RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
सभी पलंग पर बैठ गये। रामू के एक तरफ दीदी, उसके बगल में सासूमाँ, फिर जीजाजी, फिर चम्पारानी, फिर झरना याने रामू के एक तरफ दीदी तो दूसरी तरफ झरना थी। जीजाजी के एक तरफ सासूमाँ तो दूसरी तरफ चम्पारानी। यानी सभी औरतों को लण्ड हासिल था, और मर्दो को कम से कम दो-दो चूत हासिल थी।
दीदी- हाँ भाई चम्पारानी तू शुरू हो जा।
चम्पारानी- मैं... भाभी, मैं शुरू हो जाऊँ?
दीदी- हाँ.. मेरी छम्मकछल्लो, आज मैं तुझे पहले मौका दे रही हैं।
चम्पारानी- पर किससे पहले चुदवाऊँ? भैया जी से या आपके रामू भैया से?
दीदी- अरे चुदक्कड़, चुदवाने को किसने कहा?
चम्पारानी- ओहो... फिर शुरू हो जाऊँ यानी कि इनका लण्ड चूस लूं, या इनसे फुद्दी चूसवाऊँ?
दीदी- कहानी शुरू कर की कैसे तेरे भाई कामरू ने अपने दोस्त भादरू की बीवी, जिसे वो भाभी भी कहता था
और साली भी। उसके साथ कैसे मस्ती की ये बता। हमारे गाशिप के पाठक लण्ड थाम के और पाठिकायें चूत रगड़ते हुए बड़ी बेशबरी के साथ इंतेजार कर रहे हैं।
चम्पा- अच्छा तो लीजिए, सुनिए वाकिया मेरे भाई कामरू की जुबानी।
चम्पारानी जीजाजी के लण्ड को सहलाते हुए बोल रही थी। जैसा की आप लोग जानते हैं कि मेरा भाई कामरू और भादरू पक्के दोस्त थे। कामरू अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया और भादरू पढ़के आगे बढ़ता ही गया। पर उनकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आई। और दोस्ती तब और ज्यादा गहरी हो गई जब दोनों की शादी एक ही गाँव में तय हो गई। पंडित ने शादी का महूरत भी क्या निकाला। दोनों की शादी एक ही दिन एक ही समय पर... दोनों एक-दूसरे की शादी में ना जाने पाने की वजह से उदास थे।
शादी के कुछ दिनों के बाद एक दिन तालाब पर दोनों दोस्त मिले।
भादरू- यार, कैसे रही तेरी शादी।
कामरू- तू तो आया ही नहीं मेरी शादी में।
भादरू- तो तू भी कहाँ आया था मेरी शादी पे।
कामरू- का करें भैया दोनों की शादी एक ही दिन एक ही समय पे।
भादरू- यार, मेरे मन में एक बिचार है कि इधर मैं और तेरी भाभी, उधर तू और मेरी भाभी चारों घूमने चलते हैं। शिमला।
कामरू- पर यार, उसमें तो खर्चा बहुत आएगा।
भादरू- तू खर्चे की चिंता छोड़, खर्चा सारा मेरी तरफ से।
कामरू- ठीक है भैया, पर चलना कब है?
भादरू- परसों ही चलना है, ठीक है... इस बहाने हमारी दोनों बीवियां भी एक-दूसरे से काफी मेल जोल कर लेंगी। और दो दिनों के बाद।
कामरू और कामरू की बीवी कमलावती- इधर भादरू और भादरू की बीवी सहेली चारों बस में सवार होकर घूमने (और भादरू के हिसाब से हनीमून ट्रिप पे) चले। दोनों ही औरतों ने पूँघट कर रखा था। दूसरे दिन सुबनह शिमला पहुँच गये।
भादरू- अरे सहेली, देख यहाँ कोई गाँव का बंदा है नहीं, हम चारों ही हैं। ये है कामरू मेरा पक्का दोस्त, और ये हैं भाभीजी। तो तुम दोनों अपना-अपना पूँघट उठालो। और दोनों ने जैसे ही पूँघट उठाया।
सहेली- अरे यार कमलावती तुम?
कमलावती- यारा सहेली तुम? तुम भाई साहब की बीवी हो?
भादरू- इसका मतलब आप दोनों एक-दूसरे को जानते हैं।
कमलावती- बहुत अच्छी तरह जीजाजी।
भादरू- जीजाजी?
कमलावती- हाँ जीजाजी। मैं और सहेली एक-दूसरे की पक्की सहेलियां हैं जैसे। आप और ये एक-दूसरे के लंगोटिए यार हैं।
भादरू- अच्छा भाभी जैसे हम एक-दूसरे के लंगोटिए यार हैं आप दोनों कैसी हैं?
