Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:36 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -68 

गतान्क से आगे... 


हमने उठ कर एक दूसरे के बदन को तौलिए से पूंच्छा. हम उसी अवस्था मे वापस बेडरूम मे आ गये. मैने घड़ी पर निगाह डाली. रात के दस बज चुके थे. अभी तो पूरी रात बाकी थी अभी तो बहुत खेल बाकी था. देखना था कि मैं स्वामी जी को हरा देती या खुद उनसे रहम की भीख माँगने लगती. 



स्वामी जी के चेहरे पर थकान का कोई नामो निशान भी नही दिखाई दे रहा था. वो पूरी रात बिना रुके मुझे चोद सकने की हिम्मत रखते थे. मैं ही दिन भर की चुदाई से पस्त हो गयी थी. 



दोनो वापस बिस्तर पर आकर लेट गये. स्वामी जी मुझसे लिपट कर लेट गये. मैं भी उनसे इस तरह लिपट गयी मानो कोई कमजोर लता अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश मे मजबूत पेड का सहारा लेता हो. 



हम दोनो एक दूसरे को सहला रहे थे और चूम रहे थे. मैं उनके बलों भरे सीने पर अपनी उंगलियाँ फिर रही थी तो वो मेरे चिकने सीने को सहला रहे थे, उनके चेहरे पर उगी लंबी दाढ़ी उनके अस्तित्व को और ज़्यादा रोमॅंटिक बना रही थी. मैं अपने गाल्लों को उनकी दाढ़ी पर घिसने लगी. इससे बदन मे एक गुदगुदी सी दौड़ने लगी. 



मैं कुच्छ ही देर मे गहरी नींद मे डूब गयी. पता नही कितनी देर तक वो मुझे प्यार करते रहे. मैं उनकी हरकतों से बेख़बर सो रही थी. पता नही कब उनका लंड वापस उत्तेजी हो कर खड़ा हो गया. जब उन्हों ने मुझे सीधा कर के मेरी योनि मे अपने लंड डाल दिया तो मेरी नींद खुल गयी. 



उन्हों ने मेरी दोनो टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया था. अपने दोनो हाथों मे मेरे दोनो स्तन थाम रखे थे. उनका ही सहारा लेकर वो मेरे उपर झुक कर मुझे चोद रहे थे. उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा बदन बुरी तरह हिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक यूँ ही बिना किसी आवेग के बिल्कुल निस्चल पड़ी रही. ऐसा लग रहा था मानो जिस्म मे अब जान ही नही बची हो. मेरा मुँह खुला हुआ था और मेरे सीने धोक्नि की तरह उपर नीचे गिर रहे थे. 



काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद जब उन्हों ने मुझे उल्टा किया तो मैं अपने हाथों और पैरों मे ज़ोर नही ला सकी. मैं बिस्तर पर किसी लाश की तरह पसरी रही. स्वामी जी मुझे इतनी जल्दी छ्चोड़ने वाले थे नही उन्हों ने मेरी कमर के नीचे दो तकिये लगा कर वापस मेरे नितंबों को उँचा किया और इस बार उनका हमला मेरी योनि की जगह मेरा गुदा रहा उन्हों ने बिना किसी चिकनाई के ईक दम से मेरे नितंबों को चौड़ा कर अपने लंड को मेरी गंद मे थेल दिया. मैं दर्द से च्चटपटा उठी. मुझे ज़ोर से चक्कर आया और मैं अंधेरो मे डूबती चली गयी. 



पता नही कितनी देर मैं बेहोश पड़ी रही. और स्वामी जी मेरे जिस्म को कितनी देर नोचते रहे कुच्छ पता नही चला. सुबह पाँच बजे स्वामी जी ने मेरे चेहरे पर पानी के छिंट डाल कर मुझे होश मे लाया. 



वो मुझ पर झुके हुए थे. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया. 



“ सॉरी गुरुजी मैं आपको बीच मे ही छ्चोड़ कर चली गयी थी. पता नही मुझे ज़ोर से चक्कर आया और फिर मुझे कुच्छ भी होश नही रहा.” 



“ कोई बात नही पहले पहले ऐसा ही होता है. धीरे धीरे तुम सेक्स की इतनी आदि हो जाओगी कि हर वक़्त तुम्हारी योनि मे एक आग जलती रहे गी. हर पल सिर्फ़ सेक्स और सेक्स ही सूझेगा.” स्वामी जी ने कहा. 



