RE: Porn Hindi Kahani जाल
जाल पार्ट--49
गतान्क से आगे......
“तुम्हे पता है तुम्हारा बाप कौन है?”
“नही.जो भी था 1 डरपोक,बुज़दिल &घटिया किस्म का इंसान था जो मेरी मा के पेट मे मुझे डालने की हिम्मत तो रखता था लेकिन उसे & मुझे अपनाने की नही.”,रंभा की रुलाई अब धीमी हो गयी थी..तो सुमित्रा ने उसे ये बात तो सही बताई थी.
“मेरा नाम देवेन सिन्हा है.तुम्हारी मा को मैने पहली बार गोपालपुर के पोस्ट ऑफीस मे देखा था..”,उसने 1 कुर्सी खींची & बैठ गया & 1 नयी सिगरेट सुलगाई,”..& उसे देखता ही रह गया था.उस वक़्त तुम भी उसकी गोद मे थी.हल्की गुलाबी सारी मे लिपटी तुम्हे गोद मे लिए सुमित्रा को देख पहली बार मेरे दिल मे शादी का ख़याल आया था..मैने सोचा कि काश मेरी भी ऐसी 1 बीवी & बच्ची हो तो ज़िंदगी कितनी सुहानी हो जाए..”
“..उसके बाद इत्तेफ़ाक़ कहो या कुच्छ और मैं उस से कयि बार टकराया और हमारी जान-पहचान हो गयी.चंद मुलाक़ातो मे ही मैने इरादा कर लिया कि सुमित्रा को मैं अपनी बनाउन्गा & 1 दिन अपने दिल की बात मैने तुम्हारी मा से कह दी.उसने कोई जवाब नही दिया & मुझसे मिलना छ्चोड़ दिया.मेरी हालत तो दीवानो जैसी हो गयी & तब मैने दयाल का सहारा लिया..”,रंभा ने देखा कि उसकी मा के बारे मे बात करते हुए उस शख्स की आँखो मे नर्मी आ गयी थी लेकिन दयाल नाम को लेते ही वो फिर से अपने पुराने अंदाज़ मे आ गया था.
“..दयाल मेरा दोस्त था.सब कहते थे कि वो चलता पुर्ज़ा & निहायत शातिर आदमी है लेकिन मेरे साथ उसने कभी कोई धोखाधड़ी नही की थी & हमेशा मदद ही करता था.तुम्हारी मा से भी मेरी दोबारा बात करवाने मे उसने बहुत मदद की थी.मैने सुमित्रा से उसकी बेरूख़ी की वजह पुछि तो उसने कहा कि मैं अपनी ज़िंदगी बर्बाद ना करू और उसने उस रोज़ मुझे तुम्हारे पैदा होने की सही कहानी बताई.उस से पहले तो सब यही समझते थे कि तुम्हारे पिता तुम्हारे जनम होने के पहले ही मर गये.उस रोज़ मेरे दिल मे सुमित्रा के लिए प्यार & गहरा हो गया & मैने अपनी बात दोहराई लेकिन उसे तुम्हारी फ़िक्र थी.उसे डर था कि जब वो मेरे बच्चे की मा बनेगी तो मैं तुम्हे वैसा प्यार नही दे पाऊँगा.मैने उसे बहुत समझाया & आख़िर मे वो मान ही गयी.मैं खुशी से नाच उठा & उसे चूम लिया..”,रंभा ने नज़रे नीची कर ली.मा के बारे मे रोमानी बातें सुनने से उसे शर्म आ गयी थी.
“..वो शाम & उसके बाद की कयि शामे मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन शामे थी.मैं उतावला था & सुमित्रा का दीवाना & बहक के केयी बार कोशिश की उसे शादी के पहले ही अपना बना लू लेकिन वो मुझे हमेशा ही मना कर देती थी.बात सही भी थी.उस छ्होटे से कस्बे मे हमारी चाहत की खबर आम नही हुई थी यही बड़ी कमाल की बात थी & कही मैं हदें पार कर जाता तो वो तो बदनाम हो ही जाती..”
