RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
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मैने हवेली के गेट पर गाड़ी रोकी और गोरी को कहा कि तुम अंदर चलो मैं पुष्पा को उसके घर छोड़ कर आता हूँ तब तक तुम खाने की व्यवस्था देख लो तो पुष्पा बोली मालिक मैं हूँ ना मैं बना दूँगी खाना , पर मैने मना करते हुए कहा कि नही आज मैं गोरी के हाथो से बना हुआ खाना ही कहूँगा , फिर गोरी हवेली मे चली गयी और मैने कार गाँव की ओर बढ़ा दी बस्ती आने से थोड़ी देर पहले ही पुष्पा ने कहा कि मालिक गाड़ी यही पर रोक दीजिए
मैने कहा पर घर तो अभी दूर है , वो कहने लगी कि अगर कोई देखेगा कि आप मुझे गाड़ी मे छोड़ने आए है तो फिर कई बाते चलेंगी मैं हूँ औरत जात आप समझ ही सकते है तो मैने गाड़ी वही पर रोक दी वो बाहर उतर गयी मैं भी उसके पीछे पीछे उतर गया वो जाने लगी तो मैने कहा ज़रा रूको, तुमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया अभी तक
तो उसने एक बड़ी ही गहरी जालिम नज़र से मेरी ओर देखा और फिर पलट कर तेज तेज कदमोसे बस्ती की ओर बढ़ गयी और मैं रह गया वही पर कुछ देर उसको जाते देखता रहा फिर मैं भी वापिस हवेली की तरफ बढ़ गया गाड़ी पार्क की और सीधा रसोई की तरफ हो लिया पर गोरी वहाँ पर नही थी
मैने उसको फिर कमरे मे देखा पर वो वहाँ पर भी नही थी, तो मेरे दिल थोड़ा घबरा सा गया मैं उसको पुकारते हुए इधर उधर देखने लगा कि देखा वो बाथरूम की तरफ से चली आ रही थी गीले रेशमी बाल जिन्होने उसके सूट को भी आधे से ज़्यादा भिगो दिया था माथे से टपकती शबनमी बूंदे उसके चंद्रमा से चेहरे की रोनक को और भी बढ़ा रही थी
वो बोली क्यो चिल्ला रहे हो तुम, नहाने ही तो गयी थी मैने कहा वो तुम मुझे दिखी नही तो मैं थोड़ा सा घबरा गया था वो मुस्कुराते हुवे बोली इतनी फिकर क्यो करते हो आख़िर हम आपके है ही कॉन? मैने कहा ये तो पता नही कि तुम मेरी कॉन हो पर मेरी कुछ तो हो ही और मैं भी मुस्कुरा दिया मैने कहा आगे से ज़रा बता कर जाया करो मुझे फिकर है तुम्हारी
अपने गीले रेशमी बालो को तोलिये से झटकते हुवे बड़े ही प्यार से उसने मेरी ओर देखा और बोली कि तुम बस थोड़ा सा इंतज़ार करो मैं अभी फटा फट से खाना बना देती हू और रसोई की ओर जाने लगी मैं भी उसके पीछे-पीछे रसोई मे चला गया और उस से बाते करने लगा ना जाने गोरी मे कैसी कशिश थी जो मुझे बरबस ही उसकी ओर जाने को मजबूर करती रहती थी
पता ही नही चला कि कब उसके ख़यालो मे में डूब सा गया तभी उसने मेरी तंद्रा तोड़ी और बोली कहाँ खो गये मैने कहा कुछ नही इधर ही हूँ दिल तो कर रहा था कि बस उसको हमेशा ऐसे ही देखता रहूं एकटक पर फिर मैं रसोई से बाहर आ गया गोरी जब जब मेरे पास होती थी मुझे पता नही एक अलग सा ही एहसास सा होने लगता था मैं जैसे कहीं खो सा जाता था
फिर हमने साथ साथ ही डिन्नर किया तो वो बोली मैं कहाँ सोउंगी मैने कहा इतना बड़ा घर है जहा मर्ज़ी हो उधर सो जाओ वो बोली इतने बड़े घर मे बस दो ही तो कमरे खुले है और बेड तो तुम्हारे ही कमरे मे है मैने कहा तो मेरे साथ उधर ही सो जाओ , वो बोली ना बाबा ना तुम्हारा क्या भरोसा फिर से मुझे शरारत करने लगोगे मैने कहा तो फिर क्या हुवा………
वो बोली बाते ना बनाओ , मुझे बहुत नींद आ रही है और फिर सुबह स्कूल भी जाना है मैने कहा तू बेड पर ही सो जा मैं बाहर सो जाता हू तो वो तो पड़ते ही सो गयी थी पर मेरी आँखो मे नींद नही थी आज पता नही क्यो मेरा मन भटक रहा था जैसे की वो मुझे कोई संकेत देना चाहता हो, कहना चाहता हो कुछ रात आधे से ज़्यादा बीत चुकी थी
