Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:16 PM,
#93
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -51 

गतान्क से आगे... 


ओफफफफफ्फ़ कितना मोटा और लंबा था उनका लिंग. ऐसा लग रहा था मानो कोई खंबा हो. मैने अपनी जिंदगी मे इतना मोटा तगड़ा लंड किसी का भी नही देखा. ऐसा लग रहा था मानो किसी मनुष्य का नही किसी घोड़े का लिंग हो. मैने चौंक कर रत्ना की तरफ देखा तो उसने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फिराया, 

" अरे तू घबरा क्यों गयी. एक बार लेकर देखना फिर और कोई दूसरा लिंग जिंदगी मे पसंद नही आएगा." 

स्वामीजी ने मेरे सिर को पकड़ा और मेरे माथे पर अपने लिंग के टोपे को च्छुअया. फिर उससे निकलते एक दो बूँद प्रेकुं को मेरी माँग पर फेर दिया. उसके बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरे ललाट से नीचे लाते हुए नाक के उपर से सरकाते हुए मेरे होंठों से च्छुअया. 



मुझे कुच्छ भी बोलने की अब ज़रूरत नही पड़ी मैने उनका इशारा पाकर अपने मुँह को खोल कर उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. उन्हों ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फिराया और मेरे सिर के पीछे अपनी हथेली रख कर मेरे सिर को अपने लिंग की तरफ खींचा. उनका लिंग इतना मोटा था की मेरे मुँह मे ही नही जा पा रहा था. सिर्फ़ उनके लिंग का टोपा ही मेरे मुँह के अंदर जगह बना पाया. मुझे लग रहा था की अगर मैने उनके लिंग को और अंदर लेने की कोशिश की तो शायद मेरे होंठ फट जाएँगे. उन्हों ने भी ज़ोर ज़बरदस्ती नही की. 



कुच्छ ही देर मे जैसे ही मैं उनके गधे समान विशाल लंड की अभ्यस्त हुई, उनके लंड को पूरे जोश चूसने लगी. कुच्छ देर की कोशिशों के बाद उनका लिंग बड़ी मुश्किल से एक चौथाई ही जा पाया था मेरे मुँह के अंदर. उससे ज़्यादा लेने की मुझमे हिम्मत नही थी. शायद दम ही घुट जाता या मेरा गला ही फट जाता. 



कुच्छ देर बाद स्वामीजी ने मेरे सिर को अपने हाथों से थामा और धीरे धीरे उस मूसल के समान लिंग को अंदर ठेलने लगे. मैं अपने मुँह को जितना खोल सकती थी खोल दी. उन्हों ने मेरे सिर को अपने लिंग के उपर दबाना शुरू कर दिया. मेरा दूं घुटने लगा. आँखें बाहर को उबल रही थी. उनका लिंग मेरे मुँह मे घुसता चला गया. करीब आधे लिंग को उन्हों ने मेरे मुँह के अंदर डाल दिया. मेरा जबड़ा दुखने लगा था. लेकिन मैने उनको रोकने की कोई कोशिश नही की. दो पल उस अवस्था मे रुक कर उन्हों ने एक झटके मे अपने लिंग को पूरा बाहर निकाला और मेरे सिर को छ्चोड़ दिया. 



मैं अपने गले को थाम कर रत्ना के बाँहों मे गिर पड़ी. मैं उस अवस्था मे पसरे हुए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. उनके लिंग के कारण काफ़ी देर तक मुझे साँस रोक कर रहना पड़ा था. मुझे ऐसा लग रहा था मानो कुच्छ देर और अगर मैं उस अवस्था मे रहती तो शायद बेहोश ही हो जाती. मैं रत्ना के सीने मे अपने मुँह को छिपा कर कुच्छ देर तक खाँसती रही. 

त्रिलोकनांदजी ने मेरे रेशमी बालों को अपनी हथेली मे लिया और अपने लिंग पर लगे वीर्य को उसमे पोंच्छ दिया. वापस उन्हों ने अपने लिंग पर तौलिया रख दिया. और कुच्छ देर आँख बंद करके ना जाने किस साधना मे लीन हो गये. मैं कुच्छ देर तक रत्ना की गोद मे पड़ी अपनी साँसों को व्यवस्थित करती रही. कुच्छ देर बाद जब मैं कुच्छ नॉर्मल हुई तो अपने आप को संहाल कर स्वामी जी के सामने वापस सिर झुकाए उनके आँखें खोलने का इंतेज़ार करती रही. 