“..मेरी माली हालत बहुत अच्छी तो थी नही & मैं नही चाहता था की शादी के बाद तुम्हारी मा काम करे लेकिन उसके लिए मुझे पैसो की ज़रूरत थी.तब दयाल ने मुझे रास्ता दिखाया जो उस वक़्त तो मुझे लगा कि मेरी खुशली की ओर जाता है पर बाद मे मुझे पता चला कि वो रास्ता तो मेरी बर्बादी की तरफ जाता है और उसे बताने वाला शख्स मेरा दोस्त नही बल्कि दोस्ती का नक़ाब पहने 1 दुश्मन है.”,उसने सिगरेट फर्श पे फेंक के उसके तोटे को जूते से मसला & रंभा को देखने लगा.
“अब मैं तुम्हे बताने जा रहा हू कि कैसे मेरे दोस्त & मेरी महबूबा ने मुझे धोखा दिया & उसकी सज़ा आज तुम्हे भुगतनी पड़ रही है..-“
“-..1 मिनिट.मेरी मा दोषी नही है.”
“ये तुम कैसे कह सकती हो?तुम्हे तो उस वक़्त कोई होश भी नही था?”
“पहले तो आजतक मैने किसी दयाल नाम के शख्स के बारे मे ना तो सुना ना ही देखा & फिर वही बात कि अगर मेरी मा ने आपको धोखा दिया तो फिर हम दोनो को अपनी ज़िंदगी उस ग़रीबी मे क्यू गुज़ारनी पड़ी.”,अब वो शख्स सचमुच सोच मे पड़ गया.जब वो कयि बरसो बाद गोपालपुर गया था & पता किया था तो पाया था कि सुमित्रा 1 छ्होटे से मकान मे ही रहती थी & वो भी किराए पे.उसके बारे मे उसने बहुत जानकारी जुटाई थी & यही पता चला था कि वो निहायत शरीफ औरत थी & उसके चाल-चलन पे कभी कोई 1 उंगली भी नही उठा सका था लेकिन उसके इन्तेक़ाम की आग से झुलस रहे दिलोदिमाग ने उस बात को मानने से इनकार कर दिया था.
“हो सकता है दयाल ने बाद मे उसे भी धोखा दिया हो & उसके हिस्से का रुपया उसे ना दिया हो?”,इस बार उसके सवाल मे वो शिद्दत नही थी.रंभा की बातो ने उसकी सोच को हिला दिया था.
“मान ली तुम्हारी बात लेकिन अगर मेरी मा की फ़ितरत ऐसी थी तो उसने फिर किसी & मर्द से यारी क्यू नही गाँठि या फिर किसी और के पैसे क्यू नही हड़पे?”,रंभा उसकी आँखो मे बेबाकी से देख रही थी.देवेन को वाहा ज़रा भी झूठ नज़र नही आ रहा था मगर..
“तुम्हे पता नही होगा और फिर तुम भी तो अपने ससुर के साथ..-“,रंभा चौंक पड़ी..यानी क्लेवर्त मे उस रात उसने उसे विजयंत मेहरा की बाहो मे देख लिया था.
“मैं 1 बहुत मतलबी लड़की हू जो अपनी खुशी के लिए किसी भी हद्द तक गिर सकती है मगर मेरी मा 1 देवी थी.आपने शुरू मे उसे बिल्कुल सही समझा था..आप चाहे तो मुझे मार दीजिए लेकिन मेरा यकीन मानिए..उस औरत को पूरी ज़िंदगी मे कोई खुशी नही मिली और मुझे मलाल है इस बात का कि आज जब मैं जोकि बहुत बुरी हू..जोकि अपने ससुर के साथ सो चुकी है..इस काबिल हू कि जो चाहू वो मेरे पास आ जाए..तो वो औरत ज़िंदा नही है कि मैं उसे चंद खुशिया दे सकु.”,रंभा की निगाहो की ईमानदारी पे उसे अब शक़ नही था लेकिन फिर भी 1 सवाल तो था..