चंदा की चाँदनी चारो ओर बिखरी हुई थी हवा हल्की हल्की सी चल रही थी और एक मैं था अपने अशांत मन के साथ, जब रहा नही गया तो मैं उस कमरे मे चला गया जहाँ मेरे माँ-पिता की तस्वीरे थी एक ख़ालीपन सा मेरे अंदर कितनीही बाते थी जो मैं उनके साथ करना चाहता था पर मेरी सुन ने के लिए वो नही थे वहाँ पर , मेरा गला भर आया
आख़िर मेरे पास भी तो एक दिल था , इमोशंस थे पता ही नही चला कब मेरी सूनी आँखो से आँसू निकल कर बहने लगे माँ की तस्वीर मैने दीवार से उतारी और उसको अपनी बाहों मे लेकर मैं रोने लगा टपकते आँसू तस्वीर की धूल को भिगोने लगे फिर जब रहा नही गया तो मैं वहाँ से बाहर आ गया और कुर्सी पर बैठ गया
तभी मुझे ऐसे लगा कि जैसे हवेली मे कुछ हलचल हुई हो पर वहाँ तो बस मैं और गोरी ही थे , तो फिर ये कैसी आवाज़ थी तो मैं उस ओर चला तो मैने देखा कि कुँए की तरफ से जो दीवार टूटी हुई है उधर तीन लोग थे और अंदर की तरफ ही आ रहे थे मैने सोचा कि कॉन होंगे, चोर या फिर कोई दुश्मन
तभी मुझे गोरी का ख़याल आया और मैं अंदर की ओर भागा और जो बंदूक मुझे राइचंद जी ने दी थी उसको उठाया और बाहर आया वो लोग भी अब अंदर आ चुके थे बस कुछ ही दूरी थी वैसे मैं घबरा तो गया था पर फिर भी हिम्मत करते हुए मैने थोड़ा दिलेरी दिखाते हुवे कहा कि कॉन हो तुम लोग और इतनी हिम्मत की ठाकुर यूधवीर सिंग की हवेली मे घुस गये
वो लोग थोड़ा सा सकपका गये, तभी ना जाने कैसे मेरे हाथोसे उसी टाइम गोली चल गयी हालाँकि इस से पहले मैने ऐसा कभी नही किया था पता नही कैसे शायद घबराहट के मारे पर वो गोली उनमे से एक को लग गयी और वो वही पर गिर पड़ा और उसके वो दोनो साथी तुरंत ही रफूचक्कर हो लिए गोली की आवाज़ चली तो दूर तक गयी गोरी भी दौड़ते हुए बाहर आई और अपनी सांसो को संभालते हुवे बोली देव…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
देव, देव तुम ठीक तो होना ये क्या हुआ कॉन है ये आदमी बताओ मैने कहा शांत हो जाओ मैं ठीक हू तीन लोग थे पर ये यहाँ पर क्यो मैने उस आदमी के चेहरे से नकाब हटाया पर अब मुझे क्या पता वो कॉन था गोरी बुरी तरह से घबरा गयी थी और मुझसे बिल्कुल चिपक कर खड़ी थी पसीना उसके माथे से बह चला था तभी हवेली के गेट पर किसी की दस्तक हुवी तो मैं उस ओर गया एक आदमी था हाथ मे लालटेन लिए हुए
मैने कहा तुम कॉन हो वो बोला साहब इधर पास मे ही मेरा खेत है मैं उधर ही सोया हुआ था तो गोली की आवाज़ सुनी तो इधर आ गया मैने कहा अंदर आओ और गेट खोला मैने कहा कुछ लोग थे पता नही कॉन थे कोई दुश्मन या चोर थे एक को धर लिया तुम देखो ज़रा कि पहचान हो पाएगी या नही और उसको उसे दिखाया पर वो भी पहचान नही पाया
राइचंद जी हॉस्पिटल मे थे और गाँव मे मेरा कोई ऐसा था नही जिसपर मैं भरोसा कर सकूँ बड़ी मुस्किल हो गयी थी मेरे लिए मैने गोरी के घर पर फोन किया और उसके नोकर से कहा कि अभी इसी वक़्त कुछ आदमियो को लेकर हवेली आ जाओ सच तो था कि मैं बेहद घबरा गया था अगर मानलो कुछ ज़्यादा लोग हमला कर देते तो कुछ भी हो सकता था
आधे घंटे भर बाद राइचंद जी के घर से कुछ लोग हवेली पर आ गये थे मैने कहा आप सभी को यहाँ की सुरक्षा करनी है बाकी सब काम बाद मे, तभी गोरी बोली पुलिस बुला लो मैने माथे पर हाथ मारा कि ये ख़याल मेरे दिमाग़ मे क्यो नही आया सुबह होते होते 5-6 जीप मे पोलीस वाले हवेली आ गये थानेदार खुद आया था तो मैने उसको पूरी बात बताई उसने मुझे पूरी सुरक्षा का वादा किया पर सवाल ये था कि कॉन थे वो लोग????????????????????????
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