कुच्छ देर बाद वापस उनकी आवाज़ सुनाई दी तो पता चला कि उन्हों ने अपनी आँखें खोल दी हैं. उन्हों ने रत्ना से कहा,

" मैं संतुष्ट हूँ. देवी मेरे जिस्म की काम्ज्वाला की तपिश को सहने के लिए उपयुक्त है. इसके जिस्म मे वो शक्ति है कि काम की पार्कश्ठा मे भी ये उफ्फ नही करेगी. बहुत सुंदर देवी आती सुंदर.” उन्हों ने आगे कहा,” देवी रत्ना मेरे महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए इसे जो जो हिदायतों को पालन करना पड़ेगा वो इसे समझा दिया है ना. ये हमारे बंधानो को, इस आश्रम के नियमों को पालन करने के लिए पूरे दिल से राज़ी है ना? बिना लेने वाले की पूरी रज़ामंदी के मैं किसी को भी महाप्रसाद नही देता. मेरे महाप्रसाद को बिना किसी किंतु परंतु के स्वीकार करने वाला ही फल पाता है. किसी तरह की झिझक हो तो तुम अभी भी उठ कर यहाँ से जा सकती हो." 



” स्वामी मैने इसे एक बार तो समझा दिया था. अभी आपके सामने दोबारा समझा देती हूँ” रत्ना ने फिर मुझसे कहा, " तुम्हे यहाँ रहने के लिए जिन जिन नियमो का पालन करना पड़ेगा वो मैं तुमको सुना ती हूँ. तुम्हे इस आश्रम के हर नियम का पालन बिना किसी विरक्ति के करना पड़ेगा. अगर किसी पर कोई भी शंका हो तो पहले ही उसका निवारण कर लेना." 

मैं स्वामी जी के सामने मई हाथ जोड़े उसी तरह नग्न बैठी हुई थी. मैने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी. 

" तुम्हे एक हफ्ते के लिए इस आश्रम मे रहना पड़ेगा बिना किसी से मिले बिना बाहर की रोशनी देखे." रत्ना ने कहा 

"मुझे मंजूर है" मैने अपनी स्वीकृति दी. 

" इस पूरे हफ्ते तुम यहाँ से बाहर नही जा सकती. चाहे कितना भी ज़रूरी काम क्यों ना आ पड़े. तुम्हे ये सात दिन स्वामीजी के साथ इनके कमरे मे गुजारने होंगे. " रत्ना ने आगे बताया. 

" मुझे मंजूर है" 

" तुम्हे आश्रम मे निवास के दौरान स्वामीजी की सेवा पूरे तन और मन से करनी होगी. तुम्हे अपना तन इनके हवाले करना होगा. इस दौरान तुम्हारे दिमाग़ और तुम्हारे जिस्म पर सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामीजी का हक़ रहेगा. तुम एक तरह से एक हफ्ते के लिए स्वामीजी किकिसी ब्यहता की तरह ही सेवा करनी है." 

" मुझे मंजूर है. मैं पूरे तन मन से इनकी सेवा करूँगी" 

" तुम इनके किसी भी आदेश का उल्लंघन नही कर सकती. इनके आदेश के बिना तुम कुच्छ नही करोगी. ये तुम्हे जैसा चाहेंगे वैसे भोगेंगे." 

" आप दुविधा मे ना पड़ें स्वामी मैं आपकी दासी बन कर रहूंगी. किसी गुलाम की तरह आपकी सेवा करूँगी. आप बस मुझे अपनी छत्र छाया मे रहने का मौका दें" मैने कहा. 

" इस पूरे एक हफ्ते तुम किसी तरह का कोई भी वस्त्र बिना स्वामीजी की अग्या के नही धारण कर सकती. तुम्हे बिल्कुल नग्न रहना होगा. तुमको उसी हालत मे आश्रम मे घूमना फिरना पड़ेगा. इस आश्रम का कोई भी शिष्य तुम्हारे जिस्म को भोग सकता है मगर तुम्हारी कोख मे अमृत वर्षा करने का हक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामी जी को होगा." उसने आख़िर मे कहा. 

" आपका हर आदेश सिर आँखों पर. " मैने उनके चर्नो पर अपना सिर झुकाया, “ मैं आपको वचन देता हूँ कि मेरी ओर से आपको किसी तरह की कोई परेशानी का सामना नही करना पड़ेगा.” 

" बहुत अच्च्छा ठीक है देवी तुम कल सुबह आ जाना" स्वामी जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा, “ देवी रत्ना कल के कार्यक्रम के बारे मे इसे अच्छे से समझा देना. कल इसे काफ़ी मेहनत करनी है. इसलिए आज भरपूर आराम करले.” 



“ उठो दिशा स्वामीजी के आराम का वक़्त हो गया है. अब इन्हे आराम करने दो. “ रत्ना ने मुझे उठाया. मैं उठ कर अपनी साडी को बदन पर लपेट कर रत्ना के साथ बाहर आ गयी.. 