“..तो आख़िर सच क्या है & दयाल आख़िर गया कहा?”
“हुआ क्या था जिसने आपकी ज़िंदगी तबाह कर दी?”
“बताता हू.”
“दयाल छ्होटे-मोटे ग़लत काम करता था,ये मुझे पता था लेकिन वो इतने संगीन जुरमो से वास्ता रखता होगा ये मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था.जब मैने उसे अपनी पैसो की मुश्किल की बारे मे बताया तो उसने मुझे 1 काम बताया.काम बहुत आसान था,बस मुझे 1 सील बंद पॅकेट लेके गोपालपुर से कोलकाता जाना था & उसके बताए पते पे दे देना था.इस काम के लिए मुझे वो .25,000 दे रहा था.मैने उस से पुछा की आख़िर ऐसा क्या है उस पॅकेट मे जो वो मुझे उसे बस 1 जगह से दूसरी जगह ले जाने के इतने पैसे दे रहा है तो उसने कहा कि उसमे कीमती पत्थर हैं जोकि मुझे कोलकाता मे 1 ज़ोहरी के यहा पहुचाने हैं & इसीलिए मुझे इतने पैसे मिल रहे हैं.”,वो उठा & कमरे के बाहर गया & जब लौटा तो उसके हाथ मे पानी की 1 बॉटल थी.
“मैने वो पॅकेट कोलकाता पहुचाया & मुझे पैसे मिल गये.मैं बड़ा खुश हुआ.ये दूसरी बात थी की गोपालपुर से कोलकाता तक रैल्गाड़ी मे डर के मारे मेरी हालत खराब रही,आख़िर सवाल जवाहरतो का था.”,उसने पानी के घूँट भरे & फिर 1 पल को सोच बॉटल रंभा की ओर बढ़ाई तो उसने हां मे सर हिलाया.वो अपनी कुर्सी से उठा & बाए हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ उसे पानी पिलाया.
“इसके बाद मैं खुद दयाल से आगे भी ऐसे काम मुझे देने को कहने लगा.पहले तो उसने मना किया लेकिन मेरे इसरार पे उसने फिर से मुझे कोलकाता ले जाने को 1 पॅकेट दिया.इस बार भी मुझे उतने ही पैसे दिए गये.मैने उस से पुछा की आख़िर कौन है वो जो उसे ये पत्थर देता है लेकिन वो बात टाल गया.मैने सुमित्रा को भी सब बताया था.उसने मुझे उस काम को करने से मना किया लेकिन मुझे पैसो का लालच तो था ही.”,उसने थोड़ा पानी & पिया,”..जैल जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि दोनो नाटक कर रहे थे.
“दयाल के बारे मे जो मर्ज़ी कहो लेकिन मेरी मा के बारे मे नही.”
“2 बार पॅकेट ले जाने के बाद मेरा हौसला भी बढ़ गया था & मैं तीसरी बार भी पॅकेट ले जाने को तैय्यार हो गया मगर इस बार सब गड़बड़ हो गया.ट्रेन मे मैने गौर किया कि 1 शख्स मुझपे नज़र रखे हुए है.मैं डर गया कि कही वो मेरे पॅकेट के जवाहरतो को लूटने के चक्कर मे ना हो.उसे चकमा देने के लिए मैं हॉवरह के बजाय सेअलदाह स्टेशन पे उतर गया और वाहा से 1 टॅक्सी कर दयाल के दिए पते पे जाने लगा.रास्ते मे मैने देखा कि 1 कार मेरा पीछा कर रही है.मैने टॅक्सी आधे रास्ते मे छ्चोड़ी & फिर 1 फेरी पकड़ के कुच्छ दूर गया & वाहा से फिर टॅक्सी ली लेकिन हर जगह मुझे लगा कि मुझपे नज़र रखी जा रही है.पहले मैने सोचा कि मेरी घबराहट की वजह से मुझे वहाँ हो रहा है लेकिन उस पते पे पहुँच पॅकेट थमाते ही मुझे पता चल गया कि मुझे जो लगा था सही था.वो शख्स चोर नही बल्कि पोलीस का आदमी था & उसने स्मगल किए हुए सोने के बिस्किट्स के साथ पकड़ा था.”