“मुझे अब नित्य कर्म के लिए निकलना है उसके बाद पूजा पाठ योगा इन सब मे दोपहर हो जाएगी तुम इस दौरान आराम कर लेना.” स्वामी जी ने कहा. 



“ जाने से पहले एक बार……..” मैने अपनी बात अधूरी ही रख दी. कहने को कुच्छ नही था दोनो समझ रहे थे बात का मर्म. 



मैने अपनी टाँगें हवा मे उँची कर छत की ओर तान दी और अपनी उंगलियों से अपनी योनि को फैला कर उन्हे न्योता दिया. स्वामी जी मेरे न्योते को स्वीकार कर मेरे हवा मे उठी टाँगो को थाम लिया और उन्हे फैला कर मेरी खोली योनि की फांको को एक बार सहलाया. वो मुझे तडपा रहे थे. मैं उत्तेजित हो कर उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि की ओर खींचा और साथ साथ अपनी कमर को उनकी ओर उठा दिया. 



उन्हों ने मेरी टाँगो को छ्चोड़ कर अपनी हथेलियों को मेरे कंधे की बगल मे रख कर सहारा लिया और एक बार फिर हम सेक्स के आनंद मे डूब गये. मेरी थकान अब काफ़ी हद तक कम हो चुक्का था इसलिए मैने भी खूब एंजाय किया. काफ़ी लंबी चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ स्खलित हो गये. 



मैं निढाल होकर वापस बिस्तर पर गिर गयी. मगर इस उम्र मे भी उनके जिस्म मे किसी तरह की शिथिलता नही थी. मैं टकटकी मारे उनको देखती रह गयी. स्वामी जी मेरे माथे पर अपना हाथ फेरते हुए कमरे से बाहर निकल गये. 



उनके जाने के कुच्छ देर बाद तीन युवतियाँ कमरे मे आई. मैं बिस्तर पर पसरी हुई थी मेरी दोनो टाँगे फैली हुई थी और योनि मुख पर एवं आस पास जांघों पर सफेद सफेद वीर्य के थक्के लगे हुए थेऊन्होन ने मेरे पूरे जिस्म की सुगंधित तेल से और जड़ी बूटियों से मालिश की. फिर तीनो ने मुझे अपने साथ बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. फिर बाहर आकर उन्हों ने मुझे कमरे के बीच खड़ा कर पूरे बदन पर बहुत ही भीनी खुश्बू वाला इत्र लगाया. फिर उन्हों ने एक बहुत ही झीनी सी नाइटी मुझे पहनाई. वो मेरे हाथों को थामे बेड तक ले आए. बेड के साइड टेबल पर एक तश्तरी भर सूखे मेवे रखे और फल रखे थे. उन्हों ने मुझे उनका नाश्ता कराया. 



“ अब आप आराम कर लें. वरना स्वामी जी के साथ सहवास का पूरा मज़ा लेने से आप वंचित रह जाएँगी. किसी भी तरह की सेवा की ज़रूरत हो तो पलंग पर लगी इस घंटी को दबा दीजिएगा.” एक ने मुझे कहा और फिर सारे मुझे उस कमरे मे अकेला छ्चोड़ कर बाहर निकल गयी. मैं भी बुरी तरह थॅकी होने की वजह से लेट गयी और लेट ते ही नींद आ गयी. मैं जिस हालत मे सोई थी. घंटो तक बिना हीले दुले उसी हालत मे सोती रही. 



दोपहर को भोजन के वक़्त मुझे उन्ही युवतियों ने आकर उठाया. कुच्छ ही देर मे स्वामी जी भी आ गये. हम दोनो ने कमरे मे ही खाना खाया. खाना खाते वक़्त मैं उनकी एक जाँघ पर बैठी हुई थी और उस अवस्था मे हम दोनो ने एक दूसरे को खाना खिलाया. खाना ख़तम होने के बाद उसे नशीले शरबत का हम दोनो ने सेवन किया. 



खाना खाने के बाद हमारे बीच एक और राउंड चला . इस बार ये खेल तकरीबन एक घंटे तक चला. इस बीच उन्हों ने दो बार अपने वीर्य की बौच्हर मेरी कोख मे की और मैं तीन बार स्खलित हुई. फिर हम दोनो लिपट कर सो गये. 



