Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 02:14 PM,
#74
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
दीपू – मैडम को बेड में ले चलिए.

गोपालजी अपने बदन में मेरी कोमल चूचियों का दबाव महसूस कर रहा था इसलिए वो मुझे अपने आलिंगन से छोड़ने के लिए अनिच्छुक था.

गोपालजी – रूको अभी. कुछ पल देखता हूँ, क्या पता मैडम ऐसे ही होश में आ जाए. तब तक तुम बेड से कपड़े हटाओ और चादर ठीक से बिछा दो.

दीपू – जी अच्छा.

अभी तक दीपू ने मेरी पीठ को सहारा दिया हुआ था वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी गोपालजी मुझे ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए था. 60 बरस की उमर में भी उस टेलर ने बड़ी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था. अब दीपू बेड ठीक करने गया तो मुझे लगा की एक बार आँखें खोलकर देखने में कोई ख़तरा नहीं है. मैंने देखा की दीपू मेरे बेड से कपड़ों को हटा रहा है , लेकिन मैं एक पल के लिए ही उसे देख पाई क्यूंकी अब गोपालजी मुझे अपने आलिंगन में ऐसे दबा रहा था जैसे की अपनी पत्नी को आलिंगन कर रहा हो. उसका मुँह मेरी गर्दन और कंधों पर था और दीपू का ध्यान दूसरी तरफ होने का फायदा उठाते हुए उसने अपने दाएं हाथ से मेरी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी सिसकारियाँ रोकी और चुपचाप चूची दबवाने का मज़ा लिया.

दीपू – जी हो गया. मैडम को होश आ गया ?

उसकी आवाज़ सुनते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और गोपालजी के कंधों में सर रख दिया. गोपालजी ने भी तुरंत मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. मेरी साड़ी का पल्लू अभी भी फर्श में गिरा हुआ था.

गोपालजी – नहीं आया. चलो मैडम को बेड में ले जाते हैं.

मैंने देखा तो नहीं पर दीपू मेरे नज़दीक आ गया. मैं सोचने लगी ये दोनों मुझे बेड में कैसे ले जाएँगे ? गोपालजी की उमर और उसके शरीर को देखते हुए वो मुझ जैसी गदराये बदन वाली जवान औरत को गोद में तो नहीं उठा सकता था. जो भी हो , लेकिन इस नाटकबाजी में मुझे बहुत रोमांच आ रहा था और मैं बेशरम बनकर सोच रही थी की ऐसे थोड़ा मज़ा लेने में हर्ज़ ही क्या है.

दीपू – हम मैडम को कैसे ले जाएँगे ?

गोपालजी – ऐसा करो पहले तो मैडम की साड़ी उतार दो ये फर्श में मेरे पैरों में लिपट जा रही है.

उउऊऊह ……मैं मन ही मन बुदबुदाई. 

दीपू ने तुरंत मेरी कमर से साड़ी उतार दी. वैसे भी जल्दी ही उसकी शादी होने वाली थी तो उसे अपनी पत्नी की साड़ी उतारना तो आना ही चाहिए. जब दीपू मेरी साड़ी उतार रहा था तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था की मेरी आँखें बंद करके किसी ने मेरी साड़ी उतारी हो. शादी के शुरू के दिनों में जब मेरे पति बेड में मेरी पैंटी उतारते थे तब मैं शरम से आँखें बंद कर लेती थी. लेकिन धीरे धीरे आदत हो गयी और बाद में मुझे इतनी शरम नहीं महसूस होती थी. लेकिन ऐसा तो कभी नहीं हुआ था.

गोपालजी ने भी दीपू की तेज़ी पर गौर किया और गंदा कमेंट कर डाला.

गोपालजी – दीपू बेटा, आराम से खोलो. इतनी तेज़ी क्यों दिखा रहे हो ?

दीपू ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वो इसलिए जल्दबाज़ी दिखा रहा था क्यूंकी मुझे बेहोश देखकर जल्दी से बेड में लिटाना चाह रहा था.

गोपालजी – अरे … इतनी तेज़ी से साड़ी क्यूँ उतार रहे हो. ये तुम्हारी घरवाली थोड़े ही है जो तुम्हें पेटीकोट भी उठाने को मिलेगा …हा हा हा….