“..जैसे ही मुझे पकड़ा गया मैं बौखला गया & वाहा से भागने की कोशिश करने लगा.उस पोलिसेवाले ने,जो मेरा ट्रेन मे पीछा कर रहा था,मुझे पकड़ लिया तो मैने उसे मारा और भागा लेकिन वो मेरे पीछे आया & मुझपे वार किया & उसकी अंगूठी मेरे गाल पे बुरी तरह से रगडी और ये निशान पड़ गया.मैने भी वही पड़ा 1 भारी गुल्दान उसके सर पे दे मारा.मेरी फूटी किस्मत की उसका सर फॅट गया &और २४ घंटे अस्पताल मे रहने के बाद वो मार गया
“तो इसमे मेरी मा का क्या दोष है?”
“उसी ने मेरा नाम पोलीस को बताया था और इनाम की रकम ली थी.पॅकेट के बारे मे बस दयाल,वो और मैं जानते थे तो मुझे धोखा देने वाले भी वही दोनो थे ना.जब मैने पोलीस को दोनो से कॉंटॅक्ट करने को कहा तो दोनो मे से किसी ने भी मुझे जानने से इनकार कर दिया.अब बताओ आख़िर क्या वजह थी दोनो के ऐसा करने की?”
“ये भी तो हो सकता है कि मेरी मा तक तुम्हारी बात कभी पहुँची ही ना हो & फिर तुम्हारी बातो से तो यही लगता है की ये दयाल बहुत शातिर था & अपनी साज़िश को च्छुपाने केलिए इसने या तो मा से झूठ बोला होगा या फिर उस तक बात पहुचने ही नही दी होगी.”,अब देवेन सोच मे पड़ गया..जैल मे उसने 1 हवलदार को पैसे खिलाके सुमित्रा तक अपना संदेश पहुचने को कहा था.उसने अपने साथी क़ैदी से क़र्ज़ ले उसे पैसे दिए थे & उसी हवलदार ने उसे बताया था कि सुमित्रा ने उसे पकड़वाने का इनाम लिया है और इनाम लेने वो जिस शख्स के साथ आई थी उसका हुलिया दयाल जैसा ही था.मगर रंभा की बातो ने उसे दूसरे पहलू पे भी सोचने को मजबूर कर दिया था.
“मैं फिर कहती हू कि तुम्हे ग़लतफहमी हुई है.मुझे मारने से तुम्हे शांति मिलती है तो मार दो लेकिन ये सच नही बदलेगा कि मेरी मा का तुम्हारी बर्बादी से कोई लेना-देना नही.”,2 घंटे पहले उसका इरादा पक्का था कि वो इस लड़की को मार के अपना बदला पूरा करेगा लेकिन अब उसका विस्वास डिग गया था.
“तो क्या दयाल & तुम्हारी मा साथ नही थे?”
“नही!..& कौन है ये दयाल आख़िर?..मैने तो उसे कभी नही देखा!”
“ये है दयाल.”,उसने जेब से 1 तस्वीर निकाल उसे दिखाई,”..ये सुमित्रा,मेरी गोद मे ये तुम & ये है दयाल.”,1 गोरा-चिटा शख्स था जो शक्ल से तो भला दिखता था लेकिन उसकी आँखो मे 1 अजीब सी चमक थी जिसे तस्वीर मे भी देख रंभा थोड़ी असहज हो गयी.
“मैने इस आदमी को कभी नही देखा ना ही मा ने कभी इसका कोई ज़िक्र किया.”,अब देवेन को कोई शक़ नही था कि रंभा को सच मे कुच्छ नही मालूम था और शायद सुमित्रा भी निर्दोष थी.वो निढाल हो कुर्सी पे बैठ गया.रंभा को अचानक वो बहुत बूढ़ा लगा.कुच्छ पल बाद वो उठा और उसके बंधन खोल दिए.रंभा अपनी कलाईयो को सहलाती कुर्सी से उठी & उसके सामने खड़ी हो गयी.
