा ही होगा मेरी जान।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"सब कुछ हमारे हिसाब से ही होगा और अभय के यहाॅ से जाते ही मैं उसकी खूबसूरत बीवी करुणा को भी अपने आदमियों के द्वारा उठवा लूॅगा।"

"ऐसा करना हमारे लिए कहीं खतरे का सबब न बन जाए अजय।" प्रतिमा ने अजय को अजीब भाव से देखते हुए कहा__"मुझे लगता है कि इस काम में तुम्हें अभी इतनी जल्दी इतना बड़ा क़दम नहीं उठाना चाहिए।"

"एक दिन तो ये होना ही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"और वैसे भी आज जिस तरह के हालात बन गए हैं उससे सारी बातें सबके सामने आ ही जाएॅगी। इस लिए जब सारी बातों को खुल ही जाना है तो इस काम में मैं देरी क्यों करूॅ? मुझे हर हाल में अपनी ख्वाहिशों को परवान चढ़ाना है डियर। मेरी शुरू से ही ये ख्वाहिश थी कि मैं गौरी तथा करुणा को अपने इसी बेड पर अपने नीचे लिटाऊॅ और उन दोनो के खूबसूरत किन्तु गदराए हुए मादक जिस्म का भोग करूॅ।"

"ख्वाहिश तो तुम्हारी अपनी बेटियों को भी अपने नीचे लिटाने की है अजय।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो क्या अपनी बेटियों के साथ भी अपने छोटे भाईयों की बीवियों की तरह जबरदस्ती करोगे?"

"अगर ज़रूरत पड़ी तो ऐसा भी करुॅगा मेरी जान।" अजय ने स्पष्ट भाव से कहा__"लेकिन हमारी बेटियों को मेरे नीचे लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। तुम अगर इस काम में सफल हो जाती हो तो अच्छी बात है वर्ना घी निकालने के लिए मुझे अपनी उॅगली को टेंढ़ा करना ही पड़ेगा।"

प्रतिमा हैरान परेशान सी देखती रह गई अपने पति को। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका पति किस तरह का इंसान है??????
-------------------------

उधर मुम्बई में।
विराज अपने वादे के अनुसार रविवार यानी स्कूल की छुट्टी के दिन निधि को बड़े से शिप में समुंदर घुमाने ले आया था। निधि बेहद खुश थी इस सबसे। पता नहीं क्या क्या उसके दिमाग़ में चलता रहता था। कदाचित् फिल्में देखने का असर ज्यादा हो गया था उस पर।

पिछली सारी रात वह विराज के कमरे में रही थी। सारी रात उसने तरह तरह की योजनाएं बना बना कर विराज को बताती रही थी कि कल समुंदर में किस किस तरह से हम मस्ती करेंगे। उसकी ऊल जुलूल बातों से विराज बुरी तरह परेशान हो गया था। किन्तु वह उसे कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि निधि उसकी जान थी। उसकी खुशी के लिए वह कुछ भी कर सकता था। विराज ने उसकी सभी बातों पर अमल करने का उसे वचन दिया और फिर प्यार से उसे अपने सीने से छुपका कर कहा था__"गुड़िया अब हम लोग सो जाते हैं, कल सुबह हमें जल्दी निकलना भी है न।" विराज की इस बात से और उसको इस तरह सीने से छुपका लेने से निधि खुश हो गई और खुशी खुशी ही नींद की आगोश में चली गई थी।

सुबह हुई तो दोनो ने नास्ता पानी किया और कुछ ज़रूरी चीज़ें लेकर घर से निकल पड़े। गौरी के द्वारा उन्हें शख्त हिदायतें भी दी गई थी कि वहाॅ पर सावधानी से ही काम लेना और शाम होने से पहले पहले घर वापिस आ जाना। विराज निधि को लेकर कार से निकल गया था।

जगदीश ओबराय की अच्छी जान पहचान थी जिसकी वजह से विराज को किसी बात की कोई परेशानी नहीं हुई थी। कहने का मतलब ये कि विराज ने एक बेहतरीन सुख सुविधा सम्पन्न शिप को शाम तक के लिए बुक करवा लिया था।

शिप मे दो चालक और एक गाइड करने वाला था बाॅकी पूरा शिप खाली ही था। इस खूबसूरत शिप में चढ़ कर निधि खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसका बस चलता तो वह मारे खुशी के आसमान में उड़ने लगती। वह विराज से चिपकी हुई थी। फिर वह उससे अलग होकर शिप के किनारे पर आ गई तथा यहीं से हर तरफ का नज़ारा करने लगी थी। विराज उसे इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। उसे आज पहली बार यहाॅ खुले आसमान के नीचे समुंदर में इस तरह अपनी बहन के साथ आकर खुशी हुई थी। वह अपनी बहन को ही देख रहा था, जो कभी कहीं देखती तो कभी कहीं और देखने लगती। उसके लिए ये सब नया था, हलाॅकि फिल्मों में उसने जाने कितनी दफा एक से बढ़कर एक सीन्स देखे थे। किन्तु यह नज़ारा उसके जीवन का पहला और वास्तविक था। विराज अपनी गुड़िया को इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। फिर एकाएक ही जाने क्या सोच कर उसकी आॅखों में आॅसू आ गए। कदाचित् ये सोच कर कि इसके पहले उन लोगों ने ऐसी किसी खुशी को पाने की कल्पना भी न की थी। उसके अपनों ने किस तरह उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर दिया था। कुछ दर्द ऐसे भी थे जो अक्सर तन्हाई में उसे रुलाते थे।