" दिशा अब घर जा कर रेस्ट करो. कल सुबह चार बजे मैं तुम्हे लेने तुम्हारे घर आ जाउन्गी. कोई समान लेने की ज़रूरत नही. ज़रूरत का सारा समान वहाँ मिल जाएगा. और जितने दिन वहाँ रहोगी उतने दिन बदन पर कुच्छ पहनना तो है नही फिर कुच्छ लेने की क्या ज़रूरत. " रत्ना ने कहा. मैने सहमति मे सिर हिलाया और वहाँ से घर आ गयी. 

मैने देव को फोन करके बता दिया कि मैं आश्रम के इनॉवौग्रेशन के कार्यक्रमो की वजह से हफ्ते भर आश्रम मे बिज़ी रहूंगी इसलिए उससे कॉंटॅक्ट नही हो पाएगा. देव कुच्छ नही बोला. हमने काफ़ी देर तक बातें की. उसने बताया कि उसे आने मे काफ़ी दिन लगेंगे इसलिए आश्रम के इनॉवौग्रेशन समारोह मे शामिल नही हो पाएगा. 



उसे काफ़ी उत्सुकता हो रही थी कि हफ्ते भर तक क्या क्या कार्यक्रम होने वाले हैं. अब मैं उन्हे क्या बताती कि आश्रम का कार्यक्रम तो बस एक दिन का है. बाकी छह दिनो का कार्यक्रम तो मेरा होने वाला है जिसमे पता नही कितन बिज़ी रहूंगी मैं. 

मैं रात को जल्दी ही सो गयी. सोई क्या थी रात भर आने वाले हफ्ते की कल्पना करते करते कब सुबह के चार बज गये पता ही नही चला. ठीक चार बजे रत्ना ने डोरबेल बजाई. मैने उसे अंदर बुला कर कुच्छ देर इंतेज़ार करने को कहा जिससे मैं तैयार हो लूँ. 

" चलो फटाफट नहा लो. आओ मैं नहला देती हूँ तुझे. " रत्ना ने कहा. रत्ना ने मेरे कपड़े एक एक करके उतार दिए फिर मुझे बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. उसने मेरे पूरे बदन को अच्छी तरह से नहलाया. फिर मेरा बदन तौलिए से पोंच्छ कर मुझे बाहर ले आइ. उसने पहले मेरे बदन मे पर्फ्यूम का स्प्रे किया. रत्ना ने मुझे तैयार करते हुए मेरे शरीर के सारे गहने, यहाँ तक की चूड़ियाँ और मन्गल्सुत्र तक उतार दिया. मैं वैसे भी नयी ब्यहताओं की तरह माँग मे सिंदूर 
नही भरती थी. उसने मेरे माथे की बिंदिया भी उतार दी. मेरे जिस्म पर मेरी शादी शुदा जिंदगी की कोई निशानी नही रहने डी. अब मुझे देख कर कोई नही कह सकता था कि मैं कोई ब्यहता हूँ. मैने एक सुंदर सी सारी निकाली पहनने के लिए तो रत्ना ने रोक दिया., 

" भारी सारी मत पहनना. बस कोई सूती की हल्की सी सारी पहन लो." 

उसके कहे अनुसार मैने उस सारी को वापस रख कर एक सूती सारी निकाल ली. उसने मेरा हल्का सा मेकप किया. हम दोनो अगले दस मिनिट मे तैयार होकर घर से निकल कर आश्रम पहुँचे. आश्रम के लोग उस वक़्त दैनिक काम से फारिग हो रहे थे. 

रत्ना मुझे लेकर सीधे सेवकराम जी के पास गयी. सेवकराम जी ने कहा, 

" देवी तुम्हे अब आश्रम का पवित्र वस्त्र ग्रहण करना पड़ेगा. पहले अपने वस्त्र बदल कर कुंड मे डुबकी लगा कर आओ फिर आगे के नियम पर बात करेंगे." 

रत्ना मुझे लेकर एक कमरे मे घुसी वहाँ मुझे एक सारी देते हुए कहा, " चलो अपने सारे वस्त्र उतार कर इस सारी को पहन लो" मैने वैसा ही किया. सारी सफेद रंग की बहुत ही झीनी सूती सारी थी. सारी के नीचे किसी अंडरगार्मेंट्स नही होने की वजह से मेरे पूरे बदन की सॉफ झलक सामने से मिल रही थी. हर कदम पर मेरे बड़े बड़े उरोज हिलने लगते. देखने वाले के बदन मे अगर तनाव ना अजाए तो ये एक ताज्जुब की बात ही होती. मुझे इतने सारे मर्दों के बीच इस प्रकार अर्धनग्न अवस्था मे चलते फिरते हुए बहुत शर्म आ रही थी. 
क्रमशः............ 
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