“देखिए,मैं आपको नही जानती लेकिन आप मेरी मा को चाहते थे,उसे अपनाना चाहते थे,ये बात मेरे लिए बहुत मायने रखती है.मैं जानती हू,मेरी मा के साथ-2 इस दयाल की भी तलाश होगी आपको ..-“
“-..हां,लेकिन वो तो ऐसे गायब हो गया है जैसे गधे के सर से सींग!”
“उस सींग को ढूँढने मे मैं भी आपकी मदद करूँगी.मेरी मा का नाम बदनाम करने वाले को मैं छ्चोड़ूँगी नही.”,वो हैरत से रंभा को देखने लगा.
“मुझे माफ़ कर सकोगी..मैं अपने इन्तेक़ाम की हवस मे अँधा हो गया था..बुरा मत मानना लेकिन पिच्छले कयि बरसो से मैं सुमित्रा को दोषी मानता आ रहा हू & अभी भी अपनी सोच बदलने मे मुझे परेशानी हो रही है..मेरा दिल तुम्हारी बातो पे यकीन कर रहा है लेकिन दिमाग़ बार-2 मुझे सवाल करने पे मजबूर कर रहा है!”
“ये उलझन सिर्फ़ दयाल के मिलने से ही दूर हो सकती है.आप यकीन कीजिए अब से मैं भी आपके साथ हू.”
“शुक्रिया,चलो तुम्हे तुम्हारे घर तक छ्चोड़ आऊँ.”
“हूँ.”
“ये घर आपका है?”,रंभा कार मे बैठी & एंजिन स्टार्ट किया तो वो हंस दिया & बस इनकार मे सर हिलाया.
“आप जैल से निकला गोपालपुर क्यू नही आए?”
“क्यूकी वाहा से निकलते ही जैल का मेरा 1 साथी मुझे तमिल नाडु ले गया.मैने वाहा हर तरह का काम किया.मुझे इन्तेक़ाम तो लेना था लेकिन अब मैं दोबारा जैल भी नही जाना चाहता था,मेरे उसी साथी ने मुझे पहले पैसे जमा करने की सलाह दी & फिर इन्तेक़ाम लेने की.कुच्छ किस्मत ने भी मेरा साथ नही दिया.मैने वाहा जाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार कुच्छ ना कुच्छ अड़ंगा लग जाता था.जब कामयाब हुआ तो पता चला कि सुमित्रा अब इस दुनिया मे है नही & दयाल गायब है.”
“आप अभी भी तमिल नाडु मे ही हैं?..वाहा काम क्या करते हैं आप?”
“नही.अब तो मैं गोआ मे रहता हू & वही बिज़्नेस है मेरा.”
“अब आप क्या करेंगे?”,रंभा का बुंगला नज़दीक आ रहा था & देवेन ने उसे कार रोकने का इशारा किया.
“अभी तो गोआ जाऊँगा..रंभा..मुझे तुम्हे कुच्छ बताना है.”
“क्या?”,देवेन ने उसे कंधार फॉल्स पे देखी सारी बात बता दी.
“वो हरपाल होगा. ”
“पता नही.मुझे उसकी शक्ल नही दिखी थी & दिखती भी तो मैं उसे पहचानता तो हू नही.”
“&सोनिया..वो लड़की मेरे ससुर के साथ आई थी..आपको पक्का यकीन है?”
“बिल्कुल.मैने दोनो को होटेल वाय्लेट से 1 साथ कार मे निकलते देखा था & झरने तक उनका पीछा किया था.”
“अच्छा.”,रंभा सोच मे पड़ गयी.कुच्छ गड़बड़ लग रही थी लेकिन क्या ये वो समझ नही पा रही थी.परेशानी ये थी कि ये बात वो पोलीस को भी नही बता सकती थी क्यूकी ऐसा करने से देवेन बिना बात के इस चक्कर मे फँस जाता.
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क्रमशः.......
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