इसी तरह रोज पाँच सात बार चुदाई हो ही जाती थी. गुरु जी के बल का उनकी पवर का मैने तो लोहा मान लिया था. किसी भी नॉर्मल 25-30 साल के मर्द के लिए भी रोज पाँच सात बार स्खलन करना नामुमकिन काम था. और ऐसा भी नही की जल्दी झाड़ जाते हों. पंद्रह मिनिट से पहले तो कभी उनका रस नही निकला. 



मैं चुदाई की इतनी आदि हो गयी थी की हर वक़्त मेरी चूत मे खुजली चलती रहती थी. दिन मे कई कई बार चुदवा कर भी मेरा मन नही भरता था. स्वामी जी ने चोद चोद कर मेरी सारी खाज मिटाने का जिम्मा ले रखा था. 



चार दिन ऐसे ही बीत गये. पाँचवे दिन स्वामीजी ने कहा कि कोई मिनिस्टर आने वाला है. उन्हों ने उस मिनिस्टर से आश्रम की ज़मीन मुफ़्त मे हासिल की थी. बदले मे उन्हे आश्रम के इनऑयरेशन मे चीफ गेस्ट बनाया था. चीफ गेस्ट बनने को राज़ी होना तो बस एक दिखावा था. असल मे उन्हे आश्रम मे भरपूर सेक्स का आनंद लेने के लिए बुलाया गया था. स्वामी जी ने भी उन्हे भरपूर मौज मस्ती का अस्वासन दिया था. मंत्री जी को भी रोज रोज नयी औरत की ज़रूरत होती थी. 



“ मंत्री जी का स्वागत तुम करोगी. उनके साथ जो चेले चपाते होंगे उनका ख्याल रखने के लिए आश्रम की दूसरी शिष्याएँ हैं. तुम सिर्फ़ मंत्री जी का ख़याल रखोगी. उनकी पूरे तन मन से सेवा करना. उनको किसी तरह की शिकायत का मौका मत देना. उनसे मुझे और भी कई काम निकलवाने हैं.” 



मैं राज़ी हो गयी. 



“ ये दवा जब मंत्री जी आए तो ले लेना” स्वनी जी ने मुझे एक टॅबलेट देते हुए कहा. 



मैने जिगयसा वश उनकी तरफ देखा तो उन्हों ने आगे कहा,” ये दवा लेने के बाद तुम फ्री होकर सेक्स कर सकती हो 24 घंटे ये दवा काम करती है इस दौरान तुम्हे प्रेग्नेन्सी नही होगी. ये शुक्राणु को निष्टेज करता है.” 



मैने चुपचाप उनसे दवा ले ली. 



अगले दिन शाम को स्वामी जी उन्हे ले कर आए. उनकी एक झलक देखते ही मुझे उनसे नफ़रत हो गयी. नफ़रत के ही लायक थे वो. सवा सौ किलो का बोझ था वो धरती पर. आगे से पेट किसी गुब्बारे की तरह फूला हुआ था. एक दम भैंस की तरह काली रंगत और चेहरा उतना ही कुरूप. पूरे चेहरे पर चेचक के दाग थे. 



हर वक़्त मुँह मे गुटखा चबाते रहते थे. होंठों के कोने हल्के से फटे हुए थे जिन पर गुटके के दाने निकल आते थे. मुझे घिंन आ गयी उनके पास जाने मे. बिल्कुल जुगली करता हुआ कोई भैंसा प्रतीत हो रहा था. 



मैने स्वामी जी की दवा उत्तेजक शरबत के साथ ले ली. मैं उनक संपर्क मे आने से पहले अपने मन मस्तिष्क को उत्तेजना से भर देना चाहती थी जिससे किसी तरह का कोई विरोध, कोई नफ़रत या झिझक के लिए जगह नही रहे. 



मैं स्वामी जी के कमरे मे सिर्फ़ एक पतली सारी बदन पर लपेटे रहती थी. इसके अलावा बदन पर और कुच्छ भी पहनने को स्वामी जी ने मना कर दिया था. मेरे बड़े बड़े बूब्स मेरी हर चाल के साथ हिलने लगते थे. सामने से मेरे दोनो स्तनो की भरपूर झलक मिलती थी और पीछे से मेरे नितंब साफ नज़र आते थे. 



दोनो आकर कमरे मे सोफे पर बैठ गये. स्वामी जी ने मुझे बुलाया. 

क्रमशः............
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