दीपू – हा हा हा…..

गोपालजी – मैडम की साड़ी कुर्सी में रख दो.

अब मैं गोपालजी की बाँहों में सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी और फिर गोपालजी ने पेटीकोट के ऊपर से मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिए और उनकी गोलाई का एहसास करने लगा , मैं समझ गयी की अभी दीपू मेरी साड़ी कुर्सी में रख रहा होगा. हमेशा की तरह मेरी पैंटी मेरे नितंबों की दरार में सिकुड चुकी थी और गोपालजी को पेटीकोट के बाहर से मेरे मांसल नितंबों का पूरा मज़ा मिल रहा होगा. मुझे भी एक मर्द के हाथों से अपने नितंबों को सहलाने का मज़ा मिल रहा था.

मैंने फिर से एक पल के लिए आँखें खोली और देखा की दीपू वापस आ रहा है , गोपालजी ने तुरंत अपने हाथ मेरी कमर में रख लिए. मेरी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी और अब मैं बहुत कामोत्तेजित हो चुकी थी.

दीपू – अब ले चलें.

गोपालजी – हाँ. तुम इसकी टाँगें पकड़ो और मैं कंधे पकड़ता हूँ.

दीपू ने मेरी टाँगें पकड़ लीं और गोपालजी ने कंधे पकड़े और मुझे फर्श से उठा लिया. ऐसे पकड़े हुए वो मुझे बेड में ले जाने लगे. दीपू ने मेरी नंगी टाँगें पकड़ रखी थीं तो मेरा पेटीकोट थोड़ा ऊपर उठ गया और उसका निचला हिस्सा हवा में लटक गया. वो तो अच्छा था की बेड पास में ही था वरना ऐसे पेटीकोट लटकने से तो नीचे से अंदर का सब दिख जाता. फिर उन्होंने मुझे बेड में लिटा दिया और मेरे सर के नीचे तकिया लगा दिया.

गोपालजी – दीपू, अब क्या करें ? कुछ समझ नहीं आ रहा . गुरुजी को बुलाऊँ क्या ?

दीपू – जी , मैंने अपने गांव में बहुत बार मामी को बेहोश होते देखा है. मेरे ख्याल से अगर मैडम के चेहरे पर पानी छिड़का जाए तो इसे होश आ सकता है.

गोपालजी – तो फिर पानी ले आओ. तुम्हारी मामी को बेहोशी के दौरे पड़ते हैं क्या ?

दीपू – जी हाँ. बेहोश होकर गिरने से उसे कई बार चोट भी लग चुकी है. लेकिन वो तो बेहोश होकर गिर जाती है पर मैडम तो खड़ी रही , कुछ अलग बीमारी मालूम होती है. 

मैं आँखें बंद किए हुए उनकी बातें सुन रही थी और अपने चेहरे पर पानी पड़ने का इंतज़ार कर रही थी. दीपू पानी ले आया और उन दोनों में से पता नहीं कौन मेरे चेहरे पर पानी छिड़क रहा था, पर मैंने पूरी कोशिश करी की ठंडा पानी पड़ने पर भी ना हिलूं.

दीपू – मैडम पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा.

गोपालजी – हाँ. तुम्हारी मामी जब बेहोश होती है तो उसके घरवाले क्या करते हैं ?

दीपू – सांस ठीक से ले रही है या नहीं ? एक बार चेक कर लीजिए.

गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया.

गोपालजी – बहुत हल्की चल रही है.

ये सुनकर मैंने भी सांस रोक ली ताकि अगर दीपू भी चेक करना चाहे तो उसे भी यही लगे. इस नाटक में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.

दीपू – ऐसा है, तब तो एक काम करना होगा जो की मैंने मामी के साथ देखा है.

गोपालजी – क्या करना होगा ?

दीपू – जब मेरी मामी की हल्की सांस आती थी तो उसकी छाती ज़ोर से दबाकर पंप करते थे और तलवों की मालिश करते थे. 

गोपालजी – हाँ ये अच्छा सुझाव है. चलो ऐसा ही करते हैं. तुम मैडम के तलवों की मालिश करो.