सहेली- हम दोनों कच्छी सहेली हैं। जाहिर है हम लंगोट नहीं पहनते पर नंगी भी तो नहीं रहते ना... कच्छी पहनते हैं तो कच्छी सहेली। क्यों कमलावती?
कमलावती- सही कहा तुमने सहेली।
भादरू- चलो यारा, एक बात खूब रही की तुम दोनों एक-दूसरे को बचपन से जानते हो।
कमलावती- हाँ... जीजाजी, अब तो खूब मजे करेंगे। खूब मजा आएगा हनीमून में।
कामरू- यार भादरू ये हनीमून क्या होता है?
भादरू- यार हनी का मतलब होता है शहद याने मधु... और मून का मतलब होता है चाँद या चंद्रिका... याने हनीमून का मतलब हुआ मधुचंद्रिका।
कामरू- अच्छा, याने सुहागरात के बाद बाहर गाँव आकर सुहागरात मनाने को हनीमून याने मधुचंद्रिका कहते हैं।
सहेली- हाँ.. जीजाजी... और सुहागरात रात में ही नहीं, दिन में मनाई जा सकती है। हमारे ये याने आपके दोस्त तो रात-दिन, सुबह-शाम कभी भी मौका मिलते ही चौका मार देते हैं।
कामरू- अरे भाभी, ये भादरू तो बचपन से ऐसे ही है। मैं तालाब में भैंस को एक बार चोद के रुक जाता था। पर ये तीन बार चोदकर ही दम लेता था।
सहेली- क्या? क्या जी? आप बचपन में भैसिया को चोदते रहे।
भादरू- अरे नहीं सहेली, मेरा दोस्त मजाक कर रहा है। क्यों कामरू?
कामरू- हाँ भाभी, मैं सही में मजाक ही कर रहा था। भैसिया ही नहीं बकरी भी चोदता था ये भादरू।
सहेली- हे राम... बकरी को भी नहीं छोड़ा तुमने?
भादरू- चुप कर कामरू... मरवाएगा क्या? आधी इज़्ज़त तो गई। बाकी आधी तो रहने दे। अरे नहीं सहेली, ये सचमुच मजाक कर रहा है। मैं अभी साबित कर देता हूँ। अच्छा कामरू, एक बात बता। मैं ये मानता हूँ की मैं भैंस को भी चोदता रहा और बकरी भी चोदता रहा। इसका मतलब आई है की तुम भी मैंस और बकरी चोदते रहे। हमरे साथ... क्यों सही कहा ना मैंने?
कामरू हड़बड़ा करके- अरे नहीं नहीं, हम कहाँ चोदत रहे। आई सब झूठ है, बकवास है। हम तो ऐसन ही मजाक कर रहे थे, सच में भाभीजी।
सहेली- हमें अभी भाभी मत कहिए। आप दोनों ने दोस्त की पत्नी को भाभी कहलाने का हक खो दिया है।
कामरू- हमें माफ कर दीजिए भाभीजी। मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था।
कमलावती- पर हम दोनों सहेलिया मजाक नहीं कर रहीं हैं आप मेरी सहेली को भाभी नहीं कह सकते और जीजाजी (भादरू) आप... आप हमें भाभी नहीं कह सकते।
भादरू- देखा साले... कामरू, तेरी एक मजाक... हमें कितना महँगा पड़ गया है। अब भाभियों को भाभी भी नहीं कह सकते हम।
कमलावती- अरे जीजाजी, आप हमें भाभी नहीं कह सकते पर साली तो कह सकते हैं।
भादरू- क्या मतलब?
कमलावती- मतलब आई जीजाजी की हम दोनों बचपन की सहेलियां हैं और एक-दूसरे के पति को हम भाई साहब या भैया नहीं कह सकते हाँ जीजाजी जरूर कह सकते हैं।
भादरू- अच्छा सालीजी.. पर साली आधी घरवाली भी होती है, सोच लो?
कमलावती- इसमें सोचना क्या है? साली तो आधी घरवाली होती ही है। पर एक बात है जीजाजी। जैसे मैं आपकी साली और आधी घरवाली लगती हैं। वैसे ही आपकी बीवी भी हमरे सैया (कामरू) की साली और आधी घरवाली लगती है। जैसा आप हमरे साथ करोगे। सोच लो हमरे पति भी आपकी बीवी के साथ वैसे ही करेंगे। क्यों जी, सही कहा ना मैंने?
कामरू- हाँ हाँ भगवान तुमने सही कहा है।
सहेली- हाँ हाँ... सैया जी (भादरू)। सोच समझकर साली के गिरेबान में हाथ डालना। और ये सोचकर डालना की तुम्हारा दोस्त भी तुमरी बीवी के गिरेबान में हाथ डाल सकता है।
भादरू- अरी, मेरी तौबा... मैंने अपनी साली को आँख उठाकर भी नहीं देखना।
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