अभी वह ये सब सोच कर आॅसू बहा ही रहा था कि निधि उसके सामने आ गई। उसने निधि को देखकर जल्दी से मुह फेर लिया ताकि वह उसकी आॅखों में आॅसू न देख सके।

"आप क्या समझते हैं मुझे कुछ पता नहीं चलता??" निधि ने भर्राए गले से कहा__"अगर आप ऐसा समझते हैं तो ग़लत समझते हैं आप। संसार की ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे देख कर मैं अपने होश खो दूॅ और मुझे ये भी न पता चल सके कि जो मेरी जान है उसे किस पल किस दर्द ने आकर रुला दिया है। आप कहीं भी रहें लेकिन मैं ये महसूस कर लेती हूॅ कि आप किस लम्हें में किस दर्द से गुज़रे हैं।"

"ये सब क्या बोल रही है पगली?" विराज ने खुद को सम्हालते हुए तथा हॅसते हुए कहा__"चल छोंड़ ये सब और आ हम दोनों एंज्वाय करते हैं।"

"आप बातों को टालिये मत।" निधि ने विराज के चेहरे की तरफ एकटक देखते हुए कहा__"मुझे वचन दीजिए कि आज के बाद आप कभी भी अपनी आॅखों में आॅसू नहीं लाएॅगे।"

"जिन चीज़ों पर किसी इंसान का कोई बस ही न हो उन चीज़ों के लिए कैसे भला कोई वचन दे सकता है गुड़िया?" विराज ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"हाॅ इतना ज़रूर कह सकता हूॅ कि आइंदा ऐसा न हो ऐसी कोशिश करूॅगा।"

निधि एक झटके से विराज से लिपट गई, उसकी आॅखों में आॅसू थे, बोली__"क्यों उन सब चीज़ों के बारे में इतना सोचते हैं आप जिनके बारे में सोचने से हमें सिर्फ दुख और आॅसू मिलते हैं? मत सोचा कीजिए न वो सब...आप नहीं जानते कि आपको इस तरह दुख में आॅसू बहाते देख कर मुझ पर और माॅ पर क्या गुज़रती है? सबसे ज्यादा मुझे तक़लीफ होती है...आप उसे भूल जाइए न भाईया...क्यों उसे इतना याद करते हैं जिसे आपकी पाक मोहब्बत की कोई क़दर ही न थी कभी।"

विराज के दिलो दिमाग़ को ज़बरदस्त झटका लगा। ये क्या कह गई थी उसकी गुड़िया?? उसे ऐसा लगा जैसे उसके पास में ही कोई बम्ब बड़े ज़ोर से फटा हो और फिर सब कुछ खत्म व शान्त। कानों में सिर्फ साॅय साॅय की ध्वनि गूॅजती महसूस हो रही थी। विराग किसी बुत की तरह खड़ा रह गया था। उसकी पथराई सी आॅखें निधि के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे को आॅसुओं ने धो डाला था। फिर सहसा जैसे उसे होश आया। उसने निधि के मासूम से चेहरे को अपनी दोनों हॅथेलियों के बीच लिया और झुक कर उसके माॅथे पर एक चुबन लिया। इसके बाद वह पलटा और शिप के अंदर की तरफ चला गया। जबकि निधि वहीं पर खड़ी रह गई।

जब काफी देर हो जाने पर भी विराज अंदर से न आया तो निधि के चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करने लगे। उसे अपने भाई के लिए चिन्ता होने लगी और उसका दिलो दिमाग बेचैन हो उठा। वह तुरंत ही अंदर की तरफ बढ़ गई। समुंदर में उठती हुई लहरों के बीच तैरता हुआ शिप बढ़ता ही जा रहा था। निधि जब अंदर पहुॅची तो शिप में मौजूद गाइड करने वाला आदमी बाहर की ही तरफ आता दिखाई दिया। निधि ने उससे विराज के बारे में पूछा तो उसने हाथ के इशारे से एक तरफ संकेत किया और बाहर निकल गया। जबकि निधि उसकी बताई हुई दिशा की तरफ बढ़ गई। एक कमरे में दाखिल होते ही उसकी नज़र जैसे ही अपने भाई पर पड़ी तो उसे झटका सा लगा। उसके पाॅव वहीं पर ठिठक गए। उसकी आॅखों से बड़े तेज़ प्रवाह से आॅसू बहने लगे। उसका दिल बुरी तरह हाहाकार कर उठा था।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,
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