एक पल के लिए मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया. ये अच्छा सुझाव नहीं बहुत बढ़िया सुझाव है. मुझे तो कामोत्तेजना से बड़ी बेताबी हो रखी थी की कोई मर्द मेरी कसी हुई चूचियों को अच्छे से दबाए. अब इस बेहोशी के बहाने गोपालजी मेरी छाती को पंप करेगा. इस ख्याल से ही मेरे निप्पल ब्रा के अंदर कड़क हो गये.

गोपालजी ने बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं किया और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और दबाने लगा. जल्दी ही उत्तेजना में भरकर वो बुड्ढा टेलर मेरी जवान चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोचकर मसलने लगा. मेरी साँसें उखड़ने लगीं और स्वाभाविक उत्तेजना से मेरी टाँगें अलग हो गयीं और मेरे नितंब भी कसमसाने लगे.

एक मर्द मेरी जवानी को आटे की तरह गूथ रहा था और मैं ज़्यादा हिल डुल भी नहीं सकती थी सिर्फ़ अपने होंठ काट रही थी. सच कहूँ तो मेरे नाटक करने से और गोपालजी की चतुर चालों से मेरे दिल को एक अजीब रोमांच और बदन को संतुष्टि और आनंद का एहसास हो रहा था.

दीपू – जी मुझे लगता है की मैडम के बदन में हरकत होने लगी है. मुझे इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

ये सुनकर मैंने जैसे तैसे अपनी कामोत्तेजना पर काबू पाया और एक पत्थर की तरह से पड़ी रही. गोपालजी को भी समझ आया और उसने मेरी चूचियों पर पकड़ ढीली कर दी.

गोपालजी – ठीक है तो फिर एक बार और सांस चेक कर लेता हूँ.

फिर से गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया. जाहिर था की अब मैं गहरी साँसें लेने लगी थी पर गोपालजी ने फिर से वही कहा.

गोपालजी – ना दीपू बेटा. सांस अभी भी वैसी ही है. इसके तलवे ठंडे हो रखे हैं क्या ?

दीपू – जी, लग तो रहे हैं.

गोपालजी – तो फिर अब क्या करना है ?

दीपू – जी , मैंने देखा था की अगर ऐसे होश नहीं आता तो गांव में मामी के मुँह में मुँह लगाकर सांस देते थे. आपसे हो पाएगा ऐसा ?

मुँह में मुँह लगाकर सांस देगा. हे भगवान. मेरा टेलर मेरे साथ ऐसा करेगा ? मेरे साथ तो ये होठों का होठों से चुंबन ही होगा. मैं इसे अपना चुंबन लेने दूँ या नहीं ? एक गांव का टेलर मेरा चुंबन लेगा. और वो भी 60 बरस की उमर का. ऐसे बुड्ढे का चुंबन कैसा महसूस होगा ?

ये सभी सवाल मेरे मन में आए. लेकिन इनका जवाब भी मेरे मन ने ही दिया.

क्यूँ नहीं ले सकता ? इसमें हर्ज़ ही क्या है ? इसने मुझे इतना मज़ा दिया है तो इसको अपने होठों का रस भी पीने देती हूँ. ये सिर्फ़ एक टेलर ही है पर पहले ही मुझे मेरे पति की तरह आलिंगन कर चुका है और वैसे भी सिर्फ़ एक चुंबन से मेरा क्या नुकसान होने वाला है ? जब नाटक कर ही रही हूँ तो क्यूँ ना इसका पूरा मज़ा लूँ.

इस तरह मैंने अपने को उस बुड्ढे टेलर के चुंबन के लिए तैयार कर लिया. 

गोपालजी – हाँ क्यूँ नहीं ? मैं कोशिश तो कर ही सकता हूँ और अगर ऐसा करने से मैडम को होश आ जाता है तो बहुत बढ़िया. वैसे तुमने देखा तो होगा कि ऐसा करते कैसे हैं ?

मैंने महसूस किया की गोपालजी मेरे चेहरे के करीब आ गया.

दीपू – आप मैडम का मुँह खोलो और उसके मुँह से हवा खींचकर अपने मुँह से हवा भर दो. 

गोपालजी – ठीक है. मैं कोशिश करता हूँ.

दीपू – लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना. मामी को भी ऐसा ही करते थे.

गोपालजी – अच्छा, ठीक है.
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